माक्र्सवादी कम्यूनिस्ट पार्टी यूनाईडेट का संभागीय कार्यकर्ता सम्मेलन संपन्न जैसलमेर भारत की माक्र्सवादी कम्युनिस्ट पार्टी (यूनाईटेड) का संभागीय कार्यकर्ता सम्मेलन मलका प्रोल के बाहर स्थित पुष्करणा वृद्धाश्रम में रविवार को संपन्न हुआ। जोधपुर संभाग के जोधपुर, पाली, जैतारण, जैसलमेर, बाड़मेर, गोटन से आए कार्यकर्ताओं ने हिस्सा लिया। पोलित ब्यूरो सदस्य कामरेड कुलदीप सिंह ने झंडारोहण की रस्म अदा की। सम्मेलन का विधिवत् उद्घाटन कामरेड वी.बी. चेरियन ने किया। सम्मेलन को पोलित ब्यूरो सदस्य कुलदीप सिंह, वी.बी. चेरियन, गोपीकिशन, एम.वी. रेड्डी, एम. राजन, किरणजीतसिंह शेखो, मोहम्मद घोस, विजयशंकर झा, सहित अनेक वक्ताओं ने संंबोधित किया और कार्यकर्ताओं का मार्गदर्शन किया। वक्ताओं ने आमजन तथा विशेषकर श्रमिक वर्ग के समक्ष विद्यमान समस्याओं को विविध एवं बहुआयामी बताया। उन्होंने कहा कि श्रमिक वर्ग की परिस्थिति न्यून वेतन, महंगाई, भयानक बेरोजगारी, भारतीय मुद्रा के अवमूल्यन आदि से बिगड़ती ही जा रही है। वक्ताओं ने कहा कि विश्व के समक्ष मौजूद आर्थिक मंदी का नतीजा बेरोजगारी और अर्थव्यवस्था में अस्थिरता के रूप में सामने आया है। वक्ताओं ने कहा कि सरकार की विफलता लगभग स्पष्ट हो चुकी है। एक के बाद एक स्कैंडल व घोटाले और ऊंचे पदों पर भ्रष्टाचार के खुलासे ने सरकार की साख खत्म कर दी है। जीडीपी विकास दर 5.3 प्रतिशत के निचे स्तर पर पहुंच गई है। उद्योग, कृषि और यहां तक कि सेवा क्षेत्र भी अपने निचले स्तर की ओर डुबकी ले गया है। वर्षो बीत जाने के बाद यहां तक कि दस पंचवर्षीय योजनाएं बीत जाने पर भी आर्थिक विकास की प्रक्रिया के नतीजे शर्मनाक ढंग से दौलत का केन्द्रीकरण कर रहे है। वक्ताओं ने कहा कि वामपंथी शक्तियों को प्रभावशाली बनाकर ही देश और मेहनतकश जनता को बचाया जा सकता है। इसके बिना वर्तमान सरमायेदारी व्यवस्था का विकल्प संभव नहीं है। सम्मेलन आरंभ होने से पूर्व विभिन्न संगठनों के पदाधिकारियों ने विभिन्न प्रांतों से आए प्रतिनिधियों का माल्र्यापण कर अभिनंदन किया। इस सम्मेलन में महिलाओं ने भी बढ चढ़कर शिरकत की। गगनभेदी इंकलाबी नारों के साथ लालझण्डों, बैनरों व लाल टोपियों पहने हुए प्रतिनिधियों से सुसज्जित सम्मेलन था। सम्मेलन में अध्यक्ष मंडल का निर्माण किया गया। कॉ बृजकिशोर व कॉ गंगासिंह मेड़तिया, दयालराम गुर्जर, दुर्गाराम को अध्यक्ष मंडल का सदस्य चुना गया। |
सोमवार, 17 दिसंबर 2012
भ्रष्टाचार के खुलासों से सरकार की साख गिरी'
रविवार, 16 दिसंबर 2012
इंडिया गेट पर युद्घ स्मारक को लेकर ऐ के एंटोनी और शीला दिक्षित आमने सामने
इंडिया गेट पर नहीं कहीं और बनाएं युद्घ स्मारक: शीला दीक्षित
इंडिया गेट पर युद्घ स्मारक को लेकर ऐ के एंटोनी और शीला दिक्षित आमने सामने
नई दिल्ली। इंडिया गेट के पास राष्ट्रीय युद्ध स्मारक बनाए जाने को लेकर विवाद खड़ा हो गया है। दिल्ली की मुख्यमंत्री शीला दीक्षित ने जहां इसपर अपनी आपत्ति जताई है वहीं रक्षा मंत्री ने इंडिया गेट को स्मारक के लिए सही जगह क़रार दिया है। स्मारक बनाने से जुड़ा प्रस्ताव जल्द ही केंद्रीय कैबिनेट की मंजूरी के लिए भेजा जाएगा।
दरअसल इंडिया गेट दिल्ली के लोगों के लिए सैर-सपाटे और घूमने की सबसे पसंदीदा जगह है। अब यहां पर प्रस्तावित राष्ट्रीय युद्ध स्मारक के निर्माण के सवाल पर केंद्र और दिल्ली सरकार आमने-सामने आ गए हैं। रक्षा मंत्री ए के एंटनी ने मुख्यमंत्री शीला दीक्षित की आपत्तियों को खारिज करते हुए इंडिया गेट को मेमोरियल के लिए सही जगह करार दिया है।
प्रस्ताव के तहत इंडिया गेट के करीब स्वतंत्रता के बाद शहीद हुए सैनिकों की याद में एक राष्ट्रीय स्मारक का निर्माण किया जाना है। स्मारक की दीवारों पर तमाम शहीदों के नाम लिखे जाएंगे। करगिल युद्ध के बाद से ही इस स्मारक के निर्माण की चर्चा होती रही है। लेकिन मुख्यमंत्री शीला दीक्षित पहले ही रक्षा मंत्री ए के एंटनी, गृह मंत्री सुशील कुमार शिंदे और शहरी विकास मंत्री कमलनाथ को चिट्ठी लिखकर इंडिया गेट पर इस स्मारक के निर्माण का विरोध कर चुकी हैं। दो दिनों पहले लिखे अपने पत्र में उन्होंने कहा था कि 'यदि यहां पर राष्ट्रीय युद्ध स्मारक बनता है तो इस इलाके में सेना के सुरक्षा के इंतजाम के चलते आम लोगों के लिए इंडिया गेट पहुंचना मुश्किल होगा। ऐसे में बेहतर यह होगा कि दिल्ली में ही कोई दूसरी जगह तलाश कर स्मारक का निर्माण किया जाए।'
वैसे एंटनी के रुख से साफ है कि केंद्र सरकार ने शीला की चि्टठी को दरकिनार कर दिया है। सूत्रों की मानें तो मेमोरियल से जुड़े प्रस्ताव को मंज़ूरी के लिए जल्द ही केंद्रीय कैबिनेट के सामने लाया जाएगा।
दरअसल इंडिया गेट दिल्ली के लोगों के लिए सैर-सपाटे और घूमने की सबसे पसंदीदा जगह है। अब यहां पर प्रस्तावित राष्ट्रीय युद्ध स्मारक के निर्माण के सवाल पर केंद्र और दिल्ली सरकार आमने-सामने आ गए हैं। रक्षा मंत्री ए के एंटनी ने मुख्यमंत्री शीला दीक्षित की आपत्तियों को खारिज करते हुए इंडिया गेट को मेमोरियल के लिए सही जगह करार दिया है।
वैसे एंटनी के रुख से साफ है कि केंद्र सरकार ने शीला की चि्टठी को दरकिनार कर दिया है। सूत्रों की मानें तो मेमोरियल से जुड़े प्रस्ताव को मंज़ूरी के लिए जल्द ही केंद्रीय कैबिनेट के सामने लाया जाएगा।
पाकिस्तान को छाछरो देने का मलाल
पाकिस्तान को छाछरो देने का मलाल
जयपुर। आज से ठीक 41 साल पहले 16 दिसम्बर 1971 को शाम चार बजे पाकिस्तान के जनरल नियाजी ने 93 हजार सैनिकों के साथ भारतीय सेना के समक्ष समर्पण किया था। इस युद्ध में जयपुर के 12 जवानों समेत राजस्थान के 307 सपूतों ने शहादत दी थी। दो मोर्चो पर लड़े गए इस युद्ध में राजस्थान की सीमा पर जयपुर के ब्रिगेडियर भवानी सिंह के नेतृत्व में छाछरो इलाके को जीता गया था। पाकिस्तान की हुकूमत से परेशान वहां के हिन्दुओं ने तब राहत की सांस ली थी, लेकिन बाद में शिमला समझौते में यह जमीन लौटा दी गई। 50 हजार हिन्दू परिवार रातों-रात भारत आने को मजबूर हो गए। उन लोगों ने कई माह तक तम्बुओं में रात बिताई। छाछरो आज भी उन्हें भुलाए नहीं भूल रहा है।
कहां है छाछरो
छाछरो पाकिस्तान के सिंध प्रांत के थारपारकर जिले में तहसील मुख्यालय है। यह बाड़मेर से करीब 160 किलोमीटर की दूरी पर है और गडरा रोड बॉर्डर से मात्र 70 किलोमीटर दूर है।
घर का नाम रखा छाछरो हाउस
जयपुर में गोपालपुरा मोड़ स्थित बसंत बहार कॉलोनी में रह रहे घनश्याम मोहता ने छाछरो की याद में घर का नाम छाछरो हाउस रखा है। 1977 में इंदिरा गांधी जब जयपुर आईं तो मोहता ने पुस्तक लिखी, "एक लाख हाथ इंदिरा गांधी के साथ"। उन्होंने लिखा था कि हम 50 हजार शरणार्थी भी भारत के विकास में योगदान देना चाहते हैं। वहीं, प्रभुलाल महेश्वरी का कहना है कि यहां सब कुछ मिला, लेकिन जन्मभूमि से जबरदस्ती नाता टूटने की टीस है।
टंगेल पुल पर कब्जा करने की थी जिम्मेदारी
वह क्षण हम कभी नहीं भूल पाएंगे जब ढाका कंटोनमेंट के इंचार्ज जमशेद खां ने उन्हीं की धरती पर भारतीय सेना के जनरल नागरा के सामने अपनी पिस्टल रख दी थी। हर तरफ हमारी सेना के सामने पाकिस्तानी नतमस्तक हो रहे थे।... यह कहना है 1971 युद्ध के वीर चक्र विजेता जयपुर के ब्रिगेडियर वी.के. सारदा का। तब वे मेजर थे और पैराशूट रेजीमेंट के कम्पनी कमांडर थे। बकौल बिग्रेडियर सारदा उन्हें ढाका के पास टंगेल पुल पर कब्जा करने की जिम्मेदारी सौंपी गई थी, जिससे भारतीय फौज ढाका में घुस सके। 11 दिसम्बर 1971 को पैराशूट रेजीमेंट टंगेल में उतरी। वहां पाकिस्तानियों ने कई पुल नष्ट कर दिए थे। दोनों तरफ से गोलीबारी के बीच उन्होंने पाकिस्तान के 200 सैनिकों को बंधक बना लिया था और 70-80 को मार गिराया था। इसके बाद कदम पीछे नहीं हटे और अगले दिन भारतीय सेना ढाका में थी और 16 दिसम्बर को इतिहास रचा गया। ढाका के लोगों ने हमारी सेनाओं को अभूतपूर्व स्वागत किया।
जयपुर के शहीद
राइफलमैन- मोहन सिंह, सांभर
लांसनायक- बहादुर सिंह, मोलाहेड़ा
राइफलमैन- सूरजभान, पावटा
गनर- घीसाराम, कारौली कोटपूतली
गनर- मेहताब सिंह, मोलाहेड़ा
सिपाही- हुकमाराम जाट, सांभर
सवार- गजसिंह, खेजरोली
लांसनायक- मदन सिंह, खेजरोली
राइफलमैन- सवाई सिंह, बामनवास, कोटपूतली
सूबेदार- बद्रीसिंह, करीरी
राइफलमैन- रामसिंह, राजनौता
जयपुर। आज से ठीक 41 साल पहले 16 दिसम्बर 1971 को शाम चार बजे पाकिस्तान के जनरल नियाजी ने 93 हजार सैनिकों के साथ भारतीय सेना के समक्ष समर्पण किया था। इस युद्ध में जयपुर के 12 जवानों समेत राजस्थान के 307 सपूतों ने शहादत दी थी। दो मोर्चो पर लड़े गए इस युद्ध में राजस्थान की सीमा पर जयपुर के ब्रिगेडियर भवानी सिंह के नेतृत्व में छाछरो इलाके को जीता गया था। पाकिस्तान की हुकूमत से परेशान वहां के हिन्दुओं ने तब राहत की सांस ली थी, लेकिन बाद में शिमला समझौते में यह जमीन लौटा दी गई। 50 हजार हिन्दू परिवार रातों-रात भारत आने को मजबूर हो गए। उन लोगों ने कई माह तक तम्बुओं में रात बिताई। छाछरो आज भी उन्हें भुलाए नहीं भूल रहा है।
कहां है छाछरो
छाछरो पाकिस्तान के सिंध प्रांत के थारपारकर जिले में तहसील मुख्यालय है। यह बाड़मेर से करीब 160 किलोमीटर की दूरी पर है और गडरा रोड बॉर्डर से मात्र 70 किलोमीटर दूर है।
घर का नाम रखा छाछरो हाउस
जयपुर में गोपालपुरा मोड़ स्थित बसंत बहार कॉलोनी में रह रहे घनश्याम मोहता ने छाछरो की याद में घर का नाम छाछरो हाउस रखा है। 1977 में इंदिरा गांधी जब जयपुर आईं तो मोहता ने पुस्तक लिखी, "एक लाख हाथ इंदिरा गांधी के साथ"। उन्होंने लिखा था कि हम 50 हजार शरणार्थी भी भारत के विकास में योगदान देना चाहते हैं। वहीं, प्रभुलाल महेश्वरी का कहना है कि यहां सब कुछ मिला, लेकिन जन्मभूमि से जबरदस्ती नाता टूटने की टीस है।
टंगेल पुल पर कब्जा करने की थी जिम्मेदारी
वह क्षण हम कभी नहीं भूल पाएंगे जब ढाका कंटोनमेंट के इंचार्ज जमशेद खां ने उन्हीं की धरती पर भारतीय सेना के जनरल नागरा के सामने अपनी पिस्टल रख दी थी। हर तरफ हमारी सेना के सामने पाकिस्तानी नतमस्तक हो रहे थे।... यह कहना है 1971 युद्ध के वीर चक्र विजेता जयपुर के ब्रिगेडियर वी.के. सारदा का। तब वे मेजर थे और पैराशूट रेजीमेंट के कम्पनी कमांडर थे। बकौल बिग्रेडियर सारदा उन्हें ढाका के पास टंगेल पुल पर कब्जा करने की जिम्मेदारी सौंपी गई थी, जिससे भारतीय फौज ढाका में घुस सके। 11 दिसम्बर 1971 को पैराशूट रेजीमेंट टंगेल में उतरी। वहां पाकिस्तानियों ने कई पुल नष्ट कर दिए थे। दोनों तरफ से गोलीबारी के बीच उन्होंने पाकिस्तान के 200 सैनिकों को बंधक बना लिया था और 70-80 को मार गिराया था। इसके बाद कदम पीछे नहीं हटे और अगले दिन भारतीय सेना ढाका में थी और 16 दिसम्बर को इतिहास रचा गया। ढाका के लोगों ने हमारी सेनाओं को अभूतपूर्व स्वागत किया।
जयपुर के शहीद
राइफलमैन- मोहन सिंह, सांभर
लांसनायक- बहादुर सिंह, मोलाहेड़ा
राइफलमैन- सूरजभान, पावटा
गनर- घीसाराम, कारौली कोटपूतली
गनर- मेहताब सिंह, मोलाहेड़ा
सिपाही- हुकमाराम जाट, सांभर
सवार- गजसिंह, खेजरोली
लांसनायक- मदन सिंह, खेजरोली
राइफलमैन- सवाई सिंह, बामनवास, कोटपूतली
सूबेदार- बद्रीसिंह, करीरी
राइफलमैन- रामसिंह, राजनौता
गीता बसरा नहीं करेगी हरभजन से शादी
गीता बसरा नहीं करेगी हरभजन से शादी
मुंबई। क्रिकेटर हरभजन सिंह के सितारे इन दिनों गर्दिश में चल रहे हैं। एक तो खराब फॉर्म के कारण उन्हें टीम इण्डिया में जगह नहीं मिल पा रही। दूसरी ओर गर्लफ्रेंड ने भी साथ छोड़ दिया है। बॉलीवुड एक्ट्रेस गीता बसरा ने साफ कर दिया है कि वह हरभजन सिंह से शादी नहीं करने जा रही।
गीता ने कहा कि मैं फिलहाल सिंगल हूं। शादी जब होनी होगी तब हो जाएगी लेकिन फिलहाल मैं किसी से संबंध नहीं रखना चाहती। मैं सिर्फ अपने काम पर ध्यान देना चाहती हूं। हालांकि उन्होंने यह जरूर स्वीकार किया कि हरभजन उनकी जिंदगी में अहम व्यक्ति हैं। गीता काफी समय बाद फिल्मी पर्दे पर दिखाई देगी।
जिला गाजियाबाद में वह आईटम डांस करते हुए नजर आएगी। गीता ने कहा कि मैं बॉलीवुड में करियर बनाने के लिए इंग्लैण्ड से मुंबई शिफ्ट हुई थी। लोग काफी समय बाद मुझे फिल्मी पर्दे पर देखेंगे। मेरा समय अच्छा नहीं चल रहा था लेकिन आइटम सांग से मेरे लिए फिर दरवाजे खुल सकते हैं।
मुंबई। क्रिकेटर हरभजन सिंह के सितारे इन दिनों गर्दिश में चल रहे हैं। एक तो खराब फॉर्म के कारण उन्हें टीम इण्डिया में जगह नहीं मिल पा रही। दूसरी ओर गर्लफ्रेंड ने भी साथ छोड़ दिया है। बॉलीवुड एक्ट्रेस गीता बसरा ने साफ कर दिया है कि वह हरभजन सिंह से शादी नहीं करने जा रही।
गीता ने कहा कि मैं फिलहाल सिंगल हूं। शादी जब होनी होगी तब हो जाएगी लेकिन फिलहाल मैं किसी से संबंध नहीं रखना चाहती। मैं सिर्फ अपने काम पर ध्यान देना चाहती हूं। हालांकि उन्होंने यह जरूर स्वीकार किया कि हरभजन उनकी जिंदगी में अहम व्यक्ति हैं। गीता काफी समय बाद फिल्मी पर्दे पर दिखाई देगी।
जिला गाजियाबाद में वह आईटम डांस करते हुए नजर आएगी। गीता ने कहा कि मैं बॉलीवुड में करियर बनाने के लिए इंग्लैण्ड से मुंबई शिफ्ट हुई थी। लोग काफी समय बाद मुझे फिल्मी पर्दे पर देखेंगे। मेरा समय अच्छा नहीं चल रहा था लेकिन आइटम सांग से मेरे लिए फिर दरवाजे खुल सकते हैं।
ज्योति मिर्धा बन सकती है कांग्रेस सचिव
ज्योति मिर्धा बन सकती है कांग्रेस सचिव
नई दिल्ली। जयपुर में अगले साल जनवरी में होने वाले चिंतन शिविर से पहले कांग्रेस संगठन में बड़ा फेरबदल हो सकता है। ये फेरबदल 20 दिसंबर को खत्म हो रहे संसद के शीतकालीन सत्र के बाद हो सकता है। एक समाचार पत्र ने कांग्रेस के सूत्रों के हवाले से यह खबर दी है।
अक्टूबर में हुए कैबिनेट फेरबदल के बाद संगठन में फेरबदल की अटकलों ने जोर पकड़ा है। कैबिनेट फेरबदल के समय सात ने मंत्री पद छोड़ दिया था। इनमें अंबिका सोनी,एसएम कृष्णा,मुकुल वासनिक,सुबोध कांत सहाय शामिल थे। उस समय इन सभी ने कहा था कि वे पार्टी में काम करने के इच्छुक हैं।
कांग्रेस के एक वरिष्ठ नेता ने बताया कि संगठन में फेरबदल शीतकालीन सत्र के पहले होना था लेकिन रिटेल में एफडीआई और प्रमोशन में आरक्षण बिल के कारण कांग्रेस अध्यक्ष सोनिया गांधी ने इसे मानसून सत्र खत्म होने तक टाल दिया। फेरबदल के लिए होमवर्क पूरा हो चुका है। सिर्फ फाइनल टच दिया जाना शेष है।
ऎसे संकेत हैं कि कांग्रेस महासचिव राहुल गांधी की करीबी ज्योति मिर्धा और मौसम नूर को सचिव बनाया जा सकता है। मिर्धा राजस्थान से हैं और नूर पश्चिम बंगाल से। तमिलनाडु की मनिका टैगोर भी इस पद के लिए उम्मीदवार है।
चिंतन शिविर आयोजित करने वाली समिति से जुड़े कांग्रेस के एक नेता ने बताया कि ज्योति मिर्धा के अच्छे चांस हैं। पश्चिम बंगाल के एक वरिष्ठ नेता ने कहा कि मौसम नूर के संगठन में शामिल होने की मजबूत संभावना है। हालांकि एक वरिष्ठ नेता का कहना है कि कांग्रेस अध्यक्ष के सामने राहुल गांधी की सिफारिशें सिर्फ सलाह होगी। कई वरिष्ठ नेताओं ने इस्तीफे दिए हैं इसलिए उनको भी जल्द से जल्द समायोजित करना है।
नई दिल्ली। जयपुर में अगले साल जनवरी में होने वाले चिंतन शिविर से पहले कांग्रेस संगठन में बड़ा फेरबदल हो सकता है। ये फेरबदल 20 दिसंबर को खत्म हो रहे संसद के शीतकालीन सत्र के बाद हो सकता है। एक समाचार पत्र ने कांग्रेस के सूत्रों के हवाले से यह खबर दी है।
अक्टूबर में हुए कैबिनेट फेरबदल के बाद संगठन में फेरबदल की अटकलों ने जोर पकड़ा है। कैबिनेट फेरबदल के समय सात ने मंत्री पद छोड़ दिया था। इनमें अंबिका सोनी,एसएम कृष्णा,मुकुल वासनिक,सुबोध कांत सहाय शामिल थे। उस समय इन सभी ने कहा था कि वे पार्टी में काम करने के इच्छुक हैं।
कांग्रेस के एक वरिष्ठ नेता ने बताया कि संगठन में फेरबदल शीतकालीन सत्र के पहले होना था लेकिन रिटेल में एफडीआई और प्रमोशन में आरक्षण बिल के कारण कांग्रेस अध्यक्ष सोनिया गांधी ने इसे मानसून सत्र खत्म होने तक टाल दिया। फेरबदल के लिए होमवर्क पूरा हो चुका है। सिर्फ फाइनल टच दिया जाना शेष है।
ऎसे संकेत हैं कि कांग्रेस महासचिव राहुल गांधी की करीबी ज्योति मिर्धा और मौसम नूर को सचिव बनाया जा सकता है। मिर्धा राजस्थान से हैं और नूर पश्चिम बंगाल से। तमिलनाडु की मनिका टैगोर भी इस पद के लिए उम्मीदवार है।
चिंतन शिविर आयोजित करने वाली समिति से जुड़े कांग्रेस के एक नेता ने बताया कि ज्योति मिर्धा के अच्छे चांस हैं। पश्चिम बंगाल के एक वरिष्ठ नेता ने कहा कि मौसम नूर के संगठन में शामिल होने की मजबूत संभावना है। हालांकि एक वरिष्ठ नेता का कहना है कि कांग्रेस अध्यक्ष के सामने राहुल गांधी की सिफारिशें सिर्फ सलाह होगी। कई वरिष्ठ नेताओं ने इस्तीफे दिए हैं इसलिए उनको भी जल्द से जल्द समायोजित करना है।
7 भारतीय फौजी बर्फ में जिंदा दफन
7 भारतीय फौजी बर्फ में जिंदा दफन
श्रीनगर। सियाचिन ग्लेशियर में सेना की अग्रिम चौकी के रविवार सुबह हिमस्खलन की चपेट में आने से सात सैनिक जिंदा बर्फ में दफन हो गए।
रक्षा मंत्रालय के प्रवक्ता लेफ्टिनेंट कर्नल जेएस बराट ने बतायाकि समूचे सियाचिन क्षेत्र में पिछले दो दिन से हिमपात हो रहा है। तुरतुंक सब सेक्टर में स्थित सेना की एक अग्र्रिम चौकी सुबह 06.15 बजे हिमस्खलन की चपेट में आ गई। हादसे की सूचना मिलते ही निकटवर्ती चौकियों से बचाव टीमें घटनास्थल के लिए रवाना हो गई।
अभी तक छह सैनिकों के शव बरामद किए गए हैं। हालांकि खराब मौसम की वजह से सातवें जवान की तलाश के प्र्रयासों में रूकावट आ रही है। यह इन सर्दियों में सियाचिन में हुआ पहला बड़ा हादसा है। इससे पहले 07 अप्रेल को सीमा के दूसरी ओर 135 पाकिस्तानी सैनिक हिमस्खलन की चपेट में आ गए थे।
श्रीनगर। सियाचिन ग्लेशियर में सेना की अग्रिम चौकी के रविवार सुबह हिमस्खलन की चपेट में आने से सात सैनिक जिंदा बर्फ में दफन हो गए।
रक्षा मंत्रालय के प्रवक्ता लेफ्टिनेंट कर्नल जेएस बराट ने बतायाकि समूचे सियाचिन क्षेत्र में पिछले दो दिन से हिमपात हो रहा है। तुरतुंक सब सेक्टर में स्थित सेना की एक अग्र्रिम चौकी सुबह 06.15 बजे हिमस्खलन की चपेट में आ गई। हादसे की सूचना मिलते ही निकटवर्ती चौकियों से बचाव टीमें घटनास्थल के लिए रवाना हो गई।
अभी तक छह सैनिकों के शव बरामद किए गए हैं। हालांकि खराब मौसम की वजह से सातवें जवान की तलाश के प्र्रयासों में रूकावट आ रही है। यह इन सर्दियों में सियाचिन में हुआ पहला बड़ा हादसा है। इससे पहले 07 अप्रेल को सीमा के दूसरी ओर 135 पाकिस्तानी सैनिक हिमस्खलन की चपेट में आ गए थे।
बाड़मेर हरसानी क्षेत्र की जनता ने मंत्री अमीन खान का किया बहिष्कार
बाड़मेर हरसानी क्षेत्र की जनता ने मंत्री अमीन खान का किया बहिष्कार
जनता का इंतज़ार करते मंत्री अमीन खान |
जनता नहीं आई तो मुंह लटका के चल दिए मंत्रीजी
बाड़मेर सीमावर्ती बाड़मेर जिले में कांग्रेस की दुर्गति के दिन लगता हें शुरू हो गए हें ,राज्य के एक मंत्री को जनता के लिए तरसना पड़ा जनता थी की बहिष्कार छोड़ने को तयार नहीं .आखिरकार मंत्री ने जनता की भावना को समझ कार्यक्रम किये बिना ही लौट जाना उचित समझा .हुआ युनकी शिव विधानसभा क्षेत्र के हरसानी गाँव में राजीव गांधी सेवा केंद्र के उदघाटन का कार्यक्रम पंचायत समिति शिव द्वारा रखा गया ,उद्घाटन क्षेत्र के विधायक और राज्य में अलाप्संख्यक मामलात मंत्री अमीन खान करने निर्धारित समय पहुँच गए तथा पंचायत भवन में लगे टेंट में बता कर जनता के आने का इंतज़ार करने लगे उनके साथ विकास अधिकारी टीकमाराम चौधरी सहित एक दो व्यक्ति और थे ,दो घंटे तक मंत्रीजी जनता का इंतज़ार करते रहे मगर गाँव से एक भी बन्दा कार्यक्रम स्थल पर नहीं पहुंचा अलबता जनता बड़ी तादाद में टेंट के ठीक सामने सड़क के किनारे खादी मंत्रीजी का तमाशा देख रही थी ,मंत्रीजी को बताया गया की हरसानी की जनता ने उनके बहिष्कार का निर्णय लिया हें तो उनके पांवो के नीचे की जमीन खिसक गई .उन्होंने बी डी ओ के माध्यम से जनता से सुलह का प्रयास भी किया मगर जनता ने बात सुनाने से इनकार कर दिया ,आखिरकार मंत्रीजी केंद्र का उद्घाटन किये बिना ही चलते बने .
हरसानी के ग्रामीणों का कहना था की अमीन खान क्षेत्र के विकास की तरफ ना तो ध्यान देते हें ना ही जनता से मिलते हें ,उनका बहिष्कार जारी रहेगा .बहरहाल जोधपुर संभाग में इससे पूर्व मुख्यमंत्री अशोक गहलोत की फलौदी सभा का भी वहा की जनता ने बहिष्कार किया था दूसरी घटना बाड़मेर में अमीन खान का बहिष्कार .
लेबल:photo
बहिष्कार,
बाड़मेर,
मंत्री अमीन खान,
हरसानी
जोधपुर में पाक विस्थापित डॉक्टरों व परिवारों के षिविरों मे किया दौरा,
बीकानेर सांसद अर्जुन राम मेघवाल ने
जोधपुर में पाक विस्थापित डॉक्टरों व परिवारों के षिविरों मे किया दौरा,
समस्याओं को संसद मे उठाने का दिया आष्वासन
नई दिल्ली। 17 दिसम्बर 2012। रविवार को बीकानेर सांसद अर्जुन राम मेघवाल ने पाकिस्तान से आये हुये डॉक्टरों व पाकिस्तान से सिरसा होकर आये हिन्दू परिवारों के षिविरों का दौरा किया। षिविर में लोगों ने बताया कि पाकिस्तान से आने के लिए उन्हे जोधुपर के लिए वीजा नहीं दिया गया इसलिए हमने सिरसा (हरियाणा) का वीजा लेकर भारत आ गये, जबकि हमारा सिरसा से कोई संबंध नहीं है। हम जोधपुर से गये हुये है। सभी 327 सदस्य मेघवाल है जो अनुसूचित जाति के है। सिरसा में 22 साल से नागरिकता नहीं मिलने के कारण अभी जोधपुर मे आ गये है। इन मे से 24 सदस्यों की नागरिकता का इंतजार करते करते मौत भी हो चुकी है। नागरिकता नहीं मिलने से कहीं भी आ जा नहीं सकते है, शादीयां नहीं कर सकते है तथा पाकिस्तान वापस नहीं जाना चाहते है। सीमान्त लोक संगठन के अध्यक्ष हिन्दू सिंह सोढ़ा ने यह मामला मानवाधिकार आयोग, अनुसूचित जाति जनजाति आयोग के सामने रखने की मांग की है। संासद अर्जुन मेघवाल ने संसद की एस.सी. व एस.टी. कल्याण समिति का दौरा जोधपुर करवाने तथा संसद मे पुनः मामला उठाने का आष्वासन दिया है।
पाकिस्तान से आये हुये मेड़िकल ग्रेजुएट डॉक्टरों से बीकानेर सांसद ने मुलाकात की। मुलाकात में डॉक्टरों ने बताया कि उन्हें 12 साल से नागरिकता नहीं मिली है, जिससे वो कहीं पर भी प्रेक्टिस नहीं कर सकते है। मेड़िकल कॉसिल ऑफ इण्डिया द्वारा प्रेक्टिस करने की अनुमति नहीं दी जाती है जिससे उनका भविष्य अध्ंाकार मे हैं तथा रोजगार भी नहीं मिल रहा है। सांसद मेघवाल ने डॉक्टरों का मामला स्वास्थ्य मंत्रालय, मानवधिकार आयेाग तथा मेड़िकल कॉसिल ऑफ इण्डिया मे उठाने का आष्वासन दिया।
नई दिल्ली। 17 दिसम्बर 2012। रविवार को बीकानेर सांसद अर्जुन राम मेघवाल ने पाकिस्तान से आये हुये डॉक्टरों व पाकिस्तान से सिरसा होकर आये हिन्दू परिवारों के षिविरों का दौरा किया। षिविर में लोगों ने बताया कि पाकिस्तान से आने के लिए उन्हे जोधुपर के लिए वीजा नहीं दिया गया इसलिए हमने सिरसा (हरियाणा) का वीजा लेकर भारत आ गये, जबकि हमारा सिरसा से कोई संबंध नहीं है। हम जोधपुर से गये हुये है। सभी 327 सदस्य मेघवाल है जो अनुसूचित जाति के है। सिरसा में 22 साल से नागरिकता नहीं मिलने के कारण अभी जोधपुर मे आ गये है। इन मे से 24 सदस्यों की नागरिकता का इंतजार करते करते मौत भी हो चुकी है। नागरिकता नहीं मिलने से कहीं भी आ जा नहीं सकते है, शादीयां नहीं कर सकते है तथा पाकिस्तान वापस नहीं जाना चाहते है। सीमान्त लोक संगठन के अध्यक्ष हिन्दू सिंह सोढ़ा ने यह मामला मानवाधिकार आयोग, अनुसूचित जाति जनजाति आयोग के सामने रखने की मांग की है। संासद अर्जुन मेघवाल ने संसद की एस.सी. व एस.टी. कल्याण समिति का दौरा जोधपुर करवाने तथा संसद मे पुनः मामला उठाने का आष्वासन दिया है।
पाकिस्तान से आये हुये मेड़िकल ग्रेजुएट डॉक्टरों से बीकानेर सांसद ने मुलाकात की। मुलाकात में डॉक्टरों ने बताया कि उन्हें 12 साल से नागरिकता नहीं मिली है, जिससे वो कहीं पर भी प्रेक्टिस नहीं कर सकते है। मेड़िकल कॉसिल ऑफ इण्डिया द्वारा प्रेक्टिस करने की अनुमति नहीं दी जाती है जिससे उनका भविष्य अध्ंाकार मे हैं तथा रोजगार भी नहीं मिल रहा है। सांसद मेघवाल ने डॉक्टरों का मामला स्वास्थ्य मंत्रालय, मानवधिकार आयेाग तथा मेड़िकल कॉसिल ऑफ इण्डिया मे उठाने का आष्वासन दिया।
100 रुपये महंगा होगा 1000 किमी का रेल सफर
नई दिल्ली. आर्थिक सुधारों के नाम पर कड़े फैसले लेने की सरकार की कवायद आम आदमी पर भारी पड़ रही है। सरकार एक ओर रेल किराया में बढ़ोतरी की तैयारी कर रही है वहीं डीजल और गैस पर सब्सिडी घटाने के संकेत हैं। उधर, दिल्ली की सीएम शीला दीक्षित के बयान पर सियासी घमासान शुरू हो गया है।
रेल राज्यमंत्री कोटला सूर्यप्रकाश रेड्डी ने कहा कि रेलवे की वित्तीय हालत को देखते हुए रेल भाड़ा बढ़ाना जरूरी है। उन्होंने विशाखापट्टनम में विशाखापट्टनम-चेन्नई और विशाखापट्टनम-शिरडी साप्ताहिक एक्सप्रेस रेलगाडिय़ों की शुरुआत करने वाले समारोह के दौरान कहा कि रेलवे की वित्तीय स्थिति खराब होने के कारण रेल भाड़ा बढ़ाना बहुत जरूरी हो गया है। रेड्डी ने राजमुंदरी में पत्रकारों से बातचीत में कहा कि अगले रेल बजट में रेल भाड़ा बढ़ाने का प्रस्ताव है। उन्होंने बताया कि रेल किराया 5 से 10 पैसे प्रतिकिलोमीटर बढ़ सकता है। यदि ऐसा हुआ तो एक हजार किलोमीटर का सफर करीब 100 रुपये महंगा हो सकता है।
गौरतलब है कि रेल किराये को लेकर तृणमूल कांग्रेस के यूपीए से रिश्तों में कड़वाहट आती रही। यूपीए की सहयोगी रही तृणमूल कांग्रेस की सुप्रीमो ममता बनर्जी ने रेल किराया में बढ़ोतरी का विरोध किया। उनका तर्क है कि इससे आम आदमी पर महंगाई का बोझ बढ़ेगा। ममता ने पिछले रेल बजट में रेल किराये में बढ़ोतरी का प्रस्ताव करने वाले अपनी ही पार्टी के सांसद दिनेश त्रिवेदी को मंत्रीपद से हटने को मजबूर किया। ममता ने आरोप लगाया था कि त्रिवेदी ने किराया बढ़ाने का फैसला लेने से पहले पार्टी को भरोसे में नहीं लिया था।
एक 'बोतल' में तय हुआ युवती की अस्मत का सौदा!
भीनमाल बाड़मेर की जूतियों का जवाब नहीं
आम आदमी के व्यक्तित्व की पहचान कराती राजस्थानी जूतियाँ
भीनमाल बाड़मेर की जूतियों का जवाब नहीं
पायत्रसंण पदपीठ पहनी खलों उपांन।
जोड़ी पानह जूतियॉ, कोटा रखी कुदान।।
पगसुख पनिया पगरखी, पाप पोस पैजार।
मौजा मोचा मोचड़ा, पग पाखर पय चार।।
राजस्थान के निवासियों ने अपना पहनावा, वेशभूषा, शिरोत्राण व पगरखियाँ देशकाल तथा भौगोलिक परिस्थितयों की आवश्यकता के अनुरुप ही अंगीकार किए हैं। उन सबका पृथक-पृथक महत्व है। यहाँ विभिन्न जूतियों का पृथक-पृथक पहनावा है तथा उनकी जूतियों की बनावट भी अलग-अलग है। इन जूतियों का उपयोग भी परम्पराओं से मुक्त नहीं है। जूतियाँ आम आदमी के व्यक्तित्व की पहचान कराती है। उसके सामाजिक स्तर, धर्म, आर्थिक स्थिति, परगना आदि की पहचान जानने वाले लोग उसकी जूतियों को देखकर कर लेते हैं। यहाँ तक कि रीति-रिवाजों और मर्यादाओं की लक्ष्मणरेखा भी जूतियों से आंकी जाती है।
पावरल छणी पादुका, जूती जबरो जाण।
चवो उपानन मोचड़ी, प्राण हिता पहचान।।
राजस्थान में जूतियों के लिए कई नाम व उपनाम प्रचलित हैं जो इस प्रकार हैं: - पग रक्षिका, पादुकाएँ, पगरखी ,जूतियाँ, कांटारखी (कांटे से रक्षा करने वाली), लपतरो, जूतड़, जूतीड़, खाहड़ा, जरबो, (मेवाड़ में), लितड़ा (फटे हुए जूते), जोड़ा, खेटर, ठेठर (जैसलमेर में), मोजड़ी, लिकतर, जूत, लपटा, पनोती इत्यादि।
राजा, महाराजा और जागीरदारों की जूतियाँ मखमल, जरी, मोती तथा अमूल्य रत्नों से जड़ित होती थीं। शादी के समय जब मोची दूल्हे के लिए विशेष जूतियाँ लाता था, तो उसे बिन्दोली कहा जाता था। इसके बदले में उसे नेग दिया जाता था। जागीरों के समय जागीरदारों एवं उनके परिवार के सदस्यों के लिए गाँव का मोची जूतियाँ बनाकर लाता था। उसके बदले में उसे पेटिया ( गेंहू या बाजरी) दिया जाता था ।
जरकस जरी रेसमी जांभौ, रतना साज सजावै।
मणियां जड़ी मोचड़ी चरणां, जोयां ही बण आवै।।
शादी - ब्याह के समय जूतियाँ हास - परिहास करने का साधन बनती हैं तथा जीजा - साली इस प्रकार की हँसी-ठिठोली के द्वारा जाने-अनजाने एक दूसरे के स्वभाव तथा उनके धैर्य इत्यादि से परिचित होते हैं। शादी के पश्चात् दूल्हा-दुल्हन देवताओं को धोकने जाते हैं, तो उनसे मजाक करने के लिए महिलाएँ एक आले में दुल्हन की जूतियों को पलिया ओढ़ाकर रख देती हैं और महिलाएँ दूल्हे के हाथ से नारियल वढ़वाती हैं और वहाँ उसके माथा नमन करती हैं। कभी-कभी दूल्हे की जूतियाँ छिपाकर साली नेग वसूल करती है। दूल्हन अपने बड़ों के सामने जूतियाँ पहनकर नहीं वलती हैं। मर्यादा के अनुसार बड़ों के सामने नंगे पाँव ही वलना होता है। महिलाएँ घर में मर्द की उपस्थिति का अनुमान ड्योढ़ी पर उसकी जूतियों को देखकर ही लगाती हैं। ऐसा विश्वास भी है नई दूल्हन, जो पीहर के घर से जूती पहनकर आती है, उसे जल्दी पहनकर फाड़ने का प्रयास करती है, क्योंकि ऐसी मान्यता है कि उसकी जूतियाँ फटने से पीहर का कर्ज उतरता है।
मेह बिना धरती तरसै, मेहड़ों हुवण दै।
मोचड़ियाँ गणावूं मुखमलरी मेहड़ो हुवण दै।।
जोधपुर के रावटी महाराज तो जूतियों के इतने शौकीन थे कि वे अपनी मखमली जूतियों पर खरे मोती एवं हीरे-पन्ने लगवाते थे। वे इसके लिए विख्यात भी थे।
जूतियों के संबंध में और भी अनेक प्रकार के रिवाज एवं परम्पराएँ रहीं हैं। यहाँ ऐसी मान्यता है कि जब पुत्र के पैर में पिता की जूतियाँ बराबर आनी लगे, तब उसे बराबरी का दर्जा दे देना चाहिए।
जब किसी दुखियारी महिला के पीहर या मायके में कोई जीवित नहीं बचता है, तो कहा जाता है कि उसके लिए पगरखी उतारने की कोई ठौड़ अब नहीं रही है।
किसी अहसान की चरम सीमा को स्वीकार करने के लिए यहाँ आम बोलचाल में कहा जाता है कि मैं अपनी खाल के जूते भी आपको पहनाऊँ तो भी आपका अहसान नहीं उतार सकता हूँ।
घुड़ला सईयां दीसै य न ठांण।
ना रे पगाणे भँवरजी श मोचड़ा।।
पुराने जमाने में कई नामी चोर रात में चोरी करने के लिए किसी अन्य की जूतियाँ पहनकर चोरी करने जाता था और चोरी करके उसकी जूतियाँ वापस रख देता था। इस प्रकार पागी (पदचिन्ह के पारखी) जूतियों के निशान देखकर उसी को पकड़ते थे, जिसकी जूतियाँ चोर ने प्रयुक्त की थीं। किसी अपराध के साबित होने पर गाँववाले अपराधी को जूतों की माला पहनाते तथा उसे गधे पर बैठाकर पूरे गाँव में घुमाते थे। उसके लिए यह सबसे बड़ी बेइज्जती मानी जाती थी।
बुरी न से बचाने के लिए आज भी फटी-फूटी जूती घर के ऊपर लटकाई जाती है। मिरगी का दौरा पड़ने पर अज्ञानवश आज भी रोगी को जूतियाँ सुंघाते हैं। कई बार रेगिस्तान में पानी रखने का बर्तन उपलब्ध न होने पर जूती में पानी भरकर कई आवश्यक कार्य निपटाते हैं। यह प्रयोग केवल अपरिहार्य परिस्थितयों में ही किया जाता है। कई बार भेड़ की जटा काटने के लिए उसे सुलाना पड़ता है। ऐसा करते समय खारी लोग अपनी जूती उसकी आँख पर उल्टी रख देते हैं और भेंड़ भय व आँख के सामने अंधेरा पाकर निर्जिंश्चत होकर पड़ी रहती है।
राजा-रजवाड़ों में चोंचदार जूतियाँ पहनने का रिवाज प्रचलित रहा है, जिनसे चलने पर करड़-करड़ की आवाज आना रौब का चिन्ह माना जाता था। शादी शुदा स्रियाँ रंगीन, कशीदे एवं जरी वाली पगरखियाँ पहनी हैं परन्तु विधवाएँ सिर्फ काले चमड़े की सादी जूतियाँ ही पहन सकती हैं। जनानी पगरखियाँ की एड़ी सदा मुड़ी हुई रहती हैं। चौधरी एवं रबारी महिलाएँ कस्से वाली एड़ी की जूतियाँ भी पहनती हैं।
बाड़मेर और जैसलमेर के सिन्धी मुसलमानों की स्रियाँ मोटे तले, छोटे पंजे एवं रंगीन फून्दों वाली जूतियाँ पहनती हैं। इन जूतियों को शहर की मोलांगी स्रियाँ तो पहनकर चल भी नहीं सकतीं।
यहाँ यदि कोई जूतियों को चुराकर ले जावे, तो अच्छा माना जाता है। इस समय यह कहकर मन को समझाया जाता है कि मेरी पनोती उतर गई। शनिश्चर की दशा लगने पर देशान्तरी को अन्य दोनों के साथ-साथ शनिवार को जूतियाँ भी दी जाती हैं, ताकि उस दशा का स्थानान्तरण देशान्तरी पर हो जाए।
भेंड़ - बकरी चराने वाले देवदासियों की जूतियाँ बहुत कम फटती है, क्योंकि वे लोग ज्यादातर अपने जोड़ों को लकड़ी में अटकाकर कन्धे पर लेकर घूमते हैं। यदि उन्हें जंगल में पेड़ की छाया के नीचे आराम करना हो तो वे उनको सिरहाने रखकर सोते हैं। वैसे यह भी मान्यता है कि अगर किसी व्यक्ति को नींद में बुरे सपने आएँ तो उसे जूतियाँ सिरहाने रखकर सोना चाहिए। ऐसा करने से बुरे सपने नहीं आते हैं। यह भी मान्यता है कि किसी के घर से कोई अतिथि प्रस्थान कर रहा हो तो उसे वापस आते वक्त जूते अथवा जूतियाँ इत्यादि लाने के लिए नहीं कहना चाहिए।
पाँव में पहनने वाली जूतियों को बाल में सजाकर सुहाग की अन्य वस्तुओं के साथ पडले के साथ दूल्हे की तरफ से दुल्हन को भेजी जाती है। उसमें चूड़ा, नथ, तिमणिया और सिन्दूर के साथ जूतियों का जरीदार जोड़ा भी होता है, जिन्हें फेरों के समय पहनाया जाता है।
मुगलों के जमाने की नोंकदार जरी वाली जूतियाँ सली-शाही के नाम से मशहूर हुई। आज भी नवाबी घरानों में ये नाम कहे-सुने जाते हैं।
मनुष्य खाली हाथ संसार से विदा हो जाता है। शव को दाहसंस्कार के समय जब ले जाया जाता है, तब (चाहे राजा हो या रंक) उसे नई पगड़ी, धोती और कुर्ता इत्यादि पहनाए जाते हैं, परन्तु उसके पाँव नंगे ही रहते हैं। भगवान के घर विदा करते समय अमीर-गरीब किसी को भी जूतियाँ नहीं पहनाई जाती है। मृत्यु के पश्चात् ब्राह्मणों को जब धार्मिक रीति-रिवाजों के अनुसार सुख सेज दान में दी जाती है, तो अन्य आवश्यक वस्तुओं के साथ जूतियों का दान भी दिया जाता है।
मारवाड़ में जूतियों से संबंधित अनेक प्रकार के मुहावरे भी प्रचलित हैं। जैसे - जूता पड़ना, जूता खाना, जूता बरसाना, जूतियाँ उठाणी, जूतियाँ काख में राखणी, जूतां री मन में आणे, जूतां रा भूत बातां सूं नीं मानै, जूत जरकावणा, म्हारी जाणै जूती, जूती जेड़ों तेल आदि-आदि।
इस प्रकार चमड़े की ये पादुकाएँ वर्षों का सफर तय करके आज भी अपने बदले हुए रुप में जिन्दा है। महाभारत काल में पाँच पतियों वाली द्रौपदी के कक्ष में किसी भाई की उपस्थिति का पता अन्य भाईयों की बाहर पड़ी हुई मोजड़ियों से ही चलता था। मोजड़ियों को देखकर अन्य भाई द्रौपदी के कक्ष में प्रवेश नहीं करते थे। यहाँ जूतियाँ एक मर्यादा रेखा का काम करती है।
जूतियों की दशा देखकर उनके जानकार लोग जुतियाँ पहनने वाले व्यक्ति के संबंध में भविष्यवाणी तक करते थे। उसकी चाल-ढाल, स्वभाव, वीरता तथा कायरता का अनुमान वे जूतियाँ देखकर ही कर लिया करते थे।
मानव ज्यों-ज्यों सभ्यता के सोपान पार करता गया, त्यों-त्यों भोग - विलास की सामग्री में भी बढ़ोत्तरी होती गई। उसका पहनावा ही उसकी सामाजिक स्थिति, रुतबे एवं पद की उच्चता का परिचायक बनता गया। प्रत्येक जाति एवं धर्म के व्यक्ति का सिर से पाँव तक अपना अलग ही पहनावा होता था, जो अब लगभग समाप्त हो चुका है। आज किसी का पहनावा, पगरखियाँ तथा उसकी वेष-भूषा देखकर उस व्यक्ति का सही परिचय नहीं हो सकता है। आज पगरखियों को पहनना किसी परम्परा से बंधित नहीं है, परन्तु यदा-कदा वे हमें पुराने रिवाजों की यादें जरुर ताजा कर देती हैं। आज भी अपने परिजन की शव को कंधे पर ले जाते वक्त बहुत से लोग जूतियाँ नहीं पहनते हैं तथा श्मशान तक नंगे पाँव जाते हैं। इस प्रकार कभी-कभी हमारी प्राचीन संस्कृति जूतियों के बहाने यदा-कदा जहाँ-तहाँ न आती है, जो आधुनिकता की होड़ में अब लुप्त प्राय हो रहीं हैं।युवा पीढी का आकर्षण अब जूतियों की और होने लगा हें परम्परागत पौशाकों के साथ युवक युवतिय शौक से जुतिया पहनती हें ,शहरी क्षेत्रो में भी प्रचलन बढ़ा हें ,ख़ास कशीदे की जूतियों की मांग भी बढ़ने लगी हें ,बाड़मेर तथा जालोर जिले के भीनमाल की जुतिया खास होती हें .
जोड़ी पानह जूतियॉ, कोटा रखी कुदान।।
पगसुख पनिया पगरखी, पाप पोस पैजार।
मौजा मोचा मोचड़ा, पग पाखर पय चार।।
राजस्थान के निवासियों ने अपना पहनावा, वेशभूषा, शिरोत्राण व पगरखियाँ देशकाल तथा भौगोलिक परिस्थितयों की आवश्यकता के अनुरुप ही अंगीकार किए हैं। उन सबका पृथक-पृथक महत्व है। यहाँ विभिन्न जूतियों का पृथक-पृथक पहनावा है तथा उनकी जूतियों की बनावट भी अलग-अलग है। इन जूतियों का उपयोग भी परम्पराओं से मुक्त नहीं है। जूतियाँ आम आदमी के व्यक्तित्व की पहचान कराती है। उसके सामाजिक स्तर, धर्म, आर्थिक स्थिति, परगना आदि की पहचान जानने वाले लोग उसकी जूतियों को देखकर कर लेते हैं। यहाँ तक कि रीति-रिवाजों और मर्यादाओं की लक्ष्मणरेखा भी जूतियों से आंकी जाती है।
पावरल छणी पादुका, जूती जबरो जाण।
चवो उपानन मोचड़ी, प्राण हिता पहचान।।
राजस्थान में जूतियों के लिए कई नाम व उपनाम प्रचलित हैं जो इस प्रकार हैं: - पग रक्षिका, पादुकाएँ, पगरखी ,जूतियाँ, कांटारखी (कांटे से रक्षा करने वाली), लपतरो, जूतड़, जूतीड़, खाहड़ा, जरबो, (मेवाड़ में), लितड़ा (फटे हुए जूते), जोड़ा, खेटर, ठेठर (जैसलमेर में), मोजड़ी, लिकतर, जूत, लपटा, पनोती इत्यादि।
राजा, महाराजा और जागीरदारों की जूतियाँ मखमल, जरी, मोती तथा अमूल्य रत्नों से जड़ित होती थीं। शादी के समय जब मोची दूल्हे के लिए विशेष जूतियाँ लाता था, तो उसे बिन्दोली कहा जाता था। इसके बदले में उसे नेग दिया जाता था। जागीरों के समय जागीरदारों एवं उनके परिवार के सदस्यों के लिए गाँव का मोची जूतियाँ बनाकर लाता था। उसके बदले में उसे पेटिया ( गेंहू या बाजरी) दिया जाता था ।
जरकस जरी रेसमी जांभौ, रतना साज सजावै।
मणियां जड़ी मोचड़ी चरणां, जोयां ही बण आवै।।
शादी - ब्याह के समय जूतियाँ हास - परिहास करने का साधन बनती हैं तथा जीजा - साली इस प्रकार की हँसी-ठिठोली के द्वारा जाने-अनजाने एक दूसरे के स्वभाव तथा उनके धैर्य इत्यादि से परिचित होते हैं। शादी के पश्चात् दूल्हा-दुल्हन देवताओं को धोकने जाते हैं, तो उनसे मजाक करने के लिए महिलाएँ एक आले में दुल्हन की जूतियों को पलिया ओढ़ाकर रख देती हैं और महिलाएँ दूल्हे के हाथ से नारियल वढ़वाती हैं और वहाँ उसके माथा नमन करती हैं। कभी-कभी दूल्हे की जूतियाँ छिपाकर साली नेग वसूल करती है। दूल्हन अपने बड़ों के सामने जूतियाँ पहनकर नहीं वलती हैं। मर्यादा के अनुसार बड़ों के सामने नंगे पाँव ही वलना होता है। महिलाएँ घर में मर्द की उपस्थिति का अनुमान ड्योढ़ी पर उसकी जूतियों को देखकर ही लगाती हैं। ऐसा विश्वास भी है नई दूल्हन, जो पीहर के घर से जूती पहनकर आती है, उसे जल्दी पहनकर फाड़ने का प्रयास करती है, क्योंकि ऐसी मान्यता है कि उसकी जूतियाँ फटने से पीहर का कर्ज उतरता है।
मेह बिना धरती तरसै, मेहड़ों हुवण दै।
मोचड़ियाँ गणावूं मुखमलरी मेहड़ो हुवण दै।।
जोधपुर के रावटी महाराज तो जूतियों के इतने शौकीन थे कि वे अपनी मखमली जूतियों पर खरे मोती एवं हीरे-पन्ने लगवाते थे। वे इसके लिए विख्यात भी थे।
जूतियों के संबंध में और भी अनेक प्रकार के रिवाज एवं परम्पराएँ रहीं हैं। यहाँ ऐसी मान्यता है कि जब पुत्र के पैर में पिता की जूतियाँ बराबर आनी लगे, तब उसे बराबरी का दर्जा दे देना चाहिए।
जब किसी दुखियारी महिला के पीहर या मायके में कोई जीवित नहीं बचता है, तो कहा जाता है कि उसके लिए पगरखी उतारने की कोई ठौड़ अब नहीं रही है।
किसी अहसान की चरम सीमा को स्वीकार करने के लिए यहाँ आम बोलचाल में कहा जाता है कि मैं अपनी खाल के जूते भी आपको पहनाऊँ तो भी आपका अहसान नहीं उतार सकता हूँ।
घुड़ला सईयां दीसै य न ठांण।
ना रे पगाणे भँवरजी श मोचड़ा।।
पुराने जमाने में कई नामी चोर रात में चोरी करने के लिए किसी अन्य की जूतियाँ पहनकर चोरी करने जाता था और चोरी करके उसकी जूतियाँ वापस रख देता था। इस प्रकार पागी (पदचिन्ह के पारखी) जूतियों के निशान देखकर उसी को पकड़ते थे, जिसकी जूतियाँ चोर ने प्रयुक्त की थीं। किसी अपराध के साबित होने पर गाँववाले अपराधी को जूतों की माला पहनाते तथा उसे गधे पर बैठाकर पूरे गाँव में घुमाते थे। उसके लिए यह सबसे बड़ी बेइज्जती मानी जाती थी।
बुरी न से बचाने के लिए आज भी फटी-फूटी जूती घर के ऊपर लटकाई जाती है। मिरगी का दौरा पड़ने पर अज्ञानवश आज भी रोगी को जूतियाँ सुंघाते हैं। कई बार रेगिस्तान में पानी रखने का बर्तन उपलब्ध न होने पर जूती में पानी भरकर कई आवश्यक कार्य निपटाते हैं। यह प्रयोग केवल अपरिहार्य परिस्थितयों में ही किया जाता है। कई बार भेड़ की जटा काटने के लिए उसे सुलाना पड़ता है। ऐसा करते समय खारी लोग अपनी जूती उसकी आँख पर उल्टी रख देते हैं और भेंड़ भय व आँख के सामने अंधेरा पाकर निर्जिंश्चत होकर पड़ी रहती है।
राजा-रजवाड़ों में चोंचदार जूतियाँ पहनने का रिवाज प्रचलित रहा है, जिनसे चलने पर करड़-करड़ की आवाज आना रौब का चिन्ह माना जाता था। शादी शुदा स्रियाँ रंगीन, कशीदे एवं जरी वाली पगरखियाँ पहनी हैं परन्तु विधवाएँ सिर्फ काले चमड़े की सादी जूतियाँ ही पहन सकती हैं। जनानी पगरखियाँ की एड़ी सदा मुड़ी हुई रहती हैं। चौधरी एवं रबारी महिलाएँ कस्से वाली एड़ी की जूतियाँ भी पहनती हैं।
बाड़मेर और जैसलमेर के सिन्धी मुसलमानों की स्रियाँ मोटे तले, छोटे पंजे एवं रंगीन फून्दों वाली जूतियाँ पहनती हैं। इन जूतियों को शहर की मोलांगी स्रियाँ तो पहनकर चल भी नहीं सकतीं।
यहाँ यदि कोई जूतियों को चुराकर ले जावे, तो अच्छा माना जाता है। इस समय यह कहकर मन को समझाया जाता है कि मेरी पनोती उतर गई। शनिश्चर की दशा लगने पर देशान्तरी को अन्य दोनों के साथ-साथ शनिवार को जूतियाँ भी दी जाती हैं, ताकि उस दशा का स्थानान्तरण देशान्तरी पर हो जाए।
भेंड़ - बकरी चराने वाले देवदासियों की जूतियाँ बहुत कम फटती है, क्योंकि वे लोग ज्यादातर अपने जोड़ों को लकड़ी में अटकाकर कन्धे पर लेकर घूमते हैं। यदि उन्हें जंगल में पेड़ की छाया के नीचे आराम करना हो तो वे उनको सिरहाने रखकर सोते हैं। वैसे यह भी मान्यता है कि अगर किसी व्यक्ति को नींद में बुरे सपने आएँ तो उसे जूतियाँ सिरहाने रखकर सोना चाहिए। ऐसा करने से बुरे सपने नहीं आते हैं। यह भी मान्यता है कि किसी के घर से कोई अतिथि प्रस्थान कर रहा हो तो उसे वापस आते वक्त जूते अथवा जूतियाँ इत्यादि लाने के लिए नहीं कहना चाहिए।
पाँव में पहनने वाली जूतियों को बाल में सजाकर सुहाग की अन्य वस्तुओं के साथ पडले के साथ दूल्हे की तरफ से दुल्हन को भेजी जाती है। उसमें चूड़ा, नथ, तिमणिया और सिन्दूर के साथ जूतियों का जरीदार जोड़ा भी होता है, जिन्हें फेरों के समय पहनाया जाता है।
मुगलों के जमाने की नोंकदार जरी वाली जूतियाँ सली-शाही के नाम से मशहूर हुई। आज भी नवाबी घरानों में ये नाम कहे-सुने जाते हैं।
मनुष्य खाली हाथ संसार से विदा हो जाता है। शव को दाहसंस्कार के समय जब ले जाया जाता है, तब (चाहे राजा हो या रंक) उसे नई पगड़ी, धोती और कुर्ता इत्यादि पहनाए जाते हैं, परन्तु उसके पाँव नंगे ही रहते हैं। भगवान के घर विदा करते समय अमीर-गरीब किसी को भी जूतियाँ नहीं पहनाई जाती है। मृत्यु के पश्चात् ब्राह्मणों को जब धार्मिक रीति-रिवाजों के अनुसार सुख सेज दान में दी जाती है, तो अन्य आवश्यक वस्तुओं के साथ जूतियों का दान भी दिया जाता है।
मारवाड़ में जूतियों से संबंधित अनेक प्रकार के मुहावरे भी प्रचलित हैं। जैसे - जूता पड़ना, जूता खाना, जूता बरसाना, जूतियाँ उठाणी, जूतियाँ काख में राखणी, जूतां री मन में आणे, जूतां रा भूत बातां सूं नीं मानै, जूत जरकावणा, म्हारी जाणै जूती, जूती जेड़ों तेल आदि-आदि।
इस प्रकार चमड़े की ये पादुकाएँ वर्षों का सफर तय करके आज भी अपने बदले हुए रुप में जिन्दा है। महाभारत काल में पाँच पतियों वाली द्रौपदी के कक्ष में किसी भाई की उपस्थिति का पता अन्य भाईयों की बाहर पड़ी हुई मोजड़ियों से ही चलता था। मोजड़ियों को देखकर अन्य भाई द्रौपदी के कक्ष में प्रवेश नहीं करते थे। यहाँ जूतियाँ एक मर्यादा रेखा का काम करती है।
जूतियों की दशा देखकर उनके जानकार लोग जुतियाँ पहनने वाले व्यक्ति के संबंध में भविष्यवाणी तक करते थे। उसकी चाल-ढाल, स्वभाव, वीरता तथा कायरता का अनुमान वे जूतियाँ देखकर ही कर लिया करते थे।
मानव ज्यों-ज्यों सभ्यता के सोपान पार करता गया, त्यों-त्यों भोग - विलास की सामग्री में भी बढ़ोत्तरी होती गई। उसका पहनावा ही उसकी सामाजिक स्थिति, रुतबे एवं पद की उच्चता का परिचायक बनता गया। प्रत्येक जाति एवं धर्म के व्यक्ति का सिर से पाँव तक अपना अलग ही पहनावा होता था, जो अब लगभग समाप्त हो चुका है। आज किसी का पहनावा, पगरखियाँ तथा उसकी वेष-भूषा देखकर उस व्यक्ति का सही परिचय नहीं हो सकता है। आज पगरखियों को पहनना किसी परम्परा से बंधित नहीं है, परन्तु यदा-कदा वे हमें पुराने रिवाजों की यादें जरुर ताजा कर देती हैं। आज भी अपने परिजन की शव को कंधे पर ले जाते वक्त बहुत से लोग जूतियाँ नहीं पहनते हैं तथा श्मशान तक नंगे पाँव जाते हैं। इस प्रकार कभी-कभी हमारी प्राचीन संस्कृति जूतियों के बहाने यदा-कदा जहाँ-तहाँ न आती है, जो आधुनिकता की होड़ में अब लुप्त प्राय हो रहीं हैं।युवा पीढी का आकर्षण अब जूतियों की और होने लगा हें परम्परागत पौशाकों के साथ युवक युवतिय शौक से जुतिया पहनती हें ,शहरी क्षेत्रो में भी प्रचलन बढ़ा हें ,ख़ास कशीदे की जूतियों की मांग भी बढ़ने लगी हें ,बाड़मेर तथा जालोर जिले के भीनमाल की जुतिया खास होती हें .
साभार .....http://www.ignca.nic.in/coilnet/rj097.htm
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राजस्थानी जूतियाँ
बलात्कार की शिकार लड़की की सरे राह हत्या
बलात्कार की शिकार लड़की की सरे राह हत्या
कानपुर। उत्तर प्रदेश के सिद्धाव गांव में रेप के आरोपी ने पीडिता की सरे राह हत्या कर दी। हत्यारा पीडिता और उसके परिजनों पर शिकायत वापस लेने के लिए दबाव बना रहा था।
सूत्रों के मुताबिक आरोपी नर्वदा निषाद शनिवार को 16 वर्षीय रेप पीडिता के घर पहुंचा। उसने पहले पीडिता की जमकर पिटाई की। इसके बाद गांव वालों के सामने उसकी हत्या कर दी। इसके बाद मौके से फरार हो गया। हैरानी वाली बात यह है कि किसी ने भी न तो पीडिता को बचाने की कोशि की और न ही आरोपी को पकड़ने की। सभी तमाशा देखते रहे।
आरोपी के फरार होने के बाद गांव वालों ने बहुआ पुलिस थाने को घटना की जानकारी दी। घटनास्थल पर पहुंची पुलिस शव को पोस्ट मार्टम के लिए ले गई। आरोपी ने पिछले साल दिसंबर में पीडिता से रेप किया था। पीडिता के पिता ने थाने में शिकायत दर्ज कराई थी। गांव वालों का कहना है कि आरोपी पिछले कुछ समय से पीडिता और उसके घरवालों को धमका रहा था।
उसने धमकी दी थी कि अगर शिकायत वापस नहीं ली तो गंभीर परिणाम भुगतने होंगे। पीडिता के परिजनों ने शिकायत वापस लेने से इनकार कर दिया। इससे गुस्साया निषाद शनिवार को पीडिता के घर पहुंचा। उस वक्त उसके माता-पिता किसी काम से बाहर गए हुए थे। पीडिता घर के दरवाजे के पास बैठी थी।
उसने दरवाजा बंद कर घर के अंदर जाने की कोशिश की लेकिन आरोपी ने उसे पकड़ लिया। वह उसे घर से बाहर खींचकर ले आया। पहले पीडिता की जमकर पिटाई की और बाद में हत्या कर दी। इसके बाद मौके से फरार हो गया। पीडिता के रिश्तेदारों का कहना है कि उन्होंने पुलिस को कई बार शिकायत की थी कि आरोपी धमकियां दे रहा है लेकिन कोई कार्रवाई नहीं हुई।
उप पुलिस अधीक्षक संतोष कुमार ने बताया कि आरोपी के खिलाफ मामला दर्ज कर लिया गया है। उसे जल्द ही गिरफ्तार कर लेंगे। उन्होंने इस बात का कोई जवाब नहीं दिया कि धमकी की शिकायत करने के बावजूद आरोपी के खिलाफ कार्रवाई क्यों नहीं की गई?
कानपुर। उत्तर प्रदेश के सिद्धाव गांव में रेप के आरोपी ने पीडिता की सरे राह हत्या कर दी। हत्यारा पीडिता और उसके परिजनों पर शिकायत वापस लेने के लिए दबाव बना रहा था।
सूत्रों के मुताबिक आरोपी नर्वदा निषाद शनिवार को 16 वर्षीय रेप पीडिता के घर पहुंचा। उसने पहले पीडिता की जमकर पिटाई की। इसके बाद गांव वालों के सामने उसकी हत्या कर दी। इसके बाद मौके से फरार हो गया। हैरानी वाली बात यह है कि किसी ने भी न तो पीडिता को बचाने की कोशि की और न ही आरोपी को पकड़ने की। सभी तमाशा देखते रहे।
आरोपी के फरार होने के बाद गांव वालों ने बहुआ पुलिस थाने को घटना की जानकारी दी। घटनास्थल पर पहुंची पुलिस शव को पोस्ट मार्टम के लिए ले गई। आरोपी ने पिछले साल दिसंबर में पीडिता से रेप किया था। पीडिता के पिता ने थाने में शिकायत दर्ज कराई थी। गांव वालों का कहना है कि आरोपी पिछले कुछ समय से पीडिता और उसके घरवालों को धमका रहा था।
उसने धमकी दी थी कि अगर शिकायत वापस नहीं ली तो गंभीर परिणाम भुगतने होंगे। पीडिता के परिजनों ने शिकायत वापस लेने से इनकार कर दिया। इससे गुस्साया निषाद शनिवार को पीडिता के घर पहुंचा। उस वक्त उसके माता-पिता किसी काम से बाहर गए हुए थे। पीडिता घर के दरवाजे के पास बैठी थी।
उसने दरवाजा बंद कर घर के अंदर जाने की कोशिश की लेकिन आरोपी ने उसे पकड़ लिया। वह उसे घर से बाहर खींचकर ले आया। पहले पीडिता की जमकर पिटाई की और बाद में हत्या कर दी। इसके बाद मौके से फरार हो गया। पीडिता के रिश्तेदारों का कहना है कि उन्होंने पुलिस को कई बार शिकायत की थी कि आरोपी धमकियां दे रहा है लेकिन कोई कार्रवाई नहीं हुई।
उप पुलिस अधीक्षक संतोष कुमार ने बताया कि आरोपी के खिलाफ मामला दर्ज कर लिया गया है। उसे जल्द ही गिरफ्तार कर लेंगे। उन्होंने इस बात का कोई जवाब नहीं दिया कि धमकी की शिकायत करने के बावजूद आरोपी के खिलाफ कार्रवाई क्यों नहीं की गई?
सोनिया ने की दिल्ली अन्नश्री योजना की शुरुआत
सोनिया ने की दिल्ली अन्नश्री योजना की शुरुआत
संयुक्त प्रगतिशील गठबंधन (संप्रग) अध्यक्ष सोनिया गांधी ने दिल्ली सरकार के महत्वपूर्ण खाद्य सुरक्षा कार्यक्रम 'दिल्ली अन्नश्री योजना' की शुरुआत की। इस योजना के तहत दो लाख गरीब परिवारों की बुजुर्ग महिलाओं को प्रतिमाह 600 रुपए की नकद सब्सिडी उनके बैंक खाते में भेजी जाएगी।स्थानीय त्यागराज स्टेडियम में आयोजित एक समारोह में सोनिया ने इस महत्वाकांक्षी योजना की औपचारिक शुरुआत की। उन्होंने कहा कि इस कार्यक्रम से उन परिवारों की बुजुर्ग महिलाएं लाभान्वित होंगी जिन्हें न तो बीपीएल योजना और न ही अंत्योदय अन्न योजना के तहत सब्सिडी युक्त खाद्यान्न मिल पा रहा है।
उन्होंने कहा कि इस कार्यक्रम की सबसे बड़ी विशेषता होगी नकद सब्सिडी की राशि सीधे संबंधित महिलाओं के बैंक खाते में जाना। उन्होंने उम्मीद जताई कि इससे महिलाओं का सशक्तीकरण तो होगा ही, उनके भीतर आत्मविश्वास भी पैदा होगा।
सोनिया ने कहा कि खाद्य सुरक्षा विधेयक संसद में जल्द ही लाया जाएगा। दिल्ली सरकार ने अपनी इस महत्वाकांक्षी योजना के क्रियान्वयन के लिए पांच शीर्ष बैंकों के साथ समझौता किया है। यह योजना गत एक अप्रैल से ही प्रभावी मानी जाएगी।
संयुक्त प्रगतिशील गठबंधन (संप्रग) अध्यक्ष सोनिया गांधी ने दिल्ली सरकार के महत्वपूर्ण खाद्य सुरक्षा कार्यक्रम 'दिल्ली अन्नश्री योजना' की शुरुआत की। इस योजना के तहत दो लाख गरीब परिवारों की बुजुर्ग महिलाओं को प्रतिमाह 600 रुपए की नकद सब्सिडी उनके बैंक खाते में भेजी जाएगी।स्थानीय त्यागराज स्टेडियम में आयोजित एक समारोह में सोनिया ने इस महत्वाकांक्षी योजना की औपचारिक शुरुआत की। उन्होंने कहा कि इस कार्यक्रम से उन परिवारों की बुजुर्ग महिलाएं लाभान्वित होंगी जिन्हें न तो बीपीएल योजना और न ही अंत्योदय अन्न योजना के तहत सब्सिडी युक्त खाद्यान्न मिल पा रहा है।
उन्होंने कहा कि इस कार्यक्रम की सबसे बड़ी विशेषता होगी नकद सब्सिडी की राशि सीधे संबंधित महिलाओं के बैंक खाते में जाना। उन्होंने उम्मीद जताई कि इससे महिलाओं का सशक्तीकरण तो होगा ही, उनके भीतर आत्मविश्वास भी पैदा होगा।
सोनिया ने कहा कि खाद्य सुरक्षा विधेयक संसद में जल्द ही लाया जाएगा। दिल्ली सरकार ने अपनी इस महत्वाकांक्षी योजना के क्रियान्वयन के लिए पांच शीर्ष बैंकों के साथ समझौता किया है। यह योजना गत एक अप्रैल से ही प्रभावी मानी जाएगी।
PHOTOS: मिस यूनीवर्स में 87 सुंदरियों को टक्कर दे रही है बिहार के गांव की छोरी
फिलहाल इन्फोसिस कंपनी में कार्यरत हैं। इससे पहले शिल्पा 'आई एम शी-मिस यूनिवर्स इंडिया-2012' कॉन्टेस्ट में फर्स्ट रनर अप रहीं थीं। इस कांटेस्ट के विनर उर्वशी रौतेला मिस यूनिवर्स में निर्धारित आयु से ज्यादा की होने के कारण भाग नहीं ले पाईं। उनकी जगह शिल्पा का चयन किया गया।
भारतीय समययानुसार, 20 दिसंबर की सुबह 6.30 बजे विजेता के नाम की घोषणा होगी। इसमें 89 देश की सुदरियां हिस्सा ले रही हैं।शिल्पा सिंह का झारखंड से खास लगाव है। उन्होंने जमशेदपुर के सेक्रेड हर्ट कॉन्वेंट स्कूल से पढ़ाई की है। शिल्पा ने कक्षा एक से छह तक की पढ़ाई रांची में की है। उनके पिता सुरेश कुमार सिंह इंडियन ऑयल में नौकरी करते हैं। सिंह 1997 से 2001 तक रांची में कार्यरत रहे। इसके बाद वह जमशेदपुर आ गये। फिलहाल सुरेश सिंह मुंबई में हैं। मां का नाम रीता सिंह है. शिल्पा तीन भाई-बहन हैं। शिल्पा ने बी टेक की पढ़ाई मुंबई के एक इंजीनियरिंग कॉलेज से की है। मिस यूनिवर्स 2012 में 88 देशों की सुंदरियां शामिल हो रही हैं। मिस यूनिवर्स 2012 प्रतियोगिता में शिल्पा फैशन डिजायनर अंजली और अर्जुन कपूर के बनाए परिधानों में नजर आएंगी। प्रतियोगिता में मिस चाइना 2012 जी डान शू, चिली की सुंदरी कोनिग, मिस कोलम्बिया वेसक्वीज़ खिताब के लिए अपनी दावेदारी पेश करेंगी। इनके अलावा कनाडा की सुंदरी यामोह भी फाइनल मुकाबले में हैं। वहीं, सिंगापुर की सुंदरी लिन तेन और मिस पेराग्वे इग्नि इकेट की नजर भी खिताब पर है।
बाड़मेर जोधपुर में विजय दिवस मनाया गया
16 दिसम्बर का दिन भारतीय इतिहास का गौरवशाली दिन
बाड़मेर जोधपुर में विजय दिवस मनाया गया
बाड़मेर गौरव सैनिक सेवा परिषद बाड़मेर अध्यक्ष केप्टन हीरसिंह भाटी एवं केप्टन खेमाराम चौधरी ने विज्ञप्ति जारी कर बताया कि गौरव सैनिक सेवा परिषद बाड़मेर एवं नगरपरिशद बाड़मेर के सयुक्त तत्वावधान में हर वर्ष की भांति विजय दिवस के अवसर पर 16 दिसम्बर 2012 को प्रातः 11 बजे स्थानीय शहीद चौराहे पर विजय दिवस समारोह आयोजित किया गया । 16 दिसम्बर का दिन भारतीय इतिहास का गौरवशाली दिन है इस दिन पाकिस्तानी सेना के लेफिनेन्ट जनरल नियाजी ने अपने लगभग एक लाख सैनिको के साथ भारतीय सेना के कमाण्ड़र जनरल अरोड़ा के समक्ष आत्मसमर्पण किया था। इस युद्व के दौरान लेफिनेन्ट जनरल सगतसिंह व जनरल मानेक्शा ने महत्वपूर्ण भूमिका निभाई थी। इस युद्व के दौरान भारतीय सेना के चार हजार रणबांकुरो ने अपनी शहादत दी थी। भारतीय सेना की गौरवपूर्ण विजय व रणबांकुरो की शहादत को श्रृंद्वाजली देकर अक्षुण बनाये रखने के लिये यह दिवस विजय दिवस के रुप में मनाया गया । जिला मुख्यालय पर आयोजित इस समारोह में आर्मी, एयरफोर्स, बीएसएफ व राजस्थान पुलिस के अधिकारी/कर्मचारी उपस्थित रहेंगे एवं जवानो द्वारा गार्ड ऑफ आनर दिया गया । शहीद परिवारो को इस मौके पर सम्मानित किया गया ।
विजय दिवस : श्रृद्घांजलि समारोह
जोधपुर 16 दिसंबर 1971 भारतीय सेना के इतिहास का सुनहरा क्षण है। 1971 के भारतपाक युद्ध में हमारे वीर जवानों ने साहस, वीरता और बलिदान से पाकिस्तानी फौज को करारी शिकस्त दी। इस जीत ने भारत के इतिहास का रूख बदल दिया और भारतीय सेना की गौरवशाली परंपरा को कायम रखा।
विजय दिवस के अवसर पर जोधपुर कैन्ट में कोणाक्रर युद्ध स्मारक के पावन प्रांगण में श्रृद्घांजलि समारोह आयोजित किया गया। इस समारोह में लेफि्टनेन्ट जनरल एम एम एस राय, जी ओ सी, डेजर्ट कोर ने सेना के वरिष्ठ अफसर और जवानों की उपस्थिति में शहीदों को श्रृद्घांजलि अर्पित की।
भारतीय सेना का गौरवमय इतिहास आज के सैनिक के लिए प्रेरणा का स्रोत है। आज भी सैनिक कठिन कार्य और मुश्किल हालात का सामना, दृ़ निश्चय और आत्मविश्वास से करते हैं। डेजर्ट कोर भारतीय सैनिक को सलाम करता है। ॔मुझे तोड़ लेना वनमाली उस पथ में देना फेंक, मातृभूमि पर शीश च़ाने, जिस पथ पर जाऐं वीर अनेक’
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