गुरुवार, 10 अक्टूबर 2013

130 केन्द्राें पर आज होगी तृतीय श्रेणी अध्यापक भर्ती परीक्षा



130 केन्द्राें पर आज होगी तृतीय श्रेणी अध्यापक भर्ती परीक्षा
- बाड़मेर जिले में 130 परीक्षा केन्द्राें पर आयोजित होने वाली तृतीय श्रेणी अध्यापक भर्ती परीक्षा में 52964 परीक्षार्थी शामिल होंगे। परीक्षार्थियाें की भारी तादाद को देखते हुए उत्तर पशिचम बाड़मेर से जयपुर के मध्य रेलवे स्पेशल परीक्षा एक्सप्रेस रेलगाड़ी चलाएगा।

बाड़मेर, 10 अक्टूबर। बाड़मेर जिले में शुक्रवार को 130 परीक्षा केन्द्राें पर तृतीय श्रेणी अध्यापक भर्ती परीक्षा आयोजित होगी। इसमें 52964 परीक्षार्थी शामिल होंगे। इसमें प्रथम स्तर के 6777 एवं द्वितीय स्तर के 46323 परीक्षार्थी शामिल हैं। परीक्षा के दौरान माकूल सुरक्षा इंतजाम के लिए अतिरिक्त पुलिस जाब्ता तैनात किया गया है।

जिला परीक्षा नियंत्रक एवं कलक्टर भानु प्रकाष एटूरू ने बताया कि तृतीय श्रेणी अध्यापक भर्ती प्रतियोगी परीक्षा 11 अक्टूबर को प्रथम स्तर की सुबह 9 से 11 बजे एवं द्वितीय स्तर की परीक्षा दोपहर 3 से 5 बजे आयोजित होगी। शांतिपूर्वक परीक्षा आयोजित करवाने के लिए पर्याप्त पुलिस बल तैनात करने के साथ सहायता केन्द्र स्थापित किए गए हैं। परीक्षार्थियाें की आवाजाही के लिए अतिरिक्त निजी एवं रोडवेज बसाें की व्यवस्था की गर्इ है। बाड़मेर, बायतू, बालोतरा समेत अन्य रेलवे स्टेशनाें पर अतिरिक्त पुलिस जाब्ता तैनात किया गया है। रेलवे स्टेशनाें पर परीक्षार्थियाें के ठहराव के लिए टेंट व्यवस्था की गर्इ है।

वीडियोग्राफी: अध्यापक भर्ती परीक्षा के दौरान समस्त परीक्षा केन्द्राें की वीडियोग्राफी करवाने के निर्देश दिए गए है। परीक्षा संबंधित हर गतिविधि के साथ सीलबंद परीक्षा सामग्री प्रश्न पत्र आदि को सुरक्षित कक्ष में रखने एवं निकासी की वीडियोग्राफी करवाने को कहा गया है।

सहायता केन्द्राें की स्थापना: बाहर से आने वाले परीक्षार्थियाें की सहायता के लिए रेलवे स्टेशन बाड़मेर,बालोतरा एवं राजकीय महाविधालय बाड़मेर में सहायता केन्द्राें की स्थापना की गर्इ है। सहायता केन्द्राें पर टेंट,दरी,मार्इक,पानी के साथ निर्धारित दराें पर चाय, नाश्ते की व्यवस्था की गर्इ है। मुख्य कार्यकारी अधिकारी एल.आर.गुगरवाल ने बताया कि इसके तहत रेलवे स्टेशन बाड़मेर पर नायब तहसीलदार तुलसाराम सहायता मोबाइल 9461523835 केन्द्र प्रभारी, बालोतरा रेलवे स्टेशन पर र्इआर्इ जिला रसद अधिकारी खीमाराम मोबाइल 9166517407 को सहायता केन्द्र प्रभारी, राजकीय महाविधालय बाड़मेर में सहायक अभियंता भारमलराम मोबाइल 9950292611 एवं बालोतरा रेलवे स्टेशन पर सहायक अभियंता यशवंत चौधरी मोबाइल 9530301580 को सहायता केन्द्र प्रभारी बनाया गया है। इन व्यवस्थाआें के लिए अधिशाषी अभियंता अशोक गोयल मोबाइल 9414384254 को आल ओवर प्रभारी अधिकारी है। रेलवे स्टेशन पर स्थापित सहायता केन्द्र 11 अक्टूबर को सुबह 8 बजे से रात्रि 11.30 बजे तक अंतिम रेल गाड़ी के प्रस्थान तक कार्यरत रहेगा। जबकि राजकीय महाविधालय बाड़मेर के मैदान में स्थापित सहायता केन्द्र 11 अक्टूबर को सुबह 8 से शाम 6 बजे तक कार्यरत रहेगा। इसी तरह तिलक बस स्टेण्ड पर 11 अक्टूबर को सायं 5 बजे से रात्रि 11 बजे तक रोडवेज का सहायता केन्द्र चलेगा।

बाड़मेर-जयपुर के मध्य चलेगी स्पेशल टे्रन: अध्यापक भर्ती परीक्षा के अभ्यर्थियों की भारी तादाद को देखते हुए उत्तर पशिचमी रेलवे शुक्रवार को बाड़मेर-जयपुर एक्सप्रेस स्पेशल रेल चलाएगा। रेलवे के जनसंपर्क अधिकारी तरूण जैन ने बताया कि ट्रेन संख्या 04807 बाड़मेर रेलवे स्टेशन से शुक्रवार शाम 5.45 बजे रवाना होकर 6.14 बजे बायतु, 7.05 बजे बालोतरा, 7.40 बजे समदड़ी, 8.30 बजे लूणी, 9.45 बजे जोधपुर एवं 11.32 बजे मेड़ता रोड़ पहुंचेगी। यह टे्रन शुक्रवार रात्रि 12.10 बजे डेगाना, 1.18 बजे मकराना, 1.38 बजे कुचामन सिटी पहुंचेगी। इसी तरह शनिवार सुबह 5.15 बजे फुलेरा, 5.29 बजे हिरनोदा, 5.40 बजे जोबनेर, 6.03 बजे कनकपुरा एवं 6.25 बजे जयपुर पहुंचेगी।

रेलवे स्टेशनाें पर पुलिस की पुख्ता व्यवस्था: 11 अक्टूबर को परीक्षा समापित के पश्चात बाड़मेर, बायतू, बालोतरा, समदड़ी रेलवे स्टेशन से गुजरने वाली मालानी एक्सप्रेस एवं रात्रि 11.30 बजे की साधारण रेलगाड़ी की रवानगी, बस स्टेण्ड तथा अन्य निर्धारित बस स्टेण्ड, जहां से रोडवेज एवं निजी बसाें की रवानगी होगी। इन स्थानाें पर पर्याप्त पुलिस जाब्ता तैनात किया गया है। इस दौरान तैनात अधिकारियाें को निर्देश दिए गए है कि यह सुनिशिचत करें कि कोर्इ भी परीक्षार्थी रेल एवं बस की छत पर यात्रा नहीं करें,ताकि दुर्घटना की आशंका को टाला जा सके।

फोटोकापी की दुकानें रहेगी बंद: परीक्षा की तिथि को सुबह 8 से सांय 7 बजे तक संबंधित क्षेत्राें में फोटोग्राफी, फैक्स आदि की दुकानें बंद रखने के निर्देश दिए गए हैं।

किस विषय के कितने आवेदन: तृतीय श्रेणी अध्यापक सीधी भर्ती परीक्षा 2013 में प्रथम स्तर में 6777 आवेदन प्राप्त हुए हैं। इसी तरह द्वितीय स्तर की परीक्षा में विज्ञान-गणित विषय में 5036, सामाजिक अध्ययन के लिए 21440,हिन्दी 10933, अंग्रेजी के 3564,संस्कृत 4956, उदर्ू के 394 कुल 46323 आवेदन प्राप्त हुए है।











प्रत्येक गतिविधि पर रहेगी नजर, निर्वाचन नियन्त्रण कक्ष स्थापित



प्रत्येक गतिविधि पर रहेगी नजर,

निर्वाचन नियन्त्रण कक्ष स्थापित

बाडमेर, 10 अक्टूबर। विधानसभा आम चुनाव 2013 के लिए जिला स्तरीय नियन्त्रण कक्ष ने आदर्श आचार संहिता लागू होने के साथ ही कार्य करना प्रारम्भ कर दिया है। यह नियन्त्रण कक्ष 24 घण्टे लगातार कार्य करेगा।

उप जिला निर्वाचन अधिकारी अरूण पुरोहित ने बताया कि नियन्त्रण कक्ष में चुनाव संबंधी शिकायतें प्राप्त करने के साथ ही निर्वाचन संबंधी सूचनाओं का संकलन और संप्रेषण का कार्य भी किया जाएगा। उन्होने बताया कि जिला परिषद के सहायक अभियन्ता रामलाल चौधरी को नियंत्रण कक्ष का प्रभारी बनाया गया है। उन्होने बताया कि इस नियन्त्रण कक्ष में पांच टेलीफोन लार्इने लगायी गर्इ है तथा यह 24ग्7 घण्टे तक लगातार कार्य करेगा। इस दौरान चुनाव से संबंधित किसी भी प्रकार की शिकायत, समस्या तथा सूचनाओं को इस पर प्रेषित किया जा सकेगा। यहां प्राप्त शिकायतों पर त्वरित कार्यवाही की जाएगी। साथ ही टोल फ्री हैल्प लार्इन भी निर्वाचन गतिविधियों में मदद करेगी। नियंत्रण कक्ष में कम्प्युटर के साथ हार्इ स्पीड के इन्टरनेट तथा एलसीडी टेलीविजन भी लगाया जाएगा जिससे उच्च स्तरीय सूचनाएं संप्रेषण के साथ साथ अन्य स्थानों पर चुनावी गतिविधियों की अधतन जानकारी ली जा सकेगी। नियन्त्रण कक्ष के दूरभाष नम्बर 02982- 222226, 220732, 220714, 220467, 220136 तथा टोल फ्री नम्बर 1077 है।

बेटियों का मनाया जन्मदिन



बेटियों का मनाया जन्मदिन

केयर्न इंडिया, हेल्पेज इंडिया, स्मार्इल फाउंडेशन व आर्इर्इसी अनुभाग की ओर से आयोजित किए जा रहे जागरूकता महाअभियान पधारो म्हारी लाडो के तहत गुरूवार को बेटियाेंं का केक काटकर जन्मदिन मनाया गया। इस दौरान जागृति, नेहा व हिमांशी का जन्मदिन मनाया गया। सीएमएचओ डा. फूसाराम बिश्नोर्इ ने कहा कि निशिचत ही इस अभियान के जरिए समाज में जागरूकता आ रही है। उन्होंने कहा कि अभियान के तहत आगामी दिनों में भी विभिन्न कार्यक्रम आयोजित कर जागरूकता पैदा की जाएगी ताकि बेटे-बेटियों का भेदभाव समाप्त किया जा सके।

प्रतियोगिता में ये रहे विजेता

कार्यक्रम के दौरान प्रश्नोत्तरी प्रतियोगिता का आयोजन किया गया। जिसमें आशा सहयोगिनी तारीदेवी, गंगादेवी, कृष्णा, शांतिदेवी, नर्सिंग स्टूडेंटस भजनलाल बिश्नोर्इ, दिलीप पालीवाल और दुर्गसिंह राजपुरोहित, मुकेश व्यास, मूलाराम सहारण, चैनाराम आदि विजेता रहे। कार्यक्रम में स्वास्थ्य संबंधी प्रश्नों के साथ ही राज्य व केंद्रस्तरीय सामान्य ज्ञान के प्रश्न पूछे गए।

मानसिक रोगी को अतिरिक्त प्यार की जरूरत - सीजेएम



मानसिक रोगी को अतिरिक्त प्यार की जरूरत - सीजेएम

-विश्व मानसिक स्वास्थ्य दिवस पर जागरूकता कार्यक्रम व विधिक साक्षरता शिविर का आयोजन

बाड़मेर। वर्तमान समय में मानवीय मूल्यों की समाज में बहुत जरूरी है, क्योंकि मानवीय मूल्यों के जरिए ही हम संवेदनाओं से जुड़े रह सकते हैं और मानसिक रूप से स्वस्थ भी। जबकि मानसिक रूप से अस्वस्थ व्यकित मसितष्क रूप से भले ही बीमार हो, लेकिन उसकी आत्मा जीवित होती है और वह समझ सकता है कि उसके साथ कैसा व्यवहार किया जा रहा है। यही वजह है कि इस तरह के व्यकित कर्इ बाद उद्धेलित भी हो जाते हैं। ये विचार गुरूवार को मुख्य न्यायिक मजिस्टे्रट गोपाल बिजोरीवाल ने व्यक्त किए, जो जिला स्वास्थ्य भवन में आयोजित जागरूकता कार्यक्रम व विधिक साक्षरता शिविर में बतौर मुख्य अतिथि संबोधित कर रहे थे। अपर मुंसिफ मजिस्टे्रट सरोज चौधरी की अध्यक्षता में आयोजित विश्व मानसिक स्वास्थ्य दिवस के मौके पर आयोजित इस कार्यक्रम में विशिष्ट अतिथि के रूप में मुख्य चिकित्सा एवं स्वास्थ्य अधिकारी डा. फूसाराम बिश्नोर्इ, पीएमओ डा. एचके सिंगल व सेवानिवृत सीएमएचओ डा. जितेंद्रसिंह मौजूद थे। इस दौरान पधारो म्हारी लाडो अभियान के तहत नन्हीं बालिकाओं को केक काटकर जन्मदिन मनाया गया।

कार्यक्रम को संबोधित करते हुए अपर मुंसिफ मजिस्टे्रट सरोज चौधरी ने कहा कि मानसिक रोग से पीडि़त व्यकित को संवेदनाओं की जरूरत होती है, जिन्हें अपनेपन से ही स्वस्थ किया जा सकता है। उन्होंने कहा कि समाज में ऐसे अस्वस्थ व्यकितयों को दरकिनार नहीं करना चाहिए, बलिक उन्हें आदरभाव के साथ समाज का हिस्सा बनाना चाहिए। सीएमएचओ डा. बिश्नोर्इ ने कहा कि 10 अक्टूबर का दिन प्रति वर्ष विश्व मानसिक दिवस के रूप में मनाया जाता है। इस की शुरूआत विश्व मानसिक स्वास्थ्य परिसंघ ने की थी तथा पहली बार इसे 1992 में मनाया गया था। विश्व स्वास्थ्य संगठन के आँकडों पर गौर करे तो दुनियाभर में करीब 45 करोड़ व्यä मिनसिक बीमारी या तंत्रिका संबंधी समस्याओं से ग्रस्त हैं। इस अवसर पर सम्पूर्ण विश्व के देशों की सरकारों को, सामजिक संगठनों को भौतिक वाद की इस भाग दौड़ में बिगड़ते मानसिक स्वास्थ्य पर गंभीरता से विचार करना आवश्यक हो गया है। पीएमओ डा. सिंगल ने कहा कि विकास की गति को बनाये रखने के लिए मानव स्वास्थ्य पर पड़ने वाले प्रतिकूल प्रभावों के कारणों की पहचान कर यथा संभव कदम उठाने होंगे। साथ ही वि—त मानसिक सिथतियों के शिकार व्यäयिें के उपचार के लिए एक आन्दोलन का रूप देते हुए कदम उठाने होंगे। ताकि मानव सभ्यता की उन्नति मानव समाज के लिए अभिशाप बन कर न रह जाये। इस दौरान गैर सरकारी संगठन केयर्न इंडिया, हेल्पेज इंडिया, स्मार्इल फाउंडेशन, शुभम संस्थान, बीएनकेवीएस, किरण संस्थान आदि संस्थाओं के सदस्य एवं जिला आयुष अधिकारी डा. अनिल झा, जिला आशा समन्वयक राकेश भाटी, आर्इर्इसी समन्वयक विनोद बिश्नोइ्र्र, सामाजिक सुरक्षा अधिकारी केदार शर्मा, परियोजना समन्वयक मूलचंद खींची, सुपरवार्इजर दुर्गसिंह सोढ़ा, मुकेश व्यास, वंदना गुप्ता आदि मौजूद थे। मंच संचालन आयुष चिकित्सक डा. सुरेंद्र चौधरी ने किया।

Esquire ने स्कारलेट को दूसरी बार दिया 'सबसे सेक्सी जीवित महिला' का खिताब



मैगजीन ने दूसरी बार अभिनेत्री स्कारलेट जोहानसन को 'सबसे सेक्सी जीवित महिला' का खिताब दिया है. सात साल बाद यह दूसरा मौका है जब स्कारलेट को इस खिताब से नवाजा गया है.

स्कारलेट जोहानसन को 2006 में भी इस खिताब से नवाजा गया था. दूसरी बार इस खिताब को पाने वाली वह पहली महिला हैं. पिछले साल इस खिताब की विजेता फिल्म ब्लैक स्वान की अदाकारा मिला कुनिस थी.

हॉलीवुड की बेहद खूबसूरत अदाकारा स्कारलेट जोहानसन की फिल्मों में 'गर्ल विथ ए पर्ल ईयररिंग' और द एवेंजर्स बेहद चर्चित हुई है. मासिक पत्रिका Esquire ने उन्हें अपने कवर पेज पर स्थान दिया और उनके काम की भरपूर तारीफ की है.

जोहानसन ने मजाकिया अंदाज में मैगजीन को कहा, 'वह जल्द ही फिर से खूबसूरत बन जाएगी.' आप ने जिनको भी चुना है वे सभी आज मां बन चुकी हैं. जोहानसन ने ये भी कहा कि उसने कभी भी कास्टिंग एजेंटों की खुशामद नहीं की है.

मैगजीन के साथ हाल के फीचर इंटरव्यू में जॉनसन ने इस बात का खुलासा किया कि अपने आवाज की वजह से उन्हें कई रोल से हाथ धोना पड़ा है. जॉनसन ने कहा, ' मेरे भाई की क्लास में कोई था जो कॉमर्सियल और थियेटर के लिए काम करता था. मेरी मां भी मुझे किडस एजेंट के पास ले गई क्यों कि मुझे संगीत से लगाव था. वहां मुझे पसंद नहीं किया गया और मुझे लगा कि मेरा करियर यहां खत्म हो गया है.'

' उस वक्त मुझे अहसास हुआ कि मैं रोकर, जो भी चाहूं पा सकती हूं. मेरे विज्ञापन बेकार होते थे क्योंकि मेरी आवाज रुखी थी. 9 साल की उम्र में मेरी आवाज ऐसी थी जैसे कि किसी चैन स्मोकर या ह्विस्की पीने वाले की होती है.'

न्‍यूड ब्‍वॉयफ्रेंड को एयरपोर्ट पर गर्लफ्रेंड ने मारा थप्‍पड़














एक यात्री ने इतनी शराब पी ली थी कि उसे जरा भी होश नहीं था और वह इसी हालत में एयरपोर्ट जा पहुंचा. यही नहीं उसने अपने सारे कपड़े खोल लिए और कैप्‍टन से झगड़ा करने के लिए गुहार लगाने लगा.

छुट्टियां मनाने के लिए माल्‍टा से मैनचेस्‍टर आए इस शख्‍स को एयरपोर्ट पर मौजूद लोगों की कोई परवाह नहीं थी और उसने टर्मिनल की एक इमारत के किनारे पेशाब कर दी.



यह नजारा देखकर उसकी गर्लफ्रेंड गुस्‍से से भर गई और उसने सबके सामने उसके गाल पर जोरदार थप्‍पड़ रसीद कर दिया.

हंगामे की शुरुआत बीच फ्लाइट के दौरान हुई. एक यात्री शराब पीकर आया था और वह सहयात्रियों के साथ गाली-गलौज करने लगा. एक प्रत्‍यक्षदर्शी के मुताबिक, 'वह दूसरे यात्रियों से झगड़ा कर रहा था और विमान के कैप्‍टन को उसे शांत कराने आना पड़ा.'

लेकिन दिन में 1:28 मिनट पर जब मैनचेस्‍टर में विमान उतरा तो यात्री फिर भी शांत नहीं हुआ. विमान की सीढ़ियों से उतरने के बाद उसने अपने सारे कपड़े उतार दिए. इसके बाद उसकी गर्लफ्रेंड ने उसे थप्‍पड़ जड़ दिया.

पुलिस के आने से पहले उसने अपने कपड़े पहन लिए. पुलिसवालों ने उसे शांत करने की कोशिश की, लेकिन वो नहीं माना. इसके बाद उसे गिरफ्तार कर लिया गया.



पटना में नरेंद्र मोदी की हुंकार रैली के लिए राष्ट्रपति प्रणब मुखर्जी ने बदला कार्यक्रम



पटना में 27 अक्टूबर को नरेंद्र मोदी की रैली और उसी दिन राष्ट्रपति प्रणब मुखर्जी के बिहार दौरे को लेकर पैदा हुए विवाद पर विराम लग गया है.
प्रणब मुखर्जी
बीजेपी की मांग मानते हुए राष्ट्रपति ने अपना कार्यक्रम बदल दिया है, अब वो सिर्फ 26 अक्टूबर को पटना में होंगे और उसी दिन वापस लौट आएंगे. पहले राष्ट्रपति का बिहार दौरा 26 और 27 अक्टूबर के लिए तय था. राष्ट्रपति ने 27 अक्टूबर को आरा जाने का कार्यक्रम रद्द कर दिया है.

दरअसल, गुरुवार को बीजेपी नेता शाहनवाज हुसैन और राजीव प्रताप रुडी ने राष्ट्रपति से मुलाकात की और अपील की कि मोदी की रैली के मद्देनजर वे अपना कार्यक्रम बदल दें जिसे राष्ट्रपति ने मान लिया.

मुलाकात के बाद बीजेपी नेताओं ने बताया कि हम अपनी रैली की वजह से राष्ट्रपति को होने वाली दिक्कतों को लेकर चिंतित हैं, जिसके बाद प्रणब मुखर्जी ने हमारी मांग मान ली.

मोदी की रैली के लिए रास्ता साफ होने के बाद शाहनवाज हुसैन ने कहा, 'यह अच्छी बात है कि एक दिन राष्ट्रपति जा रहे हैं बिहार के दौरे पर तो उसके ठीक अगले ही दिन देश के पीएम इन वेटिंग.'

कार्यक्रम में बदलाव पर जेडीयू की प्रतिक्रिया भी आ गई है. पार्टी नेता वशिष्ठ नारायण सिंह ने कहा कि किसी राजनीतिक रैली के लिए राष्ट्रपति के आधिकारिक दौरे में बदलाव गलत मिसाल पेश करेगा.

क्या था विवाद?
दरअसल, बिहार के पूर्व डिप्टी सीएम सुशील मोदी ने आरोप लगाया था कि नीतीश कुमार मोदी की हुंकार रैली को रोकने के लिए हर तरह के हथकंडे अपना रहे हैं. सुशील मोदी ने ट्वीट किया, 'पहले तो नीतीश कुमार ने मोदी की हुंकार रैली के लिए आधे गांधी मैदान की ही इजाजत दी और फिर जिस दिन मोदी की रैली है उसी दिन राष्ट्रपति को बिहार आने का न्योता दिया है. मोदी ने लिखा है कि 26 और 27 अक्टूबर को राष्ट्रपति पटना में होंगे.' इन आरोपों पर बिहार के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार ने बीजेपी पर पलटवार किया और कहा कि बीजेपी पब्लिसिटी के लिए सनसनी फैला रही है. राष्ट्रपति के बिहार दौरे से राज्य सरकार का कोई लेना-देना नहीं है.


 

200वां टेस्ट सचिन के करियर का आखिरी टेस्ट, सचिन भावुक


मुंबई। मास्टर ब्लास्टर सचिन तेंदुलकर जल्द ही संन्यास ले सकते हैं। बीसीसीआई ने ट्विट के जरिए ये जानकारी दी है। बीसीसीआई के मुताबिक अपने 200वें टेस्ट मैच के बाद सचिन संन्यास का ऐलान कर सकते हैं। 14 नवंबर से ये टेस्ट मैच शुरू होगा जिसमें भारत वेस्टइंडीज के खिलाफ उतरेगा। बीसीसीआई सचिव संजय पटेल ने गुरुवार को सचिन की ओर से एक बयान जारी किया, जिसमें इस बात का उल्लेख है कि वह 200वें टेस्ट मैच के बाद टेस्ट क्रिकेट को अलविदा कह देंगे।



सचिन एकदिवसीय मैचों से पहले ही सन्यास ले चुके हैं। उन्होंने हाल ही में समाप्त चैंपियंस लीग के साथ ही पेशेवर ट्वेंटी-20 क्रिकेट से भी सन्यास की घोषणा की थी। सचिन ने अपने करियर में कई कीर्तिमान बनाए हैं। सचिन ने खुद कहा है कि मेरे लिए ये पल बेहद भावुक हैं। उन्होंने कहा कि मैंने अपनी जिंदगी में क्रिकेट के अलावा और कुछ नहीं सोचा है और मेरे लिए संन्यास लेना बेहद भावुक पल होगा। सचिन 24 साल से क्रिकेट खेल रहे हैं। और लोगों सचिन को देखने के आदी हो चुके हैं और सचिन के बिना क्रिकेट की तुलना ही अजीब लगती है।

बाड़मेर विधानसभा सीट हेमाराम चौधरी आ सकते हें बाड़मेर ,चौधरी ने गुडा से नहीं पेश की दावेदारी

बाड़मेर विधानसभा सीट। । बड़ी उठापठक के संकेत

हेमाराम चौधरी आ सकते हें बाड़मेर ,चौधरी ने गुडा से नहीं पेश की दावेदारी 

बाड़मेर सरहदी जिले बाड़मेर जिला मुख्यालय विधानसभा सीट पर राजस्व मंत्री हेमाराम चौधरी की दावेदारी की जगह हमने दो माह पूर्व दी थी। कांग्रेस में दिल्ली में टिकटों को लेकर चल रही उठा पटक की सूत्रोंसे खबर मिली हें की हेमाराम चौधरी बाड़मेर विधानसभा से चुनाव लड़ सकते हें ,. पार्टी सूत्रों ने बताया की हेमाराम चौधरी ने गुड़ा मालानी विधानसभा सीट से खुद ने इस बार दावेदारी पेश नहीं की। अलबता ग्रामीणों तथा स्थानीय जन प्रतिनिधियों ने जरुर गुड़ा से एक मात्र दावेदारी हेमाराम चौधरी की जताई थी ,कांग्रेस पर्यवेक्षकों के सामने भी उनका ही नाम दिया था। अब अजीब स्थति हो गयी ,पेनल बन गए गुड़ा मालानी से हेमाराम चौधरी का नाम था बाद में उसमे धोरीमन्ना के पूर्व प्रधान ताजाराम चौधरी और सांचोर के पूर्व प्रधान सुख राम विश्नोई के नाम डाले गए। हेमाराम चौधरी द्वारा बाड़मेर विधानसभा से चुनाव लड़ने की इच्छा जाहिर होने की खबर हें ऐसा होता हें तो गुड़ा से सुखराम विश्नोई तो टिकट मिल सकती हें और मेवाराम जैन के बदले महेंद्र जैन टाइगर को सिवान से मैदान में उतारा जा सकता हें। बाड़मेर विधानसभा के आलावा जिले की पचपदरा और शिव में प्रत्यासी बदलने की खबर आई हें।
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थार की चुनावी धार। बाड़मेर की राजनीती में युवाओं का योगदान


थार की चुनावी धार। बाड़मेर की राजनीती में युवाओं का योगदान 
बाड़मेर की राजनीती में बेदम। ।युवाओ को बहुत कम मिले अवसर
बाड़मेर। रेगिस्तान की राजनीति में युवाओ को चुनाव लड़ने का अवसर मिला और उन्होंने इतनी लंबी पारी खेली कि नईपीढ़ी के लिए अवसर ही नहीं मिला।अब एक बार फिर उनके उम्रदराज होने से युवाओं को मौके का वक्त आ गया है। 

युवाओं का राजनीति में आने की पैरवी हर ओर से हो रही है। जिले में इस वर्ष 29 हजार युवा मतदाता जुड़े है और 21 से 35 की उम्र के करीब चार लाख से अधिक मतदाता है। उम्रदराज मतदाताओं का सपना भी यही है कि उनके घर की रीढ़ की हड्डी यानि युवा का भविष्य सुधरे।

दशकों तक युवा इंतजार करते रहे

गंगाराम चौधरी, हेमाराम चौधरी, अब्दुल हादी, वृद्धिचंद जैन, मदनकौर, अमीनखां, अमराराम चौधरी ऎसे नाम है जो बाड़मेर की राजनीति में ऎसे आकर जमे कि फिर इनको उखाड़ने के कम ही अवसर आए। युवा उम्र में आए इन विधायकों ने अपनी पूरी उम्र राजनीतिक पारी में गुजार दी।

एक ही युवती

महिलाओं में विधायक के तौर पर श्रीमती मदनकौर 1962 में 37 साल की उम्र में विधायक बनी और इसके बाद चार बार विधायक रही है। अन्य कोई महिला विधायक बनी ही नहीं। हालांकि इसी उम्र में पिछले चुनाव में मृदुरेखा चौधरी ने किस्मत आजमाई, लेकिन वे असफल रही।

इस बार दौड़ में सशक्त युवा

शम्मा खान- शिव से दावेदारी करने वाली कांगे्रस की शम्माखां की उम्र 30 वर्ष है।
बाड़मेर से भाजपा की दावेदार प्रियंका चौधरी की उम्र 40 वर्ष है।
बाड़मेर से भाजपा की दावेदार मृदुरेखा चौधरी 42 वर्ष की है।
बायतु से भाजपा के दावेदार कैलाश चौधरी 38 वर्ष के है।
पचपदरा से मदन प्रजापत 37 वर्ष के है।
सिवाना से कांग्रेस से दावेदार महेन्द्र टाईगर 46 वर्ष के है।
कॉलेज की राजनीति से कौन-कौन
जिले में महाविद्यालय की राजनीति से विधायक बनने वालों में जोधपुर विश्वविद्यालय में अध्यक्ष रहे डा. जालमसिंह रावलोत रहे।
सांसद हरीश चौधरी भी जोधपुर विश्वविद्यालय से अध्यक्ष रह चुके है।
दलीय व्यवस्था में युवा संगठन
भाजपा का युवाओं के लिए भारतीय जनता युवा मोर्चासंगठन है, जिसका मौजूदा समय में कोई अध्यक्ष नहीं है।
कांग्रेस का युवाओं के लिए युवक कांगे्रस संगठन है,जिसमें अब चुनाव करवाए जा रहे है। ठाकराराम माली बाड़मेर जैसलमेर लोकसभा क्षेत्र के युवा अध्यक्ष है।

प्रमुख विधायक

नाम पहली जीत उम्र
श्रीमती मदनकौर 1962 37
हेमाराम चौधरी 1980 32
अमीनखां 1980 41
गंगाराम चौधरी 1962 40
अमराराम चौधरी 1980 37
मदन प्रजापत 2008 33
गोपाराम मेघवाल 1998 36
जालमसिंह रावलोत 2003 38

मौजूदा विधायकों की उम्र

बाड़मेर मेवाराम जैन 60
शिव अमीन खां 74
बायतु कर्नल सोनाराम 68
पचपदरा मदन प्रजापत 37
गुड़ामालानी हेमाराम चौधरी 65
सिवाना कानसिंह कोटड़ी 72
चौहटन पदमाराम 50

इस बार जुड़े युवा मतदाता
शिव 1706
बाड़मेर 5430
बायतु 1903
पचपदरा 4501
सिवाना 3569
गुड़ामालानी 3006
चौहटन 4717
कुल 24832

युवाओं को कमान मिले

देश में 50 प्रतिशत युवा है। यह हमारे देश की सबसे बड़ी शक्ति है। युवा ही युवाओं की समस्याओं को समझ सकता है। आज का युवा पढ़ा लिखा है। शिक्षा और विज्ञान की क्रांति की समझ रखता है। राजनीति में आने वालों का पहला उद्देश्य ही क्षेत्र के साथ देश का विकास है। जमाने के साथ दौड़ने और विकसित राष्ट्र की कल्पना के लिए युवाओं को अवसर दिए जाने चाहिए। - डॉ. हुकमाराम सुथार, प्रवक्ता, राजनीति विज्ञान

शाह अब्दुल लतीफ भिटाई और सामयिक भारतीय संस्कृति


शाह अब्दुल लतीफ भिटाई और सामयिक भारतीय संस्कृति

शाह अब्दुल लतीफ़ (1689-1752) सिंध के विश्व प्रसिद्ध सूफी कवि थे, जिन्होंने सिन्धी भाषा को विश्व के मंच पर स्थापित किया। शाह लतीफ़ का कालजयी काव्य-संकलन 'शाह जो रसालो' सिन्धी समुदाय के हृदयकी धड़कन सा है. और सिंध का सन्दर्भ विश्व में शाह लतीफ़ की भूमि के रूप में भी दिया जाता है, जिस की सात नायिकाओं मारुई, मूमल, सस्सी, नूरी, सोहनी, हीर तथा लीला को सात रानियाँ भी कहा जाता है। ये सातों रानियाँ पवित्रता, वफादारी और सतीत्व के प्रतीक रूप में शाश्वत रूप से प्रसिद्ध हैं। इन सब की जीत प्रेम और वीरता की जीत है.

शाह अब्दुल लतीफ़ एक सूफी संत थे जिन के बारे में राजमोहन गाँधी ने अपनी पुस्तक 'Understanding the Muslim Mind' में लिखा है कि जब उनसे कोई पूछता था कि आप का मज़हब क्या है, तो कहते थे कोई नहीं। फिर क्षण भर बाद कहते थे कि सभी मज़हब मेरे मज़हब हैं। सूफी दर्शन कहता है कि जिस प्रकार किसी वृत्त के केंद्र तक असंख्य अर्द्ध- व्यास पहुँच सकते हैं, वैसे ही सत्य तक पहुँचने के असंख्य रास्ते हैं। हिन्दू या मुस्लिम रास्तों में से कोई एक आदर्श रास्ता हो, ऐसा नहीं है। कबीर की तरह शाह भी प्रेम को उत्सर्ग से जोड़ते हैं। प्रेम तो सरफरोशी चाहता है। इसीलिए शाह अपने एक पद में कहते हैं:


वर्ष था सन् 1752 का और वह महीना था जब सिंध में क्रौंच वियोग में बिलखते हैं और प्रेमीजन मुरझाते हैं, यानी मई का महीना- आँधी और लू का महीना। ऐसे समय में काले रंग का लम्बा-सा कुर्ता और सफेद कुल्ला पहने एक दरवेश लाठी के सहारे मरुस्थल पार कर रहा था। तभी कच्छ के पास वाँग विलासुर नामक स्थान पर एक ऊँट-सवार ने उन्हें रोका- ‘‘ओ महान शाह ! यह नाचीज शागिर्द आपको सलाम करता है। इस मरुस्थल में आप कहाँ जा रहे हैं ?’’ सन्त ने जवाब दिया- ‘‘कर्बला जा राह हूँ, मेरे बच्चे ! मेरा दिल कर्बला जाने के लिए तरस रहा है।’’

‘‘हे परम पिता ! आप तो हमेशा ही अपने लोगों को यह आदेश देते रहे हैं कि आपको सिंध प्रदेश में भींत नामक स्थान पर दफनाया जाए। फिर आपने अपना यह इरादा क्यों बदल दिया ? अब जिन्दगी के आखिरी दिनों में आप अपनी मातृ भूमि क्यों छोड़ रहे हैं ?’’ इतना कहकर वह दावी (ऊँट-सवार) चला गया।
इस नौजवान के शब्दों ने सन्त का दिल पिघला दिया और वह वापस भींत लौट गये, जहाँ कुछ ही दिनों बाद उनका देहान्त हो गया। ये महान सन्त थे, शाह अब्दुल लतीफ, अमर ‘रीसालो’ के सर्जक। फारसी जबान में हाफीज, रूमी, सादी तथा पंजाबी जबान में फरीद और वारिसशाह का जो स्थान है, वही स्थान सिंधी भाषा में शाह अब्दुल लतीफ का है। उन्होंने सिंधी जुबान में वही कार्य किया जो चौसर ने अंग्रेजी में और फरीद ने पंजाबी में किया। वे कविता को सिंधी में ले आये और सिंधी को काव्यमय बना दिया।

भारत के दो हजार वर्षों भी अधिक पुराने कीर्तिमान इतिहास की अनुकूल और प्रतिकूल धाराओं का आलोचनात्मक तथा गहन विश्लेषण हमें बताता है कि हर तीन सौ वर्षों के बाद यहाँ एक ऐसा आन्दोलन हुआ जो इस देश के हृदय को बहा ले गया और, उसने जाति, रंग, धर्म और सम्प्रदाय की सभी दीवारों को तोड़कर धीरे-धीरे एक धार्मिक आन्दोलन को जन्म दिया। आखिर में ऐसे ही किसी-न-किसी आंदोलन के फलस्वरूप दूरगामी राजनीतिक परिणाम निकले हैं।
जब ईसा के छ: सौ वर्ष पूर्व ब्राह्मणवाद हमेशा के लिए खत्म हो गया। परन्तु, ऐसा नहीं हुआ। उसके ठीक तीन सौ वर्ष बाद अशोक के समय में बौद्ध धर्म स्वयं परिवर्तित होने लगा। उसमें मतभेद पैदा हो गये। ईसा की पहली शताब्दी में बौद्ध धर्म में फूट पड़ी जिसके परिणामस्वरूप यह धर्म ‘हीनयान’ और ‘महायान’ इन दो टुकड़ों में बँट गया।

हर्ष के समय में भारत में ही नहीं बल्कि सारी दुनिया में एक बहुत बड़ी धार्मिक उथल-पुथल हुई। इस्लाम का आविर्भाव एक ऐसी ताकत के रूप में हुआ जिसने बहुत से देशों के भाग्य बदल दिये। यही इस्लाम जब भारत में दाखिल हुआ तो उसने निजामुद्दीन औलिया और अमीर खुसरो के नेतृत्व में सूफीवाद और अन्य विचारधाराओं को जन्म दिया। इसके ठीक तीन सौ वर्ष बाद यानी 19 वीं शताब्दी में ब्रह्मसमाज, आर्यसमाज, थियोसॉफिकल सोसायटी आदि का प्रादुर्भाव हुआ। अपने युग के विरुद्ध लड़ने के लिए पनपे इन धार्मिक आन्दोलनों का अध्ययन रुचिकर ही नहीं बल्कि ऐतिहासिक रूप में जरूरी भी है। यह धार्मिक आन्दोलन सामाजिक रूप से लाभदायक तथा आर्थिक रूप से अनोखा है। इन आंदोलनों में कुछ तो बहुत ही सरल थे और कुछ जटिल, परन्तु सभी आंदोलन समान रूप से महत्त्वपूर्ण हैं। किसी भी आंदोलन के कारण भारत की एकता को कभी धक्का नहीं पहुँचा बल्कि हर आंदोलन इस विशाल भूखण्ड की सामयिक संस्कृति को योगदान देकर समृद्ध करता रहा। अगर व्यापक ऐतिहासिक परिप्रेक्ष्य में देखा जाए तो शाह अब्दुल लतीफ इस आंदोलन के महत्त्वपूर्ण अंग थे, जिन्होंने इस आन्दोलन से जितना प्राप्त किया, उतना ही उसे समृद्ध भी किया।

इस आंदोलन के सामाजिक एवं मनोवैज्ञानिक प्रभाव आश्चर्यजनक थे अर्थात् इस आंदोलन से समाज के हर व्यक्ति के मन पर गहरा असर हुआ। भारत की जनता, जोकि हर विदेशी आक्रमणकारी को समान रूप से अपना शत्रु मानती थी, उसी जनता के लिए एकता और भाईचारे का संदेश लेकर आया था यह धार्मिक आंदोलन।

किस तरह एक के बाद एक आक्रमणकारी भारत की सामयिक संस्कृति में शामिल होता गया, यह जानना बहुत मनोरंजक होगा। एक विशाल ऐतिहासिक दौर, जिसकी तुलना एक ऐसी भीड़-भरी रेलगाड़ी से की जा सकती है जिसमें हर स्टेशन से नये मुसाफिर अन्दर आना चाहते हो और रेलगाड़ी में बैठे हुए मुसाफिर अपनी पूरी ताकत से उन्हें रोकने का प्रयास करते हों। कई बार मैंने इस रेलगाड़ी को भारतीय संस्कृति की रेलगाड़ी कहा है जो तमाम अवरोधों के बावजूद हमेशा आगे ही बढ़ती रही है। जैसा कि हमेशा होता आया है, पिछले स्टेशन के आक्रमणकारी अगला स्टेशन आने पर प्रतिरोधक बन जाते हैं। आक्रमणकारी मुसाफिर किसी भी उपाय से गाड़ी के भीतर आना चाहते हैं, जिनमें हिंसक तरीका भी शामिल है और इसी तरीके को अधिकतर अपनाया गया। रेलगाड़ी के पुराने मुसाफ़िर पिछले सभी स्टेशनों के आक्रमणकारियों से मिलकर नये आक्रमणकारियों का मुकाबला करने में अपनी सारी ताकत लगा देते हैं। फिर भी हर स्टेशन पर थोड़े-बहुत मुसाफ़िर भारत की सांस्कृतिक रेलगाड़ी में प्रवेश पा ही जाते हैं। इस तरह यह रेलगाड़ी चलती रहती है।

आर्यों के समय से चली आ रही इस रेलगाड़ी में आक्रमणकारियों की सूची काफी लम्बी है, जिनमें फारसी, ग्रीक, बैक्टीरियन पार्थियन, हूण, येऊची, शक, अरब, अफगान और तुर्क जातियाँ शामिल हैं। ये सभी जातियाँ भारतीय सामाजिक ढाँचे में हिस्सेदार रहीं। संश्लेषण की इस प्रक्रिया में अपने को समा लेने की प्रवृत्ति पंजाब की प्रेमगाथाओं में विशेष रूप से मिलती है। उदाहरण के लिए सोहनी-महिवाल, सस्सी-पुन्नु, सेहती-मुराद, मिर्जा-साहिबां और हीर रांझा प्रमुख रूप से लिये जा सकते है। अठारहवीं सदी में वारिसशाह ने हीर की रचना की, जिसमें उन्होंने हिन्दू और मुसलमानों के, समान रूप से पाये जाने वाले त्यौहारों और रिवाज़ों का जिक्र किया है। रांझा मुसलमान होते हुए भी हिन्दू जोगियों की तरह भगवे कपड़े और कानों में कुंडलियाँ पहनता है। वह अपने शरीर पर भभूत लगाता है, भगवान कृष्ण की प्रिय बासुँरी भी बजाता है और शिव-पार्वती के विवाह का उल्लेख भी करता है। वह वैरागी, उदासी, रामानन्दी और अन्य इसी प्रकार के सम्प्रदायों के लोगों से चर्चा करता है। झेलम के किनारे सिद्धों के मेले में शरीक होता है, हिन्दुओं के इकतीस शास्त्रीय रागों में वह पूर्ण रूप से पारंगत है।

हीर को साँप काट लेता है तब आयुवैदिक ओषधियों से उसका इलाज होता है। वह अपनी माँग में सिंदूर भरती है। उसका दहेज हिन्दुओं की तरह बाकायदा उसकी ससुराल में सजाया जाता है। रांझा को भाँग प्रिय है और भाँग का उल्लेख सिर्फ हिन्दू पौराणिक कथाओं में ही मिलता है। रांझा मुसलमान सूफियों की तरह बातें करता है। अत: वारिसशाह के मतानुसार हिन्दू जोगी और मुसलमान सूफी में कोई अन्तर नहीं है, क्योंकि दोनों इस बात पर विश्वास करते है कि ईश्वर मनुष्य के भीतर मौजूद रहता है और पूजा या इबादत की सीढ़ियों द्वारा ही मनुष्य की मुक्ति सम्भव है। मुसलमान योगियों की यह प्रथा कश्मीर में अब भी मिलती है। इन घाटियों में शिव-भक्त मुसलमान देखे जा सकते हैं। यहाँ के सिंधियों में अब भी हिन्दू रिवाज मनाये जाते हैं, स्त्रियाँ माँग में सिंदूर भरती हैं तथा हिन्दू पीरों के मुसलमान नाम और मुसलमान पीरों के हिन्दू नाम आज भी मिलते हैं।

शाह अब्दुल लतीफ का सूफीवाद हिन्दू-मुसलमानों के बीच एक बड़ा सेतु था। शाह लतीफ धार्मिक कर्मकाण्डों, पुजारियों के खोखलेपन और धर्मान्धों के मिथ्या चार के सख़्त खिलाफ थे। वे गंगा को पवित्र मानते थे, जिसमें एक ही बार नहा लेने से आत्मा शुद्ध हो जाती है। ‘सुर रामकली’ की एक बेंत से शाह ने नाथ योगियों के संबंध में कहा-



‘उनके सत्संग का लाभ उठाओ,
इनकी सेवा करो और
अपनी ज्ञान वृद्धि करो।
शीघ्र ही वे
लम्बे प्रवास को निकल जायेंगे,
अपने पीछे



पवित्र गंगा के लिए खूबसूरत दुनिया को छोड़कर।’
शाह साधना की बात करते हैं और सतनाम पुकारते हैं-



‘जगत के मोह से बचो
तुम्हारे दु:ख मिट जायेंगे
दिल में मीम और
जबान पर अलीफ रखो।’




दो सौ वर्ष बाद स्वामी रामतीर्थ ने भी यही शब्द कहे।
शाह अब्दुल लतीफ का जन्म सन् 1689 में सिंध हैदराबाद के हाला तालुका के भारपुर नामक ग्राम में हुआ था। उस समय औरंगजेब का राज्य था। सिंध की घाटियाँ उपजाऊ जमीन और प्राकृतिक सौन्दर्य के लिए प्रसिद्ध हैं। हड़प्पा और मोहन-जोदड़ो के काल से ही इन घाटियों में सोना पैदा होता रहा है। सबसे पहले अरबों ने सिंध को जीता परन्तु यहाँ की उच्च संस्कृति के सामने उन्हें झुकना ही पड़ा। फिर भी सिंध की जनता के लिए इस काल में मुसीबतों का दौर शुरू हो गया था। शाह अब्दुल लतीफ सिंध के इस बुरे समय में पैदा हुए। कोई दस वर्ष बाद एक अंग्रेज यात्री ने जब सिन्धु नदी को पार किया तो इस बेड़े को देखकर सिंध का अमीर चिल्ला उठा- ‘काश, ये सिंधी होता !’ इसके 144 वर्ष बाद सर चार्ल्स नेपियर ने सिंध को लार्ड डलहौजी के प्रदेश में मिला दिया। उसके बाद उसे अपराधबोध महसूस हुआ और उसने अपनी आत्मकथा में ‘मैंने अपराध किया’ शीर्षक अध्याय में इस बात का उल्लेख भी किया है।

शाह अब्दुल लतीफ के जन्म के कुछ ही समय बाद पिता शाह हबीब उसी तालुका के कोठड़ी नामक गाँव में बस गये। इस जगह से चार मील की दूरी पर भींत अर्थात् टीला है जहाँ इस महाकवि ने भिक्षुओं और फकीरों के बीच अपनी जिंदगी के अन्तिम वर्ष बिताए। इस महाकवि के जन्म-स्थान पर आज कोई भी स्मारक नहीं है जबकि भींत का टीला अन्तर्राष्ट्रीय ख्याति प्राप्त है। बाबा फ़रीद के पाटण की तरह यह भी एक तीर्थस्थान है। शाह अब्दुल लतीफ के दादा शाह अब्दुल करीम (सन् 1536-1622) एक श्रेष्ठ कवि थे जिनके पूर्वज हैरात से 1398 में अमीर तिमूर के साथ यहाँ आकर बसे थे।

शाह हबीब के परिवार में जन्मे इस बच्चे के बारे में एक दरवेश ने भविष्यवाणी की थी कि यह बच्चा सिंध की जनता का दु:ख दूर करेगा, प्रेरणादायक काव्य लिखेगा और सिंध के इस मरुस्थल में ध्रुवतारे के समान चमकेगा। एक दन्तकथा के अनुसार, पाँच वर्ष की उम्र में इस बच्चे को नूर मुहम्मद भट्टी के पास पढ़ने के लिए भेजा गया तब उसने अलीफ से आगे कुछ भी पढ़ने से मना कर दिया। अल्लाह का पहला अक्षर भी अलीफ है। गुरु ने बच्चे की आँखों में रोशनी देखी और वे आश्चर्य से कह उठे- ‘यह बच्चा अपने आप ही ज्ञान प्राप्त कर लेगा।’ तब से वह बच्चा किसी भी पाठशाला में नहीं गया।

अपनी किशोरावस्था में वह मरुस्थल के योगियों के बीच घूमता रहा। तभी उसे सिंध के महान संत शाह इनायत के दर्शन हुए। उन्होंने इस युवक लतीफ को दो फूल दिये जो इस नौजवान की चमकती आँखों की नयी दृष्टि के प्रतीक थे। एक ओर किदवन्ती के अनुसार लड़की के पिता मिर्जा मुगल बेग द्वारा विघ्न के कारण उन्हें प्रेम में निष्फलता मिली थी। इसलिए वे सिंध के रेगिस्तान में भटकते रहे। घूमते-घूमते वे मुल्तान पहुँचे जहाँ से वे बलूचिस्तान में मकरान की ओर बढ़े। उन्होंने जैसलमेर, कच्छ और गुजरात में काठियावाड़ की यात्राएँ की। वे हिन्दुओं के पवित्र तीर्थ गिरनार भी गये। वहाँ उन्होंने भगवान कृष्ण की मूर्ति के सम्मुख नृत्य किया। उन्होंने लासोल के हिंगलाज में देवी दुर्गा के दर्शन किये। गोरखनाथ के शिष्यों के साथ उनके घनिष्ठ संबंध थे। उनके साथ शाह ने विस्तृत चर्चाएँ कीं।

हिन्दू संगीतकारों से वे बहुत प्रभावित हुए और उनके साथ उन्होंने काफी समय बिताया। अपने समय के उच्चकोटि के दो संगीतकार अटल और चंचल की उन्होंने बहुत सराहना की। उन संगीतकारों द्वारा प्रस्तुत ‘सुर कल्याण’ और ‘सुर रामकली’ संगीत के रस में भीगे दैवी उद्गार हैं। इन दोनों रचनाओं में शाह के सूफीवाद और संगीत-विषयक विचारों का समावेश है। हकीकत में, संगीत सुनते-सुनते ही शाह ने देहत्याग किया। उनकी कुछ अन्य रचनाएँ मसलन ‘सुर समुद्री’ और ‘सुर श्रीराग’ उनकी समुद्र-यात्राओं से संबंधित हैं।

‘शाह-जो-रीसालो’ की भूमिका में श्री फतेहचन्द वासवानी ने युवावस्था में शाह के असफल प्रेम के बारे में लिखा है। अपने प्रिय को पाने में तुच्छता का अनुभव करने पर दुनिया से बेखबर वह बालू के एक टीले पर दिन-रात बैठा रहता। चरवाहे द्वारा खबर पाने पर उसके पिता उसे घर ले आए। परन्तु घर पहुँचकर भी वे ज्यादा दिन नहीं टिके और वे अपना घर छोड़कर चले गये। कोई तीन साल तक वे हिन्दू साधुओं की संगत में घूमते रहे। यहीं उनका सच्चा व्यावहारिक अध्ययन सम्पन्न हुआ। उनकी यह भ्रमणशक्ति शेख सादी और गुरु नानक के साथ तुलनीय है।

एक दिन अचानक वे अपने पिता के घर फिर लौट आये और वहाँ पर आनन्द और उल्लास का वातावरण छा गया।
सन् 1713 में सईदा बेगम के साथ उनका विवाह हुआ। जिस सामाजिक क्रान्ति की बात वे सोचते थे उसे क्रियान्वित करने के लिए उन्हें एक साथी की ज़रूरत थी जो इस विवाह द्वारा पूरी हुई। सिंध में रूमी के नाम से प्रख्यात शाह अब्दुल लतीफ का सूफीवाद जहाँ एक ओर हिन्दुओं के वेदान्तवाद से प्रभावित है, ठीक वहीं दूसरी ओर बहुत कुछ कुरान के सिद्धान्तों पर आधारित भी है। भक्ति आन्दोलन के एक महत्त्वपूर्ण अंग की तरह शाह अब्दुल लतीफ उस बुरे वक्त में भारत की सामयिक संस्कृति की ज्योति जलाए रखने में सबसे आगे रहे।
उन्होंने मुल्लाओं और मुफ्तियों के दंभ और मिथ्याचार का पर्दाफाश किया। उसी प्रकार मुगल गवर्नर द्वारा हिन्दू तीर्थयात्रियों पर लगाये गये कर का भी विरोध किया। वे कहते- ‘तसबीह या माला फेरने से कोई लाभ नहीं, अच्छे कार्य करने की जरूरत है।’

वे शिया थे पर सुन्नी मुसलमान भी उनका बहुत आदर करते थे। वे मुसलमान थे पर हिन्दू भी उन्हें बहुत चाहते थे और सिख लोग भी उनका सम्मान करते थे। वे गुरुनानक के सच्चे अनुयायी थे। वे एक ऐसे भारतीय थे जो न सिर्फ हिन्दुस्तान में, बल्कि सम्पूर्ण इस्लामी दुनिया में आदर के साथ याद किये जाते हैं।
जोगियों की तरह काले धागों से सिला हुआ लम्बा कुर्ता पहनने वाला यह व्यक्ति उच्चकोटि का कवि है। कहा जाता है कि गांधीजी जब दक्षिण अफ्रीका से लौट रहे थे तो सिंध होते हुए आये और उन्होंने शाह अब्दुल लतीफ के ‘बोल’ से चर्खे की प्रेरणा ली।
उन्होंने सिंधी कविता को अरबी और फारसी की तानाशाही से मुक्त किया और गजल के बदले दोहों को अपनाया। विचारों में प्रखरता, प्रकृति का विम्ब विधान तथा अलंकार-योजना के लिए शाह अब्दुल लतीफ अपने पूर्ववर्ती गुरुनानक और परवर्ती स्वामी रामतीर्थ समान थे। उन्होंने चरवाहों और ऊँट-सवारों द्वारा कही जाने वाली कहावतों और घरेलू मुहावरों का अत्यधिक प्रयोग किया है। वे अपनी वेदना को इस प्रकार व्यक्त करते हैं-



काँटों की तरह
दु:खों ने
मेरे दिल को फाँस लिया है।
जैसे पानी में नमक
वैसे ही प्रेम और मेरा दिल।
नीम की डाली की तरह
उन्होंने मेरे हृदय को उखाड़फेंका।’




शाह अब्दुल लतीफ बुनियादी रूप से सूफी धारा के प्रेम कवि थे- ऐसा प्रेम जिसकी न तो भौगोलिक सीमाएँ हैं, न ऐतिहासिक सीमाएँ हैं और न ही मानसिक सीमाएँ हैं। भगवान कृष्ण के दर्शन को वे द्वारका गये और तीर्थस्थान हिंगलाज की यात्रा भी उन्होंने की। सामयिक भारतीय संस्कृति में विश्वास रखने वाले शाह पूरे राष्ट्र में एक ही भौगोलिक और सांस्कृतिक सत्ता मानते थे। वे ऐसे मुसलमान जोगी थे जो सभी धर्मों की महानता में विश्वास रखते थे। वे हिन्दूवाद और इस्लाम को एक ही सत्य प्रकट करने वाले दो धर्म मानते थे। अपने इस सत्य के लिए वे दृढ़ होकर खड़े रहे। उन्होंने इस बात की बिलकुल चिन्ता नहीं की कि उस सत्य को किसने कहा है और उसकी आवाज किस रूप में आयी है।
डॉ. एच. एम. गुरुबक्षानी के अनुसार- ‘शाह बहुत लम्बे नहीं थे, परन्तु उनका कद सामान्य से अधिक ऊँचा था। उनका वर्ण गेहुआँ होते हुए भी गोरेपन से थोड़ा करीब था। उनका मुख तेजस्वी था और विशेष रूप से वृद्धावस्था में उनके मुख पर असाधारण दीप्ति झलकती थी।’

बौद्ध भिक्षुओं तथा मध्यकालीन सूफियों की तरह भिक्षा के लिए वे हाथ में एक किश्ती जैसा कमंडलु रखते थे। बैठते समय पंखा उनका हमेशा का साथी था। वे कम समय के लिए सोते थे और बहुत कम खाते थे। ऐसा ही सन्त प्रेम और करुणा का काव्य लिख सकता था। ऐसे ही मानस के आधार पर वे ‘सासी और पुन्नो’ तथा ‘नूरी और तेमाची’ की कल्पना कर सके।
18 वीं शताब्दी में अरबी और फारसी आदर्श भाषाएँ मानी जाती थीं। मुगल साम्राज्य के पतन के बावजूद अरबी और फारसी का प्रभुत्व कायम रहा। देशी (प्रादेशिक) भाषाओं में लिखकर उन्हें सम्पन्न बनाने का काम खतरे से खाली नहीं था। उस समय शाह अब्दुल लतीफ ने वही कार्य किया जो मीर तकी मीर ने उर्दू में किया। उनके दोहे, बोल, बेंत अभी भी भक्तिपूर्वक गाये जाते हैं। पवित्र कुरान और ग्रन्थसाहब को गहराई से समझकर शाह अब्दुल लतीफ ने धर्मनिरपेक्ष संस्कृति की ज्योति को सर्वाधिक प्रज्वलित किया। ऐसा ही कार्य बारहवीं शताब्दी में बाबा फरीद और तेरहवीं शताब्दी में निजामुद्दीन औलिया ने किया था। सिंध का यह गीत रेगिस्तान का दिव्य गीत है जो प्रेम पर आधारित अमर कृति ‘शाह जो-रीसालो’ से लिया गया है-



मैं ‘बाबीओं’ की तरह मरूँगा,’
लू के थपेड़ों से।
अगर मैं कभी
अपने प्रिय को भूल जाऊँगा।



शाह के काव्य पर ‘गीता’ का प्रभाव सुस्पष्ट है। वे अपने अनुयायियों से कहते हैं कि किसी बदले की आशा किये बिना ही अपना कार्य किये जाओ। वे कहते हैं कि भगवान हमेशा उन्हीं के पक्ष में होता है जो मेहनत करते हैं। निष्क्रिय और आलसी लोगों की भगवान भी मदद नहीं करता। उस नम्र और दयालु इन्सान ने जितनी कोमलता से गीत लिखे, उससे भी अधिक कोमलता से उन्हें गाया है। उनके अनुसार भगवान के सिवा किसी के भी ऊपर निर्भर होना पाप है। यहाँ भी वे ईश्वर पर निष्क्रिय रूप से निर्भर रहने के विरोधी हैं। वे चाहते है कि सक्रिय रहते हुए ईश्वरीय शक्ति पर भरोसा रखा जाये। पानी में तैरने के लिए आदमी को तैरना आना चाहिए, तभी भगवान उसकी मदद करेगा। शाह के जीवन-दर्शन में सक्रियता और गतिशीलता- ये दो महत्त्वपूर्ण बातें हैं। वर्डस्वर्थ के घायल हृदय को जैसे क्षुद्र फूलों ने मानवता का पाठ पढ़ाया था वैसे ही शाह को पानी में तैरते हुए तुच्छ तिनके ने ईमानदारी का पाठ सिखाया है-




‘‘घास के इन तिनकों की वफा देखिये,
या तो वे डूबते हुए को बचा लेते हैं
या फिर प्रवाह में उसके साथ ही डूब जाते हैं।’’




शाह अब्दुल लतीफ 18 वीं शताब्दी में भारत के बड़े विद्वानों में से थे। उन्होंने पंजाब के बुल्लेशाह और वारिसशाह की तरह भारत की उस सामयिक संस्कृति को समृद्ध किया, जो उन्होंने मध्ययुगीन भक्तों और सूफियों से प्राप्त की थी। अपने पूर्ववर्ती आसीसी के सन्त फ्रांसिस तथा बाद में महात्मा गांधी के समान उन्होंने प्रेम और अहिंसा का संदेश फैलाया। उन्होंने एक ऐसे समाज की कल्पना की जहाँ ताकतवर न्यायी हो और दुर्बल सलामत; ऐसा समाज जो अहिंसा में विश्वास रखता हो और जहाँ सामाजिक और आर्थिक रूप से किसी का शोषण न हो। स्वयं अनपढ़ होते हुए भी उन्होंने सबके लिए शिक्षण आवश्यक माना। अपने युग के अन्याय और असमानताओं के खिलाफ उन्होंने आवाज उठायी। यहाँ तक कि पक्षियों का चित्रण करते समय भी उनकी सहानुभूति गिरे हुए, दुर्बल, घायल पक्षियों की ओर थी। वे शिकारी को चेतावनी देते हैं कि वह इन बेचारे पक्षियों को न मारे क्योंकि ‘काल’ सबसे बड़ा शिकारी है, जो हरेक को मार देगा। ‘‘पक्षी को मत मारों क्योंकि उसे मारने से तुम्हें सिर्फ उसका शरीर मिलेगा, पक्षी नहीं।’’
सन् 1752 में शाह अब्दुल लतीफ की मृत्यु हुई और हैदराबाद में भींत में उनको दफनाया गया। परन्तु वे अमर हैं। सबके हृदय को जीतने वाले को मृत्यु जीत नहीं सकती क्योंकि वह अपनी कीर्ति द्वारा अमर रहता है।
स्विनबर्न के अनुसार उच्चकोटि के काव्य में संगीत का होना अनिवार्य है। इस दृष्टिकोण के आधार पर जाँचने से शाह महान कवि ठहरते हैं।

दुर्गापुरा सरहद में चार चिंकारों का शिकार

बालोतरा (बाड़मेर)। मंडली थानांतर्गत दुर्गापुरा सरहद में चार चिंकारों को शिकारियों ने निर्दयता से मौत के घाट उतार दिया। ग्रामीणों तथा विश्नोई टाइगर फोर्स की सूचना पर वन विभाग तथा पुलिस ने यहां पहुंचकर चार मृत चिंकारों के अवशेष बरामद किए। वन विभाग ने इस मामले में चार आरोपितों को नामजद किया है। इनमें से एक आरोपित को विश्नोई टाइगर फोर्स ने पकड़ कर अधिकारियों के सुपुर्द किया। दुर्गापुरा सरहद में चार चिंकारों का शिकार
मंडली थाना क्षेत्र के दुर्गापुरा गांव की सरहद में कुछ शिकारियों ने लालू राम पुत्र दमाराम के खेत में घात लगाकर चार चिंकारों को मौत के घाट उतारा और इनका गोश्त लेकर फरार हो गए। जबकि अवशेष मौके पर ही छोड़ गए। सूचना मिलने पर मंडली थानाधिकारी महेश श्रीमाली, बालोतरा के रेंजर उगमसिंह चम्पावत मौके पर पहुंचे।

अवशेषों को बरामद कर ग्रामीणों की ओर से पेश रिपोर्ट पर अमाराम पुत्र शंकरराम भील निवासी पतासर, ओमाराम पुत्र खेताराम भील निवासी पतासर, चैनाराम पुत्र खेताराम भील निवासी पताराम, अमानाराम पुत्र नैनाराम मेघवाल निवासी दुर्गापुरा को नामजद कर प्रकरण दर्ज किया है।

विश्नोई टाइगर फोर्स के अध्यक्ष सुनील विश्नोई के अनुसार एक आरोपित अमानाराम मेघवाल को फोर्स के सदस्यों ने दबोचकर वन विभाग व पुलिस को सुपुर्द किया है।

धरना प्रदर्शन की चेतावनी

चार चिंकारों के शिकार को लेकर आक्रोशित विश्नोई समाज और विश्नोइ üटाइगर फोर्स ने रोष जताया है। फोर्स के पदाधिकारियों ने चेतावनी दी है किसभी आरोपितों की गिरफ्तारी नहीं की गई तो धरना प्रदर्शन किया जाएगा।

अवशेष बरामद

चार आरोपितों को नामजद किया गया है। घटनास्थल से चिंकारों की आठ टांगें, तीन सींग आदि बरामद किए गए हैं। मामले की जांच व आरोपितों की तलाश की जा रही है।

उगमसिंह चम्पावत, रेंजर

बुधवार, 9 अक्टूबर 2013

आरटीआई कार्यकर्ता की हत्या, अरूणा रॉय ने की निंदा

जोधपुर। शहर में आर.टी.आई. कार्यकर्ता शम्भूराम विश्नोई की हत्या कर दी गई। सूत्रों ने बताया कि मृतक कार्यकर्ता शम्भूराम विश्नोई जैसला, जोधपुर का रहने वाला था तथा विभिन्न विभागों में बी.पी.एल. परिवारों के लिए राशन, पानी के टांकों का निर्माण, नरेगा से संबंधित जानकारी आदि मांग कर पंचायत के भ्रष्टाचार को उजागर कर रहा था जिसके चलते उसकी हत्या कर दी गई।आरटीआई कार्यकर्ता की हत्या, अरूणा रॉय ने की निंदा
सामाजिक कार्यकर्ता अरूणा रॉय ने राज्य सरकार से दोषी व्यक्तियों को तुरंत गिरफ्तार कर उनके विरूद्ध कार्यवाही करने की मांग की।

बाड़मेर इलेक्ट्रोनिक मशीन मे करंट आने से युवक की मौत

इलेक्ट्रोनिक मशीन मे करंट आने से युवक की मौत

बाड़मेर सदर थाना क्षेत्र के बलदेव नगर मे मारबल पर घिसाई करते हुए इलेक्ट्रोनिक मशीन मे करंट आने से एक युवक घायल हो गया उसे तुरन्त राजकीय चिकित्सालय लाया गया जहां पर चिकित्सको ने उसे मृत घोषित कर दिया। मृतक रिखबदास निवासी बांदरा जो बलदेव नगर स्थित नरेद्र डूडी नामक व्यक्ति के यहां मकान मे घिसाई का काम कर रहा था इलेक्ट्रोनिक मशीन मे अचानक करंट आने से उसकी मौत हो गयी। घटना की जानकारी मिलते ही सदर पुलिस मौके पर पहुंची और शव को अपने कब्जे मे लेकर मोर्चरी मे रखवाया गया और मामला दर्ज कर जांच शुरु कर दी।


बाड़मेर साख्यिकी कार्यालय के छत का प्लास्टर गिरा

बाड़मेर साख्यिकी कार्यालय के छत का प्लास्टर गिरा

बाड़मेर जिला मुख्यालय स्थित साख्यिकी कार्यालय में कुछ दिन पूर्व हुई बारिश से जर्जर हुई छत का प्लास्टर गिरने से कर्मचारियों में अफरातफरी मच गयी। आज सुबह कार्यालय का प्लास्टर गिरने से एक कर्मचारी बाल-बाल बच गया। गनीमत यह रही की यह प्लास्टर फोन पर बात कर रहे कर्मचारी पर नहीं गिरा लेकिन कर्मचारियों की टेबल पूरी तरह से टूट गयी । इससे कर्मचारियों में विभाग के प्रति रोष बना हुआ है। हालांकि कर्मचारी कुछ भी बोलने से बच रहे है। इस कार्यालय की छत पूरी तरह से जर्जर अवस्था में है जिससे कारण कभी भी छत का प्लास्टर गिर सकता है। इसकी मरम्मत के लिए विभाग के उच्च अधिकारियों को कई बार लिखा जा चुका है, लेकिन आज तक विभाग ने मरम्मत के लिए स्वीकृति प्रदान नहीं की है। साख्यिकी कार्यालय में सेकड़ो कर्मचारी काम करते है। इन कमरों की छतों से बारिश के दिनों पानी टपकता रहता है और छत का प्लास्टर नीचे गिर रहा है। इस भवन की मरम्मत वर्षो पहले हुई थी। उसके बाद विभाग ने इस ओर कोई ध्यान नहीं दिया। कर्मचारी भी मौत के साये में बैठते है।की कभी भी बड़ा हादसा हो सकता है