सोमवार, 5 मार्च 2012

तुझे किन होरी खिलाई...बावरी बन आई...




तुझे किन होरी खिलाई...बावरी बन आई...
 

गेरियों की ग्यारस पर राज परिवार के सदस्यों ने लिया फाग में हिस्सा, बाद में विभिन्न समाजों की गेरें पूर्व महारावल के निवास पहुंची




जैसलमेर
वर्षों पुरानी परंपराओं को निभाने में जैसलमेरवासी सबसे आगे हैं। पारंपरिक होली उत्सव को भी यहां के लोग धूमधाम से परंपरा के अनुसार ही मनाते हैं। रविवार को फाल्गुनी ग्यारस के दिन लक्ष्मीनाथ के मंदिर में बड़ी तादाद में लोग एकत्र हुए और फाग महोत्सव में भाग लिया। परंपरा के अनुसार राजपरिवार के सदस्य विक्रमसिंह एवं दुष्यंतसिंह भी मंदिर परिसर में पहुंचे और लक्ष्मीनाथजी के साथ होली खेली। इसके बाद ब्राहमण समाज के विभिन्न धड़ों की अलग-अलग गेरे निकाली गई। लक्ष्मीनाथजी का मंदिर परिसर सोमवार को महिलाओं, पुरुषों और बच्चों से भरा हुआ था। मंदिर में भगवान की मूर्ति के सम्मुख कई युवा फाग के गीत गा रहे थे।

हर कोई रंगा था होली के गीतों में

रविवार को लक्ष्मीनाथजी के मंदिर में फाग खेलने का सिलसिला दोपहर एक बजे शुरू हुआ। एक तरफ फाग के गीत गाए जा रहे थे, दूसरी ओर लक्ष्मीनाथजी के गुलाल लगाई जा रही थी और बाद में एक-दूसरे में गुलाल छिड़ककर माहौल को रंग-बिरंगा बना दिया गया। मंदिर का दृश्य देखने के लिए कई विदेशी पर्यटक भी उपस्थित थे। युवा गा रहे थे - खेलिये महाराज... रंग भर हो, हो हो रंग होळी रे म्हाराज हो रंग होळी रे म्हारा राज खेलिये महाराज रंग भर हो.... जैसे फाग गीतों का सिलसिला काफी देर तक चलता रहा। मंदिर परिसर में मस्ती का आलम छाया हुआ था। इस अवसर पर फाग के रसिया स्त्री-पुरुष भी उपस्थित थे।



गेरियों ने घर-घर घूम गाया 'हालरा'



पुष्करणा समाज की और से निकाली पारंपरिक गेरे



जैसलमेर
दुर्ग स्थित लक्ष्मीनाथ मंदिर में फागोत्सव की धूम के बाद पुष्करणा समाज के सभी धड़ों की गेरे रविवार से प्रारंभ हुई। ग्यारस से ही गेरियें विभिन्न गली मौहल्लों में घूम-घूम कर अपने-अपने समाज के घरों में दस्तक दे रहे है। हालरो हुलरावों ऐं सैंयां.... थोरी बोली प्यारी लागे सहित कई तरह के श्लील ख्याल गाते गेहरिए सुर में सुर मिला कर गेर की रंगत को गहरा कर रहे है।

सदियों पुरानी परंपरा है गेर

फाल्गुन सुदी एकादशी के दिन लक्ष्मीनाथजी के मंदिर में नियमित फाग खेलने के पश्चात लक्खुबीरा की गेर पूर्व महारावल के निवास की ओर प्रस्थान करने से पूर्व लक्ष्मीनाथजी का हालरा गाती है। मंदिर पैलेस में भी महारावल व राज परिवार के अन्य सदस्यों के यहां भी हालरा गाया जाता है। तत्पश्चात लक्खुबीरा, नऊव्यासों की गेर, बिरतेस्वरियों की गेर व बिस्सा केवलियों की गेर अपने-अपने धड़ों में बंट कर अपने भाईपे में हालरा गाती है।

ऐसी होती है गेर

परंपरा अनुसार तबला, झांझ, मंजीरा, मृदंग एवं अन्य वाद्य यंत्रों से सुसज्जित पारंपरिक वेशभूषा धारण किए हुए गेहरिए की गेर बारी-बारी से अपने-अपने भाइयों के घर के आगे पहुंचती है। न्यात के चौधरी की अगुवाई में होळी की गेर लेकर आए हुए गेहरिए भाइयों का स्वागत परिवार के मुखिया द्वारा अबीर-गुलाल छिड़ककर किया जाता है। इस अवसर पर अब कहीं-कहीं गेहरियों का स्वागत शीतल जल, चाय-नाश्ते और फगुवा-प्रसादी के साथ किया जाता है। इस अवसर पर गेहरिए जिस घर के आगे गेर गाई जाती है उसके पुरुष सदस्यों का नाम ले लेकर उनके सफल एवं संपन्न गृहस्थ जीवन की कामना करते हैं। गेर से प्राप्त सहयोग राशि और बधाई की वस्तुओं के संग्रहण से चारों धड़ों द्वारा गड़सीसर की पाल पर होलिका दहन से एक दिन पूर्व की रात्रि में पृथक-पृथक रूप से गोठ की जाती है।

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