किला खाली करवाने की कवायद
प्रथम चरण में किले के 221 मकान अवाप्त होने की संभावना
सवाल यह है कि क्या किला खाली होने के बाद संरक्षित रह पाएगा
प्रथम चरण में किले के 221 मकान अवाप्त होने की संभावना
सवाल यह है कि क्या किला खाली होने के बाद संरक्षित रह पाएगा
जैसलमेर सोनार दुर्ग के खिड़की पाड़ा के पांच मकान मंगलवार को खाली हो गए। गौरतलब है कि खिड़की पाड़े के पांच परिवारों ने किला छोडऩे के एवज में नगरपरिषद द्वारा दिए जाने वाले भूखंड पर सहमति जताई थी। सोमवार को इन परिवारों को जवाहरलाल नेहरू कॉलोनी में भूखंड के पट्टे दे दिए गए और मंगलवार को इन परिवारों ने मकान खाली कर दिए। जानकार सूत्रों के अनुसार किला खाली करवाने की ओर यह पहला कदम है।
भरोसेमंद सूत्रों ने बताया कि केन्द्र सरकार की ओर से किला खाली करवाने के प्रयास हो रहे हैं। जोधपुर सांसद और केबिनेट मंत्री चंद्रेश कुमारी द्वारा इसके लिए योजना बनवाई जा रही है। सूत्रों के अनुसार पहले चरण में दुर्ग के 221 मकानों को भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण द्वारा अवाप्त किया जाएगा। उसके बाद दूसरे चरण में शेष सवा सौ मकान अवाप्त होंगे। गौरतलब है कि दुर्ग को लेकर भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण और केन्द्र का संस्कृति मंत्रालय काफी गंभीर है। लगातार दुर्ग की हो रही दुर्दशा को लेकर हर कोई चिंतित है। विदेशी विशेषज्ञों द्वारा किए गए सर्वे में भी सामने आया कि दुर्ग की त्रिकूट पहाड़ी में कई फॉल्ट है और उसका एक हिस्सा झुक रहा है।
हो सकता है ऐतिहासिक आंदोलन
यदि केन्द्र स्तर पर दुर्ग को खाली करवाने का निर्णय लिया गया तो जैसलमेर जिले में आंदोलन हो सकता है और यह आंदोलन सामान्य आंदोलनों की तरह नहीं बल्कि बहुत बड़े आंदोलन का रूप ले सकता है। दुर्गवासी किसी भी सूरत में किला खाली करने पर राजी नहीं होंगे। सरकार को दुर्गवासियों के विरोध का सामना करना पड़ेगा।
क्या यह संभव है ?
पूर्व में बड़े स्तर के अधिकारी और मंत्री किले को खाली करवाने की बात कर चुके हैं लेकिन विरोध को देखते हुए ऐसा कभी प्रयास नहीं किया गया। दुर्ग खाली नहीं करवाकर व्यावसायिक गतिविधियों को बंद करने के भी प्रयास हुए लेकिन वह भी नहीं हो पाया। इसी कड़ी में गाइड बुक लोनली प्लानेट में सैलानियों को किले पर नहीं ठहरने की अपील तक कर दी। जिससे दुर्ग का पर्यटन व्यवसाय पहले के मुकाबले 50 प्रतिशत तक कम हो गया। अब आम लोगों में चर्चा यही है कि क्या यह संभव है कि दुर्ग खाली हो सकता है। शायद इसका जवाब किसी के पास नहीं है। ऐसा भी हो सकता है कि यदि केन्द्र स्तर पर इसकी योजना बन रही है तो जबरदस्ती किला खाली करवाया जा सकता है।
क्या खाली होने के बाद संरक्षित रह पाएगा
सूत्रों के अनुसार दुर्ग को खाली करवाने की कवायद शुरू हो चुकी है। इसके लिए योजना भी बन रही है। लेकिन इस बीच सवाल यह है कि क्या खाली होने के बाद दुर्ग संरक्षित रह पाएगा...। जैसलमेर के इतिहासकार, साहित्यकार और गणमान्य लोगों का मानना है यदि दुर्ग खाली हो गया तो कुछ ही वर्षों में यह ढहने के कगार पर पहुंच जाएगा। उनके अनुसार दुर्ग आबाद है तभी इतने वर्षों तक टिका है नहीं तो कभी का जीर्णशीर्ण हो जाता।
कौन करेगा इतने मकानों का संरक्षण
वर्तमान में दुर्ग की दीवारों व उसके अंदर के कुछ भवनों का भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण द्वारा रखरखाव किया जा रहा है। लेकिन इस रखरखाव में उसे इतना समय लग रहा है कि अभी तक पूरी मरम्मत नहीं हो पाई है। पिछले साल गिरी दीवार को वापिस सही करने में एक साल से भी अधिक का समय लग गया, इससे अंदाजा लगाया जा सकता है कि काम किस गति से चल रहा है। ऐसे में यदि दुर्ग खाली हो जाता है कि उस पर बने करीब साढ़े तीन सौ मकानों का संरक्षण कैसे होगा और कौन करेगा?
पर्यटन को हो सकता है नुकसान
देश का एक मात्र किला है जिसमें आबादी रहती है। ऐसे में यहां आने वाले सैलानियों के लिए यह किसी अनूठे अनुभव से कम नहीं होता। कई सैलानी दुर्ग में ठहरना भी पसंद करते हैं। दुर्गवासियों द्वारा अपने मकानों का लगातार संरक्षण करने से यह पूरी तरह से संरक्षित है लेकिन यदि खाली हो जाएगा तो संरक्षित नहीं रह पाएगा और जगह जगह से क्षतिग्रस्त भी हो जाएगा। ऐसे में जैसलमेर के पर्यटन को बहुत बड़ा नुकसान भी पहुंच सकता है।
भरोसेमंद सूत्रों ने बताया कि केन्द्र सरकार की ओर से किला खाली करवाने के प्रयास हो रहे हैं। जोधपुर सांसद और केबिनेट मंत्री चंद्रेश कुमारी द्वारा इसके लिए योजना बनवाई जा रही है। सूत्रों के अनुसार पहले चरण में दुर्ग के 221 मकानों को भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण द्वारा अवाप्त किया जाएगा। उसके बाद दूसरे चरण में शेष सवा सौ मकान अवाप्त होंगे। गौरतलब है कि दुर्ग को लेकर भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण और केन्द्र का संस्कृति मंत्रालय काफी गंभीर है। लगातार दुर्ग की हो रही दुर्दशा को लेकर हर कोई चिंतित है। विदेशी विशेषज्ञों द्वारा किए गए सर्वे में भी सामने आया कि दुर्ग की त्रिकूट पहाड़ी में कई फॉल्ट है और उसका एक हिस्सा झुक रहा है।
हो सकता है ऐतिहासिक आंदोलन
यदि केन्द्र स्तर पर दुर्ग को खाली करवाने का निर्णय लिया गया तो जैसलमेर जिले में आंदोलन हो सकता है और यह आंदोलन सामान्य आंदोलनों की तरह नहीं बल्कि बहुत बड़े आंदोलन का रूप ले सकता है। दुर्गवासी किसी भी सूरत में किला खाली करने पर राजी नहीं होंगे। सरकार को दुर्गवासियों के विरोध का सामना करना पड़ेगा।
क्या यह संभव है ?
पूर्व में बड़े स्तर के अधिकारी और मंत्री किले को खाली करवाने की बात कर चुके हैं लेकिन विरोध को देखते हुए ऐसा कभी प्रयास नहीं किया गया। दुर्ग खाली नहीं करवाकर व्यावसायिक गतिविधियों को बंद करने के भी प्रयास हुए लेकिन वह भी नहीं हो पाया। इसी कड़ी में गाइड बुक लोनली प्लानेट में सैलानियों को किले पर नहीं ठहरने की अपील तक कर दी। जिससे दुर्ग का पर्यटन व्यवसाय पहले के मुकाबले 50 प्रतिशत तक कम हो गया। अब आम लोगों में चर्चा यही है कि क्या यह संभव है कि दुर्ग खाली हो सकता है। शायद इसका जवाब किसी के पास नहीं है। ऐसा भी हो सकता है कि यदि केन्द्र स्तर पर इसकी योजना बन रही है तो जबरदस्ती किला खाली करवाया जा सकता है।
क्या खाली होने के बाद संरक्षित रह पाएगा
सूत्रों के अनुसार दुर्ग को खाली करवाने की कवायद शुरू हो चुकी है। इसके लिए योजना भी बन रही है। लेकिन इस बीच सवाल यह है कि क्या खाली होने के बाद दुर्ग संरक्षित रह पाएगा...। जैसलमेर के इतिहासकार, साहित्यकार और गणमान्य लोगों का मानना है यदि दुर्ग खाली हो गया तो कुछ ही वर्षों में यह ढहने के कगार पर पहुंच जाएगा। उनके अनुसार दुर्ग आबाद है तभी इतने वर्षों तक टिका है नहीं तो कभी का जीर्णशीर्ण हो जाता।
कौन करेगा इतने मकानों का संरक्षण
वर्तमान में दुर्ग की दीवारों व उसके अंदर के कुछ भवनों का भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण द्वारा रखरखाव किया जा रहा है। लेकिन इस रखरखाव में उसे इतना समय लग रहा है कि अभी तक पूरी मरम्मत नहीं हो पाई है। पिछले साल गिरी दीवार को वापिस सही करने में एक साल से भी अधिक का समय लग गया, इससे अंदाजा लगाया जा सकता है कि काम किस गति से चल रहा है। ऐसे में यदि दुर्ग खाली हो जाता है कि उस पर बने करीब साढ़े तीन सौ मकानों का संरक्षण कैसे होगा और कौन करेगा?
पर्यटन को हो सकता है नुकसान
देश का एक मात्र किला है जिसमें आबादी रहती है। ऐसे में यहां आने वाले सैलानियों के लिए यह किसी अनूठे अनुभव से कम नहीं होता। कई सैलानी दुर्ग में ठहरना भी पसंद करते हैं। दुर्गवासियों द्वारा अपने मकानों का लगातार संरक्षण करने से यह पूरी तरह से संरक्षित है लेकिन यदि खाली हो जाएगा तो संरक्षित नहीं रह पाएगा और जगह जगह से क्षतिग्रस्त भी हो जाएगा। ऐसे में जैसलमेर के पर्यटन को बहुत बड़ा नुकसान भी पहुंच सकता है।