मंगलवार, 29 जनवरी 2013

सरहद पर आपरेशन सर्द हवा खत्म लेकिन जबाज है तैयार /




सरहद पर आपरेशन सर्द हवा खत्म लेकिन जबाज है तैयार /

बाड़मेर सरहद पर आपरेशन सर्द हवा खत्म लेकिन जबाज है तैयार /
भारत -पाक की बीच पूछ में पाक सेना दवारा भारतीय सेना के दो जवाने के सर
काटने की घटना के बाद दोनों देशो के बीच गर्म माहोल के बाद बॉर्डर पर
हलचल बढ़ाने के बाद अब राजस्थान गुजरात पाक सीमा पर BSF के आपरेशन अलर्ट
सोमवार को खत्म हुआ इस आपरेशन के दोहरान सीमा सुरक्षा बल के जवान अपनी
ड्यूटी को लेकर बड़े चोक्स नजर आए इस आपरेशन के दोहरान BSF के आल
अधिकारी भी करीब 14 दिन तक बॉर्डर पैर डेरा डाले हुए थे अब सीमा की
हिफाजत करने वाले जवानो का कहना है कि हम हर पारिस्थि में दुसमन को मुह
तोड़ जबाब देने के लिए 24 घंटे तैयार है बॉर्डर पर BSF जवानो के देखकर तो
यही लगता है कि अब सीमा पर दुशमन को मुह तोड़ जबाब देने के लिए हमारे जबाज
तैयार है
.....अब हम आपको विस्तार से बताते है कि बॉर्डर पर आपरेशन
सर्द हवा का क्या मतलब होता है दरसल BSF साल दो दफा स्पेशल आपरेशन चला
ता है एक आपरेशन सर्द हवा तो दूसरा आपरेशन गर्म हवा सर्दियों में जब
बॉर्डर पर तापमान 1 या दो डिग्री हो जाता है और धुंध बढ़ जाती है तो
बॉर्डर पर यह खतरा रहता है कि कोहरे की आड़ में कभी भी कोई बड़ी घुसपेठ हो
सकती है या सीमा पार से कोई भी अवंचिनिय गतिविधि हो सकती है इसलिए BSF
भयंकर सर्दियों में जब पार जीरो डिग्री के आस -पास होता है तो अपने
आधुनिक हथियरो और बॉर्डर के अलर्ट कर हेड क्वाटर पैर बेठे जवान और
अधिकारियो को बॉर्डर पर भेज के नफरी के साथ ही उपकरणे से बॉर्डर को पूरा
खगाला जाता है यह तक BSF बॉर्डर के आस -पास के गावो में MOB लगाकर
बॉर्डर पर आने जाने वाले की तलाशी लेती है साथ जीरो लायन पर उपकरणे के
साथ ही डॉग स्कॉट से जीरो लायन के आस पास के इलाके की जाच की जाती है
बॉर्डर पर बेठे जवानो का कहना है कि इन दिनों जब सुबह घाना कोहरा होता है
तो हम उपकरणों से बॉर्डर पर अपनी निगाहों से सीमा पार की हर गतिविधि पर
नजर रखते है
....... आपरेशन सर्द हवा के दोहरान BSF के आल अधिकारी बॉर्डर
पर करीब 15 दिन तक बॉर्डर पर होने वाली हलचल पर नजर रखते है साथ ही अपने
जवानो के साथ रहकर उनका होशाला हफ्जाही करते है इस आपरेशन के दोहरान जो
आधुनिक हथियारों के साथ उपकरणों को बॉर्डर पर ले जाकर उसका उपयाग करते है
जोकि आम तोर पर हेड क्वाटर पर होते है आपरेशन के दोहरान ही रूटीन में
होने वाली नफरी के साथ ही दिन में जिप्सी से प्त्रोलिग़ ,उठो से पेट्रोलिग
,पैदल पेट्रोलिंग और रात के समय में कम्पनी कमांडर के साथ ही कई अधिकारी
देर रात तक तारबंदी के पास पेट्रोलिंग पर जाकर जवानो की मुस्तेदी को चेक
करते नजर आते है
वही इस आपरेशन के बारे में BSF के जवानो का कहना है कि जब अधिकारी
हमारे साथ रहते है तो हमारा होसला बढ़ता है और आपरेशन में हम अपनी पूरी
तयारी के साथ बॉर्डर पर तेनात रहकर दुशमन को मुह तोड़ जबबा देने के लिए
तैयार रहते है हमारे ड्यटी पर मोसम का कोई असर नहीं पड़ता है हम हर वक्त
चोकश रहकर अपनी ड्यटी करते है
......पूछ की घटना के बाद ही बॉर्डर के उस पार पाक सेना की
गतिविधि सीमा के आस पास बढ़ गयी थी और दोनों देशो के रिश्ते भी बिगड़ गए थे
और ऐसे समय में आपरेशन शरू होने से हमारे जवान और भी मुस्तेद हो आगे थे
अब आपरेशन सर्द हवा सोमवार को खत्म हो गया है लेकिन हमारे जवान बॉर्डर पर
करीब दो तिन डिग्री के तापमान में भी अपनी ड्यटी के मुस्तेदी से करते नजर
आ रहे है इसलिए तो हम इन BSF के जवानो को ख रहे है जीरो डिग्री के जबाज
हम और आप इन जाबाजो के चलते ही तो देश में सुरक्षित ही इसिलए हम इन जवानो
को अपने दिल से सलाम करते है


--
VIJAY KUMAR
BARMER
9414383984



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CHANDAN SINGH BHATI

क्षेत्रपाल का मंदिर जहां विवाह बंधन सूत्र खुलते हें


दुनिया का एक  मात्र मंदिर जहां  महिला पुजारी करती हे पूजा 


क्षेत्रपाल का मंदिर जहां विवाह बंधन सूत्र खुलते हें 




जैसलमेर अपनी अनूठी संस्कृति और परम्पराओ के निर्वहन के लिए जाना जाने वाले जैसलमेर जिले में स्थानीय लोक देवता क्षेत्रपाल का अनूठा मंदिर जिला मुख्यालय से किलोमीटर दूर ,स्थित हें जहां स्थानीय वासिंदे शादी के बाद विवाह सूत्र बंधन जिसे स्थानीय भाषा में कोंकण डोरा कहते हें खोलने आते हें ,इस मंदिर में अब तक लाखो की तादाद में दुल्हा दुलहन धोक देकर कोंकण डोरा खोल , हें खास बात की इस मंदिर की पूजा परम्परागत रूप से माली जाती की महिलाए करती हें ,दुल्हा दुल्हन से विधिवत पूजा पाठ महिला पुजारी कराती हें पूजा पाठ के बाद नव दम्पति के विवाह सूत्र बंधन क्षेत्रपाल को मान कर खोले जाते हें ,ताकि क्षेत्रपाल दादे की मेहर टा उम्र दूल्हा दुल्हन पर बनी रहे ,जैसलमेर राज्य की स्थापना के यह परंपरा शुरू हुई थी सेकड़ो सालो से चल रही परम्परा आज भी निर्विवाद रूप से चल रही हें ,इस मंदिर में जैसलमेर के हर जाती धर्म के स्थानीय निवासी निवासी धोक देते हें ,क्षेत्रपाल को शरादालू इच्छानुसार सवा किलो से ले कर सवा मन तक का चूरमा का भोग देते हें ,जैसलमेर में हर जाती ,धर्म में होने वाली शादी के बाद तीसरे या चोथे दिन नव विवाहित जोड़े के कोंकण डोरे खोलने बड़ा बाग़ स्थित क्षेत्रपाल मंदिर परिजनों के साथ आना होता हें ..इस मंदिर में अब तक लाखो लोग अपने विवाह बंधन सूत्र खोल चुके हें ,विश्व का ऐसा एक मात्र मंदिर हें ,इस मंदिर में वर्त्तमान में माली जाती की पचास वर्षीय महिला किशनी देवी पूजा पाठ का जिम्मा संभाल रही हें ,किशनी देवी ने बताया की क्षेत्रपाल मंदिर बड़ा चमत्कारिक और इच्छा पूरी वाला हें ,जैसलमेर में होने वाली हर शादी के नव विवाहित दम्पति की शादी की रश्म कोंकण डोरा क्षेत्रपाल को साक्षी मानकर ही खोले जाते हें ,उन्होंने गत तीन सालो में सेकड़ो नव दम्पतियों के विवाह बंधन सूत्र विधिवत पूजा पाठ करने के बाद ,खुलवाए हें उन्होंने बताया की जैसलमेर के लोग जो बाहरी प्रान्तों या विदेशो में भी हें वे भी कोंकण डोरा खोलने क्शेत्रेअपल मंदिर आते हें ,क्षेत्रपाल को चूरमे का भोग चदता हें ,किसी की मन्नत पूरी होने पर बलि भी हें .पहले मंदिर परिसर में बलि दी जाती थी मगर अब परिसर में बलि करने पर प्रतिबन्ध लगा दिया हें .उन्होंने बताया की मंदिर की पूजा बड़ा बाग़ के स्थानी माली परिवार ही करते हें इसके लिए निविदा जारी होती हें ,जो ज्यादा विकास के लिए लगते हें उसे क्षेत्रपाल की पूजा का मिलाता हें ,उन्हें दो लाख सत्रह हज़ार में निविदा तीन साल पूर्व मिली थी . भी स्थानीय वन माली परिवार ही पोजा पाठ करते ,आये हें क्षेत्रपाल की पूजा महिलाए ही परंपरागत रूप से करती आई हें .मंदिर में जो भी चढ़ावा आता हें उससे उनके परिवार का भरण पोषण होता हें ,उन्होंने बताया की कोई परिवार विवाह के बाद क्षेत्रपाल की धोक देने की भूल करते हें उससे दादा क्षेत्रपाल जात मांग कर कर ,लेते हें लाखो की तादाद में क्षेत्रपाल के मुरीद परिवार हे जो ही नहीं विदेशो के कोने कोने में बसे हें

दुष्कर्म के मामलों में पुलिस को 15 दिन में पेश करना होगा चालान


दुष्कर्म के मामलों में पुलिस को 15 दिन में पेश करना होगा चालान 


पुलिस का कदम : दिल्ली गैंग रेप मामले के बाद कानून में किया संशोधन
पुलिस अधिकारियों को किया निर्देशित 
॥दुष्कर्म के मामलों में 15 दिन के अंदर जांच करके कोर्ट में चार्जशीट पेश करने का पुलिस मुख्यालय से आदेश आया है। इसकी पालना सुनिश्चित की जा रही है। दुष्कर्म के मामले में वैसे सात दिन में चालान पेश कर दिया जाता है।
राहुल बारहट, एसपी बाड़मेर।
  बाड़मेर  दुष्कर्म के मामलों में अब पुलिस अधिकारियों को 15 दिन के अंदर जांच पूरी करके अदालत में चालान पेश करना पड़ेगा। जबकि पहले एक माह का समय था। अगर समय सीमा के अंदर जांच पूरी नहीं होती है तो संबंधित जांच अधिकारी को लिखित में एसपी को जवाब देना पड़ेगा। इसके बाद एसपी 15 दिन के लिए परमिशन दे सकता है। इस दौरान भी अगर जांच पूरी नहीं होती है तो जांच अधिकारी को आईजी से परमिशन लेनी पड़ेगी। दिल्ली गैंग रेप मामले के बाद कानून में संशोधन किया गया है। माना जा रहा है कि इससे महिला के साथ गलत काम करने वाले आरोपियों को जल्दी सजा मिलेगी तथा ऐसे अपराधों पर रोक लगेगी। 

लंबे इंतजार के बाद मिली राहत

दुष्कर्म के मामलों की जांच व आरोपियों की गिरफ्तारी में देरी के चलते पीडि़त महिलाओं को समय पर न्याय नहीं मिल पाता था। लंबे अर्से से नियमों में संशोधन की दरकार महसूस की जा रही थी। हाल ही में दिल्ली गैंग रेप का मामला सामने आने के बाद पुलिस ने नियमों में संशोधन करते हुए पीडि़त महिलाओं को तत्काल न्याय दिलाने के लिए यह कदम उठाया है। अब मामला दर्ज होने के पंद्रह दिन बाद ही कोर्ट में चालान पेश किया जाएगा। इससे महिलाओं को राहत मिलेगी।

बढ़ रहे हैं दुष्कर्म के मामले

बाड़मेर जिले में दुष्कर्म के मामले प्रतिवर्ष बढ़ रहे हैं। इससे पुलिस अधिकारियों की चिंता बढ़ गई है। स्थिति यह है कि बीते कुछ समय से सामूहिक दुष्कर्म के मामले बढ़ते ही जा रहे हैं। जनवरी 2013 में सामूहिक दुष्कर्म के चार मामले दर्ज किए जा चुके हैं। जानकारों का कहना है कि 15 दिन के अंदर जांच करके अदालत में आरोपियों के खिलाफ चार्जशीट पेश करना पुलिस के लिए काफी चुनौती है। हालांकि इससे पीडि़ता को जल्दी न्याय मिलने की उम्मीद है।





पत्नी फंदे पर झूली पति टांके में कूदा




पत्नी फंदे पर झूली पति टांके में कूदा

 
बायतु   उपखंड के भोजसर गांव में एक विवाहिता ने खेजड़ी के पेड़ से फंदा लगाकर इहलीला समाप्त कर दी। घटना के बाद घर पर लोगों की भीड़ जमा हो गई। इधर, उपचार के लिए बायतु गया विवाहिता का पति जब घर लौटा तो माजरा समझ में आने पर घर के आगे बने टांके में कूद गया। हालांकि टांके में पानी नहीं होने से वह बच गया, लेकिन उसका एक पैर फैक्चर हो गया। बायतु के भोजासर गांव निवासी तुलसी (20) पत्नी देदाराम जाट ने सोमवार को खेजड़ी के पेड़ से फंदा लगाकर आत्महत्या की। सूचना मिलने पर ग्रामीण व पुलिस मौके पर पहुंची। शव को पेड़ से नीचे उतारकर घर लेकर आए। मृतका का पति देदाराम उपचार के लिए बायतु गया हुआ था। जब वह घर लौटा तो वहां पर लोगों की भीड़ देखकर वह होश खो बैठा ओर टांके में कूद गया। वहां मौजूद लोगों ने उसे टांके से तुरंत बाहर निकाल दिया। लेकिन उसका एक पैर फैक्चर हो गया।

 

सोमवार, 28 जनवरी 2013

बम मिलने से सनसनी

बम मिलने से सनसनी

रामगढ़। कस्बे के तनोट चौराहे पर एक कबाड़ी की दुकान में शनिवार को बम मिलने से गांव में सनसनी फैल गई। बम बाड़े में बिखरे कचरे में पड़ा हुआ था। शनिवार अपराह्न बाड़े के आगे बिखरे कचरे में बम दिखने से सनसनी फैल गई। कबाड़ में बम होने की सूचना फैलने से वहां पर लोगों की भीड़ जमा हो गई।

सूचना मिलने पर मौके पर पुलिस भी पहुंची और बम को कब्जे में ले लिया और सुरक्षित स्थान पर रखवा दिया। अब इस बम को बम निरोधक दस्ते ने डिफ्यूज करेगी। पुलिस के अनुसार कबाड़ में मिले बम का नाम पैरा बम है और इसका प्रयोग रात में रोशनी करने के लिए किया जाता है।

कॉलेज के बुजुर्ग प्रिंसिपल को छात्रा से हुआ प्‍यार, रचाई शादी तो हुआ बवाल



गोपालगंज (बिहार). जूली-मटुकनाथ की राह पर चलते हुए महेन्द्र दास कॉलेज के प्राचार्य संत रामदुलार दास ने अपने ही कॉलेज की छात्रा से प्रोफेसर बनी निभा के साथ विवाह किया। प्राचार्य रामदुलार दास के इस कारनामे से छात्र संगठनों में खासा उबाल है। छात्र संगठनों ने शादी के बाद से ही प्राचार्य के खिलाफ मोर्चा खोल दिया है। जबकि छात्र संगठनों ने प्राचार्य का पुतला दहन कर उनकी बर्खास्तगी की मांग की है। छात्रों ने बताया कि जरूरत पडऩे पर अनशन भी किया जाएगा।
कॉलेज के बुजुर्ग प्रिंसिपल को छात्रा से हुआ प्‍यार, रचाई शादी तो हुआ बवाल
क्‍या है मामला?

प्राचार्य संत रामदुलार दास कॉलेज की ही इंटर छात्रा निभा के करीब आए। उसे मनमाने तरीके से डिग्रियां देकर प्रोफेसर बनाया। 16 जनवरी 2013 को गोरखपुर के गोरखनाथ मंदिर में निभा के साथ शादी रचाने के बाद से दोनों गायब हो गए। 21 जनवरी को अचानक दोनों कॉलेज पहुंचे तो छात्रों को इसकी जानकारी मिली। हालांकि रामदुलार दास 65 वर्ष की उम्र के इस पड़ाव को शादी के उपयुक्त नहीं मानते। लेकिन, शादी के बाद भी खुद को संत ही मानते हैं और भविष्य में भी संत परम्परा जारी रखने की बात करते हैं।

क्‍या कहती हैं निभा?

वहीं निभा इसे विधि का विधान मानती है। निभा के मुताबिक शादी के पहले भी वह प्राचार्य को सद गुरु मानती थी, अब शादी के बाद भी उन्हें सद गुरु मानती रहेंगी।

धन्य हुआ कलशाचल, निज धाम बिराजे पीरजी




श्रीमहारुद्र यज्ञ, शिखर कलश स्थापना, ध्वजारोहण, पीर शांतिनाथ महाराज की मूर्ति स्थापना व भंडारा महोत्सव संपन्न


उमड़ा आस्था का ज्वार...




पहुंचे एक लाख से अधिक श्रद्धालु

जन जन के आराध्य पीर शांतिनाथ जी के भंडारा महोत्सव में पहुंचे एक लाख से अधिक श्रद्धालु, पूरा शहर रहा बंद। अनेक प्रवासी भी हुए शामिल। कलशाचल पर पर्वत के चप्पे-चप्पे मौजूद रहे श्रद्धालु।

आतुर रहे श्रद्धालु

मनमोहक प्रतिमा के दर्शन के लिए उमड़ा जनसैलाब। पीरजी की मूर्ति के दर्शन के लिए आतुर रहते थे लोग। छोटे से बुलावे पर भी चले आते थे नाथजी को आज श्रद्धालुओं ने किया नमन।

अथाह जनसमूह

अंतिम यात्रा में उमड़ा अपार जनसमूह, श्रद्धालुओं ने लगाए जयकारे और पुष्प वर्षा कर भंडारे का कार्यक्रम। कलशाचल पर्वत पर नजर आया अथाह श्रद्धा का ज्वार।

  जालोर वाद्ययंत्रों की गूंज के साथ ध्यान मुद्रा, शांत स्वरूप और कठोर तपस्वी नाथजी के भंडारा महोत्सव का समापन रविवार को सैकड़ों साधु संतों की मौजूदगी में हुआ। भंडारा महोत्सव में श्रद्धालुओं का सैलाब उमड़ पड़ा। कलशाचल पर्वत भी पीरजी के जयकारों व पुष्य वर्षा से धन्य हो गया। भंडारा महोत्सव में राज्यभर से आए श्रद्धालुओं ने बढ़ चढ़कर भाग लिया। रविवार सवेरे पीरजी की मनमोहक व शांत स्वरूप मुद्रा में विराजित मूर्ति के दर्शन करने के लिए भी श्रद्धालु आतुर नजर आए। मंदिर परिसर में नाथजी के जयघोष से गूंज उठा। उड़ती गुलाल व बैंड बाजों की मधुर धुन के साथ ही सिरे मंदिर भंवर गुफा स्थित मंदिर की प्रतिष्ठा भी हुई। छह दिनों तक चले भंडारा, मूर्ति स्थापना, प्रतिष्ठा महोत्सव में लाखों श्रद्धालुओं ने पीरजी के दर्शन और परिवार के लिए खुशहाली की कामना की। भंडारा महोत्सव की पूर्व संध्या शनिवार को मंदिर परिसर में भजनों की स्वर लहेरिया गूंजती रही। भंडारा महोत्सव के तहत विधायक रामलाल मेघवाल ने मुख्यमंत्री अशोक गहलोत का संदेश पढ़कर सुनाया। साथ ही भाजपा जिलाध्यक्ष नारायणसिंह देवल ने भी महोत्सव में पहुंचकर पूर्व मुख्यमंत्री वसुंधरा राजे सिंधिया के संदेश सुनाया। महोत्सव में सीआई मांगीलाल, डिप्टी सत्येंद्रपाल सिंह, यातायात विभाग प्रभारी विष्णुदत्त, पूर्व विधायक जोगेश्वर गर्ग, सत्यनारायण अग्रवाल, कांतिलाल सोनी, बंशीलाल सोनी, खसाराम माली, अमर सिंह, माधो भारती, मनीष जोधवानी, हिंदू युवा संगठन के जिलाध्यक्ष सुरेश, करणराम देवासी, लक्ष्मणसिंह मेवाड़ा समेत कई श्रद्धालु मौजूद थे। कार्यक्रम का संचालन अनिल शर्मा ने किया। 

करीब एक लाख से ज्यादा श्रद्धालु पहुंचे

सूरज की पहली किरण से पूर्व ही श्रद्धालुओं का रेला पीर शांतिनाथ महाराज के भंडारे में पहुंचने के लिए उत्साहित रहा। तलहटी से लेकर सिरे मंदिर तक श्रद्धालु नाथजी के जयकारे लगाते हुए चल रहे थे। ज्यों-ज्यों सूर्यदेव ने अपनी आभा बिखेरनी शुरू त्यों त्यों श्रद्धालु की तादात भी बढ़ती रही। यहां तक कि दोपहर को सिरे मंदिर की विहंगम पहाड़ी पर भी जगह-जगह श्रद्धालु नजर आए। कई स्थानों पर भीड़ ज्यादा होने से श्रद्धालुओं सिरे मंदिर पहुंचने में काफी समय लगा। पहुंचने के बाद श्रद्धालु कतारों में लगकर पीरजी की मूर्ति के दर्शन किया। दर्शन महाप्रसादी का आनंद लिया। वहीं भंडारे में हजारों की तादात में श्रद्धालुओं ने भंडारे में प्रसादी का आनंद लिया।

भजन गायकों ने बांधा समां

भंडारा व प्रतिष्ठा महोत्सव के तहत शनिवार शाम को गादीपति गंगानाथ महाराज के सानिध्य में भजन संध्या कार्यक्रम का आयोजन किया गया। भजन संध्या में गायक कलाकार चेतनगिरी महाराज, मोइनुद्दीन मनचला, चेतनपुरी, किशोर भारती, जोगभारती, पीयूष त्रिवेदी, निर्मलनाथ महाराज, राजू वैष्णव समेत गायकों ने भजनों की प्रस्तुतियां दी। इस मौके उप मुख्य सचेतक रतन देवासी, गोपाराम मेघवाल समेत कई श्रद्धालु मौजूद रहे।

मार्केट रहा बंद

पीरजी के भंडारा महोत्सव व प्रतिष्ठा को लेकर जिला मुख्यालय का बाजार पूर्णत: बंद रहा। इस दौरान लोगों में श्रद्धा व आस्था नजर आई। पूरा शहर भी पीरजी के भंडारे में शरीक हुआ। लोगों ने पीरजी की मू्ति के दर्शन कर पुष्प अर्पित किए।

बाजार रहा बंद

पीरजी के भंडारा महोत्सव व प्रतिष्ठा को लेकर जिला मुख्यालय का बाजार पूर्णत: बंद रहा। इस दौरान लोगों में श्रद्धा व आस्था नजर आई। पूरा शहर भी पीरजी के भंडारे में शरीक हुआ। लोगों ने पीरजी की मूर्ति के दर्शन कर पुष्प अर्पित किए।

जालोर. प्रतिष्ठा महोत्सव के समापन पर साधु-संतों का अभिनंदन किया गया। भास्कर

साधु-संतों का हुआ बहुमान त्न छह दिवसीय भंडारा व प्रतिष्ठा महोत्सव के तहत गादीपति गंगानाथ महाराज के सानिध्य में साधु संतों का बहुमान हुआ। इस दौरान गादीपति ने विभिन्न राज्यों व जिले से पधारे मठाधीशों को शॉल व भेंट अर्पित की, जिसमें गोरखपुर (उ.प्र.) के महंत अवैधनाथ महाराज, बड़ा आसन राताढूंढा (नागौर) के पीर मंगलनाथ महाराज, शिलेश्वर मठ उम्मेदाबाद (गोल) महंत रावतभारती महाराज, चिडिय़ानाथ का आसन पालासनी जोधपुर के महंत कैलाशनाथ महाराज, कदली मठ मैंगलोर के महंत राजा संध्यानाथ महाराज, हेमशाही मठ कवला महंत हरिपुरी महाराज, थांवला मठ महंत विष्णुभारती महाराज, पीपलेश्वर मठ भैंसवाड़ा महंत रणछोड़भारती महाराज, सारणेश्वर महादेव मंदिर सरत महंत शंकरस्वरूप ब्रह्मचारी महाराज, ब्रह्मधाम आसोतरा महंत तुलसाराम महाराज, राजाराम आश्रम शिकारपुरा महंत दयाराम महाराज, अस्थरल बोहर हरियाणा महंत चांदनाथ महाराज, बिसनगर मेहसाणा (गुजरात) महंत गुलाबनाथ महाराज, मोहिवाड़ा मठ धुंबड़ा महंत राजभारती महाराज, भालणी मठ महंत देवगिरी महाराज, जागनाथ मठ नारणावास महंत गंगाभारती महाराज, मलकेश्वर मठ महंत सेवाभारती महाराज, बिसलपुर महंत दयानाथ महाराज, पुनास मठ भीनमाल महंत बाबूगिरी महाराज व सुरेश्वर मठ पोडगरा पर्बतगिरी महाराज समेत प्रदेश व जिलेभर में साधु संतों मौजूद रहे।

पंचकुंडीय यज्ञ में दी आहुतियां

प्रतिष्ठा को लेकर सिरे मंदिर प्रांगण में पंचकुंडीय यज्ञ शाला में पिछले तीन दिन से चल हवन कार्यक्रम की पूर्णाहुति हुई। पंडितों के वैदिक मंत्रोच्चार के साथ यजमानों ने प्रधान हवन कुंड, पूर्व हवन कुंड, पश्चिम हवन कुंड, उत्तर हवन कुंड व दक्षिण हवन कुंड में आहुतियां दी जाएगी। एक तरफ वैदिक मंत्रोच्चार और दूसरे तरफ नाथजी के जयकारों से पूरा परिवेश धार्मिक आस्था के रंग में रंगा रहा।

कलशचल पर्वत पर हुई पुष्प-वर्षा

प्रतिष्ठा व भंडारा महोत्सव के अंतिम दिन कलशाचल पर्वत फूल मालाओं से सुशोभित रहा। मंदिर की प्रतिष्ठा व मूर्ति स्थापना के दौरान लाभार्थी परिवार की ओर से हैलीकॉप्टर से पुष्प वर्षा की गई। पूरा कलशचल पर्वत फूलों से नहा उठा। महोत्सव के समापन पर लाभार्थी परिवार द्वारा बंदूक से सलामी दी गई।

धूमधाम से हुई प्रतिष्ठा

कलशाचल पर्वत स्थित सिरे मंदिर परिसर में रविवार सुबह शुभ मुहूर्त में गादीपति गंगानाथ महाराज समेत कई साधु-संतों के सानिध्य में मंदिर की प्रतिष्ठा हुई। साथ ही लाभार्थी परिवारों द्वारा मूर्तियों, कलश व इंडा की पूजा अर्चना कर विराजित किया गया। इसके साथ ही पीरजी के समाधि स्थल पर पीर शांतिनाथ महाराज की मूर्ति स्थापित की गई। इस दौरान बैंड बाजों की धुन के साथ पीरजी के जयकारे व उड़ती गुलाल से माहौल भक्तिमय बना रहा। वहीं पंडितों के वैदिक मंत्रोच्चार के साथ श्रीमहारुद्र यज्ञ की पूर्णाहुति हुई। वहीं एक दिन पूर्व शनिवार को सवेरे शुभ मुहूर्त में देवताओं का पंचांग पूजन, महारुद्र यज्ञ आवर्तन और दोपहर में स्थापित देवताओं के लिए हवन, रुद्राभिषेक, शिखर पूजन, देवस्नपन एवं शय्याधिवास व आरती हुई, जिसमें श्रद्धालुओं ने आरती के दर्शन कर मन्नतें मांगी।

 

चढ़ावों के लाभार्थियों का सम्मान आज

भंडारा महोत्सव के तहत सोमवार को गादीपति गंगानाथ महाराज के सानिध्य में विभिन्न चढ़ावों के लाभार्थी परिवार का सम्मान किया जाएगा। आयोजन समिति के बंशीलाल सोनी व माधोभारती ने बताया कि छह दिवसीय महोत्सव के तहत शिखर, कलश, मूर्ति, भोजन, चादर, केशर व पूजा समेत विभिन्न चढ़ावों के लाभार्थी परिवार को माला पहनाकर स्वागत किया जाएगा।



सामूहिक दुष्कर्म के आरोपियों की गिरफ्तारी के लिए निकाला मौन जुलूस


सामूहिक दुष्कर्म के आरोपियों की गिरफ्तारी के लिए निकाला मौन जुलूस 


भील समाज, करणी सेना, शिव सेना समेत विभिन्न संगठनों में आक्रोश, तीन दिन बाद भी पुलिस नहीं पकड़ पाई दुष्कर्म के आरोपी 

शिव नाबालिग लड़की के साथ सामूहिक दुष्कर्म के आरोपियों की गिरफ्तारी की मांग को लेकर विभिन्न संगठनों ने कस्बे में मौन जुलूस निकाला। थानाधिकारी को ज्ञापन सौंपकर मामला दर्ज होने के तीन दिन बाद भी आरोपियों को गिरफ्तार नहीं करने पर रोष जताया। साथ ही चेतावनी दी कि आगामी 24 घंटे में दुष्कर्म के आरोपियों को गिरफ्तार नहीं किया गया तो उग्र आंदोलन किया जाएगा। सोमवार को भीम समाज का प्रतिनिधि मंडल राज्यपाल के नाम ज्ञापन कलेक्टर को ज्ञापन सौंपेंगे। 

उपखंड क्षेत्र के पूषड़ गांव की एक नाबालिग लड़की के साथ सामूहिक दुष्कर्म का मामला पुलिस थाना शिव में 25 जनवरी को दर्ज करवाया गया था, मगर अभी तक आरोपियों को पुलिस गिरफ्तार नहीं कर पाई है। रविवार को भील समाज के पूर्व जिलाध्यक्ष चांदाराम भील, सचिव जेठाराम व शिव के पूर्व विधायक डॉ. जालमसिंह रावलोत के नेतृत्व में भील समाज, शिव सेना, करणी सेना समेत विभिन्न संगठनों के लोगों ने कस्बे में मौन जुलूस निकाला। यह जुलूस कस्बे से होते हुए पुलिस थाने पहुंचा। जहां पर थानाधिकारी को ज्ञापन सौंपकर आरोपियों को गिरफ्तार करने की मांग रखी। थानाधिकारी ने आश्वस्त किया कि आरोपियों को गिरफ्तार करने की कार्रवाई जारी है, जल्द ही गिरफ्तार करेंगे। समाज के भवन में आयोजित बैठक को संबोधित करते हुए पूर्व जिलाध्यक्ष चांदाराम भील ने कहा कि नाबालिग के साथ सामूहिक दुष्कर्म का मामला दर्ज होने के तीन बाद भी आरोपियों को पुलिस गिरफ्तार नहीं कर पाई है। जबकि घानेरी नाडी प्रकरण में घटना के ही दिन आरोपियों को गिरफ्तार कर दिया था। दलित वर्ग की उपेक्षा की जा रही है। आगामी दिनों में उग्र आंदोलन किया जाएगा। पूर्व विधायक डॉ. जालमसिंह रावलोत ने कहा कि तीन दिन से आरोपी खुले में घूम रहे हैं। पुलिस मामले को गंभीरता से नहीं ले रही है। इससे पूरे हिंदु वर्ग में रोष है। बैठक में सोनाराम भील, दानाराम, चुतराराम, चेतनराम, भाजपा ब्लॉक अध्यक्ष पुरुषोत्तम खत्री, भारतीय किसान संघ ब्लॉक अध्यक्ष पूर्णसिंह राजपुरोहित, कल्याणसिंह महाबार, पदमसिंह राजगुरू, भीयाड़ सरपंच मुरारसिंह, छगनसिंह राजपुरोहित, बख्तावरसिंह कोटड़ा समेत बड़ी तादाद में लोग मौजूद थे।

रविवार, 27 जनवरी 2013

दर्जन भर जिन्दा बम मिलने से सनसनी


 दर्जन भर जिन्दा बम मिलने से सनसनी


दर्जन भर जिन्दा बम मिलने से सनसनी
/ बाड़मेर
राजस्थान के बाड़मेर शहर में एक नहीं दो नहीं करीब एक दर्जन से
भी ज्यादा जिन्दा बम मिलने से सनसनी फेल गई दरसल जिन्दा बम इतनी मात्रा
में एक साथ मिलने से पुरे बॉर्डर होम गार्ड के पुरे परिसर रह रहे जवानो
में खोफ छा गया बाड़मेर शहर बॉर्डर होम गार्ड परिसर में खुदाई का काम चल
रहा था इसी दोहरान जब खुदाई चल रही थी तो मजदूरो को बम नुमा वस्तु को
देखा तो अचानक ही डर गया और उसके बाद जब उसके बाद आस -पास इलाके की
खुदाई की गई तो दर्जन से भी ज्यादा जिन्दा बम मिले और उसके बाद पुलिस ने
सेना को बम निष्क्रिय करने के लिए बुलाया है लेकिन बम मिलने के बाद
इलाके में भय व्याप्त हैं और तो और इसके ठीक पीछे मात्र 20 मीटर दूरी पर
सैकड़ो परिवार निवास करते है
बाड़मेर की रेतीली मीन आये दिन पुराने बम उगल रही
हैं। इससे पहले बाड़मेर के सीमावर्ती इलाकों में लगातार ऐसे मामले सामने
आते रहे हैं लेकिन इन दिनों बाड़मेर में भी इस तरह की घटनाए सामने आ रही
हैं। दरअसल बाड़मेर के लक्ष्मी नगर आकाशवाणी के आगे स्थित बॉर्डर
होमगार्ड कार्यालय में स्टेडियम निर्माण का कार्य शुरू होने के बाद जब
मैदान सफाई कार्य शुरू किया गया तो मजदूर भयाक्रांत हो गये क्यूंकि जब
ट्रेक्टर के माध्यम से सफाई की जा रही थी तभी ट्रेक्टर के नीचे किसी धातु
की वस्तु आने से जोरदार आवाज़ आई इस पार मजदूरों ने वहां से रेत हटाई तो
रेत के नीचे बक्से में पुराने जंग लगे काफी बम वहां दबाये हुए मिले।
मजदूरों ने बम मिलने के बारे में होमगार्ड के अधिकारीयों को भी जानकारी
दी और उसके बाद कोतवाली थाना पुलिस को इसकी सूचना दी गई।। जिला पुलिस
अधिक्षक ने थानाधिकारी द्वारा सूचना दिए जाने के बाद सेना को इसकी लिखित
सूचना देकर बम निरोधक दस्ता उपलब्ध करवाने की मांग की और इन बमो को नष्ट
करने के लिए कार्यवाही करने की मांग की गई है। बम मिलने से इलाके में भय
व्याप्त हैं और तो और इसके ठीक पीछे मात्र 20 मीटर दूरी पर सैकड़ो परिवार
निवास करते हैं ऐसे में अगर कोई हादसा हो जाए तो इसकी जिम्मेदारी किसकी
होगी इसका जवाब देने वाला कोई भी नजर नहीं आ रहा हैं। कोतवाली पुलिस ने
इस मामले में जरुर त्वरित कार्यवाही करते हुए अपना कर्तव्य निभाने का काम
करते हुए सम्बन्धित सेना के अधिकारीयों को सूचना दे दी हैं। कोतवाली थाना
के कार्यवाहक थानाधिकारी महेश श्रीमाली के मुताबिक़ इसको नष्ट करने के लिए
सेना के बम निरोधक दस्ता आएगा तभी इसका निस्तारण सम्भव हैं।

आये दिन आप और हम जैसलमेर के चांधन और लाठी स्थित
फायरिंग रेंज में पुराने बम फटने से होने वाली जन हानि की घटनाएं सुनते आ
रहे हैं आम तोर पर पुराने बम्बो को निष्क्रिय करने में कई दिन लग जाते है
लेकिन सबसे बडा सवाल यह है कि अगर इस की सूचना मिलने के बाद भी कोई
कार्यवाही नहीं हुई तो इस बात से यह अंदाजा लगाया जा सकता हैं कि इस बड़ी
घटना पर कितनी गम्भीरता सम्बन्धित जिम्मेदारों के द्वारा दिखाई जा रही
हैं। हालाँकि पुलिस के द्वारा सेना को कई दिन पहले ही लिखित में इस बात
की सूचना दी गई थी।




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CHANDAN SINGH BHATI

अठारह शिक्षकों के खिलाफ मामला

अठारह शिक्षकों के खिलाफ मामला

बाड़मेर। फर्जी दस्तावेज प्रस्तुत कर तृतीय श्रेणी शिक्षक की नौकरी हासिल करने वाले 18 शिक्षको के खिलाफ जिला शिक्षा अधिकारी प्रारम्भिक शिक्षा ने कोतवाली पुलिस को परिवाद भिजवाया है। ये शिक्षक 1999 में जिले की विभिन्न पंचायत समितियों मे नियुक्त हुए थे।

जिला परिषद ने 1998 में तृतीय श्रेणी शिक्षकों की भर्ती की थी। इसमें वरीयता के आधार पर चयन हुआ। वरीयता में जिले के निवासियों व ग्रामीण क्षेत्र के लिए बोनस का प्रावधान था। इसे कई आशार्थियों ने उच्च न्यायालय व उच्चतम न्यायालय में चुनौती दी थी।

उच्चतम न्यायालय ने 30 जुलाई 2012 को निर्णय पारित करते हुए बोनस अंकों को अनुचित ठहराया। साथ ही 18 नवंबर 1999 के पpात बोनस अंक हटा नई वरीयता सूची जारी करने के निर्देश दिए। इसमें मूल पक्षकार याचिकाकत्ताüओं को नियुक्ति देने के निर्देश दिए थे। इस दौरान अठारह शिक्षकों ने कूटरचित दस्तावेज प्रस्तुत करते हुए खुद को मूल पक्षकार बता नौकरी हासिल कर ली। 23 अप्रेल 2005 को एक शिकायत पर विभागीय स्तर पर इसकी जांच प्रारंभ हुई।

विभाग ने इन शिक्षकों को नोटिस जारी किए तो उन्होंने उच्च न्यायालय से स्थगन आदेश ले लिया। 21 सितंबर 2012 को उच्च न्यायालय ने याचिकाएं खारिज कर दी। इसके बाद विभाग ने कार्रवाई प्रारंभ करते हुए 1 नवंबर 2012 को अठारह शिक्षकों की सेवाएं समाप्त कर दी। उच्च न्यायालय की डबल बैच में लगी याचिका भी खारिज हो गई। इस पर जिला शिक्षा अधिकारी प्रारंभिक शिक्षा ने सभी 18 शिक्षकों के खिलाफ परिवाद भिजवाया है।

ये हैं शिक्षक
उमेशचंद्र प्राथमिक विद्यालय भूताणियों की ढाणी चौहटन, राजवीरसिंह वेरनाडी सिवाना, अरूणसिंह इब्रे का तला चौहटन, लक्ष्मीनारायण सिणधरी, रविन्द्रसिंह मिठडिया कुआ बाड़मेर, नगेन्द्रसिंह खेराज का तला चौहटन, धर्मपालसिंह हदाणियों की ढाणी बायतु, होतीसिंह खारियापाना सिणधरी, भूपेन्द्रसिंह शहदाद का पार शिव, चंदनसिंह रामसरिया बायतु, मुकेशकुमार बांकियावास बालोतरा, विश्वंभरदयाल गुलन की नाडी धोरीमन्ना, लोकेन्द्रकुमार कापराउ चौहटन, कृष्णकुमार कुन्दनपुरा चौहटन, कृष्णपालसिंह चावड़ा शिव हाल बेढ़म भरतपुर, झमनलाल गुप्ता पनल की बेरी धोरीमन्ना, दानवीर शर्मा कमरूद्दीन की ढाणी बालोतरा हाल नदबई भरतपुर एवं भगवानदास इब्रे का तला चौहटन के खिलाफ मामले दर्ज हुए हैं।

परिवाद भिजवाया
मूल पक्षकार नहीं होते हुए भी फर्जी दस्तावेज प्रस्तुत कर नौकरी करने वाले 18 शिक्षकों के खिलाफ परिवाद भिजवाया है। इनकी सेवाएं पहले ही समाप्त कर चुके है। - पृथ्वीराज दवे, जिला शिक्षा अधिकारी प्रारंभिक शिक्षा

21 को फांसी की सजा के बाद दंगे,27 मरे

21 को फांसी की सजा के बाद दंगे,27 मरे

काहिरा। मिस्र की एक अदालत ने देश में गत वर्ष एक फुटबाल मैच के दौरान हुई हिंसक घटना में शामिल 21 लोगों को मौत की सजा सुनाई है। इस हादसे में 70 से अधिक लोगों की मौत हो गई थी और एक हजार से ज्यादा लोग घायल हो गए थे। अदालत के सजा का ऎलान करने के बाद से काहिरा में एक बार फिर से हिंसा शुरू हो गई है। फांसी की सजा पाए दोषियों के परिजनों ने इसके खिलाफ राजधानी काहिरा में विरोध प्रदर्शन शुरू कर दिए हैं जबकि अदालत ने इस मामले पर देश के शीर्ष मुफ्ती को अंतिम निर्णय लेने के लिए कहा है।

पोर्ट सईद स्टेडियम में हमले के 21 आरोपियों को फांसी की सजा सुनाए जाने के बाद हुई हिसंक वारदातों में दो पुलिसकर्मियों सहित कम से कम 27 लोगों की मौत हो गई और लगभग 200 घायल हो गए हैं।

सुरक्षा सूत्रों के अनुसार विरोध कर रहे पोर्ट सईद के लोगों ने कहा कि स्टेडियम पर हमले के मामले में उनके शहर के लोंगों को फंसाया गया है। उत्तेजित लोग जेल के समक्ष एकत्र हो गए और विरोध प्रदर्शन करने लगे। वहां से गोलियां चलने की भी आवाजें सुनाई दीं। इसी दौरान वहां मौजूद दो पुलिसकर्मियों को गोली मार दी गई। सड़कों पर भी उत्तेजित लोगों को उपद्रव करते देखा गया। एक प्रत्यक्षदर्शी ने बताया कि कुछ लोग पुलिस स्टेशन में घुस गए।

उल्लेखनीय है कि गत वर्ष फरवरी में अल मसरी और काहिरा अलअहली के बीच पोर्ट सईद के स्टेडियम में हुए एक मैच के दौरान दोनों क्लबों के प्रशंसकों के बीच हिंसा हो गई थी जिसमें 70 से अधिक लोगों की मौत हो गई थी और एक हजार से अधिक लोग घायल हो गए थे। एक फरवरी 2012 को हुए इस मैच के दौरान अल मसरी समर्थकों ने अल अहली समर्थकों पर चाकुओं, छड़ों, तलवारों, बोतलों और अन्य हथियारों से हमला कर दिया था। इस मामले में कुल 73 लोगों को आरोपी बनाया गया था जिनमें से 21 को मौत की सजा दी जा चुकी है जबकि शेष 52 आरोपियों को नौ मार्च को सजा सुनाई जाएगी।
हाईकोर्ट के जज ने देखी "विश्वरूपम"

चेन्नई। मद्रास हाईकोर्ट के न्यायाधीश के. वेंकटरमन ने जाने माने अभिनेता कमल हसन की विवादास्पद फिल्म "विश्वरूपम" की रिलीज पर फैसला देने के लिए शनिवार को कुछ मुस्लिम नेताओं के साथ यह फिल्म देखी। कमल ने "विश्वरूपम" को 25 जनवरी को रिलीज करने की घोषणा की थी लेकिन मुस्लिम संगठनों ने फिल्म के कुछ दृश्यों पर विरोध जताया कि इनमें समुदाय को गलत तरीके से दर्शाया गया है। विरोध के मद्देनजर तमिलनाडु सरकार ने सिनेमा थियेटरों को फिल्म की रिलीज दो हफ्ते तक टालने के आदेश दे दिए।

कमल की फिल्म निर्माता कंपनी राजकमल फिल्म्स इंटरनेशनल ने तमिलनाडु सरकार के इस फैसले के खिलाफ उच्च न्यायालय में याचिका दायर की है। न्यायाधीश वेंकेटरमन ने दोनों पक्षों की दलीलें सुनने के बाद कहा था कि वह 26 जनवरी को फिल्म देखने के बाद ही 28 जनवरी को यह निर्णय लेंगे कि इस फिल्म पर लगी रोक हटाई जाए या नहीं। इस बीच कर्नाटक में मैसूर पुलिस ने बताया कि फिल्म के प्रदर्शन के दौरान 50 से अधिक बदमाश बालाजी थियेटर में जबरन घुस गए और स्क्र ीन को क्षतिग्रस्त कर दिया। उन्होंने फिल्म देखने के लिए आए लोगों से थियेटर खाली करने को कहा।

भोजपुरी अभिनेत्री बोली,मेरा पति नपुंसक

भोजपुरी अभिनेत्री बोली,मेरा पति नपुंसक

पटना। मेरा पति नपुंसक है यह आरोप सामने आने के बाद महिला थाना पुलिस इस बात को ले परेशान रही कि कौन सी दफा में मुकदमा दर्ज किया जाए। काफी जद्दोजहद के बाद प्रताड़ना और मारपीट की धारा के साथ प्राथमिकी दर्ज की गई है। पुलिस का कहना है कि छानबीन जारी है।

भोजपुरी अभिनेत्री तनुश्री अपनी मां नीलम ठाकुर व बहन पद्मजा उर्फ पूजा के साथ दो दिन पूर्व डीआइजी के यहां गई और बहनोई के खिलाफ आवेदन दिया। जिसके बाद मामले को महिला थाने के सुपुर्द कर दिया गया था। दो दिनों से महिला थानेदार मृदुला कुमार दोनों पक्षों के साथ मामले पर माथापच्ची कर रही थीं। पुलिस के मुताबिक समस्या यह कि कभी पूजा साथ रहने की बात कहती, तो कभी मुकर जाती। दो दिनों की जद्दोजहद के बाद समझौता न होने पर गुरूवार की देर शाम कांड संख्या 2-13 दर्ज किया गया। पूजा का आरोप है कि उसका पति नपुंसक है, अपनी कमी छिपाने के लिए प्रताडित करता है, कमरे में बंद रखता है, मारता-पीटता है।

एक साल पहले शादी हुई थी, मैरिज ब्यूरो के जरिए। हालांकि गांधी नगर कांटी फैक्ट्री के पास रहने वाले आरोपति पति रमेश का कहना था कि उसका मेडिकल करा लिया जाए। पत्नी ड्रग लेने की आदी है, शादी के बाद से पति-पत्नी के संबंध स्थापित नहीं हुए। करीब जाते ही शोर मचाने की धमकी देती है। पूजा मुजफ्फरपुर हरिसभा निवासी व खुद को भाजपा नेत्री बताने वाली प्रो. नीलम ठाकुर की बेटी है।

शनिवार, 26 जनवरी 2013

रेप के मामले में फंसे आईपीएस को दे दिया राष्‍ट्रपति पुरस्‍कार!


रेप के मामले में फंसे आईपीएस को दे दिया राष्‍ट्रपति पुरस्‍कार!
नई दिल्‍ली. गणतंत्र दिवस के मौके पर इस साल के लिए घोषित पुरस्‍कारों पर विवाद शुरू हो गया है। छत्‍तीसगढ़ पुलिस में आईजी एसआरपी कल्‍लुरी को सराहनीय सेवा के लिए राष्‍ट्रपति पुरस्‍कार दिए जाने का ऐलान किया गया है। कल्‍लुरी की अगुवाई में पुलिस पर सरगुजा जिले की एक आदिवासी महिला से रेप का आरोप है। 1994 बैच के आईपीएस अफसर कल्‍लुरी पर लेधा बाई नाम की महिला से रेप करने और अन्‍य पुलिसकर्मियों को भी ऐसा करने के आदेश देने के आरोप हैं।

दक्षिण भारत की जानी-मानी गायिका एस जानकी ने पद्म भूषण लेने से इनकार कर दिया है। वहीं, दो बार ओलिंपिक में मेडल जीतने वाले पहलवान सुशील कुमार ने पद्म अवॉर्ड के लिए नहीं चुने जाने पर नाराजगी जताई है। पद्म पुरस्‍कारों को लेकर हर साल विवाद होते हैं। बीते साल फोटोग्राफर सुनील जाना को पद्म श्री दिया गया था। उन्‍हें 40 साल पहले भी यही अवॉर्ड मिला था।

गौरतलब है कि गणतंत्र दिवस के मौके पर केंद्र सरकार ने गुरुवार को पद्म पुरस्कारों की घोषणा की। इस साल 108 लोगों को पद्म पुरस्कारों से सम्मानित किया जा रहा है। इनमें चार लोगों को पद्म विभूषण, 24 को पद्म भूषण और 80 लोगों को पद्म श्री पुरस्कार से दिए जाएंगे। पुरस्कार पाने वालों में 24 महिलाएं हैं। जबकि 11 अन्य में विदेशी, अप्रवासी भारतीय, मरणोपरांत पुरस्कार पाने वाली हस्तियां हैं।

वीरता का प्रतीक ....आल्हा

 वीरता का प्रतीक ....आल्हा 

आल्हा का नाम किसने नहीं सुना। पुराने जमाने के चन्देल राजपूतों में वीरता और जान पर खेलकर स्वामी की सेवा करने के लिए किसी राजा महाराजा को भी यह अमर कीर्ति नहीं मिली। राजपूतों के नैतिक नियमों में केवल वीरता ही नहीं थी बल्कि अपने स्वामी और अपने राजा के लिए जान देना भी उसका एक अंग था। आल्हा और ऊदल की जिन्दगी इसकी सबसे अच्छी मिसाल है। सच्चा राजपूत क्या होता था और उसे क्या होना चाहिये इसे लिस खूबसूरती से इन दोनों भाइयों ने दिखा दिया है, उसकी मिसाल हिन्दोस्तान के किसी दूसरे हिस्से में मुश्किल से मिल सकेगी। आल्हा और ऊदल के मार्के और उसको कारनामे एक चन्देली कवि ने शायद उन्हीं के जमाने में गाये, और उसको इस सूबे में जो लोकप्रियता प्राप्त है वह शायद रामायण को भी न हो। यह कविता आल्हा ही के नाम से प्रसिद्ध है और आठ-नौ शताब्दियॉँ गुजर जाने के बावजूद उसकी दिलचस्पी और सर्वप्रियता में अन्तर नहीं आया। आल्हा गाने का इस प्रदेश मे बड़ा रिवाज है। देहात में लोग हजारों की संख्या में आल्हा सुनने के लिए जमा होते हैं। शहरों में भी कभी-कभी यह मण्डलियॉँ दिखाई दे जाती हैं। बड़े लोगों की अपेक्षा सर्वसाधारण में यह किस्सा अधिक लोकप्रिय है। किसी मजलिस में जाइए हजारों आदमी जमीन के फर्श पर बैठे हुए हैं, सारी महाफिल जैसे बेसुध हो रही है और आल्हा गाने वाला किसी मोढ़े पर बैठा हुआ आपनी अलाप सुना रहा है। उसकी आवज आवश्यकतानुसार कभी ऊँची हो जाती है और कभी मद्धिम, मगर जब वह किसी लड़ाई और उसकी तैयारियों का जिक्र करने लगता है तो शब्दों का प्रवाह, उसके हाथों और भावों के इशारे, ढोल की मर्दाना लय उन पर वीरतापूर्ण शब्दों का चुस्ती से बैठना, जो जड़ाई की कविताओं ही की अपनी एक विशेषता है, यह सब चीजें मिलकर सुनने वालों के दिलों में मर्दाना जोश की एक उमंग सी पैदा कर देती हैं। बयान करने का तर्ज ऐसा सादा और दिलचस्प और जबान ऐसी आमफहम है कि उसके समझने में जरा भी दिक्कत नहीं होती। वर्णन और भावों की सादगी, कला के सौंदर्य का प्राण है। राजा परमालदेव चन्देल खानदान का आखिरी राजा था। तेरहवीं शाताब्दी के आरम्भ में वह खानदान समाप्त हो गया। महोबा जो एक मामूली कस्बा है उस जमाने में चन्देलों की राजधानी था। महोबा की सल्तनत दिल्ली और कन्नौज से आंखें मिलाती थी। आल्हा और ऊदल इसी राजा परमालदेव के दरबार के सम्मनित सदस्य थे। यह दोनों भाई अभी बच्चे ही थे कि उनका बाप जसराज एक लड़ाई में मारा गया। राजा को अनाथों पर तरस आया, उन्हें राजमहल में ले आये और मोहब्बत के साथ अपनी रानी मलिनहा के सुपुर्द कर दिया। रानी ने उन दोनों भाइयों की परवरिश और लालन-पालन अपने लड़के की तरह किया। जवान होकर यही दोनों भाई बहादुरी में सारी दुनिया में मशहूर हुए। इन्हीं दिलावरों के कारनामों ने महोबे का नाम रोशन कर दिया है।

बड़े लडइया महोबेवाला जिनके बल को वार न पार

आल्हा और ऊदल राजा परमालदेव पर जान कुर्बान करने के लिए हमेशा तैयार रहते थे। रानी मलिनहा ने उन्हें पाला, उनकी शादियां कीं, उन्हें गोद में खिलाया। नमक के हक के साथ-साथ इन एहसानों और सम्बन्धों ने दोनों भाइयों को चन्देल राजा का जॉँनिसार रखवाला और राजा परमालदेव का वफादार सेवक बना दिया था। उनकी वीरता के कारण आस-पास के सैकडों घमंडी राजा चन्देलों के अधीन हो गये। महोबा राज्य की सीमाएँ नदी की बाढ़ की तरह फैलने लगीं और चन्देलों की शक्ति दूज के चॉँद से बढ़कर पूरनमासी का चॉँद हो गई। यह दोनों वीर कभी चैन से न बैठते थे। रणक्षेत्र में अपने हाथ का जौहर दिखाने की उन्हें धुन थी। सुख-सेज पर उन्हें नींद न आती थी। और वह जमाना भी ऐसा ही बेचैनियों से भरा हुआ था। उस जमाने में चैन से बैठना दुनिया के परदे से मिट जाना था। बात-बात पर तलवांरें चलतीं और खून की नदियॉँ बहती थीं। यहॉँ तक कि शादियाँ भी खूनी लड़ाइयों जैसी हो गई थीं। लड़की पैदा हुई और शामत आ गई। हजारों सिपाहियों, सरदारों और सम्बन्धियों की जानें दहेज में देनी पड़ती थीं। आल्हा और ऊदल उस पुरशोर जमाने की यच्ची तस्वीरें हैं और गोकि ऐसी हालतों ओर जमाने के साथ जो नैतिक दुर्बलताएँ और विषमताएँ पाई जाती हैं, उनके असर से वह भी बचे हुए नहीं हैं, मगर उनकी दुर्बलताएँ उनका कसूर नहीं बल्कि उनके जमाने का कसूर हैं।



आल्हा का मामा माहिल एक काले दिल का, मन में द्वेष पालने वाला आदमी था। इन दोनों भाइयों का प्रताप और ऐश्वर्य उसके हृदय में कॉँटे की तरह खटका करता था। उसकी जिन्दगी की सबसे बड़ी आरजू यह थी कि उनके बड़प्पन को किसी तरह खाक में मिला दे। इसी नेक काम के लिए उसने अपनी जिन्दगी न्यौछावर कर दी थी। सैंकड़ों वार किये, सैंकड़ों बार आग लगायी, यहॉँ तक कि आखिरकार उसकी नशा पैदा करनेवाली मंत्रणाओं ने राजा परमाल को मतवाला कर दिया। लोहा भी पानी से कट जाता है। एक रोज राजा परमाल दरबार में अकेले बैठे हुए थे कि माहिल आया। राजा ने उसे उदास देखकर पूछा, भइया, तुम्हारा चेहरा कुछ उतरा हुआ है। माहिल की आँखों में आँसू आ गये। मक्कार आदमी को अपनी भावनाओं पर जो अधिकार होता है वह किसी बड़े योगी के लिए भी कठिन है। उसका दिल रोता है मगर होंठ हँसते हैं, दिल खुशियों के मजे लेता है मगर आँखें रोती हैं, दिल डाह की आग से जलता है मगर जबान से शहद और शक्कर की नदियॉँ बहती हैं। माहिल बोला-महाराज, आपकी छाया में रहकर मुझे दुनिया में अब किसी चीज की इच्छा बाकी नहीं मगर जिन लोगों को आपने धूल से उठाकर आसमान पर पहुँचा दिया और जो आपकी कृपा से आज बड़े प्रताप और ऐश्वर्यवाले बन गये, उनकी कृतघ्रता और उपद्रव खड़े करना मेरे लिए बड़े दु:ख का कारण हो रही है। परमाल ने आश्चर्य से पूछा- क्या मेरा नमक खानेवालों में ऐसे भी लोग हैं? माहिल- महाराज, मैं कुछ नहीं कह सकता। आपका हृदय कृपा का सागर है मगर उसमें एक खूंखार घड़ियाल आ घुसा है। -वह कौन है? -मैं। राजा ने आश्चर्यान्वित होकर कहा-तुम! महिल- हॉँ महाराज, वह अभागा व्यक्ति मैं ही हूँ। मैं आज खुद अपनी फरियाद लेकर आपकी सेवा में उपस्थित हुआ हूँ। अपने सम्बन्धियों के प्रति मेरा जो कर्तव्य है वह उस भक्ति की तुलना में कुछ भी नहीं जो मुझे आपके प्रति है। आल्हा मेरे जिगर का टुकड़ा है। उसका मांस मेरा मांस और उसका रक्त मेरा रक्त है। मगर अपने शरीर में जो रोग पैदा हो जाता है उसे विवश होकर हकीम से कहना पड़ता है। आल्हा अपनी दौलत के नशे में चूर हो रहा है। उसके दिल में यह झूठा खयाल पैदा हो गया है कि मेरे ही बाहु-बल से यह राज्य कायम है। राजा परमाल की आंखें लाल हो गयीं, बोला-आल्हा को मैंने हमेशा अपना लड़का समझा है। माहिल- लड़के से ज्यादा। परमाल- वह अनाथ था, कोई उसका संरक्षक न था। मैंने उसका पालन-पोषण किया, उसे गोद में खिलाया। मैंने उसे जागीरें दीं, उसे अपनी फौज का सिपहसालार बनाया। उसकी शादी में मैंने बीस हजार चन्देल सूरमाओं का खून बहा दिया। उसकी मॉँ और मेरी मलिनहा वर्षों गले मिलकर सोई हैं और आल्हा क्या मेरे एहसानों को भूल सकता है? माहिल, मुझे तुम्हारी बात पर विश्वास नहीं आता। माहिल का चेहरा पीला पड़ गया। मगर सम्हलकर बोला- महाराज, मेरी जबान से कभी झूठ बात नहीं निकली। परमाह- मुझे कैसे विश्वास हो? महिल ने धीरे से राजा के कान में कुछ कह दिया।



आल्हा और ऊदल दोनों चौगान के खेल का अभ्यास कर रहे थे। लम्बे-चौड़े मैदान में हजारों आदमी इस तमाशे को देख रहे थे। गेंद किसी अभागे की तरह इधर-उधर ठोकरें खाता फिरता था। चोबदार ने आकर कहा-महाराज ने याद फरमाया है। आल्हा को सन्देह हुआ। महाराज ने आज बेवक्त क्यों याद किया? खेल बन्द हो गया। गेंद को ठोकरों से छुट्टी मिली। फौरन दरबार मे चौबदार के साथ हाजिर हुआ और झुककर आदाब बजा लाया। परमाल ने कहा- मैं तुमसे कुछ मॉँगूँ? दोगे? आल्हा ने सादगी से जवाब दिया-फरमाइए। परमाल-इनकार तो न करोगे? आल्हा ने कनखियों से माहिल की तरफ देखा समझ गया कि इस वक्त कुछ न कुछ दाल में काला है। इसके चेहरे पर यह मुस्कराहट क्यों? गूलर में यह फूल क्यों लगे? क्या मेरी वफादारी का इम्तहान लिया जा रहा है? जोश से बोला-महाराज, मैं आपकी जबान से ऐसे सवाल सुनने का आदी नहीं हूँ। आप मेरे संरक्षक, मेरे पालनहार, मेरे राजा हैं। आपकी भँवों के इशारे पर मैं आग में कूद सकता हूँ और मौत से लड़ सकता हूँ। आपकी आज्ञा पाकर में असम्भव को सम्भव बना सकता हूँ आप मुझसे ऐसे सवाल न करें। परमाल- शाबाश, मुझे तुमसे ऐसी ही उम्मीद है। आल्हा-मुझे क्या हुक्म मिलता है? परमाल- तुम्हारे पास नाहर घोड़ा है? आल्हा ने ‘जी हॉँ’ कहकर माहिल की तरफ भयानक गुस्से भरी हुई आँखों से देखा। परमाल- अगर तुम्हें बुरा न लगे तो उसे मेरी सवारी के लिए दे दो। आल्हा कुछ जवाब न दे सका, सोचने लगा, मैंने अभी वादा किया है कि इनकार न करूँगा। मैंने बात हारी है। मुझे इनकार न करना चाहिए। निश्चय ही इस वक्त मेरी स्वामिभक्ति की परीक्षा ली जा रही है। मेरा इनकार इस समय बहुत बेमौका और खतरनाक है। इसका तो कुछ गम नहीं। मगर मैं इनकार किस मुँह से करूँ, बेवफा न कहलाऊँगा? मेरा और राजा का सम्बन्ध केवल स्वामी और सेवक का ही नहीं है, मैं उनकी गोद में खेला हूँ। जब मेरे हाथ कमजोर थे, और पॉँव में खड़े होने का बूता न था, तब उन्होंने मेरे जुल्म सहे हैं, क्या मैं इनकार कर सकता हूँ? विचारों की धारा मुड़ी- माना कि राजा के एहसान मुझ पर अनगिनती हैं मेरे शरीर का एक-एक रोआँ उनके एहसानों के बोझ से दबा हुआ है मगर क्षत्रिय कभी अपनी सवारी का घोड़ा दूसरे को नहीं देता। यह क्षत्रियों का धर्म नहीं। मैं राजा का पाला हुआ और एहसानमन्द हूँ। मुझे अपने शरीर पर अधिकार है। उसे मैं राजा पर न्यौछावर कर सकता हूँ। मगर राजपूती धर्म पर मेरा कोई अधिकार नहीं है, उसे मैं नहीं तोड़ सकता। जिन लोगों ने धर्म के कच्चे धागे को लोहे की दीवार समझा है, उन्हीं से राजपूतों का नाम चमक रहा है। क्या मैं हमेशा के लिए अपने ऊपर दाग लगाऊँ? आह! माहिल ने इस वक्त मुझे खूब जकड़ रखा है। सामने खूंखार शेर है; पीछे गहरी खाई। या तो अपमान उठाऊँ या कृतघ्न कहलाऊँ। या तो राजपूतों के नाम को डुबोऊँ या बर्बाद हो जॉँऊ। खैर, जो ईश्वर की मर्जी, मुझे कृतघ्न कहलाना स्वीकार है, मगर अपमानित होना स्वीकार नहीं। बर्बाद हो जाना मंजूर है, मगर राजपूतों के धर्म में बट्टा लगाना मंजूर नहीं। आल्हा सर नीचा किये इन्हीं खयालों में गोते खा रहा था। यह उसके लिए परीक्षा की घड़ी थी जिसमें सफल हो जाने पर उसका भविष्य निर्भर था। मगर माहिला के लिए यह मौका उसके धीरज की कम परीक्षा लेने वाला न था। वह दिन अब आ गया जिसके इन्तजार में कभी आँखें नहीं थकीं। खुशियों की यह बाढ़ अब संयम की लोहे की दीवार को काटती जाती थी। सिद्ध योगी पर दुर्बल मनुष्य की विजय होती जाती थी। एकाएक परमाल ने आल्हा से बुलन्द आवाज में पूछा- किस दनिधा में हो? क्या नहीं देना चाहते? आल्हा ने राजा से आंखें मिलाकर कहा-जी नहीं। परमाल को तैश आ गया, कड़ककर बोला-क्यों? आल्हा ने अविचल मन से उत्तर दिया-यह राजपूतों का धर्म नहीं है। परमाल-क्या मेरे एहसानों का यही बदला है? तुम जानते हो, पहले तुम क्या थे और अब क्या हो? आल्हा-जी हॉँ, जानता हूँ। परमाल- तुम्हें मैंने बनाया है और मैं ही बिगाड़ सकता हूँ। आल्हा से अब सब्र न हो सका, उसकी आँखें लाल हो गयीं और त्योरियों पर बल पड़ गये। तेज लहजे में बोला- महाराज, आपने मेरे ऊपर जो एहसान किए, उनका मैं हमेशा कृतज्ञ रहूँगा। क्षत्रिय कभी एहसान नहीं भूलता। मगर आपने मेरे ऊपर एहसान किए हैं, तो मैंने भी जो तोड़कर आपकी सेवा की है। सिर्फ नौकरी और नामक का हक अदा करने का भाव मुझमें वह निष्ठा और गर्मी नहीं पैदा कर सकता जिसका मैं बार-बार परिचय दे चुका हूँ। मगर खैर, अब मुझे विश्वास हो गया कि इस दरबार में मेरा गुजर न होगा। मेरा आखिरी सलाम कबूल हो और अपनी नादानी से मैंने जो कुछ भूल की है वह माफ की जाए। माहिल की ओर देखकर उसने कहा- मामा जी, आज से मेरे और आपके बीच खून का रिश्ता टूटता है। आप मेरे खून के प्यासे हैं तो मैं भी आपकी जान का दुश्मन हूँ। ४

आल्हा की मॉँ का नाम देवल देवी था। उसकी गिनती उन हौसले वाली उच्च विचार स्त्रियों में है जिन्होंने हिन्दोस्तान के पिछले कारनामों को इतना स्पृहणीय बना दिया है। उस अंधेरे युग में भी जबकि आपसी फूट और बैर की एक भयानक बाढ़ मुल्क में आ पहुँची थी, हिन्दोस्तान में ऐसी ऐसी देवियॉँ पैदा हुई जो इतिहास के अंधेरे से अंधेरे पन्नों को भी ज्योतित कर सकती हैं। देवल देवी से सुना कि आल्हा ने अपनी आन को रखने के लिए क्या किया तो उसकी आखों भर आए। उसने दोनों भाइयों को गले लगाकर कहा- बेटा ,तुमने वही किया जो राजपूतों का धर्म था। मैं बड़ी भाग्यशालिनी हूँ कि तुम जैसे दो बात की लाज रखने वाले बेटे पाये हैं । उसी रोज दोनों भाइयों महोबा से कूच कर दिया अपने साथ अपनी तलवार और घोड़ो के सिवा और कुछ न लिया। माल –असबाब सब वहीं छोड़ दिये सिपाही की दौलत और इज्जत सबक कुछ उसकी तलवार है। जिसके पास वीरता की सम्पति है उसे दूसरी किसी सम्पति की जरुरत नहीं। बरसात के दिन थे, नदी नाले उमड़े हुए थे। इन्द्र की उदारताओं से मालामाल होकर जमीन फूली नहीं समाती थी । पेड़ो पर मोरों की रसीली झनकारे सुनाई देती थीं और खेतों में निश्चिन्तता की शराब से मतवाल किसान मल्हार की तानें अलाप रहे थे । पहाड़ियों की घनी हरियावल पानी की दर्पन –जैसी सतह और जगंली बेल बूटों के बनाव संवार से प्रकृति पर एक यौवन बरस रहा था। मैदानों की ठंडी-ठडीं मस्त हवा जंगली फूलों की मीठी मीठी, सुहानी, आत्मा को उल्लास देनेवाली महक और खेतों की लहराती हुई रंग बिरंगी उपज ने दिलो में आरजुओं का एक तूफान उठा दिया था। ऐसे मुबारक मौसम में आल्हा ने महोबा को आखिरी सलाम किया । दोनों भाइयो की आँखे रोते रोते लाल हो गयी थीं क्योंकि आज उनसे उनका देश छूट रहा था । इन्हीं गलियों में उन्होंने घुटने के बल चलना सीखा था, इन्ही तालाबों में कागज की नावें चलाई थीं, यही जवानी की बेफिक्रियों के मजे लूटे थे। इनसे अब हमेशा के लिए नाता टूटता था। दोनो भाई आगे बढते जाते थे , मगर बहुत धीरे-धीरे । यह खयाल था कि शायद परमाल ने रुठनेवालों को मनाने के लिए अपना कोई भरोसे का आदमी भेजा होगा। घोड़ो को सम्हाले हुए थे, मगर जब महोबे की पहाड़ियो का आखिरी निशान ऑंखों से ओझल हो गया तो उम्मीद की आखिरी झलक भी गायब हो गयी। उन्होनें जिनका कोई देश नथा एक ठंडी सांस ली और घोडे बढा दिये। उनके निर्वासन का समाचार बहुत जल्द चारों तरफ फैल गया। उनके लिए हर दरबार में जगह थीं, चारों तरफ से राजाओ के सदेश आने लगे। कन्नौज के राजा जयचन्द ने अपने राजकुमार को उनसे मिलने के लिए भेजा। संदेशों से जो काम न निकला वह इस मुलाकात ने पूरा कर दिया। राजकुमार की खातिदारियाँ और आवभगत दोनों भाइयों को कन्नौज खींच ले नई। जयचन्द आंखें बिछाये बैठा था। आल्हा को अपना सेनापति बना दिया।



आल्हा और ऊदल के चले जाने के बाद महोबे में तरह-तरह के अंधेर शुरु हुए। परमाल कमजी शासक था। मातहत राजाओं ने बगावत का झण्डा बुलन्द किया। ऐसी कोई ताकत न रही जो उन झगड़ालू लोगों को वश में रख सके। दिल्ली के राज पृथ्वीराज की कुछ सेना सिमता से एक सफल लड़ाई लड़कर वापस आ रही थी। महोबे में पड़ाव किया। अक्खड़ सिपाहियों में तलवार चलते कितनी देर लगती है। चाहे राजा परमाल के मुलाजियों की ज्यादती हो चाहे चौहान सिपाहियों की, तनीजा यह हुआ कि चन्देलों और चौहानों में अनबन हो गई। लड़ाई छिड़ गई। चौहान संख्या में कम थे। चंदेलों ने आतिथ्य-सत्कार के नियमों को एक किनारे रखकर चौहानों के खून से अपना कलेजा ठंडा किया और यह न समझे कि मुठ्ठी भर सिपाहियों के पीछे सारे देश पर विपत्ति आ जाएगी। बेगुनाहों को खून रंग लायेगा। पृथ्वीराज को यह दिल तोड़ने वाली खबर मिली तो उसके गुस्से की कोई हद न रही। ऑंधी की तरह महोबे पर चढ़ दौड़ा और सिरको, जो इलाका महोबे का एक मशहूर कस्बा था, तबाह करके महोबे की तरह बढ़ा। चन्देलों ने भी फौज खड़ी की। मगर पहले ही मुकाबिले में उनके हौसले पस्त हो गये। आल्हा-ऊदल के बगैर फौज बिन दूल्हे की बारात थी। सारी फौज तितर-बितर हो गयी। देश में तहलका मच गया। अब किसी क्षण पृथ्वीराज महोबे में आ पहुँचेगा, इस डर से लोगों के हाथ-पॉँव फूल गये। परमाल अपने किये पर बहुत पछताया। मगर अब पछताना व्यर्थ था। कोई चारा न देखकर उसने पृथ्वीराज से एक महीने की सन्धि की प्रार्थना की। चौहान राजा युद्ध के नियमों को कभी हाथ से न जाने देता था। उसकी वीरता उसे कमजोर, बेखबर और नामुस्तैद दुश्मन पर वार करने की इजाजत न देती थी। इस मामले में अगर वह इन नियमों को इतनी सख्ती से पाबन्द न होता तो शहाबुद्दीन के हाथों उसे वह बुरा दिन न देखना पड़ता। उसकी बहादुरी ही उसकी जान की गाहक हुई। उसने परमाल का पैगाम मंजूर कर लिया। चन्देलों की जान में जान आई। अब सलाह-मशविरा होने लगा कि पृथ्वीराज से क्योंकर मुकाबिला किया जाये। रानी मलिनहा भी इस मशविरे में शरीक थीं। किसी ने कहा, महोबे के चारों तरफ एक ऊँची दीवार बनायी जाय ; कोई बोला, हम लोग महोबे को वीरान करके दक्खिन को ओर चलें। परमाल जबान से तो कुछ न कहता था, मगर समर्पण के सिवा उसे और कोई चारा न दिखाई पड़ता था। तब रानी मलिनहा खड़ी होकर बोली : ‘चन्देल वंश के राजपूतो, तुम कैसी बच्चों की-सी बातें करते हो? क्या दीवार खड़ी करके तुम दुश्मन को रोक लोगे? झाडू से कहीं ऑंधी रुकती है ! तुम महोबे को वीरान करके भागने की सलाह देते हो। ऐसी कायरों जैसी सलाह औरतें दिया करती हैं। तुम्हारी सारी बहादुरी और जान पर खेलना अब कहॉँ गया? अभी बहुत दिन नहीं गुजरे कि चन्देलों के नाम से राजे थर्राते थे। चन्देलों की धाक बंधी हुई थी, तुमने कुछ ही सालों में सैंकड़ों मैदान जीते, तुम्हें कभी हार नहीं हुई। तुम्हारी तलवार की दमक कभी मन्द नहीं हुई। तुम अब भी वही हो, मगर तुममें अब वह पुरुषार्थ नहीं है। वह पुरुषार्थ बनाफल वंश के साथ महोबे से उठ गया। देवल देवी के रुठने से चण्डिका देवी भी हमसे रुठ गई। अब अगर कोई यह हारी हुई बाजी सम्हाल सकता है तो वह आल्हा है। वही दोनों भाई इस नाजुक वक्त में तुम्हें बचा सकते हैं। उन्हीं को मनाओ, उन्हीं को समझाओं, उन पर महोते के बहुत हक हैं। महोबे की मिट्टी और पानी से उनकी परवरिश हुई है। वह महोबे के हक कभी भूल नहीं सकते, उन्हें ईश्वर ने बल और विद्या दी है, वही इस समय विजय का बीड़ा उठा सकते हैं।’ रानी मलिनहा की बातें लोगों के दिलों में बैठ गयीं।



जगना भाट आल्हा और ऊदल को कन्नौज से लाने के लिए रवाना हुआ। यह दोनों भाई राजकुँवर लाखन के साथ शिकार खेलने जा रहे थे कि जगना ने पहुँचकर प्रणाम किया। उसके चेहरे से परेशानी और झिझक बरस रही थी। आल्हा ने घबराकर पूछा—कवीश्वर, यहॉँ कैसे भूल पड़े? महोबे में तो खैरियत है? हम गरीबों को क्योंकर याद किया? जगना की ऑंखों में ऑंसू भर जाए, बोला—अगर खैरियत होती तो तुम्हारी शरण में क्यों आता। मुसीबत पड़ने पर ही देवताओं की याद आती है। महोबे पर इस वक्त इन्द्र का कोप छाया हुआ है। पृथ्वीराज चौहान महोबे को घेरे पड़ा है। नरसिंह और वीरसिंह तलवारों की भेंट हो चुके है। सिरकों सारा राख को ढेर हो गया। चन्देलों का राज वीरान हुआ जाता है। सारे देश में कुहराम मचा हुआ है। बड़ी मुश्किलों से एक महीने की मौहलत ली गई है और मुझे राजा परमाल ने तुम्हारे पास भेजा है। इस मुसीबत के वक्त हमारा कोई मददगार नहीं है, कोई ऐसा नहीं है जो हमारी किम्मत बॅंधाये। जब से तुमने महोबे से नहीं है, कोई ऐसा नहीं है जो हमारी हिम्मत बँधाये। जब से तुमने महोबे से नाता तोड़ा है तब से राजा परमाल के होंठों पर हँसी नहीं आई। जिस परमाल को उदास देखकर तुम बेचैन हो जाते थे उसी परमाल की ऑंखें महीनों से नींद को तरसती हैं। रानी महिलना, जिसकी गोद में तुम खेले हो, रात-दिन तुम्हारी याद में रोती रहती है। वह अपने झरोखें से कन्नैज की तरफ ऑंखें लगाये तुम्हारी राह देखा करती है। ऐ बनाफल वंश के सपूतो ! चन्देलों की नाव अब डूब रही है। चन्देलों का नाम अब मिटा जाता है। अब मौका है कि तुम तलवारे हाथ में लो। अगर इस मौके पर तुमने डूबती हुई नाव को न सम्हाला तो तुम्हें हमेशा के लिए पछताना पड़ेगा क्योंकि इस नाम के साथ तुम्हारा और तुम्हारे नामी बाप का नाम भी डूब जाएगा। आल्हा ने रुखेपन से जवाब दिया—हमें इसकी अब कुछ परवाह नहीं है। हमारा और हमारे बाप का नाम तो उसी दिन डूब गया, जब हम बेकसूर महोबे से निकाल दिए गए। महोबा मिट्टी में मिल जाय, चन्देलों को चिराग गुल हो जाय, अब हमें जरा भी परवाह नहीं है। क्या हमारी सेवाओं का यही पुरस्कार था जो हमको दिया गया? हमारे बाप ने महोबे पर अपने प्राण न्यौछावर कर दिये, हमने गोड़ों को हराया और चन्देलों को देवगढ़ का मालिक बना दिया। हमने यादवों से लोहा लिया और कठियार के मैदान में चन्देलों का झंडा गाड़ दिया। मैंने इन्ही हाथों से कछवाहों की बढ़ती हुई लहर को रोका। गया का मैदान हमीं ने जीता, रीवॉँ का घमण्ड हमीं ने तोड़ा। मैंने ही मेवात से खिराज लिया। हमने यह सब कुछ किया और इसका हमको यह पुरस्कार दिया गया है? मेरे बाप ने दस राजाओं को गुलामी का तौक पहनाया। मैंने परमाल की सेवा में सात बार प्राणलेवा जख्म खाए, तीन बार मौत के मुँह से निकल आया। मैने चालीस लड़ाइयॉँ लड़ी और कभी हारकर न आया। ऊदल ने सात खूनी मार्के जीते। हमने चन्देलों की बहादुरी का डंका बजा दिया। चन्देलों का नाम हमने आसमान तक पहुँचा दिया और इसके यह पुरस्कार हमको मिला है? परमाल अब क्यों उसी दगाबाज माहिल को अपनी मदद के लिए नहीं बुलाते जिसकों खुश करने के लिए मेरा देश निकाला हुआ था ! जगना ने जवाब दिया—आल्हा ! यह राजपूतों की बातें नहीं हैं। तुम्हारे बाप ने जिस राज पर प्राण न्यौछावर कर दिये वही राज अब दुश्मन के पांव तले रौंदा जा रहा है। उसी बाप के बेटे होकर भी क्या तुम्हारे खून में जोश नहीं आता? वह राजपूत जो अपने मुसीबत में पड़े हुए राजा को छोड़ता है, उसके लिए नरक की आग के सिवा और कोई जगह नहीं है। तुम्हारी मातृभूमि पर बर्बादी की घटा छायी हुई हैं। तुम्हारी माऍं और बहनें दुश्मनों की आबरु लूटनेवाली निगाहों को निशाना बन रही है, क्या अब भी तुम्हारे खून में जोश नहीं आता? अपने देश की यह दुर्गत देखकर भी तुम कन्नौज में चैन की नींद सो सकते हो? देवल देवी को जगना के आने की खबर हुई। असने फौरन आल्हा को बुलाकर कहा—बेटा, पिछली बातें भूल जाओं और आज ही महोबे चलने की तैयारी करो। आल्हा कुछ जबाव न दे सका, मगर ऊदल झुँझलाकर बोला—हम अब महोबे नहीं जा सकते। क्या तुम वह दिन भूल गये जब हम कुत्तों की तरह महोबे से निकाल दिए गए? महोबा डूबे या रहे, हमारा जी उससे भर गया, अब उसको देखने की इच्छा नहीं हे। अब कन्नौज ही हमारी मातृभूमि है। राजपूतनी बेटे की जबान से यह पाप की बात न सुन सकी, तैश में आकर बोली—ऊदल, तुझे ऐसी बातें मुंह से निकालते हुए शर्म नहीं आती ? काश, ईश्वर मुझे बॉँझ ही रखता कि ऐसे बेटों की मॉँ न बनती। क्या इन्हीं बनाफल वंश के नाम पर कलंक लगानेवालों के लिए मैंने गर्भ की पीड़ा सही थी? नालायको, मेरे सामने से दूर हो जाओं। मुझे अपना मुँह न दिखाओं। तुम जसराज के बेटे नहीं हो, तुम जिसकी रान से पैदा हुए हो वह जसराज नहीं हो सकता। यह मर्मान्तक चोट थी। शर्म से दोनों भाइयों के माथे पर पसीना आ गया। दोनों उठ खड़े हुए और बोले- माता, अब बस करो, हम ज्यादा नहीं सुन सकते, हम आज ही महोबे जायेंगे और राजा परमाल की खिदमत में अपना खून बहायेंगे। हम रणक्षेत्र में अपनी तलवारों की चमक से अपने बाप का नाम रोशन करेंगे। हम चौहान के मुकाबिले में अपनी बहादुरी के जौहर दिखायेंगे और देवल देवी के बेटों का नाम अमर कर देंगे।



दोनों भाई कन्नौज से चले, देवल भी साथ थी। जब वह रुठनेवाले अपनी मातृभूमि में पहुँचे तो सूखें धानों में पानी पड़ गया, टूटी हुई हिम्मतें बंध गयीं। एक लाख चन्देल इन वीरों की अगवानी करने के लिए खड़े थे। बहुत दिनों के बाद वह अपनी मातृभूमि से बिछुड़े हुए इन दोनों भाइयों से मिले। ऑंखों ने खुशी के ऑंसू बहाए। राजा परमाल उनके आने की खबर पाते ही कीरत सागर तक पैदल आया। आल्हा और ऊदल दौड़कर उसके पांव से लिपट गए। तीनों की आंखों से पानी बरसा और सारा मनमुटाव धुल गया। दुश्मन सर पर खड़ा था, ज्यादा आतिथ्य-सत्कार का मौकर न था, वहीं कीरत सागर के किनारे देश के नेताओं और दरबार के कर्मचारियों की राय से आल्हा फौज का सेनापति बनाया गया। वहीं मरने-मारने के लिए सौगन्धें खाई गई। वहीं बहादुरों ने कसमें खाई कि मैदान से हटेंगे तो मरकर हटेंगें। वहीं लोग एक दूसरे के गले मिले और अपनी किस्मतों को फैसला करने चले। आज किसी की ऑंखों में और चेहरे पर उदासी के चिन्ह न थे, औरतें हॅंस-हँस कर अपने प्यारों को विदा करती थीं, मर्द हँस-हँसकर स्त्रियों से अलग होते थे क्योंकि यह आखिरी बाजी है, इसे जीतना जिन्दगी और हारना मौत है। उस जगह के पास जहॉँ अब और कोई कस्बा आबाद है, दोनों फौजों को मुकाबला हुआ और अठारह दिन तक मारकाट का बाजार गर्म रहा। खूब घमासान लड़ाई हुई। पृथ्वीराज खुद लड़ाई में शरीक था। दोनों दल दिल खोलकर लड़े। वीरों ने खूब अरमान निकाले और दोनों तरफ की फौजें वहीं कट मरीं। तीन लाख आदमियों में सिर्फ तीन आदमी जिन्दा बचे-एक पृथ्वीराज, दूसरा चन्दा भाट तीसरा आल्हा। प्रथ्वीराज के शब्द भेदी बाण से उदल की मौत हुई ।उदल की मौत से आल्हा समझ गया की इस धरती से जाने का समय आ गया है। उसने अपने गुरू गोरखनाथ जी का दिया हुया बिजुरिया नामक दिव्याश्त्र हाथ मे लेकर प्रथ्वीराज को मारने चल पड़े। आल्हा को आता देखकर प्रथ्वीराज का सेनापति चंदरबरदई ने प्रथ्वीराज से कहा राजा आल्हा के समान इस धरती पर कोई दूसरा वीर नहीं है यदि ज़िंदा रहना चाहते हो तो आल्हा के सामने हतियार मत उठाना। प्रथ्वीराज ने आल्हा के सामने हाथ जोड़ लिए । इसी समय वहाँ पर गुरु गोरखनाथ आगाए उन्होने आल्हा से कहा ये दिव्यास्त्र धरती के साधारण मनुस्यों पर चलाने के लिए नहीं है और बे आल्हा को अपने साथ सा शरीर स्वर्ग ले गए। बैरागढ़ अकोढ़ी गाँव ज़िला जालौन मे आल्हा की गाड़ी हुई एक सांग आज भी है। जो माता शारदा के मंदिर के प्रांगड़ मे है। माता के मंदिर मे आज भी सुबह पुजारियों को दरवाजे खोलने पर दो फूल चढ़े मिलते है। कहते है ये फूल आल्हा चढ़ाते है। काफी लोगों ने सच्चाई पता करने की कोसिस की। लेकिन जो रात मे मंदिर मे रुका बो सुबह ज़िंदा नहीं मिला। आप भी जाकर सच्चाई पता कर सकते है।ऐसी भयानक अटल और निर्णायक लड़ाई शायद ही किसी देश और किसी युग में हुई हो। दोनों ही हारे और दोनों ही जीते। चन्देल और चौहान हमेशा के लिए खाक में मिल गए क्योंकि थानेसर की लड़ाई का फैसला भी इसी मैदान में हो गया। चौहानों में जितने अनुभवी सिपाही थे, वह सब औरई में काम आए। शहाबुद्दीन से मुकाबला पड़ा तो नौसिखिये, अनुभवहीन सिपाही मैदान में लाये गये और नतीजा वही हुआ जो हो सकता था।


जनता में अब तक यही विश्वास है कि वह जिन्दा है। लोग कहते हैं कि वह अमर हो गया। यह बिल्कुल ठीक है क्योंकि आल्हा सचमुच अमर है अमर है और वह कभी मिट नहीं सकता, उसका नाम हमेशा कायम रहेगा। --जमाना, जनवरी १९१२