सोमवार, 28 जनवरी 2013

धन्य हुआ कलशाचल, निज धाम बिराजे पीरजी




श्रीमहारुद्र यज्ञ, शिखर कलश स्थापना, ध्वजारोहण, पीर शांतिनाथ महाराज की मूर्ति स्थापना व भंडारा महोत्सव संपन्न


उमड़ा आस्था का ज्वार...




पहुंचे एक लाख से अधिक श्रद्धालु

जन जन के आराध्य पीर शांतिनाथ जी के भंडारा महोत्सव में पहुंचे एक लाख से अधिक श्रद्धालु, पूरा शहर रहा बंद। अनेक प्रवासी भी हुए शामिल। कलशाचल पर पर्वत के चप्पे-चप्पे मौजूद रहे श्रद्धालु।

आतुर रहे श्रद्धालु

मनमोहक प्रतिमा के दर्शन के लिए उमड़ा जनसैलाब। पीरजी की मूर्ति के दर्शन के लिए आतुर रहते थे लोग। छोटे से बुलावे पर भी चले आते थे नाथजी को आज श्रद्धालुओं ने किया नमन।

अथाह जनसमूह

अंतिम यात्रा में उमड़ा अपार जनसमूह, श्रद्धालुओं ने लगाए जयकारे और पुष्प वर्षा कर भंडारे का कार्यक्रम। कलशाचल पर्वत पर नजर आया अथाह श्रद्धा का ज्वार।

  जालोर वाद्ययंत्रों की गूंज के साथ ध्यान मुद्रा, शांत स्वरूप और कठोर तपस्वी नाथजी के भंडारा महोत्सव का समापन रविवार को सैकड़ों साधु संतों की मौजूदगी में हुआ। भंडारा महोत्सव में श्रद्धालुओं का सैलाब उमड़ पड़ा। कलशाचल पर्वत भी पीरजी के जयकारों व पुष्य वर्षा से धन्य हो गया। भंडारा महोत्सव में राज्यभर से आए श्रद्धालुओं ने बढ़ चढ़कर भाग लिया। रविवार सवेरे पीरजी की मनमोहक व शांत स्वरूप मुद्रा में विराजित मूर्ति के दर्शन करने के लिए भी श्रद्धालु आतुर नजर आए। मंदिर परिसर में नाथजी के जयघोष से गूंज उठा। उड़ती गुलाल व बैंड बाजों की मधुर धुन के साथ ही सिरे मंदिर भंवर गुफा स्थित मंदिर की प्रतिष्ठा भी हुई। छह दिनों तक चले भंडारा, मूर्ति स्थापना, प्रतिष्ठा महोत्सव में लाखों श्रद्धालुओं ने पीरजी के दर्शन और परिवार के लिए खुशहाली की कामना की। भंडारा महोत्सव की पूर्व संध्या शनिवार को मंदिर परिसर में भजनों की स्वर लहेरिया गूंजती रही। भंडारा महोत्सव के तहत विधायक रामलाल मेघवाल ने मुख्यमंत्री अशोक गहलोत का संदेश पढ़कर सुनाया। साथ ही भाजपा जिलाध्यक्ष नारायणसिंह देवल ने भी महोत्सव में पहुंचकर पूर्व मुख्यमंत्री वसुंधरा राजे सिंधिया के संदेश सुनाया। महोत्सव में सीआई मांगीलाल, डिप्टी सत्येंद्रपाल सिंह, यातायात विभाग प्रभारी विष्णुदत्त, पूर्व विधायक जोगेश्वर गर्ग, सत्यनारायण अग्रवाल, कांतिलाल सोनी, बंशीलाल सोनी, खसाराम माली, अमर सिंह, माधो भारती, मनीष जोधवानी, हिंदू युवा संगठन के जिलाध्यक्ष सुरेश, करणराम देवासी, लक्ष्मणसिंह मेवाड़ा समेत कई श्रद्धालु मौजूद थे। कार्यक्रम का संचालन अनिल शर्मा ने किया। 

करीब एक लाख से ज्यादा श्रद्धालु पहुंचे

सूरज की पहली किरण से पूर्व ही श्रद्धालुओं का रेला पीर शांतिनाथ महाराज के भंडारे में पहुंचने के लिए उत्साहित रहा। तलहटी से लेकर सिरे मंदिर तक श्रद्धालु नाथजी के जयकारे लगाते हुए चल रहे थे। ज्यों-ज्यों सूर्यदेव ने अपनी आभा बिखेरनी शुरू त्यों त्यों श्रद्धालु की तादात भी बढ़ती रही। यहां तक कि दोपहर को सिरे मंदिर की विहंगम पहाड़ी पर भी जगह-जगह श्रद्धालु नजर आए। कई स्थानों पर भीड़ ज्यादा होने से श्रद्धालुओं सिरे मंदिर पहुंचने में काफी समय लगा। पहुंचने के बाद श्रद्धालु कतारों में लगकर पीरजी की मूर्ति के दर्शन किया। दर्शन महाप्रसादी का आनंद लिया। वहीं भंडारे में हजारों की तादात में श्रद्धालुओं ने भंडारे में प्रसादी का आनंद लिया।

भजन गायकों ने बांधा समां

भंडारा व प्रतिष्ठा महोत्सव के तहत शनिवार शाम को गादीपति गंगानाथ महाराज के सानिध्य में भजन संध्या कार्यक्रम का आयोजन किया गया। भजन संध्या में गायक कलाकार चेतनगिरी महाराज, मोइनुद्दीन मनचला, चेतनपुरी, किशोर भारती, जोगभारती, पीयूष त्रिवेदी, निर्मलनाथ महाराज, राजू वैष्णव समेत गायकों ने भजनों की प्रस्तुतियां दी। इस मौके उप मुख्य सचेतक रतन देवासी, गोपाराम मेघवाल समेत कई श्रद्धालु मौजूद रहे।

मार्केट रहा बंद

पीरजी के भंडारा महोत्सव व प्रतिष्ठा को लेकर जिला मुख्यालय का बाजार पूर्णत: बंद रहा। इस दौरान लोगों में श्रद्धा व आस्था नजर आई। पूरा शहर भी पीरजी के भंडारे में शरीक हुआ। लोगों ने पीरजी की मू्ति के दर्शन कर पुष्प अर्पित किए।

बाजार रहा बंद

पीरजी के भंडारा महोत्सव व प्रतिष्ठा को लेकर जिला मुख्यालय का बाजार पूर्णत: बंद रहा। इस दौरान लोगों में श्रद्धा व आस्था नजर आई। पूरा शहर भी पीरजी के भंडारे में शरीक हुआ। लोगों ने पीरजी की मूर्ति के दर्शन कर पुष्प अर्पित किए।

जालोर. प्रतिष्ठा महोत्सव के समापन पर साधु-संतों का अभिनंदन किया गया। भास्कर

साधु-संतों का हुआ बहुमान त्न छह दिवसीय भंडारा व प्रतिष्ठा महोत्सव के तहत गादीपति गंगानाथ महाराज के सानिध्य में साधु संतों का बहुमान हुआ। इस दौरान गादीपति ने विभिन्न राज्यों व जिले से पधारे मठाधीशों को शॉल व भेंट अर्पित की, जिसमें गोरखपुर (उ.प्र.) के महंत अवैधनाथ महाराज, बड़ा आसन राताढूंढा (नागौर) के पीर मंगलनाथ महाराज, शिलेश्वर मठ उम्मेदाबाद (गोल) महंत रावतभारती महाराज, चिडिय़ानाथ का आसन पालासनी जोधपुर के महंत कैलाशनाथ महाराज, कदली मठ मैंगलोर के महंत राजा संध्यानाथ महाराज, हेमशाही मठ कवला महंत हरिपुरी महाराज, थांवला मठ महंत विष्णुभारती महाराज, पीपलेश्वर मठ भैंसवाड़ा महंत रणछोड़भारती महाराज, सारणेश्वर महादेव मंदिर सरत महंत शंकरस्वरूप ब्रह्मचारी महाराज, ब्रह्मधाम आसोतरा महंत तुलसाराम महाराज, राजाराम आश्रम शिकारपुरा महंत दयाराम महाराज, अस्थरल बोहर हरियाणा महंत चांदनाथ महाराज, बिसनगर मेहसाणा (गुजरात) महंत गुलाबनाथ महाराज, मोहिवाड़ा मठ धुंबड़ा महंत राजभारती महाराज, भालणी मठ महंत देवगिरी महाराज, जागनाथ मठ नारणावास महंत गंगाभारती महाराज, मलकेश्वर मठ महंत सेवाभारती महाराज, बिसलपुर महंत दयानाथ महाराज, पुनास मठ भीनमाल महंत बाबूगिरी महाराज व सुरेश्वर मठ पोडगरा पर्बतगिरी महाराज समेत प्रदेश व जिलेभर में साधु संतों मौजूद रहे।

पंचकुंडीय यज्ञ में दी आहुतियां

प्रतिष्ठा को लेकर सिरे मंदिर प्रांगण में पंचकुंडीय यज्ञ शाला में पिछले तीन दिन से चल हवन कार्यक्रम की पूर्णाहुति हुई। पंडितों के वैदिक मंत्रोच्चार के साथ यजमानों ने प्रधान हवन कुंड, पूर्व हवन कुंड, पश्चिम हवन कुंड, उत्तर हवन कुंड व दक्षिण हवन कुंड में आहुतियां दी जाएगी। एक तरफ वैदिक मंत्रोच्चार और दूसरे तरफ नाथजी के जयकारों से पूरा परिवेश धार्मिक आस्था के रंग में रंगा रहा।

कलशचल पर्वत पर हुई पुष्प-वर्षा

प्रतिष्ठा व भंडारा महोत्सव के अंतिम दिन कलशाचल पर्वत फूल मालाओं से सुशोभित रहा। मंदिर की प्रतिष्ठा व मूर्ति स्थापना के दौरान लाभार्थी परिवार की ओर से हैलीकॉप्टर से पुष्प वर्षा की गई। पूरा कलशचल पर्वत फूलों से नहा उठा। महोत्सव के समापन पर लाभार्थी परिवार द्वारा बंदूक से सलामी दी गई।

धूमधाम से हुई प्रतिष्ठा

कलशाचल पर्वत स्थित सिरे मंदिर परिसर में रविवार सुबह शुभ मुहूर्त में गादीपति गंगानाथ महाराज समेत कई साधु-संतों के सानिध्य में मंदिर की प्रतिष्ठा हुई। साथ ही लाभार्थी परिवारों द्वारा मूर्तियों, कलश व इंडा की पूजा अर्चना कर विराजित किया गया। इसके साथ ही पीरजी के समाधि स्थल पर पीर शांतिनाथ महाराज की मूर्ति स्थापित की गई। इस दौरान बैंड बाजों की धुन के साथ पीरजी के जयकारे व उड़ती गुलाल से माहौल भक्तिमय बना रहा। वहीं पंडितों के वैदिक मंत्रोच्चार के साथ श्रीमहारुद्र यज्ञ की पूर्णाहुति हुई। वहीं एक दिन पूर्व शनिवार को सवेरे शुभ मुहूर्त में देवताओं का पंचांग पूजन, महारुद्र यज्ञ आवर्तन और दोपहर में स्थापित देवताओं के लिए हवन, रुद्राभिषेक, शिखर पूजन, देवस्नपन एवं शय्याधिवास व आरती हुई, जिसमें श्रद्धालुओं ने आरती के दर्शन कर मन्नतें मांगी।

 

चढ़ावों के लाभार्थियों का सम्मान आज

भंडारा महोत्सव के तहत सोमवार को गादीपति गंगानाथ महाराज के सानिध्य में विभिन्न चढ़ावों के लाभार्थी परिवार का सम्मान किया जाएगा। आयोजन समिति के बंशीलाल सोनी व माधोभारती ने बताया कि छह दिवसीय महोत्सव के तहत शिखर, कलश, मूर्ति, भोजन, चादर, केशर व पूजा समेत विभिन्न चढ़ावों के लाभार्थी परिवार को माला पहनाकर स्वागत किया जाएगा।



सामूहिक दुष्कर्म के आरोपियों की गिरफ्तारी के लिए निकाला मौन जुलूस


सामूहिक दुष्कर्म के आरोपियों की गिरफ्तारी के लिए निकाला मौन जुलूस 


भील समाज, करणी सेना, शिव सेना समेत विभिन्न संगठनों में आक्रोश, तीन दिन बाद भी पुलिस नहीं पकड़ पाई दुष्कर्म के आरोपी 

शिव नाबालिग लड़की के साथ सामूहिक दुष्कर्म के आरोपियों की गिरफ्तारी की मांग को लेकर विभिन्न संगठनों ने कस्बे में मौन जुलूस निकाला। थानाधिकारी को ज्ञापन सौंपकर मामला दर्ज होने के तीन दिन बाद भी आरोपियों को गिरफ्तार नहीं करने पर रोष जताया। साथ ही चेतावनी दी कि आगामी 24 घंटे में दुष्कर्म के आरोपियों को गिरफ्तार नहीं किया गया तो उग्र आंदोलन किया जाएगा। सोमवार को भीम समाज का प्रतिनिधि मंडल राज्यपाल के नाम ज्ञापन कलेक्टर को ज्ञापन सौंपेंगे। 

उपखंड क्षेत्र के पूषड़ गांव की एक नाबालिग लड़की के साथ सामूहिक दुष्कर्म का मामला पुलिस थाना शिव में 25 जनवरी को दर्ज करवाया गया था, मगर अभी तक आरोपियों को पुलिस गिरफ्तार नहीं कर पाई है। रविवार को भील समाज के पूर्व जिलाध्यक्ष चांदाराम भील, सचिव जेठाराम व शिव के पूर्व विधायक डॉ. जालमसिंह रावलोत के नेतृत्व में भील समाज, शिव सेना, करणी सेना समेत विभिन्न संगठनों के लोगों ने कस्बे में मौन जुलूस निकाला। यह जुलूस कस्बे से होते हुए पुलिस थाने पहुंचा। जहां पर थानाधिकारी को ज्ञापन सौंपकर आरोपियों को गिरफ्तार करने की मांग रखी। थानाधिकारी ने आश्वस्त किया कि आरोपियों को गिरफ्तार करने की कार्रवाई जारी है, जल्द ही गिरफ्तार करेंगे। समाज के भवन में आयोजित बैठक को संबोधित करते हुए पूर्व जिलाध्यक्ष चांदाराम भील ने कहा कि नाबालिग के साथ सामूहिक दुष्कर्म का मामला दर्ज होने के तीन बाद भी आरोपियों को पुलिस गिरफ्तार नहीं कर पाई है। जबकि घानेरी नाडी प्रकरण में घटना के ही दिन आरोपियों को गिरफ्तार कर दिया था। दलित वर्ग की उपेक्षा की जा रही है। आगामी दिनों में उग्र आंदोलन किया जाएगा। पूर्व विधायक डॉ. जालमसिंह रावलोत ने कहा कि तीन दिन से आरोपी खुले में घूम रहे हैं। पुलिस मामले को गंभीरता से नहीं ले रही है। इससे पूरे हिंदु वर्ग में रोष है। बैठक में सोनाराम भील, दानाराम, चुतराराम, चेतनराम, भाजपा ब्लॉक अध्यक्ष पुरुषोत्तम खत्री, भारतीय किसान संघ ब्लॉक अध्यक्ष पूर्णसिंह राजपुरोहित, कल्याणसिंह महाबार, पदमसिंह राजगुरू, भीयाड़ सरपंच मुरारसिंह, छगनसिंह राजपुरोहित, बख्तावरसिंह कोटड़ा समेत बड़ी तादाद में लोग मौजूद थे।

रविवार, 27 जनवरी 2013

दर्जन भर जिन्दा बम मिलने से सनसनी


 दर्जन भर जिन्दा बम मिलने से सनसनी


दर्जन भर जिन्दा बम मिलने से सनसनी
/ बाड़मेर
राजस्थान के बाड़मेर शहर में एक नहीं दो नहीं करीब एक दर्जन से
भी ज्यादा जिन्दा बम मिलने से सनसनी फेल गई दरसल जिन्दा बम इतनी मात्रा
में एक साथ मिलने से पुरे बॉर्डर होम गार्ड के पुरे परिसर रह रहे जवानो
में खोफ छा गया बाड़मेर शहर बॉर्डर होम गार्ड परिसर में खुदाई का काम चल
रहा था इसी दोहरान जब खुदाई चल रही थी तो मजदूरो को बम नुमा वस्तु को
देखा तो अचानक ही डर गया और उसके बाद जब उसके बाद आस -पास इलाके की
खुदाई की गई तो दर्जन से भी ज्यादा जिन्दा बम मिले और उसके बाद पुलिस ने
सेना को बम निष्क्रिय करने के लिए बुलाया है लेकिन बम मिलने के बाद
इलाके में भय व्याप्त हैं और तो और इसके ठीक पीछे मात्र 20 मीटर दूरी पर
सैकड़ो परिवार निवास करते है
बाड़मेर की रेतीली मीन आये दिन पुराने बम उगल रही
हैं। इससे पहले बाड़मेर के सीमावर्ती इलाकों में लगातार ऐसे मामले सामने
आते रहे हैं लेकिन इन दिनों बाड़मेर में भी इस तरह की घटनाए सामने आ रही
हैं। दरअसल बाड़मेर के लक्ष्मी नगर आकाशवाणी के आगे स्थित बॉर्डर
होमगार्ड कार्यालय में स्टेडियम निर्माण का कार्य शुरू होने के बाद जब
मैदान सफाई कार्य शुरू किया गया तो मजदूर भयाक्रांत हो गये क्यूंकि जब
ट्रेक्टर के माध्यम से सफाई की जा रही थी तभी ट्रेक्टर के नीचे किसी धातु
की वस्तु आने से जोरदार आवाज़ आई इस पार मजदूरों ने वहां से रेत हटाई तो
रेत के नीचे बक्से में पुराने जंग लगे काफी बम वहां दबाये हुए मिले।
मजदूरों ने बम मिलने के बारे में होमगार्ड के अधिकारीयों को भी जानकारी
दी और उसके बाद कोतवाली थाना पुलिस को इसकी सूचना दी गई।। जिला पुलिस
अधिक्षक ने थानाधिकारी द्वारा सूचना दिए जाने के बाद सेना को इसकी लिखित
सूचना देकर बम निरोधक दस्ता उपलब्ध करवाने की मांग की और इन बमो को नष्ट
करने के लिए कार्यवाही करने की मांग की गई है। बम मिलने से इलाके में भय
व्याप्त हैं और तो और इसके ठीक पीछे मात्र 20 मीटर दूरी पर सैकड़ो परिवार
निवास करते हैं ऐसे में अगर कोई हादसा हो जाए तो इसकी जिम्मेदारी किसकी
होगी इसका जवाब देने वाला कोई भी नजर नहीं आ रहा हैं। कोतवाली पुलिस ने
इस मामले में जरुर त्वरित कार्यवाही करते हुए अपना कर्तव्य निभाने का काम
करते हुए सम्बन्धित सेना के अधिकारीयों को सूचना दे दी हैं। कोतवाली थाना
के कार्यवाहक थानाधिकारी महेश श्रीमाली के मुताबिक़ इसको नष्ट करने के लिए
सेना के बम निरोधक दस्ता आएगा तभी इसका निस्तारण सम्भव हैं।

आये दिन आप और हम जैसलमेर के चांधन और लाठी स्थित
फायरिंग रेंज में पुराने बम फटने से होने वाली जन हानि की घटनाएं सुनते आ
रहे हैं आम तोर पर पुराने बम्बो को निष्क्रिय करने में कई दिन लग जाते है
लेकिन सबसे बडा सवाल यह है कि अगर इस की सूचना मिलने के बाद भी कोई
कार्यवाही नहीं हुई तो इस बात से यह अंदाजा लगाया जा सकता हैं कि इस बड़ी
घटना पर कितनी गम्भीरता सम्बन्धित जिम्मेदारों के द्वारा दिखाई जा रही
हैं। हालाँकि पुलिस के द्वारा सेना को कई दिन पहले ही लिखित में इस बात
की सूचना दी गई थी।




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CHANDAN SINGH BHATI

अठारह शिक्षकों के खिलाफ मामला

अठारह शिक्षकों के खिलाफ मामला

बाड़मेर। फर्जी दस्तावेज प्रस्तुत कर तृतीय श्रेणी शिक्षक की नौकरी हासिल करने वाले 18 शिक्षको के खिलाफ जिला शिक्षा अधिकारी प्रारम्भिक शिक्षा ने कोतवाली पुलिस को परिवाद भिजवाया है। ये शिक्षक 1999 में जिले की विभिन्न पंचायत समितियों मे नियुक्त हुए थे।

जिला परिषद ने 1998 में तृतीय श्रेणी शिक्षकों की भर्ती की थी। इसमें वरीयता के आधार पर चयन हुआ। वरीयता में जिले के निवासियों व ग्रामीण क्षेत्र के लिए बोनस का प्रावधान था। इसे कई आशार्थियों ने उच्च न्यायालय व उच्चतम न्यायालय में चुनौती दी थी।

उच्चतम न्यायालय ने 30 जुलाई 2012 को निर्णय पारित करते हुए बोनस अंकों को अनुचित ठहराया। साथ ही 18 नवंबर 1999 के पpात बोनस अंक हटा नई वरीयता सूची जारी करने के निर्देश दिए। इसमें मूल पक्षकार याचिकाकत्ताüओं को नियुक्ति देने के निर्देश दिए थे। इस दौरान अठारह शिक्षकों ने कूटरचित दस्तावेज प्रस्तुत करते हुए खुद को मूल पक्षकार बता नौकरी हासिल कर ली। 23 अप्रेल 2005 को एक शिकायत पर विभागीय स्तर पर इसकी जांच प्रारंभ हुई।

विभाग ने इन शिक्षकों को नोटिस जारी किए तो उन्होंने उच्च न्यायालय से स्थगन आदेश ले लिया। 21 सितंबर 2012 को उच्च न्यायालय ने याचिकाएं खारिज कर दी। इसके बाद विभाग ने कार्रवाई प्रारंभ करते हुए 1 नवंबर 2012 को अठारह शिक्षकों की सेवाएं समाप्त कर दी। उच्च न्यायालय की डबल बैच में लगी याचिका भी खारिज हो गई। इस पर जिला शिक्षा अधिकारी प्रारंभिक शिक्षा ने सभी 18 शिक्षकों के खिलाफ परिवाद भिजवाया है।

ये हैं शिक्षक
उमेशचंद्र प्राथमिक विद्यालय भूताणियों की ढाणी चौहटन, राजवीरसिंह वेरनाडी सिवाना, अरूणसिंह इब्रे का तला चौहटन, लक्ष्मीनारायण सिणधरी, रविन्द्रसिंह मिठडिया कुआ बाड़मेर, नगेन्द्रसिंह खेराज का तला चौहटन, धर्मपालसिंह हदाणियों की ढाणी बायतु, होतीसिंह खारियापाना सिणधरी, भूपेन्द्रसिंह शहदाद का पार शिव, चंदनसिंह रामसरिया बायतु, मुकेशकुमार बांकियावास बालोतरा, विश्वंभरदयाल गुलन की नाडी धोरीमन्ना, लोकेन्द्रकुमार कापराउ चौहटन, कृष्णकुमार कुन्दनपुरा चौहटन, कृष्णपालसिंह चावड़ा शिव हाल बेढ़म भरतपुर, झमनलाल गुप्ता पनल की बेरी धोरीमन्ना, दानवीर शर्मा कमरूद्दीन की ढाणी बालोतरा हाल नदबई भरतपुर एवं भगवानदास इब्रे का तला चौहटन के खिलाफ मामले दर्ज हुए हैं।

परिवाद भिजवाया
मूल पक्षकार नहीं होते हुए भी फर्जी दस्तावेज प्रस्तुत कर नौकरी करने वाले 18 शिक्षकों के खिलाफ परिवाद भिजवाया है। इनकी सेवाएं पहले ही समाप्त कर चुके है। - पृथ्वीराज दवे, जिला शिक्षा अधिकारी प्रारंभिक शिक्षा

21 को फांसी की सजा के बाद दंगे,27 मरे

21 को फांसी की सजा के बाद दंगे,27 मरे

काहिरा। मिस्र की एक अदालत ने देश में गत वर्ष एक फुटबाल मैच के दौरान हुई हिंसक घटना में शामिल 21 लोगों को मौत की सजा सुनाई है। इस हादसे में 70 से अधिक लोगों की मौत हो गई थी और एक हजार से ज्यादा लोग घायल हो गए थे। अदालत के सजा का ऎलान करने के बाद से काहिरा में एक बार फिर से हिंसा शुरू हो गई है। फांसी की सजा पाए दोषियों के परिजनों ने इसके खिलाफ राजधानी काहिरा में विरोध प्रदर्शन शुरू कर दिए हैं जबकि अदालत ने इस मामले पर देश के शीर्ष मुफ्ती को अंतिम निर्णय लेने के लिए कहा है।

पोर्ट सईद स्टेडियम में हमले के 21 आरोपियों को फांसी की सजा सुनाए जाने के बाद हुई हिसंक वारदातों में दो पुलिसकर्मियों सहित कम से कम 27 लोगों की मौत हो गई और लगभग 200 घायल हो गए हैं।

सुरक्षा सूत्रों के अनुसार विरोध कर रहे पोर्ट सईद के लोगों ने कहा कि स्टेडियम पर हमले के मामले में उनके शहर के लोंगों को फंसाया गया है। उत्तेजित लोग जेल के समक्ष एकत्र हो गए और विरोध प्रदर्शन करने लगे। वहां से गोलियां चलने की भी आवाजें सुनाई दीं। इसी दौरान वहां मौजूद दो पुलिसकर्मियों को गोली मार दी गई। सड़कों पर भी उत्तेजित लोगों को उपद्रव करते देखा गया। एक प्रत्यक्षदर्शी ने बताया कि कुछ लोग पुलिस स्टेशन में घुस गए।

उल्लेखनीय है कि गत वर्ष फरवरी में अल मसरी और काहिरा अलअहली के बीच पोर्ट सईद के स्टेडियम में हुए एक मैच के दौरान दोनों क्लबों के प्रशंसकों के बीच हिंसा हो गई थी जिसमें 70 से अधिक लोगों की मौत हो गई थी और एक हजार से अधिक लोग घायल हो गए थे। एक फरवरी 2012 को हुए इस मैच के दौरान अल मसरी समर्थकों ने अल अहली समर्थकों पर चाकुओं, छड़ों, तलवारों, बोतलों और अन्य हथियारों से हमला कर दिया था। इस मामले में कुल 73 लोगों को आरोपी बनाया गया था जिनमें से 21 को मौत की सजा दी जा चुकी है जबकि शेष 52 आरोपियों को नौ मार्च को सजा सुनाई जाएगी।
हाईकोर्ट के जज ने देखी "विश्वरूपम"

चेन्नई। मद्रास हाईकोर्ट के न्यायाधीश के. वेंकटरमन ने जाने माने अभिनेता कमल हसन की विवादास्पद फिल्म "विश्वरूपम" की रिलीज पर फैसला देने के लिए शनिवार को कुछ मुस्लिम नेताओं के साथ यह फिल्म देखी। कमल ने "विश्वरूपम" को 25 जनवरी को रिलीज करने की घोषणा की थी लेकिन मुस्लिम संगठनों ने फिल्म के कुछ दृश्यों पर विरोध जताया कि इनमें समुदाय को गलत तरीके से दर्शाया गया है। विरोध के मद्देनजर तमिलनाडु सरकार ने सिनेमा थियेटरों को फिल्म की रिलीज दो हफ्ते तक टालने के आदेश दे दिए।

कमल की फिल्म निर्माता कंपनी राजकमल फिल्म्स इंटरनेशनल ने तमिलनाडु सरकार के इस फैसले के खिलाफ उच्च न्यायालय में याचिका दायर की है। न्यायाधीश वेंकेटरमन ने दोनों पक्षों की दलीलें सुनने के बाद कहा था कि वह 26 जनवरी को फिल्म देखने के बाद ही 28 जनवरी को यह निर्णय लेंगे कि इस फिल्म पर लगी रोक हटाई जाए या नहीं। इस बीच कर्नाटक में मैसूर पुलिस ने बताया कि फिल्म के प्रदर्शन के दौरान 50 से अधिक बदमाश बालाजी थियेटर में जबरन घुस गए और स्क्र ीन को क्षतिग्रस्त कर दिया। उन्होंने फिल्म देखने के लिए आए लोगों से थियेटर खाली करने को कहा।

भोजपुरी अभिनेत्री बोली,मेरा पति नपुंसक

भोजपुरी अभिनेत्री बोली,मेरा पति नपुंसक

पटना। मेरा पति नपुंसक है यह आरोप सामने आने के बाद महिला थाना पुलिस इस बात को ले परेशान रही कि कौन सी दफा में मुकदमा दर्ज किया जाए। काफी जद्दोजहद के बाद प्रताड़ना और मारपीट की धारा के साथ प्राथमिकी दर्ज की गई है। पुलिस का कहना है कि छानबीन जारी है।

भोजपुरी अभिनेत्री तनुश्री अपनी मां नीलम ठाकुर व बहन पद्मजा उर्फ पूजा के साथ दो दिन पूर्व डीआइजी के यहां गई और बहनोई के खिलाफ आवेदन दिया। जिसके बाद मामले को महिला थाने के सुपुर्द कर दिया गया था। दो दिनों से महिला थानेदार मृदुला कुमार दोनों पक्षों के साथ मामले पर माथापच्ची कर रही थीं। पुलिस के मुताबिक समस्या यह कि कभी पूजा साथ रहने की बात कहती, तो कभी मुकर जाती। दो दिनों की जद्दोजहद के बाद समझौता न होने पर गुरूवार की देर शाम कांड संख्या 2-13 दर्ज किया गया। पूजा का आरोप है कि उसका पति नपुंसक है, अपनी कमी छिपाने के लिए प्रताडित करता है, कमरे में बंद रखता है, मारता-पीटता है।

एक साल पहले शादी हुई थी, मैरिज ब्यूरो के जरिए। हालांकि गांधी नगर कांटी फैक्ट्री के पास रहने वाले आरोपति पति रमेश का कहना था कि उसका मेडिकल करा लिया जाए। पत्नी ड्रग लेने की आदी है, शादी के बाद से पति-पत्नी के संबंध स्थापित नहीं हुए। करीब जाते ही शोर मचाने की धमकी देती है। पूजा मुजफ्फरपुर हरिसभा निवासी व खुद को भाजपा नेत्री बताने वाली प्रो. नीलम ठाकुर की बेटी है।

शनिवार, 26 जनवरी 2013

रेप के मामले में फंसे आईपीएस को दे दिया राष्‍ट्रपति पुरस्‍कार!


रेप के मामले में फंसे आईपीएस को दे दिया राष्‍ट्रपति पुरस्‍कार!
नई दिल्‍ली. गणतंत्र दिवस के मौके पर इस साल के लिए घोषित पुरस्‍कारों पर विवाद शुरू हो गया है। छत्‍तीसगढ़ पुलिस में आईजी एसआरपी कल्‍लुरी को सराहनीय सेवा के लिए राष्‍ट्रपति पुरस्‍कार दिए जाने का ऐलान किया गया है। कल्‍लुरी की अगुवाई में पुलिस पर सरगुजा जिले की एक आदिवासी महिला से रेप का आरोप है। 1994 बैच के आईपीएस अफसर कल्‍लुरी पर लेधा बाई नाम की महिला से रेप करने और अन्‍य पुलिसकर्मियों को भी ऐसा करने के आदेश देने के आरोप हैं।

दक्षिण भारत की जानी-मानी गायिका एस जानकी ने पद्म भूषण लेने से इनकार कर दिया है। वहीं, दो बार ओलिंपिक में मेडल जीतने वाले पहलवान सुशील कुमार ने पद्म अवॉर्ड के लिए नहीं चुने जाने पर नाराजगी जताई है। पद्म पुरस्‍कारों को लेकर हर साल विवाद होते हैं। बीते साल फोटोग्राफर सुनील जाना को पद्म श्री दिया गया था। उन्‍हें 40 साल पहले भी यही अवॉर्ड मिला था।

गौरतलब है कि गणतंत्र दिवस के मौके पर केंद्र सरकार ने गुरुवार को पद्म पुरस्कारों की घोषणा की। इस साल 108 लोगों को पद्म पुरस्कारों से सम्मानित किया जा रहा है। इनमें चार लोगों को पद्म विभूषण, 24 को पद्म भूषण और 80 लोगों को पद्म श्री पुरस्कार से दिए जाएंगे। पुरस्कार पाने वालों में 24 महिलाएं हैं। जबकि 11 अन्य में विदेशी, अप्रवासी भारतीय, मरणोपरांत पुरस्कार पाने वाली हस्तियां हैं।

वीरता का प्रतीक ....आल्हा

 वीरता का प्रतीक ....आल्हा 

आल्हा का नाम किसने नहीं सुना। पुराने जमाने के चन्देल राजपूतों में वीरता और जान पर खेलकर स्वामी की सेवा करने के लिए किसी राजा महाराजा को भी यह अमर कीर्ति नहीं मिली। राजपूतों के नैतिक नियमों में केवल वीरता ही नहीं थी बल्कि अपने स्वामी और अपने राजा के लिए जान देना भी उसका एक अंग था। आल्हा और ऊदल की जिन्दगी इसकी सबसे अच्छी मिसाल है। सच्चा राजपूत क्या होता था और उसे क्या होना चाहिये इसे लिस खूबसूरती से इन दोनों भाइयों ने दिखा दिया है, उसकी मिसाल हिन्दोस्तान के किसी दूसरे हिस्से में मुश्किल से मिल सकेगी। आल्हा और ऊदल के मार्के और उसको कारनामे एक चन्देली कवि ने शायद उन्हीं के जमाने में गाये, और उसको इस सूबे में जो लोकप्रियता प्राप्त है वह शायद रामायण को भी न हो। यह कविता आल्हा ही के नाम से प्रसिद्ध है और आठ-नौ शताब्दियॉँ गुजर जाने के बावजूद उसकी दिलचस्पी और सर्वप्रियता में अन्तर नहीं आया। आल्हा गाने का इस प्रदेश मे बड़ा रिवाज है। देहात में लोग हजारों की संख्या में आल्हा सुनने के लिए जमा होते हैं। शहरों में भी कभी-कभी यह मण्डलियॉँ दिखाई दे जाती हैं। बड़े लोगों की अपेक्षा सर्वसाधारण में यह किस्सा अधिक लोकप्रिय है। किसी मजलिस में जाइए हजारों आदमी जमीन के फर्श पर बैठे हुए हैं, सारी महाफिल जैसे बेसुध हो रही है और आल्हा गाने वाला किसी मोढ़े पर बैठा हुआ आपनी अलाप सुना रहा है। उसकी आवज आवश्यकतानुसार कभी ऊँची हो जाती है और कभी मद्धिम, मगर जब वह किसी लड़ाई और उसकी तैयारियों का जिक्र करने लगता है तो शब्दों का प्रवाह, उसके हाथों और भावों के इशारे, ढोल की मर्दाना लय उन पर वीरतापूर्ण शब्दों का चुस्ती से बैठना, जो जड़ाई की कविताओं ही की अपनी एक विशेषता है, यह सब चीजें मिलकर सुनने वालों के दिलों में मर्दाना जोश की एक उमंग सी पैदा कर देती हैं। बयान करने का तर्ज ऐसा सादा और दिलचस्प और जबान ऐसी आमफहम है कि उसके समझने में जरा भी दिक्कत नहीं होती। वर्णन और भावों की सादगी, कला के सौंदर्य का प्राण है। राजा परमालदेव चन्देल खानदान का आखिरी राजा था। तेरहवीं शाताब्दी के आरम्भ में वह खानदान समाप्त हो गया। महोबा जो एक मामूली कस्बा है उस जमाने में चन्देलों की राजधानी था। महोबा की सल्तनत दिल्ली और कन्नौज से आंखें मिलाती थी। आल्हा और ऊदल इसी राजा परमालदेव के दरबार के सम्मनित सदस्य थे। यह दोनों भाई अभी बच्चे ही थे कि उनका बाप जसराज एक लड़ाई में मारा गया। राजा को अनाथों पर तरस आया, उन्हें राजमहल में ले आये और मोहब्बत के साथ अपनी रानी मलिनहा के सुपुर्द कर दिया। रानी ने उन दोनों भाइयों की परवरिश और लालन-पालन अपने लड़के की तरह किया। जवान होकर यही दोनों भाई बहादुरी में सारी दुनिया में मशहूर हुए। इन्हीं दिलावरों के कारनामों ने महोबे का नाम रोशन कर दिया है।

बड़े लडइया महोबेवाला जिनके बल को वार न पार

आल्हा और ऊदल राजा परमालदेव पर जान कुर्बान करने के लिए हमेशा तैयार रहते थे। रानी मलिनहा ने उन्हें पाला, उनकी शादियां कीं, उन्हें गोद में खिलाया। नमक के हक के साथ-साथ इन एहसानों और सम्बन्धों ने दोनों भाइयों को चन्देल राजा का जॉँनिसार रखवाला और राजा परमालदेव का वफादार सेवक बना दिया था। उनकी वीरता के कारण आस-पास के सैकडों घमंडी राजा चन्देलों के अधीन हो गये। महोबा राज्य की सीमाएँ नदी की बाढ़ की तरह फैलने लगीं और चन्देलों की शक्ति दूज के चॉँद से बढ़कर पूरनमासी का चॉँद हो गई। यह दोनों वीर कभी चैन से न बैठते थे। रणक्षेत्र में अपने हाथ का जौहर दिखाने की उन्हें धुन थी। सुख-सेज पर उन्हें नींद न आती थी। और वह जमाना भी ऐसा ही बेचैनियों से भरा हुआ था। उस जमाने में चैन से बैठना दुनिया के परदे से मिट जाना था। बात-बात पर तलवांरें चलतीं और खून की नदियॉँ बहती थीं। यहॉँ तक कि शादियाँ भी खूनी लड़ाइयों जैसी हो गई थीं। लड़की पैदा हुई और शामत आ गई। हजारों सिपाहियों, सरदारों और सम्बन्धियों की जानें दहेज में देनी पड़ती थीं। आल्हा और ऊदल उस पुरशोर जमाने की यच्ची तस्वीरें हैं और गोकि ऐसी हालतों ओर जमाने के साथ जो नैतिक दुर्बलताएँ और विषमताएँ पाई जाती हैं, उनके असर से वह भी बचे हुए नहीं हैं, मगर उनकी दुर्बलताएँ उनका कसूर नहीं बल्कि उनके जमाने का कसूर हैं।



आल्हा का मामा माहिल एक काले दिल का, मन में द्वेष पालने वाला आदमी था। इन दोनों भाइयों का प्रताप और ऐश्वर्य उसके हृदय में कॉँटे की तरह खटका करता था। उसकी जिन्दगी की सबसे बड़ी आरजू यह थी कि उनके बड़प्पन को किसी तरह खाक में मिला दे। इसी नेक काम के लिए उसने अपनी जिन्दगी न्यौछावर कर दी थी। सैंकड़ों वार किये, सैंकड़ों बार आग लगायी, यहॉँ तक कि आखिरकार उसकी नशा पैदा करनेवाली मंत्रणाओं ने राजा परमाल को मतवाला कर दिया। लोहा भी पानी से कट जाता है। एक रोज राजा परमाल दरबार में अकेले बैठे हुए थे कि माहिल आया। राजा ने उसे उदास देखकर पूछा, भइया, तुम्हारा चेहरा कुछ उतरा हुआ है। माहिल की आँखों में आँसू आ गये। मक्कार आदमी को अपनी भावनाओं पर जो अधिकार होता है वह किसी बड़े योगी के लिए भी कठिन है। उसका दिल रोता है मगर होंठ हँसते हैं, दिल खुशियों के मजे लेता है मगर आँखें रोती हैं, दिल डाह की आग से जलता है मगर जबान से शहद और शक्कर की नदियॉँ बहती हैं। माहिल बोला-महाराज, आपकी छाया में रहकर मुझे दुनिया में अब किसी चीज की इच्छा बाकी नहीं मगर जिन लोगों को आपने धूल से उठाकर आसमान पर पहुँचा दिया और जो आपकी कृपा से आज बड़े प्रताप और ऐश्वर्यवाले बन गये, उनकी कृतघ्रता और उपद्रव खड़े करना मेरे लिए बड़े दु:ख का कारण हो रही है। परमाल ने आश्चर्य से पूछा- क्या मेरा नमक खानेवालों में ऐसे भी लोग हैं? माहिल- महाराज, मैं कुछ नहीं कह सकता। आपका हृदय कृपा का सागर है मगर उसमें एक खूंखार घड़ियाल आ घुसा है। -वह कौन है? -मैं। राजा ने आश्चर्यान्वित होकर कहा-तुम! महिल- हॉँ महाराज, वह अभागा व्यक्ति मैं ही हूँ। मैं आज खुद अपनी फरियाद लेकर आपकी सेवा में उपस्थित हुआ हूँ। अपने सम्बन्धियों के प्रति मेरा जो कर्तव्य है वह उस भक्ति की तुलना में कुछ भी नहीं जो मुझे आपके प्रति है। आल्हा मेरे जिगर का टुकड़ा है। उसका मांस मेरा मांस और उसका रक्त मेरा रक्त है। मगर अपने शरीर में जो रोग पैदा हो जाता है उसे विवश होकर हकीम से कहना पड़ता है। आल्हा अपनी दौलत के नशे में चूर हो रहा है। उसके दिल में यह झूठा खयाल पैदा हो गया है कि मेरे ही बाहु-बल से यह राज्य कायम है। राजा परमाल की आंखें लाल हो गयीं, बोला-आल्हा को मैंने हमेशा अपना लड़का समझा है। माहिल- लड़के से ज्यादा। परमाल- वह अनाथ था, कोई उसका संरक्षक न था। मैंने उसका पालन-पोषण किया, उसे गोद में खिलाया। मैंने उसे जागीरें दीं, उसे अपनी फौज का सिपहसालार बनाया। उसकी शादी में मैंने बीस हजार चन्देल सूरमाओं का खून बहा दिया। उसकी मॉँ और मेरी मलिनहा वर्षों गले मिलकर सोई हैं और आल्हा क्या मेरे एहसानों को भूल सकता है? माहिल, मुझे तुम्हारी बात पर विश्वास नहीं आता। माहिल का चेहरा पीला पड़ गया। मगर सम्हलकर बोला- महाराज, मेरी जबान से कभी झूठ बात नहीं निकली। परमाह- मुझे कैसे विश्वास हो? महिल ने धीरे से राजा के कान में कुछ कह दिया।



आल्हा और ऊदल दोनों चौगान के खेल का अभ्यास कर रहे थे। लम्बे-चौड़े मैदान में हजारों आदमी इस तमाशे को देख रहे थे। गेंद किसी अभागे की तरह इधर-उधर ठोकरें खाता फिरता था। चोबदार ने आकर कहा-महाराज ने याद फरमाया है। आल्हा को सन्देह हुआ। महाराज ने आज बेवक्त क्यों याद किया? खेल बन्द हो गया। गेंद को ठोकरों से छुट्टी मिली। फौरन दरबार मे चौबदार के साथ हाजिर हुआ और झुककर आदाब बजा लाया। परमाल ने कहा- मैं तुमसे कुछ मॉँगूँ? दोगे? आल्हा ने सादगी से जवाब दिया-फरमाइए। परमाल-इनकार तो न करोगे? आल्हा ने कनखियों से माहिल की तरफ देखा समझ गया कि इस वक्त कुछ न कुछ दाल में काला है। इसके चेहरे पर यह मुस्कराहट क्यों? गूलर में यह फूल क्यों लगे? क्या मेरी वफादारी का इम्तहान लिया जा रहा है? जोश से बोला-महाराज, मैं आपकी जबान से ऐसे सवाल सुनने का आदी नहीं हूँ। आप मेरे संरक्षक, मेरे पालनहार, मेरे राजा हैं। आपकी भँवों के इशारे पर मैं आग में कूद सकता हूँ और मौत से लड़ सकता हूँ। आपकी आज्ञा पाकर में असम्भव को सम्भव बना सकता हूँ आप मुझसे ऐसे सवाल न करें। परमाल- शाबाश, मुझे तुमसे ऐसी ही उम्मीद है। आल्हा-मुझे क्या हुक्म मिलता है? परमाल- तुम्हारे पास नाहर घोड़ा है? आल्हा ने ‘जी हॉँ’ कहकर माहिल की तरफ भयानक गुस्से भरी हुई आँखों से देखा। परमाल- अगर तुम्हें बुरा न लगे तो उसे मेरी सवारी के लिए दे दो। आल्हा कुछ जवाब न दे सका, सोचने लगा, मैंने अभी वादा किया है कि इनकार न करूँगा। मैंने बात हारी है। मुझे इनकार न करना चाहिए। निश्चय ही इस वक्त मेरी स्वामिभक्ति की परीक्षा ली जा रही है। मेरा इनकार इस समय बहुत बेमौका और खतरनाक है। इसका तो कुछ गम नहीं। मगर मैं इनकार किस मुँह से करूँ, बेवफा न कहलाऊँगा? मेरा और राजा का सम्बन्ध केवल स्वामी और सेवक का ही नहीं है, मैं उनकी गोद में खेला हूँ। जब मेरे हाथ कमजोर थे, और पॉँव में खड़े होने का बूता न था, तब उन्होंने मेरे जुल्म सहे हैं, क्या मैं इनकार कर सकता हूँ? विचारों की धारा मुड़ी- माना कि राजा के एहसान मुझ पर अनगिनती हैं मेरे शरीर का एक-एक रोआँ उनके एहसानों के बोझ से दबा हुआ है मगर क्षत्रिय कभी अपनी सवारी का घोड़ा दूसरे को नहीं देता। यह क्षत्रियों का धर्म नहीं। मैं राजा का पाला हुआ और एहसानमन्द हूँ। मुझे अपने शरीर पर अधिकार है। उसे मैं राजा पर न्यौछावर कर सकता हूँ। मगर राजपूती धर्म पर मेरा कोई अधिकार नहीं है, उसे मैं नहीं तोड़ सकता। जिन लोगों ने धर्म के कच्चे धागे को लोहे की दीवार समझा है, उन्हीं से राजपूतों का नाम चमक रहा है। क्या मैं हमेशा के लिए अपने ऊपर दाग लगाऊँ? आह! माहिल ने इस वक्त मुझे खूब जकड़ रखा है। सामने खूंखार शेर है; पीछे गहरी खाई। या तो अपमान उठाऊँ या कृतघ्न कहलाऊँ। या तो राजपूतों के नाम को डुबोऊँ या बर्बाद हो जॉँऊ। खैर, जो ईश्वर की मर्जी, मुझे कृतघ्न कहलाना स्वीकार है, मगर अपमानित होना स्वीकार नहीं। बर्बाद हो जाना मंजूर है, मगर राजपूतों के धर्म में बट्टा लगाना मंजूर नहीं। आल्हा सर नीचा किये इन्हीं खयालों में गोते खा रहा था। यह उसके लिए परीक्षा की घड़ी थी जिसमें सफल हो जाने पर उसका भविष्य निर्भर था। मगर माहिला के लिए यह मौका उसके धीरज की कम परीक्षा लेने वाला न था। वह दिन अब आ गया जिसके इन्तजार में कभी आँखें नहीं थकीं। खुशियों की यह बाढ़ अब संयम की लोहे की दीवार को काटती जाती थी। सिद्ध योगी पर दुर्बल मनुष्य की विजय होती जाती थी। एकाएक परमाल ने आल्हा से बुलन्द आवाज में पूछा- किस दनिधा में हो? क्या नहीं देना चाहते? आल्हा ने राजा से आंखें मिलाकर कहा-जी नहीं। परमाल को तैश आ गया, कड़ककर बोला-क्यों? आल्हा ने अविचल मन से उत्तर दिया-यह राजपूतों का धर्म नहीं है। परमाल-क्या मेरे एहसानों का यही बदला है? तुम जानते हो, पहले तुम क्या थे और अब क्या हो? आल्हा-जी हॉँ, जानता हूँ। परमाल- तुम्हें मैंने बनाया है और मैं ही बिगाड़ सकता हूँ। आल्हा से अब सब्र न हो सका, उसकी आँखें लाल हो गयीं और त्योरियों पर बल पड़ गये। तेज लहजे में बोला- महाराज, आपने मेरे ऊपर जो एहसान किए, उनका मैं हमेशा कृतज्ञ रहूँगा। क्षत्रिय कभी एहसान नहीं भूलता। मगर आपने मेरे ऊपर एहसान किए हैं, तो मैंने भी जो तोड़कर आपकी सेवा की है। सिर्फ नौकरी और नामक का हक अदा करने का भाव मुझमें वह निष्ठा और गर्मी नहीं पैदा कर सकता जिसका मैं बार-बार परिचय दे चुका हूँ। मगर खैर, अब मुझे विश्वास हो गया कि इस दरबार में मेरा गुजर न होगा। मेरा आखिरी सलाम कबूल हो और अपनी नादानी से मैंने जो कुछ भूल की है वह माफ की जाए। माहिल की ओर देखकर उसने कहा- मामा जी, आज से मेरे और आपके बीच खून का रिश्ता टूटता है। आप मेरे खून के प्यासे हैं तो मैं भी आपकी जान का दुश्मन हूँ। ४

आल्हा की मॉँ का नाम देवल देवी था। उसकी गिनती उन हौसले वाली उच्च विचार स्त्रियों में है जिन्होंने हिन्दोस्तान के पिछले कारनामों को इतना स्पृहणीय बना दिया है। उस अंधेरे युग में भी जबकि आपसी फूट और बैर की एक भयानक बाढ़ मुल्क में आ पहुँची थी, हिन्दोस्तान में ऐसी ऐसी देवियॉँ पैदा हुई जो इतिहास के अंधेरे से अंधेरे पन्नों को भी ज्योतित कर सकती हैं। देवल देवी से सुना कि आल्हा ने अपनी आन को रखने के लिए क्या किया तो उसकी आखों भर आए। उसने दोनों भाइयों को गले लगाकर कहा- बेटा ,तुमने वही किया जो राजपूतों का धर्म था। मैं बड़ी भाग्यशालिनी हूँ कि तुम जैसे दो बात की लाज रखने वाले बेटे पाये हैं । उसी रोज दोनों भाइयों महोबा से कूच कर दिया अपने साथ अपनी तलवार और घोड़ो के सिवा और कुछ न लिया। माल –असबाब सब वहीं छोड़ दिये सिपाही की दौलत और इज्जत सबक कुछ उसकी तलवार है। जिसके पास वीरता की सम्पति है उसे दूसरी किसी सम्पति की जरुरत नहीं। बरसात के दिन थे, नदी नाले उमड़े हुए थे। इन्द्र की उदारताओं से मालामाल होकर जमीन फूली नहीं समाती थी । पेड़ो पर मोरों की रसीली झनकारे सुनाई देती थीं और खेतों में निश्चिन्तता की शराब से मतवाल किसान मल्हार की तानें अलाप रहे थे । पहाड़ियों की घनी हरियावल पानी की दर्पन –जैसी सतह और जगंली बेल बूटों के बनाव संवार से प्रकृति पर एक यौवन बरस रहा था। मैदानों की ठंडी-ठडीं मस्त हवा जंगली फूलों की मीठी मीठी, सुहानी, आत्मा को उल्लास देनेवाली महक और खेतों की लहराती हुई रंग बिरंगी उपज ने दिलो में आरजुओं का एक तूफान उठा दिया था। ऐसे मुबारक मौसम में आल्हा ने महोबा को आखिरी सलाम किया । दोनों भाइयो की आँखे रोते रोते लाल हो गयी थीं क्योंकि आज उनसे उनका देश छूट रहा था । इन्हीं गलियों में उन्होंने घुटने के बल चलना सीखा था, इन्ही तालाबों में कागज की नावें चलाई थीं, यही जवानी की बेफिक्रियों के मजे लूटे थे। इनसे अब हमेशा के लिए नाता टूटता था। दोनो भाई आगे बढते जाते थे , मगर बहुत धीरे-धीरे । यह खयाल था कि शायद परमाल ने रुठनेवालों को मनाने के लिए अपना कोई भरोसे का आदमी भेजा होगा। घोड़ो को सम्हाले हुए थे, मगर जब महोबे की पहाड़ियो का आखिरी निशान ऑंखों से ओझल हो गया तो उम्मीद की आखिरी झलक भी गायब हो गयी। उन्होनें जिनका कोई देश नथा एक ठंडी सांस ली और घोडे बढा दिये। उनके निर्वासन का समाचार बहुत जल्द चारों तरफ फैल गया। उनके लिए हर दरबार में जगह थीं, चारों तरफ से राजाओ के सदेश आने लगे। कन्नौज के राजा जयचन्द ने अपने राजकुमार को उनसे मिलने के लिए भेजा। संदेशों से जो काम न निकला वह इस मुलाकात ने पूरा कर दिया। राजकुमार की खातिदारियाँ और आवभगत दोनों भाइयों को कन्नौज खींच ले नई। जयचन्द आंखें बिछाये बैठा था। आल्हा को अपना सेनापति बना दिया।



आल्हा और ऊदल के चले जाने के बाद महोबे में तरह-तरह के अंधेर शुरु हुए। परमाल कमजी शासक था। मातहत राजाओं ने बगावत का झण्डा बुलन्द किया। ऐसी कोई ताकत न रही जो उन झगड़ालू लोगों को वश में रख सके। दिल्ली के राज पृथ्वीराज की कुछ सेना सिमता से एक सफल लड़ाई लड़कर वापस आ रही थी। महोबे में पड़ाव किया। अक्खड़ सिपाहियों में तलवार चलते कितनी देर लगती है। चाहे राजा परमाल के मुलाजियों की ज्यादती हो चाहे चौहान सिपाहियों की, तनीजा यह हुआ कि चन्देलों और चौहानों में अनबन हो गई। लड़ाई छिड़ गई। चौहान संख्या में कम थे। चंदेलों ने आतिथ्य-सत्कार के नियमों को एक किनारे रखकर चौहानों के खून से अपना कलेजा ठंडा किया और यह न समझे कि मुठ्ठी भर सिपाहियों के पीछे सारे देश पर विपत्ति आ जाएगी। बेगुनाहों को खून रंग लायेगा। पृथ्वीराज को यह दिल तोड़ने वाली खबर मिली तो उसके गुस्से की कोई हद न रही। ऑंधी की तरह महोबे पर चढ़ दौड़ा और सिरको, जो इलाका महोबे का एक मशहूर कस्बा था, तबाह करके महोबे की तरह बढ़ा। चन्देलों ने भी फौज खड़ी की। मगर पहले ही मुकाबिले में उनके हौसले पस्त हो गये। आल्हा-ऊदल के बगैर फौज बिन दूल्हे की बारात थी। सारी फौज तितर-बितर हो गयी। देश में तहलका मच गया। अब किसी क्षण पृथ्वीराज महोबे में आ पहुँचेगा, इस डर से लोगों के हाथ-पॉँव फूल गये। परमाल अपने किये पर बहुत पछताया। मगर अब पछताना व्यर्थ था। कोई चारा न देखकर उसने पृथ्वीराज से एक महीने की सन्धि की प्रार्थना की। चौहान राजा युद्ध के नियमों को कभी हाथ से न जाने देता था। उसकी वीरता उसे कमजोर, बेखबर और नामुस्तैद दुश्मन पर वार करने की इजाजत न देती थी। इस मामले में अगर वह इन नियमों को इतनी सख्ती से पाबन्द न होता तो शहाबुद्दीन के हाथों उसे वह बुरा दिन न देखना पड़ता। उसकी बहादुरी ही उसकी जान की गाहक हुई। उसने परमाल का पैगाम मंजूर कर लिया। चन्देलों की जान में जान आई। अब सलाह-मशविरा होने लगा कि पृथ्वीराज से क्योंकर मुकाबिला किया जाये। रानी मलिनहा भी इस मशविरे में शरीक थीं। किसी ने कहा, महोबे के चारों तरफ एक ऊँची दीवार बनायी जाय ; कोई बोला, हम लोग महोबे को वीरान करके दक्खिन को ओर चलें। परमाल जबान से तो कुछ न कहता था, मगर समर्पण के सिवा उसे और कोई चारा न दिखाई पड़ता था। तब रानी मलिनहा खड़ी होकर बोली : ‘चन्देल वंश के राजपूतो, तुम कैसी बच्चों की-सी बातें करते हो? क्या दीवार खड़ी करके तुम दुश्मन को रोक लोगे? झाडू से कहीं ऑंधी रुकती है ! तुम महोबे को वीरान करके भागने की सलाह देते हो। ऐसी कायरों जैसी सलाह औरतें दिया करती हैं। तुम्हारी सारी बहादुरी और जान पर खेलना अब कहॉँ गया? अभी बहुत दिन नहीं गुजरे कि चन्देलों के नाम से राजे थर्राते थे। चन्देलों की धाक बंधी हुई थी, तुमने कुछ ही सालों में सैंकड़ों मैदान जीते, तुम्हें कभी हार नहीं हुई। तुम्हारी तलवार की दमक कभी मन्द नहीं हुई। तुम अब भी वही हो, मगर तुममें अब वह पुरुषार्थ नहीं है। वह पुरुषार्थ बनाफल वंश के साथ महोबे से उठ गया। देवल देवी के रुठने से चण्डिका देवी भी हमसे रुठ गई। अब अगर कोई यह हारी हुई बाजी सम्हाल सकता है तो वह आल्हा है। वही दोनों भाई इस नाजुक वक्त में तुम्हें बचा सकते हैं। उन्हीं को मनाओ, उन्हीं को समझाओं, उन पर महोते के बहुत हक हैं। महोबे की मिट्टी और पानी से उनकी परवरिश हुई है। वह महोबे के हक कभी भूल नहीं सकते, उन्हें ईश्वर ने बल और विद्या दी है, वही इस समय विजय का बीड़ा उठा सकते हैं।’ रानी मलिनहा की बातें लोगों के दिलों में बैठ गयीं।



जगना भाट आल्हा और ऊदल को कन्नौज से लाने के लिए रवाना हुआ। यह दोनों भाई राजकुँवर लाखन के साथ शिकार खेलने जा रहे थे कि जगना ने पहुँचकर प्रणाम किया। उसके चेहरे से परेशानी और झिझक बरस रही थी। आल्हा ने घबराकर पूछा—कवीश्वर, यहॉँ कैसे भूल पड़े? महोबे में तो खैरियत है? हम गरीबों को क्योंकर याद किया? जगना की ऑंखों में ऑंसू भर जाए, बोला—अगर खैरियत होती तो तुम्हारी शरण में क्यों आता। मुसीबत पड़ने पर ही देवताओं की याद आती है। महोबे पर इस वक्त इन्द्र का कोप छाया हुआ है। पृथ्वीराज चौहान महोबे को घेरे पड़ा है। नरसिंह और वीरसिंह तलवारों की भेंट हो चुके है। सिरकों सारा राख को ढेर हो गया। चन्देलों का राज वीरान हुआ जाता है। सारे देश में कुहराम मचा हुआ है। बड़ी मुश्किलों से एक महीने की मौहलत ली गई है और मुझे राजा परमाल ने तुम्हारे पास भेजा है। इस मुसीबत के वक्त हमारा कोई मददगार नहीं है, कोई ऐसा नहीं है जो हमारी किम्मत बॅंधाये। जब से तुमने महोबे से नहीं है, कोई ऐसा नहीं है जो हमारी हिम्मत बँधाये। जब से तुमने महोबे से नाता तोड़ा है तब से राजा परमाल के होंठों पर हँसी नहीं आई। जिस परमाल को उदास देखकर तुम बेचैन हो जाते थे उसी परमाल की ऑंखें महीनों से नींद को तरसती हैं। रानी महिलना, जिसकी गोद में तुम खेले हो, रात-दिन तुम्हारी याद में रोती रहती है। वह अपने झरोखें से कन्नैज की तरफ ऑंखें लगाये तुम्हारी राह देखा करती है। ऐ बनाफल वंश के सपूतो ! चन्देलों की नाव अब डूब रही है। चन्देलों का नाम अब मिटा जाता है। अब मौका है कि तुम तलवारे हाथ में लो। अगर इस मौके पर तुमने डूबती हुई नाव को न सम्हाला तो तुम्हें हमेशा के लिए पछताना पड़ेगा क्योंकि इस नाम के साथ तुम्हारा और तुम्हारे नामी बाप का नाम भी डूब जाएगा। आल्हा ने रुखेपन से जवाब दिया—हमें इसकी अब कुछ परवाह नहीं है। हमारा और हमारे बाप का नाम तो उसी दिन डूब गया, जब हम बेकसूर महोबे से निकाल दिए गए। महोबा मिट्टी में मिल जाय, चन्देलों को चिराग गुल हो जाय, अब हमें जरा भी परवाह नहीं है। क्या हमारी सेवाओं का यही पुरस्कार था जो हमको दिया गया? हमारे बाप ने महोबे पर अपने प्राण न्यौछावर कर दिये, हमने गोड़ों को हराया और चन्देलों को देवगढ़ का मालिक बना दिया। हमने यादवों से लोहा लिया और कठियार के मैदान में चन्देलों का झंडा गाड़ दिया। मैंने इन्ही हाथों से कछवाहों की बढ़ती हुई लहर को रोका। गया का मैदान हमीं ने जीता, रीवॉँ का घमण्ड हमीं ने तोड़ा। मैंने ही मेवात से खिराज लिया। हमने यह सब कुछ किया और इसका हमको यह पुरस्कार दिया गया है? मेरे बाप ने दस राजाओं को गुलामी का तौक पहनाया। मैंने परमाल की सेवा में सात बार प्राणलेवा जख्म खाए, तीन बार मौत के मुँह से निकल आया। मैने चालीस लड़ाइयॉँ लड़ी और कभी हारकर न आया। ऊदल ने सात खूनी मार्के जीते। हमने चन्देलों की बहादुरी का डंका बजा दिया। चन्देलों का नाम हमने आसमान तक पहुँचा दिया और इसके यह पुरस्कार हमको मिला है? परमाल अब क्यों उसी दगाबाज माहिल को अपनी मदद के लिए नहीं बुलाते जिसकों खुश करने के लिए मेरा देश निकाला हुआ था ! जगना ने जवाब दिया—आल्हा ! यह राजपूतों की बातें नहीं हैं। तुम्हारे बाप ने जिस राज पर प्राण न्यौछावर कर दिये वही राज अब दुश्मन के पांव तले रौंदा जा रहा है। उसी बाप के बेटे होकर भी क्या तुम्हारे खून में जोश नहीं आता? वह राजपूत जो अपने मुसीबत में पड़े हुए राजा को छोड़ता है, उसके लिए नरक की आग के सिवा और कोई जगह नहीं है। तुम्हारी मातृभूमि पर बर्बादी की घटा छायी हुई हैं। तुम्हारी माऍं और बहनें दुश्मनों की आबरु लूटनेवाली निगाहों को निशाना बन रही है, क्या अब भी तुम्हारे खून में जोश नहीं आता? अपने देश की यह दुर्गत देखकर भी तुम कन्नौज में चैन की नींद सो सकते हो? देवल देवी को जगना के आने की खबर हुई। असने फौरन आल्हा को बुलाकर कहा—बेटा, पिछली बातें भूल जाओं और आज ही महोबे चलने की तैयारी करो। आल्हा कुछ जबाव न दे सका, मगर ऊदल झुँझलाकर बोला—हम अब महोबे नहीं जा सकते। क्या तुम वह दिन भूल गये जब हम कुत्तों की तरह महोबे से निकाल दिए गए? महोबा डूबे या रहे, हमारा जी उससे भर गया, अब उसको देखने की इच्छा नहीं हे। अब कन्नौज ही हमारी मातृभूमि है। राजपूतनी बेटे की जबान से यह पाप की बात न सुन सकी, तैश में आकर बोली—ऊदल, तुझे ऐसी बातें मुंह से निकालते हुए शर्म नहीं आती ? काश, ईश्वर मुझे बॉँझ ही रखता कि ऐसे बेटों की मॉँ न बनती। क्या इन्हीं बनाफल वंश के नाम पर कलंक लगानेवालों के लिए मैंने गर्भ की पीड़ा सही थी? नालायको, मेरे सामने से दूर हो जाओं। मुझे अपना मुँह न दिखाओं। तुम जसराज के बेटे नहीं हो, तुम जिसकी रान से पैदा हुए हो वह जसराज नहीं हो सकता। यह मर्मान्तक चोट थी। शर्म से दोनों भाइयों के माथे पर पसीना आ गया। दोनों उठ खड़े हुए और बोले- माता, अब बस करो, हम ज्यादा नहीं सुन सकते, हम आज ही महोबे जायेंगे और राजा परमाल की खिदमत में अपना खून बहायेंगे। हम रणक्षेत्र में अपनी तलवारों की चमक से अपने बाप का नाम रोशन करेंगे। हम चौहान के मुकाबिले में अपनी बहादुरी के जौहर दिखायेंगे और देवल देवी के बेटों का नाम अमर कर देंगे।



दोनों भाई कन्नौज से चले, देवल भी साथ थी। जब वह रुठनेवाले अपनी मातृभूमि में पहुँचे तो सूखें धानों में पानी पड़ गया, टूटी हुई हिम्मतें बंध गयीं। एक लाख चन्देल इन वीरों की अगवानी करने के लिए खड़े थे। बहुत दिनों के बाद वह अपनी मातृभूमि से बिछुड़े हुए इन दोनों भाइयों से मिले। ऑंखों ने खुशी के ऑंसू बहाए। राजा परमाल उनके आने की खबर पाते ही कीरत सागर तक पैदल आया। आल्हा और ऊदल दौड़कर उसके पांव से लिपट गए। तीनों की आंखों से पानी बरसा और सारा मनमुटाव धुल गया। दुश्मन सर पर खड़ा था, ज्यादा आतिथ्य-सत्कार का मौकर न था, वहीं कीरत सागर के किनारे देश के नेताओं और दरबार के कर्मचारियों की राय से आल्हा फौज का सेनापति बनाया गया। वहीं मरने-मारने के लिए सौगन्धें खाई गई। वहीं बहादुरों ने कसमें खाई कि मैदान से हटेंगे तो मरकर हटेंगें। वहीं लोग एक दूसरे के गले मिले और अपनी किस्मतों को फैसला करने चले। आज किसी की ऑंखों में और चेहरे पर उदासी के चिन्ह न थे, औरतें हॅंस-हँस कर अपने प्यारों को विदा करती थीं, मर्द हँस-हँसकर स्त्रियों से अलग होते थे क्योंकि यह आखिरी बाजी है, इसे जीतना जिन्दगी और हारना मौत है। उस जगह के पास जहॉँ अब और कोई कस्बा आबाद है, दोनों फौजों को मुकाबला हुआ और अठारह दिन तक मारकाट का बाजार गर्म रहा। खूब घमासान लड़ाई हुई। पृथ्वीराज खुद लड़ाई में शरीक था। दोनों दल दिल खोलकर लड़े। वीरों ने खूब अरमान निकाले और दोनों तरफ की फौजें वहीं कट मरीं। तीन लाख आदमियों में सिर्फ तीन आदमी जिन्दा बचे-एक पृथ्वीराज, दूसरा चन्दा भाट तीसरा आल्हा। प्रथ्वीराज के शब्द भेदी बाण से उदल की मौत हुई ।उदल की मौत से आल्हा समझ गया की इस धरती से जाने का समय आ गया है। उसने अपने गुरू गोरखनाथ जी का दिया हुया बिजुरिया नामक दिव्याश्त्र हाथ मे लेकर प्रथ्वीराज को मारने चल पड़े। आल्हा को आता देखकर प्रथ्वीराज का सेनापति चंदरबरदई ने प्रथ्वीराज से कहा राजा आल्हा के समान इस धरती पर कोई दूसरा वीर नहीं है यदि ज़िंदा रहना चाहते हो तो आल्हा के सामने हतियार मत उठाना। प्रथ्वीराज ने आल्हा के सामने हाथ जोड़ लिए । इसी समय वहाँ पर गुरु गोरखनाथ आगाए उन्होने आल्हा से कहा ये दिव्यास्त्र धरती के साधारण मनुस्यों पर चलाने के लिए नहीं है और बे आल्हा को अपने साथ सा शरीर स्वर्ग ले गए। बैरागढ़ अकोढ़ी गाँव ज़िला जालौन मे आल्हा की गाड़ी हुई एक सांग आज भी है। जो माता शारदा के मंदिर के प्रांगड़ मे है। माता के मंदिर मे आज भी सुबह पुजारियों को दरवाजे खोलने पर दो फूल चढ़े मिलते है। कहते है ये फूल आल्हा चढ़ाते है। काफी लोगों ने सच्चाई पता करने की कोसिस की। लेकिन जो रात मे मंदिर मे रुका बो सुबह ज़िंदा नहीं मिला। आप भी जाकर सच्चाई पता कर सकते है।ऐसी भयानक अटल और निर्णायक लड़ाई शायद ही किसी देश और किसी युग में हुई हो। दोनों ही हारे और दोनों ही जीते। चन्देल और चौहान हमेशा के लिए खाक में मिल गए क्योंकि थानेसर की लड़ाई का फैसला भी इसी मैदान में हो गया। चौहानों में जितने अनुभवी सिपाही थे, वह सब औरई में काम आए। शहाबुद्दीन से मुकाबला पड़ा तो नौसिखिये, अनुभवहीन सिपाही मैदान में लाये गये और नतीजा वही हुआ जो हो सकता था।


जनता में अब तक यही विश्वास है कि वह जिन्दा है। लोग कहते हैं कि वह अमर हो गया। यह बिल्कुल ठीक है क्योंकि आल्हा सचमुच अमर है अमर है और वह कभी मिट नहीं सकता, उसका नाम हमेशा कायम रहेगा। --जमाना, जनवरी १९१२

बाड़मेर में पैदा होना अब अभिशाप नहीं.



बाड़मेर: समृद्धि आई और संकट भी







कभी दवा की एक छोटी-सी दुकान चलाने वाले 30 वर्षीय आजाद सिंह राठौड़ आज शहर में बन रहे एक बहुमंजिला सिटी सेंटर का अपनी हार्ले डेविडसन बाइक से नजारा ले रहे हैं. यहां से महज दो किमी दूर सुमेर खान रामदिया करोड़ों की दास्तान के बीच अब भी अपना बीपीएल कार्ड नहीं भूले हैं. दस साल पहले यही बाड़मेर ऐसा उजड़ा-सा शहर होता था कि राजस्थान के नक्शे पर इसे पहचान पाना मुश्किल था.

स्वागत है आपका बाड़मेर में. किस्मत ने इस शहर पर 2002 में दस्तक दी, जब केयर्न नाम की कंपनी ने यहां तेल की खोज की. इसके बाद 2006 से 2010 के बीच कंपनी ने 15,000 लोगों को रोजगार दिया, जिनमें ज्यादातर यहीं के बाशिंदे थे. कुछेक सौ दूर से भी आए जिन्हें मोटी तनख्वाह पर लाया गया था.

2007 में सज्जन जिंदल की कंपनी राजवेस्ट पावर लिमिटेड ने यहां लिग्नाइट आधारित पावर प्लांट लगाना शुरू किया. इसके लिए लिग्नाइट का खनन बाड़मेर लिग्नाइट माइनिंग कंपनी करती थी, जो राजवेस्ट और राजस्थान राज्य खनन और खनिज निगम का साझा उपक्रम है. इस परियोजना के लिए जमीन भी चाहिए थी और लोग भी. इसने 5,800 लोगों को रोजगार दिया. इसके बाद असली तकदीर खुली इस शहर के आसपास के गांवों की, जिनकी जमीन ज्यादातर राजवेस्ट के लिए और कुछ केयर्न के लिए अधिग्रहीत की गई.

आज 50 वर्षीय तन सिंह के पास सी क्लास मर्सिडीज, क्यू-7 ऑडी और दो फॉर्चुनर हैं. शहर के बीचोबीच उनका बंगला तैयार होने को है. उन्हीं के शब्दों में, ''मेरे पास कुछ नहीं था. मैंने रोड रोलर चलाने से शुरुआत की. सरकारी ठेके लेने शुरू किए. '' उनका कारोबार 1999 में दो करोड़ रु. से भी कम था.

राजस्थान सरकार के लिए सड़कें बनाने के उनके इस कारोबार में मुनाफा बेहद मामूली था. 2000 में उन्हें तेल तलाशने वाली एक कंपनी से ठेका मिला. आज उनका सालाना कारोबार 100 करोड़ रु. का है. पिछले साल उन्होंने चार करोड़ रु. आयकर और आठ करोड़ रु. का बिक्रीकर चुकाया. वे कहते हैं, ''तेल और लिग्नाइट मेरी तरक्की के मंत्र हैं. '' उनके पांच होटल हैं और कुछ शहरों में अलग-अलग शोरूम और कांप्लेक्स हैं. ''यह सब मुझे जमीन से नहीं, अपनी कड़ी मेहनत से हासिल हुआ है. '' वे अपनी बात साफ करते हैं.

पावर प्लांट के लिए 2007 में भदरेस गांव में 58,000 रु. प्रति एकड़ की दर से जमीन अधिग्रहीत की गई थी. पुनर्वास के लिए दो कमरे का मकान, जबकि उस जमीन पर बारिश होने पर तीनेक हजार रु. की बाजरे की फसल हो पाती थी. सितंबर, 2009 में स्थानीय नेताओं ने अधिग्रहण की दर प्रति एकड़ 3.71 लाख रु. पर पहुंचा दी.

जनवरी, 2011 में सरकार ने यह दर 7.4 लाख रु. एकड़ पर ला दी और कंपनियों को डीएलसी की तय दर से छह से दस गुना तक देने को मजबूर कर दिया. दो साल के भीतर लोगों के हाथ में 1,200 करोड़ रु. आ गए. गरीब जमीन वाले एकाएक करोड़पति भूमिहीन बन गए. शहर ही नहीं, अधिग्रहीत जमीन से सटे इलाके भी इतने महंगे हो गए हैं कि आज यहां बसना 'भूमिहीनों' के ही बस की बात है.

केयर्न मुंहमांगी कीमतें देने को राजी हो गया. राजवेस्ट पीछे-पीछे था. नतीजा: चार बेडरूम के मकानों का किराया 15,000 रु. से रु. से सीधे एक लाख रु. महीना जा पहुंचा. 2002 में पैथोलॉजी में डिप्लोमा के बाद पिता की केमिस्ट की दुकान संभालने वाले राठौड़ को तेल तलाशने वाली एक कंपनी ने स्टेशनरी के धंधे में उतरने की सलाह दी. वे भी फिर पीछे नहीं मुड़े. उसके बाद तो पवन हंस हेलिकॉप्टर में लोहे की कील लगाने का काम हो या थाई, दिल्ली दरबार और ताज के रसोइए लाने का या फिर लॉन्ड्री, गोदाम और डीजल जेनसेट की आपूर्ति का, तेल कंपनियों ने उनकी सेवाएं बाड़मेर के बाहर भी लेनी शुरू कर दीं.

कुछेक साल में ही उनका कारोबार एक करोड़ रु. को पार कर गया. आज उनके पास चार मेडिकल स्टोर हैं. वे कहते भी हैं, ''मैं खालिस तेल की पैदाइश हूं. '' जुलाई में उन्होंने अपने सपनों की बाइक नौ लाख रु. की हार्ले डेविडसन खरीद डाली. पजेरो पहले से है.

बीस करोड़ रु. के सालाना कारोबार वाली कीरी ऐंड कंपनी लॉजिस्टिक्स प्राइवेट लिमिटेड के मालिक ललित कीरी उनके दोस्त भी हैं और प्रतिद्वंद्वी भी. कीरी कहते हैं, ''मैं अब आगे तकनीकी क्षेत्र में जाकर कारोबार सौ करोड़ रु. का करना चाहता हूं. '' राठौड़ की तरह वे भी केमिस्ट थे. ''मुझे लगता था कि बाड़मेर में पैदा होना एक सजा है. '' सो, वे मसकट में बढ़ईगीरी करने चले गए. 2002 में लौटे और तबसे यह काम. उनका मकान एक लाख रु.महीने किराए पर उठ गया.

2003 में उनसे बंकर की सप्लाई करने को कहा गया. शून्य से यह काम शुरू कर दो साल में वे करोड़पति हो गए. इसके बाद बाड़मेर से बाहर कैटरिंग का काम आया. पिछले सितंबर में उन्होंने मुंबई में समुद्र के किनारे की फैब्स फैब्रिकॉन नाम की कंपनी खरीद ली.

बेशक, यह यहां के लोगों की उद्यमशीलता और मेहनत का ही नतीजा था, पर इस लिहाज से सितंबर, 2009 का दिन खास था, जब बाड़मेर शहर में जमीन की कीमत एकदम से चढ़ गई. उस दिन 272 ऐसे लोगों को 267 करोड़ रु. मिले, जिन्होंने जिंदगी गरीबी में गुजारी थी और जिन्हें पता न था कि इस पैसे का करें क्या?

ज्यादा से ज्यादा इन्हें यह समझ आया कि 10 किमी दूर शहर तक चला जाए और वहां अपने एक मकान होने के सपने को पूरा किया जाए. साइकिल पर भी न चढऩे वाले लोग एसयूवी में उडऩे लगे. महिंद्रा ने हर 20 ट्रैक्टर की खरीद पर एक मुफ्त की योजना चला दी. बोलेरो इतनी बिकीं कि वेटिंग लिस्ट लग गई.

ओएस मोटर्स के शाखा प्रबंधक राजेश सिंह जोधा बताते हैं कि तीन साल के भीतर उन्होंने 2,000 बोलेरो बेची हैं. पहले यहां सालाना औसत बिक्री 200 की थी. वे 2006 में सालाना 150 मैसी फर्ग्युसन टैक्टर बेचते थे, आज 800 बेचते हैं. ज्यादातर चौपहिया वाहन यहां काम कर रही कंपनियों में किराए पर लग जाते हैं. अकेली केयर्न 900 वाहन किराए पर लेती है. जनवरी, 2011 में जब अगले अधिग्रहण का वक्त आया, लोग समझदार हो चुके थे. उन्होंने इस बार पैसा फिक्स डिपॉजिट में लगा दिया. अचानक शहर में एक बैंक स्ट्रीट उभर आई है, जहां आधा दर्जन बड़े बैंकों की शाखाएं खुली हैं.

किशन लाल पूनिया (45) अब धोती कुर्ता नहीं पहनते. डेढ़ साल पहले उन्होंने उसी दिन कपड़े बदल लिए थे, जब उन्हें अपनी 80 एकड़ बंजर जमीन के बदले छह करोड़ रु. की रकम मिली थी. यह जमीन बमुश्किल सालाना 60,000 रु. का बाजरा पैदा करती थी. उनकी सुनिए, ''अब जोतदार दूसरे जोतदारों से काम करवाते हैं. ''

उन्होंने 1.6 करोड़ रु. में 105 एकड़ सिंचित जमीन खरीद ली. दो करोड़ रु. फिक्स डिपॉजिट हैं. उनके काफिले में 18 पहिए का एक और 12 पहिए के दो ट्रक, एक डम्पर, एक बोलेरो और एक स्कॉर्पियो हैं. इनसे वे एक लाख रु. महीना कमा लेते हैं. मजदूर भी सप्लाई करते हैं. शहर में उन्होंने एक करोड़ रु. में दो एकड़ जमीन खरीद ली है. उस पर वे बहुमंजिला फार्म हाउस परिसर बनवा रहे हैं.

पूनिया कहते हैं, ''हम बहुत गरीब से बहुत अमीर हो गए हैं. '' वे 70 से ऊपर के सुमेर खान रामदिया की मिसाल देते हैं, जिनके पास आज भी बीपीएल कार्ड है. सुमेर के बेटे आतिम खान (28) कहते हैं, ''मैं गड़रिया हुआ करता था. '' यह तब की बात है जब उनके अब्बा ने 44 एकड़ जमीन के बदले 3.2 करोड़ रु. का मुआवजा नहीं मिला था. 10 लोगों का परिवार उससे गुजर नहीं कर पाता था. अब आतिम ने एक करोड़ रु. में दो जगह 26 एकड़ सिंचित जमीन खरीदकर 60,000 सालाना की बंटाई पर जोतदारों को किराए पर दे दी है. बुजुर्ग सुमेर खान कहते हैं, ''मेरे परिवार में अब कोई खेती नहीं करना चाहता. '' परिवार अब शहर में नए बने मकान में रहता है. इस साल उनकी बीवी और एक बेटा 10 लाख रु. खर्च कर हज गए.

बाड़मेर में आज दो तरह के लोग हैं. एक बिना कंपनी वाले, जिनकी जमीन अधिग्रहीत नहीं हुई है. दूसरे कंपनी वाले. मसलन 29 वर्षीय शैतान सिंह माहेचा, जो आजकल पटवारी बनने की ट्रेनिंग ले रहे हैं. उनके परिवार को तीन करोड़ रु. मुआवजा मिला था. कुछ में उपजाऊ जमीन खरीदी, 42 लाख रु. में शहर में एक प्लॉट लिया और एक बोलेरो खरीदी. कई ऐसे मामले हैं जहां भूमिहीनों ने अमीर बनने के बाद पहले तय हुए रिश्तों को, वादों को गैर-बराबरी के नाम पर तोड़ डाला.

एक वकील राम कुमावत बताते हैं, ''संपत्ति विवाद बढ़े हैं. पिता की संपत्ति में महिलाओं के दावों के मामले भी बढ़ रहे हैं. '' एक और पूनिया परिवार में एक महिला ने दादा की संपत्ति में हिस्सेदारी के लिए दावा ठोक रखा है, जिन्हें कई करोड़ रु. का मुआवजा मिला था.

पैसे ने अफसरों और नौकरशाहों के लिए बाड़मेर को खासा लुभावना बना दिया है. 2005 तक यहां तैनाती को सजा माना जाता था. उसके बाद यहां नियुक्ति पर गर्व का एहसास होता है. 2009 से तो यहां तैनाती ईनाम मानी जाने लगी है. यहां के स्थानीय लोग अधिकतर रियल एस्टेट धंधों को उन अफसरों और कलेक्टरों के नाम से पहचानते हैं जिन्होंने उनमें पैसे लगाए हैं.

27 वर्षीय देवी सिंह सोढ़ा ने 2003 में प्रॉपर्टी डीलिंग शुरू की थी. तब वे साल भर में बमुश्किल दो सौदे करवा पाते थे, आज 20 तक हो जाते हैं. वे खुद मकानों और जमीन में निवेश करते रहते हैं और इनसे ही करोड़ों रु. कमाए हैं.

बाड़मेर के बाजार भी बदल गए हैं. मुख्य स्टेशन बाजार मार्ग वन वे हो गया है ताकि जाम कम किया जा सके. इसके बावजूद दूसरी सड़कों पर भी बोलेरो और कारों का जाम लगा रहता है. यहां चल रहे प्रोजेक्ट्स में काम करने के लिए मोटी तनख्वाह पर बाहर से कुशल लोगों को लाया गया है और शहर में ढेरों एटीएम खुल गए हैं. दर्जनभर नर्सिंग होम भी उग आए हैं. अब लोगों को खरीदारी या इलाज के लिए जोधपुर या अहमदाबाद जाने की जरूरत नहीं. 2006 तक यहां ब्रांडेड कपड़े मुश्किल से मिलते थे. आज अलग-अलग ब्रांड की जींस और ड्रेसेस के शोरूम मौजूद हैं.

बाड़मेर कभी भी पर्यटन स्थल नहीं रहा. होटल उद्योग यहां था ही नहीं. 2002 में कैलास सरोवर नाम के होटल में सिर्फ एक एसी कमरा हुआ करता था. इसके मालिक ओम मेहता और उनके बेटे राजेश मेहता ने इंडिया टुडे को बताया कि आज उनके दो होटल हैं, जिनमें 177 एसी कमरे हैं. इनमें सुइट भी हैं, जिनका एक रात का किराया 9,000 रु. है.

गुजरात में ग्वारफली का कारोबार करने वाले बाड़मेर के करोड़पति एमएल जैन पिछले साल वापस आ गए और यहां उन्होंने होटल ऋषभ खोल लिया है. कंपनियां अपने अधिकारियों और इंजीनियरों के ठहरने के लिए इनके अधिकतर कमरे बुक करवा लेती हैं. इनके बार में विदेशी शराब भी मिलती है.

शहर की इस तरक्की का असर लड़कियों की शिक्षा और आजादी पर भी पड़ा है. 1998 में शुरू होने पर यहां के एमबीसी राजकीय महिला कॉलेज में सिर्फ 80 लड़कियां आती थीं, वह भी लहंगा-घाघरे में. इसके प्रिंसिपल बेसिल फर्नांडीस बताते हैं कि आज यहां 850 छात्राएं हैं और इनमें कई हैं जो जींस पहनती हैं. शहर से पचास किमी दूर बुरहान का टीला गांव में दसवीं की छात्रा इमला बिश्नोई भी रेत के टीलों में भेड़ें चराने के लिए जींस टॉप में निकली है. हिंदी के लेक्चरार मुकेश पचौरी कहते हैं, ''अब तो शहर में कई लोग हिंदी बोलते हैं, पहले वे राजस्थानी ही बोलते थे. ''

स्कूलों में अंग्रेजी पहुंच चुकी है. मुकेश की पत्नी नवनीत पचौरी के मॉडर्न हाइस्कूल की कक्षाओं में 700 बच्चे पढ़ते हैं. बढ़ती जागरूकता का असर है कि जिले के एक छोटे से कस्बे धोरीमन्ना के नौ बच्चों को इस साल आइआइटी समेत प्रतिष्ठित इंजीनियरिंग कॉलेजों में प्रवेश मिला है. अपनी वेबसाइट बनवाने का चलन यहां जोर पकड़ चुका है. 32 वर्षीय संदीप दुबे 2008 तक साल में तीन वेबसाइट बनाया करते थे, आज महीने में 15 बनाते हैं. कुछ हटकर करने वाले उद्यमी भी हैं. मसलन, एक रिटायर्ड क्लर्क छगन लाल सोनी आंवले और नींबू की बागवानी करते हैं और बड़ी कंपनियां उनसे यह उपज खरीदती हैं.

पैसा खूबसूरती की ख्वाहिश भी पैदा करता है. अनपढ़ और कभी चाय की दुकान पर कप धोने वाले 30 वर्षीय जितेंद्र गोयल को यह बात शायद जल्द समझ में आ गई. उन्होंने रोजाना दो रु. पर एक नाई की दुकान पर काम सीखना शुरू कर दिया. 2006 में 1.8 लाख रु. कर्ज लेकर उन्होंने अपना पार्लर खोल लिया और पिछले साल उन्होंने दूसरा पार्लर खोला, जिसमें नौ कुर्सियां हैं और मसाज के लिए तीन बिस्तर भी. बाजार में बाल काटने के 20 रु. लगते हैं लेकिन जितेंद्र 100 रु. लेते हैं. वे गर्व से बताते हैं कि हाल तक यहां की कलेक्टर रहीं वीना प्रधान उनकी ग्राहक थीं.

बदलती हुई संस्कृति ने लोगों को महत्वाकांक्षी भी बना दिया है. निजी कंपनियों के कुछ बड़े ठेकेदार वे ही लोग हैं जिन्होंने परियोजनाओं और जमीन खरीद के खिलाफ आंदोलन चलाया था. राम सिंह बोथिया आंदोलन के दौरान मोटरसाइकिल से चलते थे. आज मुआवजे और ठेकों के बदले वे फॉर्चुनर, बोलेरो और एक्सयूवी 500 पर सवार हैं. वे अब राजनीति में उतरना चाहते हैं. ऐसी इच्छा पालने वाले वे अकेले नहीं हैं.

इस तरीके से उग आए कुछ नए नेताओं ने समस्याएं भी खड़ी की हैं और अपनी राजनीति चमकाने के लिए खनन क्षेत्र में वे धर्मस्थलों और कब्रगाहों आदि को बचाने के मुद्दे उठाते रहते हैं. राजवेस्ट के एक अधिकारी कहते हैं, ''स्थानीय लोगों से निबटना बड़ा मुश्किल है. वे मुआवजा लेने और नए मकान बनाने के लिए पर्याप्त समय दिए जाने के बावजूद जमीन खाली नहीं करते.'' राजवेस्ट ने 2007 में जमीन गंवाने वालों को 109 मकान बनवा कर दिए थे, कोई भी इनमें रहने नहीं आया. कई लोग चाहते हैं कि उन्होंने जो बुलडोजर, अर्थ मूवर, वाटर टैंकर, ट्रैक्टर वगैरह खरीदे हैं, वह कंपनी किराए पर रख ले.

हाल ही में गांववालों ने कंपनी को मुफ्त में जमीन की पेशकश की और शर्त रखी कि राजवेस्ट वहां स्कूल बनवा दे. अनुसूचित जाति की एक बस्ती में कंपनी जब 30 लाख रु. स्कूल पर खर्च करने को तैयार हो गई, तो उससे जमीन के लिए डेढ़ लाख रु. और मांगे गए. टोडाराम जाट नाम के एक शख्स ने 51 किमी में फैले खनन क्षेत्र में घुसकर राख के तालाब में खुदकुशी कर ली. राजवेस्ट को 20 लाख रु. मुआवजा देना पड़ गया. राजवेस्ट के मुताबिक, एक गांववाले ने मरा कुत्ता कंपनी की गाड़ी के नीचे रख दिया और दावा किया कि यह प्रशिक्षित कुत्ता था. 15,000 रु. का मुआवजा ले लिया.

स्थानीय प्रशासन कंपनी की इन दिक्कतों पर मजा लेता है और स्थानीय लोगों की ही मदद करता है. इसकी एक वजह भी है. सरकार को तेल की रॉयल्टी ही सालाना 3,500 करोड़ रु. आती है लेकिन वह अब तक इन लोगों के लिए कुछ भी कर नहीं सकी है. एंबुलेंस से लेकर हेल्थ मोबाइल वैन सब का इंतजाम कॉर्पोरेट वाले करते हैं. शहरी नियोजन लगभग नदारद है. नई कॉलोनियों बेढंगे तरीके से उग रही हैं. सबसे बुरा हाल उन लोगों का हुआ है जिनके पास जमीन नहीं थी और वे सामंतों के यहां या तो मजदूरी करते या फिर पारंपरिक कामों में लगे रहते थे. उनके भूस्वामियों के पास से जमीन क्या गई, इनकी जिंदगी ही तबाह हो गई.

सामाजिक गैर-बराबरी ने सरेराह शराबखोरी और नशे की हालत में होने वाले झगड़ों को बढ़ावा दिया है. रिश्तों में विश्वासघात आदि के मामले बढ़ रहे हैं. एक रेकी उपचारक कृष्ण कबीर कहते हैं, ''बाड़मेर में अब अवसाद, तनाव, अनिद्रा और उत्तेजना जैसे बड़े शहरों वाले रोग पैदा हो रहे हैं. भूमिहीनों ने भले एसयूवी खरीद ली हों, पर वे बार-बार जड़ों से उखड़ जाने की बात करते हैं. ''

क्या यह शहर अपने अचानक उभार को बनाए रख सकेगा? 2010 में प्लांट निर्माण पूरा होने के बाद जो 16,000 रोजगार खत्म हुए, उनसे अचानक आई गिरावट कुछ संकेत देती है. इसके बाद किराए की दर और जमीन के दाम नीचे आए हैं. राजस्थान में केयर्न के ऑपरेशन प्रमुख सी.डी. नारायणस्वामी ने भावी संकट को पकड़ लिया है. वे बताते हैं कि यहां साक्षरता दो फीसदी नीचे आ गई है क्योंकि परियोजना निर्माण के दौरान शिक्षित हुए लोगों में से ज्यादातर शहर छोड़ कहीं और बस गए हैं. ''इस अचानक आई वृद्धि को टिकाए रखने के लिए एक लंबी अवधि की योजना जरूरी है.''

सरकार के किसी भी हस्तक्षेप के अभाव में अब केयर्न ने ही शहर की जरूरतों को पूरा करने के लिए कुछ प्रशिक्षण कार्यक्रम शुरू किए हैं. उसने यहां के बच्चों को ऑडियो-वीडियो से अंग्रेजी सिखाने के लिए स्थानीय शिक्षिका मोहिनी चौधरी को नियुक्त किया है. एक अन्य पाठ्यक्रम में युवाओं को कारीगरी और मोबाइल मरम्मत का प्रशिक्षण दिया जा रहा है.

पर एम.एल. जैन दूरदृष्टि के हिमायती हैं, ''यहां से मुंबई की कोई सीधी ट्रेन नहीं है. चार्टर्ड विमान उतरते हैं पर कोई नियमित उड़ान नहीं. यहां लिग्नाइट की खोज हुई है पर कई खनिज दबे पड़े हैं. '' यहां भी जैसलमेर जितने ही रेत के खूबसूरत टीले बनते हैं. पर सीमावर्ती इलाकों में आवाजाही पर कड़ी बंदिशों के चलते जिले का बड़ा भूभाग अब भी यहां के निवासियों के लिए अछूता है. खैर! कल का गरीब गंवई बाड़मेरी आज बाड़मेराइट बन चुका है और यह सब कच्चे तेल और खदानों की देन है. बाड़मेर में पैदा होना अब अभिशाप नहीं.





स्वर्ण नगरी जैसलमेर में हर्षोल्लास के साथ मनाया गया गणतंत्र दिवस समारोह


स्वर्ण नगरी जैसलमेर में हर्षोल्लास के साथ मनाया गया गणतंत्र दिवस समारोह


        जिले के प्रभारी मंत्री श्री चौधरी  ने किया ध्वजारोहण
सराहनीय सेवाओं के लिए 22 लोगों को दिए प्रशस्ति-पत्र
       जैसलमेर ,26 जनवरी/ स्वर्ण नगरी जैसलमेर में 26 जनवरी, शनिवार को 64 वाँ गणतंत्र दिवस समारोह हर्षोल्लास के साथ समारोहपूर्वक मनाया गया। प्रदेश के राजस्व,उपनिवेशन जल संसाधन एवं जैसलमेर जिले के प्रभारी मंत्री हेमाराम चौधरी ने स्थानीय शहीद पूनम सिंह स्टेडियम में आयोजित प्रातःकालीन मुख्य समारोह के अवसर पर ध्वजारौहण किया। उन्होंने गणतंत्र दिवस पर आयोजित परेड का खुली जिप्सी में खड़े होकर निरीक्षण किया। इस अवसर पर परेड कमाण्डर मोहनसिंह के नेतृत्व में राजस्थान पुलिस ,बोर्डर होमगार्ड्स ,अरबन होमगार्ड्स ,एन.सी.सी. सीनियर , जूनियर , स्काउट , गर्ल्स गाईड्स की टूकड़ियों द्वारा आकर्षक मार्चपास्ट प्रस्तुत किया गया एवं मुख्य अतिथि को सलामी देते हुए सलामी मंच के आगे से गुजरे।
       मुख्य अतिथि जिला प्रभारी मंत्री चौधरी ने गणतंत्र दिवस समारोह के अवसर पर उत्कृष्ट एवं सराहनीय सेवाओं के लिये 22  व्यक्तियों को प्रशंसा-पत्र एवं स्मृति चिन्ह प्रदान कर सम्मानित किया गया। समारोह में जिला कलक्टर शुचि त्यागी, जिला पुलिस अधीक्षक ममता राहुल ,  पोकरण विधायक शाले मोहम्मद , जैसलमेर विधायक छोटूसिंह भाटी , जिला प्रमुख अब्दुला फकीर , नगरपरिषद के सभापति अशोक तंवर , नगर विकास न्यास के अध्यक्ष उम्मेद सिंह तंवर ,बीसूका उपाध्यक्ष देवकाराम माली , जैसलमेर केन्द्रीय सहकारी बैंक के अध्यक्ष देवीसिंह भाटी , पंचायत समिति सम की प्रधान श्रीमती लक्ष्मीकँवर , पूर्व विधायक किशनसिंह भाटी , डॉ. जितेन्द्रसिंह ,मुल्तानाराम बारुपाल, सांगसिंह भाटी भी उपस्थित थे।
       गणतंत्र दिवस पर दी बधाई
       प्रभारी मंत्री हेमाराम चौधरी ने गणतंत्र दिवस के उपलक्ष में सभी को हार्दिक बधाई एवं शुभकामनाएँ दी। उन्होेंने देश को आजादी दिलाने वाले स्वतंत्रता सैनानियों के साथ ही महान् सपूतों को शत्-शत् स्मरण करते हुए कहा कि उनके बलिदान के कारण देश को आजादी मिली। उन्होंने कहा कि आजादी के बाद देश में मजबूत लोकतंत्र कायम हुआ और देश आत्मनिर्भरता के साथ सभी क्षेत्रों में विकास की ओर बढ़ रहा हैं।
       योजनाओं से मिला आमजन को लाभ
       प्रभारी मंत्री चौधरी ने कहा कि  मुख्यमंत्री श्री अशोक गहलोत के नेतृत्व में गत चार वर्षो में राज्य सरकार ने नए राजस्थान के संकल्प के साथ ही समग्र विकास और लोक कल्याण की पहल की हैं। उन्होंने कहा कि राज्य में पहली बार पन्द्रह स्टेट फ्लैगशिप योजनाएँ लागू की जाकर आमजन को राहत पहुंचाई गई। उन्होंने कहा कि मुख्यमंत्री निःशुल्क दवा योजना तो वास्तव में एक अनुकरणीय योजना हैं इससे हर व्यक्ति का लाभ मिल रहा हैं। उन्होंने कहा कि जननी सुरक्षा योजना के क्रियान्वयन से संस्थागत प्रसव बढ़ कर 70 प्रतिशत हो गए हैं। इन योजनाओं की राष्ट्रीय स्तर पर भी सराहनी हुई हैं।
       ब्याजमुक्त ऋण से लाभान्वित हुए किसान
       प्रभारी मंत्री श्री चौधरी ने कहा कि किसानों को मुख्यमंत्री ब्याजमुक्त फसली ़ऋण का लाभ दिया जा रहा हैं वहीं राज्य सरकार हर वर्ग के उत्थान के लिए काम कर रही हैं।
गरीब व्यक्ति तक पहुंचाएँ योजना का लाभ
       प्रभारी मंत्री ने कहा कि जनप्रतिनिधियों एवं अधिकारियों को मिलजुल कर राज्य सरकार द्वारा संचालित सभी अनुकरणीय योजनाओं का लाभ समाज के अंतिम पंक्ति में बैठे व्यक्ति तक पहुँचाना है। उन्होंनें कहा कि सीमावर्ती बाड़मेर व जैसलमेर जिलों में विकास की गति दिनोदिन बढ रही हैं एवं आने वाले समय में ये सीमांत जिले देश के विकास में अपनी अहम् भूमिका अदा करेगें।
       राज्यपाल सन्देश का पठन
       गणतंत्र दिवस समारोह के अवसर पर अतिरिक्त जिला कलक्टर परशुराम धानका ने महामहिम राज्यपाल के सन्देश का पठन किया। इस अवसर पर नगर की 30 शिक्षण संस्थानों के लगभग 900 से अधिक छात्र-छात्राओं ने पुलिस बैण्ड की मधूर धूनों पर सामुहिक व्यायाम का प्रदर्शन प्रस्तुत किया। इसी प्रकार राजकीय बालिका उच्च प्राथमिक विद्यालय इं.गा.न.प. की  बालिकाओं द्वारा कमल की पंखूड़ियों के बीच प्रकट हुई भारतमाता का दृश्य बहुत ही आकर्षक रहा।
       स्काउटों ने किया पिरामिड का निर्माण , शानदान रही सांस्कृतिक प्रस्तुति
इस अवसर पर स्काउट के बालचरों एवं गर्ल्स गाईड्स द्वारा अपने शारीरिक संतुलन तथा दमखम का अद्भुत प्रदर्शन प्रस्तुत करते हुए पिरामिड्स निर्माण का  प्रस्तुतीकरण किया। समारोह में श्रीमती किश्नीदेवी मगनीराम मोहता राजकीय बालिका उच्च माध्यमिक विद्यालय जैसलमेर की छात्राओं द्वारा राजस्थानी एवं देशभक्ति लोकगीतों की धून पर सांस्कृतिक समूह नृत्य पेश कया गया। लोक कलाकार कमरूदीन के संगीत निर्देशन में प्रस्तुत किये गये नृत्य का निर्देश्न श्रीमती माया व्यास ,कृष्णा खत्री एवं अरूणा व्यास ने किया।
              गणतंत्र दिवस समारोह के कार्यक्रमों का विदेशी पर्यटकों ने भी बड़ी रूचि के साथ देखा एवं समारोह में प्रस्तुत किये गये आकर्षक कार्यक्रमों को चिरस्थायी याद के लिये अपने कैमरों में कैद किया।
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प्रभारी मंत्री  चौधरी ने पांच विद्यालयों को विशेष योग्यजन बालकों के आनन्दमयी शिक्षा के लिए
संस्था प्रधानों को दिये चैक
       जैसलमेर, 26 जनवरी/जैसलमेर में  गणतंत्र दिवस के मुख्य समारोह में जिले के प्रभारी मंत्री हेमाराम चौधरी ने विशेष योग्यजन बालकों को आनंदमयी शिक्षा अर्जित करने एवं उपकरण उपलब्ध करवाने के लिए 5 संस्था प्रधानों को 2-2 हजार रुपए की राशि के चैक प्रदान किए।
       प्रभारी मंत्री चौधरी ने रा.उ.प्रा.वि.संस्कृत अमरसागर के संस्था प्रधान इंद्रप्रकाश व्यास , रा.उ.प्रा.वि बड़ाबाग के बद्रीविशाल व्यास , रा.उ.प्रा.वि ढिब्बा पाड़ा जैसलमेर की श्रीमती माधूरी , रा.प्रा.वि.नाचना के पोलाराम व रा.बा.उ.प्रा.वि सोनू के संस्था प्रधान रघुनाथसिंह को यह राशि प्रदान की।
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उद्घौषकों ने गणतंत्र दिवस समारोह का समा बान्धा
       जैसलमेर, 26 जनवरी /गणतंत्र दिवस समारोह के अवसर पर प्रस्तुत किए गये कार्यक्रमों के सम्बन्ध में अत्यन्त रौचक एवं आकर्षक शैली में कमैंन्ट्री कर उद्घौषकों ने समारोह में समा बान्ध दी। इस अवसर पर व्याख्याता हरिवल्लभ बौहरा ,मनोहर महेचा ,रंगकर्मी विजय बल्लाणी तथा लेखाकार एवं साहित्यकार आनन्द जगानी ने औजस्वी वाणी में कमेन्ट्री की ।
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गणतंत्र दिवस समारोह - गणमान्य अतिथियों ने किया कार्यक्रमों का दृश्यावलोकन
       जैसलमेर, 26 जनवरी/स्वर्ण नगरी जैसलमेर में जिले के प्रभारी मंत्री हेमाराम चौधरी के  मुख्य आतिथ्य में शहीद पूनमसिंह स्टेडियम में गणतंत्र दिवस मुख्य समारोह के अवसर पर आयोजित विविध कार्यक्रमों का गणमान्य अतिथियों , जन प्रतिनिधियों एवं अधिकारियों के साथ ही नगरवासियों ने दृश्यावलोकन किया।  
       इस समारोह में मुख्य कार्यकारी अधिकारी जिलापरिषद बलदेवसिंह उज्जवल , अतिरिक्त आयुक्त उपनिवेशन एफ.आर.सोनी ,भारतीय प्रशासनिक सेवा के प्रशिक्षु अरुण कुमार झा , अतिरिक्त पुलिस अधीक्षक रामसिंह , सचिव नगर विकास न्यास आर.डी.बारहठ , उपखण्ड अधिकारी रमेशचन्द जैन्थ, पुलिस के उपअधीक्षक शायरसिंह ,आयुक्त नगरपरिषद आर.के. माहेश्वरी के साथ ही अन्य जिलाधिकारीगण उपस्थित थे।
       समारोह में पूर्व नगरपालिकाध्यक्ष श्रीमती विमला वैष्णव,  समाज सेवी  रावताराम पंवार , शंकरलाल माली,  राणजी चौधरी, जनकसिंह भाटी , खटनखां , जितेन्द्रसिंह सिसोदिया , प्रेम भार्गव , समाज सेविका श्रीमती प्रेमलता चौहान ,श्रीमती सस्वती छंगाणी, श्रीमती देवकीदेवी राठौड़ , श्रीमती प्रेमलता भाटिया ,श्रीमती मनोरमा वैष्णव , एवं ़ नगर पालिका के  पार्षदगण ,नगर के गणमान्य नागरिक तथा प्रेस प्रतिनिधिगण एवं नगरवासी उपस्थित थे।
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जिला कलक्टर शुचि त्यागी ने  किया कलेक्ट्रेट में ध्वजारौहण
       जैसलमेर ,26 जनवरी/ जिला कलक्टर शुचि त्यागी ने गणतंत्र दिवस के उपलक्ष में शनिवार को कलेक्ट्रेट कार्यालय जैसलमेर पर ध्वजारौहण किया। इस अवसर पर पुलिस की सशस्त्र टूकड़ी द्वारा राष्ट्रीय ध्वज को सलामी दी गयी। जिला कलक्टर त्यागी ने सभी अधिकारियों व कर्मचारियों को  गणतंत्र दिवस पर अपनी ओर से हार्दिक बधाई दी।
       ध्वजारौहण के अवसर पर अतिरिक्त जिला कलक्टर परशुराम धानका , उपखण्ड अधिकारी रमेशचन्द जैन्थ , नगर विकास न्यास के सचिव आर.डी.बारहठ ,कोषाधिकारी श्रीमती रश्मि बिस्सा, सहायक आयुक्त उपनिवेशन देवाराम सुथार के साथ ही कलेक्ट्रेट परिसर के अधिकारी एवं कर्मचारीगण उपस्थित थे।
                                 
पुलिस अधीक्षक ममता राहुल ने किया पुलिस अधीक्षक कार्यालय पर ध्वजारौहण
गणतंत्र दिवस समारोह के अवसर पर जिला मुख्यालय पर स्थित पुलिस अधीक्षक कार्यालय पर जिला पुलिस अधीक्षक ममता राहुल ने ध्वजारौहण किया। इस अवसर पर पुलिस की सशस्त्र टूकड़ी द्वारा राष्ट्रीय ध्वज को सलामी दी गई।
       ध्वजारौहण के अवसर पर अतिरिक्त पुलिस अधीक्षक रामसिंह ,उप अधीक्षक पुलिस शायर सिंह,शहर कोतवाल विरेन्द्र सिंह के साथ ही पुलिस विभाग के कर्मचारीगण भी उपस्थित थे।
जिला प्रमुख श्री फकीर  ने जिला परिषद भवन पर किया ध्वजारौहण
  गणतंत्र दिवस समारोह के अवसर पर जिला प्रमुख श्री अब्दुला फकीर  ने जिला परिषद कार्यालय पर ध्वजारौहण किया एवं सभी को हार्दिक बधाई दी । ध्वजारौहण समारोह के अवसर पर जिला परिषद के मुख्य कार्यकारी अधिकारी बलदेवसिंह उज्जवल ,अतिरिक्त मुख्य कार्यकारी अधिकरी जगदीश गौड़ एवं कार्मिक भी मौजूद थे।
       जिला प्रमुख अब्दुला फकीर ने राष्ट्रीय पर्व पर उपस्थित जिला परिषद के अधिकारियों व कार्मिकों को हार्दिक शुभकामनाएॅ दी। उपखण्ड अधिकारी रमेशचन्द जैन्थ ने उपखण्ड कार्यालय पर ध्वजारौहण किया एवं सभी कार्मिकों को राष्ट्रीय पर्व पर हार्दिक शुभकामनाएॅ दी।
जिला एवं सत्र न्यायाधीश गोरधनलाल मीणा ने  जिला न्यायालय पर किया ध्वजारौहण
       गणतंत्र दिवस समारोह के अवसर पर जिला एवं सत्र न्यायाधीश गोरधनलाल मीणा ने  जिला एवं सैंशन न्यायालय पर ध्वजारौहण किया। इस अवसर पर पुलिस की सशस्त्र टूकड़ी द्वारा राष्ट्रीय ध्वज को सलामी दी गई।
       इस अवसर पर न्यायिक मजिस्टेªट राजेश कुमार के साथ ही अन्य न्यायालयों के कार्मिक एवं अधिवक्ता भी उपस्थित थे।
                           अध्यक्ष श्री तवर ने नगरपरिषद कार्यालय में किया ध्वजारौहण
            गणतंत्र दिवस समारोह के अवसर पर नगरपरिषद कार्यालय में सभापति अशोक तँवर ने ध्वजारौहण किया एवं सभी अधिकारियों व कर्मचारीयो को हार्दिक शुभ कामनाए दी।
इस अवसर पर नगरपरिषद आयुक्त आर.के.माहेश्वरी ,पार्षद गण एवं नगरपालिका के कर्मचारी एवं  अधिकारीगण उपस्थित थे ।
अध्यक्ष श्री तंवर ने नगर विकास न्यास कार्यालय में किया ध्वजारोहण
            गणतंत्र दिवस समारोह के अवसर पर नगर विकास न्यास के अध्यक्ष उम्मेदसिंह तँवर ने न्यास कार्यालय पर  ध्वजारौहण किया एवं सभी अधिकारियों व कर्मचारीयो को हार्दिक शुभ कामनाए दी।
            इस अवसर पर न्यास के सचिव आर.डी बारहठ के साथ ही न्यास के  अधिकारीगण एवं कर्मचारी उपस्थित थे ।
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गणतंत्र दिवस समारोह का मुख्य आकर्षण रही साँस्कृतिक झाँकियां
       जैसलमेर, 26 जनवरी/ गणतंत्र दिवस मुख्य समारोह के अवसर पर विभिन्न विभागों एवं शिक्षण संस्थानों द्वारा निकाली गयी साँस्कृतिक झांकियां आकर्षण का केन्द्र बिन्दू रही। इन झांकियों के माध्यम से सरकार के कल्याणकारी कार्यक्रमों , फ्लैगशिप योजनाआंे , मुख्यमंत्री बीपीएल अन्न सुरक्षायोजना , महिला सुरक्षा से संबंधित जीवन्त प्रदर्शन सचित्रित किया गया।
       मुख्य समारोह में चिकित्सा विभाग द्वारा मुख्यमंत्री निःशुल्क दवा योजना  , महिला एवं बाल विकास विभाग द्वारा महिला सुरक्षा केन्द्रों , रसद विभाग द्वारा मुख्यमंत्री अन्न सुरक्षा योजना , निर्वाचन विभाग द्वारा राष्ट्रीय मतदाता दिवस से संबंधित झांकियों की प्रस्तुती कर योजना के संचालन का संदेश दिया। इसके साथ ही विद्यालयों द्वारा घोड़े पर बैठी झांसी की रानी की झांकी आकर्षण का केन्द्र बिन्दू रही वहीं युवाशक्ति के पांच सूत्र , चेतना से संपूर्णता एवं आध्यात्मिक योग साधना ,पोलिथिन उपयोग के प्रतिबंध से ओतप्रोत झांकियाँ भी सराहनीय रही।
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सांस्कृतिक समूह नृत्य पर दिए पुरस्कार
       जैसलमेर, 26 जनवरी/ गणतंत्र दिवस के उपलक्ष में आयोजित मुख्य समारोह के अवसर पर श्रीमती किशनीदेवी मगनीराम मोहता राजकीय बालिका उच्च माध्यमिक विद्यालय जैसलमेर की बालिकाओं द्वारा शानदान सामुहिक सांस्कतिक समूह नृत्य की प्रस्तुती की गई।
       इस सामुहिक सांस्कृतिक नृत्य के लिए पोकरण विधायक शाले मोहम्मद एवं नगर विकास न्यास के अध्यक्ष उम्मेदसिंह तंवर ने अपनी ओर से 2100 -2100 रुपये पुरस्कार स्वरुप प्रदान किए। वहीं नगरपरिषद की ओर से अध्यक्ष अशोक तँवर ने समूह नृत्य के लिए 15000 रुपए की राशि देने की घोषणा की।
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आदिवासी क्षेत्रों में राष्ट्रीय पर्वों पर बहती हैं उल्लास की सरिताएं


आदिवासी क्षेत्रों में राष्ट्रीय पर्वों पर बहती हैं उल्लास की सरिताएं
डॉदीपक आचार्य

मानव सभ्यता के साथ ही जीवन के हर क्षण में आनंद की प्राप्ति मनुष्य का परम अभीष्ट होता है और उसी के लिए वह अहर्निश प्रयत्नशील रहा है।  मानव मात्र के प्रत्येक कर्म के पीछेयही आत्म आनंद रहा है।
भारतीय संस्कृति में हर दिन कोई  कोई तीज-त्योहार और पर्व इसी भावना के द्योतक हैं जिनके सहारे मानव समुदाय निरन्तर उल्लास और उत्साह में निमग्न रहकर जीवन यात्रा कोगतिमान करता रहा है।
देश के कुछ हिस्सों में साल भर उत्सवी माहौल रहता है। इन्हीं में वागड़ अंचल भी है जहां विभिन्न पर्व-त्योहारों और उत्सवों की श्रृंखला में स्वाधीनता दिवस तथा गणतंत्र दिवस भीसमाहित हैं। इन्हें आदिवासी क्षेत्रों बांसवाड़ा और डूंगरपुर तथा आस-पास के क्षेत्रों में किसी विशाल मेले से कम नहीं आँका जाता।
इस दिन गांव-कस्बों और शहरों में होने वाले आयोजनों में भारी जनोत्साह लहराता ही है लेकिन बांसवाड़ा एवं डूंगरपुर दोनों जिला मुख्यालयों पर आयोजित होने वाले जिलास्तरीयमुख्य समारोहों में भी आस-पास के गांवों से बड़ी संख्या में ग्राम्य नर-नारियों का ज्वार उमड़ता है। इन आयोजनों को स्थानीय बोली में झण्डा नो मेरो’ अर्थात झण्डे का मेला नाम दियागया है।
प्रातः होने वाले इन समारोहों में ध्वजारोहण से लेकर अंतिम कार्यक्रम राष्ट्रगान से समाप्ति तक यह ग्राम्य समुदाय डूंगरपुर के लक्ष्मण मैदान तथा बांसवाड़ा के कुशलबाग मैदान मेंजमा रहता है। ये लोग किसी पारंपरिक उत्सव या मेले की तर्ज पर ही सज-धज कर पूरे उल्लास से आते हैं और राष्ट्रीय पर्वों का उत्साह बाँटते हैं।
इन समारोहों की समाप्ति के बाद इनका रुख शहर के बाजारों की तरफ होता है जहाँ खरीदारी के साथ ही खाने-पीने की दुकानों पर खूब भीड़ लगती है। दोपहर बाद तक शहर के विभिन्नस्थलों तथा उद्यानों में भ्रमण के बाद यह ग्राम्य समुदाय वापस गांवों की ओर रुख करता है।
राष्ट्रीय पर्वों पर ग्राम्य समुदाय की बड़ी संख्या और इनमें लहराता उत्साह तथा इन पर्वो का उल्लास इनके चेहरों से अच्छी तरह पढ़ा जा सकता है।
आम ग्रामीणों तक के मन में राष्ट्रभक्ति का दिग्दर्शन कराने वाले ये झण्डे के मेले वागड़ की उत्सवी संस्कृति का अहम् हिस्सा हैं।
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