साहित्य के महाकुंभ का भक्ति से आगाज
जयपुर। जयपुर लिटरेचर फेस्टिवल के पहले दिन उदघाटन सत्र के बाद पहले सत्र में भक्ति रस छाया रहा। कवि एवं आलोचक पुरूषोत्तम अग्रवाल और अरविंद कृष्ण महरोत्रा ने भक्तिकाल पर व्याख्यान से श्रोताओं को मंत्रमुग्ध कर दिया। अग्रवाल ने भक्ति में उपासना और समर्पण को अलग रूप में परिभाषित करते हुए कहा कि महाभक्ति केवल उपासना ही नहीं है। समर्पण भी भक्ति में ठीक उसी तरह समाहित होता है जैसा प्रेमी-प्रेमिका के बीच का रिश्ता। भक्ति को भागीदारी और बराबरी के रूप में लेना चाहिए। उन्होंने भक्त कवि कबीर का दोहा पढ़ा कि "पाछे लागा हरि फिरे कहत कबीर कबीर...।" अग्रवाल ने कहा कि भक्ति तो मनुष्य में मनुष्य के रूप में सम्मान करने की विरासत सरीखी है।
क्विन मदर ऑफ भूटान ने किया उदघाटन
इससे पहले दुनियाभर में मशहूर जयपुर लिटरेचर फेस्टिवल (जेएलएफ) का आगाज गुरूवाणी, भक्ति व सूफी संगीत से हुआ। क्विन मदर ऑफ भूटान आशी सांगे वांगचुक ने उदघाटन किया। इस मौके पर मशहूर गीतकार गुलजार, फिल्म निर्देशक विशाल भार्द्वाज, लेखक अरविंद कृष्ण महरोत्रा, भूटान की राजमाता, लेखक पवन वर्मा समेत कई लोग मौजूद थे। इस मौके पर पुष्कर के विख्यात वाद्ययंत्र वादक नत्थूलाल सोलंकी ग्रुप ने प्रस्तुति दी।
सरकार और नुमाइंदों ने बनाई दूरी
विवादास्पद लेखक सलमान रूश्दी को लेखक उपजे विवाद की छाया का असर उत्सव के शुरूआती दिन ही झलकने लगा। आलम यह था कि इतने बड़े आयोजन में सरकारी की तरफ से कोई नुमाइंदा नजर नहीं आया। खुद मुख्यमंत्री अशोक गहलोत और उनकी तरफ से किसी ने भी उदघाटन कार्यक्रम में शिरकत नहीं की। माना जा रहा है कि रूश्दी को बुलाए जाने को लेकर उठे विरोध तथा दबाव और उसके बाद सरकारी स्तर पर उन्हें रोके जाने की कवायद में सरकार की बड़ी भूमिका रही है। इसके चलते सरकार ने दूरी बनाए रखना ही मुनासिब समझा।
आयोजन स्थल पड़ा छोटा
डिग्गी पैलेस होटल में 24 जनवरी तक चलने वाले साहित्य महाकुंभ के लिए शुक्रवार सुबह तक देश-दुनिया के साहित्यकार जुट गए। पहले ही उत्सव में लोगों की गहमागहमी इतनी अधिक रही कि आयोजन स्थल छोटा पड़ गया। उत्सव स्थल को भी साहित्यिक लुक दिया गया है। फ्रंट लॉन, मुगल लॉन, बैठक सहित अलग-अलग पंडाल सजाए गए हैं।
जयपुर। जयपुर लिटरेचर फेस्टिवल के पहले दिन उदघाटन सत्र के बाद पहले सत्र में भक्ति रस छाया रहा। कवि एवं आलोचक पुरूषोत्तम अग्रवाल और अरविंद कृष्ण महरोत्रा ने भक्तिकाल पर व्याख्यान से श्रोताओं को मंत्रमुग्ध कर दिया। अग्रवाल ने भक्ति में उपासना और समर्पण को अलग रूप में परिभाषित करते हुए कहा कि महाभक्ति केवल उपासना ही नहीं है। समर्पण भी भक्ति में ठीक उसी तरह समाहित होता है जैसा प्रेमी-प्रेमिका के बीच का रिश्ता। भक्ति को भागीदारी और बराबरी के रूप में लेना चाहिए। उन्होंने भक्त कवि कबीर का दोहा पढ़ा कि "पाछे लागा हरि फिरे कहत कबीर कबीर...।" अग्रवाल ने कहा कि भक्ति तो मनुष्य में मनुष्य के रूप में सम्मान करने की विरासत सरीखी है।
क्विन मदर ऑफ भूटान ने किया उदघाटन
इससे पहले दुनियाभर में मशहूर जयपुर लिटरेचर फेस्टिवल (जेएलएफ) का आगाज गुरूवाणी, भक्ति व सूफी संगीत से हुआ। क्विन मदर ऑफ भूटान आशी सांगे वांगचुक ने उदघाटन किया। इस मौके पर मशहूर गीतकार गुलजार, फिल्म निर्देशक विशाल भार्द्वाज, लेखक अरविंद कृष्ण महरोत्रा, भूटान की राजमाता, लेखक पवन वर्मा समेत कई लोग मौजूद थे। इस मौके पर पुष्कर के विख्यात वाद्ययंत्र वादक नत्थूलाल सोलंकी ग्रुप ने प्रस्तुति दी।
सरकार और नुमाइंदों ने बनाई दूरी
विवादास्पद लेखक सलमान रूश्दी को लेखक उपजे विवाद की छाया का असर उत्सव के शुरूआती दिन ही झलकने लगा। आलम यह था कि इतने बड़े आयोजन में सरकारी की तरफ से कोई नुमाइंदा नजर नहीं आया। खुद मुख्यमंत्री अशोक गहलोत और उनकी तरफ से किसी ने भी उदघाटन कार्यक्रम में शिरकत नहीं की। माना जा रहा है कि रूश्दी को बुलाए जाने को लेकर उठे विरोध तथा दबाव और उसके बाद सरकारी स्तर पर उन्हें रोके जाने की कवायद में सरकार की बड़ी भूमिका रही है। इसके चलते सरकार ने दूरी बनाए रखना ही मुनासिब समझा।
आयोजन स्थल पड़ा छोटा
डिग्गी पैलेस होटल में 24 जनवरी तक चलने वाले साहित्य महाकुंभ के लिए शुक्रवार सुबह तक देश-दुनिया के साहित्यकार जुट गए। पहले ही उत्सव में लोगों की गहमागहमी इतनी अधिक रही कि आयोजन स्थल छोटा पड़ गया। उत्सव स्थल को भी साहित्यिक लुक दिया गया है। फ्रंट लॉन, मुगल लॉन, बैठक सहित अलग-अलग पंडाल सजाए गए हैं।