मरुस्थल में गूंजने लगी चंग की थाप
बाड़मेर। राजस्थान के बाड़मेर जिले में मदनोत्सव एवं रंगोत्सव की मस्ती छाई हुई है। आधुनिकता की दौड के बावजूद थार मरुस्थल में लोक कला और संस्कृति से जुड़ी परम्पराओं का निर्वहन किया जा रहा है। ग्रामीण अंचलों में होली की धूम मची हैं। ग्रामीण अंचलों में रंगोत्सव की मदमस्ती बरकरार है। गांव की चौपालों पर सूरज ढलते ही ग्रामीण चंग की थाप पर फाग गाते नजर आते है वहीं फागुनी गीत गाती महिलाओं के दल फागोत्सव के प्रति दीवनगी का एहसास कराती है।
सीमावर्ती बाड़मेर जिले के ग्रामीण क्षेत्रों में आज भी लोक परम्पराओं का निर्वहन हो रहा है। रंग और मद के इस त्यौहार के प्रति ग्रामीण अंचलों में दीवानगी बरकरार है। ग्रामीण चौपालों पर ग्रामीणों के दल सामूहिक रुप से चंग की थाप पर फाग गीत गाते नजर आते हैं। जिले में लगातार पड़ रहे अकाल का प्रभाव भी इस उत्सव पर नजर नहीं आ रहा है। होली के धमाल के लिए प्रसिद्ध नावड़ा गांव के बुजुर्ग रुपाराम ने बताया कि अकाल के कारण गांव के युवा रोजगार के लिए गुजरात गये हुये है। अकाल के कारण हमारे गांव में होली का रंग फीका नहीं पड़ता। रोजगार के लिए बाहर गये युवा होली से तीन चार दिन पूर्व पर्व मनाने यहां पहुंच जाते है। हमारे गांव की यहीं परम्परा है जो हम अपने बुजुर्गो के समय से देखते आ रहे और इसकी पालना करते आ रहे है।
होली से एक पखवाड़ा पूर्व गांव में होली का आलम शुरु हो जाता है। चौपाल पर शाम होते होते गांव के बुजुर्ग, जवान और बच्चे एकत्रित हो जाते है, चंग बजाने वालों की थाप पर ग्रामीण सामूहिक रुप से फाग गाते हैं वहीं गांव की महिलायें रात्रि में एक जगह एकत्रित होकर बारी-बारी से घरों के आगे फाग गाती है, जो महिलायें इस दल में नहीं आती उस महिला के घर के आगे जाकर महिला दल अश्लील फाग गाती है जिसे सुनकर अंदर बैठी महिला शरमा कर इसमे शामिल हो जाती है। महिलाओं द्वारा दो दल बनाकर लूर फाग गाया जाता है। लूर में महिलाओं के दोनों दल गीतों के माध्यम से आपस में सवाल जवाब करते है। लूर थार की प्राचीन परंपरा हैं। लुप्त हो रही लूर परम्परा अब सनावड़ा तथा सिवाना क्षेत्र के ग्रामीण अंचलों तक ही सिमट कर रह गई है।
फाग गीतों के साथ साथ डांडिया गेर नृत्य का भी आयोजन होता है। भारी भरकम घुंघुरु पांव में बांध कर हाथों में आठ दस मीटर लंबे डांडियल करोल की थाप और थाली की टंकार पर जब गेरियें नृत्य करते है तो लोक संगीत की छटा माटी की सौंधी में घुल जाती है। सनावड़ा में होली के दूसरे दिन बड़े स्तर पर गेर नृत्यों का आयोजन होता है जिसमें आसवास के गांवों के कई दल हिस्सा लेते है। ग्रामीण क्षेत्रों में होली का रंग जमने लगा है। शहरी क्षेत्र में भी इस बार गेरियों के दल नजर आ रहे है। जो शहर की गलियों में चंग की थाप पर फाग गाते नजर आते है।
सीमावर्ती बाड़मेर जिले के ग्रामीण क्षेत्रों में आज भी लोक परम्पराओं का निर्वहन हो रहा है। रंग और मद के इस त्यौहार के प्रति ग्रामीण अंचलों में दीवानगी बरकरार है। ग्रामीण चौपालों पर ग्रामीणों के दल सामूहिक रुप से चंग की थाप पर फाग गीत गाते नजर आते हैं। जिले में लगातार पड़ रहे अकाल का प्रभाव भी इस उत्सव पर नजर नहीं आ रहा है। होली के धमाल के लिए प्रसिद्ध नावड़ा गांव के बुजुर्ग रुपाराम ने बताया कि अकाल के कारण गांव के युवा रोजगार के लिए गुजरात गये हुये है। अकाल के कारण हमारे गांव में होली का रंग फीका नहीं पड़ता। रोजगार के लिए बाहर गये युवा होली से तीन चार दिन पूर्व पर्व मनाने यहां पहुंच जाते है। हमारे गांव की यहीं परम्परा है जो हम अपने बुजुर्गो के समय से देखते आ रहे और इसकी पालना करते आ रहे है।
होली से एक पखवाड़ा पूर्व गांव में होली का आलम शुरु हो जाता है। चौपाल पर शाम होते होते गांव के बुजुर्ग, जवान और बच्चे एकत्रित हो जाते है, चंग बजाने वालों की थाप पर ग्रामीण सामूहिक रुप से फाग गाते हैं वहीं गांव की महिलायें रात्रि में एक जगह एकत्रित होकर बारी-बारी से घरों के आगे फाग गाती है, जो महिलायें इस दल में नहीं आती उस महिला के घर के आगे जाकर महिला दल अश्लील फाग गाती है जिसे सुनकर अंदर बैठी महिला शरमा कर इसमे शामिल हो जाती है। महिलाओं द्वारा दो दल बनाकर लूर फाग गाया जाता है। लूर में महिलाओं के दोनों दल गीतों के माध्यम से आपस में सवाल जवाब करते है। लूर थार की प्राचीन परंपरा हैं। लुप्त हो रही लूर परम्परा अब सनावड़ा तथा सिवाना क्षेत्र के ग्रामीण अंचलों तक ही सिमट कर रह गई है।
फाग गीतों के साथ साथ डांडिया गेर नृत्य का भी आयोजन होता है। भारी भरकम घुंघुरु पांव में बांध कर हाथों में आठ दस मीटर लंबे डांडियल करोल की थाप और थाली की टंकार पर जब गेरियें नृत्य करते है तो लोक संगीत की छटा माटी की सौंधी में घुल जाती है। सनावड़ा में होली के दूसरे दिन बड़े स्तर पर गेर नृत्यों का आयोजन होता है जिसमें आसवास के गांवों के कई दल हिस्सा लेते है। ग्रामीण क्षेत्रों में होली का रंग जमने लगा है। शहरी क्षेत्र में भी इस बार गेरियों के दल नजर आ रहे है। जो शहर की गलियों में चंग की थाप पर फाग गाते नजर आते है।
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