(रिटायर्ड बिग्रेडियर और लोंगेवाल वॉर के हीरो कुलदीप सिंह चांदपुरी
चंडीगढ़. 1971 में भारत-पाकिस्तान युद्ध में पाकिस्तानी सेना की हार और भारतीय सेना की यादगार जीत में लोगोंवाल में तैनात 23 पंजाब रेजिमेंट की 120 जवानों की टुकड़ी की बहादुरी को आज भी हम नहीं भूले हैं। मैं इस टुकड़ी से जुड़ा था तो मेरे लिए यह टुकड़ी और इसका हर जवान दिल के बहुत ही करीब है।
लोंगेवाल की यह जंग काग़जों में 'फोर्टिन डेज ऑफ वॉर' के नाम से जानी जाती है। यह वॉर तीन दिसंबर को शुरू होकर 16 दिसंबर को भारतीय सेना की की जीत के साथ अंजाम पर पहुंची। 1971 की यह जीत हिंदुस्तानी फौज के लिए गौरव की बात थी। हमने इस युद्ध में दुश्मनों को करारी हार दी।
आर्मी, नेवी और एयरफोर्स में कमाल का तालमेल था। फौज को पहले ही पता लगा चुका था कि आने वाले दिनों में पाकिस्तान के साथ तनाव बढ़ जाएगा। बांगलादेश में हालात खराब हो रहे थे। पाकिस्तान की फौज ने आम लोगों को लूटना और उन पर अत्याचार करना शुरू कर दिया था। वहां स्थानीय स्तर पर जागृति आ गई थी। खासकर 70 के आखिर में लग रहा था कि कुछ न कुछ होना है। कोई नहीं चाहता है कि जंग हो। हिंदुस्तान शांति चाहता था। बड़े देश भी यही यही कह रहे थे कि पड़़ोसी के साथ युद्ध नहीं होना चाहिए।
पाकिस्तान ने शुरू की लड़ाई
तीन दिसंबर को शाम साढ़े सात बजे के करीब कश्मीर से लेकर गुजरात तक सभी एयरपोर्टों पर पाकिस्तान ने बमबारी कर दी। इस बीच रेडियो पर स्पेशल न्यूज बुलेटिन आया। खबर में भारत की ओर से जंग का ऐलान कर दिया गया। वेस्टर्न सेक्टर (पश्चिमी सीमा) में शांति थी। लेकिन ईस्टर्न सेक्टर (पूर्वी सीमा) में हालात खराब हो गए। बॉर्डर पर बीएसएफ तैनात थी, लेकिन धीरे-धीरे फौज ने आगे बढऩा शुरू कर दिया। बीएसएफ अक्तूबर के मध्य में सीमा से हटने लगी और फौज आगे बढऩे लगी। अक्तूबर के आखिरी हफ़्ते में फौज ने अपनी तैयारी कर ली कि क्या-क्या टारगेट होंगे। दुश्मन कहां से आ सकता है। हमें क्या क्या करना है। हम पहले से तैयार थे। 'मुक्तिवाहनी' हमें बताती थी कि कहां क्या-क्या हो रहा है।
बड़ी तैयारी से आए थे पाकिस्तानी
लोंगेवाल में उस वक्त बतौर मेजर मेरे पास 120 जवानों की कमान थी। हम तो मिलिट्रीमैन थे, फिर भी देश के इस हिस्से में शांति के बावजूद पूरी तरह आश्वस्त होकर नहीं बैठ सकते थे। हमारा अंदेशा 3 दिसंबर की रात साढ़े सात बजे के आसपास उस वक्त सही साबित हुआ जब पाकिस्तानी एयरफोर्स ने कश्मीर से लेकर गुजरात तक सभी एयरपोर्ट पर हमला बोल दिया। हम लोंगेवाल पोस्ट पर थे लेकिन हमारा काम डिफेंसिव था। यानी हमें हमला नहीं करना था, बल्कि अपनी पोस्ट की हिफाजत करते हुए दुश्मनों को रोकना था। 3 दिसंबर की रात लोंगेवाल पोस्ट पर कुछ नहीं हुआ। वैसे भी हम भारत-पाकिस्तान सीमा से 16 किलोमीटर अंदर थे। तो हमें आगे पाकिस्तानी सेना के किसी मूवमेंट का अंदाजा नही था और अपनी पोस्ट छोडक़र हम आगे बढ़ नहीं सकते थे। लेकिन पाक सेना भारतीय सीमा पार करते हुए 4 दिसंबर की रात हमारे सामने खड़ी थी। पाक सेना बहावलपुर से गब्बर रेती होते हुए भारतीय सीमा में दाखिल होकर लोंगेवाल पहुंच चुकी थी। पाक सेना का हमला इतना सुनियोजित था कि पाकिस्तान सेना के 3 हजार जवान और 45 टैंक हमें घेर चुके थे। यहां पर अब हमें फैसला लेना था कि या तो लड़कर बहादुरी के साथ मरें या फिर हथियार डालकर बुजदिली की मौत। लिहाजा, मेरे जवानों ने किसी भी सूरत में हथियार डालने की बजाय लडऩे का फैसला लिया।
पूरी रात हमने पाकिस्तानी सेना को यहीं रोके रखा। सुबह साढ़े सात बजे भारतीय वायुसेना ने हमारे साथ मोर्चा संभाल लिया। इसके बाद पाकिस्तानी फौज को संभलने का मौका नहीं मिला। दोपहर तक पाकिस्तानी खेमे में भगदड़ मच चुकी थी। पाक फौज पीछे हट रही थी लेकिन हमने एयरफोर्स के साथ मिलकर पाक सेना पर हमला जारी रखा। भारतीय सीमा से खदेडऩे तक पाक सेना के सामने आए 45 टैंकों के अलावा पीछे बैकअप के तौर पर रखे गए 13 टैंक भी निशाने पर आ चुके थे।
पाकिस्तान को झेलना पड़ा बड़ा नुकसान
एयरफोर्स के लिए रेगिस्तान में टैंकों को निशाना बनाना आसान नहीं था। लेकिन जैसे ही पाकिस्तानी सेना के टैंक मूवमेंट करते तो एयरफोर्स उन्हें निशाना बनाकर बर्बाद कर रही थी। हमारी टुकड़ी जमीनी हमला करते हुए पाक सेना को पीछे खदेड़ रही थी। आखिर में शाम तक हमने एयरफोर्स के साथ मिलकर लोंगेवाल पोस्ट पर जीत दर्ज की। हमने भी इस युद्ध में 23 पंजाब रेजिमेंट के जवानों को खोया। हमारी पेट्रोलिंग में मदद करने वाले ऊंटों की मौत हुई और जीपें बर्बाद हो गई। लेकिन 1971 में भारत पाक युद्ध में पाक सेना के लिए लोंगेवाल में हुई लड़ाई बहुत बड़ा नुकसान थी। हमने पाकिस्तान के 58 में से 52 टैंक बर्बाद कर दिए। बाकी बचे 6 टैंक कब्जे में ले लिए।
इस युद्ध की यादें मेरे जहन में आज भी ताजा हैं, लेकिन साथ ही याद है इस युद्ध में मेरे 120 जवानों की 3 हजार पाक फौजियों को शिकस्त देने की बहादुरी का हर किस्सा। मेरी इस टुकड़ी ने पाक सेना के लोंगेवाल में ब्रेकफास्ट, जैसलमेर में लंच और जोधपुर में डिनर के प्लान को मिट्टी में मिला दिया। पाक सेना का यह डाइनिंग प्लान पाक सैनिकों से ही हमें पता चला था। 1971 के भारत-पाक युद्ध की जीत की याद में 'विजय दिवस' पर मैं अपने 120 जवानों की बहादुरी को सलाम करता हूं।
अपने बारे में
मैं बचपन से ही फौज में जाना चाहता था। लेकिन मैं अकेला बेटा थो तो मां को मेरी यह ख्वाहिश पंसद नहीं आई। लेकिन पिताजी ने मेरी मां को समझाया और 1962 में मैंने सेना में कमीशन हासिल की।
जिंदगी में अनुशासन को निहायत जरूरी मानता हूं। जिंदगी में कभी भी शराब को मुंह से नहीं लगाया। अरसा पहले नॉन वेज भी छोड़ दिया। जिंदगी में सादगी और अनुशासन बहुत ही जरूरी है। यहीं मैं आने वाली पीढ़ी को बताना चाहता हूं।