रविवार, 16 दिसंबर 2012

पाकिस्तान को छाछरो देने का मलाल

पाकिस्तान को छाछरो देने का मलाल

जयपुर। आज से ठीक 41 साल पहले 16 दिसम्बर 1971 को शाम चार बजे पाकिस्तान के जनरल नियाजी ने 93 हजार सैनिकों के साथ भारतीय सेना के समक्ष समर्पण किया था। इस युद्ध में जयपुर के 12 जवानों समेत राजस्थान के 307 सपूतों ने शहादत दी थी। दो मोर्चो पर लड़े गए इस युद्ध में राजस्थान की सीमा पर जयपुर के ब्रिगेडियर भवानी सिंह के नेतृत्व में छाछरो इलाके को जीता गया था। पाकिस्तान की हुकूमत से परेशान वहां के हिन्दुओं ने तब राहत की सांस ली थी, लेकिन बाद में शिमला समझौते में यह जमीन लौटा दी गई। 50 हजार हिन्दू परिवार रातों-रात भारत आने को मजबूर हो गए। उन लोगों ने कई माह तक तम्बुओं में रात बिताई। छाछरो आज भी उन्हें भुलाए नहीं भूल रहा है।

कहां है छाछरो
छाछरो पाकिस्तान के सिंध प्रांत के थारपारकर जिले में तहसील मुख्यालय है। यह बाड़मेर से करीब 160 किलोमीटर की दूरी पर है और गडरा रोड बॉर्डर से मात्र 70 किलोमीटर दूर है।

घर का नाम रखा छाछरो हाउस
जयपुर में गोपालपुरा मोड़ स्थित बसंत बहार कॉलोनी में रह रहे घनश्याम मोहता ने छाछरो की याद में घर का नाम छाछरो हाउस रखा है। 1977 में इंदिरा गांधी जब जयपुर आईं तो मोहता ने पुस्तक लिखी, "एक लाख हाथ इंदिरा गांधी के साथ"। उन्होंने लिखा था कि हम 50 हजार शरणार्थी भी भारत के विकास में योगदान देना चाहते हैं। वहीं, प्रभुलाल महेश्वरी का कहना है कि यहां सब कुछ मिला, लेकिन जन्मभूमि से जबरदस्ती नाता टूटने की टीस है।

टंगेल पुल पर कब्जा करने की थी जिम्मेदारी
वह क्षण हम कभी नहीं भूल पाएंगे जब ढाका कंटोनमेंट के इंचार्ज जमशेद खां ने उन्हीं की धरती पर भारतीय सेना के जनरल नागरा के सामने अपनी पिस्टल रख दी थी। हर तरफ हमारी सेना के सामने पाकिस्तानी नतमस्तक हो रहे थे।... यह कहना है 1971 युद्ध के वीर चक्र विजेता जयपुर के ब्रिगेडियर वी.के. सारदा का। तब वे मेजर थे और पैराशूट रेजीमेंट के कम्पनी कमांडर थे। बकौल बिग्रेडियर सारदा उन्हें ढाका के पास टंगेल पुल पर कब्जा करने की जिम्मेदारी सौंपी गई थी, जिससे भारतीय फौज ढाका में घुस सके। 11 दिसम्बर 1971 को पैराशूट रेजीमेंट टंगेल में उतरी। वहां पाकिस्तानियों ने कई पुल नष्ट कर दिए थे। दोनों तरफ से गोलीबारी के बीच उन्होंने पाकिस्तान के 200 सैनिकों को बंधक बना लिया था और 70-80 को मार गिराया था। इसके बाद कदम पीछे नहीं हटे और अगले दिन भारतीय सेना ढाका में थी और 16 दिसम्बर को इतिहास रचा गया। ढाका के लोगों ने हमारी सेनाओं को अभूतपूर्व स्वागत किया।

जयपुर के शहीद
राइफलमैन- मोहन सिंह, सांभर
लांसनायक- बहादुर सिंह, मोलाहेड़ा
राइफलमैन- सूरजभान, पावटा
गनर- घीसाराम, कारौली कोटपूतली
गनर- मेहताब सिंह, मोलाहेड़ा
सिपाही- हुकमाराम जाट, सांभर
सवार- गजसिंह, खेजरोली
लांसनायक- मदन सिंह, खेजरोली
राइफलमैन- सवाई सिंह, बामनवास, कोटपूतली
सूबेदार- बद्रीसिंह, करीरी
राइफलमैन- रामसिंह, राजनौता

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