रविवार, 16 मार्च 2014

मतदाताओं को संदेश देने बाइक पर निकले कलक्टर

जोधपुर।लोकसभा चुनाव में मतदाताओं को मतदान के प्रति जागरूक करने के लिए शुक्रवार को निकाली गई मोटर साइकिल रैली में जिला निर्वाचन अधिकारी (कलक्टर) डॉ. प्रीतम बी. यशवंत स्वयं भी मोटरसाइकिल से संदेश देने निकले। उन्होंने रैली की कमान संभाली और शहर के विभिन्न मार्गो पर मोटरसाइकिल चलाकर मतदाता जागरूकता का संदेश दिया।

नेहरू युवा केन्द्र, जिला क्रीड़ा परिषद् के संयुक्त तत्वावधान में निकाली गई रैली के दौरान जिला कलक्टर ने अपनी मोटर साइकिल के आगे "आपका मतदान लोकतंत्र की जान" तख्ती भी लगा रखी थी। जिला कलक्टर कार्यालय से रैली का शुभारंभ किया गया। उपखण्ड अधिकारी शिवंागी स्वर्णकार तथा प्रशिक्षु आईएएस रूकमणी रियार ने हरी झण्डी दिखाकर रैली को रवाना किया।


यहां से निकली रैली

रैली कलक्ट्रेट से पावटा चौराहा, उदयमंदिर, मेड़ती गेट, हाथीराम का ओडा, घण्टाघर, नई सडक, सोजती गेट, पुरी तिराहा, राजरणछोड़दासजी मंदिर, महात्मा गांधी अस्पताल के बाहर, जालोरी गेट, शनिpर जी का थान, पंाचवी रोड, बॅाम्बे मोटर चौराहा, बारहवीं रोड, जलजोग चौराहा, सरदारपुरा सी रोड, महावीर कॅाम्पलेक्स, जेडीए सर्किल, भास्कर चौराहा, भाटी चौराहा, रातानाडा होते हुए यूथ हॅास्टल पहुंचकर संपन्न हुई।

नेहरू युवा केन्द्र के जिला समन्वयक एसएस जोशी ने रैली के यूथ हॅास्टल पहुंचने पर स्वागत किया। इस अवसर पर जिला निर्वाचन अधिकारी ने कहा कि लोकसभा चुनाव में मतदान प्रतिशत बढाने के लिए किए जाने वाले विविध प्रयासो की एक श्ृंखला होती है, रैली के माध्यम से उसकी शुरूआत की गई है। स्वीप सह प्रभारी महिला एवं बाल विकास विभाग की उप निदेशक शशि शर्मा ने भी संबोधित किया। 

रियासतकाल से जारी है भीनमाल की 'घोटा गेर'

भीनमाल में दूसरे दिन घोटा गेर का होता है आयोजन, इस वजह से तीसरे दिन होती है धुलंडी
 
रियासतकाल से जारी है भीनमाल की 'घोटा गेर'
भीनमाल भीनमाल शहर में रिसायतकाल में शुरू हुई घोटा गेर आज भी अपनी पहचान बनाए हुए हैं। होली के पर्व पर प्रति वर्ष परंपरागत घोटा गेर का आयोजन होता है, जिसमें नगर सहित उपखंड क्षेत्र से बड़ी संख्या में लोग शिरकत करते है। भीनमाल शहर में शांति और भाईचारा को बढ़ावा देने के लिए रियासतकाल से घोटा गेर का आयोजन हो रहा है। होली के दूसरे दिन नगर के आथमणा वास व उगमणा वास में अलग-अलग गेरों का आयोजन होता है, जो नगर के विभिन्न मंदिरों में धोक लगाने के बाद अंतिम दर्शन चंडीनाथ महादेव में होता है। इसके बाद गैर नृत्य करते हुए दोनों गैरों का संगम बड़े चोहटे पर होता है। जहां घोटे से करीब दो घंटे तक लगातार भीनमाल के प्रसिद्ध बाबरिया ढोल पर गेर नृत्य का आयोजन होता है। जहां लोग नृत्य कर अपनी शक्ति और कुशलता का परिचय देते है। इस दौरान विभिन्न समाजों के मौजिज लोग ढोल के पास बैठकर नृत्य का लुत्फ उठाते हैं। 
तीसरे दिन होती है धुलंडी
देशभर में होली के दूसरे दिन धुलंडी का आयोजन होता है, लेकिन भीनमाल में दूसरे दिन घोटा गेर की वजह से तीसरे दिन धुलंडी का आयोजन होता है। इस कारण होली के बाद लगातार दो दिन तक बाजार बंद रहता है।
आग के वेग से देखते है शगुन : होली के पर्व पर नगर के विभिन्न गली-मौहल्लों में होलिका दहन का आयोजन होता है। जिसमें आग के वेग के अनुसार आगामी वर्ष का शगुन देखते हैं। वहीं होलिका दहन वाले स्थान पर जमीन में मिट्टी के पात्र में बाजरा सहित सात प्रकार का अनाज व पानी भरकर जमीन में गाड देते हैं। जिसे दूसरे दिन निकालकर अनाज को देखते है, जो अनाज ज्यादा मुलायम होगा। उसकी फसल अगले वर्ष में अच्छी मानी जाती है।

बेटे ने प्यार किया, मां को न्यूड कर घुमाया

जांजगीर-चांपा। बेटे ने प्यार किया और उसके प्यार की कीमत मां को चुकानी पड़ी। प्यार करने वाली लड़की के परिजनों ने अपमान का बदला लेने के लिए लड़के की मां को निर्वस्त्र कर न केवल पिटाई की, बल्कि गाजे-बाजे के साथ पूरे गांव में घुमाया। अब पीडिता को थाने से भी न्याय नहीं मिल रहा है। उस पर राजीनामा के लिए दबाव बनाया जा रहा है। महिला ने एसपी से न्याय की गुहार की है।
मामला डभरा क्षेत्र के रेड़ा गांव का है। 10 मार्च की शाम 4.30 बजे लड़के की मां जब अपने घर मे अकेली थी तब गांव के डहुकलाल सारथी और उसके साथ दर्जनों अन्य लोग अचानक घर मे घुस गए और मारपीट शुरू कर दी।

महिला को पीटते हुए घर से निकाला और बैंड बाजे के साथ घसीटते हुए अपने घर ले गए। यहां महिला को निर्वस्त्र कर अमानवीय हरकत की गई। उसकी सोने की चेन लूट ली गई। रात 10 बजे तक आबरू बचाने के लिए महिला चीखती रही। लेकिन, ग्रामीण तमाशबीन बने रहे। महिला का पति जब घर पहुंचा तब उसने थाने में शिकायत की।

सुनवाई नहीं
पति की शिकायत पर पुलिस गांव पहुंची, लेकिन मामले को दबाने और समझौता कराने की कोशिश की। न्याय न मिलने पर पीडित परिवार पुलिस अधीक्षक कार्यालय पहुंचा। शिकायत पर एएसपी विजय अग्रवाल ने मामले की जांच के लिए डभरा पुलिस को निर्देशित किया है।

इसलिए की पिटाई
पीडित महिला ने बताया कि उसका बेटा अगस्त 2013 में गांव के ही डहुकलाल की बेटी को अपने साथ जम्मू-कश्मीर ले गया था। कुछ दिन बाद वह युवती को गांव छोड़कर जम्मू-कश्मीर चला गया। इसी अपमान का बदला लेने के लिए आरोपियों ने हैवानियत का खेल खेला।

ये थे पिटाई में शामिल

डहुकलाल सारथी, जोसिक पिता अनुजराम, टीकाराम पिता नरेश कुमार, पुनाउ पिता मोहन, जगदीश पिता सुंदरसाय, प्रेमकुमारी पति गोविंद, मुनुदाई पति सुंदर सारथी, सावित्री पति अनुजराम, कौशिल्या पति डहुकलाल, सुनीता पति दीनदयाल, शुभकुमारी पति नरेशकुमार और दीनदयाल पिता डहुकलाल।

झूठी शिकायत

मामला प्रेम प्रसंग से सम्बंधित है। इसी को लेकर दोनों पक्षों में विवाद होता रहता था। महिला झूठ बोल रही है। उसके साथ कुछ नहीं हुआ। दोनों पक्षों के बीच राजीनामा नहीं हुआ तो महिला उच्चाधिकारियों से शिकायत कर रही है।
-धन्नू यादव, टीआई, डभरा

जांच कराई जाएगी
महिला ने ज्यादती होने की शिकायत की है। आरोपो की जांच कराई जाएगी। दोषियों के खिलाफ उचित कार्रवाई की जाएगी।
- विजय अग्रवाल, एएसपी

महिला के साथ ज्यादती
महिला के साथ ज्यादती हुई है। मैं उसके घर गया था। महिला के कपड़े फटे थे। पीडिता को न्याय दिलाने के लिए एसपी कार्यालय पहुंचा हूं।
- रामसिंह सिदार, सरपंच, रेड़ा - 

शनिवार, 15 मार्च 2014

बीजेपी का ऎलान : वाराणसी से मोदी, लखनऊ से राजनाथ, जेटली अमृतसर से लड़ेंगे चुनाव

नई दिल्ली। भारतीय जनता पार्टी के प्रधानमंत्री पद के उम्मीदवार नरेंद्र मोदी पहली बार उत्तर प्रदेश मेंं वाराणसी सीट से, राष्ट्रीय अध्यक्ष राजनाथ सिंह लखनऊ और राज्यसभा में विपक्ष के नेता अरूण जेटली पंजाब में अमृतसर से लोकसभा चुनाव लड़ेंगे। भाजपा की केंदीय चुनाव समिति की ग्यारह घंटे चली मैराथन बैठक में पार्टी के दिग्गज नेताओं को चुनाव लड़ाने का फैसला किया गया। पार्टी ने चौथी सूची जारी करते हुये उत्तर प्रदेश के लिए 58 उम्मीदवारों के नाम तय किये। बीजेपी का ऎलान : वाराणसी से मोदी, लखनऊ से राजनाथ, जेटली अमृतसर से लड़ेंगे चुनाव
मोदी को वाराणसी से चुनाव लड़ाने का निर्णय लेने के बाद इस सीट से वर्तमान सांसद और पार्टी के वरिष्ठ नेता मुरली मनोहर जोशी को कानपुर से उम्मीदवार घोषित किया गया। राजनाथ सिंह गाजियाबाद के बजाय इस बार लखनऊ से चुनाव लड़ेंगे। यह सीट पहले पूर्व प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी ने और फिर उनके सहयोगी लालजी टंडन ने जीती थी।

टंडन ने पहले यह सीट छोड़ने में टालमटोल किया था। चुनाव समिति ने सिंह को इस सीट से किस्मत आजमाने का मौका दे दिया है। अरूण जेटली पहली बार लोकसभा चुनाव में किस्मत आजमायेंगे और पार्टी ने उन्हें अमृतसर से टिकट दे दिया है। अभी तक सीट पर जाने माने क्रिकेटर नवजोत सिद्धू के पास थी। जिन्होंने घोषणा की है कि अगर जेटली उनकी सीट से चुनाव लड़े तो वह नाराज नहीं होंगे। लेकिन कहीं और से चुनाव नहीं लड़ेंगे।

वाराणसी - नरेंद्र मोदी
लखनऊ - राजनाथ सिंह
मुरली मनोहर जोशी - कानपुर
अरूण जेटली - अमृतसर
सहारनपुर- राघव रतन पाल
इटावा - अशोक दोहरे
भदोही - वीरेन्द्र सिंह मस्त
कैराना - हुकुम सिंह
मुजफ्फरनगर - संजीव पलियान
बिजनौर- राजेन्द्र सिंह
मुरादाबाद - कुंवर सवेर्रश सिंह
मेरठ - राजेन्द्र अग्रवाल
आगरा- राम शंकर कटेरिया
नोएडा - महेश शर्मा
फिरोजाबाद - एसपी सिंह बघेल
पीलीभीत - मेनका गांधी
सीतापुर - रमेश वर्मा
हरदोई - अंशुल वर्मा
सुल्तानपुर - वरूण गांधी
कन्नौज - सुब्रत पाठक
झांसी - उमा भारती
फतेहपुर - निरंजन ज्योति
फैजाबाद - लल्लू सिंह
राजबीर सिंह - एटा
गोरखपुर- योगी आदित्यनाथ
लालगंज - नीलम सोनकर
रॉबर्टसगंज - छोटेलाल खरवार
बस्ती - हरीश दि्वेदी
देवरिया - कलराज मिश्रा
जौनपुर - केपी सिंह
चंदौली - महेन्द्र नाथ पांडे

दिल्ली
चांदनी चौक - हर्षवर्धन
नॉर्थ ईस्ट दिल्ली - मनोज तिवारी
पूर्वी दिल्ली - महेश गिरी
नई दिल्ली - मीनाक्षी लेखी
पश्चिमी दिल्ली - प्रवेश वर्मा
दक्षिण दिल्ली - रमेश विधूंड़ी
उत्तर पश्चिम दिल्ली - उदितराज

पंजाब
अमृतसर - अरूण जेटली

हरियाणा
गुड़गांव - राव इंद्रजीत सिंह

ओडिशा
अस्का - महेश मोहंती

चंडीगढ़ - किरण खेर

छत्तीसगढ़
सरगुजा - कमलभान सिंह
रायगढ़ - विष्णु देव सहाय
कोरबा - बंशी लाल महतो
बिलासपुर - रतनलाल साहू
राजनांदगाव - अभिषेक सिंह
रायपुर - रमेश बाइस
बस्तर - दिनेश कश्यप
कांकेर - बिक्रम उसेंडी

बिहार
पटना साहिब - शत्रुघन सिंहा
महाराजगंज - जनार्दन सिंह

उत्तराखंड
हरिद्वार - रमेश पोखरियाल निशंक
गढ़वाल पौढ़ी - बीसी खडंूरी
नैनीताल - भगत सिंह कोश्यारी
टिहरी - महारानी राज लक्ष्मी

सिक्किम
नरवभतु खाती वाड़ा

बाड़मेर जिले में 315 हिस्ट्रीशीटर ,पुलिसवाले हुलिया नहीं जानते, हाल क्या बताएंगे?



बाड़मेर। पुलिस के पास जिन व्यक्तियों का हुलिया ही नहीं है, वह हर सप्ताह उनकी निगरानी कर रही है। इतना ही नहीं उनकी गतिविधियों पर पूरी नजर में रखी जा रही है। सुनने व समझने में यह भले ही अजीब लगे, लेकिन हिस्ट्रीशीटर्स के मामले में बाड़मेर पुलिस का रवैया कुछ ऎसा ही है।
हुलिया नहीं जानते, हाल क्या बताएंगे?
बाड़मेर जिले में 315 हिस्ट्रीशीटर है, जिनमें से 28 हिस्ट्रीशीटर के फोटो पुलिस के पास नहीं है। जिन हिस्ट्रीशीटर के फोटो नहीं है, पुलिस की वेबसाइट में हिस्ट्रीशीटर के फोटो के स्थान पर स्पष्ट रूप से नॉट अवलेबल लिखा हुआ है। बिना फोटो वाले हिस्ट्रीशीटर ज्यादा पुराने हो, ऎसा नहीं है। बाईस वर्ष से लेकर बहत्तर वर्ष की उम्र तक हिस्ट्रशीटर के मामले में यही हाल है। हिस्ट्रीशीटर्स की गतिविधियों पर निगरानी रखने के मामले में कितनी गंभीर है, इसका अनुमान इसी से लगाया जा सकता है। नियमानुसार हिस्ट्रीशीटर का तीन एंगल (सीधा, दांए, बांए) से फोटो पुलिस के पास उपलब्ध होना चाहिए ताकि हुलिया बदलने की स्थिति में भी उसकी पहचान की जा सके और उस पर निगरानी रखी जा सके।

बिना फोटो वाले हिस्ट्रीशीटर

पुलिस के पास जिन अठाईस हिस्ट्रीशीटर के फोटो नहीं है, उनके नाम मनोहरलाल निवासी डोली (थाना कल्याणपुर), पपूसिंह निवासी बालोतरा (थाना बालोतरा), किशनाराम निवासी बायतु चिमनजी, लूम्बाराम निवासी सेवनियाला, मोटाराम निवासी कोसरिया, उमाराम निवासी कोलू (थाना बायतु), बाबूराम निवासी बोला, भोमाराम निवासी आदर्श बस्ती नांद, धनाराम निवासी केरावा, जगदीश निवासी विशाला, जार मोहम्मद निवासी तिरसिंगड़ी, खीमदान निवासी सुरा, खेताराम निवासी आटी, खेताराम निवासी विशाला, मालाराम निवासी जालीपा आगोर, मालाराम निवासी आदर्श बस्ती नांद, नखतसिंह निवासी मारूड़ी, सलीम निवासी विशाला, उम्मेद अली निवासी धनोड़ा (थाना बाड़मेर ग्रामीण), गोपालसिंह निवासी खारा राठौड़ान (थाना रामसर), ओमप्रकाश निवासी रेलवे कुआं संख्या तीन बाड़मेर, पवनकुमार निवासी कल्याणपुरा बाड़मेर (थाना कोतवाली), जीवराजसिंह निवासी भिंयाड़ (थाना शिव), छुगसिंह निवासी दूधवा, राजूसिंह निवासी चौहटन (थाना चौहटन), भागीरथराम निवासी नेड़ी नाडी (थाना धोरीमन्ना), रेखाराम निवासी नोखड़ा (थाना रागेश्वरी), श्रवणकुमार निवासी बारासण (थाना गुड़ामालानी) है।

निगरानी पर असर नहीं

हिस्ट्रीशीटर के फोटो उपलब्ध नहीं होने का निगरानी पर कोई असर नहीं पड़ता है। उनकी गतिविधियों पर पुलिस नजर रहती है। बीट कांस्टेबल यह दायित्व निभाते हैं। फिर भी जिन हिस्ट्रीशीटर के फोटो उपलब्ध नहीं है, उनके फोटो लेकर वेबसाइट व संबंधित फाइलों को अपडेट किया जाएगा।
-रघुनाथ गर्ग, अतिरिक्त पुलिस अधीक्षक बाड़मेर

जिले में सर्किल व थानावार हिस्ट्रीशीटर का ब्यौरा
बाड़मेर : हिस्ट्रीशीटर (124)
थाना बायतु 11
थाना बाड़मेर ग्रामीण 13
थाना गिड़ा 17
थाना गिराब 12
थाना कोतवाली 25
थाना नागाणा 14
थाना सदर 15
थाना शिव 17
बालोतरा : हिस्ट्रीशीटर (79)
थाना बालोतरा 28
थाना कल्याणपुर 14
थाना मण्डली 2
थाना पचपदरा 6
थाना समदड़ी 12
थाना सिवाना 17
चौहटन : हिस्ट्रीशीटर (57)
थाना बिंजराड़ 12
थाना चौहटन 24
थाना गडरारोड 13
थाना रामसर 8
गुड़ामालानी : हिस्ट्रीशीटर (55)
थाना बाखासर 9
थाना धोरीमन्ना 16
थाना गुड़ामालानी 10
थाना सेड़वा 11
थाना सिणधरी 9
जिले में कुल हिस्ट्रीशीटर 315

हरियाणा में जींद के कुंआरे लड़कों ने बनाई 'रांडा यूनियन', बोले- 'दुल्हन दो, वोट लो'

हरियाणा में जींद के बीबीपुर की पंचायत ने लोकसभा चुनावों में वोट देने के लिए एक अजीबोगरीब शर्त रख दी है. पंचायत ने अपनी मांग को मनवाने के लिए एक नया तरीका अपनाया है. पंचायत ने इस बार उन्हीं प्रत्याशियों को वोट देने का ऐलान किया है जो उनके गांव के कुंआरे लड़कों की शादी करवाएंगे.symbolic image
इस मांग को मनवाने और उसे और मजबूती देने के लिए गांव वालों ने एक कुंआरों का ग्रुप भी बनाया है. इनका नारा है - 'बहू दो वोट लो'. जो इनके लिए दुल्हन लाकर उनकी शादी करवाएगा, वही उनके गांव के कुंआरों का भी वोट पाएगा.

इससे पहले बीबीपुर गांव सरपंच सुनील जागलान भ्रूण हत्या को लेकर खाप की महांपचायत का आयोजन भी कर चुके है. उनकी इस पहल पर विदेशी मीडिया ने भी उन्हें कवर किया था.

दरअसल हरियाणा में घटता लिंगानुपात इस स्थिति की अहम वजह है. हरियाणा में एक हजार लड़कों पर मात्र 877 लड़कियां हैं.

जींद के इस गांव के सरपंच सुनील जगलान कहते हैं कि गांव वाले अब इस मुद्दे को पूरी तरह से उठा चुके है. उनका कहना है कि अब वोट उसी को मिलेगा जो बहू देगा.

हरियाणा में दुल्हन ना मिलने के कारण हजारों युवक कुंवारे हैं. राज्य में कन्या भ्रूण हत्या से सेक्स रेश्यो में असंतुलन आया है. इससे कई शादी योग्य युवकों के सामने दुल्हन का संकट खड़ा है. इसी समस्या के चलते हरियाणा के जींद जिले के गांव बीबीपुर के इन कुंवारे युवकों ने 'रांडा यूनियन' नाम से अपना संगठन बनाया है. लोकसभा चुनावों के इस मौसम में उन्होंने वोट को हथियार बनाते हुए 'बहू दिलाओ, वोट पाओ' का नारा उछाला है.

हम ​आपको बता दें कि एक सर्वे के अनुसार हरियाणा के करीब 7000 गांवों में से हर एक गांव में करीब 150 नौजवान ऐसे हैं जो 25 साल या उससे ज्यादा की उम्र के हो चुके हैं लकिन उनकी शादियां नहीं हो रही है.


  

भगोरिया मेला: पान-गुलाल से चुने जाते हैं जीवन साथी, भागकर करनी पड़ती है शादी



आपने अपने जीवन साथी को लेकर कई ख्‍वाब संजोए होंगे. एक अच्‍छे पार्टनर के इंतजार में हो सकता है आपने लंबा समय भी बिता दिया हो, लेकिन मध्‍य प्रदेश के निमांड इलाके में एक मेला लगता है जहां पान-गुलाल से ही जीवनसाथी चुन लिया जाता है.
(Symbolic Image)
दरअसल, होली पर्व के निकट ही झाबुआ, धार, बडवानी और अलिराजपुर में उत्साह और उमंग से सराबोर जनजातीय वर्ग का प्रमुख मेला भगोरिया का अयोजन होता है. मान्‍यता के अनुसार युवक और युवतियां अपने मनपसंद जीवन साथी की तलाश के लिए ही यहां आते हैं. वे पान खिलाकर अपने प्रेम का इजहार करते हैं और दिल जीतने की कोशिश करते हैं.

बांसुरी की आवाज पर थिरकते हैं कदम
मेले में विवाह के योग्य युवक और युवतियां सज-धजकर आते हैं, लेकिन दिल जीतने का काम इतना आसान भी नहीं होता. इसके लिए युवक जहां हाथ में बांसुरी थामे मांदर की थाप पर थिरकते हैं, वहीं युवतियां घूंघट की ओट से अपने प्रियतम को रिझाती हैं.



धार के भगोरिया मेला में सज-धजकर आए फूल सिंह कहते हैं, 'मैं यहां यह उम्मीद लेकर आया हूं कि मुझे कोई युवती मिल जाएगी, जिसके साथ मैं अपना जीवन खुशी-खुशी बिताउंगा.' वे आगे कहते हैं कि मान्‍यता के अनुसार, पहले तो वे मनपसंद युवती को पान खिलाएंगे और फिर उसकी ओर से भी पान खाने की पहल पर वे भाग कर शादी कर लेंगे.

भागकर शादी करने की है प्रथा
इन मेलों में आने वाले मौज-मस्ती का कोई भी मौका हाथ से नहीं जाने देते. मेले में झूलों से लेकर आइस्क्रीम और गोलगप्पों का बाजार सजा है. मुकाम सिंह कहते हैं कि भगोरिया मेले को लेकर मान्यता है कि इस मौके पर युवक-युवती एक दूसरे को पान खिला दें या एक दूसरे के गाल पर गुलाल लगा दें तो मान लिया जाता है कि दोनों में प्रेम हो गया है. इतना ही नहीं वे दोनों मौका पाकर भाग जाते हैं और विवाह बंधन में बंध जाते हैं. भाग कर शादी करने के कारण ही इस पर्व को भगोरिया पर्व कहा जाता है.

राज्य सरकार के मंत्री अंतर सिंह आर्य का कहना है कि यह उत्साह और उमंग का त्योहार है. यही कारण है कि इस पर्व के मौके पर लगने वाले मेलों में हर आयु वर्ग के लोग हिस्सा लेते हैं. यह पर्व जनजातीय वर्ग की सांस्कृति का प्रतीक है.


 

होली के अदभूत देवता - र्इलोजी


होली के अदभूत देवता - र्इलोजी


होली का त्यौहार बड़े ही हर्षोल्लास, उमंग, विशेष उत्साह एवं उछड़कूद के साथ देश के कौने-कौने में मनाया जाता है । चारों ओर रंग-बिरंगी पिचकारियों की बौछारे बरसती नजर आती है । अनेकों रंगों, गुलाल एवं अबीर होली के आकर्षण बने रहते हैं । विशाल देश जिसमें अनकों धर्म, जाति, सम्प्रदाय के लोग निवास करते है लेकिन होली के इस रंगीन त्यौहार को सभी मिल जुलकर मनाते है । राष्ट्रीय एकता, आत्मीयता, बन्धुत्व की भावना इस त्यौहार में दिखार्इ देती है । यह त्यौहार देश के विभिन्न स्थानों पर विभिन्न तौर तरीकों के साथ मनाया जाता है । कहीं लठ मार होली चलती है, तो कहीं रंग गुलाल उड़ते है । कहीं भाभी देवरों के बीच होली है तो कहीं बेत की मार देखने को मिलती है । कहीं कीचड़ एवं धूल भरी होली खेली जाती है तो कहीं पत्थरों की बौछारे भी होती है । विभिन्न प्रकार की होली खेलने पर भी अनेकों रंग इस त्यौहार में रंगीनी ले ही आते है । राग फाग, संग का साथ, नृत्यों की थरकन, मस्ती की मल्हार, गधों की सवारी, जिन्दों का जनाजा इस त्यौहार के अलबेले आकर्षण होते है । वहां इस त्यौहार पर अदभूत देवता र्इलोजी का पूजन राजस्थान प्रदेश के अनेकों स्थानों पर बड़े ही चाव से किया जाता है । र्इलोजी होली के देवता है जिसे फागण देवता से भी राजस्थान में सम्बोधित किया जाता है । जो शहरों एवं कस्बों के मध्य भाग में, आम चौराहों पर और जहां जनमानस का अधिकाधिक आवागमन होता है वहां इसकी स्थापना की जाती है । यह र्इलोजी एक विशाल बैठी हुर्इ प्रतिमा होती है । कहीं पर भी र्इलोजी की खड़ी अथवा सोर्इ हुर्इ प्रतिमा का निर्माण देखने को नहीं मिला है । यह पाषाणों, र्इटों आदि की चुनार्इ से इसका निर्माण किया जाता है । जिस पर प्लास्टर कर इसे मनुष्य की आकृति में बदल दिया जाता है । सिर पर सुन्दर पाग-साफा, कानों में कुण्डल, गले में हार, गोल मटोल चेहरा, चमकती हुर्इ विशाल आंखें, हाथों की भुजाओं पर बाजुबन्द, कलार्इयों में कंगन, भारी भरकम शरीर, फैला हुआ पेट, विशाल पैरों के घुटनों को आगे किये हुए यह र्इलोजी होते है । लिंग का स्थान विशेष तौर से बनाया जाता है । इनके शरीर पर विभिन्न रंगों की रंगीनी की जाती है । जो प्रतिमा की सुन्दरता में चार चांद जड़ देते है । होली के दिन इस प्रतिमा को सुन्दर वस्त्रों से भी सुशोभित किया जाता है और कहीं-कहीं पर वस्त्रों के स्थान पर रंग ही प्रतिमा पर पोत दिये जाते है जिससे प्रतिमा अति आकर्षक दिखार्इ देती है । सिर पर बनी पाग में दुल्हों की भांति कलंगी, तुरे, मोर आदि लगाये जाते है और गले में हार पहनाया जाता है । हाथों में नारियल थमा देते है । यह र्इलोजी कौन थे, इनका पूजन क्यों किया जाता है, इनको इतना सजाया और संवारा क्यों जाता है यह विचारणीय प्रश्न सामने खड़ा होना स्वाभाविक है । बड़े बजुर्गो के कथनासुार र्इलोजी नासितक राजा हिरण्यकश्यप के होने वाले बहनोर्इ थे । जो इसकी बहन होलिका से शादी करने के लिये दुल्हे की वेशभूषा में बनठनकर विशाल बरात लेकर आये थे । लेकिन निर्दयी राजा हिरण्यकश्यप प्रहलाद को जिन्दा जलाने के लिये अगिन से न जलने का वरदान प्राप्त अपनी बहन होलिका की गोद में उसे धधकती चित्ता में बिठा दिया । अगिन की धूं-धूं में होलिका जलकर राख हो गर्इ और प्रहलाद सकुशल बच गया । आसितक प्रहलाद ने नासितक राजा हिरण्यकश्यप पर विजय अवश्य ही प्राप्त की लेकिन र्इलोजी ने अपने होने वाली वधु को सदा-सदा के लिये खो दिया । इस गम में इन्होंने जली हुर्इ होलिका की राख को अपने शरीर पर मलकर अपनी इच्छा को पूर्ण किया और आजीवन अखण्ड कुंवारे रह गये । इसी कारण होली का दूसरा दिन धूलेली अर्थत धूलभरी होली के रूप में मनाया जाता है । इसी प्रकार दंतकथाओं के अनुसार ये शहर एवं कस्बों के रक्षक देवता के रूप में इनकी स्थापना की जाती है । कहा जाता है कि ये क्षेत्रपाल, भैरू का रूप है । जो कि अक्सर बांझ महिलाओं को पुत्र दिया करते है । इस सम्बन्ध में अनेकों कथाऐं विभिन्न क्षेत्रों में प्रचलित हैं । कहा जाता है कि एक सेठ के कार्इ पुत्र नहीं हुआ । र्इलोजी की होली के दिन लिंग पूजा की गर्इ और उसे पुत्र की प्रापित हुर्इ । याचना के अनुसार उसे जीवित पाडे-भैसे की बलि देनी थी लेकिन सेठ ने हत्या न करके भैसे को र्इलोजी-क्षेत्रपाल-भैरू की प्रतिमा के बांध कर चला गया । कुछ समय पश्चात भैसा रस्सी समेत प्रतिमा को उखाड़ कर घसीटता हुआ भागने लगा । रास्ते में एक देवी ने र्इलोजी की यह दशा देखी तो वह खिलखिलाकर हंसने लगी और मजाक करने लगी । तब र्इलोजी ने आवेश में आकर कहा कि तू तो मठ में बैठी मटका करे है सेठ ने बेटा कोनी दिया । मैं दिया जको म्हारो हाल देख । उसी दिन से र्इलोजी मजाक का प्रतीक बन बैठा । आज भी र्इलोजी को होली के कुछ दिन पूर्व में ही हर्षोल्लास के साथ सजाया संवारा जाता है । अनेकों राग फाग इनके जीवन पर गार्इ जाती है । जिसमें \र्इलोजी रो विया आयो लगनिया कुण लिखसी रे आदि राग फाग के तौर पर अपने सगे सम्बनिधयों, मित्रों, हमझोलियों की मजाक को जोड़कर गाते है । होलिका के जलने के कारण र्इलोजी डोकरो गले रे बांध्यों टोकरों । इन्हीं र्इलोजी की होली के दिन खूब पूजा की जाती है । कहा जाता है कि र्इलोजी का एक ही चमत्कार प्रसिद्ध है कि यह बांझ सित्रयों को पुत्र देते है जिसके कारण इनके लिंग की पूजा की जाती है । होली के दिन र्इलोजी की पूजा हेतु नारियल चढाये जाते है । अगरबत्तियों का धूप किया जाता है । लिंग पर कुंकुम के छींटे दिये जाते है और उन पर पुष्प बरसाये जाते है । लेकिन आजकल युवा वर्ग द्वारा भददी गालियों में राग फाग गाने के कारण महिलाओं द्वारा र्इलोजी का पूजन कम होने लगा है । कहीं-कहीं अंध श्रद्धालू महिलाएं इन भददी हरकतों के बीच भी र्इलोजी का पूजन करती हंै । मजाक का मजमा होली के दूसरे दिन नता खोकर राग फाग में अश्लील, भददी एवं बेहुदी मजाकों की समा बांध देते हैं । र्इलोजी की प्रतिमा के पास जमा रहता है । यदि वृद्धावस्था में किसी की पत्नी मर जाय और दूसरी पत्नी मिलनी दुर्लभ हो जाय, किसी लम्बी उम्र में शादी न हो और न होने की पूर्ण सम्भावना हो तो मजाक में कहते है कि र्इलोजी रो लिंग पूज नहीं तो इणोरी तरह कंवारो रह जासी । गन्दे गीत, गाली गलौच भरी फाग राग र्इलोजी के जीवन को अंकित करते हुए गार्इ जाती है । जिसमें संभोग की विभिन्न क्रियाओं का चित्रण बेहुदी तरीके से किया जाता है । र्इलोजी के पास चंग बजाने वालों की अपार भीड़ रहती है जो शादी के समय साज की प्रतीक दिखार्इ देते है । रंगों की बौछार इनकी शादी की खुशी का वातावरण बताती है । इनकी सजावट दुल्हे की याद दिलाती है और होलिका की याद में चिर समाधि इसकी चित्ता के पास लगाकर आजीवन कंवारा रहने की स्मृति ताजा करती है । अज्ञान, अंधविश्वासी बांझ सित्रयां पुत्र प्रापित हेतु इनकी पूजा करती है वहीं युवा वर्ग ऐसे समय में अपनी शालीनता खोकर राग फाग में अश्लील, भददी एवं बेहुदी मजाकों की समा बांध देते हैं । कुछ भी हो र्इलोजी वास्तव में र्इलोजी है । जिनकी स्मृति होली के दिन स्वत: ही हो आती है । यह मजाकिया दिलवालों के राजा है वहां अपनी शक्ल-सूरत से राह चलने वालों को स्वत: ही अपनी ओर आकर्षित किये बिना नहीं रहते । जिन पर प्रतिवर्ष इनकी साज-सजावट के लिये हजारों रूपया व्यय किया जाता है । इनकी प्रतिमाएं चौराहों पर, अनेकों मार्ग निकलने वालों स्थानों पर, मूल बाजार में बनी हुर्इ होती हैं । अक्सर मूत्र्तियां खुली रहती है । कहीं-कहीं इनकी सुरक्षा हेतु जालीदार किवाड़ बना दिये जाते है । लिंग केवल वर्ष भर में होली के दिन ही लगाया जाता है । जहां इनकी विशाल प्रतिमा बिठार्इ जाती है उसके आसपास में यदि कोर्इ बाजार है तो उसका नामकरण र्इलोजी के नाम पर होगा । ऐसे र्इलोजी मार्केट, र्इलोजी चौराहा, र्इलोजी मार्ग, र्इलोजी चौक राजस्थान के अनेकों शहरों एवं कस्बों में हंै । ऐसे होली के अदभूत देवता र्इलोजी राजस्थान प्रदेश के अनेकों नगरों एवं कस्बों में स्थापित है जहां इनका होली एवं धुलेली के दिन बड़ा महत्व समझा जाता है । बाड़मेर की पत्थर मार होली भारतवर्ष धार्मिक तीज त्यौहारों के लिये जगत विख्यात है । अनेकों धर्म, सम्प्रदायों के नाना प्रकार के त्यौहार इस देश की पुण्य भूमि में मनाये जाते हैं । त्यौहारों की पंकित में होली एक अनोखा त्यौहार है, जो सभी धर्म और सम्प्रदाय के लोग अवश्य मनाते है लेकिन मनाने के तरीके अवश्य ही भिन्न-भिन्न है । विशाल देश में होली का त्यौहार कहीं रंग के बौछारों के बीच मनाया जाता है तो कहीं लठ मारकर होली का आनन्द लूटा जाता है । कहीं पर भाभीदेवरों के बीच रंग के साथ होली खेली जाती है तो कहीं पर चंग साज के साथ नाचकूदकर होली का उल्लास प्रकट किया जाता है । होली एक होते हुए भी इसके रूप अनेक बने हुए है । राजस्थान के पशिचमी सीमावत्र्ती बाड़मेर नगर में होली का त्यौहार पत्थरों की लड़ार्इ के बीच मनाया जाता था, जो आजकल रंग की बौछारों, गुलाल की उड़ान के रूप में बदल गया है । होली का यह रंगीला त्यौहार 80-90 वर्ष पूर्व बाड़मेर नगर में पत्थरों की लड़ार्इ से मनाया जाता था । आपसी वैमनस्य, वैरभाव, दुश्मनी को दूर रखते हुए होली का त्यौहार परस्पर पत्थरों की मार के बीच हर्षोल्लास एवं स्नेह के साथ खेला जाता था । इस त्यौहार को खेलने के लिये एक पखवाड़ा पहले तैयारियां आरम्भ हो जाती थी । दो दलों, दो मौहल्लों के बीच यह मोहब्बत की पत्थर मार होली खेली जाती थी । दोनों दलों के लोग अपने मकानों, दुकानों, धार्मिक प्रतिष्ठानों, मनिदरों आदि ऊंची-ऊंची छतों पर पहले से ही पत्थरों के ठेर एकत्रित करके रखते थे और इन पत्थरों की मार से बचने के लिये युद्ध मैदानों में जिस ढ़ाल का उपयोग करते थे उसकी सार सम्भाल की जाती थी । लेकिन यह पत्थर मार होली, होली दहन के दूसरे दिन धूलेड़ी के दिन खूब तबियत के साथ खेली जाती थी । होली दहन के दिन दोनों दलों, दोनों मौहल्लों के बीच अपार स्नेह मिलन होता था और एक-दूसरे को पराजित करने की शर्त लगाते थे । इस दिन चंग के साथ सामूहिक रूप से खूब नाचते एवं गाते भी थे और जैसे ही दूसरे दिन का प्रभात हुआ कि आकाश में पत्थरों की बौछारे चलनी आरम्भ हो जाती थी । मकान, दुकान, धर्मशालाएं, मनिदरों की छतों पर बाड़मेर की गोलाकार रंग-बिरंगी पगड़ी बांधे धोती-तेवटा पहने, कमर कसे, ढ़ाल लिये लोगों की झलकियां देखने को मिलती थी । दो दलों के बीच दोनों ओर से हवा को चीरते हुए पत्थर चलते थे । घरों में भूल से बाहर रखे बर्तन इन पत्थरों के निशान बनकर चकना चूर हो जाते थे । छोटे बालक-बालिकाएं एवं गृहणियां इस लड़ार्इ के दौरान बाहर नहीं निकलती थी । पत्थरों की विचित्र लड़ार्इ के बीच किसी को सिर, हाथ-पांव, आंख आदि पर चोटे लगती थी । लेकिन वे तनिक भी इसकी परवाह किये बिना सामने वाले दल पर पत्थरों की बौछारे करने में अति व्यस्त रहते थे । इस स्नेह पत्थर लड़ार्इ के बीच कर्इ लोग काने बन गये और कर्इयों के सिर भी फूट गये लेकिन इनकी प्रेम की पत्थर मार होली चलती रहती । यदि इस बीच पत्थरों का संग्रह खत्म होता था तो अपनी छतों से कूदकर पुन: पत्थर एकत्रित करने पड़ते थे । इस बीच दूसरे दल वाला मौका पाकर उसे धर दबोचता और लाठियों से पिटार्इ करता । यदि वह अपनी हार स्वीकार करता तो उसे छोड़ दिया जाता । इस हार को स्वीकार न करने वाले कर्इ लोगों ने छत से कूदने पर अपने पैर तुड़वा लिये और जीवन भर लंगड़े बने रहे । लेकिन होली का हार नहीं मानते थे । पत्थरों की यह विचित्र पत्थर मार होली धूलेड़ी के दोपहर तक चलती । उसके पश्चात दोनों दलों के लोग उसी सस्नेह, उल्लास एवं आनन्द के एक-दूसरे से मिलते । घायल मित्रों की मरहम पटटी करने के साथ-साथ सामूहिक रूप से मिष्ठान खाकर खूब गले मिलते थे । यही पत्थरों की होली धीरे-धीरे धूल एवं कीचड़ उछालकर मनार्इ जाने लगी । जो आज भी कहीं-कहीं नगर में देखी जाती है । यह भी विचित्र रूप लिये रहती है । राहगीरों पर खूब दिन खोलकर धूल बरसाने का आनन्द लिया जाता है और कीचड़ से उसके सारे शरीर को पोत दिया जाता है । इस अवसर पर खूब खुलकर होली की फागों में गन्दे गीतोें को गाया जाता है । पुरूषों द्वारा पत्थरों की परस्पर लड़ार्इ की होली, धूल एवं कीचड़ में बदली वहां औरतों द्वारा भी होली के कर्इ दिन पूर्व गालियों में फागे नियमित रूप से रात्रि में गाती थी । कर्इ-कर्इ स्थानों पर जो महिलाएं देर रात तक गालियों भरी फागों गाने के साथ-साथ अभद्र तरीके से नाचकर अपना उल्लास प्रकट करती थी । लेकिन आजकल महिलाओं में कुछ विशेष जाति समुदाय को छोड़कर गाली-गलोच की फागे नहीं गार्इ जाती है । होली पत्थरों की लड़ार्इ से नीचे उतरती हुर्इ शहर का सबसे गन्दे पानी संग्रहित नरगासर तालाब के कीचड़ पोतने एवं हलवार्इयों की भटिटयों की राख और गली की धूल के बीच मनार्इ जाने लगी । ज्यों-ज्यों व्यकित आधुनिक परिवेश में आया त्यों-त्यों इसमें रददोबदल होने लग गया । अब होली पर गन्दी गालियों के स्थान पर राष्ट्रीय गीत, विकास के बोल एवं हास्य भरी फागों की धुन छार्इ रहती है । वहां गली की धूल, भटिटयों की राख एवं नरगासर के कीचड़ के स्थान पर रंग और गुलाल ने ले लिया है । धूलेड़ी के दिन अब रंग व गुलाल का ही आमतौर पर प्रयोग किया जाता है लेकिन मजाक के तौर पर आज से शताब्दी पूर्व गधे की सवारी का उपयोग हास्य के रूप में किया जाता था आज भी जारी है । विवाह में विदार्इ के गीत, मजाक के बोल जो महिलाएं गाती है उसे पुरूष, महिलाओं के अदभूत वेष बनाकर गाते और मनोरंजन करते है । श्मशान यात्रा के दृश्य उपसिथत कर इस दिन खूब मजाक किया जाता है । धूलभरी होली, कीचड़ की गन्दी होली से लेकर अब रंग भरी सुहावनी होली में भाभी देवर के बीच बड़े ही उत्साह एवं उमंग के बीच खेली जाती रही है । रंग एवं गुलाल भरी होली से पूर्व भाभी पर देवर पानी की बौछार से तीखी मार करता तब भाभी रस्सी अथवा कपड़े से तैयार सोटे से देवर की खूब तबीयत से पिटार्इ करती है । देवर भाभी की मार एवं तीखी पानी के बौछार से छटपटा जाती तब देवरों की बन आती और जब देवर महाशय की पानी की बाल्टी लुढक जाती तब भाभी के सोटे की बौछार उसे पीडि़त करती । आजकल भाभी देवरों के बीच यह होली खूब जमकर खेली जाती है । आजकल पानी के साथ खूब गहरा रंग डालकर भाभी के बदन के हर अंग को रंग रंगने में देवर आनन्द लेते है । होली के दिन बाड़मेर नगर में एक विराट बैठी हुर्इ आदमकद र्इलोजी की प्रतिमा की रचना की जाती है । उसे खूब सजाया संवारा जाता है । इस र्इलोजी की प्रतिमा की शानदार बट वाली मूछों, दाड़ी बनाने के साथ-साथ शरीर के प्रत्येक अंग को सजाने का सुन्दर प्रयास किया जाता है । सिर पर पाग धारण करार्इ जाती है और उसमें कलंगी और तुरों को बांधा जाता है । इस प्रतिमा के आगे धूप एवं अगरबत्तियां जलार्इ जाती है । मजाक के तौर पर खूब र्इलोजी के गीत गाते है और बांझ महिलाऐं को बच्चा प्रापित के लिये इस प्रतिमा के आगे नारियल चढ़ाने के लिये प्रेरित करते है । धूलेड़ी के दिन इस आकर्षक प्रतिमा का खंडन-मंडन किया जाता था लेकिन आजकल इसे तोड़ा नहीं जाता है । र्इलोजी पर रचे अनेकों प्रकार के गीत लोग खूब नाचते हुए चंग के साथ गाते है । बाड़मेर की विचित्र पत्थर मार होली बदलती हुर्इ आज रंग की बौछारों, राष्ट्रीय एवं विकास गीतों, हास्यपूर्ण वेशभूषा, गधे की सवारी के साथ खूब नाचकूद के साथ मनार्इ जाती है । इस रंगीले होली त्यौहार का आनन्द बड़े, बूढ़े, बालक- बालिकाएं, जवान युवक-युवतियां सभी मिलकर लेते हैं

चितौड़गढ़ से चुनाव लड़ेंगे राजनाथ सिंह!

नई दिल्ली। भाजपा के राष्ट्रीय अध्यक्ष की चुनावी सीट को लेकर संस्पेंस आज खत्म हो जाएगा। दिल्ली में पार्टी की चुनाव समिति की बैठक चल रही है। इसमें पार्टी के पीएम पद के उम्मीदवार नरेन्द्र मोदी की सीट पर भी अंतिम फैसला होगा।
सूत्र बताते हैं कि सिंह के लखनऊ सीट से चुनाव लड़ने की अटकलों के बीच यह भी कहा जा रहा है कि वे राजस्थान के चित्तौड़गढ़ से चुनाव लड़ सकते हैं। चित्तौड़गढ़ से फिलहाल बीजेपी पूर्व विदेश मंत्री जसवंत सिंह को उतारने का मानस बनाने हुए हैं लेकिन वे बाडमेर से चुनाव लड़ना चाहते हैं। उन्हें 
बाडमेर से उम्मीदवार बनाया जा सकता है। इसी तरह पूर्व जनरल वीके सिंह को जोधपुर से टिकट दिया जा सकता है।

मोदी गुजरात के अलावा यूपी की किसी एक सीट से भी चुनाव लड़ेंगे। इसके लिए वाराणसी, बनारस, पटनासाहिब सीट को लेकर भी चर्चा का बाजार गरम है। मोदी को वाराणसी की बजाय बीजेपी की परंपरागत पटना साहिब से भी उतारे जाने की अटकलें भी लगाई जा रही हैं। इस सीट से गत चुनाव में शत्रुघ्न सिन्हा यहां से रिकार्ड मतों से जीते थे, इस बार पार्टी ने उनका टिकट रोका हुआ है। सिन्हा ने भी कहा था कि वे पटनासाहिब से ही चुनाव लड़ेंगे लेकिन अगर मोदी यहां चुनाव लड़ने आते हैं तो वे अपनी यह सीट छोड़ सकते हैं। -  

प्यार की खातिर उत्तराखण्ड से घर छोड़कर चली आई कोटा

कोटा। "मैं एक लड़के से प्यार करती हूं, लेकिन मेरी मम्मी किसी दूसरे लड़के से मेरी शादी कराना चाहती है। इसलिए मैं घर छोड़कर कोटा चली आई।" यह कहना है कि उत्तराखण्ड के नरेन्द्र नगर निवासी विनिता कुण्डीर ( 21) का।
विनिता ने पत्रिका को बताया कि उसके पिता मदन सिंह उत्तराखण्ड में होमगार्ड हैं। मम्मी निर्मला देवी गृहिणी है। मम्मी मेरी शादी किसी लड़के से कराना चाहती है। जबकि मैं पड़ौस में रहने वाले लड़के से प्यार करती हूं। हालांकि मैंने अपने माता-पिता को इस बारे में कभी कुछ नहीं बताया।

यदि बताती तो दोनों पक्षों के बीच विवाद होता। विवाद की आशंका के चलते ही वह 12 मार्च को घर छोड़कर बस से हरिद्वार, दिल्ली होते हुए 14 मार्च को तड़के कोटा पहुंची। यहां छावनी में एक होटल में कमरा लेकर ठहरी। उसने उसके भाई दिनेश से बात की, जो फोटोग्राफी का काम करता है। वह कोटा में राजाराम कर्मयोगी के सम्पर्क में था।

उसने राजाराम कर्मयोगी को फोन कर बहन को उसके पास बुलाने की बात कही। राजाराम उसे अपने साथ घर लेकर आ गया। अभी वह राजाराम के घर पर ठहरी है। राजाराम ने बताया कि युवती के माता-पिता व ब्याय फ्रेड को भी कोटा बुला लिया है। विनीता अपने माता-पिता के पास नहीं जाना चाहती।  

एक और बड़ा परिवर्तन, भाजपा में किरोड़ी की वापसी!

जयपुर। लोकसभा चुनाव से पूर्व प्रदेश की राजनीति में एक और बड़ा परिवर्तन आने की तैयारी है। पिछले छह सालों से भाजपा का विरोध कर निर्दलीय और फिर राजपा के सहयोग से चुनाव लड़ने वाले किरोड़ीलाल मीणा की जल्द ही भाजपा में वापसी हो सकती है।
किरोड़ी ने पिछले दिनों भाजपा राष्ट्रीय अध्यक्ष राजनाथ सिंह और प्रधानमंत्री पद के उम्मीदवार नरेन्द्र मोदी से मुलाकात की है। मीणा और सिंह में लंबे समय तक बात हुई। इसके बाद मीणा नरेंद्र मोदी से मिलने भी गए। दोनों के बीच करीब डेढ़ घंटे तक बातचीत हुई।

माना जा रहा है कि किरोड़ी की भाजपा में वापसी की घोषणा जल्द हो सकती है। उन्हें पार्टी की ओर से दौसा लोकसभा क्षेत्र का उम्मीदवार भी बनाया जा सकता है। केंद्र में उनकी पार्टी एनपीपी भी एनडीए के घटक दल में से है, उनकी वापसी को लेकर जल्द ही बड़ा निर्णय हो सकता है।

हैं पुराने संबंध
किरोड़ीलाल के राजनाथ सिंह और नरेन्द्र मोदी से काफी पुराने संबंध हैं। मीणा ने राजनाथ सिंह के साथ युवा मोर्चा में काम किया है। उस समय राजनाथ युवा मोर्चा के राष्ट्रीय अध्यक्ष हुआ करते थे और किरोड़ीलाल प्रदेश युवा मोर्चा के अध्यक्ष थे। वहीं मोदी ने भी गुजरात के मुख्यमंत्री पद की शपथ लेने के दौरान मीणा को आमंत्रित किया था। हालांकि वे समारोह में नहीं गए थे।

दोनों दलों की मुश्किलें बढेंगी
किरोड़ीलाल के भाजपा में वापसी के साथ जहां कांग्रेस को पूर्वी राजस्थान में दौसा, टोंक-सवाईमाधोपुर, अलवर, भरतपुर, धौलपुर-करौली जैसी प्रमुख सीटों पर भारी नुकसान हो सकता है। भाजपा के लिए भी उनकी वापसी आसान नहीं होगी।

किरोड़ी ने 2003 से 2008 तक चली भाजपा सरकार में विरोधी तेवर दिखाए थे और वसुंधरा राजे से भी उनके संबंध मधुर नहीं रहे। इसके चलते उन्होंने 2008 में पार्टी से अलग होकर चुनाव लड़ा था।

उनकी पत्नी गोलमा देवी कांग्रेस सरकार में मंत्री भी रहीं। हालांकि पिछले विधानसभा चुनाव में किरोड़ी ने भाजपा और कांग्रेस दोनों से ही अपने को अलग कर लिया था और एनपीपी के बैनर तले चुनाव लड़ा था। - 

शुक्रवार, 14 मार्च 2014

पूनम की रात को फतेहपुर सीकरी तानसेन की तान पर खामोश दाद देती है।



आगरा। दीवान ए खास में संगीत सम्राट तानसेन का चबूतरा, उससे लगी बादशाह अकबर की ख्वाबगाह। पांच सौ साल बाद भी चांद की 13 और 14 तारीख, यानी पूनम की रात को फतेहपुर सीकरी तानसेन की तान पर खामोश दाद देती है। बारादरी और तानसेन के चबूतरे पर पूनम की रात को आज भी इन दो तारीख पर कोई रुख करने की हिम्मत नहीं करता। इसकी वजह कुछ और नहीं, बल्कि साढ़े पांच सौ सालों से चली आ रही यह मान्यता है कि सुर सम्राट इन दो रातों में अक्सर रियाज करते हैं।

ग्वालियर के बेहट गांव में 14वीं शताब्दी में पैदा हुए सुर सम्राट तानसेन का असली नाम तनसुख व त्रिलोचन था। उनके पिता का नाम मकरंद पांडे था, वह पांच साल की उम्र तक गूंगे थे। पिता के सानिध्य में गायन की शुरुआत की, 11 वर्ष की उम्र में राजा मान सिंह तोमर की रागमाला में विद्यार्थी के रूप में आए। यहां दरबारी संगीतज्ञ के रूप में रहे, इब्राहीम लोदी के ग्वालियर किले पर चढ़ाई के बाद 1557 में उन्होंने रीवा नरेश रामचंद्र बघेल के दरबार में पनाह ली। राजा रामचंद्र की सभा के गायक जीन खां अकबर के दरबारी गायकों में शामिल हो गए थे। उन्होंने तानसेन की विशिष्ट गायकी की प्रशंसा करके उनको अकबर के दरबार में शामिल कराया था। बाद में अकबर ने तानसेन को अपने नौ रत्‍‌नों में शामिल कर लिया। उनको संगीत विभाग का प्रधान बना दिया।

फतेहपुर सीकरी परिसर स्थित बारादरी संगीत सम्राट के रिहायश और रियाज की गवाह है। जबकि संगीत सम्राट का चबूतरा बादशाह अकबर के उनके मुरीद होने का गवाही देता है। कहा जाता है कि बादशाह की अकबर की आंख तानसेन की तान से खुलती थी, रात को सोते भी वह उन्हीं आवाज से थे।

तानसेन की यह बारादरी गांव की आबादी से करीब 100 मीटर दूर है। फतेहपुर सीकरी स्मारक में दो दशक से गाइड चांद मोहम्मद उर्फ भारत सरकार भी इस मान्यता की पुष्टि करते हैं। चांद मोहम्मद बताते हैं पांच सौ साल से भी समय से आसपास के लोगों में यह मान्यता बरकरार है। शायद यही वजह है कि रात बारह बजे के बाद आज भी फतेहपुर सीकरी परिसर में कोई कार्यक्रम नहीं कराया जाता।

तानसेन के राग-रागिनी-तानसेन द्वारा रचित ध््राुपदों में 36 राग-रागनियों का प्रयोग हुआ है। इनमें राग भैरव, रागिनी तोड़ी, रागिनी मुल्तानी आदि प्रमुख हैं। तानसेन ने लगभग 400 राग-रागनियों को परिष्कृत करके अपने संगीत ग्रंथों में समाविष्ट किया। उन्होंने ईरानी और भारतीय संगीत शैलियों का प्रयोग करके एक नवीन दरबारी तर्ज का विकास किया। दरबारी तोड़ी, दरबारी जैसे रागों का सृजन किया। उन्होंने तीन प्रमुख ग्रंथों संगीतसार, रागमाला और गणेश स्त्रोत की रचना की।

गणेश वंदना के हैं रचयिता- गणेश वंदना हेतु सदियों से गाई जा रही स्तुति के रचयिता भी तानसेन हैं। उनके द्वारा रचित मूल गणेश वंदना की कुछ पंक्ति 'उठि प्रभात सुमिरियै, जै श्री गणेश देवा माता जाकी पारवती, पिता महादेवा।।'

इतिहास में सुर सम्राट तानसेन और बैजू बावरा के बीच हुआ मुकाबला प्रसिद्ध हैं। तानसेन और बैजू बावरा दोनों वृंदावन वाले स्वामी हरिदास के शिष्य रहे थे। एक बार बादशाह अकबर ने हरिदास से मिलने ख्वाहिश की तो तानसेन ने उनको आगरा बुलाने की हामी भर दी। यह बात स्वामी को बुरी लगी, अपना अपमान समझा कि तानसेन ने राजा उनसे मिलने वृंदावन आने की क्यों नहीं कहा। स्वामी ने तानसेन का दीपक राग सिखाया था, बैजू बावरा को उन्होंने राग मल्हार सिखाया। दोनों के बीच मुकाबला कराया गया। पहला मुकाबला आगरा किले के दीवान खास में हुआ, यहां बैजू ने पत्थर पिघला कर अपना तानपूरा गाड़ दिया। उसे तानसेन से निकालने को कहा लेकिन वह नहीं निकाल सके। दूसरा मुकाबला सिकंदरा में हुआ, यहां राग सुनकर हिरन बैजू के पास आ गए, उन्होंने अपने गले की माला हिरन के गले में डाल दी। तानसेन को अपने संगीत के बल पर हिरन को पास बुलाकर उसके गले में पड़ी माला उतारने की चुनौती दी थी। तानसेन इस चुनौती को पूरा नहीं कर सके थे। तीसरा और आखिरी मुकाबला सीकरी में हुआ, मान्यता है कि यहां तानसेन के राग से दीपक जल उठे, उनके कपड़ों में आग लग गयी। तब बैजू ने राग मल्हार गाकर बारिश कराके दीपकों को बुझा दिया था। बताते हैं इस हार के बाद तानसेन अकबर का दरबार छोड़कर ग्वालियर चले गए। अंतिम समय तक यहीं रहे, अप्रैल 1589 में उन्होंने अंतिम सांस ली।

अकबर की भी है अधूरी प्रेम कहानी, रानी को पाने के लिए किया था पति पर हमला

इंदौर.विश्व प्रसिद्ध प्रेमकथाओं में मध्य प्रदेश की रानी रूपमती और बाज बहादुर की प्रेम कहानी सदियों से अपनी गाथा गा रही है। आज ‘इतिहास के झरोखे’ सीरीज के तहत आपको इसी प्रेम कथा के बारे में बता रहा है। इंदौर से लगभग 90 किलोमीटर दूर ऐतिहासिक पयर्टक स्थल हैं ‘मांडू’ जिसे खुशियों का शहर भी कहा जाता हैं। विंध्याचल की पहाडिय़ों में करीब 2000 फीट की ऊंचाई पर मप्र के धार जिले में बसा मांडू रानी रूपमती और राजा बाज बहादुर के अमरप्रेम कथा का साक्षी है। माण्डू का प्राचीन पहाड़ी किला शिलालेखात्मक साक्ष्यों के अनुसार 555ई. का है।

मांडू की रानी रूपमती से हुआ अकबर को प्रेम

पत्नी मुमताज की याद व उनके प्रेम की खातिर मुगल सम्राट शाहजहां ने खूबसूरत ताज महल बनवाया था। ऐसे ही एक वीर योद्धा अकबर की अधूरी प्रेम कहानी के बारे में आज हम आपको बताने जा रहे हैं, जिन्हें मांडू की रानी रूपमती से प्रेम हो गया था। रानी को पाने के लिए अकबर ने एक साजिश के तहत उन्हें अपने पति से अलग करना चाहा था। मालवा के सारंगपुर जिले में बना एक मकबरा रानी रूपमती के प्रेम और बलिदान की मिसाल है। यह मकबरा मांडू की रानी रूपमती और बाज बहादुर को अलग करने की साजिश रचने वाले शहंशाह अकबर ने खुद बनवाया था।

अकबर ने रूपमती को पाने के लिए पति सुल्तान बाज बहादुर को किया कैद

रानी रूपमती की आवाज और खूबसूरती के कायल अकबर ने रानी को पाने के लिए सुल्तान बाज बहादुर पर ने सिर्फ हमला करवाया था, बल्कि उन्हें बंदी भी बना लिया था। इस बात से दुखी रानी रूपमती ने हीरा लीलकर अपनी जान दे दी थी। रानी की मौते से दुखी अकबर ने फौरन बंधक बनाए प्रेमी बाज बहादुर को मुक्त कर दिया। इतना ही नहीं अकबर ने प्रेमिका की समाधि पर जान देने वाले बाज बहादुर का मकबरा भी बनवाया।
आशिक-ए-सादिक का मकबरा

सारंगपुर के नजदीक बना यह मकबरा शहंशाह अकबर ने 1568 ईस्वी में बनवाया था। यह बात सच है कि इस स्मारक को वह ख्याति नहीं मिल पाई, जिसका यह हकदार था। कभी अपनी भव्यता के लिए पहचाने जाने वाला यह मकबरा देखरेख के अभाव में अपने अस्तित्व को खोता जा रहा है। बताया जाता है कि दो प्रेमियों को अलग करने का पछतावा दिनरात अकबर को परेशान कर रहा था। ऐसे में अकबर ने बाज बहादुर के मकबरा पर 'आशिक ए सादिक' और रानी रूपमति की समाधि पर 'शहीदे ए वफा' लिखवाया था। हालांकि वह शिलालेख अब वहां मौजूद नहीं है, लेकिन जानने वाले इसे इसी नाम से पुकारते हैं।



रानी ने हीरा लीलकर दे दी थी जान

गुस्से में तमतमाए शहंशाह अकबर ने अपने सिपहसालार आदम खां को भेजकर मालवा पर आक्रमण करा दिया। लड़ाई में बाज बहादुर हार गया और मुगलों ने उसे बंदी बना लिया। जीत के बाद आदम खां रानी रूपमती को लेने के लिए मांडव रवाना हो गए। इससे पहले की अकबर रानी रूपमती को अपना बंदी बना पाता, रानी रूपमती ने हीरा लीलकर अपनी जान दे दी।

ताजमहल से पुरानी है सारंगपुर मकबरे की कहानी

इस प्रेम की अनोखी दास्तां के बारे में जानकर अकबर को बहुत पछतावा हुआ। दो प्रेमियों को अलग करने का जिम्मेदार खुद को मानने वाले अकबर के आदेश पर रानी रूपमती के शव को ससम्मान सारंगपुर भेजकर दफनाया गया। इतना ही नहीं अकबर ने रानी की मजार भी बनवाई।
रानी की मजार पर सिर पटक-पटक कर दे दी जान

पछतावे की आग में जल रहे अकबर ने तत्काल बंदी बाज बहादुर को मुक्त कराने के आदेश दे दिए। मुक्त होते ही बाज बहादुर को अकबर ने मिलने के लिए अपने दरबार में बुलाया। वर्ष 1568 में बाज बहादुर गंभीर बीमार हो गए थे। उन्होंने अकबर से अपनी अंतिम इच्छा जाहिर करते हुए सारंगपुर जाने की बात कही। इस पर अकबर ने बाज को दिल्ली से पालकी में बैठाकर सारंगपुर भिजवाया। यहां बाज बहादुर ने रूपमती की मजार पर सिर पटक-पटक कर जान दे दी। बाद में रूपमती के पास में ही बाज बहादुर की मजार भी बनाई गई।

संदिग्ध हालात में पकड़े महिला व होटल संचालक

नागौर।कोतवाली पुलिस ने बुधवार दोपहर शहर के एक होटल से एक महिला व होटल संचालक को संदिग्ध हालत में गिरफ्तार किया है। दोनों को बुधवार शाम को एसडीएम कोर्ट में पेश किया। कोर्ट ने दोनों को जमानत दे दी है। थानाधिकारी रमेंद्र सिंह ने बताया कि बुधवार को शहर के किले की ढाल स्थित मोती महल होटल में अवैध गतिविधियां संचालित होने की सूचना मिली थी।

पुलिस ने उप निरीक्षक दिप्ती गौरा को मौके पर भेजा । होटल में दबिश देने पर कमरा नंबर 18 में बाराणी गांव की 40 वर्षीय महिला को गिरफ्तार किया। बाद में होटल संचालक चैनार गांव के रमेश माली (32) को संदिग्ध गतिविधियां संचालित करने के आरोप में गिरफ्तार किया है। बुधवार शाम को दोनों को एसडीएम कोर्ट में पेश करने पर जमानत मिल गई।

लाल व हरे रंग की पर्ची से तय होते ग्राहक


थानाधिकारी ने बताया कि होटल में चल रही अवैध गतिविधियों के बारे में पहले पुख्ता किया । इस पर पता चला कि मोती महल होटल में घुसते ही संचालक ग्राहकों को लाल या हरे रंग की पर्ची के बारे में पूछता। बाद में पर्ची के आधार पर रूपए लिए जाते थे। थानाधिकारी ने बताया कि होटलों में चल रही अवैध गतिविधियों के खिलाफ बड़ी कार्रवाई की जाएगी। -

गुरुवार, 13 मार्च 2014

भाजपा ने जारी की अपनी सूची, विदिशा से सुषमा स्वराज, पाटलिपुत्र से रामकृपाल मैदान में

नई दिल्ली ।भारतीय जनता पार्टी ने लोकसभा चुनावों के लिए 100 उम्मीदवारों की तीसरी सूची आज जारी की। लोकसभा में विपक्ष की नेता सुषमा स्वराज को मध्य प्रदेश की विदिशा. पूर्व केंद्रीय मंत्री सैयद शाहनवाज हुसैन को बिहार के भागलपुर और राजीव प्रतापरूडी को सारण से एक बार फिर टिकट दिया गया है। भाजपा के राष्ट्रीय अध्यक्ष राजनाथ सिंह की अध्यक्षता में यहां हुईकेंद्रीय चुनाव समिति की बैठक में बिहार की 25 मध्य प्रदेश की 24. केरल की 14. झारखंड की 13. पश्चिम बंगाल की सात. असम की छह. कर्नाटक की पांच. महाराष्ट्र की दो और लक्षद्वीप की एक सीट के लिए उम्मीदवारों के नाम तय किये गए।
सुषमा स्वराज को विदिशा से और श््रीरूडी को सारण से दूसरी बार तथा श््री हुसैन को भागलपुर से तीसरी बार उम्मीदवार बनाया गया है। पूर्व केंद्रीय मंत्री यशवंत सिन्हा की जगह उनके बेटे जयंत सिन्हा को हजारीबाग से पूर्व केंद्रीय मंत्री एस एस अहलुवालिया को दार्जीलिंग और राष्ट्रीय जनता दल छोडकर भाजपा में आये रामकृपाल यादव को पाटलिपुत्र से टिकट दिया गया है।
भाजपा ने जारी की अपनी  सूची, विदिशा से सुषमा स्वराज, पाटलिपुत्र से रामकृपाल मैदान में
सुषमा स्वराज- विदिशा
सुमित्रा महाजन - इंदौर
राम टहल चौधरी - रांची
एसएस आहलुवालिया- दार्जलिंग
जयंत सिन्हा - हजारीबाग
रामकृपाल यादव- पाटलिपुत्र
गिरिराज सिंह- नवादा
कीर्ति आजाद- दरभंगा
दिलीप जयसवाल- किशनगंज
भोला सिंह- बेगुसराय
राजीव प्रताप रूडी- सारणपुर
आर के सिंह- आरा
नरेंद्र सिंह तोमर - ग्वालियर
प्रताप सिन्हा- मैसूर