रविवार, 2 दिसंबर 2012

रेव पार्टी का भंडाफोड़,39 स्टूडेंट गिरफ्तार

रेव पार्टी का भंडाफोड़,39 स्टूडेंट गिरफ्तार
देहरादून। उत्तराखण्ड के देहरादून में पुलिस ने रेव पार्टी का भंडाफोड़ करते हुए 39 छात्रों को गिरफ्तार किया है। इनमें 25 लड़के और 14 लड़कियां शामिल है।

गिरफ्तार किए गए सभी छात्र नशे में थे। बताया जा रहा है कि पकड़े गए छात्र बड़े व्यवसाइयों और नौकरशाहों के बेटे-बेटियां हैं। पुलिस को शनिवार को जाखम इलाके में स्थित एक क्लब में रेव पार्टी की सूचना मिली थी।

पुलिस ने एसएसपी और सीओ सिटी ममता बोरा से छापे की इजाजत मांगी। इजाजत मिलते ही पुलिस ने क्लब पर छापा मारा। पुलिस ने क्लब से शराब और ड्रग्स बरामद की। क्लब में काम करने वाले कुछ कर्मचारियों को भी गिरफ्तार किया गया है। ममता बोरा ने बताया कि मामले की जांच के बाद केस दर्ज किया जाएगा।

मरीज की मौत,परिजनों का हगांमा

मरीज की मौत,परिजनों का हगांमा
बीकानेर। जिले के पीबीएम अस्पताल में एक व्यक्ति की उपचार के दौरान मौत से गुस्साए परिजनों ने जमकर हंगामा मचाया। गुस्साए परिजनों का आरोप है कि चिकित्सकों कि लापरवाही से मौत हुई है। नापासर निवासी मनोज (30) को शनिवार रात अस्पताल में भर्ती कराया गया था। मनोज को सीने,हाथों में दर्द और सांस लेने में तकलीफ थी।

उसका अस्पताल में उपचार चल रहा था। डॉक्टरों ने सुबह मनोज को अलग वार्ड में शिफ्ट करने के लिए उसका ऑक्सीजन सिलेंडर हटाया,जब तक ऑक्सीजन पाइप वापस लगाते तब तक दम टूट गया। मनोज के मौत कीबाद परिजनों ने इलाज में लापरवाही का आरोप लगाते हुए हंगामा कर दिया। पुलिस व चिकित्सकों की समझाइश के बाद एक बारगी मामला शांत हो गया,लेकिन बाद में परिजनों ने शव लेने से मना कर दिया

पाकिस्तान में मंदिर तोड़े जाने से भड़के हिंदू

पाकिस्तान में मंदिर तोड़े जाने से भड़के हिंदू
अमृतसर। पाकिस्तान में अल्पसंख्यक हिंदुओं पर अत्याचार बढ़ते जा रहे हैं। कराची में एक बिल्डर ने 100 साल पुराने एक हिंदू मंदिर को तोड़ दिया गया। इससे भड़के हिंदू सड़कों पर उतर आए। पाकिस्तान के पूर्व मानवाधिकार मंत्री अंसार बर्नी ने आरोपी बिल्डर के खिलाफ कड़ी कार्रवाई करने और हिंदुओं की सुरक्षा की मांग की है। कहा जा रहा है कि हिंदू संगठन नेशनल असेंबली के हिंदू सदस्यों के साथ मिलकर इस मामले को पाकिस्तान की सरकार के समक्ष उठाएंगे।

बर्नी ने बताया कि बिल्डर ने कराची के सोल्जर बाजार में स्थित 100 साल पुराने श्री राम पीर मंदिर को तोड़ दिया। साथ ही मंदिर से लगते कई मकान भी तोड़ दिए। इससे करीब 40 हिंदू परिवार बेघर हो गए हैं। बिल्डर ने न केवल हिंदू मंदिर तोड़ा बल्कि उसके कर्मचारियों ने मंदिर में रखी देवी देवताओं की मूर्तियों को भी फेंक दिया।

यही नहीं बिल्डर के लोगों ने हिंदू समुदाय के कुछ लोगों के साथ मारपीट भी की। हर किसी को अपने धर्म का पालन करने की आजादी है। यह पाकिस्तान की सरकार की जिम्मेदारी है कि वह यहां रह रहे अल्पसंख्यकों के जान और माल की सुरक्षा करे।

बिल्डर शनिवार को उस वक्त मंदिर तोड़ने पहुंचा जब ज्यादातर हिंदू परिवार प्रार्थना कर रहे थे और नाश्ते की तैयारी कर रहे थे। बिल्डर का कहना है कि अतिक्रमण करके मंदिर बनाया गया है। अगर ऎसा है भी तो उसे मानवीय आधार पर मंदिर नहीं तोड़ना चाहिए था। वह स्थानीय प्रशासन के समक्ष इस मुद्दे को उठाएंगे ताकि हिंदुओं को इसंाफ मिल सके।

बाड़मेर अवैध डोडा पोस्त से भरा ट्रक ट्रर्बो जब्त सतर क्विंटल डोडा बरामद

अवैध डोडा पोस्त से भरा ट्रक ट्रर्बो जब्त सतर क्विंटल डोडा बरामद


बाड़मेर बाड़मेर जिले के बालोतरा थाना क्षेत्र में पुलिस ने भरी मात्र में अवेध डोडा पोस्त बरामद करने में सफलता हासिल की .राहुल बारहट, जिला पुलिस अधीक्षक द्वारा जिले में अवैध शराब व मादक पदार्थो की रोकथाम के लिए दिये गये निर्देशानुसार श्री कैलाशचंद नि.पु. थानाधिकारी पुलिस थाना बालोतरा मय पुलिस पार्टी द्वारा मुखबीर की ईत्तला पर मेगा हाईवे पर मनणावास सर्कल पर ट्रक ट्रर्बो नम्बर यूके 06 सीए 0406 को दस्तयाब कर ट्रक पर लगे तिरपाल को हटाकर ट्रक की तलाशी ली गई तो ट्रक में अवैध व बिना लाईसेन्स के डोडा पोस्त से भरे 200 कट्टे प्रत्येक कट्टे में 35 किलोग्राम डोडा पोस्त जिसमें कुल 7000 किलोग्राम (सात हजार किलोग्राम) डोडा पोस्त भरा हुआ पाया गया। पुलिस की भनक लगने पर ट्रक ड्राईवर ट्रक को छोड़कर भाग गया। ट्रक ड्राईवर की पहचान श्रवणसिंह पुत्र कश्मीरसिंह नि. मिलाप नगर जिला उधमपुर (उतराखण्ड) व ट्रक मालिक की पहचान रमिग हुसैन पुत्र सबीर अहमद, मकान नम्बर 325, पक्का कोट काशीपुर जिला उमधपुर (उतराखण्ड) के रूप में हुई है। डोडा पोस्त व ट्रक को पुलिस कब्जा में लिया जाकर मुलजिमान के विरूद्व जाकर पुलिस थाना बालोतरा पर एनडीपीएस एक्ट के तहत प्रकरण दर्ज किया गया है।

राजस्थानी भाषा को मान्यता के लिए पोस्टकार्ड अभियान आज कलरव स्कूल में


राजस्थानी भाषा को मान्यता के लिए पोस्टकार्ड अभियान आज कलरव स्कूल में



बाड़मेर अखिल भारतीय राजस्थानी भाषा मान्यता संघर्ष समिति बाड़मेर और मोटियार परिषद् की ओर से राजस्थानी भाषा को संविधान की आठवीं अनुसूचि में शामिल करने की मांग को लेकर चलाए जा रहे संघर्ष व 'म्हारी जुबान रो खोलो ताळोÓ पोस्टकार्ड अभियान के द्वितीय चरण में सोमवार को कलरव माध्यमिक विद्यालय में पोस्ट कार्ड अभियान का आगाज़ किया जायेगा मोटियार परिषद् के जिला सह संयोजक दिग्विजय सिंह चुली ने बताया की समिति के संभाग उप पाटवी चन्दन सिंह भाटी ,मोटियार परिषद् नगर अध्यक्ष रमेश सिंह इन्दा सवाई चावड़ा की उपस्थिति में आयोजित होगा .विद्यालय के छात्रो द्वारा महामहिम राष्ट्रपति, प्रधानमंत्री, केन्द्रीय गृहमंत्री व स्थानीय सांसद को पत्र लिख कर राजस्थानियों को भाषाई अधिकार देने के साथ राजस्थानी को संविधान की आठवी अनुसूची में शामिल करने की मांग की जायेगी

राजस्थान पाबूजी की पड़ कला तथा भोपों का संक्षिप्त परिचय


राजस्थान पाबूजी की पड़  कला तथा भोपों का संक्षिप्त परिचय

पड़  लंबे कपड़े पर बनाई गई कलाकृति होती है जिसमें किसी लोकदेवता (विशेष रूप से पाबू जी या देवनारायण) की कथा का चित्रण किया जाता है। पड़ को लकड़ी पर लपेट कर रखा जाता है। इसे धीरे धीरे खोल कर भोपा तथा भोपी द्वारा लोक देवता की कथा को गीत व संगीत के साथ सुनाया जाता है। राजस्थान में कुछ जगहों पर जाति विशेष के भोपे पेशेवर पुजारी होते हैं। उनका मुख्य कार्य किसी मन्दिर में देवता की पूजा करना तथा देवता के आगे नाचना-गाना होता है। पाबू जी तथा देवनारायण के भोपे अपने संरक्षकों (धाताओं) के घर पर जाकर अपना पेशेवर गाना व नृत्य के साथ फड़ के आधार पर लोक देवता की कथा कहते हैं। राजस्थान में पाबूजी तथा देव नारायण के भक्त लाखों की संख्या में हैं। इन लोक देवताओं को कुटुम्ब के देवता के रूप में पूजा जाता है और उनकी वीरता के गीत चारण और भाटों द्वारा गाए जाते हैं। भोपों ने पाबूजी और देवनारायण जी की वीरता के सम्बन्ध में सैंकड़ों लोकगीत रचें हैं और इनकी गीतात्मक शौर्यगाथा को इनके द्वारा फड़ का प्रदर्शन करके आकर्षक और रोचक ढंग से किया जाता है। पाबूजी के भोपों ने पाबूजी की फड़ के गीत को अभिनय के साथ गाने की एक विशेष शैली विकसित कर ली है। पाबूजी की फड़ लगभग 30 फीट लम्बी तथा 5 फीट चौड़ी होती है। इसमें पाबूजी के जीवन चरित्र शैली के चित्रों में अनुपात रंगों एवं रंग एवं फलक संयोजन के जरिए प्रस्तुत करता है। इस फड़ को एक बांस में लपेट कर रखा जाता है और यह भोपा जाति के लोगों के साथ धरोहर के रूप में तथा जीविका साधन के रूप में भी चलता रहता है।

राजस्थान में भोपा का अर्थ किसी देवता का पुजारी होता है। ये मंदिर में पूजा अर्चना करते हैं। यह मंदिर भेरूजी, माताजी अन्य स्थानीय देवता अथवा लोक देवता या लोकदेवी का हो सकता है। सामान्यतः भोपा किसी भी 'जाति' जैसे ब्राह्मण, राजपूत, गुर्जर, जाट, रेबारी, डांगी, मेघवाल, भील आदि किसी का भी हो सकता है किंतु पाबू जी तथा देवनारायण जी की कथा व फड़ बांचने वाले भोपे "भोपा" नामक विशेष जाति के होते हैं।

मजनूओं की मस्ती देख तड़प जाती है इस 'अंग्रेज की आत्मा'!


PIX: मजनूओं की मस्ती देख तड़प जाती है इस 'अंग्रेज की आत्मा'!


गाजीपुर. ब्रिटिश शासनकाल में भारत के गवर्नर रहे लार्ड कार्नवालिस की याद में बनाया गया उनका ऐतिहासिक स्मारक स्थल वर्तमान में मजनूओं का अड्डा बन चुका है। वास्तु और स्थापत्य कला का अनूठा नमूना ये स्मारक जहां अपने शिल्प की खूबसूरती के चलते लोगों के बीच मशहूर है।

वहीं, अपनी ऐतिहासिकता की वजह से ए.सी.आई. के संरक्षण में है। बावजूद इसके प्रशासनिक उपेक्षा के चलते ये ऐतिहासिक स्थल महज आधुनिक लैला मजनुओं की तफरीहगाह बन गया है। ऐसे में आमलोग यहां आने से हिचक रहे हैं।पीजी कालेज गाजीपुर के हिस्ट्री के प्रो बालेश्वर सिंह ने बताया, "ब्रिटिश शासनकाल में 1786 से 1793 तक भारत के गवर्नर रहे लार्ड कार्नवालिस द्वारा भूमि बन्दोबस्त राजस्व प्रक्रिया और न्याय व्यवस्था में किऐ गए सुधार आधुनिक भारत के इतिहास में महत्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं। भारत में अपने दूसरे कार्यकाल के दौरान 5 अक्टूबर 1805 में गाजीपुर में अचानक उनकी मृत्यु हो गई। कार्नवालिस के निधन के बाद उनके सम्मान और याद में गाजीपुर में अंगेंजों ने एक खूबसूरत स्मारक की तामीर करायी।कार्नवालिस के मकबरे के नाम से मशहूर ये स्मारक वर्तमान समय में महज मजनुओं, मनचलों और अराजक तत्वों का अड्डा बन चुका है। ऐसे में स्मारक स्थल पर सुरक्षा के आभाव के चलते आम लोग यहा आने से पूरी तरह कतरा रहे हैं। स्थानीय निवासी गुड्डू बताते है की मकबरा को देखने लोग कम आते है प्रेमी जोड़ा अपने सेटेलमेंट के लिए ज्यादे दीखते है। वहीं पूर्व पार्षद इन्द्रजीत यादव ने बताया की कई बार क्षेत्रीय नागरिकों ने लड़कों और लड़कियों को अश्लील हरकत करते रंगे हाथ पकड़ा है।"पीजी कालेज गाजीपुर के हिस्ट्री के पूर्व प्रो अशोक चटर्जी ने बताया की अपने शानदार शिल्प, स्थापत्य कला और ऐतिहासिकता की वजह से कार्नवालिस का मकबरा आर्कियोलाजी सर्वे आफ इंडिया के संरक्षण में पर्यटक स्थल के रूप में घोषित है। लेकिन सुरक्षा के आभाव और लचर प्रशासनिक व्यवस्था के चलते पर्यटक और सभ्य लोग इस स्थल पर आने से हिचकते हैं। जबकि आधुनिक प्रेमियों के लिए ये स्थल लव स्पाट बन चुका है। ऐसे में स्मारक स्थल पर अराजक तत्वों और मनचलों का जमावड़ा आम बात है।

चिदंबरम होंगे पीएम पद के उम्मीदवार?

चिदंबरम होंगे पीएम पद के उम्मीदवार?

लंदन। अगले लोकसभा चुनाव में वित्त मंत्री पी.चिदंबरम कांग्रेस की ओर से प्रधानमंत्री पद के उम्मीदवार हो सकते हैं। मशहूर मैगजीन इकोनॉमिस्ट ने यह खबर दी है। मैगजीन के मुताबिक अगर अगला लोकसभा चुनाव आर्थिक मुद्दों पर लड़ा जाता है तो कांग्रेस चिदंबरम को प्रधानमंत्री पद का उम्मीदवार बना सकती है। ऎसा भाजपा के प्रधानमंत्री पद के संभावित उम्मीदवार नरेन्द्र मोदी को टक्कर देने के लिए किया जा सकता है।

मैगजीन ने चिदंबरम का नाम उछालकर कांग्रेस में खलबली मचा दी है। मैगजीन के मुताबिक प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह 80 से ऊपर के हो जाएंगे जबकि कांग्रेस महासचिव राहुल गांधी प्रधानमंत्री पद के लिए तैयार नहीं है,इसलिए चिदंबरम के पास देश को चलाने की सही क्रिडेन्शियल प्राप्त कर ली है। पत्रिका के मुताबिक चिदंबरम जब से वित्त मंत्रालय में लौटे हैं तब से उनकी किस्मत चमक गई है।

हालांकि भाजपा ने अभी तक मोदी को प्रधानमंत्री पद का उम्मीदवार घोषित नहीं किया है लेकिन सुषमा स्वराज के बयान ने एक बार फिर पार्टी में प्रधानमंत्री पद की उम्मीदवारी को लेकर बहस छेड़ दी है। इकोनॉमिस्ट के मुताबिक चिदंबरम को अर्थव्यवस्था की अच्छी जानकारी है। साथ ही वे कांग्रेस अध्यक्ष सोनिया गांधी के विश्वास पात्र हैं।

अभी तक कांग्रेस महासचिव राहुल गांधी को ही प्रधानमंत्री पद का दावेदार माना जा रहा था।राहुल गांधी अभी तक सरकार में जिम्मेदारी लेने से बचते रहे हैं। इकॉनामिस्ट ने कुछ दिन पहले "द राहुल प्रॉब्लम"शीर्षक से छपे लेख में उनके खिलाफ तल्ख टिप्पणी की थी। कहा जा रहा है कि प्रणब मुखर्जी के राष्ट्रपति बनने के बाद कांग्रेस में चिदंबरम का कद बढ़ा है। हालिया दिनों में चिदंबरम ने कई मौकों पर कांग्रेस के लिए संकट मोचक की भूमिका निभाई है। वे अब हिंदी भी बोलने लगे हैं। इन हालात में कहा जा रहा है कि चिदंबरम अपना दायरा बढ़ाने की कोशिश कर रहे हैं।

श्रम मंत्री के बेटे की शादी में बच्चों से मजदूरी!

श्रम मंत्री के बेटे की शादी में बच्चों से मजदूरी!

बेंगलूरू। नेता जो कहते हैं उसका खुद ही पालन नहीं करते। इसका ताजा उदाहरण देखने को मिला केन्द्रीय श्रम मंत्री मल्लिकार्जुन खड़गे के बेटे की शादी में। बेंगलूरू में मंत्री के बेटे की शादी में करीब 12 बच्चों को मजदूरी करते हुए देखा गया।

पैलेस ग्राउंड में रखे गए शादी के समारोह में कर्नाटक के वरिष्ठ पुलिस अधिकारी भी मौजूद थे। कुछ लड़कियों को प्लेट साफ करने के लिए रखा गया था। वहीं चार बच्चे झूठा छोड़ा गया खाना उठा रहे थे। वीआईपी गेस्ट के टेबल साफ कर रही एक बच्ची से पूछा गया कि उसे यहां कौन लाया तो उसने एक आदमी की तरफ इशारा करते हुए बताया कि वह उसी के निर्देश पर काम कर रही है।

अन्य बच्चों को खाने की गाड़ी को ढोते हुए,टेबलों को सरकाते हुए और परिसर की सफाई करते हुए देखा गया। जब मंत्री जी से बाल मजदूरी के कानून के उल्लंघन के बारे में पूछा गया तो उन्होंने कहा कि किचन में काम करने वाले बच्चों के बारे में उन्हें कोई जानकारी नहीं है। कैटरिंग का कांट्रेक्ट एक ठेकेदार को दिया गया था। मैंने उससे साफ कहा था कि कोई बच्चा मत लाना।

कारगिल के हीरो शहीद भीखाराम के परिवार को बिजली का कनेक्सन के लिए लड़नी पड रही है जंग

  1. कारगिल के हीरो शहीद भीखाराम के परिवार को बिजली का कनेक्सन के लिए लड़नी पड रही है जंग

बाड़मेर कैप्टन सौरभ कालिया व उनके 5 साथियों के साथ पाकिस्तानी सेना के अमानवीय
यातनाएं दीं। यहां तक कि इन वीरों के अंग-भंग कर डाले तथा शरीर को गर्म
सरिये व सिगरेट से दागा गया। पाकिस्तान ने 9 जून, 1999 को इन शहीदों के
शव भारतीय अधिकारियों को सौंपे। अब इन शहीदों के परिवार अपनी अपनी जंग
लड़ रहे शहीद कैप्टन सौरभ को इंसाफ दिलाने के लिए 13 साल से लड़ रहे उनके
रिटायर्ड साइंटिस्ट पिता एन. के. कालिया ने सुप्रीम कोर्ट में याचिका
दायर करते हुए गुहार लगाई है वही शहीद भीखाराम का पूरा भी एक जंग लड़
रहा है शहीद भीखाराम का परिवार बिजली के कनेक्सन के लिए एक लड़ाई लड़
रहा है सबसे चोकने वाली बात यह है कि पतासर गाव कई घरो में बिजली के
कनेसन है लेकिन राजनीति करने के चलते शहीद भीखाराम के घर में 13 साल से
बजली का कनेक्सन नहीं है शहीद भीखाराम का परिवार आज भी भी मुलभुत
सविधाओ के लिए दर दर की ठोकरे खा रहा है
4 जाट रेजिमेंट में कमिशन मिलने के ठीक बाद
कैप्टन सौरभ कालिया को करगिल में पोस्टिंग दी गई थी। मई 1999 में कैप्टन
सौरभ कालिया अपने 5 साथियों अर्जुन राम, भंवर लाल, भीखाराम, मूला राम व
नरेश सिंह के साथ गश्त पर गए थे। 15 मई, 1999 को पाक सेना ने इन्हें बंदी
बना लिया तथा 22 दिनों तक अमानवीय यातनाएं दीं। शहीद भिखराम के भाई
पदमराम के अनुसार जब हमारे घर शव आया था तो पूरा अंग भग किया हुआ था
हमारा पूरा परिवार आज भी शहीद मेजर सोरब कालिया के पिता एन. के. कालिया
के साथ रहकर लड़ाई लड़ रहा है शहीद भिखराम के भाई पदमराम के अनुसार एक
सैनिक रणक्षेत्र में सीने पर दुश्मनों की गोली झेलकर मरना चाहता है न कि
कई दिनों तक प्रताड़ित होते हुए। भिखराम भी कारगिल युद्ध के दौरान
पाकिस्तानी सैनिकों के हत्थे चढ़ गए। पाकिस्तान ने उनका बुरी तरह क्षत
विक्षत शव कुछ दिनों बाद भारत को सौंपा था। हमें इस बात की ख़ुशी है कि
हमारे भाई अपने वतन के लिए शहीद हुआ लेकिन इस बात का बहुत दुख है कि
हम केवल इतना चाहते हैं कि इस अमानवीय कृत्य के पीछे जो भी हों उनकी
पहचान की जाए और उन्हें असाधारण सजा दी जानी चाहिए। ताकि संसार में कहीं
भी इसके बाद किसी भी सैनिक की हालत मेरे बेटे एवं उसके साथियों की तरह न
हो
शहीद भिखराम के पिता
चेनाराम के अनुसार हमारे परिवार को इस बात की ख़ुशी है कि हमारा बेटा अपने
देश के कुछ काम तो आया लेकिन अब जो नेता और सरकार जो हमारे साथ क्र रही
है उससे हमे बड़ी ठेश पहुचती है हमने शहीद भिखराम की पत्नी भवरी देवी के
नाम से बिजली के कनेक्सन की फाइल 2007 में लगे थी लेकिन अभी तक हम इस के
लिए लम्बी जंग लड़ रहे है सबसे चोकने वाली बात यह है कि पुरे गाव में
बिजली के कई घरो में कनेक्सन है लेकिन हमें राजनीति के चलते भेदभाव
किया जा रहा यह कहा तक जायज है
शहीद भीखराम के भाई
पदमराम के अनुसार सरकार ने हमें एक पेट्रोल पम्प ,एक मुरबा .और 5 लाख
रूपए का मुआजा दिया है लेकिन हमारा पूरा परिवार बिजली के कनेक्शन के लिए
एक जंग लड़ रहा है सबसे मजे कि बात यह है कि हमारे गाव में कई घरो में
बिजली के कनेक्शन है लेकिन राजनितिक कारणों के चलते हमें बिजली का
कनेक्शन नहीं दिया जा रहा है हम लोगो करीब 13 साल से सरकार दफ्तरों के
चक्कर निकाल रहे है और छोटो से बड़े नेता तक के पास अपनी अर्जी लगा दी
लेकिन कोई हमारी बात सुनने को तैयार नहीं है और ऐसा ही कुछ हाल गाव में
पानी और सडक का है
शहीद भीखराम के भाई
पदमराम के अनुसार जब मेरा भाई भिखराम शहीद हुआ था तो कई नेता हमारे घर आए
थे और हमें यह विश्वास दिलाया था कि सरकार आपकी हर संभव मदद करगे उनमे से
एक वर्तमान राजस्थान के मुख्यमंत्री अशोक गहलोत ने उस समय कहा था कि हम
आपको हर मुलभुत सविधा देगे लेकिन आप हकीकत क्या है आप खुद देख सकते हो
आज भी हम बिजली अपनी के लिए तरस रहे है अब तो हमने बिजली पानी सडक को तो
उमीद ही छोड़ दी है
वह इस पुरे मामले पर
बिजली विभाग पचपदरा केसहायक अभियंता सुनील दवे का कहना है कि शहीद भिखराम के
परिवार वाले कुछ रोज पहले मुझसे मिले थे जल्द ही फ़ाइल् के देख क्र हर
संभव मादा की जाएगी
वही इस मामले में
बालोतरा उपखंड अधिकारी कमलेश कुमार के अनुसार इस तरह का कोई भी मामला
हमारे धयान में नहीं आया है लेकिन ऐसा कुछ है तो हम शहीद भिखराम के
परिवार की पूरी मदद करेगे
दरसल यह हकीकत है
भारत में शहीद परिवार की ..........जहा सरकार कहने को तो यह कहती नजर
आती है कि हम शहीद के परिवार वाले की हर संभव मदद करते है लेकिन आज
राजस्थान में शहीद परिवार किस'डोर से गुजर रहे है वह आप खुद देख सकते है

नेहरू की प्रेमिका एडविना को कैजुअल सेक्स था पसंद!

नेहरू की प्रेमिका एडविना को कैजुअल सेक्स था पसंद! 

लंदन. आधुनिक भारत की नींव डालने वाले भारत के सबसे कद्दावर राजनेताओं में शुमार और देश के पहले प्रधानमंत्री जवाहर लाल नेहरू और भारत में ब्रिटेन के आखिरी वॉयसरॉय लॉर्ड माउंटबेटेन की पत्नी एडविना माउंटबेटेन के रिश्तों को लेकर इंग्लैंड में फिर से बहस छिड़ गई है। बहस की शुरुआत एडविना की बेटी पामेला माउंटबेटेन ने खुद की है। लॉर्ड माउंटबेटेन और उनकी पत्नी एडविना की बेटी पामेला हिक्स ने हाल ही में प्रकाशित अपनी आत्मकथा 'डॉटर ऑफ एम्पायर' में नेहरू और अपनी मां के रिश्तों पर विस्तार से लिखा है।

नेहरू की प्रेमिका एडविना को कैजुअल सेक्स था पसंद! 

डेली मेल से बातचीत में एडविना की बेटी पामेला ने कहा, 'पंडित जी (नेहरू) के रूप में उन्हें एक साथी मिला था। नेहरू के तौर पर उन्हें आध्यात्मिकता और ज्ञान वाला ऐसा साथी मिला था, जिसके लिए वे हमेशा ही बेचैन थीं।' खुद 83 साल की हो चुकीं पामेला को लगता है कि नेहरू और एडविना के बीच रिश्ता आध्यात्मिक था न कि सेक्सुअल। पामेला ने लिखा है, 'एडविना और नेहरू के पास इतना वक्त नहीं था कि वे किसी जिस्मानी रिश्ते में उलझें। दोनों की ज़िंदगी बेहद सार्वजनिक थी और वे बहुत मुश्किल से अकेले होते थे।' पामेला के मुताबिक नेहरू की चिट्ठियों को देखने के बाद उन्हें पता चला कि उनकी मां और नेहरू के बीच कितना गहरा प्रेम था
लॉर्ड माउंटबेटेन ने दी थी छूट!
नेहरू की प्रेमिका एडविना को कैजुअल सेक्स था पसंद! 
भारत में ब्रिटेन के आखिरी वायसरॉय लॉर्ड माउंटबेटेन और उनकी पत्नी एडविना की बेटी पामेला ने अपनी किताब में लिखा है, 'एडविना के पति लॉर्ड लुइस माउंटबेटेन को भी नेहरू और अपनी पत्नी के रिश्ते के आध्यात्मिक पक्ष को समझा और एडविना को आज़ादी दी। लॉर्ड माउंटबेटेन के लिए एडविना की नई दिलचस्पी (नेहरू) एक राहत की बात थी।' पामेला के मुताबिक, 'एडविना की नई खुशी (नेहरू के साथ रिश्ते से उपजी) ने एडविना को देर रात होने वाली लड़ाइयों और वाद-विवाद से छुटकारा दिला दिया था।' पामेला का कहना है कि एडविना अपने पति पर यह आरोप लगाती थीं कि वे उन्हें समझ नहीं पाते हैं और नजरअंदाज करते हैं।



कैजुअल सेक्स थी एडविना की पसंद!

पामेला हिक्स का कहना है कि नेहरू और एडविना एक दूसरे से बहुत ज़्यादा प्यार करते थे। ब्रिटिश अख़बारों में प्रकाशित पामेला की किताब के अंशों से पता चलता है कि एडविना सेक्स के मामले में बहुत प्रयोगधर्मी थीं और अलग-अलग पार्टनरों से 'कैजुअल सेक्स' करती थीं अपनी इच्छा के मुताबिक प्रेमियों को अपने पास बुलाती थीं। लॉर्ड माउंटबेटेन को इन बातों का अंदाजा था। किताब के मुताबिक माउंटबेटेन और एडविना की शादीशुदा ज़िंदगी में एक ऐसा दौर भी आया था जब खुद लुइस माउंटबेटेन ने अलग-अलग पार्टनरों से प्रेम करने के मामले में अपनी पत्नी को चुनौती देते हुए एक पार्टनर बनाया था। नेहरू-एडविना के रोमांस पर फिल्म!

नेहरू और एडविना के रिश्तों पर न सिर्फ कई लेख और किताबें लिखी जा चुकी हैं बल्कि इस मुद्दे पर फिल्म बनाने की कोशिशें भी चल रही हैं। दो साल पहले जवाहर लाल नेहरू और एडविना माउंटबेटन के कथित संबंधों पर आधारित फिल्म 'द इंडियन समर' को भारत में फिल्माने की ब्रिटिश फिल्म निर्माण कंपनी की योजना खटाई में पड़ गई क्योंकि भारत सरकार ने इसके कई प्रस्तावित दृश्यों पर आपत्ति जताई थी।

48 घंटे में तैयार हुआ 10 मंजिला भवन

48 घंटे में तैयार हुआ 10 मंजिला भवन

मोहाली। यहां एक कारोबारी ने 48 घंटे में 10 मंजिला भवन खड़ा करने का कारनामा कर दिखाया। भवन निर्माण गुरूवार को 4.30 बजे शाम में शुरू हुआ। शुक्रवार शाम तक सात मंजिल तैयार थी।

शनिवार को 48 घंटे बीतने पर लाल और भूरे रंग का 10 मंजिला भवन "इंस्टाकॉम" तैयार हो गया है। सामग्री का निर्माण एक नजदीकी कारखाने में दो महीने से हो रहा था। भवन निर्माण में 200 टन से अधिक इस्पात लग रहा है। भवन निर्माण में पहले से तैयार संरचना वाली सामग्रियों का इस्तेमाल किया गया।

प्राचीन प्रवेश द्वार आज अपनी सुरक्षा के लिए मोहताज

आभा खो रहे प्राचीन द्वार
जालोर। शहर के इतिहास के साक्षी प्राचीन द्वार संरक्षण के अभाव में आभा खो रहे हैं। कभी शहर के सुरक्षाप्रहरी के रूप में सीना ताने खड़े रहने वालेहै। संरक्षण के अभाव में पुरा संपदा पर संकट के बादल मंडराने लगे हैं। परकोर्ट के कई प्रवेश द्वारों पर जगह-जगह दरारें आ गई हैं। वहीं प्राचीन धरोहरों के मूल स्वरूप को भी लोगों ने बिगाड़ दिया है।

सूरज पोल, तिलक द्वार, बड़ी पोल व लाल पोल के भीतर प्राचीन शहर बसा हुआ था। इतिहाकारों की मानें तो अल्लाउद्दीन खिलजी के आक्रमण के बाद जालोर का शासन तंत्र अस्थिर रहा। इस कारण यहां की प्राचीन धरोहरें भी काल के साथ अपना अस्तित्व खोने लगी। हालांकि पुरा महत्व की धरोहरों की समय-समय पर सार-संभाल की गई, लकिन वर्तमान में ये उपेक्षा का दंश भोग रही हैं।

खो गया परकोटा
शहर की सुरक्षा को लेकर प्राचीन समय में शहर के चारों ओर बना अभेद परकोटा अतिक्रमण की जद में खो गया। रियासतकालीन शासकों ने भले ही रियासत के साथ नागरिकों की सुरक्षा को लेकर परकोटा का निर्माण कराया हो, लेकिन समय के साथ सुरक्षा कवच अतिक्रमण में गायब हो गया। यह लम्बा-चौड़ा परकोटा शहर की शान रहा, लेकिन बाद में सार-संभाल के अभाव, सरकार और प्रशासन की लापरवाही और अतिक्रमणों के चलते अनूठी स्थापत्य कला में चार चांद लगाने वाली इस विरासत पर ग्रहण लगने लगा।

देखते ही देखते कभी सीना ताने खड़ा परकोटा मकानों की दीवरों में सिमट गया। तिलक द्वार के पास होकर गौरव पथ से गुजरने पर कईस्थानों पर परकोटे के अवशेष नजर आते हैं। प्रशासनिक शिथिलता के चलते परकोटे से सटाकर लोगों ने दुकानें व मकान बनाकर इस विरासत को खत्म करने में कोई कसर नहीं छोड़ी। अंजाम यह हुआ कि परकोटा मकानों और दुकानों में खो गया है। अब सिर्फ प्राचीन दरवाजे ही दिखते हैं। इन दरवाजों की स्थिति भी ठीक नहीं है। सार-संभाल के अभाव में द्वार टूटे रहे हैं और अपनी आभा भी खो रहे हैं।

शनिवार, 1 दिसंबर 2012

टेनिस की सनसनी सानिया रविवार को रायपुर में



रायपुर  
टेनिस की सनसनी सानिया मिर्जा आपके शहर रायपुर आ रही हैं। वे शहर की सबसे ज्यादा चर्चित टेनिस की प्रतियोगिता गोंडवाना कप के उद्घाटन के लिए यहां आ रही हैं। यह प्रतियोगिता शहर की जानी मानी रियल इस्टेट कंपनी वीआईपी क्लब की ओर से की जा रही है। इसके लिए 3 दिसंबर को वीआईपी क्लब में सारी तैयारियां जोरों पर हैं। उद्घाटन कार्यक्रम प्रदेश के मुखिया डॉ. रमन सिंह भी मौजूद रहेंगे। वीआईपी क्लब में होने वाले इस कार्यक्रम का आगाज सुबह 11 बजे से होगा।

करेंगी टेनिस कोर्ट की शुरुआत

सानिया मिर्जा वीआईपी क्लब में बने टेनिस कोर्ट का उद्घाटन करेंगी। यह कोर्ट पूरे छत्तीसगढ़ में इकलौता टेनिस कोर्ट है। इसमें 4 सिंथेटिक कोर्ट के साथ बेस्ट लाइटिंग अरेंजमेंट हैं। वीआईपी क्लब के राकेश पांडेय बताते हैं, सानिया मिर्जा के आने से टेनिस के प्रति युवाओं में और जागरुकता आएगी। वीआईपी क्लब का मकसद भी इतना ही है कि हम ज्यादा से ज्यादा खेल अधोसंरचना विकसित करने में भागीदार बन सकें। श्री पांडेय ने कहा सानिया देश की स्टार खिलाड़ी तो हैं ही, साथ ही टेनिस यूथ आईकॉन भी हैं। सरल, सौम्य और सहज इस सुपर सितारा खिलाड़ी के लिए रायपुर एक्साइटमेंट के साथ इस्तकबाल करने तैयार है।

आप कैसे मिल सकते हैं

सानिया मिर्जा इस कार्यक्रम का उद्घाटन करने वीआईपी क्लब में बने टेनिस कोर्ट में सुबह 11 बजे पहुंचेंगी। वहां पर आप इनसे मुलाकात कर सकते हैं। हालांकि इसके लिए किसी को भी सीधे मुलाकात नहीं करने दी जाएगी, लेकिन बतौर दर्शक इस कार्यक्रम में पहुंचकर आप सानिया से मिल सकते हैं। यह कार्यक्रम कल यानी रविवार को होना है।

युगों तक याद रहेगी उनकी सरलता व सादगी राष्ट्रनिर्माण के महानायक डॉ. राजेन्द्र बाबू


जयंती दिसंबर 2012 

युगों तक याद रहेगी उनकी सरलता व सादगी
राष्ट्रनिर्माण के महानायक डॉ. राजेन्द्र बाबू
अनिता महेचा

       भारतवर्ष दुनिया में अपनी तरह का वह महान राष्ट्र है जहां प्राचीन काल से रत्नगर्भा वसुंधरा ने ऎसे-ऎसे महान रत्नों को जन्म दिया है जिन्होंने भारतीय संस्कृति के तमाम आदशोर्ं को अपने जीवन में अपनाया और पूरी दुनिया में ऎसी धाक जमायी है जिसे युगों तक याद रखा जाएगा। भारतमाता के गौरवशाली महान सपूतों में डॉ. राजेन्द्रप्रसाद का नाम अग्रणी महापुरुषों में गिना जाता है।
      सुसंस्कृत परिवार  का आधार
       डा. राजेन्द्र प्रसाद का जन्म 3 दिसम्बर, 1884 को बिहार के सारम जिले के एक छोटे से गांव जीरादेई में हुआ था। इनके पिता का नाम महादेव प्रसाद था। वे फारसी व संस्कृत भाषा के अच्छे ज्ञाता थे। वह एक आला दर्जे के वैद्य भी थे। आस-पास के इलाके में उनका बड़ा नाम था। वैद्य होने के कारण उन्होंने इलाके के लोगों की खूब सेवा की। इनकी माता एक सुसंस्कृत और धर्म परायण महिला थी।
     

 उर्दू में हुई आरंभिक शिक्षा-दीक्षा
       राजेन्द्र बाबू की प्रारम्भिक शिक्षा घर पर ही उर्दू माध्यम से हुई। उन्हें घर पर एक मौलवी साहब पढ़ाया करते थे। छपरा के हाई स्कूल से इन्होंने हाई स्कूल की परीक्षा तथा कलकत्ता के प्रेसीडेंसी कॉलेज से बीए की परीक्षा उत्तीर्ण की। कलकत्ता में ही उन्होंने एमए इतिहास तथा वकालात की परीक्षाएं पास की। इतिहास में एमए करने के पश्चात् राजेन्द्र बाबू ने मुजफ्फरपुर कॉलेज में व्याख्याता के पद पर कार्य किया।
      वकालात के साथ देश सेवा
       अध्यापन में मन न लगने पर कलकत्ता में एक वकील के रूप में इन्होंने सम कालीनों के मध्य काफी नाम कमाया। पटना में 1912 में जब हाई कोर्ट खुला तो वह पटना आ गए। यहां उनकी ख्याति और बढ़ी लेकिन राजेन्द्र बाबू ने देश सेवा का कार्य प्रारम्भ कर दिया
       उन दिनों अक्सर बच्चों की शादियां छोटी अवस्था में कर दी जाती थीं। यह आम रिवाज था। उनकी शादी बलिया जिले के छपरा स्थान में तय कर दी गई। इस प्रकार 12 वर्ष की अल्प आयु में ही उनका विवाह हो गया।
      आजादी के आन्दोलन में भागीदारी
       सन् 1906 में कांग्रेस के वार्षिक अधिवेशन में राजेन्द्र बाबू ने एक प्रतिनिधि के रूप में भाग लिया। उस समय कांग्रेस में नरम व गरम दो दल बन चुके थे। लोकमान्य तिलक,लाला लाजपतरायविपिनचन्द्र पाल और अरविन्द घोष आदि गरम दल के तथा सर फिरोजशाह मेहता और गोपाल कृष्ण गोखले आदि नरम दल के प्रमुख नेता थे। इन दोनाें दलों के बीच समझौता वार्ता कराने के लिए दादा भाई नौरोजी को इंग्लैण्ड से बुलवाकर सभापति बनाया गया था। राजेन्द्र बाबू ने इस अधिवेशन में पहली दफा पण्डित मदन मोहन मालवीय,मोहम्मद अली जिन्ना और सरोजनी नायडू के उदगार सुने। गोपालकृष्ण गोखले की बाताें का उनके दिल पर गहरा असर पड़ा। इससे उनके हृदय में राष्ट्रभक्ति की भावना जागृत हुई।
      गांधी से हुए प्रभावित
       सन् 1916 में गांधी जी ने चम्पारण में सत्याग्रह किया। इस सत्याग्रह में राजेन्द्र बाबू गांधी जी के सम्पर्क में आए। गांधी जी भी उनकी लगन और सेवाओं से काफी प्रभावित हुए। तब से लेकर आखिर तक राजेन्द्र बाबू ने बड़ी सच्चाई व निष्ठा के साथ गांधी जी का साथ दिया। सन् 1920 में असहयोग आन्दोलन के समय उन्होंने वकालात को तिलांजलि दे दी और आन्दोलन में कूद पड़े। इसके फलस्वरूप उन्हें जेल में डाल दिया गया। जेल में ही वे चरखे से सूत कातने लगे और खादी के बुने हुए कपड़े पहनना शुरू कर दिया।
       भारत के आजादी के आन्दोलन में डॉ. राजेन्द्र प्रसाद की भूमिका अत्यन्त गरिमामय एवं महत्त्वपूर्ण रही। 1917 से लेकर 1947 तक उन्होंने भारत के लोगों को गांधी जी के आदर्शो से परिचित कराया। ये 1934, 1939 और 1947 में तीन बार अखिल भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस के अध्यक्ष पद पर चुने गए। इस पद का दायित्व इन्होंने कुशलता के साथ निभाया। उन्हाेंने सारे देश का दौरा कर कांग्रेस में एक नई जान और जोश फूंका।
      लोक सेवा के आदर्शों को साकार किया
       सन् 1930 मे बिहार के बहिपुर में नमक सत्याग्रह आन्दोलन के दौरान उन पर पुलिस द्वारा लाठियों से प्रहार किया गया थालेकिन वे अपने राष्ट्रीय सेवा में दृढ़ता के साथ लगे रहे। हिन्दी भाषा तथा हरिजनों के उद्धार एवं 1934 में बिहार में भूकम्प के समय जिस लगन व निष्ठा के साथ उन्होंने भूकम्प पीडिताें की सेवा कीउससे व बिहार के गांधी बन गए।
       सन् 1942 के भारत छोड़ो आन्दोलन में डॉ राजेन्द्र प्रसाद ने जोशो खरोश से भाग लिया। इन्हें इस आन्दोलन के दौरान गिरफ्तार करके जेल में डाल दिया गया और वे लम्बी अवधि तक जेल में रहे। सन् 1945 में कांग्रेस तथा अंग्रेजों के मध्य समझौता होने पर उन्हें अन्य नेताओं के साथ जेल से रिहा किया गया।
      सेहत से पहले आजादी को दी प्राथमिकता
       दिन-रात दौराेंजेलो और भाषणों के कारण राजेन्द्र बाबू को दमा रोग हो गया थाजिससे वे अन्तिम समय तक पीड़ित रहे। पहले तो वे बेहद कमजोर थे। लेकिन आजादी के पश्चात् उपचार करने के कारण उनके स्वास्थ्य में कुछ सुधार हुआ किन्तु दमे से वह पूर्ण रूप से निजात नहीं पा सके।
      देश के प्रथम राष्ट्रपति का गौरव
       कांग्रेस और अंग्रेज सरकार के बीच हुए समझौते के अनुसार 15 अगस्त 1947 को भारत एक आजाद राष्ट्र घोषित हुआ। स्वतंत्रता संग्राम में डॉ. राजेन्द्र प्रसाद के अनुपम त्याग और उत्कृष्ट नेतृत्व क्षमता को देखते हुए उन्हें स्वतंत्र भारत का प्रथम राष्ट्रपति और नेहरू जी को प्रधानमंत्री बनाया गया।
       नेहरू जी जहां आधुनिक युग के प्रतीक थेवही डॉ. राजेन्द्र बाबू पुरातन और नवीनयुग के बेजोड़ मिश्रण थे। उनकीे विनम्रता और सादगी में राष्ट्रपति बनने पर और भी निखार आया। उनकी देश सेवा की निष्ठालगनसूझबूझ अत्यन्त सराहनीय थी। सन् 1957 में उन्होंने स्वेच्छा से राष्ट्रपति पद को त्याग दिया।
      चिंतक और साहित्यकार भी थे राजेन्द्र बाबू
       डॉ. राजेन्द्र प्रसाद एक लब्ध प्रतिष्ठित साहित्यकार भी थे। उन्होंने अपनी आत्म कथा को सरल सुबोध हिन्दी भाषा में लिखा। चम्पारण में सत्याग्रहएट द फिट ऑफ महात्मा गांधीऔर इण्डिया डिवाईडेट इनके द्वारा लिखित महत्त्वपूर्ण रचनाएं हैंजो हमें इनके रचना संसार से अवगत कराती हैं।
       सन् 1962 में इन्हें देश के सर्वोच्च सम्मान भारत रत्न की उपाधि से नवाजा गया। देश की इस महान विभूति का निधन पटना के सदाकत आश्रम में 28 फरवरी 1963 को हुआ।
      पीढ़ियों तक होगा प्रेरणा संचरण
       डॉ राजेन्द्र प्रसाद ने देश की आजादी के आन्दोलन में उलेखनीय योगदान दिया था। संविधान सभा के अध्यक्ष तथा स्वतंत्र भारत के प्रथम राष्ट्रपति के रूप में उन्होंने देश की अनुपमउत्कृष्ट सराहनीय सेवा की। वे एक सफल लेखक ही नहीं बल्कि महान वकील भी थे। वे सादगीसरलता और विनम्रता की प्रतिमूर्ति थे। उन्होंने पद की गरिमा को स्थिर ही नहीं किया बल्कि उसे और ऊँचां उठाया जिससे भारत की शान और इज्जत विश्व में बढ़ी।     
       आज का दिन हमें इस महान विभूति के कार्यों और व्यवहार से प्रेरणा लेकर व्यक्तित्व विकास तथा  देश के नवनिर्माण में अपनी समर्पित भागीदारी के संकल्प की याद दिलाता है।