आभा खो रहे प्राचीन द्वार
जालोर। शहर के इतिहास के साक्षी प्राचीन द्वार संरक्षण के अभाव में आभा खो रहे हैं। कभी शहर के सुरक्षाप्रहरी के रूप में सीना ताने खड़े रहने वालेहै। संरक्षण के अभाव में पुरा संपदा पर संकट के बादल मंडराने लगे हैं। परकोर्ट के कई प्रवेश द्वारों पर जगह-जगह दरारें आ गई हैं। वहीं प्राचीन धरोहरों के मूल स्वरूप को भी लोगों ने बिगाड़ दिया है।
सूरज पोल, तिलक द्वार, बड़ी पोल व लाल पोल के भीतर प्राचीन शहर बसा हुआ था। इतिहाकारों की मानें तो अल्लाउद्दीन खिलजी के आक्रमण के बाद जालोर का शासन तंत्र अस्थिर रहा। इस कारण यहां की प्राचीन धरोहरें भी काल के साथ अपना अस्तित्व खोने लगी। हालांकि पुरा महत्व की धरोहरों की समय-समय पर सार-संभाल की गई, लकिन वर्तमान में ये उपेक्षा का दंश भोग रही हैं।
खो गया परकोटा
शहर की सुरक्षा को लेकर प्राचीन समय में शहर के चारों ओर बना अभेद परकोटा अतिक्रमण की जद में खो गया। रियासतकालीन शासकों ने भले ही रियासत के साथ नागरिकों की सुरक्षा को लेकर परकोटा का निर्माण कराया हो, लेकिन समय के साथ सुरक्षा कवच अतिक्रमण में गायब हो गया। यह लम्बा-चौड़ा परकोटा शहर की शान रहा, लेकिन बाद में सार-संभाल के अभाव, सरकार और प्रशासन की लापरवाही और अतिक्रमणों के चलते अनूठी स्थापत्य कला में चार चांद लगाने वाली इस विरासत पर ग्रहण लगने लगा।
देखते ही देखते कभी सीना ताने खड़ा परकोटा मकानों की दीवरों में सिमट गया। तिलक द्वार के पास होकर गौरव पथ से गुजरने पर कईस्थानों पर परकोटे के अवशेष नजर आते हैं। प्रशासनिक शिथिलता के चलते परकोटे से सटाकर लोगों ने दुकानें व मकान बनाकर इस विरासत को खत्म करने में कोई कसर नहीं छोड़ी। अंजाम यह हुआ कि परकोटा मकानों और दुकानों में खो गया है। अब सिर्फ प्राचीन दरवाजे ही दिखते हैं। इन दरवाजों की स्थिति भी ठीक नहीं है। सार-संभाल के अभाव में द्वार टूटे रहे हैं और अपनी आभा भी खो रहे हैं।
जालोर। शहर के इतिहास के साक्षी प्राचीन द्वार संरक्षण के अभाव में आभा खो रहे हैं। कभी शहर के सुरक्षाप्रहरी के रूप में सीना ताने खड़े रहने वालेहै। संरक्षण के अभाव में पुरा संपदा पर संकट के बादल मंडराने लगे हैं। परकोर्ट के कई प्रवेश द्वारों पर जगह-जगह दरारें आ गई हैं। वहीं प्राचीन धरोहरों के मूल स्वरूप को भी लोगों ने बिगाड़ दिया है।
सूरज पोल, तिलक द्वार, बड़ी पोल व लाल पोल के भीतर प्राचीन शहर बसा हुआ था। इतिहाकारों की मानें तो अल्लाउद्दीन खिलजी के आक्रमण के बाद जालोर का शासन तंत्र अस्थिर रहा। इस कारण यहां की प्राचीन धरोहरें भी काल के साथ अपना अस्तित्व खोने लगी। हालांकि पुरा महत्व की धरोहरों की समय-समय पर सार-संभाल की गई, लकिन वर्तमान में ये उपेक्षा का दंश भोग रही हैं।
खो गया परकोटा
शहर की सुरक्षा को लेकर प्राचीन समय में शहर के चारों ओर बना अभेद परकोटा अतिक्रमण की जद में खो गया। रियासतकालीन शासकों ने भले ही रियासत के साथ नागरिकों की सुरक्षा को लेकर परकोटा का निर्माण कराया हो, लेकिन समय के साथ सुरक्षा कवच अतिक्रमण में गायब हो गया। यह लम्बा-चौड़ा परकोटा शहर की शान रहा, लेकिन बाद में सार-संभाल के अभाव, सरकार और प्रशासन की लापरवाही और अतिक्रमणों के चलते अनूठी स्थापत्य कला में चार चांद लगाने वाली इस विरासत पर ग्रहण लगने लगा।
देखते ही देखते कभी सीना ताने खड़ा परकोटा मकानों की दीवरों में सिमट गया। तिलक द्वार के पास होकर गौरव पथ से गुजरने पर कईस्थानों पर परकोटे के अवशेष नजर आते हैं। प्रशासनिक शिथिलता के चलते परकोटे से सटाकर लोगों ने दुकानें व मकान बनाकर इस विरासत को खत्म करने में कोई कसर नहीं छोड़ी। अंजाम यह हुआ कि परकोटा मकानों और दुकानों में खो गया है। अब सिर्फ प्राचीन दरवाजे ही दिखते हैं। इन दरवाजों की स्थिति भी ठीक नहीं है। सार-संभाल के अभाव में द्वार टूटे रहे हैं और अपनी आभा भी खो रहे हैं।
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