मूंगा
उपरत्न लाल हकीक, लाल आनेक्स, तामड़ा, लाल गोमेद।मूगा एक जैविक रत्न है। यह समुद्र से निकाला जाता है। अपनी रासायनिक संरचना में मूंगा कैल्षियम कार्बोनेट
का रुप होता है। मूंगा मंगल ग्रह का रत्न है। अर्थात् मूंगा धारण करने से मंगल ग्रह से सम्बंधित सभी दोष दूर हो जाते है। मूंगा धारण करने से रक्त साफ होता है तथा रक्त से संबंधित सभी दोष दूर हो जाते है। मंूगा मेष तथा वृष्चिक राषि वालों के भाग्य को जगाता है। मूंगा धारण करने से मान-स्वाभिमान में बृद्धि होती है। तथा मूंगा धारण करने वाले पर भूत-प्रेत तथा जादू-टोने का असर नहीं होता। मूंगा धारण करने वाले की व्यापार या नौकरी में उन्नति होती है। मूंगा कम से कम सवा रती का या इससे ऊपर का पहनना चाहिए। मूंगा 5, 7, 9, 11 रती का शुभ होता है। मूंगे को सोने या तांबे में पहनना अच्छा माना जाता है। विशेषता तान्त्रिक प्रयोगों में भी मूंगे का अपना विशेष स्थान है। मूंगे के अतिरिक्त किसी अन्य रत्नीय पत्थर का उपयोग तांत्रिक प्रयोगों में नहीं होता। तंत्र प्रयोगों में प्रयोग की जाने वाली मूर्तियाँ यदि मूंगे की बनायी जायें तो श्रेष्ठ होता है। विशेष रूप से गणेश-सिद्धि तथा लक्ष्मी-साधना के लिए प्रयोग की जाने वाली मूर्तियां तो मूंगे की ही सर्वश्रेष्ठ होती हैं।
हीरा
उपरत्न सफेद हकीक, ओपल, स्फटिक, सफेद पुखराज, जरकनहीरा कोयले से ही बनता है। रायासनिक विष्लेषण के अनुसार हीरा कार्बन का ठोस रुप है। हीरे को रत्नों का सम्राट भी कहा जाता है। हीरा शुक्र ग्रह का रत्न है। हीरा धारण करने से शुक्र ग्रह संबंधित सभी दोष दूर हो जाते है। जिस व्यक्ति की कुझडली में शुक्र ग्रह कमजोर होता है अथवा जिनकी राषि वृष या तुला होती है। वह हीरा धारण करके दुर्भाग्य को सौभाग्य में बदल सकते है।
हीरा सबसे सुन्दर रत्न है जो व्यक्ति हीरे को धारण करता है। उसके चेहरे पर तेज रहता है। हीरा धारण करने से धन-धान्य में वृद्धि होती है। दाम्पत्य जीवन सुखमय व्यतीत होता है। मानसिक दुबर्लता का अन्त होता है। हीरा धारण करने से भूत-प्रेत तथा जादू टोने का असर नहीं होता। स्वास्थ्य ठीक रहता है। हीरा के औषधि गुण निद्रानाश, वातरोग, चर्मरोग, मूलव्याध, जलोदर, पाचनशक्ति आदि रोगों में यह रत्न अत्यन्त गुणकारी है। आयुवेदाचार्यो के अनुसार हीरा के भष्म को भी अनेक बीमारियों के लिए उपयोग में लाया जाता है। दैवीय शक्ति हीरा में किसी भी कार्य निर्विरोध सम्पन्न होने के लिए देवीय शक्ति समाहित होती है। अतः इस रत्न को धारण करने से घर में सभी प्रकार की शान्ती एवं सुलभता का निर्माण होता है समाज में मान-सम्मान की प्रतिष्ठा प्रदान होती है तथा धारक को शक्ति प्रदान करके चुस्त-दुस्त रखने में सहायता प्रदान करता है यह रत्न किसी प्रकार से भी हानि उत्पन्न नहीं करता इस रत्न को स्त्री, पुरुष, बालवृद्ध प्रत्येक लोग धारण कर सकते हैं। विशेषतः यह रत्न वृषभ राशि के लोगों का रत्न है।
पन्ना
उपरत्न हरा हकीक, आनेक्स, मरगज, फिरोजापन्ना एक खनिज रत्न है। यह हरे रंग का चमकदार पारदर्षक बहुमूल्य महा रत्न है। इसे बुद्ध ग्रह का रत्न कहते है।
इसलिए पन्ना पहनने से बुद्ध ग्रह के समस्त दोष दूर हो जाते है। पन्ना वैवाहिक जीवन में मधुरता, संतान की प्राप्ति तथा धन वृद्धि करने वाला महारत्न है। जिस व्यक्ति की कुण्डली में बुद्ध ग्रह की स्थिति ठीक न हो तथा लिजनकी राषि कन्या हो तो उन्हें पन्ना धारण करना चाहिए। यदि विद्यार्थी पन्ना पहने तो बुद्धि, तीव्र होती है। सरस्वती की कृपा बनी रहती है। पन्ना आधरित व्यक्ति के विरुद्ध कोई षड़यन्त्र सफल नहीं होता है। पन्ना पहनने से शरीर में बल एवं वीर्य की वृद्धि होती है। इसे धारण करने से मन एकाग्र होता है। पन्ना व्यक्ति को संयमित करता है तथा मानसिक शांति प्रदान करता है। बुद्ध ग्रह का संबंध वाणी से होता है। पन्ना, दमा, श्वास हकलाना आदि परेशानियों में अति लाभकारी होता है। जिन व्यक्तियों के पास धन नही रुकता उन्हें पन्ना अवश्य धारण करना चाहिए।
मोती
उपरत्न दूधिया हकीक, सफेद मूंगा, चन्द्रकांत मणि, सफेद पुखराज।मोती को भाषाभेद के अनुसार अनेक नामों से सम्बोधित किया जाता है। यथा, संस्कृत में मुक्ता, मौक्तिक, शुक्तिज, इन्द्र-रत्न, हिंन्दी पंजाबी में मोती अँग्रेजी में पर्ल तथा उर्दू फारसी में मुखारीद कहा जाता है।
मोती को पहनने से बल, बुद्धि, ज्ञान एवं सौन्दर्य में वृद्धि होती है। तथा धन, यष सम्मान एवं सभी प्रकार की मनोकामनाएं पूरी होती है। मन शांत रहता है। मोती धारण करने से हृदय रोग, नेत्र रोग, गठिया, अस्तमा इत्यादि बीमारियों से बचाव होता है। मोती गर्म स्वभाव वाले व्यक्तियों के लिए अच्छा माना जाता है। इसको धारण करने से गुस्सा शांत रहता है। मोतियों की माला लड़कियों का आत्मविष्वास तथा सुन्दरता को बढ़ाती है। पुत्री की शादी में मोतियों की माला देना बहुत ही शुभ माना जाता है। मोती में लगभग 90 प्रतिषत चूना होता है। इसलिए कैल्षियम की कमी के कारण उत्पन्न रोग में मोती चमत्कारी ढ़ग से फायदा पहुंचाता है।
मणिक
उपरत्न स्टार माणिक, रतवा हकीक, तामड़ा लाल तुरमली।भगवान सूर्य को ग्रहराज कहा जाता है इन्हीं के प्रताप से मानव जीवन का विकास होता है कुण्डली में सूर्य की क्षीण स्थिति को शक्तिपूर्ण बनाने के लिए सूर्यरत्न माणिक्य धारण के लिए परामर्श दिया जाता है।
माणिक्य एक अत्यधिक मूल्यवान तथा शोभायुक्त रत्न है। माणिक्य को स्थान भेद के अनुसार अनेक नामों से पुकारा जाता है। माणिक्य के सबसे अधिक नाम संस्कृत भाषा में मिलते हैं। संस्कृत में इसे कुरविन्द, पदुमराग, वसुरत्न, लोहित, माणिक्य, शोणरत्न, रविरत्न शोणोपल आदि विभिन्न नामों से पुकारा जाता है। हिन्दी में चुन्नी, माणिक, बंगला में माणिक्य, मराठी में माणिक, तेलगू में माणिक्य फारसी में याकूत, अरबी में लाल बदख्शाँ तथा अंग्रेजी में रुबी नाम से पुकारा जाता है। माणिक एक खनित रत्न है। माणिक की खाने बर्मा, श्रीलंका, काबुल, हिमालय पर्वत कष्मीर मे पायी जाती है। अपनी रासायनिक संरचना के रुप में माणिक्य एल्युमीनियम आक्साइड का रुप होता है। यह पारदर्षी तथा अपारदर्षी दोनों तरह का होता है। माणिक सूर्य ग्रह का रत्न है। अंतः माणिक को धारण करने से सूर्य ग्रह से संबंधित समस्त दोष दूर हो जाते है। सिंह राषि वालों के लिए माणिक पहनना अति शुभ माना जाता है। जन्म कुण्डली में जिन व्यक्तियों का सूर्य ग्रह कमजोर स्थिति में हो उन्हें माणिक अवश्य पहनना चाहिए। माणिक धारण करने से यष, कीर्ति, धन, सम्पति, सुख-षांति प्राप्त होती है। यह वंष वृद्धिकारक भी माना जाता है। इसके प्रयोग से भय, व्याधि, सुख, क्लेष, चिन्ता आदि का नाष होता है। जिन व्यक्तियों के जीवन में स्थिरता ना हो तथा कोई काम निष्चित ना हो यह उनके जीवन की अनिष्चिताओं को दूर कर उज्जवल भविष्य का निर्माण करता है। इसे पहनने से व्यक्ति के जीवन में ठहराव आता है। कई प्रकार की बीमारियों से रक्षा होती है।
पुखराज
उपरत्न पीला हकीक, सुनहैला, पीला गोमेद, बैरुजयह एक मूल्यवान खनिज रत्न है। इसे गुरु रत्न भी कहा जाता है। यानि इसका स्वामी बृहस्पति है। पुखराज हीरा और माणिक्य के बाद सबसे कठोर रत्न है। अपने रासायनिक विष्लेषण में इसमें एल्युमीनियम हाइड्रोविसम और क्लोरिन जैसे तत्व पाए जाते है।
यह कई रंगों का होता है लेकिन भारत में प्राय पीला तथा सफेद ही ज्यादा प्रयोग में लाया जाता है। यह कई देषों में पाया जाता है। लेकिन श्रीलंका तथा ब्राजील का सबसे अच्छा माना जाता है। पुखराज गुरु ग्रह का प्रतिनिधि रत्न है। पुखराज पहनने से गुरु ग्रह से संबंधित समस्त दोष दूर हो जाते है। धनु राषि वालो को पुखराज पहनने से लाभ होता है। पुखराज पहनने से बल, आयु, स्वास्थ्य, यष, कीर्ति व मानसिक शांति प्राप्त होती है। इसको धारण करने से व्यापार तथा व्यवसाय में वृद्धि होती है। पुखराज को बृहस्पति जी का प्रतीक माना गया है। बृहस्पति जी को देव गुरु का वरदान प्राप्त है। इसलिए इन्हें गुरु भी कहा जाता है। इसलिए इसे पढ़ाई लिखाई के क्षेत्र में उन्नति के लिए पहनाया जाता है। यदि किसी कन्या के विवाह में विलम्ब हो रहा हो तो पुखराज धारण करने से समस्या का हल जल्द हो जाता है। पुखराज मानसिक शांति प्रदान करके मान प्रतिष्ठा को श्रेयस्कर व दीर्घायु प्रदान करता है। इसे व्यापारी स्टोन भी कहते है। क्योंकिं यह व्यापार करने वालो के लिए लाभदायक माना जाता है। पुखराज का स्वामी गुरु होने के कारण इसे सभी लोग धारण कर सकते है। पुखराज धारक के रुके हुए कार्यो को पुनः शुरु करवाता है। मित्रता को बल प्रदान करता है। पुखराज चर्म रोग नाषक, बल-वीर्य की वृद्धि करने वाला होता है। जो लोग पुखराज ना खरीद सके वह स्ट्रिीन (सुनैला) धारण कर सकते है।
नीलम
उपरत्न कटैला, काला हकीक, काला स्टार, लाजवृतयह एक मूल्यवान खनिज पत्थर है। नीलम, नीला, हल्का नीला, आसमानी या बैंगनी रंग का होता है। यह भारी पारदर्षी पत्थर है। लेकिन कुछ स्थानों पर मिलने वाले नीलम गहरे रंग के होते है था इनमें पारदर्षिता कम होती है। नीलम के अन्दर चीर-फाड़, दाग-धब्बे, धुंधलापन तथा जाला भी पाया जाता है।
जितना दाग कम पाया जाता है। नीलम उतना महंगा हो जाता है। बिना दाग के नीलम की कीमत बहुत अधिक होती है। नीलम बर्मा, श्रीलंका, बैंकाक, भारत, आस्ट्रेलिया तथा अन्य कई देशों में पाया जाता है। भारत में कष्मीर तथा उत्तराखण्ड के पहाड़ों में नीलम की खाने है। नीलम शनि ग्रह का प्रतिनिधि रत्न है, अतंः नीलम पहनने से शनि संबंधित समस्त दोष दूर हो जाते है। मकर तथा कुम्भ राषि वालो को नीलम पहनना अति शुभकारी होता है। नीलम के बारे में कहा जाता है कि यह अपना प्रभाव शीघ्र दिखाता है। नीलम का प्रभाव शुभ तथा अषुभ दोनों प्रकार का होता है। इसलिए नीलम अंगूठी में धारण करने से पहले बाजू में कपड़ें से बांध कर दो दिन तक रखना चाहिए। इसके अलावा नीलम का उपरत्न भी नीलम धारण करने से पहले कुछ समय के लिए धारण करना चाहिए। रात को सोते समय यदि शुभ स्वप्न आए या शुभ समाचार मिले तो नीलम आपके लिए शुभ माना जाएगा। यदि विपरीत परिस्थितियॅा बने तो नीलम अशुभ माना जाएगा। नीलम यदि अनुकूल पड़े तो धन-धान्य, सुख सम्पति, मान,सम्मान, यश गौरव, आय वृद्धि, बल तथा वंष की वृद्धि होती है। नीलम के बारे में कहा जाता है। यदि अनुकूलन पड़े तो भिखारी को भी रातों रात राजा बना देता है।
गोमेद
यह एक खनिज पत्थर है। अपनी रासायनिक संरचना में यह जिर्कोनियम का सिलिकेट रुप माना जाता है। इसकी उत्पति सायनाइट की षिलाओं के अन्दर होती है। यह एक पारदर्षी रत्न है। इसके अन्दर जाला धुंधलापन अथवा कट के निषान अवश्य पाये जाते है। लेकिन जितना साफ गोमेद होता है उतना उत्तम माना जाता है। गोमेद काफी सस्ता रत्न होता है। लेकिन अपने आकर्षक रंग व गुणों के कारण इसे नवरत्नों में सम्मानित स्थान प्राप्त है। गोमेद को राहू ग्रह का प्रतिनिधि रत्न माना जाता है।
इसलिए राहु ग्रह से संबंधित समस्त दोष तथा राहु दषा जनित समस्या दुष्प्रभाव गोमेद धारण करने से दूर हो जाते है। अंतः दैत्य ग्रह राहु की दशा को ठीक करने के लिए गोमेद धारण करना चाहिए। राहु ग्रह के प्रकोप से मानसिक तनाव बढ़ता है। छोटी-छोटी बातों पर क्रोध आता है। कार्यकुषलता में निर्णायक कमी आती हे। निर्णय लेने की क्षमता क्षीण हो जाती है तथा योजनाएं असफल हो जाती है। ऐसे व्यक्तियों को गोमेद अवश्य धारण करना चाहिए। गोमेद धारण करने वाले के समक्ष शत्रु टिक नहीं पाता इससे शत्रुओं का भय समाप्त हो जाता है। जिन बच्चों का मन पढ़ाई में ना लगता हो तथा बहुत शरारतें करते हो। उन्हें गोमेद पहनाने से लाभ पहुंचता है। इसको धारण करने से सुख सम्पति में भी वृद्धि होती है। गोमेद रत्न यद्यपि कई रंगों में उपलब्ध होता हैं लेकिन ज्योतिषीय दृष्टिकोण से राहु रत्न गोमेद वही कहलाता है, जो गो-मूत्र के रंग वाला हो। यह अत्यधिक प्रचलित राहु रत्न स्थान तथा भाषा भेद के अनुसार अपने-अपने क्षेत्र में विभिन्न नामों से पुकारा जाता है। गोमेद को देवभाषा संस्कृत में तृणवर, तपोमणि, राहुरत्न, स्वर भानु, पीतरत्न, गोमेद, रत्नगोमेदक, हिन्दी में गोमेद, गुजराती में गोमूत्रजंबु, मराठी में गोमेदमणि, उर्दू, फारसी में जरकुनिया अथवा जारगुन, बंगाली में लोहितमणि, अरबी में हजारयमनि, बर्मा में गोमोक, चीनी में पीसी तथा आंग्ल भाषा में अगेट नाम से जाना जाता है।
लहसुनिया
लहसुनिया का स्वामी केतु ग्रह होता है। जिसके ऊपर केतु ग्रह का प्रकोप हो उसे लहसुनिया धारण करना चाहिए। इसको धारण करने से पुत्र सुख और सम्पति प्राप्त होती है। धारक की शत्रु, अपमानए तथा जंगली जानवरों से रक्षा होती है। लहसुनिया को अंग्रेजी में कैटस आई कहते है। इसमें सफेद धारियॅा पाई जाती है। जिनकी संख्या आमतौर पर दो तीन, या चार होती है। लेकिन जिस लहसुनिया में ढाई धारियॅा हो वह अच्छा माना जाता है। यह धारियॅा धुएं के समान दिखाई देती है।
यह दिमागी परेषानियां शारीरिक दुर्बलता, दुख, दरिद्रता, भूत आदि सू छुटकारा दिलाता है। लहसुनिया यदि अनुकूल हो तो यह धन दौलत में तीव्र गति से वृद्धि करता है। आकस्मित दुर्घटना, गुप्त शत्रु से भी रक्षा करता है। इसे धारण करने से रात्रि में भयानक स्वप्न नहीं आते है। असको लाकेट में पहनने से दमे से तथा श्वास नली की सूजन से आराम मिलता है।
क्या संयुक्त रत्न पहन कर उत्तम लाभ पाया जा सकता हें ???
रत्न कोई भी हो अपने आपमें प्रभावशाली होता है। हीरा शुक्र को अनुकूल बनाने के लिए होता है तो नीलम शनि को। इसी प्रकार माणिक रत्न सूर्य के प्रभाव को कई गुना बड़ा कर उत्तम फलदायी होता है। मोती जहाँ मन को शांति प्रदान करता है तो मूँगा उष्णता को प्रदान करता है। इसके पहनने से साहस में वृद्धि होती है।
पुखराज रत्न सभी रत्नों का राजा है। इसे पहनने वाला प्रतिष्ठा पाता है व उच्च पद तक आसीन हो सकता है। अपनी योग्यतानुसार रत्न पहनने से कार्य में आने वाली बाधाओं को दूर कर राह आसान बना देते हैं। यूँ तो रत्न अधिकांश अलग-अलग व अलग-अलग धातुओं में पहने जाते है। लेकिन मेरे 20 वर्षों के अनुभव से संयुक्त रत्न पहनवाकर कईयों को व्यापार में उन्नति, नौकरी में पदोन्नति, राजनीति में सफलता, कोर्ट-कचहरी में सफलता, शत्रु नाश, कर्ज से मुक्ति, वैवाहिक तालमेल में बाधा को दूर कर अनुकूल बनाना, संतान कष्ट, विद्या में रुकावटें, विदेश, आर्थिक उन्नति आदि में सफलता दिलाई।
जन्मपत्रिका के आधार पर व ग्रहों की स्थितिनुसार संयुक्त रत्न पहन कर उत्तम लाभ पाया जा सकता है। संयुक्त रत्न में माणिक-पन्ना, पुखराज-माणिक, मोती-पुखराज, मोती-मूँगा, मूँगा-माणिक, मूँगा-पुखराज, पन्ना-नीलम, नीलम-हीरा, हीरा-पन्ना, माणिक-पुखराज-मूँगा, माणिक-पन्ना, मूँगा भी पहना जा सकता है।
क्या नहीं पहना जा सकता इसे भी जान लेना आवश्यक है। लहसुनियाँ-हीरा, मूँगा-नीलम, नीलम-माणिक। संयुक्त रत्न तभी पहने जाते है जब जन्मपत्रिका में देख व अनुकूल ग्रहों की अवस्था हो या दशा-अन्तर्दशा चल रही है। ऐसी स्थिति में श्रेष्ठ फलदायी होते हैं।
कभी-कभी व्यापार नहीं चल रहा हो, अच्छी सफलता नहीं मिल रही हो तो चार रत्न यथा पुखराज-मूँगा, माणिक व पन्ना पहनें तो सफलता मिलने लग जाती है। रत्नों की सफलता तभी मिलती है जब शुभ मुहूर्त में उसी के नक्षत्र में बने हो या जो ग्रह प्रभाव में तेज हो उसके नक्षत्र में बने हो व पहनने का भी उसी ग्रह के नक्षत्र में हो तब लाभ भी कई गुना बढ़ जाता है।
मेरे अनुभव से संयुक्त रत्न पहनवाकर कईयों को व्यापार में उन्नति, नौकरी में पदोन्नति, राजनीति में सफलता, कोर्ट-कचहरी में सफलता, शत्रु नाश, कर्ज से मुक्ति, वैवाहिक तालमेल आदि में सफलता दिलाई। गार्नेट सूर्य का उपरत्न माना गया है। इसे माणिक की जगह पहना जाता है। यह सूर्य का उपरत्न होने के साथ बहुत प्रभावशाली भी है। इसे हिन्दी में याकूब और रक्तमणि के नाम से भी जाना जाता।
यह लाल रंग का कठोर होता है। अक्सर सस्ती घड़ियों में माणिक की जगह इस्तेमाल किया जाता है लेकिन कीमती घड़ियों में इसका इस्तेमाल नहीं होता बल्कि असली माणिक का प्रयोग करते हैं। यह रत्न सस्ता होने के साथ-साथ बहुत आसानी से उपलब्ध हो जाता है।
इस रत्न को अनामिका अँगुली में ताँबे में बनवाकर शुक्ल पक्ष के रविवार को प्रातः सवा दस बजे पहना जाता है। इसके पहनने से सौभाग्य में वृद्धि, स्वास्थ्य में लाभ, मान-सम्मान की प्राप्ति होती है। यात्रादि में सफलता दिलाता है, मानसिक चिन्ता दूर होती है। मन में शंका-कुशंका को भी दूर भगाता है। इसके पहनने से डरावने सपने नहीं आते।
कहा जाता है कि लाल रंग का गार्नेट बुखार में फायदा पहुँचाता है व पीले रंग का गार्नेट पीलिया रोग में फायदा पहुँचाता है। इसके पहनने से बिजली गिरने का असर नहीं होता एवं यात्रा में किसी प्रकार की हानि, जोखिम से भी रक्षा करता है, ऐसी प्रचीन मान्यता है।
यह रत्न खतरों को भाँप कर अपना मूल स्वरूप खो देता है। कभी कष्ट आने पर टूट भी जाता है। जिन्हें माणिक नहीं पहनना हो वे इसे अजमाकर देख सकते है। क्योंकि ये जेब पर भारी नहीं पड़ता। |