जयपुर। केन्द्र सरकार के जनजाति मामलात मंत्रालय ने हाईकोर्ट में एक याचिका में पेश जवाब में कहा है कि (मीणा) जाति अनुसूचित जनजाति में नहीं है, केवल (मीना) जाति ही है। कैप्टन गुरविन्दर सिंह व अन्य बनाम राज्य सरकार व अन्य मामले में हाईकोर्ट में केन्द्र सरकार का यह जवाब इसी साल 4 अक्टूबर को आया।
याचिका फरवरी 2013 में दायर की गई, जिसमें मीणा जाति को अनुसूचित जनजाति से बाहर करने के लिए राज्य सरकार को केन्द्र सरकार के पास प्रस्ताव भेजने के निर्देश देने की मांग की। साथ ही कहा, आरक्षण सम्बन्धी 2008 के कानून को रद्द किया जाए। केन्द्र ने जवाब में यह भी कहा है कि राजस्थान की अनुसूचित जनजाति की सूची में क्रम संख्या 9 पर "मीना" का उल्लेख है। जब मीणा शामिल ही नहीं है तो उसे बाहर निकालने की प्रक्रिया शुरू करने की मांग का औचित्य ही नहीं है।
बताई प्रक्रिया
जवाब में केन्द्र ने महाराष्ट्र सरकार बनाम मिलिंद व अन्य मामले में सुप्रीम कोर्ट के नवम्बर 2000 के फैसले का हवाला देकर कहा, अनुसूचित जाति में वही जातियां हैं, जो अधिसूचना में हैं। अधिसूचना में उल्लेख नहीं है तो किसी समान जाति, उपजाति व जाति समूह को एसटी में शामिल नहीं माना जा सकता। अधिसूचना में केवल संसद ही संशोधन कर सकती है। संविधान के तहत किसी अन्य को बदलाव का अधिकार ही नहीं है। ऎसे में चाहे एक शब्द का ही बदलाव करना हो तो भी यही प्रक्रिया अपनानी होगी।
सब अफसर अनजान
मुझे जानकारी नहीं है, तह तक जाऊंगा, फिर ही बता पाऊंगा।
सी.एस. राजन, कार्यवाहक मुख्य सचिव
आयुक्त से बात करें, मुझे जानकारी नहीं है।
डॉ. मनजीत सिंह, प्रमुख सचिव, सामाजिक न्याय व अधिकारिता विभाग
अभी तक कोई शिकायत नहीं आई है, आएगी तब स्क्रीनिंग कमेटी विचार करेगी।
अजिताभ शर्मा, आयुक्त, सामाजिक न्याय व अधिकारिता विभाग (वे जाति प्रमाण पत्रों की छंटनी के लिए बनी कमेटी में भी शामिल हैं )
याचिका फरवरी 2013 में दायर की गई, जिसमें मीणा जाति को अनुसूचित जनजाति से बाहर करने के लिए राज्य सरकार को केन्द्र सरकार के पास प्रस्ताव भेजने के निर्देश देने की मांग की। साथ ही कहा, आरक्षण सम्बन्धी 2008 के कानून को रद्द किया जाए। केन्द्र ने जवाब में यह भी कहा है कि राजस्थान की अनुसूचित जनजाति की सूची में क्रम संख्या 9 पर "मीना" का उल्लेख है। जब मीणा शामिल ही नहीं है तो उसे बाहर निकालने की प्रक्रिया शुरू करने की मांग का औचित्य ही नहीं है।
बताई प्रक्रिया
जवाब में केन्द्र ने महाराष्ट्र सरकार बनाम मिलिंद व अन्य मामले में सुप्रीम कोर्ट के नवम्बर 2000 के फैसले का हवाला देकर कहा, अनुसूचित जाति में वही जातियां हैं, जो अधिसूचना में हैं। अधिसूचना में उल्लेख नहीं है तो किसी समान जाति, उपजाति व जाति समूह को एसटी में शामिल नहीं माना जा सकता। अधिसूचना में केवल संसद ही संशोधन कर सकती है। संविधान के तहत किसी अन्य को बदलाव का अधिकार ही नहीं है। ऎसे में चाहे एक शब्द का ही बदलाव करना हो तो भी यही प्रक्रिया अपनानी होगी।
सब अफसर अनजान
मुझे जानकारी नहीं है, तह तक जाऊंगा, फिर ही बता पाऊंगा।
सी.एस. राजन, कार्यवाहक मुख्य सचिव
आयुक्त से बात करें, मुझे जानकारी नहीं है।
डॉ. मनजीत सिंह, प्रमुख सचिव, सामाजिक न्याय व अधिकारिता विभाग
अभी तक कोई शिकायत नहीं आई है, आएगी तब स्क्रीनिंग कमेटी विचार करेगी।
अजिताभ शर्मा, आयुक्त, सामाजिक न्याय व अधिकारिता विभाग (वे जाति प्रमाण पत्रों की छंटनी के लिए बनी कमेटी में भी शामिल हैं )