रानी की वाव गुजरात का गौरव है। इतिहास गवाह है बहुत से राजा महाराजाओं ने अपनी रानियों की स्मृति में यादगार स्थलों का निर्माण करवाया है लेकिन रानी की वाव स्थल कुछ हट कर है। मान्यता है कि इसे रानी उदयमति ने अपने पति सोलंकी वंश के संस्थापक भीमदेव-1 की याद में बनवाया था। इस तथ्य की पुष्टी 304 एडी में मेरुंग सूरी द्वारा रचित 'प्रबंध चिंतामणि' में भीमदेव-1 की याद में उदयमति द्वारा बनाए गए स्थलों के विस्तरित वर्णन से होती है।
रानी की वाव 11वीं सदी में बनी एक ऐसी सीढ़ीदार बावली है जो काफी विकसित और विस्तृत होने के साथ-साथ प्राचीन भारतीय शिल्प के सौंदर्य का भी एक अनुपम उदाहरण है। यह भारत में बावलियों के सर्वोच्च विकास का एक सुन्दर नमूना है। 'रानी की वाव' देश की सबसे अच्छी वाव में से एक होने के साथ एक प्राचीन राजधानी की प्रख्यात धरोहर भी है। गुजरात की वाव सिर्फ पानी के संग्रह या सामाजिक व्यवस्था के लिए नहीं है किन्तु साथ ही आध्यात्मिक महत्व भी रखती थी।
रानी की वाव 64 मीटर लंबी, 20 मीटर चौड़ी तथा 27 मीटर गहरी है। असल दस्तावेजों से ज्ञात होता है की इसे सात मंजिला बनाया गया था लेकिन वर्तमान समय में यह पांच मंजिला ही है। यह इमारत मारु-गुर्जर शैली की वास्तुकाल में निर्मित है। बहुधा मूर्तिकलाओं में विष्णु भक्ति दशावतार रुप में दिखती है। जिनमें भगवान के वराह, नृसिंह, राम तथा कलकी के खूबसूरत श्री रूप हैं। इसके अतिरिक्त मां दुर्गा को राक्षस महिषासुर का संहार करते हुए प्रर्दशित किया गया है। खूबसूरत अप्सरा के चित्र में 16 तरह के श्रृंगार दिखाए गए हैं। जल स्तर के समीप ही भगवान श्री हरि विष्णु का भी चित्रण हैं।
2001 तक तो यहां आने वाने सैलानी रानी की वाव में नीचे जल तक जा कर इसकी खूबसूरती का आनंद ले सकते थे मगर भुज में आए भूकंप के बाद इसका ढ़ांचा कमजोर हो गया। सैलानीयों की सुरक्षा को मध्य नजर रखते हुए भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण ने सैलानीयों के घुमने के लिए एक परिसीमा निश्चिच की है।
11वीं शताब्दी के सीढ़ीदार कुएं ‘रानी की वाव’ को 22 जून 2014 को यूनैस्को की विरासत सूची में शामिल किया गया है। यह भारतीयों के लिए गर्व का विषय है। अगली बार आप गुजरात की यात्रा करें तो रानी की वाव’ अवश्य जाएं। वह हमारी महान कला और संस्कृति का शानदार प्रतीक है। यूनैस्को ने इसे भूजल संसाधनों के इस्तेमाल में प्रौद्योगिकीय विकास का बेजोड़ नमूना बताया है।
गुजरात से यूनेस्को की विश्व विरासत सूची में शामिल होने वाली रानी की वाव दूसरी ऐतिहासिक व सांस्कृतिक महत्व का स्थल है। इससे पहले वर्ष 2004 में पंचमहाल जिले में स्थित चांपानेर-पावागढ़ किले को भी यूनेस्को विश्व विरासत सूची में शामिल कर चुका है। गत वर्ष अक्टूबर में यूनेस्को की वर्ल्ड हैरिटेज समिति के सदस्यों ने विशेषज्ञों के साथ रानी की वाव का दौरा किया था। इस दौरान यूनेस्को के विशेषज्ञों ने इस वाव की भूमिगत जल के स्त्रोत के उपयोग व जल प्रबंधन प्रणाली के रूप में काफी सराहा था।
रानी की वाव 11वीं सदी में बनी एक ऐसी सीढ़ीदार बावली है जो काफी विकसित और विस्तृत होने के साथ-साथ प्राचीन भारतीय शिल्प के सौंदर्य का भी एक अनुपम उदाहरण है। यह भारत में बावलियों के सर्वोच्च विकास का एक सुन्दर नमूना है। 'रानी की वाव' देश की सबसे अच्छी वाव में से एक होने के साथ एक प्राचीन राजधानी की प्रख्यात धरोहर भी है। गुजरात की वाव सिर्फ पानी के संग्रह या सामाजिक व्यवस्था के लिए नहीं है किन्तु साथ ही आध्यात्मिक महत्व भी रखती थी।
रानी की वाव 64 मीटर लंबी, 20 मीटर चौड़ी तथा 27 मीटर गहरी है। असल दस्तावेजों से ज्ञात होता है की इसे सात मंजिला बनाया गया था लेकिन वर्तमान समय में यह पांच मंजिला ही है। यह इमारत मारु-गुर्जर शैली की वास्तुकाल में निर्मित है। बहुधा मूर्तिकलाओं में विष्णु भक्ति दशावतार रुप में दिखती है। जिनमें भगवान के वराह, नृसिंह, राम तथा कलकी के खूबसूरत श्री रूप हैं। इसके अतिरिक्त मां दुर्गा को राक्षस महिषासुर का संहार करते हुए प्रर्दशित किया गया है। खूबसूरत अप्सरा के चित्र में 16 तरह के श्रृंगार दिखाए गए हैं। जल स्तर के समीप ही भगवान श्री हरि विष्णु का भी चित्रण हैं।
2001 तक तो यहां आने वाने सैलानी रानी की वाव में नीचे जल तक जा कर इसकी खूबसूरती का आनंद ले सकते थे मगर भुज में आए भूकंप के बाद इसका ढ़ांचा कमजोर हो गया। सैलानीयों की सुरक्षा को मध्य नजर रखते हुए भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण ने सैलानीयों के घुमने के लिए एक परिसीमा निश्चिच की है।
11वीं शताब्दी के सीढ़ीदार कुएं ‘रानी की वाव’ को 22 जून 2014 को यूनैस्को की विरासत सूची में शामिल किया गया है। यह भारतीयों के लिए गर्व का विषय है। अगली बार आप गुजरात की यात्रा करें तो रानी की वाव’ अवश्य जाएं। वह हमारी महान कला और संस्कृति का शानदार प्रतीक है। यूनैस्को ने इसे भूजल संसाधनों के इस्तेमाल में प्रौद्योगिकीय विकास का बेजोड़ नमूना बताया है।
गुजरात से यूनेस्को की विश्व विरासत सूची में शामिल होने वाली रानी की वाव दूसरी ऐतिहासिक व सांस्कृतिक महत्व का स्थल है। इससे पहले वर्ष 2004 में पंचमहाल जिले में स्थित चांपानेर-पावागढ़ किले को भी यूनेस्को विश्व विरासत सूची में शामिल कर चुका है। गत वर्ष अक्टूबर में यूनेस्को की वर्ल्ड हैरिटेज समिति के सदस्यों ने विशेषज्ञों के साथ रानी की वाव का दौरा किया था। इस दौरान यूनेस्को के विशेषज्ञों ने इस वाव की भूमिगत जल के स्त्रोत के उपयोग व जल प्रबंधन प्रणाली के रूप में काफी सराहा था।
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