अपने गुलाम से प्रेम करने लगी थीं रजिया सुल्तान, इस किले में हो गई थीं कैद
पंजाब के बठिंडा में स्थित किला मुबारक देश की राष्ट्रीय स्मारकों में से एक है। यह ईंट का बना सबसे पुराना और ऊंचा स्मारक है। इसका इतिहास बड़ा ही अनोखा है। भाटी राजपूत राजा बीनपाल ने इस किले का निर्माण लगभग 1800 साल पहले करवाया था। इसी किले में पहली महिला शासिका रजिया सुल्तान को 1239 ईसवीं में कैद कर लिया गया था। रजिया सुल्तान के प्रेमी याकूत को मारकर इस किले में उसके गर्वनर अल्तुनिया ने कैद किया था। बता दें कि याकूत रजिया सुल्तान का गुलाम था। जो रजिया सुल्तान को घोड़े की सवारी कराता था।रजिया को घोड़े की सवारी कराता था याकूतरजिया पुरुषों की तरह कपड़े पहनती थीं और खुले दरबार में बैठती थीं। उनके अंदर एक बेहतर शासिका के सारे गुण थे। एक समय ऐसा भी आया जब लग रहा था कि रजिया दिल्ली सल्तनत की सबसे ताकतवर मल्लिका बनेंगी, लेकिन गुलाम याकूत के साथ रिश्तों के कारण ऐसा नहीं हो पाया। याकूत रजिया सुल्तान को घोड़े की सवारी कराता था। इस दौरान दोनों में नजदीकियां बढ़ गईं और रजिया सुल्तान ने उसे अपना पर्सनल अटेंडेंट बना लिया। कुछ इतिहासकारों के अनुसार याकूत रजिया का प्रेमी नहीं, विश्वासपात्र था।प्रेम कहानी के कारण दुश्मन बना बचपन का दोस्त अल्तूनियागुलाम याकूत से उसकी प्रेम कहानी और महिला शासक होने के कारण तुर्क उनके दुश्मन हो गए। इन दुश्मनों में उनके बचपन का दोस्त बठिंडा का गवर्नर मलिक अल्तुनिया भी शामिल था। याकूत तुर्क नहीं था इसलिए उसके प्रति रजिया के प्रेम को देखकर तुर्क विद्रोही हो गए और मल्लिका को सल्तनत से बेदखल करने के लिए षड्यंत्र में लग गए। अल्तुनिया ने रजिया की सत्ता को स्वीकारने से इंकार किया। उसके और रजिया के बीच युद्ध शुरू हो गया। युद्ध में याकूत मारा गया और रजिया को अल्तुनिया ने बठिंडा के इस किले में कैद कर लिया।इस घटना के बाद अल्तुतमिश के तीसरे बेटे बहराम शाह को गद्दी पर बैठा दिया गया। किले में कैद रजिया ने मौत से बचने के लिए अल्तुनिया से शादी कर ली। उधर रजिया के भाई बहराम शाह ने दिल्ली की गद्दी पर कब्जा कर लिया। अल्तुनिया ने अपनी पत्नी को दोबारा गद्दी पर बैठाना चाहा, लेकिन बहराम शाह ने इसका विरोध किया। बहराम शाह की लड़ाई में अल्तुनिया परास्त हुआ और रजिया के साथ वेष बदलकर भाग निकला।सलामती और खुशहाली के लिए प्रार्थना करने आए थे दसवें सिख गुरूदसवें सिख गुरू, गुरू गोविन्द सिंह इस किले मे 1705 के जून माह में आए थे और इस जगह की सलामती और खुशहाली के लिए प्रार्थना की थी। पटियाला राज्य के महाराजा आला सिंह ने इस किले को 1754 में अपने अधीन कर लिया था और इस किले का नाम गोविन्दघर कर दिया गया, लेकिन जल्द ही इस जगह को बकरामघर के नाम से बुलाया जाने लगा। इस किले के सबसे ऊपर गुरूद्वारे का निर्माण करवाया गया है। इस गुरूद्वारे का निर्माण पटियाला के महाराजा करम सिंह ने करवाया था।