सिकंदर शैख़||
हमारे देश के राजा महाराजों, नवाबों, बादशाहों तथा बड़े बड़े सेठ साहूकारों ने अपनी आन और शान के मुताबिक़ कई इमारतें बनवाई थी. पर सोने की नगरी जैसलमेर की एक वेश्या ने क्या गजब की इमारत बनवाई कि वह अमर हो गयी. उस वेश्या का नाम था टीलों. टीलों ने जैसलमेर के किले के पास गडसिसर तालाब के किनारे एक प्रोल बनवाई इस प्रोल या पोल का बहुत ही दिलचस्प इतिहास है और यह इमारती कला के लिहाज से भी बहुत खूबसूरत है. आज टीलों कि यही अनमोल प्रोल सैलानियों का ख़ास आकर्षण बनी हुई है. जब उगते हुए सूरज कि किरणे इस पोल पर पड़ती है तो बहुत ही सुनहरा नज़ारा पेश करती है. जिसे देखने के लिए देसी और विदेशी सैलानी अपने कैमरे लिए तैयार रहते हैं. भले ही टीलों एक वेश्या थी पर उस के दिल में कला के लिए बेहद प्यार था. वह एक होशियार औरत और रूप की मल्लिका थी.
कहा जाता है कि उस का रंगरूप कमल के सरीखा था. जब वह मुस्कुराती थी तो मानो उस के होंठों से शहद टपकता था. उस कि जवानी पर आसपास के सेठ साहूकार ही नहीं बल्कि उस समय के जैसलमेर राज्य के दीवान भी लट्टू थे. टीलों ने बड़ी चतुराई से देह का धंधा किया और खूब धन कमाया. जैसलमेर कि वेश्याएं बहुत ही धनवान थी और अपनी कमाई का कुछ लोगों कि भलाई में लगाना अपनी शान समझती थी. जैसलमेर में ऐसी बहुत सी इमारतें है जिसे वेश्याओं ने बनवाया था. लेकिन टीलों कि ये प्रोल देश दुनिया के नक्शों पर अमिट छाप छोडती है.
कहानी तब शुरू होती है जब वेश्या टीलों कि जवानी ढलने लगी तो उस के मन में जनहित कि भावना उमड़ पड़ी. उस ने आम लोगों के लिए एक प्रोल बनाने कि सोची. वह भी गडसिसर तालाब के मुख्य मार्ग पर. ऐसी जगह पर एक वेश्या प्रोल बनवाए ये हंसी मजाक का खेल नहीं था. पर एक रात उस वेश्या ने दीवान से मदद कि अर्ज़ कर ही दी. टीलों के देह जाल में फंसे दीवान ने बिना हिचक मंज़ूरी दे दी. क्योंकि उस समय के महारावल शालिवाहन सिंह अभी बालक ही थे. इसलिए राज्य का सारा काम काज दीवान ही करता था. फिर क्या? टीलों ने सेंकडों मजदूर और कारीगर एक साथ लगा दिए. काम दिनरात चलने लगा.
कुछ ही दिनों में टीलों कि कलाप्रियता व सौंदर्य और प्रेम की मिसाल एक प्रोल के रूप में सजीव हो उठी. टीलों को क्या मालूम था कि उसकी प्रोल नगरवासियों के लिए अपमान बन जायेगी. कारण- जो भी गडसिसर तालाब से पानी लेने जाता, उसे वेश्या कि प्रोल के नीचे से हो कर जाना व आना पड़ता था. लोगों ने उस पर एतराज जताया पर टीलों के मोह में फंसे दीवान ने कोई ध्यान नहीं दिया. फिर महाराज शालिवाहन सिंह कुछ बड़े हुए. उन्होंने प्रजा कि आवाज़ सुन ली और हुक्म दिया कि वेश्या के कलंक को धो दिया जाए. टीलों पर भारी मुसीबत आ पड़ी. पर वह भी कम नहीं थी. उसने भी अपनी जवानी शाही लोगों को लुटाई थी. उसने अपने चहेतों की सलाह एवं सहयोग से रातों रात प्रोल पर सत्यनारायण का मंदिर बनवा दिया. अब भला भगवान् के मदिर को गिराने कि हिम्मत किस में थी. प्रोल बच गयी. फिर तो टीलों ने अपने नाम का पत्थर ( शिलालेख) भी लगवा दिया. टीलों कि प्रोल के स्थापत्य सौंदर्य की बात निराली है. तीन मंजिल की बनी इस प्रोल में तीन खुले रास्ते है. एक बड़ा और दो छोटे. ऊपर महल में जाने के लिए दोनों और घुमावदार सीढियां बनी हुई है. तथा सब से ऊपर कि मंजिल के दोनों कोनों पर गोल छतरियां व बीच में मंदिर है.