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सोमवार, 18 दिसंबर 2017

गुजरात फेक्टर का फायदा राजस्थान में लेंगे मोदी।मुख्यमंत्री का नया चेहरा आएगा सामने।100 विधायको की टिकट कटेगी।*



गुजरात फेक्टर का फायदा राजस्थान में लेंगे मोदी।मुख्यमंत्री का नया चेहरा आएगा सामने।100 विधायको की टिकट कटेगी।*



*गुजरात चुनाव जितने के बाद उत्साह से लबरेज भाजपा इसका फायदा राजस्थान के चुनावों में उठाने को लेकर तैयार है।।गुजरात चुनावो के दौरान ही भाजपा ने राजस्थान में चुनावो में नये सिरे से उतरने की रणनीति बना ली थी।जिसे लागू करने से पहले गुजरात के नतीजों का इंतज़ार कर रहे थे।सब कुछ ठीक रहा तो जनवरी में मलमास समाप्ति के साथ भाजपा में उठापटक जोरो से होगी।कई नए चेहरे दस्तक देंगे।राजस्थान के चुनावों को प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी खुद हैंडल करेंगे।अपने विश्वशनीय साथी को राजस्थान के नए मुख्यमंत्री के तौर पर प्रोजेक्ट करेंगे।।संकेत है कि पश्चिमी राजस्थान से ये चेहरा ह्योग।।साथ ही साथ पूर्व वित्त मंत्री जसवंत सिंह परिवार के सदस्य को अहम जिम्मीदरी दी जानी तय हुई।इनका प्रतिनिधित्व केंद्र में ह्योग।मोदी एक तीर से दो निशाने साधेंगे।दो दमदार राजपूत नेताओ पे भरोसा कर उन्हें राजपूतो को भाजपा के साथ वापस जोड़ने की अहम जिमेदारी देंगे।।सूत्रानुसार मोदी राजड़तहँ में फ्री हैंड अपने विश्वश्तो को चुनावी जिमेदारी देंगे।।मुख्यमंत्री का दावेदार इस बार पश्चिमी राजस्थान से होना तय माना जा रहा है।मोदी ने पूर्व में बीकानेर सांसद अर्जुन मेघवाल और केंद्रीय मंत्री राज्यवर्धन सिंह को साबित करने का अवसर प्रदान किया था।।इन दोनों नेताओं को भी अहम जिम्मीदरी दी जाएगी।।सत् ही ऐंटी इंकमबेसी पे अंकुश के लिए संगठन द्वारा वर्तमान एक सौ भाजपा विधायकों को घर बिठाने की तैयारी की गई है।भाजपा करीब साठ से सत्तर फीसदी नये चेहरे उतरेगी ताकि सत्ता विरोधी लहर को कंट्रोल किया जा सके।।नये चेहरों की तलाश शुरू हो गई।।राजस्थान की मुख्यमंत्री वसुंधरा राजे को केंद्र में बुलाने की तैयारी की खबर हैं।।सूत्रों की माने तो राजस्थान के चुनावों को राष्ट्रीय अध्यक्ष अमित शाह और प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी अहम मान इसको ख़ुद हैंडल करेंगे।।भाजपा को इसका कितना फायदा ह्योग यह समय के गर्भ में है मगर भाजपा में राजथान को हर हाल में जितने की रणनीति पे काम हो चुका है।*

गुरुवार, 22 दिसंबर 2016

बाड़मेर,राजस्थान एकाउन्टेन्टस् एसोसिाएषन लेखा सेवा संवर्ग की वेतन विसंगति दूर कराने की मांग

बाड़मेर,राजस्थान एकाउन्टेन्टस् एसोसिाएषन  लेखा सेवा संवर्ग की वेतन विसंगति दूर कराने की मांग

 

बाडमेर । राजस्थान एकाउन्टेन्ट्स एसोसिएषन जिला शाखा बाड़मेर द्वारा कोषाधिकारी बाड़मेर   दिनेष बारहट को अधीनस्थ लेखा सेवा संवर्ग की वेतन विसंगति दूर कराने की मांग करते हुए प्रमुख शासन सचिव वित्त राजस्थान सरकार के नाम ज्ञापन सौंपा।जिला महामंत्री श्री महिपाल सिंह रोहड़िया ने बताया कि वेतन विसंगति विचार समिति से निर्धारित तिथि 27.12.2016 से पूर्व अधीनस्थ लेखा संवर्ग की मांगों को प्रक्रिया मे शामिल करने की मांग की गई है।कोषाधिकारी महोदय ने वेतन विसंगति दूर कराने के मांगपत्र को सक्षम कमेटी के समक्ष विचारार्थ रखवाने का आष्वासन दिया। इस मौके पर श्री गोरधनराम सोनी , श्री चन्द्रमोहन कुलरिया ,श्री ललित कुमार जोषी, श्री चन्द्रप्रकाष अग्रवाल,श्री देवपाल मीणा ,श्री यषकुमार जोरम ,श्री मदन षर्मा ,श्री भंवर लाल, श्री सुरेष गोलेच्छा, श्री सुरेश डाबी ,श्री महेन्द्र वर्मा उपस्थित रहे।
                                                               

सोमवार, 30 मई 2016

पाकिस्तान से लापता हुआ बच्चा दो साल बाद राजस्थान में मिला

पाकिस्तान से लापता हुआ बच्चा दो साल बाद राजस्थान में मिला


पाकिस्तान में एक पांच साल का बच्चा 6 जून, 2014 को अपने परिवार से बिछड़ा था और अब यह बच्चा राजस्थान में मिला है। बताया जा रहा है कि इस बच्चे को राजस्थान पुलिस ने एक एनजीओ को सुपुर्द किया है। लेकिन अब इस बच्चे की वतन वापसी में कुछ रोड़ा आ रहा है। इस रोड़े को हटाने के लिए बच्चे के परिजनों ने भारत के प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और पाकिस्तान के प्रधानमंत्री नवाज शरीफ से सहायता की अपील की है।

पाकिस्तान से लापता हुआ बच्चा दो साल बाद राजस्थान में मिला





पाकिस्तान के डॉन समाचार पत्र की वेबसाइट के अनुसार बच्चे के पिता जफर अली ने बताया कि उनका बच्चा पाकिस्तान के चारसड्डा जिले से बिछड़ गया था। इस बच्चे का नाम है इस्माइल। परिवार ने इस्माइल को हर जगह खोजा और अगले दिन पुलिस में गुमशुदगी की शिकायत दर्ज कराई।







अली ने कहा कि करीब दो माह पहले सऊदी अरब में रहने वाले इस्माइल के मामा ने जब एक भारतीय सामाजिक कार्यकर्ता द्वारा साझा की गई उसकी तस्वीर सोशल मीडिया पर देखी तो परिवार को पता चला कि वह राजस्थान में है। सामाजिक कार्यकर्ता ने तस्वीर के साथ अपना फोन नम्बर भी साझा किया था और सोशल मीडिया के उपयोगकर्ताओं से उस पोस्ट को साझा करने का अनुरोध किया था, ताकि लड़का अपने परिवार से मिल सके। इस्माइल के मामा ने दिए गए फोन नम्बर पर फोन कर संपर्क किया तो उसे कहा गया कि बच्चा राजस्थान में पुलिस को सौंप दिया गया था।







डेढ़ महीना बीता, नहीं हो सकी वतन वापसी

जफर ने कहा कि बच्चे के बारे में 45 दिनों पहले जानकारी मिली, लेकिन वह उसे वापस पाकिस्तान नहीं ला पाए हैं। बेटे की पाकिस्तान में घर वापसी के लिए परिवार मदद के लिए भारत और पाकिस्तान सरकार की ओर देख रहा है। इस्माइल के परिजनों ने अपने बच्चे को वापस पाने और परिवार से उसे फिर मिलाने के लिए पाकिस्तान के प्रधानमंत्री नवाज शरीफ और भारत के प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी से मदद की अपील की है।

रविवार, 27 सितंबर 2015

पर्यटन दिवस पर वसुंधरा ने लिखा- सत्कार की अनूठी परंपरा निभा रहा है राजस्थान

पर्यटन दिवस पर वसुंधरा ने लिखा- सत्कार की अनूठी परंपरा निभा रहा है राजस्थानपर्यटन दिवस पर वसुंधरा ने लिखा- सत्कार की अनूठी परंपरा निभा रहा है राजस्थान


शौर्य और साहस की अनगिनत गौरव गाथाएं समेटे महल, कल-कल करती झीलें, प्रकृति प्रेमियों और वन्य जीवन में रूचि रखने वालों के लिए राष्ट्रीय उद्यान अभयारण्य और त्योहारों का अलग स्वरूप ये सब एक जगह मिलते हैं और वो है राजस्थान। देश में पर्यटन की बात राजस्थान के बिना संभव ही नहीं है। यहां का स्वागत-सत्कार ताउम्र भूल नहीं पाते हैं पर्यटक।

अब तक इसे राजाओं की धरती ही माना जाता रहा है लेकिन यहां इससे भी बहुत ज्यादा है अनुभव करने के लिए। यात्रा को यादगार बनाने के लिए। यहां की रंगारंग संस्कृति और स्वादिष्ट व्यंजन इसे अलग पहचान देते हैं। स्थानीय लोगों के बीच संगीत और नृत्य अभ्यास भी बहुत ही जीवंत और आकर्षक हैं, इन बातों के अलावा ये जगह अपने लाजवाब आर्टवर्क के लिए भी जानी जाती है। यहां की पारंपरिक कलात्मक पोशाकें, जिसमें शीशे के काम देखा जा सकता है। कला प्रेमियों के लिए राजस्थान स्वर्ग से कम नहीं है। यहां के महल, हवेली, किले उम्दा वास्तुकला के उत्कृष्ट उदाहरण हैं। त्योहारों का भी रंग यहां अलग दिखाई देता है। यहां होली, तीज, दीपावली, संक्रांति और जन्माष्टमी का विशेष महत्व है इसके अलावा, वर्ष में एक बार मनाया जाने वाला, ऊंट और पशु मेला भी राज्य के प्रमुख उत्सव हैं।

रणथंभौर राष्ट्रीय उद्यान, सरिस्का टाइगर रिजर्व, दरा वन्य प्राणी अभयारण्य और कुम्भलगढ़ वन्यजीव अभयारण्य प्रकृति प्रेमियों और वन्य जीवन में रुचि रखने वाले लोगों के लिए तोहफे के समान हैं। जयपुर, जोधपुर, उदयपुर और बीकानेर जैसे खूबसूरत शहरों की भव्यता देखते ही बनती हैं। इसके अलावा यहाँ बांसवाड़ा, कोटा, भरतपुर, बूंदी, विराट नगर, सरिस्का और शेखावाटी जैसे भी दर्शनीय स्थल हैं जो राजस्थान की असली खुशबू को समेटे हुए हैं। झीलों की नगरी उदयपुर की सुंदरता देखती ही बनती हैं वहीं झुलसती गर्मी में प्रदेश का एकमात्र हिल स्टेशन माउंट आबू यादगार अनुभव देता है। वहीं परमाणु परीक्षण झेलने वाली शक्तिशाली धरती पोकरण भी यहीं मौजूद है। लेटिन दार्शनिक और बिशप सेंट ऑगस्टाइन ने कहा था कि " ये दुनिया एक किताब है और जो लोग यात्रा नहीं करते उन्होंने अपने जीवन में केवल एक ही पेज पढ़ा है। राजस्थान उसी किताब का खास हिस्सा है।

-वसुंधरा राजे, मुख्यमंत्री, राजस्थान

रविवार, 14 सितंबर 2014

राजस्थान में सरहद पर सफी खान सम्मा अपना स्कूल पुलिस थाना,जंहा पर खाकी वाले मास्टर जी




राजस्थान में सरहद पर सफी खान सम्मा अपना स्कूल पुलिस थाना,जंहा पर खाकी वाले मास्टर जी


राजस्थान के बाड़मेर जिले में भारत-पाकिस्तान सीमा से सटे रामसर कस्बे की पहचान मांगनियार समुदाय के उन गायकों के कारन विश्व-स्तरीय है जिनके लिए यह अतिशयोक्ति सत्य प्रतीत होती है की मांगनियार बच्चे जन्म से ही अच्छे गायक होते हैं और उनका पहला रुदन भी सुरीले गायन की तरह होता है. यहाँ एक पुलिस अधिकारी दवारा कुछ वर्ष पूर्व की गई अनूठी पहल ने रामसर पुलिस थाने को भी ‘सुरीला’ बना दिया है. इस थाने में हथकड़ी की गूँज और बेल्ट की फट कार की जगह ‘अनार’ –आम’ का सुरीला गाना गूँज रहा है. और यंहा के पुलिस वाले मास्टर जी की भूमिका निभा रहे है थाने के नाम से जहां बड़ों-बड़ों को पसीना आ जाता है, वहीं बाड़मेर जिले के रामसर इलाके के थाने में लगभग 150 से २०० बच्चे बड़े मजे से यंहा पर शिक्षा ले रहे है । दर असल 2006 में बाड़मेर में भयंकर बाढ़ आई थी और यहां के स्कूलों में बारिश का पानी भर गया था. तब रामसर के पूर्व थाना प्रभारी सुरेंद्र कुमार ने इस थाने का चार्ज संभाला तो छोटे से कस्बे का दौरा करते हुए उन्होंने देखा की गाँव में बहुत से बच्चे स्कूल जाने के बजाय इधर उधर भटक रहे हैं इसको देखते हुए उन्होंने थाना भवन में ही स्कूल लगाना शुरू कर दिया और पुलिस के जवानो को इन बच्चो को पढ़ाने के लिए मास्टरजी बना दिया और इस अनोखे स्कूल का नाम दिया गया, अपना स्कूल पुलिस थाना 20 बच्चों के साथ शुरू किए गए इस अनोखे स्कूल में आज 150 से 200 बच्चे पढ़ रहे हैं पुलिसकर्मी कानून-व्यवस्था संभालने के साथ-साथ शिक्षक की दोहरी भूमिका भी निभा रहे हैं. पुलिसकर्मियों के अलावा स्कूल में दो टीचर भी हैं, जिन्हें सामाजिक कार्यकर्ता सफी खान समा ने यहां तैनात किया है. टीचरों का वेतन पुलिस और सामाजिक कार्यकर्ता सफी खान समा दोनों चंदा करके इकट्ठा करते हैं रामसर थाना अधिकारी सहदेव कहते हैं,की सामाजिक कार्यकर्ता सफी खान समा की मदद के चलते स्कूल के संचालन में कोई दिक्कत नहीं आती. लगभग पूरा खर्चा वे ही उठाते हैं. जबकि बच्चों की छोटी-मोटी जरूरतें थाने की ओर से पूरी कर दी जाती हैं



शायद देश में यह इकलौता ऐसा अनूठा थाना होगा जहां एक ओर अपराधी हैं तो दूसरी ओर नन्हे बच्चे. यह थाना निश्चित ही देशभर में मिसाल कायम कर रहा है. अच्छी बात यह है कि स्कूल शुरू होने के बाद से अब तक थाने के कई प्रभारी बदल चुके हैं लेकिन शिक्षा का उजियारा फैलाती इस अलख को किसी ने भी बुझने नहीं दिया है.

शनिवार, 12 जुलाई 2014

राजस्थान राज्यसभा सांसदों के कोष खाली हो रहे दलालों के जरिए ?

राजस्थान राज्यसभा सांसदों के कोष खाली हो रहे दलालों के जरिए ?


 बाड़मेर राजस्थान के राज्य सभासंसदो की चांदी हो राखी हेराजस्थान के दो राज्य सभा सांसद ऐसे हे जिनके कोष की राशी दलालों के माध्यम से तीस फीसदी कमीशन लेके खुले आम् बांटी जा रही हे। बाड़मेर जिले में कांग्रेस के दो राज्य सभा सांसदों के करीब ढाई करोड़ रुपयों के प्रस्ताव आयेहें। जिनमे अधिकांस की वितीय और तकनिकी स्वीकृतिया निकल चुकी हें। यह पैसा शिव विधानसभा क्षेत्र में सर्वाधिका रहा हें। पुख्तासुत्रो ने बताया की जयपुर में इन सांसदों के कोष से राशी लेने केलिए दलालों से संपर्क कराना पड़ता हें। तीस फीसदी राशी नकद जमा करने के बाद अनुसंशा पात्र जारी कियाजाता हे। बाड़मेर जिले में राज्य सभा कोष से आये प्रस्तावों का भौतिक सत्यापन या उच्च तरिय कमेटी से जाँच कराई जायव तो सारी पोल पट्टी सामने आ जाये। क्यूंकि इस राशि का प्रयोग किसी भी विकास कार्य के लिये नहि हुआ।

शनिवार, 5 जुलाई 2014

त्वरित टिपणी। … वसुंधरा राजे की मनरेगा को योजना में बदलने की सार्थक पहल ,स्वागत होना चाहिए


त्वरित टिपणी। … वसुंधरा राजे की मनरेगा को योजना में बदलने की सार्थक पहल ,स्वागत होना चाहिए

चन्दन  सिंह भाटी 

राजस्थान की मुख्यमंत्री वसुंधरा राजे ने केंद्रीय ग्रामीण मंत्री नितिन गडकरी को पत्र लिख कर मनरेगा को गारंटी कानून से योजना में बदलने को लिख सार्थक और दूरदर्शी प्रयास किया हैं जिसका स्वागत होना चाहिए ,वसुंधरा मनरेगा की धरातलीय स्थति लिखी हैं की इस कानून से कोई फायदा जनता को नहीं हो रहा ,यही हकीकत हैं ,इस समय मनरेगा में सर्वाधिक भरष्टाचार ,हैं इस स्कीम से जुड़ा हर अधिकारी और कर्मचारी योजना का आनंद लेकर अपने घर भर रहे हैं ,जबकि जिन लोगो कानून को लाया गया उन्हें एक ढेले का फायदा नहीं हो रहा ,इस योजना से जुड़े अंतिम सरकारी व्यक्ति मेट से लेकर उच्च स्तरीय अधिकारी प्रति माह लाखो रुपयो से खेलते हैं जिन आवाम को रोजगार और मज़दूरी उपलब्ध करनी थी नहीं करा पाये ,कानून तो बना दिया मगर इसे व्यवस्थित रूप से लागु करने की सरकार नाकाम ,रही आज ग्राम पंचायत का सरपंच ,और ग्राम सेवक करोड़पति हो गए मेट लाखो में खेलता हैं ,मगर मज़दूर को उसकी मज़दूरी नहीं मिल रही। वसुंधरा की यह सोच की इसे योजना के रूप में चलाया सकारात्मक रूख हैं ,बाड़मेर हे ग्राम पंचायतो में आबादी से अधिक जॉब कार्ड जारी हो रखे हैं ,प्रत्येक में पचास से साठ फीसदी जॉब कार्ड फर्जी बने हे जिसका भुगतान सहायक से लेकर सरपंच तक मिलजुल कर बांटते हैं ,मनरेगा में एक भी काम सार्थक रूप से पुरे राजस्थान में नज़र नहीं आ रहा ,कहने को इस योजना में को दो लाख टांके बाड़मेर जिले हे मगर ऐसी से नब्बे फीसदी टांको का निर्माण हुए बिना भुगतान उठा लिया ,इस योजना में स्वीकृत कार्यो की उच्च स्तरीय जाँच हो जाये तो साड़ी पोल पट्टी सामने आ जाएगी ,बाड़मेर जिले में गत तीन सालो में कोई अठारह मगर धरातल पर पंचायत में कोई काम होता आपको दिखाई नहीं देगा ,मनरेगा कागजी गयी हे जिसका फायदा चंद प्रभावी लोग उठा रहे हैं ,इसे कानून से योजना में बदलने से शायद आम जान को रोजगार उपलब्ध हो जाये ,

शुक्रवार, 4 जुलाई 2014

बाड़मेर सहित राजस्थान दस रेलवे स्टेसन उड़ाने की धमकी ,हाई अलर्ट पर राजस्थान

बाड़मेर सहित राजस्थान दस रेलवे स्टेसन उड़ाने की धमकी ,हाई अलर्ट पर राजस्थान


बाड़मेर आंतकवादी संगठन ने राजस्थान के सरहदी जिले बाड़मेर सहित दस रेलवे स्टेसनो को उड़ने का धमकी भरा पत्र भेजा ,इस पात्र के बाद राजस्थान में हड़कम्प मच गया ,सरकार ने राजस्थान के समस्त जिलो की सुरक्षा व्यवस्था चाक चौबंद कर हाई अलर्ट पर रखा हैं ,बाड़मेर के रेलवे स्टेसन की सुरक्षा व्यवस्था बढ़ा दी गयी हैं।

लश्कर-ए तोयबा के एरिया कमांडर करीम अंसारी ने पंजाब को खून से रंग देने की धमकी देकर सुरक्षा एजेंसियों की एक बार फिर नींद उड़ा दी है। फिरोजपुर डिवीजन के रेलवे मैनेजर एनसी गोयल को 30 जून को भेजे पत्र में उसने पंजाब और राजस्थान के प्रमुख स्टेशनों और जालंधर के देवी तालाब मंदिर समेत प्रमुख धार्मिक स्थानों को एक सप्ताह के भीतर उड़ा देने की धमकी दी है।

अंतर्देशीय पत्र के माध्यम से फिरोजपुर कार्यालय को भेजे अपने पत्र में करीम अंसारी ने पंजाब के दो दर्जन प्रमुख स्थानों का नाम लिया है। उसने लिखा है कि आगामी 10 जुलाई को फिरोजपुर छावनी समेत दर्जन भर प्रमुख स्टेशनों को विस्फोट कर उड़ा दिया जाएगा और 12 जुलाई को जालंधर के प्रमुख मंदिर देवी तालाब समेत दर्जन भर प्रमुख मंदिरों को उड़ा दिया जाएगा।

अंत में उसने लिखा है कि पंजाब को खून से रंग देने पर ही उसे सुकून मिलेगा। फिरोजपुर कार्यालय में पहुंचने के बाद से ही रेलवे ने जीआरपी और आरपीएफ को अलर्ट करते हुए फिरोजपुर, फरीदकोट, भटिंडा, पटियाला, नवांशहर और गुरुदासपुर के वरिष्ठ पुलिस अधीक्षकों से कानून व्यवस्था बनाए रखने में मदद मांगी है। पत्र में पंजाब, राजस्थान और मध्य प्रदेश का भी जिक्र है। पत्र भेजने वाले ने अपना नाम करीम अंसारी, एरिया कमांडर, आतंकवादी संगठन लश्करे तैयबा, करांची पाकिस्तान लिखा है।

- पंजाब में फिरोजपुर छावनी, बठिंडा, फरीदकोट, धूली, जोखल, हिसार, पटियाला और राजस्थान में जयपुर, बीकानेर, गंगानगर, बाड़मेर, कोटा, जोधपुर, अलवर और नामची स्टेशनों को 10 जुलाई को उड़ाने की धमकी। इसके साथ ही बठिंडा, फरीदकोट, पटियाला के प्रमुख मंदिर, जालंधर के श्री देवी तालाब मंदिर, लुधियाना का वेद मंदिर, दुर्गा माता मंदिर, फगवाड़ा का हनुमान गढ़ी, पा रावण, अमृतसर का काली मंदिर, रामतीर्थ, बटाला और गुरुदासपुर के प्रमुख मंदिरों को 12 जुलाई को उड़ाने की धमकी दी।

- विभागीय सूत्र बताते हैं कि करीम अंसारी की पिछले दस सालों में यह पांचवीं धमकी है। हर बार वह तरह-तरह से धमकी देकर सुरक्षा एजेंसियों की नींद उड़ा देता है, लेकिन दूसरी ओर पिछले दस सालों से भारत की खुफिया ब्यूरो उसका पता नहीं लगा पा रही है।

- जीआरपी के एसपी आरएस घुम्मण ने कहा कि सभी संबंधित सुरक्षा एजेंसियों को सतर्कता बरतने के कड़े निर्देश दे दिए गए हैं। प्लेटफार्म पर और गाड़ियों में रैंडम चेकिंग करने के निर्देश जारी कर दिए गए हैं।

- उन्होंने आम जनता से अपील की है कि किसी भी प्रकार के संदिग्ध वस्तु या व्यक्ति के दिखाई देने पर उसकी सूचना तत्काल नजदीकी जीआरपी, आरपीएफ जवान या रेलवे कर्मचारी या फिर 100 नंबर पर दें। जालंधर सिटी स्टेशन समेत आसपास के स्टेशनों पर सुरक्षा व्यवस्था बढ़ा दी गई है।





सोमवार, 23 जून 2014

राजस्थान में गोडावण खत्म होने के कगार पर

राजस्थान में गोडावण के संरक्षण संबंधी तमाम प्रयासों के बावजूद गत अधिकृत गणना में इनकी संख्या बस 85 ही पाई गई थी।
हाल ही में एक गैर सरकारी संगठन ने चालू साल में इनकी संख्या में खासी गिरावट का दावा किया है। ऎसे में आशंका है कि अगले कुछ वर्षो में सरकार को राज्य पक्षी के दर्जे के लिए गोडावण के बजाए किसी अन्य पक्षी का चयन करना पड़े। वैसे, राज्य सरकार के वन विभाग की वेबसाइट पर जून 2013 में इनकी संख्या न्यूनतम 125 होना दर्शाया गया है।
Do not change the state bird


शिकार पर सात वर्ष की सजा
राष्ट्रीय पशु बाघ व पक्षी मोर के साथ वन्यजीव संरक्षण कानून की प्रथम अनुसूची में शामिल गोडावण के शिकार पर सात वर्ष तक की सजा और पांच लाख रूपए तक के जुर्माने का प्रावधान है।

गोडावणों का गणित
4800 के करीब 1950 में
72 के करीब थे 2009 में
85 हो गए 2013 में
2014 के परिणाम आने अभी बाकी


गोडावण के घर
जैसलमेर, जोधपुर, अजमेर, कोटा और बाड़मेर गोडावण का घर माने जाते हैं।
पाकिस्तान, गुजरात व मध्यप्रदेश के कुछ इलाकों में भी पाए जाते रहे हैं।


विलुप्त होने के कारण
ग्रासलैंड्स पर सिमटने से इनके रहने की जगह खत्म हो गई।
खनन और शिकार भी गोडावणों की संख्या के कम होने का मुख्य कारण है।

साल 2013 में मई की अधिकृत गणना में 80 से 90 के बीच गोडावण थे। 2014 की गणना का परिणाम अभी जारी होना है। ऎसे में इनकी संख्या के बारे में कुछ कह पाना मुश्किल है। अरिन्दम तोमर, मुख्य वन संरक्षक-वन विभाग

राजस्थान में गोडावण की संख्या तीस से अधिक नहीं रह गई है। किसी पक्षी प्रजाति का 100 से कम रह जाना इसके खत्म होने के कगार पर खड़े होने का संकेत है। बाबू लाल जाजू, प्रदेशाध्यक्ष, पीपुल्स फॉर एनिमल्स -  

रविवार, 16 मार्च 2014

राजस्थान की होली के विविध रंग

राजस्थान की होली के विविध रंग 

राजस्थान के विभिन्न इलाकों में होली मनाने का अलग और खास अंदाज है। होली के मौके पर जानिए राज्य की होली से जुडी अनूठी परंपराओं के बारे में।


लट्ठमार होली

भरतपुर के ब्रजांचल में फाल्गुन का आगमन कोई साधारण बात नहीं है। यहां की वनिताएं इसके आते ही गा उठतीं हैं "सखी री भागन ते फागुन आयौ, मैं तो खेलूंगी श्याम संग फाग।" ब्रज के लोकगायन के लिए कवि ने कहा है "कंकड" हूं जहां कांकुरी है रहे, संकर हूं कि लगै जहं तारी, झूठे लगे जहं वेद-पुराण और मीठे लगे रसिया रसगारी।" यह रसिया ब्रज की धरोहर है, जिनमें नायक ब्रजराज कृष्ण और नायिका ब्रजेश्वरी राधा को लेकर ह्वदय के अंतरतम की भावना और उसके तार छेडे जाते हैं। गांव की चौपालों पर ब्रजवासी ग्रामीण अपने लोकवाद्य "बम" के साथ अपने ढप, ढोल और झांझ बजाते हुए रसिया गाते हैं। डीग क्षेत्र ब्रज का ह्वदय है, यहां की ग्रामीण महिलाएं अपने सिर पर भारी भरकम चरकुला रखकर उस पर जलते दीपकों के साथ नृत्य करती हैं। संपूर्ण ब्रज में इस तरह आनंद की अमृत वर्षा होती है। यह परंपरा ब्रज की धरोहर है। रियासती जमाने में भरतपुर के ब्रज अनुरागी राजाओं ने यहां सर्वसाधारण जनता के सामने स्वांगों की परंपरा को संरक्षण दिया। दामोदर जैसे गायकों के रसिक आज भी भरतपुर के लोगों की जबान पर हैं जिनमें शृंगार के साथ ही अध्यात्म की धारा बहती थी। बरसाने, नंदगांव, कामां, डीग आदि स्थानों पर ब्रज की लट्ठमार होली की परंपरा आज भी यहां की संस्कृति को पुष्ट करती है। चैत्र कृष्ण द्वितीया को दाऊजी का हुरंगा भी प्रसिद्ध है। 

गेर नृत्य 

पाली के ग्रामीण इलाकों में फाल्गुन लगते ही गेर नृत्य शुरू हो जाता है। वहीं यह नृत्य डंका पंचमी से भी शुरू होता है। फाल्गुन के पूरे महीने रात में चौहटों पर ढोल और चंग की थाप पर गेर नृत्य किया जाता है। मारवाड गोडवाड इलाके में डांडी गैर नृत्य बहुत होता है और यह नृत्य इस इलाके में खासा लोकप्रिय है। यहां फाग गीत के साथ गालियां भी गाई जाती हैं। 

मुर्दे की सवारी 

मेवाड अंचल के भीलवाडा जिले के बरून्दनी गांव में होली के सात दिन बाद शीतला सप्तमी पर खेली जाने वाली लट्ठमार होली का अपना एक अलग ही मजा रहा है। माहेश्वरी समाज के स्त्री-पुरूष यह होली खेलते हैं। डोलचियों में पानी भरकर पुरूष महिलाओं पर डालते हैं और महिलाएं लाठियों से उन्हें पीटती हैं। पिछले पांच साल से यह परंपरा कम ही देखने को मिलती है। यहां होली के बाद बादशाह की सवारी निकाली जाती है, वहीं शीतला सप्तमी पर चित्तौडगढ वालों की हवेली से मुर्दे की सवारी निकाली जाती है। इसमें लकडी की सीढी बनाई जाती है और जिंदा व्यक्ति को उस पर लिटाकर अर्थी पूरे बाजार में निकालते हैं। इस दौरान युवा इस अर्थी को लेकर पूरे शहर में घूमते हैं। लोग इन्हें रंगों से नहला देते हैं। 

चंग-गींदड 

फाल्गुन शुरू होते ही शेखावाटी में होली का हुडदंग शुरू हो जाता है। हर मोहल्ले में चंग पार्टी होती है। होली के एक पखवाडे पहले गींदड शुरू हो जाता है। जगह- जगह भांग घुटती है। हालांकि अब ये नजारे कम ही देखने को मिलते हैं। जबकि, शेखावाटी में ढूंढ का चलन अभी है। परिवार में बच्चे के जन्म होने पर उसका ननिहाल पक्ष और बुआ कपडे और खिलौने होली पर बच्चे को देते हैं। 

तणी काटना 

बीकानेर क्षेत्र में भी होली मनाने का खास अंदाज है। यहां रम्मतें, अनूठे फागणियां, फुटबाल मैच, तणी काटने और पानी डोलची का खेल होली के दिन के खास आयोजन हैं। रम्मतों में खुले मंच पर विभिन्न कथानकों और किरदारों का अभिनय होता है। रम्मतों में शामिल होता है हास्य, अभिनय, होली ठिठोली, मौजमस्ती और साथ ही एक संदेश। 

कोडे वाली होली 

श्रीगंगानगर में भी होली मनाने का खास अंदाज है। यहां देवर भाभी के बीच कोडे वाली होली काफी चर्चित रही है। होली पर देवर- भाभी को रंगने का प्रयास करते हैं और भाभी-देवर की पीठ पर कोडे मारती है। इस मौके पर देवर- भाभी से नेग भी मांगते हैं।

रविवार, 2 मार्च 2014

राजस्थानः सज-धज के निकलती हैं ऊंट हसीनाएं


राजस्थानः सज-धज के निकलती हैं ऊंट हसीनाएं

रईस खां, जो जैसलमेर से 40 किलोमीटर दूर एक गाँव की एक ढाणी में रहते हैं, वो गोरी को अल्हड़ युवती की तरह सजाएँगे.पहले होगा विशेष केश विन्यास, फिर सोलह श्रृंगार. बोरला, नथ, घुंघरू, लूम्बी बाँधने के बाद चमचम करते शीशे की कारीगरी के वस्त्र धारण करवाए जाएंगे और इसका खर्चा बैठेगा मात्र 15-20 हज़ार रुपए.

आप सोचेंगे कि साज-श्रृंगार की कथा में नया क्या है, यह तो घर-घर की कहानी है? है जनाब, ये गोरी किसी गाँव की सामान्य युवती नहीं है, बल्कि एक ऊँटनी है!

गोरी थार रेगिस्तान में अकेली श्रृंगार-प्रेमी ऊंटनी नहीं है. राजस्थान के मरू प्रदेश के दर्ज़नों ऊँट मेलों के अवसर पर ब्यूटीशियन के पास करीने से संवरने जाते हैं.

इसे शहरीकरण का असर कहें या व्यावसायिक मजबूरी, ऊँट-साज ख़ुद को ब्यूटीशियन और अपने घर, झोंपड़े, टेंट को पार्लर कहलाना ज़्यादा पसंद करते हैं.
क्यूँ होती है सज्जा?


आज से कुछ वर्ष पहले ऊँटों का श्रृंगार करने वाले लोग जैसलमेर और बाड़मेर के गाँव-गाँव में हुआ करते थे. ये सामान्यतः ऊँट-पालक प्रजातियों जैसे रेबारी और देवासी परिवारों के सदस्य थे.

पर ऊंटों की घटती संख्या के साथ ऐसे लोग भी कम होते गए. इसका असर ये हुआ की ऊंटों की श्रृंगार कला, इसे खांटी मारवाड़ी में ‘लव’ करना कहा जाता है, अब सिर्फ कुछ विशेषज्ञों के पास सिमट कर रह गई है.

बीकानेर विश्वविद्यालय के पर्वायवरण विभाग में एसोसिएट प्रोफ़ेसर अनिल छंगाणी कहते हैं, “ऊंटों का लव करना पहले एक सामान्य ग्रामीण कला थी. प्रतिष्ठित और धनाढ्य परिवारों के लोग खाली समय में अपने ऊँट की सज्जा रेबारी और देवासी लोगों से करवाते थे, बदले में कुछ अन्न, धान दे देते थे.”

वे कहते हैं, “चूँकि अब लोग कम रह गए तो यह कला अब व्यवसाय के रूप में परिवर्तित हो गई है. बचे-खुचे ब्यूटीशियन अब पैसा बना लेते हैं, अपनी मांग ज़्यादा और आपूर्ति कम होने के कारण.”
आजीविका


आज से कुछ वर्ष पहले तक ऊंटों का श्रृंगार दो कारणों से किया जाता था.

पहला उन्हें अलग पहचान देने के लिए, दूसरा मालिक का सामाजिक रसूख जताने के लिए. जितना रईस मालिक, उतना सजा-धजा उसका ऊँट. पर अब यह काम मेलों में आने वाले सैलानियों के लिए होता है.

जैसलमेर और बाड़मेर में ऊंटों के लिए सालाना तीन जलसे होते हैं. इनमें सबसे मशहूर जैसलमेर का मरू उत्सव माघ पूर्णिमा से तीन दिन पहले शुरू हो कर ख़त्म होता है.

इसमें मेले में करीब 50,000 पर्यटक और 300-400 ऊंट आते हैं. इसके अलावा बाड़मेर का उत्सव और एक लूनी नदी के पेटे में लगने वाला मेला भी थार के रेगिस्तान में ऊंट और पर्यटक आकर्षित करते हैं.

रईस खां और उनके ब्यूटीशियन भाइयों का पार्लर इन्हीं दिनों चलता है और कारोबार भी.

वह कहते हैं, “हम लोगों को बीकानेर और पुष्कर के मेलों में भी बुलाया जाता है,”

कुल मिला कर एक साल में चार-पांच जगह अपनी कला के प्रदर्शन से ये परिवार अपना पेट पाल लेते है. रईस के अनुसार “कभी-कभी मेले-ठेले में प्रतियोगिता जीत कर कुछ पैसा मिला जाता है.”
भविष्य असुरक्षित


प्रोफेसर छंगाणी के अनुसार राजस्थान में ऊंटों की संख्या हर साल 10 प्रतिशत की दर से घट रही है. इसके कई कारण हैं, जैसे कि सड़कों का फैलाव, गाड़ियों का चलन और चरागाहों का अभ्यारण्यों में शामिल हो जाना.

जैसलमेर के बाशिंदे और मीडियाकर्मी अनिल रामदेव कहते हैं पहले हर घर के आगे ऊंटों की संख्या गृहस्वामी की संपन्नता का प्रतीक होती थी. पर अब समय बदल गया है. उनके खुद के परिवार में भी पहले ऊँट हुआ करते थे, पर अब उनकी जगह वाहन खड़े होते हैं.

रामदेव कहते हैं, “जजमान कम होने से कारीगर भी विलुप्त होते जा रहे है. अगर ये मेले नहीं होते तो 'लव' करना ख़त्म हो गया होता.”

कुछ लोगों ने 'लव' करने के लिए आधुनिक उपकरणों का उपयोग करने का प्रयास किया था, पर हाथ के हुनर जैसा मज़ा नहीं आया. घूम-फिर कर लोग रईस जैसे लोगों के पास ही वापस आ गए.



विलुप्त होती इस कला को बचाने में मेलों से मदद मिली है. ऊंट प्रेमी और विशेषज्ञ कहते हैं ऐसे आयोजन और होंगे तो कारीगर बचे रहेंगे और गाँव की गोरियां भी सजती रहेंगी.

शनिवार, 1 फ़रवरी 2014

छठे जिफ 2014 का उदघाटन राजस्थान, राजस्थानी, कला और संस्कृति से जुडे लोगों ने किया


छठे जिफ 2014 का उदघाटन राजस्थान, राजस्थानी, कला और संस्कृति से जुडे लोगों ने किया



जयपुर 1 फ़रवरी:

छ्ठे जयपुर अन्तर्राष्ट्रीय फिल्म समारोह-जिफ का उद्घाटन राजमन्दिर सिनेमा हाल में हुआ. इस साल जिफ का उद्घाटन सत्र राजस्थान, राजस्थानी, कला और संस्कृति को समर्पित किया गया है.

जिफ इस साल किसानों को भी समर्पित है. जिफ में इस साल खर्च हुये रुपये किसानों से जुटाये गये हैं. एक बार फीर से किसानों के इस सपोर्ट ने जय जवान जय किसान क नारा याद दिला दिया है. याद दिलाय है कि किसान स्बसे और सब्से आगे हैं.

इस समय राजस्थानी फिल्म मेकर मोहन सिंह राठौर, विख्यात कव्वाली गायक सईद फरीद अमीन साबरी, लेट विजय दान देथा के सूपुत्र कैलास कबीर, राजश्री प्रोडक्शन से राजश्री सरावगी, वरिष्ठ फिल्म वितरक श्याम सुन्दर जलानी, पुर्व आई. पी. एस. अधिकारी और सुविख्यात लेखक हरीराम मीना, सुविख्यात गीतकार् और संस्कृत विद्वान हरीराम आचार्य, विख्यात साहित्यकार और लेखक इकराम राजस्थानी, फिल्म मेकर राकेश गोगना, एन आर आई फिल्म प्रोड्यूसर ए वी शंकरदास और साथ में जिफ सलाहकार और आयोजन समिति के सदस्य आदि भी मौजुद थे



उद्घाटन सत्र में राजश्री प्रोडक्शनस को हिन्दी सिनेमा और उसमें राजस्थान की कला और संस्कृति को नई पहचान देने के लिये लाईफ टाईम अचिवमेंट अवार्ड से नवाजा गया.

ट्रीब्युट लेट श्री विजय दान देथा को दिया गया.



समारोह के उद्घाटन सत्र में ओपनिंग फिल्म पाकिस्तान से ऑस्कर में ऑफिसियल एंट्री जिन्दा भाग की स्क्रिनिंग की गई. जयपुर से बडी ताडदाअत मे इस फिल्म को देखने लोग पहुंचे.



हनु रोज ने कह की जिफ पिछ्ले 5 साल से जयपुर में सफलतपुर्वक हो रहा है. हम विश्वाश दिलाते हैं की जिफ हर साल हर तरह के हालातों को पार करते हुये आयोजित होता रहेगा. फिल्म मेकर्स की लगातर भागिदारी ने हमें और उत्साहीत किय है.



अगले चार् दिनों में गोलछा सिनेम और चेमबर भवन में 90 से ज्यादा देशों से चयनित कुल 155 फिल्मों का प्रदर्शन समारोह में सुबह 10 बजे से रात 9 बजे तक लगातार जारी रहेगा. इनमे 40 फिचर फिल्में, 83 शॉर्ट फिक्शन, 18 डाक्युमेंट्री, 15 एनिमेशन शॉर्ट फिल्में शामिल है.

राजस्थान से कुल 14 फिल्मों की स्किर्निग की जायेगी इनमें से 7 फिल्में गैर-प्रतियोगिता की श्रेणी में है.



90 देशों से चयनित कुल 156 फिल्मों में से कुल 121 फिल्में है प्रतियोगिता के श्रेणी में हैं.



इस साल जिफ 2014 में 13 देशों से चयनित 13 उम्दा फिल्मों का प्रदर्शन होने जा रहा है. ये सभी 13 फिल्में ऑस्कर 2014 में बतौर ऑफिसियल एंट्री अलग अलग देशों से भेजी गई है. आप देख सकेंगे कैसे अलग-अलग देशों का सिनेमा ऑस्कर तक पहुंचता है.

शुक्रवार, 31 जनवरी 2014

जानिए राजस्थान कि लोक कला संस्कृति संगीत

जानिए राजस्थान कि लोक कला संस्कृति संगीत 
राजस्थान : लोक कलाएँ, लोक नाट्य, लोक नृत्य, लोक गीत, लोक वाद्य एवं लोक चित्रकला

लोक कलाएँ

राजस्थान लोक कला के विविध आयामों का जनक रहा है। लोक कला के अन्तर्गत लोकगीत, लोकनाट्य, लोकनृत्य, लोकवाद्य और लोक चित्रकला आती है, इसका विकास मौखिक स्मरण और रूढ़ियों के आधार पर दीर्घ काल से चला आ रहा है। ये लोक कलाएँ हमारी संस्कृति के प्राण है। मनोंरजन का साधन है। लोक जीवन का सच्चा स्वरूप है।

लोक नाट्य मेवाड़, अलवर, भरतपुर, करौली और जयपुर में लोक कलाकारों द्वारा लोक भाषा में रामलीला तथा रासलीला बड़ी लोकप्रिय है। बीकानेर ओर जैसलमेर में लोक नाट्यों में ‘रम्मत’ प्रसिद्ध है। इसमें राजस्थान के सुविख्यात लोकनायकों एवं महापुरूषों की ऐतिहासिक एवं धार्मिक काव्य रचना का मंचन किया जाता है। इन रम्मतों के रचियता मनीराम व्यास, फागु महाराज, सुआ महाराज, तेज कवि आदि है। मारवाड़ में धर्म और वीर रस प्रधान कथानकों का मंचन ‘ख्याल’(खेलनाटक) परम्परागत चला आ रहा है, इनमें अमरसिंह का ख्याल, रूठिराणी रो ख्याल, राजा हरिशचन्द्र का ख्याल प्रसिद्ध एवं लोकप्रिय है। राजस्थान में ‘भवाईनाट्य’ अनूठा है जिसमें पात्र व्यंग वक्ता होते है। संवाद, गायन, हास्य और नृत्य इसकी प्रमुख विषेषताएँ है। मेवाड़ में प्रचलित ‘गवरी’ एक नृत्य नाटिका है जो रक्षाबन्धन से सवा माह तक खेली जाती है। गवरी वादन संवाद, प्रस्तुतिकरण आरै लोक-संस्कृति के प्रतीकों में मेवाड़ की ‘गवरी’ निराली है। गवरी का उद्भव षिव-भस्मासुर की कथा से माना जाता है। इसका आयोजन रक्षाबन्धन के दूसरे दिन से शुरू होता है। गवरी सवा महिने तक खेली जाती है। इसमें भील संस्कृति की प्रमुखता रहती है। यह पर्व आदिवासी जाति वर पौराणिक तथा सामाजिक प्रभाव की अभिव्यक्ति है। गवरी में पुरूष पात्र होते है। इसके खेलों में गणपति कान-गुजरी, जोगी, लाखा, बणजारा इत्यादि के खेल होते है।

लोक नृत्य
राजस्थान में लाके नृत्य की परम्परा सदा से उन्नत रही है। यहाँ विभिन्न क्षेत्रों में लोकनृत्यों का विकास हुआ जिससे जनजीवन में आनन्द, जीवट और शौर्य के भावों की अभिवृद्धि हुई है।

(अ) गैर नृत्य - आदिवासी क्षेत्रों में होली के अवसर पर ढोल, बांकिया तथा थाली की संगत में पुरूष अंगरखी, धोती, पगड़ी पहनें हाथ में छड़िया लेकर गोल घेरे में नृत्य में भीली संस्कृति के दर्षन होते हैं।

(ब) गीदड़ नृत्य - शेखावाटी क्षेत्र में लोग होली का डण्डा रोपने से सप्ताह भर तक नंगाडे की ताल पर पुरूष दो छोटे डंडे लके र गीतों के साथ सुन्दर परिधान पहन कर नृत्य करतें है जिसे ‘गीदड़नृत्य’ कहा जाता है।

(स) ढोल नृत्य - मरूस्थलीय प्रदेष जालारे में शादी के समय माली, ढ़ोली, सरगड़ा और भील जाति के लोग ‘थाकना’ शैली में ढोलनृत्य करते हैं।

(द) बम नृत्य - अलवर और भरतपुर में फागुन की मस्ती मंे बड़े नगाड़े को दो बड़े डण्डों से बजाया जाता है, जिसे ‘बम’ कहते है। इसी कारण इसे ‘बमनृत्य’ कहते हैं।

(य) घूमर नृत्य - यह राजस्थान का सर्वाधिक प्रसिद्ध लोकनृत्य है, इसे मांगलिक पर्वों पर महिलाओं द्वारा हाथों के लचकदार संचालन से ढ़ोलनगाड़ा, शहनाई आदि संगत में किया जाता है।

(र) गरबा नृत्य - महिला नृत्य में गरबा भक्तिपूर्ण नृत्य कला का अच्छा उदाहरण है। यह नृत्य शक्ति की आराधना का दिव्य रूप है जिसे मुख्य रूप से गुजरात मंे देखा जाता है। राजस्थान में डूंगरपुर और बाँसवाड़ा में इसका व्यापक पच्र लन हैं।इस तरह गजु रात आरै राजस्थान की संस्कृति के समन्वय का सुन्दर रूप हमें ‘गरबा’ नृत्य में देखने को मिलता है।

अन्य लोक नृत्य
जसनाथी सिद्धों का अंगारा नृत्य, भीलों का ‘राईनृत्य’ गरासिया जाति का ‘वालरनृत्य’ कालबेलियाजाति का ‘कालबेलियानृत्य’ प्रमुख है। पेशेवर लोकनृत्यों में ‘भर्वाइ नृत्य’ 'तेरह ताली नृत्य ' चमत्कारी कलाओं के लिए विख्यात है।

लोक गीत

राजस्थानी लाके गीत मौखिक परम्परा पर आधारित मानस पटल की उपज हैं जो शेडस संस्कारों, रीतिरिवाजों, संयोगवियोग के अवसरों पर लोक भाषा में सुन्दर अभिव्यक्ति करते है। उदाहरणार्थ -‘खेलण दो गणगौर’, म्हारी घूमर छे नखराली एमाय, चिरमी आदि है।
लोक वाद्य
लोककला में राजस्थान के लाके वाद्यों का बड़ा महत्व है, इनके बिना नृत्य, संगीत भी अधूरा लगता है। यहाँ के प्रमुख लोक वाद्यों में ‘रावण हत्था’, तंदूरा, नंगाड़े, तीनतारा, जोगिया सारंगी, पूंगी और भपंग उल्लेखनीय हैं।

लोक चित्रकला
1. पथवारी - गांवो में पथरक्षक रूप में पूजा जाने वाला स्थल जिस पर विभिन्न प्रकार के चित्र बने होते हैं।
2. पाना - राजस्थान में कागज पर जो चित्र उकेरे जाते हैं, उन्हें पाना कहा जाता है।
3. मांडणा - राजस्थान में लोक चित्रकला की यह एक अनुठी परम्परा है। त्योहारों एवं मांगलिक अवसरों पर पूजास्थल चैक पर ज्यामितीयवतृ , वर्ग या आडी़ तिरछी रेखाआंे के रूप में ‘मांडणा’ बनाये जाते हैं।
4. फड़ - कपड़ों पर किये जाने वाले चित्राकं न को ‘फड़’ कहा जाता है।
5. सांझी - यह गोबर के घर के आंगन, पूजास्थल अथवा चबुतरें पर बनाया जाता है।
लाके गीत, लाके नाटय् , लोकवाद्य, लाके चित्रकला राजस्थानी संस्कृति एवं सम्यता के प्रमुख अंग है। आदिकाल से लेकर आज तक इन कलाआंे का विविध रूपों में विकास हुआ है। इन विधाआंे के विकास में भक्ति, प्रेम, उल्लास और मनोरंजन का प्रमुख स्थान रहा है। इनके पल्लवन में लोक आस्था की प्रमुख भूमिका रही है। बिना आस्था और विष्वास के इन लोक कलाआंे के अस्तित्व की कल्पना भी नहीं की जा सकती। आज भी लोककला के मूल तत्त्व जन जीवन में विद्यमान हैं। त्योहार, नृत्य, संगीत, लोकवाद्य, लोक कलाआंे, विभिन्न बोलियों एवं परिणाम के कारण ही राजस्थान को ‘रंगीला राजस्थान’ की संज्ञा दी जाती है। राजस्थान की सांझी संस्कृति के दर्षन यहाँ के जन-जीवन के साथ साहित्य में भी देखे जा सकते हैं। धर्म समभाव एवं सुलह-कुल की नीति यहाँ के धार्मिक जीवन का इतिहास के काल से ही मूल मंत्र रहा है।

गुरुवार, 30 जनवरी 2014

विराटनगर (राजस्थान) पावनधाम श्री पञ्चखंडपीठ



विराट नगर नाम से प्राय: लोगो को भ्रम हो जाता है. विराटनगर नमक एक क़स्बा नेपाल की सीमा में भी है. किन्तु नेपाल का विराट नगर, महाभारत कालीन विराटनगर नहीं है. पावनधाम श्री पञ्चखंडपीठ से सम्बन्ध विराटनगर पौराणिक, प्रगेतिहासिक, महाभारतकालीन तथा गुप्तकालीन ही नहीं मुगलकालीन महत्वपूर्ण घटनाओ को भी अपने में समेटे हुए, राजस्थान के जयपुर और अलवर जिले की सीमा पर स्थित है विराटनगर में पौराणिक शक्तिपीठ, गुहा चित्रों के अवशेष, बोध माथो के भग्नावशेष, अशोक का शिला लेख और मुगलकालीन भवन विधमान है. अनेक जलाशय और कुंड इस क्षेत्र की शोभा बढा रहे है. प्राकर्तिक शोभा से प्रान्त परिपूर्ण है. विराटनगर के निकट सरिस्का राष्ट्रीय व्याघ्र अभ्यारण, भर्तहरी का तपोवन, पाण्डुपोल नाल्देश्वर और सिलिसेद जैसे रमणीय तथा दर्शनीय स्थल लाखों श्रधालुओ और पर्यटकों को आकर्षित करते है. विराट नगर (बैराट) राजस्थान प्रान्त के जयपुर जिले का एक शहर है। इसका पुराना नाम बैराट है. विराट नगर राजस्थान में उत्तर मे स्थित है । यह नगरी प्राचीन मस्तय राज की राजधानी रही है । चारो और सुरम्य पर्वतो से घिरे प्राचीन मत्स्य देश की राजधानी रहे विराटनगर में पुरातात्विक अवशेषों की सम्पदा बिखरी पड़ी है या भूगर्भ में समायी हुई है.


विराट नगर अरावली की पहाडियो के मध्य में बसा है । राजस्थान के जयपुर जिले में शाहपुरा से 25 किलोमीटर दूर विराट नगर कस्बा अपनी पौराणिक ऐतिहासिक विरासत को आज भी समेटे हुए है।

इतिहास

यह वही विराट नगर जहाँ महाभारत काल में पांड्वो ने अपना अज्ञातवास व्यतीत किया था. यहाँ पर पंच्खंड पर्वत पर भीम तालाब और इसके ही निकट जैन मंदिर और अकबर की छतरी है जहाँ अकबर शिकार के समय विश्राम करता था. यह स्थल राजा विराट के मत्स्य प्रदेश की राजधानी के रूप में विख्यात था। यही पर पांडवों ने अपने अज्ञातवास का समय व्यतीत किया था। महाभारत कालीन स्मृतियों के भौतिक अवशेष तो अब यहां नहीं रहे किंतु यहां ऐसे अनेक चिन्ह हैं जिनसे पता चलता है कि यहां पर कभी बौद्ध एवं जैन सम्प्रदाय के अनुयायियों का विशेष प्रभाव था। विराट नगर, जिसे पूर्व में वैराठ के नाम से भी जाना जाता था, के दक्षिण की ओर बीजक पहाड़ी है।

इस के ऊपर दो समतल मैदान हैं यहां पर व्यवस्थित तरीके से रास्ता बनाया गया है। इस मैदान के मध्य में एक गोलाकार परिक्रमा युक्त ईंटों का मन्दिर था जो आयताकार चार दीवारी से घिरा हुआ था। इस मन्दिर के गोलाकार भीतरी द्वार पर 27 लकड़ी के खम्भे लगे हुए थे। ये अवशेष एक बौद्ध स्तूप के हैं जिसे सांची व सारनाथ के बौद्ध स्तूपों की तरह गुम्बदाकार बनाया गया था। यह बौद्ध मंदिर गोलाकार ईंटों की दीवार से बना हुआ था, जिसके चारों तरफ 7 फीट चौड़ी गैलरी है। इस गोलाकार मंदिर का प्रवेश द्वार पूर्व की तरफ खुलता हुआ 6 फीट चौड़ा है। बाहर की दीवार 1 फीट चौड़ी ईंटों की बनी हुई है। इसी प्लेटफार्म पर बौद्ध भिक्षु एवं भिक्षुणियों आदि के चिंतन-मनन करने हेतु श्रावक गृह बने हुए थे।

यहां बनी 12 कोठरियों के अलावा अन्य कई कोठरियों के अवशेष भी चारों तरफ देखे जा सकते हैं। ये कोठरियां साधारणतया वर्गाकार रूप में बनाई जाती थीं। इन पर किए गए निर्माण कार्यों पर सुंदर आकर्षक प्लास्टर किया जाता था। इस प्लेटफार्म के बीच में पश्चिम की तरफ शिला खण्डों को काटकर गुहा-गृह बनाया गया था जो दो तरफ से खुलता था। इसमें भी भिक्षुओं एवं भिक्षुणियों के निवास का प्रबंध किया गया था। इस गुहा गृह के नीचे एक चट्टान काटकर कुन्ड अर्थात् टंकी भी बनाई गई है जिसमें पूजा व पीने के लिए पानी इकट्ठा किया जाता था। विराट नगर की बुद्ध-धाम बीजक पहाड़ी पर स्थित इस मंदिर के प्रवेश द्वार पर एक चट्टान है जिस पर भब्रू बैराठ शिलालेख उत्कीर्ण है। इसे बौद्ध भिक्षु एवं भिक्षुणियों के अलावा आम लोग भी पढ़ सकते थे। इस शिलालेख को भब्रू शिलालेख के नाम से भी जाना जाता था। यह शिलालेख पाली व ब्राह्मी लिपि में लिखा हुआ था।

इसे सम्राट अशोक ने स्वयं उत्कीर्ण करवाया था ताकि जनसाधारण उसे पढ़कर तदनुसार आचरण कर सके। इस शिला लेख को कालान्तर में 1840 में ब्रिटिश सेनाधिकारी कैप्टन बर्ट द्वारा कटवा कर कलकत्ता के संग्रहालय में रखवा दिया गया। आज भी विराटनगर का यह शिलालेख वहां सुरक्षित रखा हुआ है। इसी प्रकार एक और शिला लेख भीमसेन डूंगरी के पास आज भी स्थित है। यह उस समय मुख्य राजमार्ग था।

बीजक की पहाड़ी पर बने गोलाकार मन्दिर के प्लेटफार्म के समतल मैदान से कुछ मीटर ऊंचाई पर पश्चिम की तरफ एक चबूतरा है जिसके सामने भिक्षु बैठकर मनन व चिन्तन करते थे। यहीं पर एक स्वर्ण मंजूषा थी जिसमें भगवान बुद्ध के दो दांत एवं उनकी अस्थियां रखी हुई थीं। अशोक महान बैराठ में स्वयं आए थे। यहां आने के पहले वे 255 स्थानों पर बौद्ध धर्म का प्रचार-प्रसार कर चुके थे। बैराठ वर्षों तक बुद्धम् शरणम् गच्छामी, धम्मम् शरणम् गच्छामी से गुंजायमान रहा है।

यह स्थल बौद्ध धर्म के प्रचार प्रसार का केंद्र रहा है। कालान्तर में जाकर जैन समाज के विमल सूरी नामक संत ने यहीं पर रहकर वर्षों तपस्या की। ऐसी मान्यता है कि उन्हीं के प्रभाव में आकर अकबर ने सम्पूर्ण मुगल राज्य में वर्ष में एक सौ छ: दिन के लिए जीव हत्या बंद करवाई। विराट नगर के उत्तर में नसिया में जैन समाज का संगमरमर का भव्य मंदिर है। इस मन्दिर की भव्यता देखते ही बनती है। पहाड़ की तलहटी में स्थित यह मन्दिर अपनी धवल आभा के कारण प्रत्येक आगन्तुक को अपनी ओर आकर्षित करता है।


नसिया के पास ही मुगल गेट भी बना हुआ है। इस इमारत को अकबर ने बनवाया था। वह यहां पर शिकार के लिए आया करता था। यहीं पर अकबर ने राज्य के लिए सोने चांदी एवं तांबे की टकसाल स्थापित की थी जो औरंगजेब के समय तक चलती रही. महान हिन्दू संत, गोभकत महात्मा रामचन्द्र वीर द्वारा स्थापित पावन धाम पंचंखंड पर्वत पर वज्रांग मंदिर भी यही स्थापित है. इस मंदिर के विषय में सबसे महत्वपूर्ण बात ये है की यहाँ हनुमान जी जाति वानर मानी गयी है, तन से उनको मानव सामान माना गया है. यह महात्मा रामचन्द्र वीर की जन्मभूमि भी है.

विराट नगर से 90 कि मी की दूरी पर जयपुर और 60 कि मी पर अलवर , और 40 कि मी पर शाहपुरा स्थित है।

शुक्रवार, 10 जनवरी 2014

धोरों में मौत के सौदागरों का गठजोड़

जोधपुर।सीमा पार से मादक पदार्थो की तस्करी के लिए पंजाब के तस्कर अब राजस्थान के सीमावर्ती इलाकों के तस्करों से गठजोड़ कर रहे हैं। मौत के सौदागरों के इस अंतरराज्यीय गठजोड़ की जानकारी मिलने के बाद बीएसएफ व अन्य सुरक्षा एजेन्सियों ने सीमा पर चौकसी बढ़ा दी है। विशेषकर श्रीगंगानगर के हिन्दूमल कोट, जैसलमेर के सम व बाड़मेर के गडरा रोड क्षेत्र से मादक पदार्थो, विस्फोटक सामग्री व हथियारों की अंतरराष्ट्रीय तस्करी का खेल खेला जा रहा है। इनके तार पाक की गुप्तचर एजेन्सी आईएसआई से जुड़े होने की आशंका भी जताई जा रही है। सर्दी में कोहरे की आड़ में तस्करी की ज्यादा आशंका के मद्देनजर बीएसएफ अब 14 जनवरी से शुरू होने वाले "ऑपरेशन सर्द हवा" में इस पर पूरी चौकसी रखेगी।


हेरोइन की तस्करी ज्यादा: मादक पदार्थो में सबसे ज्यादा हेरोइन की तस्करी हो रही है। अफगान से पहले जहां पाकिस्तान के लाहौर होकर हेरोइन भारत भेजी जाती थी। अब इसे सिंध प्रांत के बावलपुर व बावलनगर से बाड़मेर व जैसलमेर, श्रीगंगानगर के रास्ते भेजा जा रहा है। यहां से दिल्ली समेत अन्य शहरों में नशीलें पदार्थो का जखीरा पहुंचा रहे हैं। दिल्ली से इसके अंतरराष्ट्रीय स्तर पर तस्करी होने की जानकारी सुरक्षा एजेन्सियों को मिली है।


पुलिस ने भी किया खुलासा : उल्लेखनीय है कि इसी सप्ताह पंजाब में भारत-पाक सीमा पर दो पाक तस्कर मारे गए। इनसे 20 करोड़ की हेरोइन बरामद की गई। इधर, पंजाब की पटियाला पुलिस ने छह हजार करोड़ के अंतरराष्ट्रीय नशीली ड्रग तस्करी रैकेट का तार श्रीगंगानगर जिले से जुड़े होने का खुलासा कर मंगलवार को ही रायसिंह नगर क्षेत्र से एक सरगना को गिरफ्तार किया है।


सम के धोरों में बिछा रहे जाल



पंजाब से सटी सीमा पर सख्ती के चलते तस्करों ने पहले श्रीगंगानगर के हिन्दूमल कोट में जगह तलाशी और इसके अलावा बाड़मेर के गडरा रोड व जैसलमेर के सम इलाके में तस्करी की गतिविधियों को अंजाम दिया जा रहा है। सूत्रों के अनुसार सीमा पर तारबंदी होने से तस्कर स्थानीय लोगों का सहयोग ले रहे हैं और तार के नीचे पाइप डालकर मादक पदार्थो के पैकेट फेंके जा रहे हैं। अब श्रीगंगानगर में सख्ती के बाद तस्करों की नजर रेतीले इलाके जैसलमेर के सम पर टिकी है। हालांकि सीमा सुरक्षा बल के जवान उनकी इन अवांछनीय गतिविधियों पर पूरी नजर रखे हुए हैं।


हम अलर्ट हैं


अवांछनीय गतिविधियों की जानकारी मिली है। सीमा पर किसी भी तरह की ऎसी गतिविधि से निपटने के लिए बीएसएफ के जवान अलर्ट हैं। अमित लोढ़ाउप महानिरीक्षक, सीसुब, जैसलमेर

गुरुवार, 2 जनवरी 2014

वैश्या की बेटी पर आया बादशाह का दिल, पाने के लिए खेला खूनी खेल

कोटा. राजस्थान में अनेकों प्रेम कथाएं प्रचलित हैं, लेकिन उनमे से कुछ ही ऐसी है जो इतिहास के पन्नों पर अपना नाम लिखवाने में सफल हो पाई। ऐसी ही एक कहानी है मारवाड़ के एक वैश्या की बेटी की जिसने राजा के आदेश की अवहेलना की। उसे अपने प्रेम में इतना विश्वास था कि उसने सजा की परवाह किए बिना राजा के प्रेम का प्रस्ताव ठुकरा दिया था।




ये प्रेम कहानी पूरे राजस्थान में बहुत मशहूर है। गुजरात के बादशाह महमूद शाह का दिल मारवाड़ से आई जवाहर पातुर की बेटी कंवल पर आ गया। उसने कवंल को समझाने की कोशिश की और कहा, " मेरी बात मान ले, मेरी रखैल बन जा। मैं तुझे दो लाख रूपये सालाना की जागीर दे दूंगा और तेरे सामने पड़े ये हीरे-जवाहरात भी तेरे। जिद मत कर मेरा कहना मान और मेरी रखैल बनना स्वीकार करले। इतना कहकर राजा ने हीरों का हार कंवल के गले में पहनाने की कोशिश की।



राजा के इस बर्ताव से खुश होने के बजाए कवंल ने नाराजगी दर्ज की और राजा की बात ठुकराते हुए कंवल ने हीरों का हार तोड़कर फैंक दिया। उसकी मां एक वैश्या थी जिसका नाम जवाहर पातुर था। उसने बेटी की हरकत पर बादशाह से मांफी मांगी। मां ने कंवल को बहुत समझाया कि बादशाह की बात मान ले और उसकी रखैल बन जा तू पुरे गुजरात पर राज करेगी। पर कंवल ने मां से साफ मना कर दिया। उसने मां से कहा कि वह "केहर" को प्यार करती है। दुनिया का कोई भी राजा उसके किस काम का नहीं।

कंवर केहर सिंह चौहान महमूद शाह के अधीन एक छोटी सी जागीर "बारिया" का जागीरदार था और कंवल उसे प्यार करती थी। उसकी मां ने खूब समझाया कि तू एक वेश्या की बेटी है, तु किसी एक की घरवाली नहीं बन सकती। लेकिन कंवल ने साफ कह दिया कि "केहर जैसे शेर के गले में बांह डालने वाली उस गीदड़ महमूद के गले कैसे लग सकती है |" यह बात जब बादशाह को पता चला
तो वह आग बबूला हो गया। उसने कंवल को कैद करने के आदेश दे दिए और कहा कि अब तू देखना तेरे शेर को तेरे आगे ही पिंजरे में मैं कैसे कैद करके रखूंगा।

बादशाह ने एलान किया कि केहर को कैद करने वाले को उसकी जागीर जब्त कर दे दी जाएगी पर केहर जैसे राजपूत योद्धा से कौन टक्कर ले। दरबार में उपस्थित उसके सामन्तो में से एक जलाल आगे आया उसके पास छोटी सी जागीर थी सो लालच में उसने यह बीड़ा उठा ही लिया। योजना अनुसार साबरमती नदी के तट पर मेले के दिन महमूद शाह ने जाल बिछाया। जलाल एक तैराक योद्धा आरबखां को जल क्रीड़ा के समय केहर को मारने हेतु ले आया।




केहर भी तैराकी व जल युद्ध में कम न था सो उसने आरबखां को इस युद्ध में मार डाला। केहर द्वारा आरबखां को मारने के बाद राजा ने केहर को शाबासी के साथ मोतियों की माला पहना शिवगढ़ की जागीर भी दी। लोगों को ये बात गले नहीं उतरी। वो समझ गए कि बादशाह कोई षड्यंत्र रच रहा है उन्होंने केहर को आगाह भी कर दिया, लेकिन केहर को बादशाह ने यह कह कर रोक लिया कि दस दिन बाद होली खेलेंगे। इसी बहाने उसने केहर को महल में बुलाकर षड्यंत्र पूर्वक उसे कैद कर कंवल के महल के पास रखवा दिया ताकि वह अपने प्रेमी की दयनीय हालत देख दुखी होती रहे।कंवल रोज पिंजरे में कैद केहर को खाना खिलाने आती। एक दिन कंवल ने एक कटारी व एक छोटी आरी केहर को लाकर दी व उसी समय केहर की दासी टुन्ना ने वहां सुरक्षा के लिए तैनात फालूदा खां को जहर मिली भांग पिला बेहोश कर दिया इस बीच मौका पाकर केहर पिंजरे के दरवाजे को काट आजाद हो गया और किसी तरह महल से बाहर निकल अपने साथियों सांगजी व खेतजी के साथ अहमदाबाद से बाहर निकल आया।

उसकी जागीर बारिया तो बादशाह ने जब्त कर जलाल को दे दी थी सो केहर मेवाड़ के एक सीमावर्ती गांव बठूण में आ गया और गांव के मुखिया गंगो भील से मिलकर आपबीती सुनाई। गंगो भील ने अपने अधीन साठ गांवों के भीलों का पूरा समर्थन केहर को देने का वायदा किया। अब केहर बठूण के भीलों की सहायता से गुजरात के शाही थानों को लुटने लगा, सारा इलाका केहर के नाम से कांपने लगा।

बादशाह ने कई योद्धा भेजे केहर को मारने के लिए पर हर मुटभेड में बादशाह के योद्धा ही मारे जाते, राजा रोज जलाल को खत लिखता कि केहर को ख़त्म करे पर एक दिन बादशाह को समाचार मिला कि केहर की तलवार के एक बार से जलाल के टुकड़े टुकड़े हो गए। कंवल केहर की जितनी किस्से सुनती, उतनी ही खुश होती और उसे खुश देख बादशाह को उतना ही गुस्सा आता पर वह क्या करे बेचारा बेबस था। केहर को पकड़ने या मारने की हिम्मत उसके किसी सामंत व योद्धा में नहीं थी।कंवल महमूद शाह के किले में तो रहती पर उसका मन हमेशा केहर के साथ होता वह महमूद शाह से बात तो करती पर उपरी मन से। छगना नाई की बहन कंवल की नौकरानी थी एक दिन कंवल ने एक पत्र लिख छगना नाई के हाथ केहर को भिजवाया। केहर ने कंवल का सन्देश पढ़ा- " मारवाड़ के व्यापारी मुंधड़ा की बारात अजमेर से अहमदाबाद आ रही है रास्ते में आप उसे लूटना मत और उसी बारात के साथ वेष बदलकर अहमदाबाद आ जाना। पहुंचने पर मैं दूसरा सन्देश आपको भेजूंगी।"

अजमेर अहमदाबाद मार्ग पर बारात में केहर व उसके चार साथी बारात के साथ हो लिए केहर जोगी के वेष में था उसके चारों राजपूत साथी हथियारों से लैस थे। केहर को चिट्ठी लिखने के बाद कंवल ने बादशाह के प्रति अपना रवैया बदल लिया वह उससे कभी मजाक करती कभी कभार तो केहर की बुराई भी कर देती पर महमूद शाह को अपना शरीर छूने ना देती। कंवल ने अपनी दासी को बारात देखने के बहाने भेज केहर को सारी योजना समझा दी।बारात पहुंचने से पहले ही कंवल ने राजा से कहा - "हजरत केहर का तो कोई अता-पता नहीं आखिर आपसे कहां बच पाया होगा, उसका इंतजार करते करते मैं भी थक गई हूं अब तो मेरी जगह आपके चरणों में ही है। लेकिन हुजुर मैं आपकी रखैल, आपकी बांदी बनकर नहीं रहूंगी अगर आप मुझे वाकई चाहते है तो आपको मेरे साथ विवाह करना होगा और विवाह के बारे में मेरी कुछ शर्तें है वह आपको माननी होगी।"
1- शादी मुंधड़ा जी की बारात के दिन ही हों।
2- विवाह हिन्दू रितिरिवाजानुसार हो। विनायक बैठे, मंगल गीत गाये जाए, सारी रात नौबत बाजे।
3- शादी के दिन मेरा डेरा बुलंद गुम्बज में हों।
4- आप बुलंद गुम्बज पधारें तो आतिशबाजी चले, तोपें छूटें, ढोल बजें।
5- मेरी शादी देखने वालों के लिए किसी तरह की रोक टोक ना हो और मेरी मां जवाहर पातुर पालकी में बैठकर बुलन्द गुम्बज के अन्दर आ सके।





उसकी खुबसूरती में पागल राजा ने उसकी सारी शर्तें मान ली। शादी के दिन सांझ ढले कंवल की दासी टुन्ना पालकी ले जवाहर पातुर को लेने उसके डेरे पर पहुंची वहां योजनानुसार केहर शस्त्रों से सुसज्जित हो पहले ही तैयार बैठा था टुन्ना ने पालकी के कहारों को किसी बहाने इधर उधर कर दिया और उसमे चुपके से केहर को बिठा पालकी के परदे लगा दिए। पालकी के बुलन्द गुम्बज पहुंचने पर सारे मर्दों को वहां से हटवाकर कंवल ने केहर को वहां छिपा दिया।



थोड़ी ही देर में राजा हाथी पर बैठ सजधज कर बुलंद गुम्बज पहुंचा। महमूद शाह के बुलंद गुम्बज में प्रवेश करते ही बाहर आतिशबाजी होने लगी और ढोल पर जोरदार थाप की गडगडाहट से बुलंद गुम्बज थरथराने लगी। तभी केहर बाहर निकल आया और उसने बादशाह को ललकारा -" आज देखतें है शेर कौन है और गीदड़ कौन ? तुने मेरे साथ बहुत छल कपट किया सो आज तुझे मारकर मैं अपना वचन पूरा करूंगा।"दोनों योद्धा भीड़ गए, दोनों में भयंकर युद्ध हुआ। दोनों में मल्ल-युद्ध होने लगा। उनके पैरों के धमाकों से बुलंद गुम्बज थरथराने लगा पर बाहर हो रही आतिशबाजी के चलते अन्दर क्या हो रहा है किसी को पता न चल सका। चूंकि केहर मल्ल युद्ध में भी प्रवीण था इसलिए महमूद शाह को उसने थोड़ी देर में अपने मजबूत घुटनों से कुचल दिया बादशाह के मुंह से खून का फव्वारा छुट पड़ा और कुछ ही देर में उसकी जीवन लीला समाप्त हो गयी।


दासी टुन्ना ने केहर व कंवल को पालकी में बैठा पर्दा लगाया और कहारों और सैनिकों को हुक्म दिया कि - जवाहरबाई की पालकी तैयार है उसे उनके डेरे पर पहुंचा दो और बादशाह आज रात यही बुलंद गुम्बज में कंवल के साथ विराजेंगे। कहार और सैनिक पालकी ले जवाहरबाई के डेरे पहुंचे वहां केहर का साथी सांगजी घोड़ों पर जीन कस कर तैयार था। केहर ने कंवल को व सांगजी ने टुन्ना को अपने साथ घोड़ों पर बैठाया और चल पड़े। जवाहरबाई को छोड़ने आये कहार और शाही सिपाही एक दुसरे का मुंह ताकते रह गए।

शनिवार, 28 दिसंबर 2013

घर रहेंगे रोशन,24 घंटे मिलेगी बिजली

जयपुर। राजस्थान की मुख्यमंत्री वसुन्धरा राजे ने कहा है कि उनकी प्रथम प्राथमिकता है कि घरेलू उपभोक्ताओं को 24 घंटे बिजली की आपूर्ति की जाए। इसके साथ ही उन्होंने कृषि उपभोक्ताओं को दिन में 6.30 घंटे ब्लॉक में और रात्रि को 7 घंटे ब्लॉक में बिजली की आपूर्ति करने के अधिकारियों को निर्देश दिए।
मुख्यमंत्री शनिवार शाम ऊर्जा विभाग के प्रस्तुतीकरण के दौरान बोल रही थी। उन्होंने प्रस्तुतीकरण में आगामी 60 दिनों की कार्य योजना के संदर्भ में विस्तृत चर्चा की। इसके साथ ही उन्होंने विभाग की 5 वर्षीय योजना के प्रस्तुतीकरण को भी देखा। राजे ने कहा कि बिजली की गुणवत्ता बनाए रखने में कोई कोर कसर नहीं छोडें जिससे उपभोक्ताओं को बिना व्यवधान के विद्युत की सप्लाई हो सके। उन्होंने यह भी कहा कि विद्युत सप्लाई की प्रति सप्ताह समीक्षा हो।

राजे ने कहा कि उत्पादन निगम की इकाइयों में जहां उत्पादन कम हो रहा है वहां सुधार करें, जिससे उत्पादन और बढ़ सके। प्रस्तुतीकरण में ऊर्जा विभाग ने ग्रामीण घारेलू उपभोक्ताओं को 24 घंटे बिजली उपलब्ध कराने 60 नए केवी जी.एस.एस. स्थापित करने, कृषि उपभोक्ताओं से गलत वीसीआर के प्रकरणों की ऑडिटिंग तथा ऎसे प्रकरणों में अधिक राशि को सम्बन्घित उपभोक्ता की राशि समायोजित करने के बिन्दु शामिल किए हैं।

मुख्यमंत्री सबके लिए विद्युत योजना के अन्तर्गत 100 से कम आबादी की ढाणी में 20 हजार कनेक्शन दिए जाएंगे, ग्रामीण और शहरी क्षेत्रों में उपभोक्ताओं को 60 हजार विद्युत कनेक्शन तथा 15 हजार नए कृषि कनेक्शन दिए जाने जैसे बिन्दु शामिल हैं। बैठक में ऊर्जा मंत्री गजेन्द्र सिंह खींवसर, मुख्य सचिव राजीवमहर्षि, अतिरिक्त मुख्य सचिव सी.एस. राजन, प्रमुख शासन सचिव वित्त सुभाष गर्ग, प्रमुख शासन सचिव ऊर्जा एस.के. अग्रवाल, जे.वी.वी.एन.एल. के सीएमडी कुंजी लाल मीणा, आयोजना सचिव अखिल अरोरा सहित विभाग के उच्चाधिकारी उपस्थित थे।

शुक्रवार, 11 अक्तूबर 2013

करणीमाता का मंदिर, देशनोक (चूहों वाला मंदिर), बीकानेर, राजस्थान




करणीमाता का मंदिर, देशनोक (चूहों वाला मंदिर), बीकानेर, राजस्थान


राजस्थान राज्य के एतिहासिक नगर बीकानेर से लगभग 30 किलोमीटर दूर जोधपुर रोड पर गाँव देशनोक की सीमा में स्थित है। यह भी एक तीर्थ धाम है, लेकिन इसे चूहे वाले मंदिर के नाम से भी जाना जानता हैं। करणी देवी साक्षात माँ जगदम्बा की अवतार थीं।

अब से लगभग साढ़े छह सौ वर्ष पूर्व जिस स्थान पर यह भव्य मंदिर है, वहाँ एक गुफा में रहकर माँ अपने इष्ट देव की पूजा अर्चना किया करती थीं। यह गुफा आज भी मंदिर परिसर में स्थित है। माँ के
ज्योर्तिलीन होने पर उनकी इच्छानुसार उनकी मूर्ति की इस गुफा में स्थापना की गई। संगमरमर से बने मंदिर की भव्यता देखते ही बनती है। वहाँ पर चूहों की धमाचौकड़ी देखती ही बनती है। चूहे पूरे मंदिर प्रांगण में मौजूद रहते हैं। वे श्रद्धालुओं के शरीर पर कूद-फांद करते हैं, लेकिन किसी को कोई नुक़सान नहीं पहुँचाते। चील, गिद्ध और दूसरे जानवरों से इन चूहों की रक्षा के लिए मंदिर में खुले स्थानों पर बारीक जाली लगी हुई है। इन चूहों की उपस्थिति की वजह से ही श्री करणी देवी का यह मंदिर चूहों वाले मंदिर के नाम से भी विख्यात है। ऐसी मान्यता है कि किसी श्रद्धालु को यदि यहाँ सफ़ेद चूहे के दर्शन होते हैं, तो इसे बहुत शुभ माना जाता है। सुबह पाँच बजे मंगला आरती और सायं सात बजे आरती के समय चूहों का जुलूस तो देखने लायक़ होता है। मंदिर के मुख्य द्वार पर संगमरमर पर नक़्क़ाशी को भी विशेष रूप से देखने के लिए लोग यहाँ आते हैं। चाँदी के किवाड़, सोने के छत्र और चूहों के प्रसाद के लिए यहाँ रखी चाँदी की बड़ी परात भी देखने लायक़ है।
करनी माता मंदिर 15 वीं सदी के रहस्यवादी करनी माता के नाम पर है. अपने भक्तों की आत्माओं के लिए चूहे के शरीर के अंदर निवास माना जाता है, और अगर एक चूहे को मार डाला है यह एक ठोस सोने से बना के साथ प्रतिस्थापित किया जाना चाहिए..

शनिवार, 10 अगस्त 2013

अशोक गहलौत अकेले ही चलना चाहते हैं राजस्थान में

मुख्यमंत्री अशोक गहलौत की राजनीति इस तरह से डिजाइन की गयी है जिससे राज्य में कांग्रेस की हार को सुनिश्चित किया जा सके.

कांग्रेस की हालत राजस्थान में भी अच्छी नहीं है. वहाँ अशोक गहलौत मुख्यमंत्री हैं. दिल्ली में कांग्रेस के जितने भी बड़े नेता हैं सब उनके खिलाफ हैं. सीपी जोशी, गिरिजा व्यास, सीसराम ओला और सचिन पाइलट अशोक गहलौत को हटवाना चाहते हैं लेकिन अशोक गहलौत को आलाकमान का आशीर्वाद मिला हुआ है इसलिए वे हटाये नहीं जा रहे हैं. केन्द्र में मौजूद कांग्रेसियों के गुस्से को कम करने के लिए गिरिजा व्यास और सीसराम ओला को केन्द्र में मंत्री बना दिया गया, सीपी जोशी को संगठन में बहुत महत्वपूर्ण जिम्मेदारी दे दी गयी लेकिन इसका कोई असर होता नहीं दिख रहा है. राजस्थान में अशोक गहलौत के खिलाफ दिल्ली में मौजूद नेता मीडिया के ज़रिये अभियान चला रहे हैं. उधर कांग्रेस को सत्ता से हटाने के लिए व्याकुल वसुंधरा राजे को कोई कसर नहीं छोड़ रही हैं. वे अशोक गहलौत की असफलता गिनाने के लिए निकल पडी हैं . जहां भी जा रही हैं जनता उनका स्वागत कर रही है .अब वसुंधरा राजे को उनकी पार्टी के अध्यक्ष राजनाथ सिंह का पूरा समर्थन मिल गया है, हालांकि इसके पहले भारी नाराजगी थी.

राजनाथ सिंह बड़े लक्ष्य को प्राप्त करने के लिए मामूली और निजी नाराजगियों को दरकिनार करने की नीति पर काम कर रहे हैं. वसुंधरा राजे जाति के गणित में भी वे जाटों और राजपूतों में अपनी नेता के रूप में पहचानी जा रही हैं. राजनाथ सिंह के कारण पूरे उत्तर भारत में राजपूतों का झुकाव बीजेपी की तरफ है उसका फायदा भी उनको मिल रहा है. जाटों की राजनीति का अजीब हिसाब है. कांग्रेस ने जाटों को साथ लेने के लिए उसी बिरादरी का अध्यक्ष बना दिया है लेकिन उनकी वजह से कांग्रेस की तरफ उनकी जाति का वोट नहीं जा रहा है. बल्कि उससे कांग्रेस को नुक्सान ही हो रहा है. परंपरागत रूप से बीजेपी के मतदाता रहने वाले जाटों को राज्य कांग्रेस के लगभग सभी महत्वपूर्ण पदों पर बैठा दिए जाने के बाद राज्य के राजपूत नेताओं में भारी नाराज़गी है. मुख्यमंत्री अशोक गहलौत की राजनीति इस तरह से डिजाइन की गयी है जिससे राज्य में कांग्रेस की हार को सुनिश्चित किया जा सके. दिल्ली में ज़्यादातर कांग्रेस नेता यह मानकर चल रहे हैं कि अशोक गहलौत अकेले ही चलना चाहते हैं क्योंकि उन्होंने अपनी पार्टी के ज़्यादातर केंद्रीय मंत्रियों को नाराज कर रखा है .सी पी जोशी,सचिन पाइलट,भंवर जीतेंद्र सिंह और लाल सिंह कटारिया उनको कोई समर्थन नहीं दे रहे हैं. महिपाल मदेरणा, ज्योति मिर्धा और शीशराम ओला भी उनसे नाराज़ हैं .लेकिन फिर भी आलाकमान की नज़र में अशोक गहलौत का कुछ नहीं बिगाड़ पा रहे हैं.

यह एक सवाल है. इस सवाल का जवाब तलाशने में कांग्रेस अध्यक्ष के रिश्तेदारों के व्यापारिक कारोबार पर ध्यान जाता है और अशोक गहलौत की कुर्सी की स्थिरता की पहेली समझ में आने लगती है. जहां तक रिश्तेदारों की बात है मुख्यमंत्री ने अपने रिश्तेदारों को भी सत्ता से मिलने वाले लाभ को पंहुचाने में संकोच नहीं किया है. जयपुर के स्टेच्यू सर्किल की एक ज़मीन का ज़िक्र बार बार उठ जाता है जहां बन रहे फ्लैटों की कीमत आठ करोड रूपये से ज्यादा बतायी जा रही है और खबर यह है कि गहलौत जी के बहुत करीबी लोग उसमें लाभार्थी हैं. एक नेता जी ने तो यहाँ तक कह दिया कि जिस कम्पनी की संस्थागत ज़मीन का लैंडयूज बदल कर इतनी मंहगी प्रापर्टी बना दिया गया है उसमें मुख्यमंत्री गहलौत का बेटा ही डाइरेक्टर है. पत्थर की खदानों का घोटाला भी राजस्थान के मुख्यमंत्री के नाम पर दर्ज है. उस घोटाले को तो टी वी चैनलों ने भी उजागर किया था. बताते हैं कि इस घोटाले में २१ खानें एलाट की गयी थीं जिनमें से १८ मुख्यमंत्री जी के क़रीबी लोगो और रिश्तेदारों को दे दी गयी थीं.

रविवार, 19 मई 2013

राजस्थान की लोक संस्कृति के क्या कहने -

राजस्थान की लोक संस्कृति के क्या कहने -

चन्दन सिंह भाटी





बदलाव की बयार जब सब जगह चल रही हो। दुनिया का प्रत्येक कोना बदलाव के साथ चल रहा हैं। यह बदलाव नकारात्मक अधिक और सकारात्मक कम हैं। बाड़मेर जिला भी बदलाव की बयार से अछूता नहीं हैं। सुखद पहलू यह हैं कि यह बदलाव सकारात्मक हैं। इस क्षेत्र में हुआ बदलाव विकास की नर्इ ऊंचार्इ को छू रहा हैं।
क्षेत्र में बदलाव आया जरूर मगर ग्रामीणों में आज भी अपनी संस्कृति, सभ्यता, परम्परा, रीति-रिवाज, आभूषण, खान पान के प्रति मोह कायम हैं। परिधान सदियों से समाज में सभ्यता का प्रतीक रहा हैं। सिन्ध संस्कृति से क्षेत्र का जुडा आरम्भ से रहा हैं। भारत-पाक अलग होने के बाद भी यहां व्यापक बदलाव आया। पशिचमी राजस्थान के इस मरू जिले का पहनावा सदा लोकप्रिय रहा हैं। परम्परागत परिधान तथा आभूषण चार चांद लगाते हैं। महिलाओं में परम्परागत रूप से घाघरा, कुर्ती, कांचली, ओढ़नी, पोमचा, ताहरिया, चुनरी, अंगिया पहने जाते हैं। घामरा कमर से एड़ी तक का लम्बा स्कर्ट होता था। कलियों को जोडकर या चुन्नर के द्वारा इस ऊपर संकरा और नीचे चौड़ा घेरदार बनाया जाता हैं। घघरे ऊंचे रखे जाते हैं ताकि पावों में पहने आभूषण दिखार्इ दे सके। 80 कली के घाघरे के लोकगीत बने हैं। मलमल, साटन, छींट, लटठा, गोटेदार, मगजी वाला के घाघरे आज भी शौक से पहने जाते हैं। कुर्ती कांचली क्षेत्र की सर्वाधिक लोकप्रिय परिधान हैं। राजपूती परिधान के नाम से प्रसिद्ध यह परिधान आज विदेषों में लोकप्रिय हैं। कुर्ती कांचली पहनावा आज स्टेट सिम्बल बना हैं। फिल्मी दुनिया में कुर्ती कांचली की अभी धूम हैं। शरीर के ऊपरी हिस्से में सित्रयां कुर्ती और कांचली पहनती हैं। बांहे कांचली में ही होती हैं। कुर्ती बिना बांह की होती हैं। ये दोनों मिलकर ब्लाऊज का कार्य करते हैं। अविवाहित लड़कियां कुर्ता कांचली एक ही पहनती है, जो बेल गोटा पर कढ़ार्इ या प्रिन्ट घाघरे पर होता हैं। वेसा ही कुर्ती कांचली पर होता हैं। ओंढनी शरीर के निचले हिस्से में घाघरा ऊपर कुर्ती कांचली पहनने के बाद सित्रयां ओढ़नी ओढती हैं। ओढ़नी प्राय: ढ़ार्इ से तीन मीटर लम्बी और चौडी डेढ़ से पौने दो मीटर होती हैं, जिससे घूंघट निकालने में आसानी होती हैं। ओढणी में बैल बूटे, भांत या गोटा पती होती हैं। ओढ़नी के किनारे गोटे लगाये जाते हैं। लहरिया बंधेज की ओढ़निया विशेष लोकप्रिय है। लहरिया श्रावण में तीज त्यौहार के अवसर पर सित्रयां विशेषकर पहनती हैं। पंचरंगी लहरिया शुभ माना जाता हैं। संत शिरोमणी मीरा बार्इ ने कहा था कि पंचरंग चोला पहिर सखि में झुरमर खेलन जाती। होली के अवसर पर महिलाएंं फागणियां ओढ़नी ओढती हैं। बन्धेज के परिधान इस वक्त काफी लोकप्रिय हैं। ग्रामीण क्षेत्रों में रंगार्इ छपार्इ के वस्त्र अधिक पहने जाते हैं। स्थानीय बन्धेज की विशिष्ट शैली अजरख व मलीट हैं। अजरख में लाल एवं नीले रंग से मुसलमान, मेघवाल जाति में अजरख तथा मलीट के परिधान पहने जाते हैं। ये परिधान स्थानीय खत्री जाति के लोग तैयार करते हैं। पाकिस्तान में भी अजरख व मीट रेटा, पडा की जबरदस्त मांग रहती हैं। पुरूष का परिधान ग्रामीण क्षेत्रों में कुछ बढ़कर हैं। साफा, पोतिया, टोपी, अंगरखी, चौला, पायजामा, धोती, कुर्ता आज भी ग्रामीण संस्कृति का गौरव बढ़ा रहे हैं। क्षत्रिय समाज में पुरूष तेवटा व कमीज पहनते हैं। बदलते बयार में सित्रयां जहां साडी, ब्लाऊज बालिकाएं सलवार कुर्ता, स्कर्ट तक पहुंची हैं, वहीं पुरूष का फैशन के नाम पर पेंट-शर्ट, कोट पहनते हैं। युवा वर्ग में जींस अवश्य लोकप्रिय हैं। खादी के कुर्ता पायजामा आज भी लोकप्रिय हैं। खादी के प्रति युवाओं का लगाव बढ़ता जा रहा हैं। पुरूषों में पांवो में पगरखी पहनने की परम्परा हैं।
मरूस्थली प्रदेष में सबसे रेतीले क्षेत्र में पगरखी या जूती आज भी लोकप्रिय हैं। युवा वर्ग अवश्य बूट, स्पोर्टस बूट, सैंडिल तक बदलाव में रंगा हैं। महिलाओं में भी पगरखी समान रूप से प्रचलित हैं। आज फैशन के दोर में शहरी महिलाएं भी शौक से जूती पहनती हैं। आभूषणों में सियों में आज बडा परिवर्तन आया हैं। ग्रामीण अंचलो में परम्परागत आभूषण सिर के शीषफूल, रखडी, टीका बोरिया, कान के आभूषणों में कर्णफूल, पीपल पत्र, फूल झूमका, आगोत्य पहनने का प्रचलन हैं। नाक में नथ, फीणी पहने जाते हैं। वहीं कण्ठी, निम्बोली, तमणियां, कंठसारी, कण्ठयाला, चांदल्या पन्द्रहार, हंसहारख् डुगलां गले की शोभा बढ़ाते हैं। वहीं बाजूबन्द, अणत पर कडा, कंकण, गजरा चूडी, कडा, हाथपान, वीटी, मुन्दडी, दामवा, अंगूठी कन्दौरा, पायल, पायजेब, नुपूर, झांझारिया, जोड, पगपान, तोडा, अनोटा, बिछया, पोलरा, छल्ला, बाजूबन्द, भुजबन्द आदि गहने आज भी सित्रयां बड़े चाव से पहनती हैं। वहीं पुरूष आज भी कानों में गोखरू, लोंग पहनते हैं। हंसली, कण्ठी, अगुठी, हार (चैन), कडा आदि पहनते हैं। ये आभूषण सोने एवं चांदी के बने होते हैं। शादी ब्याह तीज त्यौहार के अवसर पर अक्सर महिलायें व पुरूष आभूषणों से श्रृंगारित होकर आते हैं। जिले में खान पान की सिथति में विशेष बदलाव नहीं आया। ग्रामीण क्षेत्रों में आज भी बाजरे के आटे की राब, गाठ के साथ झांकल (नाश्ता) बाजरी का सोगरा, काचरा मतीरा, केर, सांगरी, रायता, कडी, कुम्भट, दही की सब्जी के साथ बेपारा (दोपहर का भोजन), बयालू (रात का भोजन) करते हैं। खाने के बाद छाछ का चटकारा लेना नहीं भूलते। लहसून, मिर्ची की चटनी का अपना स्वाद हैं। विशेष अवसरो पर गेहूं की रोटी, चावल अवश्य खाये जाते हैं। शादी विवाह तीज त्यौहार के अवसर पर सूजी का हलवा, चना सब्जी, लापसी की परम्परा आज भी कायम हैं।