आपने अपने जीवन साथी को लेकर कई ख्वाब संजोए होंगे. एक अच्छे पार्टनर के इंतजार में हो सकता है आपने लंबा समय भी बिता दिया हो, लेकिन मध्य प्रदेश के निमांड इलाके में एक मेला लगता है जहां पान-गुलाल से ही जीवनसाथी चुन लिया जाता है.
दरअसल, होली पर्व के निकट ही झाबुआ, धार, बडवानी और अलिराजपुर में उत्साह और उमंग से सराबोर जनजातीय वर्ग का प्रमुख मेला भगोरिया का अयोजन होता है. मान्यता के अनुसार युवक और युवतियां अपने मनपसंद जीवन साथी की तलाश के लिए ही यहां आते हैं. वे पान खिलाकर अपने प्रेम का इजहार करते हैं और दिल जीतने की कोशिश करते हैं.
बांसुरी की आवाज पर थिरकते हैं कदम
मेले में विवाह के योग्य युवक और युवतियां सज-धजकर आते हैं, लेकिन दिल जीतने का काम इतना आसान भी नहीं होता. इसके लिए युवक जहां हाथ में बांसुरी थामे मांदर की थाप पर थिरकते हैं, वहीं युवतियां घूंघट की ओट से अपने प्रियतम को रिझाती हैं.
धार के भगोरिया मेला में सज-धजकर आए फूल सिंह कहते हैं, 'मैं यहां यह उम्मीद लेकर आया हूं कि मुझे कोई युवती मिल जाएगी, जिसके साथ मैं अपना जीवन खुशी-खुशी बिताउंगा.' वे आगे कहते हैं कि मान्यता के अनुसार, पहले तो वे मनपसंद युवती को पान खिलाएंगे और फिर उसकी ओर से भी पान खाने की पहल पर वे भाग कर शादी कर लेंगे.
भागकर शादी करने की है प्रथा
इन मेलों में आने वाले मौज-मस्ती का कोई भी मौका हाथ से नहीं जाने देते. मेले में झूलों से लेकर आइस्क्रीम और गोलगप्पों का बाजार सजा है. मुकाम सिंह कहते हैं कि भगोरिया मेले को लेकर मान्यता है कि इस मौके पर युवक-युवती एक दूसरे को पान खिला दें या एक दूसरे के गाल पर गुलाल लगा दें तो मान लिया जाता है कि दोनों में प्रेम हो गया है. इतना ही नहीं वे दोनों मौका पाकर भाग जाते हैं और विवाह बंधन में बंध जाते हैं. भाग कर शादी करने के कारण ही इस पर्व को भगोरिया पर्व कहा जाता है.
राज्य सरकार के मंत्री अंतर सिंह आर्य का कहना है कि यह उत्साह और उमंग का त्योहार है. यही कारण है कि इस पर्व के मौके पर लगने वाले मेलों में हर आयु वर्ग के लोग हिस्सा लेते हैं. यह पर्व जनजातीय वर्ग की सांस्कृति का प्रतीक है.
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