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सोमवार, 25 मई 2020

जैसलमेर दुनिया को डराने वाला कोरोना नहीं हिला पा रहा इनके इरादे ... कोरोना का शोर और न दहशत की दशा -सरहदी गांवों में सकारात्मक माहौल

 जैसलमेर  दुनिया को डराने वाला कोरोना नहीं हिला पा रहा इनके इरादे ...

कोरोना का शोर और न दहशत की दशा

-सरहदी गांवों में सकारात्मक माहौल

जैसलमेर। जिस कोरोना ने दुनिया के महाबली देशों और भारत के मेट्रो शहरों तक के बाशिंदों को झकझोर कर रख दिया, उसका असर सीमावर्ती जैसलमेर जिले के ठेठ सीमाई गांवों में जाकर देखें तो कहीं नजर नहीं आता। जीवन की बुनियादी सुविधाओं को पाकर ही स्वयं को निहाल समझने वाले इन सीमांत क्षेत्रों के लोग अलबत्ता कोरोना से पूरी तरह बेफिक्र हैं, फिर भी ज्यादा पूछताछ करने पर वे इतना ही कहते हैं कि, यह कोई शहर की बीमारी है। भारत-पाकिस्तान अंतरराष्ट्रीय सीमा के एकदम नजदीक बसे लोग पूरी जीवटता के साथ जीवन जी रहे हैं। अपने पशुधन का संतान की भांति प्रेम से पालन-पोषण करने वाले इन ग्रामीणों के जीवन में कोरोना या कोविड-१९ की दहशत दूर-दूर तक नजर नहीं आती।

पशुधन का सहारा

कोरोना के कोहराम से दूर अपने काम और जिंदगी में मगन सीमा से लगते गावों के लोगों को आज भी पशुओं के चारे और पानी की ही प्रमुख चिंता है क्योंकि उनके जीवन यापन का एकमात्र सहारा यह पशुधन ही है। जहां जिले में पिछले अर्से के दौरान सरकारी मशीनरी पूरी तरह से कोरोना से लडऩे व शहरी व ग्रामीण क्षेत्रों के बाशिंदों को राहत पहुंचाने के काम में जुटी दिख रही थी, सीमा पर बसे ये लोग बिना किसी सहायता के जीवन आराम से जी रहे थे।

जिंदगी में बदलाव नहीं

सीमांत क्षेत्र में शांत रेत के धोरों के बीच बसे रणाऊ, घंटियाली, कुरियाबेरी और तनोट जैसे गावों में जिंदगी आज भी वैसी ही है। गर्मी के भीषण रूप ने उनकी दिनचर्या को बदला है लेकिन कोविड का डर और असर इन गांवों में नाममात्र का भी नहीं है। भेड़ बकरियों को दुलारते रणाऊ निवासी सुजान सिंह से जब कोरोना के बारे में पूछा गया तो उन्होंने इतना ही कहा कि, शहर में कोई रोग फैला है इतना पता है। वे शहर तो दूर निकट के कस्बे रामगढ़ भी महीनों में कभी कभार जाते हैं। आवागमन बंद होने से वह भी बंद हो गया। आटे और नमक-मिर्च की जरूरत स्थानीय दुकान से पूरी हो जाती है। उनकी जरूरतें पहले भी कम थी और अब भी कम ही है। रणाऊ गांव के आगे तपती दुपहरी में पशुओं के साथ खेजड़ी की छांव में बैठे पशुपालकों का भी कोरोना को लेकर यही जवाब था। भेड़ के दूध मे आटा डालकर बनी खीर खाते हुए जीवनसिंह बताते हैं कि वे इस भीषण गर्मी में भी पशुओं के पीछे घूमते रहते हैं। आबादी के नाम पर घर के लोग ही सम्पर्क में हैं। बाहर से आने वाले कोई नहीं हैं। ऐसे मे कोरोना का आना मुमकिन नहीं। उन्हें पशुओं के लिए चारा जुटाने में जरूर परेशानी पेश आ रही है। सरकार समय रहते यह जरूरत पूरी कर दे तो फिर कोई कमी नहीं रह जाएगी। गधे पर पानी की पखाल डाले कुरिया निवासी जाम खां के हाल चाल पूछने पर उनके चेहरे की मुस्कान ने सब बयान कर दिया। कोरोना को लेकर उन्होंने कोई प्रतिक्रिया नहीं दी। आटे की पोटली साथ में थी, वहीं खेजड़ी के नीचे रोटियां बननी शुरू हो गई। पानी से लबालब पशु खेलियां और इनके सहारे खड़े खेजड़ी और केर के पेड़ों के नीचे बैठा पशुधन जीवन की जीवटता और आनंद का अहसास करवाता नजर आया। सीमा सुरक्षा बल के जवान जगह-जगह स्थापित चौकियों पर स्थानीय बाशिंदों के साथ सजग खड़े दिखाई दे रहे हैं।