शनिवार, 10 अगस्त 2013

अशोक गहलौत अकेले ही चलना चाहते हैं राजस्थान में

मुख्यमंत्री अशोक गहलौत की राजनीति इस तरह से डिजाइन की गयी है जिससे राज्य में कांग्रेस की हार को सुनिश्चित किया जा सके.

कांग्रेस की हालत राजस्थान में भी अच्छी नहीं है. वहाँ अशोक गहलौत मुख्यमंत्री हैं. दिल्ली में कांग्रेस के जितने भी बड़े नेता हैं सब उनके खिलाफ हैं. सीपी जोशी, गिरिजा व्यास, सीसराम ओला और सचिन पाइलट अशोक गहलौत को हटवाना चाहते हैं लेकिन अशोक गहलौत को आलाकमान का आशीर्वाद मिला हुआ है इसलिए वे हटाये नहीं जा रहे हैं. केन्द्र में मौजूद कांग्रेसियों के गुस्से को कम करने के लिए गिरिजा व्यास और सीसराम ओला को केन्द्र में मंत्री बना दिया गया, सीपी जोशी को संगठन में बहुत महत्वपूर्ण जिम्मेदारी दे दी गयी लेकिन इसका कोई असर होता नहीं दिख रहा है. राजस्थान में अशोक गहलौत के खिलाफ दिल्ली में मौजूद नेता मीडिया के ज़रिये अभियान चला रहे हैं. उधर कांग्रेस को सत्ता से हटाने के लिए व्याकुल वसुंधरा राजे को कोई कसर नहीं छोड़ रही हैं. वे अशोक गहलौत की असफलता गिनाने के लिए निकल पडी हैं . जहां भी जा रही हैं जनता उनका स्वागत कर रही है .अब वसुंधरा राजे को उनकी पार्टी के अध्यक्ष राजनाथ सिंह का पूरा समर्थन मिल गया है, हालांकि इसके पहले भारी नाराजगी थी.

राजनाथ सिंह बड़े लक्ष्य को प्राप्त करने के लिए मामूली और निजी नाराजगियों को दरकिनार करने की नीति पर काम कर रहे हैं. वसुंधरा राजे जाति के गणित में भी वे जाटों और राजपूतों में अपनी नेता के रूप में पहचानी जा रही हैं. राजनाथ सिंह के कारण पूरे उत्तर भारत में राजपूतों का झुकाव बीजेपी की तरफ है उसका फायदा भी उनको मिल रहा है. जाटों की राजनीति का अजीब हिसाब है. कांग्रेस ने जाटों को साथ लेने के लिए उसी बिरादरी का अध्यक्ष बना दिया है लेकिन उनकी वजह से कांग्रेस की तरफ उनकी जाति का वोट नहीं जा रहा है. बल्कि उससे कांग्रेस को नुक्सान ही हो रहा है. परंपरागत रूप से बीजेपी के मतदाता रहने वाले जाटों को राज्य कांग्रेस के लगभग सभी महत्वपूर्ण पदों पर बैठा दिए जाने के बाद राज्य के राजपूत नेताओं में भारी नाराज़गी है. मुख्यमंत्री अशोक गहलौत की राजनीति इस तरह से डिजाइन की गयी है जिससे राज्य में कांग्रेस की हार को सुनिश्चित किया जा सके. दिल्ली में ज़्यादातर कांग्रेस नेता यह मानकर चल रहे हैं कि अशोक गहलौत अकेले ही चलना चाहते हैं क्योंकि उन्होंने अपनी पार्टी के ज़्यादातर केंद्रीय मंत्रियों को नाराज कर रखा है .सी पी जोशी,सचिन पाइलट,भंवर जीतेंद्र सिंह और लाल सिंह कटारिया उनको कोई समर्थन नहीं दे रहे हैं. महिपाल मदेरणा, ज्योति मिर्धा और शीशराम ओला भी उनसे नाराज़ हैं .लेकिन फिर भी आलाकमान की नज़र में अशोक गहलौत का कुछ नहीं बिगाड़ पा रहे हैं.

यह एक सवाल है. इस सवाल का जवाब तलाशने में कांग्रेस अध्यक्ष के रिश्तेदारों के व्यापारिक कारोबार पर ध्यान जाता है और अशोक गहलौत की कुर्सी की स्थिरता की पहेली समझ में आने लगती है. जहां तक रिश्तेदारों की बात है मुख्यमंत्री ने अपने रिश्तेदारों को भी सत्ता से मिलने वाले लाभ को पंहुचाने में संकोच नहीं किया है. जयपुर के स्टेच्यू सर्किल की एक ज़मीन का ज़िक्र बार बार उठ जाता है जहां बन रहे फ्लैटों की कीमत आठ करोड रूपये से ज्यादा बतायी जा रही है और खबर यह है कि गहलौत जी के बहुत करीबी लोग उसमें लाभार्थी हैं. एक नेता जी ने तो यहाँ तक कह दिया कि जिस कम्पनी की संस्थागत ज़मीन का लैंडयूज बदल कर इतनी मंहगी प्रापर्टी बना दिया गया है उसमें मुख्यमंत्री गहलौत का बेटा ही डाइरेक्टर है. पत्थर की खदानों का घोटाला भी राजस्थान के मुख्यमंत्री के नाम पर दर्ज है. उस घोटाले को तो टी वी चैनलों ने भी उजागर किया था. बताते हैं कि इस घोटाले में २१ खानें एलाट की गयी थीं जिनमें से १८ मुख्यमंत्री जी के क़रीबी लोगो और रिश्तेदारों को दे दी गयी थीं.

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