चैत्र माह कृष्ण पक्ष की प्रतिपदा को धुरेड़ी का त्योहार मनाया जाता है। होली का त्योहार देश के कई क्षेत्रों में पांच दिनों तक मनाया जाता है। इसी क्रम में चैत्र माह की कृष्ण पक्ष की पंचमी को रंगपंचमी का त्यौहार भी मनाया जाता है। जहां फाल्गुन पूर्णिमा को होली का धार्मिक महत्व अधिक दिखाई देता है, वहीं धुरेड़ी और रंगपंचमी के दिन सामाजिक और व्यावहारिक रूप से अधिक महत्व रखते हैं।
धुरेड़ी पर मुख्यत: अबीर गुलाल का उपयोग अधिक होता हैं, वही रंगपंचमी का दिन गीली होली के नाम से भी प्रसिद्ध है। इस दिन सारे लोग पुराने कपड़े पहनते हैं और गीला रंग और रंगीन पानी पिचकारियों में भरकर एक-दूसरे पर उड़ाते हैं। अनेक लोग समूह बनाकर ढोल, मंजिरे, तालियों, नृत्य करते हुए एक दूसरे से मिलते हैं। देश के अलग-अलग क्षेत्रों में यह पर्व अलग-अलग लोक पंरपराओं के साथ मनाया जाता है। किंतु भाव एक ही होते हैं - आनंद, प्रेम, उल्लास और उमंग।
इस प्रकार रंगों के यह त्यौहार न केवल पारिवारिक, सामाजिक बंधनों को मजबूत करते हैं बल्कि जातिवाद, सांप्रदायिकता की घृणित मानसिकता से दूर कर अनेकता में एकता की भारतीय संस्कृति और धर्म की नई परिभाषा भी गढ़ते हैं।