राजस्थान में गोडावण के संरक्षण संबंधी तमाम प्रयासों के बावजूद गत अधिकृत गणना में इनकी संख्या बस 85 ही पाई गई थी।
हाल ही में एक गैर सरकारी संगठन ने चालू साल में इनकी संख्या में खासी गिरावट का दावा किया है। ऎसे में आशंका है कि अगले कुछ वर्षो में सरकार को राज्य पक्षी के दर्जे के लिए गोडावण के बजाए किसी अन्य पक्षी का चयन करना पड़े। वैसे, राज्य सरकार के वन विभाग की वेबसाइट पर जून 2013 में इनकी संख्या न्यूनतम 125 होना दर्शाया गया है।
शिकार पर सात वर्ष की सजा
राष्ट्रीय पशु बाघ व पक्षी मोर के साथ वन्यजीव संरक्षण कानून की प्रथम अनुसूची में शामिल गोडावण के शिकार पर सात वर्ष तक की सजा और पांच लाख रूपए तक के जुर्माने का प्रावधान है।
गोडावणों का गणित
4800 के करीब 1950 में
72 के करीब थे 2009 में
85 हो गए 2013 में
2014 के परिणाम आने अभी बाकी
गोडावण के घर
जैसलमेर, जोधपुर, अजमेर, कोटा और बाड़मेर गोडावण का घर माने जाते हैं।
पाकिस्तान, गुजरात व मध्यप्रदेश के कुछ इलाकों में भी पाए जाते रहे हैं।
विलुप्त होने के कारण
ग्रासलैंड्स पर सिमटने से इनके रहने की जगह खत्म हो गई।
खनन और शिकार भी गोडावणों की संख्या के कम होने का मुख्य कारण है।
साल 2013 में मई की अधिकृत गणना में 80 से 90 के बीच गोडावण थे। 2014 की गणना का परिणाम अभी जारी होना है। ऎसे में इनकी संख्या के बारे में कुछ कह पाना मुश्किल है। अरिन्दम तोमर, मुख्य वन संरक्षक-वन विभाग
राजस्थान में गोडावण की संख्या तीस से अधिक नहीं रह गई है। किसी पक्षी प्रजाति का 100 से कम रह जाना इसके खत्म होने के कगार पर खड़े होने का संकेत है। बाबू लाल जाजू, प्रदेशाध्यक्ष, पीपुल्स फॉर एनिमल्स -
हाल ही में एक गैर सरकारी संगठन ने चालू साल में इनकी संख्या में खासी गिरावट का दावा किया है। ऎसे में आशंका है कि अगले कुछ वर्षो में सरकार को राज्य पक्षी के दर्जे के लिए गोडावण के बजाए किसी अन्य पक्षी का चयन करना पड़े। वैसे, राज्य सरकार के वन विभाग की वेबसाइट पर जून 2013 में इनकी संख्या न्यूनतम 125 होना दर्शाया गया है।
शिकार पर सात वर्ष की सजा
राष्ट्रीय पशु बाघ व पक्षी मोर के साथ वन्यजीव संरक्षण कानून की प्रथम अनुसूची में शामिल गोडावण के शिकार पर सात वर्ष तक की सजा और पांच लाख रूपए तक के जुर्माने का प्रावधान है।
गोडावणों का गणित
4800 के करीब 1950 में
72 के करीब थे 2009 में
85 हो गए 2013 में
2014 के परिणाम आने अभी बाकी
गोडावण के घर
जैसलमेर, जोधपुर, अजमेर, कोटा और बाड़मेर गोडावण का घर माने जाते हैं।
पाकिस्तान, गुजरात व मध्यप्रदेश के कुछ इलाकों में भी पाए जाते रहे हैं।
विलुप्त होने के कारण
ग्रासलैंड्स पर सिमटने से इनके रहने की जगह खत्म हो गई।
खनन और शिकार भी गोडावणों की संख्या के कम होने का मुख्य कारण है।
साल 2013 में मई की अधिकृत गणना में 80 से 90 के बीच गोडावण थे। 2014 की गणना का परिणाम अभी जारी होना है। ऎसे में इनकी संख्या के बारे में कुछ कह पाना मुश्किल है। अरिन्दम तोमर, मुख्य वन संरक्षक-वन विभाग
राजस्थान में गोडावण की संख्या तीस से अधिक नहीं रह गई है। किसी पक्षी प्रजाति का 100 से कम रह जाना इसके खत्म होने के कगार पर खड़े होने का संकेत है। बाबू लाल जाजू, प्रदेशाध्यक्ष, पीपुल्स फॉर एनिमल्स -
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