राजस्थान में सरहद पर सफी खान सम्मा अपना स्कूल पुलिस थाना,जंहा पर खाकी वाले मास्टर जी
राजस्थान के बाड़मेर जिले में भारत-पाकिस्तान सीमा से सटे रामसर कस्बे की पहचान मांगनियार समुदाय के उन गायकों के कारन विश्व-स्तरीय है जिनके लिए यह अतिशयोक्ति सत्य प्रतीत होती है की मांगनियार बच्चे जन्म से ही अच्छे गायक होते हैं और उनका पहला रुदन भी सुरीले गायन की तरह होता है. यहाँ एक पुलिस अधिकारी दवारा कुछ वर्ष पूर्व की गई अनूठी पहल ने रामसर पुलिस थाने को भी ‘सुरीला’ बना दिया है. इस थाने में हथकड़ी की गूँज और बेल्ट की फट कार की जगह ‘अनार’ –आम’ का सुरीला गाना गूँज रहा है. और यंहा के पुलिस वाले मास्टर जी की भूमिका निभा रहे है थाने के नाम से जहां बड़ों-बड़ों को पसीना आ जाता है, वहीं बाड़मेर जिले के रामसर इलाके के थाने में लगभग 150 से २०० बच्चे बड़े मजे से यंहा पर शिक्षा ले रहे है । दर असल 2006 में बाड़मेर में भयंकर बाढ़ आई थी और यहां के स्कूलों में बारिश का पानी भर गया था. तब रामसर के पूर्व थाना प्रभारी सुरेंद्र कुमार ने इस थाने का चार्ज संभाला तो छोटे से कस्बे का दौरा करते हुए उन्होंने देखा की गाँव में बहुत से बच्चे स्कूल जाने के बजाय इधर उधर भटक रहे हैं इसको देखते हुए उन्होंने थाना भवन में ही स्कूल लगाना शुरू कर दिया और पुलिस के जवानो को इन बच्चो को पढ़ाने के लिए मास्टरजी बना दिया और इस अनोखे स्कूल का नाम दिया गया, अपना स्कूल पुलिस थाना 20 बच्चों के साथ शुरू किए गए इस अनोखे स्कूल में आज 150 से 200 बच्चे पढ़ रहे हैं पुलिसकर्मी कानून-व्यवस्था संभालने के साथ-साथ शिक्षक की दोहरी भूमिका भी निभा रहे हैं. पुलिसकर्मियों के अलावा स्कूल में दो टीचर भी हैं, जिन्हें सामाजिक कार्यकर्ता सफी खान समा ने यहां तैनात किया है. टीचरों का वेतन पुलिस और सामाजिक कार्यकर्ता सफी खान समा दोनों चंदा करके इकट्ठा करते हैं रामसर थाना अधिकारी सहदेव कहते हैं,की सामाजिक कार्यकर्ता सफी खान समा की मदद के चलते स्कूल के संचालन में कोई दिक्कत नहीं आती. लगभग पूरा खर्चा वे ही उठाते हैं. जबकि बच्चों की छोटी-मोटी जरूरतें थाने की ओर से पूरी कर दी जाती हैं
शायद देश में यह इकलौता ऐसा अनूठा थाना होगा जहां एक ओर अपराधी हैं तो दूसरी ओर नन्हे बच्चे. यह थाना निश्चित ही देशभर में मिसाल कायम कर रहा है. अच्छी बात यह है कि स्कूल शुरू होने के बाद से अब तक थाने के कई प्रभारी बदल चुके हैं लेकिन शिक्षा का उजियारा फैलाती इस अलख को किसी ने भी बुझने नहीं दिया है.
कोई टिप्पणी नहीं:
एक टिप्पणी भेजें