औरंगाबाद में स्थित है मध्यकालीन भारत का सबसे ताकतवर किला जिसे सभी दौलताबाद किले के नाम से जानते हैं. दौलताबाद औरंगाबाद से 14 किलोमीटर उत्तर-पश्चिम में बसा एक 14वीं सदी का शहर है. शुरू में इस किले का नाम देवगिरी था जिसका निर्माण कैलाश गुफा का निर्माण करने वाले राष्ट्रकुट शासक ने किया था.
अपने निर्माण वर्ष (1187-1318) से लेकर 1762 तक इस किले ने कई शासक देखे. इस किले पर यादव, खिलजी, तुगलक वंश ने शासन किया. मोहम्मद बिन तुगलक ने देवगिरी को अपनी राजधानी बनाकर इसका नाम दौलताबाद कर दिया. आज दौलताबाद का नाम भारत के इतिहास में स्वर्णिम अक्षरों में वर्णित है.
दौलताबाद अपने दुर्जेय पहाड़ी किले के लिए प्रसिद्ध है. 190 मीटर ऊंचाई का यह किला शंकु के आकार का है. क़िले की बाहरी दीवार और क़िले के आधार के बीच दीवारों की तीन मोटी पंक्तियां हैं जिसपर कई बुर्ज बने हुए हैं. प्राचीन देवगिरी नगरी इसी परकोटे के भीतर बसी हुई थी. इस किले की सबसे प्रमुख ध्यान देने वाली बात ये है कि इसमें बहुत से भूमिगत गलियारे और कई सारी खाईयां हैं. ये सभी चट्टानों को काटकर बनाए गए हैं. इस दुर्ग में एक अंधेरा भूमिगत मार्ग भी है, जिसे ‘अंधेरी’ कहते हैं. इस मार्ग में कहीं-कहीं पर गहरे गड्ढे भी हैं, जो शत्रु को धोखे से गहरी खाई में गिराने के लिए बनाये गये थे.
किले के प्रवेश द्वार पर लोहे की बड़ी अंगीठियां बनी हैं, जिनमें आक्रमणकारियों को बाहर ही रोकने के लिए आग सुलगा कर धुआं किया जाता था. चांद मीनार, चीनी महल और बरादारी इस किले के प्रमुख स्मारक हैं. चांद मीनार की ऊंचाई 63 मीटर है और इसे अलाउद्दीन बहमनी शाह ने 1435 में दौतलाबाद पर विजयी होने के उपलक्ष्य में बनाया था. यह मीनार दक्षिण भारत में मुस्लिम वास्तुकला की सुंदरतम कृतियों में से एक है. मीनार के ठीक पीछे जामा मस्जिद है. इस मस्जिद के पिलर मुख्यतः मंदिर से सटे हुए हैं.
इसके पास चीनी महल है जहां गोलकोंडा के अंतिम शासक अब्दुल हसन ताना शाह को औरंगजेब ने 1687 में कैद किया था. इसके आस-पास घुमावदार दुर्ग हैं.
जैन पंडित हेमाद्रि के कथनानुसार देवगिरी की स्थापना यादव नरेश भिलम्म (प्रथम) ने की थी. यादव नरेश पहले चालुक्य राज्य के अधीन थे.
भिलम्म ने 1187 में स्वतंत्र राज्य स्थापित करके देवगिरी में अपनी राजधानी बनाई. उसके पौत्र सिंहन ने प्राय: संपूर्ण पश्चिमी चालुक्य राज्य अपने अधिकार में कर लिया. देवगिरी के किले पर अलाउद्दीन खिलजी ने पहली बार 1294 में चढ़ाई की थी. इसमें हार के फलस्वरूप यादव नरेश को राजस्व देना स्वीकारना पड़ा लेकिन बाद में उन्होंने जब दिल्ली के सुल्तान को राजस्व देना बन्द कर दिया तो 1307, 1310 और 1318 में मलिक कफूर ने फिर देवगिरी पर आक्रमण किया.
1327 में मोहम्मद बिन तुगलक ने देवगिरी को अपनी राजधानी बनाई और इन्होंने ही इसका नाम देवगिरी से दौलताबाद रखा. मुगल बादशाह अकबर के समय देवगिरी को मुगलों ने जीत लिया और इसे मुगल साम्राज्य में शामिल कर लिया गया. 1707 ईस्वी में औरंगजेब की मौत तक इस किले पर मुगल शासन का ही नियंत्रण रहा. जब तक कि ये हैदराबाद के निजाम के कब्जे में नहीं आया.
देवगिरी के आसपास क्या देखें
अजंता-एलोरा की गुफाएं यहां से केवल 16 किलोमीटर दूर हैं.
कैसे पहुंचें-
सड़क मार्ग
औरंगाबाद और एलोरा के बीच चलने वाली रोडवेज की बसों से यहां पहुंचा जा सकता है. इसके अलावा आप टैक्सी के जरिए भी यहां सुगमता से पहुंच सकते हैं.
वायु मार्ग
यहां से सबसे नजदीकी हवाई अड्डा औरंगाबाद है. इस हवाई अड्डे के लिए मुंबई, दिल्ली, जयपुर और उदयपुर से उड़ानें भरी जा सकती हैं.
रेल यात्रा
मुंबई और देश के अन्य भागों से औरंगाबाद आसानी से पहुंचा जा सकता है. मुंबई से यहां दो सीधी ट्रेनें हैं. तपोवन एक्सप्रेस सुबह के समय मुंबई से चलती है और औरंगाबाद दिन में पहुंचा देती है. इसके अलावा देवगिरी एक्सप्रेस है जो मुंबई से रात को चलती है.
अपने निर्माण वर्ष (1187-1318) से लेकर 1762 तक इस किले ने कई शासक देखे. इस किले पर यादव, खिलजी, तुगलक वंश ने शासन किया. मोहम्मद बिन तुगलक ने देवगिरी को अपनी राजधानी बनाकर इसका नाम दौलताबाद कर दिया. आज दौलताबाद का नाम भारत के इतिहास में स्वर्णिम अक्षरों में वर्णित है.
दौलताबाद अपने दुर्जेय पहाड़ी किले के लिए प्रसिद्ध है. 190 मीटर ऊंचाई का यह किला शंकु के आकार का है. क़िले की बाहरी दीवार और क़िले के आधार के बीच दीवारों की तीन मोटी पंक्तियां हैं जिसपर कई बुर्ज बने हुए हैं. प्राचीन देवगिरी नगरी इसी परकोटे के भीतर बसी हुई थी. इस किले की सबसे प्रमुख ध्यान देने वाली बात ये है कि इसमें बहुत से भूमिगत गलियारे और कई सारी खाईयां हैं. ये सभी चट्टानों को काटकर बनाए गए हैं. इस दुर्ग में एक अंधेरा भूमिगत मार्ग भी है, जिसे ‘अंधेरी’ कहते हैं. इस मार्ग में कहीं-कहीं पर गहरे गड्ढे भी हैं, जो शत्रु को धोखे से गहरी खाई में गिराने के लिए बनाये गये थे.
किले के प्रवेश द्वार पर लोहे की बड़ी अंगीठियां बनी हैं, जिनमें आक्रमणकारियों को बाहर ही रोकने के लिए आग सुलगा कर धुआं किया जाता था. चांद मीनार, चीनी महल और बरादारी इस किले के प्रमुख स्मारक हैं. चांद मीनार की ऊंचाई 63 मीटर है और इसे अलाउद्दीन बहमनी शाह ने 1435 में दौतलाबाद पर विजयी होने के उपलक्ष्य में बनाया था. यह मीनार दक्षिण भारत में मुस्लिम वास्तुकला की सुंदरतम कृतियों में से एक है. मीनार के ठीक पीछे जामा मस्जिद है. इस मस्जिद के पिलर मुख्यतः मंदिर से सटे हुए हैं.
इसके पास चीनी महल है जहां गोलकोंडा के अंतिम शासक अब्दुल हसन ताना शाह को औरंगजेब ने 1687 में कैद किया था. इसके आस-पास घुमावदार दुर्ग हैं.
जैन पंडित हेमाद्रि के कथनानुसार देवगिरी की स्थापना यादव नरेश भिलम्म (प्रथम) ने की थी. यादव नरेश पहले चालुक्य राज्य के अधीन थे.
भिलम्म ने 1187 में स्वतंत्र राज्य स्थापित करके देवगिरी में अपनी राजधानी बनाई. उसके पौत्र सिंहन ने प्राय: संपूर्ण पश्चिमी चालुक्य राज्य अपने अधिकार में कर लिया. देवगिरी के किले पर अलाउद्दीन खिलजी ने पहली बार 1294 में चढ़ाई की थी. इसमें हार के फलस्वरूप यादव नरेश को राजस्व देना स्वीकारना पड़ा लेकिन बाद में उन्होंने जब दिल्ली के सुल्तान को राजस्व देना बन्द कर दिया तो 1307, 1310 और 1318 में मलिक कफूर ने फिर देवगिरी पर आक्रमण किया.
1327 में मोहम्मद बिन तुगलक ने देवगिरी को अपनी राजधानी बनाई और इन्होंने ही इसका नाम देवगिरी से दौलताबाद रखा. मुगल बादशाह अकबर के समय देवगिरी को मुगलों ने जीत लिया और इसे मुगल साम्राज्य में शामिल कर लिया गया. 1707 ईस्वी में औरंगजेब की मौत तक इस किले पर मुगल शासन का ही नियंत्रण रहा. जब तक कि ये हैदराबाद के निजाम के कब्जे में नहीं आया.
देवगिरी के आसपास क्या देखें
अजंता-एलोरा की गुफाएं यहां से केवल 16 किलोमीटर दूर हैं.
कैसे पहुंचें-
सड़क मार्ग
औरंगाबाद और एलोरा के बीच चलने वाली रोडवेज की बसों से यहां पहुंचा जा सकता है. इसके अलावा आप टैक्सी के जरिए भी यहां सुगमता से पहुंच सकते हैं.
वायु मार्ग
यहां से सबसे नजदीकी हवाई अड्डा औरंगाबाद है. इस हवाई अड्डे के लिए मुंबई, दिल्ली, जयपुर और उदयपुर से उड़ानें भरी जा सकती हैं.
रेल यात्रा
मुंबई और देश के अन्य भागों से औरंगाबाद आसानी से पहुंचा जा सकता है. मुंबई से यहां दो सीधी ट्रेनें हैं. तपोवन एक्सप्रेस सुबह के समय मुंबई से चलती है और औरंगाबाद दिन में पहुंचा देती है. इसके अलावा देवगिरी एक्सप्रेस है जो मुंबई से रात को चलती है.