- बाड़मेर के मगरा गांव के लाल ने जीता है एशियाड ओलंपिक में घुड़सवारी में मेडल,बाड़मेर पहुंचे भव्य स्वागत
बाड़मेर. जिले के मगरा गांव ही नहीं एशियाड ओलंपिक जकार्ता में रजत पदक के साथ देश का दिल जीतकर पहली बार जितेन्द्रसिंह रविवार को बाड़मेर पहुंचा। यहां रेल्वे स्टेशन पर स्थानीय युवाओं व नेताओं ने स्वागत किया। जितेन्द्र के स्वागत को लेकर परिवार ही नहीं पूरा थार पलक पांवड़े बिछाने को तैयार है। बाड़मेर पहुंचने पर जितेन्द्र के स्वागत के लिए शहर में वाहन रैली निकाली गई। यहां शहरवासियों ने जमकर स्वागत किया।
जितेन्द्रसिंह ने पत्रकारों से बातचीत करते हुए कहा कि मुझे आज बहुत खुशी है। यह कामयाबी इसी मिट्टी से शुरू हुई है। परिवार में घोड़े थे और बचपन से घुड़सवारी का शौक था। मामा गुलाबसिंह ने मुझे तराशा। आठवीं में मैरठ चला गया और वहां पढ़ाई के साथ घुड़सवारी का अभ्यास जारी रहा। फिर आर्मी ज्वाइन कर ली। यहां प्रशिक्षण से खुद को बेहतर बनाता रहा। जूनियर स्तर पर कई अवार्ड जीते। सीनियर वर्ग में पिछले ओलंपिक में रिजर्व में था। इस बार मैदान में उतरने का अवसर मिला और देश के लिए मेडल जीत आए, इससे बड़ी खुशी क्या हो सकती है।
मजबूत है थार के लोग
जितेन्द्र का मानना है कि थार के लोग विपरित परिस्थितियों में जीते हैं। इनके जीवन में संघर्ष और मेहनत बहुत ज्यादा है। इसी कारण थार के लोगों का खेलों में भविष्य उज्ज्वल है। अनुशासन के साथ खेल प्रशिक्षण दिया जाए तो यहां की प्रतिभाएं काफी आगे बढ़ सकती है।
परिवार में खुशी का माहौल
जितेन्द्रसिंह के परिवार में खुशी का माहौल है। मां नजरकंवर और पिता पहाड़सिंह सहित पूरा परिवार उनके आने के इंतजार में है। गांव में उत्साह का माहौल है कि देश में गांव का नाम रोशनकर जितेन्द्र लौट रहा है। जितेन्द्र के पिता पहाड़सिंह बताते है कि घर में जितेन्द्र के आने की खुशी है। इस बार एक साल बाद आ रहा है और देश का नाम रोशन करके तो खुशी है। जितेन्द्र चार भाइयों में दूसरे नंबर पर है। बड़े भाई मनोहरसिंह दुबई में घुड़सवारी करते है। दो छोटे भाइयों में एक होमगार्ड और एक आर्मी में नर्सिंग सर्विस में है।
बाड़मेर. जिले के मगरा गांव ही नहीं एशियाड ओलंपिक जकार्ता में रजत पदक के साथ देश का दिल जीतकर पहली बार जितेन्द्रसिंह रविवार को बाड़मेर पहुंचा। यहां रेल्वे स्टेशन पर स्थानीय युवाओं व नेताओं ने स्वागत किया। जितेन्द्र के स्वागत को लेकर परिवार ही नहीं पूरा थार पलक पांवड़े बिछाने को तैयार है। बाड़मेर पहुंचने पर जितेन्द्र के स्वागत के लिए शहर में वाहन रैली निकाली गई। यहां शहरवासियों ने जमकर स्वागत किया।
जितेन्द्रसिंह ने पत्रकारों से बातचीत करते हुए कहा कि मुझे आज बहुत खुशी है। यह कामयाबी इसी मिट्टी से शुरू हुई है। परिवार में घोड़े थे और बचपन से घुड़सवारी का शौक था। मामा गुलाबसिंह ने मुझे तराशा। आठवीं में मैरठ चला गया और वहां पढ़ाई के साथ घुड़सवारी का अभ्यास जारी रहा। फिर आर्मी ज्वाइन कर ली। यहां प्रशिक्षण से खुद को बेहतर बनाता रहा। जूनियर स्तर पर कई अवार्ड जीते। सीनियर वर्ग में पिछले ओलंपिक में रिजर्व में था। इस बार मैदान में उतरने का अवसर मिला और देश के लिए मेडल जीत आए, इससे बड़ी खुशी क्या हो सकती है।
मजबूत है थार के लोग
जितेन्द्र का मानना है कि थार के लोग विपरित परिस्थितियों में जीते हैं। इनके जीवन में संघर्ष और मेहनत बहुत ज्यादा है। इसी कारण थार के लोगों का खेलों में भविष्य उज्ज्वल है। अनुशासन के साथ खेल प्रशिक्षण दिया जाए तो यहां की प्रतिभाएं काफी आगे बढ़ सकती है।
परिवार में खुशी का माहौल
जितेन्द्रसिंह के परिवार में खुशी का माहौल है। मां नजरकंवर और पिता पहाड़सिंह सहित पूरा परिवार उनके आने के इंतजार में है। गांव में उत्साह का माहौल है कि देश में गांव का नाम रोशनकर जितेन्द्र लौट रहा है। जितेन्द्र के पिता पहाड़सिंह बताते है कि घर में जितेन्द्र के आने की खुशी है। इस बार एक साल बाद आ रहा है और देश का नाम रोशन करके तो खुशी है। जितेन्द्र चार भाइयों में दूसरे नंबर पर है। बड़े भाई मनोहरसिंह दुबई में घुड़सवारी करते है। दो छोटे भाइयों में एक होमगार्ड और एक आर्मी में नर्सिंग सर्विस में है।