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सोमवार, 15 जून 2020

गुजरात के कच्छ में एक बार फिर भूकंप का झटका, कल रात से 11 बार हिली धरती

             गुजरात के कच्छ में एक बार फिर भूकंप का झटका, कल रात से 11 बार हिली धरती


 गुजरात में एक बार भूकंप का झटका महसूस किया गया है. कच्छ में दोपहर 12 बजकर 57 मिनट पर भूकंप का झटका मसहूस किया गया. भूकंप की तीव्रता रिक्टर स्केल पर 4.5 रही. भूकंप का केंद्र कच्छ से 15 किलोमीटर दूर रहा. भूकंप के झटके के बाद लोग घर से बाहर आ गए. इससे पहले रविवार को कच्छ में 5.5 तीव्रता का भूकंप आया था.
आज आए भूकंप का एपीसेंटर भुज के भचाउ के पास रहा. कल रात भी आए भूकंप का भी एपीसेंटर भचाउ के पास था. बताया जा रहा है कि कल रात से लेकर अब तक 11 बार छोटे-बड़े भूकंप के झटके महसूस किए जा चुके हैं. लोग डरे हुए हैं. फिलहाल, किसी भी तरह के जानमाल के नुकसान की खबर नहीं है.गुजरात में रविवार रात 8.13 बजे भूकंप आया, जिसके बाद लोगों में डर का माहौल बन गया और लोग अपने घरों से बाहर निकल गए. भूकंप का केंद्र कच्छ में भचाऊ के पास 10 किलोमीटर अंदर रहा है. इस भूकंप के बाद कच्छ के कई घरों में दरारें तक आ गईं.
दिल्ली में भी कई बार हिली धरती
इससे पहले 8 जून को दिल्ली-एनसीआर में भूकंप के झटके महसूस किए गए थे. रिक्टर स्केल पर भूकंप की तीव्रता 2.1 थी. राष्ट्रीय भूकंप विज्ञान केंद्र के अनुसार, हरियाणा के गुरुग्राम से 13 किलोमीटर पश्चिम-उत्तर पश्चिम में कम तीव्रता का भूकंप पैदा हुआ. इसकी गहराई 18 किलोमीटर थी और यह दोपहर एक बजे आया था.


रविवार, 8 मार्च 2020

गुजरात के भुज में पाक खुफिया एजेंसी ISI के लिए जासूसी कर रहे एक जासूसी रैकेट का भांडाफोड़, 4 जासूसों को पुलिस ने किया गिरफ्तार*

गुजरात के भुज में पाक खुफिया एजेंसी ISI के लिए जासूसी कर रहे एक जासूसी रैकेट का भांडाफोड़, 4 जासूसों को पुलिस ने किया गिरफ्तार*


*भुज (गुजरात)*गुजरात वायुसेना के सैन्य के ठिकानों की जासूसी के आरोप में SP वेस्ट कछ भुज  ने 4 युवकों को पकड़ा है*

*कच्छ के नलिया भानाला वायुसेना की डिप्लॉयमेंट की जानकारी और वायुसेना की मूवमेंट की जानकारी सीमा पार   पाकिस्तान की खुफिया एजेंसी ISI को  भेजने के  आरोप में 4 युवकों को पकड़ा गया है*

*फोटोग्राफी की आड़ में पाकिस्तान भेजी जा रही थी सैन्य की गुप्त जानकारियां*।


*जासूसी कांड में चौकानेवाली बात ये है के पकड़े गए चार युवकों की उम्र 17-21 साल के बीच है,सोशियल मीडीया के जरिये पाकिस्तान में एक शख्स को फ़ोटो के साथ डिटेल भेजी जा रही थी।पुलिस पिछले एक महीने से इन चार युवकों की मूवमेंट पर कड़ी नजर बनाए हुए थी।*

गुरुवार, 21 नवंबर 2019

गुजरात का सुंदर शहर है गढ़वाली पूर्व राजधानी पाटन

गुजरात का सुंदर शहर है गढ़वाली पूर्व राजधानी पाटन

रानी की वाव
गुजरात की गढ़वाली पूर्व राजधानी, पाटन एक ऐसा शहर है जिसकी स्थापना 745 ईस्वी में की गई थी। तत्कालीन राजा वनराज चावड़ा द्वारा निर्मित यह पुरातन ऐतिहासिक शहर अपनी उत्कृष्ट ऐतिहासिक सम्पदाओं और प्राकृतिक भव्यता के लिए प्रसिद्ध है। अहमदाबाद के नज़दीक स्थित ये शहर घूमने के लिए बेहतरीन स्‍थलों में से एक है। अहमदाबाद में या इस शहर के आसपास रहने वाले लोग पाटन घूमने आ सकते हैं। अपनी उत्कृष्ट प्राचीन वास्तुकला और प्राचीन सौंदर्य के लिए मशहूर पाटन में कुछ बहुत ही महत्वपूर्ण पर्यटक स्‍थल मौतूद हैं। ये स्‍थल इतिहास और एडवेंचर प्रेमी दोनों के लिए ही महत्‍वपूर्ण हैं। पाटन कैसे पहुंचे वायु मार्ग द्वारा: पाटन पहुंचने के लिए निकटतम हवाई अड्डा अहमदाबाद में स्थित सरदार वल्लभभाई पटेल हवाई अड्डा है, जो इस ऐतिहासिक शहर से लगभग 120 किमी दूर है। रेल मार्ग द्वारा: पाटन रेलवे स्टेशन शहर के केंद्र में स्थित है और देश के विभिन्न प्रमुख मार्गों से ट्रेनों द्वारा जुड़ा हुआ है। 
जैन मंदिर
सड़क मार्ग द्वारा: पाटन नियमित बसों के माध्यम से भारत के अन्य प्रमुख शहरों से अच्छी तरह से जुड़ा हुआ है। शहर के केंद्र में स्थि‍त इसके बस टर्मिनल पाटन बस जंक्शन से नियमित बसें उपलब्ध हैं। पाटन आने का सही समय पाटन की यात्रा का सबसे अच्छा समय सितंबर से फरवरी में सर्दियों के महीनों में रहता है। इस समय यहां का तापमान औसतन 15 डिग्री सेल्सियस से 25 डिग्री सेल्सियस तक रहता है। सहस्त्रलिंग तलाव   सहस्त्रलिंग तलाव शहर के उत्तर-पश्चिमी भाग में स्थित है। यह सरस्वती नदी के तट पर कृत्रिम रूप से निर्मित एक टैंक है। गुजरात के महान शासक सिद्धराज जयसिंह द्वारा निर्मित यह पानी की टंकी अब सूखी है और इसके बारे में कई तरह की कहानियां प्रचलित हैं। बताया जाता है कि तलाव जैस्मीन ओडेन नामक एक महिला द्वारा शापित है जिसने सिद्धराज जयसिंह से शादी करने से इनकार कर दिया था। इस पंचकोणीय पानी की टंकी में लगभग 4,206,500 क्यूबिक मीटर पानी और लगभग 17 हेक्टेयर क्षेत्र के लिए पानी हो सकता है। ये टैंक पर्यटकों के लिए आकर्षण का केंद्र है एवं इस स्‍थाल पर भगवान शिव को समर्पित असंख्य मंदिरों के खंडहर मौजूद हैं।   रानी की वाव  पाटन में रानी के वाव को देश की सबसे सुंदर और जटिल नक्काशीदार बावड़ी में से एक माना जाता है। ये बावड़ी शिल्प कौशल की प्रतिभा का एक अद्भुत नमूना है एवं इसे भूमिगत वास्तुकला के एक महान उदाहरण के रूप में जाना जाता है।

 सोलंकी राजवंश की रानी उदयमती द्वारा निर्मित इस बावड़ी की दीवारें भगवान गणेश और अन्य हिंदू देवताओं की जटिल विस्तृत मूर्तियों से सजी हुई हैं। ये बावड़ी वास्‍तुकला से सजी की एक उत्कृष्ट कृति है और इसकी दीवारों पर शानदार नक्काशी की गई है। जैन मंदिर  80 पाटन शहर में सौ से अधिक जैन मंदिर हैं। सोलंकी युग के इन मंदिरों में से एक सबसे महत्वपूर्ण पंचसारा पार्श्वनाथ जैन दरेसर है, जो भव्यता और बेहतरीन शिल्प कौशल का प्रतीक है। इस पूरे मंदिर को पत्थर से बनाया गया है और इसका प्राचीन सफेद संगमरमर का फर्श इसकी भव्यता को और अधिक बढ़ा देता है।  खान सरोवर  1886 से 1890 के आसपास खान सरोवर को गुजरात के तत्कालीन गवर्नर खान मिर्ज़ा अज़ीज़ कोका द्वारा कृत्रिम रूप से बनवाया गया था। कई इमारतों और संरचनाओं के खंडहरों के पत्थरों से निर्मित यह पानी की टंकी एक विशाल क्षेत्र में फैली हुई है और इसकी ऊंचाई 1273 फीट से लेकर 1228 फीट तक है। टैंक के चारों तरफ पत्थर की सीढियां हैं और असाधारण चिनाई से खान सरोवर को अलग किया गया है।

शनिवार, 22 दिसंबर 2018

BSF जवानों के लिए आस्था का केंद्र है बनासकांठा के नाडेश्वरी माता का मंदिर

BSF जवानों के लिए आस्था का केंद्र है बनासकांठा के नाडेश्वरी माता का मंदिर
नाडेश्वरी माता का मंदिर

नाडेश्वरी माता का मंदिर गुजरात के बनासकांठा के बॉर्डर पर बना है. यह मंदिर आम लोगों के साथ-साथ सीमा सुरक्षा बल (बीएसएफ) के जवानों के लिए भी आस्था और श्रद्धा का बहुत बड़ा धर्मस्थल बना हुआ है.

बनासकांठा बॉर्डर पर जब भी किसी जवान की ड्यूटी लगती है तो वह ड्यूटी देने से पहले मंदिर में माथा टेक कर ही जाता है. ऐसी मान्यता है कि मां नाडेश्वरी खुद यहां जवानों की जिंदगी की रक्षा करती हैं.

दरअसल, पहले यहां पर कोई मंदिर नहीं था, एक छोटा सा मां का स्थान था, लेकिन 1971 के युद्ध के बाद उस वक्त के कमान्डेंट ने इस मंदिर का निर्माण कराया. इस मंदिर कि खास बात यह भी है कि बीएसएफ का एक जवान यहां पुजारी के तौर पर ही अपनी ड्यूटी करता है.

बनासकांठा का सुई गांव जो भारत-पाकिस्तान बॉर्डर पर आखिरी गांव है जहां यह मंदिर स्थित है. यहां से महज 20 किलोमीटर की दूरी पर पाकिस्तान की सीमा शुरू हो जाती है. यह क्षेत्र बीएसएफ के निगरानी में ही रहता है.

मंदिर के निर्माण की कहानी भी बेहद दिलचस्प है. 1971 में पाकिस्तान के साथ लड़ाई के वक्त भारतीय सेना की एक टुकड़ी पाकिस्तान की सीमा में प्रवेश कर गई और इसके बाद वह रास्ता भटक गई क्योंकि रन का इलाका होने की वजह से उन्हें रास्ता भी नहीं मिल रहा था.

कहा जाता है कि खुद कमान्डेंट ने मां नाडेश्वरी से मदद की गुहार लगाई और सकुशल सही जगह पहुंचाने की विनती की तो खुद मां ने दिये की रोशनी के जरिये भारतीय सेना की टुकड़ी की मदद की और उन्हें वापस अपने बेस कैंप तक लेकर आई. इस दौरान किसी भी जवान को खरोंच तक नहीं आई.

वहां ऐसी मान्यता है कि जब तक इस बॉर्डर पर मां नाडेश्वरी देवी विराजमान हैं किसी भी जवान को कुछ नहीं हो सकता. इस मंदिर के ट्रस्टी खेंगाभाई सोलंकी का कहना है कि 1971 में जब जवान अपना रास्ता भटक गए और पाकिस्तान की सीमा में पहंच गए थे, तब खुद मां ने ही उन्हें रास्ता दिखाया था, तब से यहां पर आने वाले हर एक जवान के लिए मां अस्था और श्रद्धा का सब से बड़ा केंद्र बना हुआ है.

शनिवार, 7 जनवरी 2017

पश्चिमी सीमा क्षेत्र से.यहां रस्सियों में कैद हैं नापाक कश्तियां



पश्चिमी सीमा क्षेत्र से.यहां रस्सियों में कैद हैं नापाक कश्तियां
यहां रस्सियों में कैद हैं नापाक कश्तियां

गुजरात के कच्छ जिले के कोटेश्वरम में कदम रखते ही सबसे पहले रस्सियों में कैद नापाक कश्तियां नजर आती हैं। समुद्री सीमा के उस पार पकिस्तान से इस ओर भारतीय सीमा में आने वाली कश्तियों को सीमा सुरक्षा बल यहां अपनी हिरासत में तट पर लंगर से बांध कर रखता है। नीले और गहरे समंदर में हवा से बातें करने वाली पाकिस्तान की नौकाएं यहां रस्सियों की गिरफ्त में कई सालों से बंधी हैं। इनके यहां जमावड़े का आलम यह है कि बीते साल (2016 ) में दर्जन से ज्यादा नावें पकड़ी गई और इन पर सवार 30 से ज्यादा पाकिस्तानी नागरिकों को गिरफ्तार किया गया है। बीते पांच सालों का यह आंकड़ा सैकड़ों पार है। सीमा सुरक्षा बल के गश्ती दल की चौकसी की बदौलत समुद्री सरहद पर पाकिस्तानी घुसपैठ में कमी आ रही है लेकिन गाहे-बगाहे पाकिस्तानी नावों का भारत की सीमा में प्रवेश करना अभी जारी है।

बरामद की मछलियां और जाल भी

भारतीय सीमा में पाकिस्तानी नावों और नागरिकों की गिरफ्तारी पर होने वाली बरामदगी की घटनाएं कुछ अजीब सी हैं। बीते साल कोटेश्वर सीमा चौकी के निकट बीएसएफ ने 14 पाक मछुआरों और चार बच्चों को पकड़ा। बीएसएफ ने मछली पकडऩे की दो नौकाएं भी जब्त की थी। मशीनीकृत नौकाओं की तलाशी के दौरान बीएसएफ कर्मियों को करीब 350 किलो मछली, मछली पकडऩे वाले चार जाल, एक आइस बाक्स और प्लास्टिक कैन में अतिरिक्त ईंधन मिला। इससे पहले 10 मछुआरों को पकड़ा था और उनकी दो नौकाएं जब्त की थी। जिसमें ईंधन के अलावा कुछ नही मिला था। जिन-जिन नौकाओं में पाकिस्तानी नागरिक गिरफ्तार हुए उनमें मछली पकडऩे का सामान और मछलियां मिली हैं, लेकिन कुछ नावें ऐसी भी गिरफ्त में आई हैं, जिनमें कोई शख्स नहीं था। उन नावों में पाकिस्तानी करंसी, ईंधन और ड्राय फ्रूट मिले थे।

मुस्तैद है मरीन बटालियन

भारत-पाक समुद्री सीमा पर सीमा सुरक्षा बल की मरीन बटालियन तैनात है। जिनको अरब सागर का बादशाह कहा जाता है। इसकी तैनातगी के बाद पाकिस्तान की तरफ से जब भी घुसपैठ की कोशिश की गई, उसे मुंह की खानी पड़ी। रात के अंधेरे में भी घुसपैठ की कोशिश हमेशा नाकाम रही है और यही वजह है कि केवल 2016 में मरीन बटालियन के नाम सबसे ज्यादा घुसपैठ रोकने और पाक नागरिक गिरफ्तारी का रिकॉर्ड है।

शनिवार, 2 जुलाई 2016

गुजरात के थाने में न्यूड होकर चिल्लाने लगी लड़की

गुजरात के थाने में न्यूड होकर चिल्लाने लगी लड़की

सोशल मीडिया पर इन दिनों एक लड़की का वीडियो वायरल हो रहा है। वीडियो में एक लड़की किसी पुलिस स्टेशन में न्यूड होकर घूमती और पुलिसवालों से लड़ती हुई दिख रही है। जहां से यह वीडियो वायरल हो रहा है वहां दावा किया जा रहा है कि यह गुजरात के अहमदाबाद थाने का है।





सोशल मीडिया पर इन दिनों एक लड़की का वीडियो वायरल हो रहा है। वीडियो में एक लड़की किसी पुलिस स्टेशन में न्यूड होकर घूमती और पुलिसवालों से लड़ती हुई दिख रही है। जहां से यह वीडियो वायरल हो रहा है वहां दावा किया जा रहा है कि यह गुजरात के अहमदाबाद थाने का है। वीडियो में दिखाया गया है कि लड़की सिर्फ अंडरगार्मेंट्स पहनकर थाने में खड़ी होकर चिल्ला रही होती है। वह कभी डेस्क पर रखी चीजों को उठाकर फेंकती है और कभी पुलिसवालों की तरफ उंगली उठाकर कुछ कहती है। वीडियो में दिख रहे पुलिसवाले शांति के खड़े होकर तमाशा देख रहे होते हैं। वीडियो में दिख रहे दोनों पुलिसवाले लड़की को पहनने के लिए एक शॉर्ट्स देते हैं और पहनने के लिए कहते हैं। लड़की उसको पहन तो लेती है पर शांत नहीं होती। वह कभी तालियां बजाती हैं और कभी अपने पेट को पीटती है। जब मीडिया वालों ने गुजरात पुलिस से इस बारे में जानकारी लेनी चाही तो उन्होंने वीडियो के गुजरात के होने से साफ इंकार कर दिया। उनका मानना है कि वीडियो दिल्ली के किसी थाने का है। - 

सोमवार, 4 अगस्त 2014

गुजरात का गौरव है रानी की वाव

रानी की वाव गुजरात का गौरव है। इतिहास गवाह है बहुत से राजा महाराजाओं ने अपनी रानियों की स्मृति में यादगार स्थलों का निर्माण करवाया है लेकिन रानी की वाव स्थल कुछ हट कर है। मान्यता है कि इसे रानी उदयमति ने अपने पति सोलंकी वंश के संस्थापक भीमदेव-1 की याद में बनवाया था। इस तथ्य की पुष्टी 304 एडी में मेरुंग सूरी द्वारा रचित 'प्रबंध चिंतामणि' में भीमदेव-1 की याद में उदयमति द्वारा बनाए गए स्थलों के विस्तरित वर्णन से होती है। गुजरात का गौरव है रानी की वाव
रानी की वाव 11वीं सदी में बनी एक ऐसी सीढ़ीदार बावली है जो काफी विकसित और विस्तृत होने के साथ-साथ प्राचीन भारतीय शिल्प के सौंदर्य का भी एक अनुपम उदाहरण है। यह भारत में बावलियों के सर्वोच्च विकास का एक सुन्दर नमूना है। 'रानी की वाव' देश की सबसे अच्छी वाव में से एक होने के साथ एक प्राचीन राजधानी की प्रख्यात धरोहर भी है। गुजरात की वाव सिर्फ पानी के संग्रह या सामाजिक व्यवस्था के लिए नहीं है किन्तु साथ ही आध्यात्मिक महत्व भी रखती थी।

रानी की वाव 64 मीटर लंबी, 20 मीटर चौड़ी तथा 27 मीटर गहरी है। असल दस्तावेजों से ज्ञात होता है की इसे सात मंजिला बनाया गया था लेकिन वर्तमान समय में यह पांच मंजिला ही है। यह इमारत मारु-गुर्जर शैली की वास्तुकाल में निर्मित है। बहुधा मूर्तिकलाओं में विष्णु भक्ति दशावतार रुप में दिखती है। जिनमें भगवान के वराह, नृसिंह, राम तथा कलकी के खूबसूरत श्री रूप हैं। इसके अतिरिक्त मां दुर्गा को राक्षस महिषासुर का संहार करते हुए प्रर्दशित किया गया है। खूबसूरत अप्सरा के चित्र में 16 तरह के श्रृंगार दिखाए गए हैं। जल स्तर के समीप ही भगवान श्री हरि विष्णु का भी चित्रण हैं।

2001 तक तो यहां आने वाने सैलानी रानी की वाव में नीचे जल तक जा कर इसकी खूबसूरती का आनंद ले सकते थे मगर भुज में आए भूकंप के बाद इसका ढ़ांचा कमजोर हो गया। सैलानीयों की सुरक्षा को मध्य नजर रखते हुए भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण ने सैलानीयों के घुमने के लिए एक परिसीमा निश्चिच की है।

11वीं शताब्दी के सीढ़ीदार कुएं ‘रानी की वाव’ को 22 जून 2014 को यूनैस्को की विरासत सूची में शामिल किया गया है। यह भारतीयों के लिए गर्व का विषय है। अगली बार आप गुजरात की यात्रा करें तो रानी की वाव’ अवश्य जाएं। वह हमारी महान कला और संस्कृति का शानदार प्रतीक है। यूनैस्को ने इसे भूजल संसाधनों के इस्तेमाल में प्रौद्योगिकीय विकास का बेजोड़ नमूना बताया है।

गुजरात से यूनेस्को की विश्व विरासत सूची में शामिल होने वाली रानी की वाव दूसरी ऐतिहासिक व सांस्कृतिक महत्व का स्थल है। इससे पहले वर्ष 2004 में पंचमहाल जिले में स्थित चांपानेर-पावागढ़ किले को भी यूनेस्को विश्व विरासत सूची में शामिल कर चुका है। गत वर्ष अक्टूबर में यूनेस्को की वर्ल्ड हैरिटेज समिति के सदस्यों ने विशेषज्ञों के साथ रानी की वाव का दौरा किया था। इस दौरान यूनेस्को के विशेषज्ञों ने इस वाव की भूमिगत जल के स्त्रोत के उपयोग व जल प्रबंधन प्रणाली के रूप में काफी सराहा था।

मंगलवार, 24 जून 2014

गिरनार पहाड़ियों की तलहटी में बसा है जूनागढ़



जूनागढ़  
गुजरात के सौराष्ट्र इलाके का हिस्सा है। जूनागढ़ गिरनार पहाड़ियों के निचले हिस्से पर स्थित है। मंदिरों की भूमि जूनागढ़ के प्राचीन शहर का नामकरण एक पुराने दुर्ग के नाम पर हुआ है। यहां पूर्व-हड़प्पा काल के स्थलों की खुदाई हुई है। इस शहर का निर्माण नौवीं शताब्दी में हुआ था। गिरनार के रास्ते में एक गहरे रंग की बेसाल्ट चट्टान है जिस पर तीन राजवंशों का प्रतिनिधित्व करने वाला शिलालेख अंकित है। शहर के निकट स्थित कई मंदिर और मस्जिदें इसके लंबे और जटिल इतिहास को उद्घाटित करते हैं। जूनागढ़ इतिहास व वास्तुकला की दृष्टि से एक महत्वपूर्ण शहर है। अपनी हरियाली और नवाबों के समकालीन किलों और महलों के कारण पर्यटकों को अपनी ओर आकर्षित करता है। गिरनार पर्वत पर स्थित जैन, हिंदू, मुस्लिम अनुयायियों को भी बरबस अपनी ओर खिंचता है।
प्रमुख आकर्षण:-

अशोक के शिलालेख (आदेशपत्र)-गिरनार जाने के रास्ते पर सम्राट अशोक द्वारा लगवाए गए शिलालेखों को देखा जा सकता है। ये शिलालेख विशाल पत्थरों पर उत्कीर्ण हैं। अशोक ने चौदह शिलालेख लगवाए थे। इन शिलालेखों में राजकीय आदेश खुदे हुए हैं। इसके अतिरिक्त इसमें नैतिक नियम भी लिखे हुए हैं। ये आदेशपत्र राजा के परोपकारी व्यवहार और कार्यो का प्रमाणपत्र है। अशोक के शिलालेखों पर ही शक राजा रुद्रदाम तथा [स्कंदगुप्त] के खुदवाए अभिलेखों को देखा जा सकता है। रुद्रदाम ने 150 ई. में तथा स्कंदगुप्त ने 450 ई. में ये अभिलेख खुदवाये थे। इस अभिलेख की एक विशेषता यह भी है कि रुद्रदाम के अभिलेख को ही संस्कृत भाषा का प्रथम शिलालेख माना जाता है।

अपरकोट किला-माना जाता है कि इस किले का निर्माण यादवों ने द्वारिका आने पर करवाया था (जो कृष्ण भगवान से संबंधित थे)। अपरकोट की दीवारें किसी-किसी स्थान पर 20 मीटर तक ऊंची है। किले पर की गई नक्काशी अभी भी सुरक्षित अवस्था में है। इस किले में पश्चिमी दीवार पर दो तोपे लगी हैं। इन तोपों का नाम नीलम और कांडल है। इन तोपों का निर्माण मिस्त्र में हुआ था। इस किले के चारों ओर 200 ईस्वी पूर्व से 200 ईस्वी तक की बौद्ध गुफाएं है।

सक्करबाग प्राणी उद्यान-जूनागढ़ का यह प्राणीउद्यान गुजरात का सबसे पुराना प्राणीउद्यान है। यह प्राणीउद्यान गिर के विख्यात शेर के अलावा चीते और तेंदुआ के लिए प्रसिद्ध है। गिर के शेरों को लुप्तप्राय होने से बचाने के लिए जूनागढ़ के नवाब ने 1863 ईस्वी में इस प्राणीउद्यान का निर्माण करवाया था। यहां शेर के अलावा बाघ, तेंदुआ, भालू, गीदड़, जंगली गधे, सांप और चिड़िया भी देखने को मिलती है। यह प्राणीउद्यान लगभग 500 एकड़ में फैला हुआ है।

गिर राष्ट्रीय उद्यान-वन्य प्राणियों से समृद्ध गिर राष्ट्रीय उद्यान गिरनार जंगल के करीब है। यह राष्ट्रीय उद्यान आरक्षित वन है और एशियाई शेरों के लिए एकमात्र घर है। इस वन्य अभ्यारण्य में अधिसंख्य मात्रा में पुष्प और जीव-जन्तुओं की प्रजातियां मिलती है। यहां स्तनधारियों की 30 प्रजातियां, सरीसृप वर्ग की 20 प्रजातियां और कीड़ों-मकोड़ों तथा पक्षियों की भी बहुत सी प्रजातियां पाई जाती है। यहां हिरण, सांभर, चीतल, नीलगाय, चिंकारा, बारहसिंगा, भालू और लंगूर भी देखा जा सकता है।

बौद्ध गुफा-बौद्ध गुफा चट्टानों को काट कर बनायी गई है। इस गुफा में सुसज्जित खंभे, गुफा का अलंकृत प्रवेशद्वार, पानी के संग्रह के लिए बनाए गए जल कुंड, चैत्य हॉल, वैरागियों का प्रार्थना कक्ष, चैत्य खिड़कियां स्थापत्य कला का अद्भुत उदाहरण पेश करती हैं। शहर में स्थित खापरा-कोडिया की गुफाएं भी देखने लायक है।

अड़ी-काड़ी वेव और नवघन कुआं-अड़ी-काड़ी वेव और नवघन कुआं का निर्माण चूडासमा राजपूतों ने कराया था। इन कुओं की संरचना आम कुओं से बिल्कुल अलग तरह की है। पानी के संग्रह के लिए इसकी अलग तरह की संरचना की गई थी। ये दोनों कुएं युद्ध के समय दो सालों तक पानी की कमी को पूरा कर सकते थे। अड़ी-कड़ी वाव तक पहुंचने के लिए 120 पायदान नीचे उतरना होता है, जबकि नवघन कुंआ 52 मीटर की गहराई में है। इन कुंओं तक पहुंचने के लिए गोलाकार सीढि़यां बनी हुई है।

जामा मस्जिद-जामा मस्जिद मूलत: रानकीदेवी का निवास स्थान था। मोहम्मद बेगड़ा ने जूनागढ़ फतह के दौरान (1470 ईस्वी) अपनी विजय की याद में इसे मस्जिद में तब्दील कर दिया था । यहां अन्य आकर्षणों में नीलम तोप है जिसे तुर्की के राजा सुलेमान के आदेश पर पुर्तगालियों से लड़ने के लिए बनवाया गया था। यह तोप मिस्त्र से दीव के रास्ते आई थी।

भावनाथ मंदिर-यहां पर हर साल दो त्योहार मनाए जाते हैं। अक्टूबर-नवंबर के महीने में पांच दिनों की अवधि के दौरान पांचवे दिन यानी पूर्णिमा के दिन कार्तिक महीने के समापन पर इस मंदिर की परिक्रमा करने के बाद झंडा लगाने के बाद आयोजित किया जाता है। गिरनार पर्वत के चारों ओर लगभग 40 किमी की परिक्रमा या परिपत्र यात्रा पांच दिनों तक चलती है। फरवरी-मार्च के दौरान माघ महीने के अमावस्या के दिन इस मंदिर में महाशिवरात्री का त्योहार मनाया जाता है।



दामोदर कुंड-इस पवित्र कुंड के चारों ओर घाट (नहाने के लिए) का निर्माण किया गया है। ऐसा विश्वास किया जाता है कि इस घाट पर भगवान श्री कृष्ण ने महान संत कवि नरसिंह मेहता को फूलों का हार पहनाया था।

बोली जाने वाली भाषाएं:-

गुजराती, हिंदी और अंग्रेजी

जाने का सही समय:-

अक्टूबर से मार्च

कैसे पहुंचे:-

वायुमार्ग-निकटतम हवाई अड्डा राजकोट है जो भारत के प्रमुख शहरों से हवाई मार्ग द्वारा जुड़ा हुआ है।

रेलमार्ग-जूनागढ़ भारत में कई महत्वपूर्ण शहरों को जोड़ने वाला एक प्रमुख रेलवे स्टेशन है।

सड़कमार्ग-जूनागढ़ गुजरात के सभी स्थानों से सड़क द्वारा जुड़ा हुआ है।

गुरुवार, 2 जनवरी 2014

यह ऐतिहासिक गुजरात आज से नहीं, सदियों से है


यह ऐतिहासिक गुजरात आज से नहीं, सदियों से है

गुजरात की समृद्धता आधुनिक नहीं, ऐतिहासिक है। इस इलाके ने बहुत उतार-चढ़ाव देखे हैं। सैन्य, राजनीतिक, युद्ध, भूकंप, समुद्र का अंगड़ाई लेना और गुस्सा दिखाना, रेगिस्तान से लेकर अब हो रही जबरदस्त खुदाई (खनन) तक सब कुछ।

मुझे नहीं लगता कि हमारे सामान्य समाज की इस तरह के उतार-चढ़ाव को जानने और समझने में बहुत रुचि रही है। मुझे समझ नहीं आता कि हमारा अध्यात्म रहस्यवाद के खिलाफ क्यों होता है। एक समय पर एक शहर में से एक बड़ी नदी बहती थी जिसने अपना रास्ता बदल लिया। नदी के रास्ते में इस बदलाव ने एक अर्थव्यवस्था को खत्म कर दिया।

कच्छ के उत्तर-पूर्व में लखपत का किला है। यह केवल एक किला नहीं है, बल्कि एक पूरा वाकया है। आज जब आप इस किले की तरफ जाने के लिए निकलते हैं तो कई किलोमीटर तक आपको कोई घनी बस्ती या बाजार या सेवा नजर नहीं आती।

बहरहाल, आपको लिग्नाइट की खदानें होने के बहुत से बोर्ड दिखाई देते हैं जिनसे यह पता चलता है कि गुजरात खनिज विकास निगम इस इलाके का मौजूदा सत्तादार है। इस किले के ठीक बाहर एक चाय की दुकान है। किले के भीतर हर रोज अपनी जिंदगी के लिए जूझते अब 51 परिवार रहते हैं, पर इतिहास तो कुछ और ही कहानी कहता है।

जानते हैं इसे लखपत क्यों कहते हैं? यह देश का सबसे समृद्ध बंदरगाह हुआ करता था। व्यापार का आलम यह था कि हर रोज इस स्थान पर 1 लाख कोड़ियों (तब की मुद्रा) का व्यापार होता था। इसी 1 लाख के कारण इसका नाम लखपत पड़ गया। लखपत मतलब लखपति परिवारों का गांव!

12 साल की उम्र में फकीर बने गौस मुहम्मद की समाधि यहां है। माना जाता है कि मक्का जाते समय और वापस लौटते समय गुरुनानक ने लखपत में रात्रि विश्राम किया था इसलिए यहां गुरुद्वारा भी है। यहां के ग्रंथी के मुताबिक लखपत का गुरुद्वारा पहला गुरुद्वारा है।

1805 में कच्छ के राजा के लोकप्रिय सेनापति जामदार फतेह मुहम्मद ने इसकी सिंध के आक्रमण से रक्षा करने के लिए लखपत का किला बनवाया जिसका परकोटा 7 किलोमीटर का है।

यहां कच्छ के विशाल रण से कोरी खाड़ी का मिलन होता है, तब सिंधु नदी यहां से बहा करती थी। यहां की जनसंख्या 5,000 हुआ करती थी जिनमें ज्यादातर सौदागर और हिन्दू होते थे। सिंधु नदी के किनारे पर कोटरी नामक स्थान था, जहां बड़ी नावें और जहाज आकर खड़े होते थे। यहां से ऊंटों पर अन्य साधनों से माल ढो-ढोकर थार तक पहुंचाया जाता था।

सोचिए आज जो रेगिस्तानी क्षेत्र है, वहां सबसे ज्यादा खेती धान की होती थी। वर्ष 1819 में कच्छ में आए जबरदस्त भूकंप ने सब कुछ बदल दिया। यहां जून 1819 के 7 दिनों में 36 भू-गर्भीय कंपन हुए। यहां से बहने वाले सिंधु नदी ने अपना रास्ता बदला दिया, एक प्राकृतिक बांध अल्लाहबंद का निर्माण हो गया और नदी सीधे समुद्र में जाकर मिलने लगी। सब कुछ तहस-नहस हो गया।

बताया जाता है कि ऐतिहासिक महत्त्व के मद्देनजर सरकार द्वारा इस क्षेत्र और लोगों के विकास के लिए राशि जारी की जाती रही, पर भ्रष्टाचार लखपत के वजूद को मिटाने की मुहिम में सफल साबित हुआ। अब यहां कोई नहीं आता है।

8 पीढ़ियों से रह रहे लोग अपनी इन जड़ों को छोड़ना नहीं चाहते हैं। वे मानते हैं कि समृद्धता और संपन्नता हमेशा नहीं रहती। हम यदि लखपत को छोड़ भी देंगे तो हमारी जिंदगी नहीं बदलेगी। अब हमें अपना नया भविष्य गढ़ना है।

कच्छ में ही 17वीं शताब्दी में निर्मित हुआ मुंद्रा बंदरगाह भी है। निजीकरण के जरिए आर्थिक विकास की नीतियों के तहत यह बंदरगाह 10 साल पहले एक निजी कंपनी समूह अडानी को दे दिया गया। उसने यहां पर्यावरण को खूब नुकसान पहुंचाया जिसके लिए उस पर 200 करोड़ रुपए का जुर्माना भी हुआ। बहरहाल, यह बंदरगाह एक समय में नमक और मसालों के व्यापार के लिए बेहद प्रसिद्ध था।

यहां रहने वाले खारवा जाति के लोग कुशल जहाज चालक होते थे इसलिए यह बंदरगाह भी बहुत सफल रहा। इन तीनों उदाहरणों को देखा जाए तो आर्थिक संपन्नता के साथ यहां धार्मिक और आध्यात्मिक सौहार्द भी फैला हुआ नजर आता है। मुंद्रा में भी शाह बुखारी पीर की दरगाह है। संत दरिया पीर के बारे में कहा जाता है कि वे मछुआरों की रक्षा करते थे और 17वीं सदी में यहां आए थे।

गुजरात में कच्छ के दूसरे कोने में है मांडवी, एक समुद्र तट और एक शहर! थोड़ा विस्तार से बताता हूं। आज जिस गुजरात राज्य को हम बहुत समृद्ध मानते हैं और सोचते हैं कि ये पिछले कुछ वर्षों में विकसित हुआ है, पर सच यह है कि समृद्धता तो यहां 400 साल पहले से आना शुरू हो गई थी।

वहां मांडवी में कच्छ के रजा खेंगारजी ने वर्ष 1574 में विशालकाय बंदरगाह बनवाया था। 1581 में नगर की स्थापना हुई। इस बंदरगाह की क्षमता 400 जहाजों की थी। मुंबई से पहले यह बंदरगाह बन गया था। आजकल भारत का भुगतान संतुलन बिगड़ा हुआ है यानी निर्यात कम होता है और आयात ज्यादा, पर 100 सालों तक मांडवी से होने वाले व्यापार में आयात से 4 गुना ज्यादा निर्यात होता था।

यहां से पूरी अफ्रीका, फारस की खाड़ी, मालाबार, पूर्वी एशिया से व्यापार के लिए जहाज अरब सागर के इस बंदरगाह पर आते थे। यहां के समुद्र को काला समुद्र या ब्लैक-सी भी कहा जाता है, क्योंकि यहां मिलने वाली बारीक मिट्टीनुमा रेत का रंग काला होता है। पहले-पहल तो आपको लगेगा कि- हें! यहां तो कीचड़ है, पर जब हम इसे स्पर्श करते हैं तब हमें यहां की संस्कृति, संपन्नता और वैभवशाली अतीत का अहसास होने लगता है।

इस यात्रा से मेरा यह विश्वास तो मजबूत हुआ कि इतिहास और अतीत को पलटकर जरूर देखना चाहिए। एक नए समाज को गढ़ने के लिए यह बहुत जरूरी है।

बुधवार, 18 दिसंबर 2013

गुजरात का मां अम्बाजी मंदिर

या देवीसर्वभूतेषु शक्तिरूपेण संस्थिता

नमस्तस्यै-नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमो नमः...

शक्ति के उपासकों के लिए इस बार वेबदुनिया लाया है गुजरात का अम्बाजी मंदिर। माँ अम्बा-भवानी के शक्तिपीठों में से एक इस मंदिर के प्रति माँ के भक्तों में अपार श्रद्धा है। यह मंदिर बेहद प्राचीन है। मंदिर के गर्भगृह में माँ की कोई प्रतिमा स्थापित नहीं है। यहाँ माँ का एक श्री-यंत्र स्थापित है। इस श्री-यंत्र को कुछ इस प्रकार सजाया जाता है कि देखने वाले को लगे कि माँ अम्बे यहाँ साक्षात विराजी हैं। नवरात्र में यहाँ का पूरा वातावरण शक्तिमय रहता है।

 शक्तिस्वरूपा अम्बाजी देश के अत्यंत प्राचीन 51 शक्तिपीठों में से एक माना जाता है। वस्तुतः हिंदू धर्म के प्रमुख बारह शक्तिपीठ हैं। इनमें से कुछ शक्तिपीठ हैं- काँचीपुरम का कामाक्षी मंदिर, मलयगिर‍ि का ब्रह्मारंब मंदिर, कन्याकुमारी का कुमारिका मंदिर, अमर्त-गुजरात स्थित अम्बाजी का मंदिर, कोल्हापुर का महालक्ष्मी मंदिर, प्रयाग का देवी ललिता का मंदिर, विंध्या स्थित विंध्यवासिनी माता का मंदिर, वाराणसी की माँ विशालाक्षी का मंदिर, गया स्थित मंगलावती और बंगाल की सुंदर भवानी और असम की कामख्या देवी का मंदिर। ज्ञात हो कि सभी शक्तिपीठों में माँ के अंग गिरे हैं। 

यह मंदिर गुजरात-राजस्थान सीमा पर स्थित है। माना जाता है कि यह मंदिर लगभग बारह सौ साल पुराना है। इस मंदिर के जीर्णोद्धार का काम 1975 से शुरू हुआ था और तब से अब तक जारी है। श्वेत संगमरमर से निर्मित यह मंदिर बेहद भव्य है। मंदिर का शिखर एक सौ तीन फुट ऊँचा है। शिखर पर 358 स्वर्ण कलश सुसज्जित हैं


मंदिर से लगभग तीन किलोमीटर की दूरी पर गब्बर नामक पहाड़ है। इस पहाड़ पर भी देवी माँ का प्राचीन मंदिर स्थापित है। माना जाता है यहाँ एक पत्थर पर माँ के पदचिह्न बने हैं। पदचिह्नों के साथ-साथ माँ के रथचिह्न भी बने हैं। अम्बाजी के दर्शन के उपरान्त श्रद्धालु गब्बर जरूर जाते हैं।

अम्बाजी मंदिर के बारे में कहा जाता है कि यहाँ पर भगवान श्रीकृष्ण का मुंडन संस्कार संपन्न हुआ था। वहीं भगवान राम भी शक्ति की उपासना के लिए यहाँ आ चुके हैं। हर साल भाद्रपदी पूर्णिमा के मौके पर यहाँ बड़ी संख्या में श्रद्धालु जमा होते हैं


विशेष आकर्षण- नौ दिनों तक चलने वाले नवरात्र पर्व में श्रद्धालु बड़ी संख्या में यहाँ माता के दर्शन के लिए आते हैं। इस समय मंदिर प्रांगण में गरबा करके शक्ति की आराधना की जाती है। समूचे गुजरात से कृषक अपने परिवार के सदस्यों के साथ माँ के दर्शन के लिए एकत्रित होते हैं।

व्यापक स्तर पर मनाए जाने वाले इस समारोह में ‘भव’ और ‘गरब’ जैसे नृत्यों का प्रबंध किया जाता है। साथ ही यहाँ पर ‘सप्तशत’ (माँ की सात सौ स्तुतियाँ) का पाठ भी आयोजित किया जाता है। भाद्रपदी पूर्णिमा को इस मंदिर में एकत्रित होने वाले श्रद्धालु पास में ही स्थित गब्बरगढ़ नामक पर्वत श्रृंखला पर भी जाते हैं, जो इस मंदिर से दो मील दूर पश्चिम की दिशा में स्थित है। प्रत्येक माह पूर्णिमा और अष्टमी तिथि पर यहाँ माँ की विशेष पूजा-अर्चना की जाती है।

कैसे पहुँचें- अम्बाजी मंदिर गुजरात और राजस्थान की सीमा से लगा हुआ है। आप यहाँ राजस्थान या गुजरात जिस भी रास्ते से चाहें पहुँच सकते हैं। यहाँ से सबसे नजदीक स्टेशन माउंटआबू का पड़ता है। आप अहमदाबाद से हवाई सफर भी कर सकते हैं। अम्बाजी मंदिर अहमदाबाद से 180 किलोमीटर और माउंटआबू से 45 किलोमीटर दूरी पर स्थित है।

रविवार, 31 मार्च 2013

राजस्थानी भाषा की मान्यता के लिए अब गुजरात के राजस्थानी भी आगे आये



राजस्थानी भाषा की मान्यता के लिए अब गुजरात के राजस्थानी भी आगे आये

राजस्थान दिवस के अवसर पर, यह कितना आश्चर्य जनक है कि देश को आजाद हुए ६५ वर्ष हो गए है फिर भी राजस्थानी भाषा को केंद्रीय सरकार ने मान्यता नहीं दी है और इसे सविंधान की आठवी सूचि में शामिल नहीं किया है | कुछ लोगो को भ्रम है की राजस्थानी सिर्फ एक बोली है और यह भाषा नहीं है | वास्तिवकता यह है कि राजस्थानी भाषा लगभग १२०० वी शताब्दी से बोली और लिखी जा रही है | इस भाषा में लगभग चार लाख हस्त लिखित पोथिया, लाखो पुस्तके है और १३४ रीति ग्रन्थ है | राजस्थानी भाषा में लगभग चार लाख शब्द है तथा दो लाख दस हजार शब्द तो एक शब्दकोष में है | लगभग ६० शब्दकोश बने हुए है | आजादी के पहले यह कई रियासतों की भाषा थी | लगभग ६ कहावतो के शब्दकोश बने हुए है तथा अन्य कई कहावतो की पुस्तके है | राजस्थानी भाषा की व्यवस्थित और वैज्ञानिक व्याकरण कई लेखको की छपी हुई है | तीज त्यौहार और शादी ब्याव के लिए हजारो गीत है जो गाए जाते है | राजस्थानी भाषा में गए वर्षो में लगभग 100 फिल्मे बनी है |

यह बहुत दुःख कि बात नहीं है की बहुत सी ऐसी भाषाओ को मान्यता मिल गई है जिनके बोलने वालो की संख्या राजस्थानी बोलने वालो से काफी कम है | पुरे विश्व में राजस्थानी बोलने, समझने वालो की संख्या लगभग १० करोड़ है | कुछ लोगो के मस्तिक में भ्रम है की राजस्थानी की अपनी कोई लिपि नही है इस लिए इसे मान्यता नहीं मिली है, पर सविधान ने उन आठ भाषाओ को मान्यता दे रखी है जिनकी लिपि देवनागरी है, जैसे की मराठी, नेपाली, कोंकणी, काश्मीरी, डोगरी, मैथली, संथाली और संस्कृत, तो फिर राजस्थानी भाषा जिसकी लिपि भी देवनागरी है को मान्यता देने में केंद्रीय सरकार क्यों देरी कर रही है |

जिसे भाषा विज्ञान का ज्ञान नहीं है वे कहते है कौन सी राजस्थानी ? उन्हें पता नहीं की ढुढाडी, मेवाड़ी, हाडोती, मारवाड़ी, मेवाती आदि राजस्थानी भाषा की 73 बोलिया है, हिंदी की 43, मराठी की 65, तेलगु की 36, तमिल की 22, कन्नड़ की 32, कोंकणी की 16, बंगाली की 15, पंजाबी की 29, गुजराती की 27 बोलिया है, तथा भाषा वैज्ञानिको के अनुसार जिस भाषा की ज्यादा बोलिया होती है वह भाषा उतनी ही सम्रद्ध और सामर्थ्यवान मानी जाती है |

गुजरात में राजस्थान से आये हुए लाखो परिवार आज राजस्थानी भाषा बोलते है तथा राजस्थान की गौरव शाली परम्पराओ से जुड़े हुए है | पर केंद्र की भारत सरकार द्वारा राजस्थानी भाषा को मान्यता नहीं देने और उसे सविधान की आठवी सूचि में शामिल नहीं करने से उनमे आज रोष है | इसलिए राजस्थानी भाषा को मान्यता दिलाने के लिए के लिए, अब गुजरात में रहने वाले राजस्थानी लोग भी आगे आ रहे है | कुछ ही दिन पहले एक निजी टीवी चैनल और एक निजी पत्रिका के सवांददाता के सामने इन लोगो ने अपना दुःख व्यक्त किया और भारत की केंद्रीय और राजस्थान की सरकार से प्रार्थना की वे दोनों मिल कर इस पुरानी समस्या का शीघ्र समाधान करे और राजस्थानी भाषा बोलने वाले लगभग १० करोड़ लोगो के साथ न्याय करे | इस चैनल के सवाददाता के सामने निम्न व्यक्तियों ने अपने विचार रखे | भारतीय अंतरिक्ष अनुसन्धान संगठन (इसरो) के कई वैज्ञानिक व उनके परिवार के सदस्य इसमे शामिल है, जिनमे प्रमुख है, आश्विन दवे, सूर्यकांत शर्मा, नाथू सिंह मेहता, हरीश सेठ, नरेश भटनागर, मीना सेठ, नीला भटनागर, नीरजा शर्मा, श्रीमती आश्विन दवे, है | इनके आलावा, अहमदाबाद में कई वर्षो से रहने वाले मूल रूप से राजस्थान से आये हुई है बड़े उद्योगपतियो और व्यापारियों ने भी इस साक्षात्कार में भाग लिया, जिनमे प्रमुख है: जबर राज सकलेचा, अध्यक्ष जोधपुर एसोसिएशन, अहमदाबाद, राजीव छाजेड, अन्तराष्ट्रीय अध्यक्ष,लायंस क्लब ऑफ़ कर्णावती ३२३ बी, कुशल भंसाली, MP ग्रुप ऑफ़ इंडस्ट्री, उत्तम चंद मेहता, पूर्व अध्यक्ष, मारवाड़ संघ, राजेंद्र मेहता, अध्यक्ष लायंस क्लब ऑफ़ कर्णावती, एम एम सिंघी, पूर्व अध्यक्ष, राजस्थान हॉस्पिटल, गनपत राज चोधरी, अध्यक्ष जीतो, फिल्म निदेशक तारा चंद जैन, केवल चंद भटेवरा, अध्यक्ष राजस्थान स्थानकवासी मेवाड़ संघ, विजय भट्ट (दक्षिण अफ्रीका में कार्यरत, पर अभी अहमदाबाद आये हुए), ओम प्रकाश तोला, मंजू तोला, और अन्य महानुभाव है जिन्होंने भी ऐसे ही विचार व्यक्त किये या इस दिशा में कई वर्षो से कार्य कर रहे है, जिनमे प्रमुख है, गिरवर सिंह शेखावत, भवानी सिंह शेखावत, प्रेम चन्द पटवा, पदम् कोठारी, प्रमोद बागरेचा, शांति लाल नाहर, अध्यक्ष मेवाड़ जय संघ, पुष्पलता शर्मा, जगदीश शर्मा, मंजू भटनागर, भूपति राम साकरिया (आनंद) , अम्बादान रोहडिया (राजकोट) प्रसिद्ध वैज्ञानिक प्रोफेसर नरेन्द्र भंडारी, प्रोफेसर राजमल जैन, इत्यादि |

सुरेन्द्र सिंह पोखरना (भूतपूर्व वैज्ञानिक, भारतीय अन्तरिक्ष अनुसन्धान संगठन)