बाड़मेर कौन कहा क्यूँ जीतेगा एक विश्लेषण बाड़मेर रविवार को एक दिसंबर को सम्पन हुए विधानसभा चुनावो के परिणाम आने हें। सभी प्रत्यासी अपनी अपनी जीत को लेकर आश्वस्त हें। सत्ता बाज़ार और विधानसभा क्षेत्र के मतदाताओ से बातचीत के आधार पर लगा कि इस बार बाड़मेर कि जनता ने दिल खोल कर भाजपा के पक्ष में मतदान किया हें। हर सीट पर हार जीत के चौंकाने वाले कारन सामने आये हें
बाड़मेर विधानसभा क्षेत्र। …इस क्षेत्र में कांग्रेस प्रत्यासी मेवाराम जैन भीतरघात के शिकार हुए लग रहे हें साथ ही उनका गढ़ माने जाने वाली प्रमुख तेरह पंचायतो चुली ,भद्रेश ,विशाला ,मारूड़ी ,लंगेरा ,आती ,जैसे ,जूना ,बालेरा ,सुरा ,डूडा बेरी ,कपूरड़ी ,जालिपा ,हरसाणी फांटा ,आदि में अपनी पिछली बढ़त कायम नहीं रख पाये वाही शहरी क्षेत्र में भी उनकी पकड़ बहुत कमज़ोर साबित हुई ,डॉ प्रियंका चौधरी के पक्ष में राजपूत ,मेघवाल ,रावण राजपूत ,मुस्लिम ,और जाट वोटो के ध्रुवीकरण के कारन वो मजबूत नज़र आती हें ,प्रियंका ने वर्त्तमान विधायक के गढ़ में उनकी बढ़त ख़त्म करने तथा शहरी क्षेत्र में बढ़त कि सम्भावना से भारी हें वाही जाट वोट उनकी जीत का अंतर बढ़ा रहे हें ,भाजपा कि बागी श्रीमती मृदुरेखा के कारन कांग्रेस प्रत्यासी को ज्यादा नुक्सान हुआ हें
चौहटन। ।सॆमवर्ति चौहटन विधानसभा क्षेत्र में भाजपा के तरुण कागा और कांग्रेस के पदमाराम मेघवाल आमने सामने ,थे इस बार इस सीट पर निर्णायक मत जाट मतदाताओ का भाजपा के जुड़ाव और कुछ मुस्लिम मतों के ध्रुवीकरण के कारन भाजपा मजबूत हें
शिव विधानसभा क्षेत्र। ज़िले कि सर्वाधिक महत्वपूर्ण और प्रतिष्ठा का सवाल बनी शिव विधानसभा सीट पर कांग्रेस के अमिन खान और भाजपा के मानवेन्द्र सिंह के बीच कडा मुकाबला था ,मानवेन्द्र सिंह ने अमिन खान के परंपरागत वोट बेंक मुस्लिम ,अनुसूचित जाती ,जनजाति ,और जाट मतदाताओ में जोरदार सेंध लगाई ,कांग्रेस के परंपरागत मतों के ध्रुवीकरण और भाजपा समर्थक राजपूत और अन्य जातियो के लामबंद होने से मानवेन्द्र सिंह मजबूत हें ,
बायतु। बायतु वधान सभा क्षेत्र से कर्नल सोनाराम चौधरी और भाजपा के कैलाश चौधरी आमने सामने थे। ,कर्नल पिछली बार चौंतीस हज़ार मतों से जीते थे। मगर इस बार वो कांग्रेस के जाट नेताओ के कोप भजन का शिकार हो जाये तो कोई आश्चर्य नहीं ,कर्नल अपनी जीत के प्रति आश्वस्त हें मगर बायतु से आई पोलिंग पार्टियो कि माने तो कर्नल इस सीट को खोते नज़र आ रहे हें , कर्नल को रिफायनरी आंदोलन में सक्रीय रहने के बावजूद बायतु से पचपदरा शिफ्ट होना उनके विपक्ष में जा रहा हें ,कर्नल कि कांग्रेस नेता कार सेवा में जूट थे ,भीतरघात के कारन वो कमज़ोर नज़र आयते हें ,भाजपा के कैलाश चौधात्री के पक्ष में जाट मतदाताओ के साथ अन्य जातियो के खुल कर आने से भी वो मजबूत हें ,इस दशा में बायतु सीट से कोई भी निकल सकता हें ,
पचपदरा। . इस सीट पर कांग्रेस का असंतोष वर्म्मन विधायक मदन प्रजापत को टिकट देने के साथ शुरू हुआ था ,मूल कांग्रेस इनकी उम्मीदवारी के विरोध में अलग हो गयी उन्होंने अब्दुल रहमान को बागी उतर मदन प्रजापत के सरे समीकरण बिगाड़ दिए ,भाजपा के अमराराम चौधरी के प्रति सहानुभूति थी ,उसका बड़ा असर रहा साथ ही नरेंद्र मोदी कि लोकप्रियता बड़ा कारण हें ,पचपदरा सीट पर अमराराम मजबूत नज़र आते हें
सिवाना। । सिवाना विधानसभा क्षेत्र से कांग्रेस ने महंत निर्मलदास को उतरा ,उनकी टिकट के साथ सिवाना कांग्रेस में विरोध शुरू हुआ ,कांग्रेस के परम्परागत वोटर कुलबी और मुस्लिम निर्मलदास के खिलाफ लामबंद हुए ,उनके समाज कि कांग्रेस कि महिला जिला अध्यक्ष विजय लक्ष्मी ने विरोधस्वरूप पार्टी ही छोड़ भाजपा के साथ हो ली ,ंिमलदास को कांग्रेस का पूरा सहयोग नहीं मिला जिससे वो शुरू में ही मुकाबले में विछड़ गए , भाजपा से हमीर सिंह भायल के पक्ष में सभी समाजो सहित राजपूतो का लामबंद होना उन्हें मजबूत बनता हें
गुडा मालानी। । गुडा मालानी विधानसभा क्षेत्र में कांग्रेस के वरिष्ट नेता हेमाराम चौधरी ने पहले चुनाव लड़ने से मन कर दिया जिससे उनके शीटर में गलत सन्देश गया कि वो हार के दर से चुनाव नहीं लड़ना चाहते ,हेमाराम ने राहुल गांधी के दबाव में चुनाव लड़ने कि हामी तो भर दी मगर अपने परंपरागत मतदाताओ के भाजपा के पक्ष में ध्रुवीकरण को रोकने में सफल नहीं हुए ,भाजपा के लादूराम विश्नोई को जाट मत मिलाने साथ उन्हें कुलबी जाती का भी समर्थन मिला ,सिवाना में कुलबी को टिकट नहीं मिलाना हेमाराम चौधरी के लिए घटक सिद्ध हो सकता हें ,लादूराम को नरेंद्र मोदी और वसुंधरा कि लोकप्रियता अ फायदा मिला
वोट मांगने नहीं आये। ।यह पहली बार हुआ जब कांग्रेस के एक बी स्टार प्रचारक आम सभा के लिए नहीं आया। यहाँ तक कि मुख्यमंत्री अशोक गहलोत भी अपने प्रत्यासियो के लिए वोट मांगने नहीं औए ,जबकि हर चुनाव में राहुल गांधी या सोनिआ गांधी वोट मांगने आती रही ,मगर इस बार कांग्रेस के लिए कोई वोट मांगने नहीं आया जिसका विपरीत प्रभाव पड़ा
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