जयपुर। एक साथ जीने-मरने की कसमें खाना और बेइंतहा मोहब्बत की पींगे पढ़ना। जमाने को मोहब्बत पर ऎतराज के चलते दोनों का एक साथ मौत को गले लगाना, लेकिन प्रेमी का बच जाना और माशूका की हत्या के मामले में कोर्ट का प्रेमी को ताउम्रकैद की सजा सुनाना।
लेकिन मामले का सुप्रीम कोर्ट में जाना और जिंदगीभर जेल की सजा का 10 साल की सजा में बदल जाना। ये कोई फिल्मी स्टोरी नहीं, बल्कि राजस्थान में घटी एक सच्ची दास्तां है, जिसमें सुप्रीम कोर्ट ने प्रेमी की ताउम्र सजा को 10 साल की कैद में बदलने का आदेश जारी किया है।
ये है कहानी
राजस्थान निवासी नरेन्द्र और नाथी के बीच प्रेम संबंध थे। लेकिन दोनों के एक ही गोत्र के होने से समाज और गांववालों को दोनों की मोहब्बत स्वीकर नहीं थी। लेकिन प्यार तो अंधा होता है। दोनों ने साथ ही जीने और साथ ही मरने की कसमें खाई थीं।
जब दोनों ने घरवालों को मनाने की काफी कोशिश की, लेकिन जब मोहब्बत को रोकने के लिए सामाजिक दीवारें खड़ी होने लगीं तो दोनों ने एक साथ मौत को गले लगाना मुनासिब समझा।
नरेन्द्र और नाथी ने फैसला किया कि दोनों ही चाकू से एक-दूसरे के हाथों मरना पसंद करेंगे। ठीक वादे के मुताबिक दोनों ने एक-दूसरे के पेट में चाकू घोंपा। लेकिन जमाने के साथ ही नरेन्द्र को मौत ने भी धोखा दे दिया था।
चाकू के वार से नाथी ने तो मौके पर ही दम तोड़ दिया लेकिन दो बार चाकू के पेट में घोंपने के बावजूद नरेन्द्र जिंदा रहा। मौके पर पहुंची पुलिस ने नाथी के शव को तो परिजनों के सुपुर्द कर दिया और नरेन्द्र को इलाज के लिए अस्पताल में भर्ती करवाया।
पुलिस ने नाथी की हत्या के आरोप में नरेन्द्र को गिरफ्तार कर कोर्ट में पेश किया। ट्रायल कोर्ट ने नरेन्द्र को हत्या का आरोपी मानते हुए ताउम्र कैद की सजा सुना दी। मामले में राजस्थान हाइकोर्ट ने भी ट्रायल कोर्ट के फैसल को बरकरार रखा और नरेन्द्र जिंदगीभर सजायाफ्ता कैदी बन गया।
मामले के देश के सर्वोच्च न्यायालय में जाते ही नरेन्द्र को फिर से जेल की काल कोठरी के बाहर सांस लेने की उम्मीद होने लगी। सुप्रीम कोर्ट के जस्टिस टीएस ठाकुर और आर भानुमती ने नरेन्द्र के वकील की दलीलों को सुनकर और मामले पर गहन सोच-विचार कर एक निर्णय दिया। सुप्रीम कोर्ट ने नरेन्द्र की सजा ताउम्र से घटाकर 10 साल कर दी।
कोर्ट ने कहा, "इस मामले में दोनों ही एक गोत्र के थे, जिनको एक साथ जिंदगी बितानी थी। लेकिन समाज और गांव वालों के विरोध के चलते दोनों ने एक समझौते के तहत मौत को चुना। इसमें दोनों ने ही एक-दूसरे के साथ अपनी जिंदगी खत्म करनी चाही, लेकिन प्रेमिका की मौत होने से मामले में प्रेमी को हत्या का दोषी नहीं ठहराया जा सकता।"
कोर्ट ने कहा, "नाथी की हत्या पूर्व नियोजित नहीं थी। बल्कि नरेन्द्र और नाथी दोनों ने स्वेच्छा से आत्महत्या करने की कोशिश की लेकिन नाथी की मौत हो गई। जिसके चलते कोर्ट नरेन्द्र को आईपीसी की धारा 300 का दोषी नहीं मानती है।"
बेंच ने नरेन्द्र को आईपीसी की धारा 304-आई आईपीसी के तहत दोषी मानते हुए 10 साल कैद की सजा सुनाई। -
लेकिन मामले का सुप्रीम कोर्ट में जाना और जिंदगीभर जेल की सजा का 10 साल की सजा में बदल जाना। ये कोई फिल्मी स्टोरी नहीं, बल्कि राजस्थान में घटी एक सच्ची दास्तां है, जिसमें सुप्रीम कोर्ट ने प्रेमी की ताउम्र सजा को 10 साल की कैद में बदलने का आदेश जारी किया है।
ये है कहानी
राजस्थान निवासी नरेन्द्र और नाथी के बीच प्रेम संबंध थे। लेकिन दोनों के एक ही गोत्र के होने से समाज और गांववालों को दोनों की मोहब्बत स्वीकर नहीं थी। लेकिन प्यार तो अंधा होता है। दोनों ने साथ ही जीने और साथ ही मरने की कसमें खाई थीं।
जब दोनों ने घरवालों को मनाने की काफी कोशिश की, लेकिन जब मोहब्बत को रोकने के लिए सामाजिक दीवारें खड़ी होने लगीं तो दोनों ने एक साथ मौत को गले लगाना मुनासिब समझा।
नरेन्द्र और नाथी ने फैसला किया कि दोनों ही चाकू से एक-दूसरे के हाथों मरना पसंद करेंगे। ठीक वादे के मुताबिक दोनों ने एक-दूसरे के पेट में चाकू घोंपा। लेकिन जमाने के साथ ही नरेन्द्र को मौत ने भी धोखा दे दिया था।
चाकू के वार से नाथी ने तो मौके पर ही दम तोड़ दिया लेकिन दो बार चाकू के पेट में घोंपने के बावजूद नरेन्द्र जिंदा रहा। मौके पर पहुंची पुलिस ने नाथी के शव को तो परिजनों के सुपुर्द कर दिया और नरेन्द्र को इलाज के लिए अस्पताल में भर्ती करवाया।
पुलिस ने नाथी की हत्या के आरोप में नरेन्द्र को गिरफ्तार कर कोर्ट में पेश किया। ट्रायल कोर्ट ने नरेन्द्र को हत्या का आरोपी मानते हुए ताउम्र कैद की सजा सुना दी। मामले में राजस्थान हाइकोर्ट ने भी ट्रायल कोर्ट के फैसल को बरकरार रखा और नरेन्द्र जिंदगीभर सजायाफ्ता कैदी बन गया।
मामले के देश के सर्वोच्च न्यायालय में जाते ही नरेन्द्र को फिर से जेल की काल कोठरी के बाहर सांस लेने की उम्मीद होने लगी। सुप्रीम कोर्ट के जस्टिस टीएस ठाकुर और आर भानुमती ने नरेन्द्र के वकील की दलीलों को सुनकर और मामले पर गहन सोच-विचार कर एक निर्णय दिया। सुप्रीम कोर्ट ने नरेन्द्र की सजा ताउम्र से घटाकर 10 साल कर दी।
कोर्ट ने कहा, "इस मामले में दोनों ही एक गोत्र के थे, जिनको एक साथ जिंदगी बितानी थी। लेकिन समाज और गांव वालों के विरोध के चलते दोनों ने एक समझौते के तहत मौत को चुना। इसमें दोनों ने ही एक-दूसरे के साथ अपनी जिंदगी खत्म करनी चाही, लेकिन प्रेमिका की मौत होने से मामले में प्रेमी को हत्या का दोषी नहीं ठहराया जा सकता।"
कोर्ट ने कहा, "नाथी की हत्या पूर्व नियोजित नहीं थी। बल्कि नरेन्द्र और नाथी दोनों ने स्वेच्छा से आत्महत्या करने की कोशिश की लेकिन नाथी की मौत हो गई। जिसके चलते कोर्ट नरेन्द्र को आईपीसी की धारा 300 का दोषी नहीं मानती है।"
बेंच ने नरेन्द्र को आईपीसी की धारा 304-आई आईपीसी के तहत दोषी मानते हुए 10 साल कैद की सजा सुनाई। -