रविवार, 27 सितंबर 2015

जोधपुर बिना टिकट यात्रा करते 175 लोगों से वसूला जुर्माना



जोधपुर बिना टिकट यात्रा करते 175 लोगों से वसूला जुर्माना


मण्डल रेलवे जोधपुर में चल रहे सघन टिकट जांच अभियान के तहत शनिवार को बिना टिकट यात्रा करने वाले 175 यात्रियों से जुर्माना वसूला गया।

रेलवे जनसम्पर्क अधिकारी गोपाल शर्मा ने बताया कि शनिवार को सालावास रेलवे स्टेशन से गुजरने वाली टे्रनों की सघन जांच की गई।

इस दौरान 175 यात्री बिना टिकट यात्रा करते पाए गए जिनसे 51 हजार 970 रुपए, धूम्रपान करने वाले 2 यात्रियों से 400 रुपए और गंदगी फैलाने पर एक यात्री से 100 रुपए जुर्माना वसूला।

पर्यटन दिवस पर वसुंधरा ने लिखा- सत्कार की अनूठी परंपरा निभा रहा है राजस्थान

पर्यटन दिवस पर वसुंधरा ने लिखा- सत्कार की अनूठी परंपरा निभा रहा है राजस्थानपर्यटन दिवस पर वसुंधरा ने लिखा- सत्कार की अनूठी परंपरा निभा रहा है राजस्थान


शौर्य और साहस की अनगिनत गौरव गाथाएं समेटे महल, कल-कल करती झीलें, प्रकृति प्रेमियों और वन्य जीवन में रूचि रखने वालों के लिए राष्ट्रीय उद्यान अभयारण्य और त्योहारों का अलग स्वरूप ये सब एक जगह मिलते हैं और वो है राजस्थान। देश में पर्यटन की बात राजस्थान के बिना संभव ही नहीं है। यहां का स्वागत-सत्कार ताउम्र भूल नहीं पाते हैं पर्यटक।

अब तक इसे राजाओं की धरती ही माना जाता रहा है लेकिन यहां इससे भी बहुत ज्यादा है अनुभव करने के लिए। यात्रा को यादगार बनाने के लिए। यहां की रंगारंग संस्कृति और स्वादिष्ट व्यंजन इसे अलग पहचान देते हैं। स्थानीय लोगों के बीच संगीत और नृत्य अभ्यास भी बहुत ही जीवंत और आकर्षक हैं, इन बातों के अलावा ये जगह अपने लाजवाब आर्टवर्क के लिए भी जानी जाती है। यहां की पारंपरिक कलात्मक पोशाकें, जिसमें शीशे के काम देखा जा सकता है। कला प्रेमियों के लिए राजस्थान स्वर्ग से कम नहीं है। यहां के महल, हवेली, किले उम्दा वास्तुकला के उत्कृष्ट उदाहरण हैं। त्योहारों का भी रंग यहां अलग दिखाई देता है। यहां होली, तीज, दीपावली, संक्रांति और जन्माष्टमी का विशेष महत्व है इसके अलावा, वर्ष में एक बार मनाया जाने वाला, ऊंट और पशु मेला भी राज्य के प्रमुख उत्सव हैं।

रणथंभौर राष्ट्रीय उद्यान, सरिस्का टाइगर रिजर्व, दरा वन्य प्राणी अभयारण्य और कुम्भलगढ़ वन्यजीव अभयारण्य प्रकृति प्रेमियों और वन्य जीवन में रुचि रखने वाले लोगों के लिए तोहफे के समान हैं। जयपुर, जोधपुर, उदयपुर और बीकानेर जैसे खूबसूरत शहरों की भव्यता देखते ही बनती हैं। इसके अलावा यहाँ बांसवाड़ा, कोटा, भरतपुर, बूंदी, विराट नगर, सरिस्का और शेखावाटी जैसे भी दर्शनीय स्थल हैं जो राजस्थान की असली खुशबू को समेटे हुए हैं। झीलों की नगरी उदयपुर की सुंदरता देखती ही बनती हैं वहीं झुलसती गर्मी में प्रदेश का एकमात्र हिल स्टेशन माउंट आबू यादगार अनुभव देता है। वहीं परमाणु परीक्षण झेलने वाली शक्तिशाली धरती पोकरण भी यहीं मौजूद है। लेटिन दार्शनिक और बिशप सेंट ऑगस्टाइन ने कहा था कि " ये दुनिया एक किताब है और जो लोग यात्रा नहीं करते उन्होंने अपने जीवन में केवल एक ही पेज पढ़ा है। राजस्थान उसी किताब का खास हिस्सा है।

-वसुंधरा राजे, मुख्यमंत्री, राजस्थान

अपने गुलाम से प्रेम करने लगी थीं रजिया सुल्तान, इस किले में हो गई थीं कैद

अपने गुलाम से प्रेम करने लगी थीं रजिया सुल्तान, इस किले में हो गई थीं कैद
किला मुबारक और इनसेट में रजिया सुल्तान की फाइल फोटो

पंजाब के बठिंडा में स्थित किला मुबारक देश की राष्ट्रीय स्मारकों में से एक है। यह ईंट का बना सबसे पुराना और ऊंचा स्मारक है। इसका इतिहास बड़ा ही अनोखा है। भाटी राजपूत राजा बीनपाल ने इस किले का निर्माण लगभग 1800 साल पहले करवाया था। इसी किले में पहली महिला शासिका रजिया सुल्तान को 1239 ईसवीं में कैद कर लिया गया था। रजिया सुल्तान के प्रेमी याकूत को मारकर इस किले में उसके गर्वनर अल्तुनिया ने कैद किया था। बता दें कि याकूत रजिया सुल्तान का गुलाम था। जो रजिया सुल्तान को घोड़े की सवारी कराता था।



रजिया को घोड़े की सवारी कराता था याकूत
रजिया पुरुषों की तरह कपड़े पहनती थीं और खुले दरबार में बैठती थीं। उनके अंदर एक बेहतर शासिका के सारे गुण थे। एक समय ऐसा भी आया जब लग रहा था कि रजिया दिल्ली सल्तनत की सबसे ताकतवर मल्लिका बनेंगी, लेकिन गुलाम याकूत के साथ रिश्तों के कारण ऐसा नहीं हो पाया। याकूत रजिया सुल्तान को घोड़े की सवारी कराता था। इस दौरान दोनों में नजदीकियां बढ़ गईं और रजिया सुल्तान ने उसे अपना पर्सनल अटेंडेंट बना लिया। कुछ इतिहासकारों के अनुसार याकूत रजिया का प्रेमी नहीं, विश्वासपात्र था।

प्रेम कहानी के कारण दुश्मन बना बचपन का दोस्त अल्तूनिया

गुलाम याकूत से उसकी प्रेम कहानी और महिला शासक होने के कारण तुर्क उनके दुश्मन हो गए। इन दुश्मनों में उनके बचपन का दोस्त बठिंडा का गवर्नर मलिक अल्तुनिया भी शामिल था। याकूत तुर्क नहीं था इसलिए उसके प्रति रजिया के प्रेम को देखकर तुर्क विद्रोही हो गए और मल्लिका को सल्तनत से बेदखल करने के लिए षड्यंत्र में लग गए। अल्तुनिया ने रजिया की सत्ता को स्वीकारने से इंकार किया। उसके और रजिया के बीच युद्ध शुरू हो गया। युद्ध में याकूत मारा गया और रजिया को अल्तुनिया ने बठिंडा के इस किले में कैद कर लिया।
इस घटना के बाद अल्तुतमिश के तीसरे बेटे बहराम शाह को गद्दी पर बैठा दिया गया। किले में कैद रजिया ने मौत से बचने के लिए अल्तुनिया से शादी कर ली। उधर रजिया के भाई बहराम शाह ने दिल्ली की गद्दी पर कब्जा कर लिया। अल्तुनिया ने अपनी पत्नी को दोबारा गद्दी पर बैठाना चाहा, लेकिन बहराम शाह ने इसका विरोध किया। बहराम शाह की लड़ाई में अल्तुनिया परास्त हुआ और रजिया के साथ वेष बदलकर भाग निकला।


सलामती और खुशहाली के लिए प्रार्थना करने आए थे दसवें सिख गुरू
दसवें सिख गुरू, गुरू गोविन्द सिंह इस किले मे 1705 के जून माह में आए थे और इस जगह की सलामती और खुशहाली के लिए प्रार्थना की थी। पटियाला राज्य के महाराजा आला सिंह ने इस किले को 1754 में अपने अधीन कर लिया था और इस किले का नाम गोविन्दघर कर दिया गया, लेकिन जल्द ही इस जगह को बकरामघर के नाम से बुलाया जाने लगा। इस किले के सबसे ऊपर गुरूद्वारे का निर्माण करवाया गया है। इस गुरूद्वारे का निर्माण पटियाला के महाराजा करम सिंह ने करवाया था।

यहां पत्थर जोडते हैं वासना को अध्यात्म से - खजूराहो मंदिर

यहां पत्थर जोडते हैं वासना को अध्यात्म से - खजूराहो मंदिर

खजूराहो मंदिर
खजुराहो, समृद्ध सांस्कृतिक विरासत और विलक्षण ग्रामीण परिवेश के कारण भारत ही नहीं पूरी दुनिया को अपनी ओर आकर्षित करता है। यह भारत के ह्दय स्थल कहे जाने वाले मध्यप्रदेश राज्य का प्रमुख सांस्कृतिक नगर है। यह मध्यप्रदेश के छतरपुर जिले में स्थित है। खजुराहो में स्थित मंदिर पूरे विश्व में आकर्षण का प्रमुख केन्द्र है। यहां स्थित सभी मंदिर पूरी दुनिया को भारत की ओर से प्रेम के अनूठे उपहार हैं, साथ ही एक विकसित और परिपक्व सभ्यता का प्रमाण है।

खजुराहो में स्थित मंदिरों का निर्माण काल ईसा के बाद ९५० से १०५० के मध्य का माना जाता है। इनका निर्माण चंदेल वंश के शासनकाल में हुआ। ऐसा माना जाता है कि इस क्षेत्र में किसी समय खजूर के पेड़ों की भरमार थी। इसलिए इस स्थान का नाम खजुराहो हुआ। मध्यकाल में यह मंदिर भारतीय वास्तुकला का प्रमुख केन्द्र माने जाते थे।

वास्तव में यहां ८५ मंदिरों का निर्माण किया गया था, किंतु कालान्तर में मात्र २२ ही शेष रह गए। खजुराहो में स्थित सभी मंदिरों का निर्माण लगभग १०० वर्षों की छोटी अवधि में होना रचनात्मकता का अद्भूत प्रमाण है। किंतु चंदेल वंश के पतन के बाद यह मंदिर उपेक्षित हुए और प्राकृतिक दुष्प्रभावों से जीर्ण-शीर्ण हुए। परंतु इस सदी में ही इन मंदिरों को फिर से खोजा गया, उनका संरक्षण किया गया और वास्तुकला के इस सुंदरतम पक्ष को दुनिया के सामने लाया गया। इन मंदिरों के भित्ति चित्र चंदेल वंश की जीवन शैली और काल को दर्शाने के साथ ही काम कला के उत्सवी पक्ष को प्रस्तुत करते है। मंदिरों पर निर्मित यह भित्ति चित्र चंदेल राजपूतों के असाधारण दर्शन और विकसित विचारों को ही प्रस्तुत नहीं करती वरन वास्तुकला के कलाकारों की कुशलता और विशेषज्ञता का सुंदर नमूना है। चंदेल शासकों द्वारा निर्मित यह मंदिर अपने काल की वास्तुकला शैली में सर्वश्रेष्ठ थे। इन मंदिरों में जीवन के चार पुरुषार्थों में एक काम कला के विभिन्न मुद्राओं को बहुत ही सुंदर तरीके से प्रतिमाओं के माध्यम से दर्शाया गया है।
प्राचीन मान्यताएं -
खजूराहो के मंदिरों का निर्माण करने वाले चंदेल शासकों को चंद्रवंशी माना जाता है यानि इस वंश की उत्पत्ति चंद्रदेव से माना जाता है। इस वंश की उत्पत्ति के पीछे किवदंती है कि एक ब्राह्मण की कन्या हेमवती को स्नान करते हुए देखकर चंद्रदेव उस पर मोहित हो गए। हेमवती और चंद्रदेव के मिलन से एक पुत्र चंद्रवर्मन का जन्म हुआ। जिसे मानव और देवता दोनों का अंश माना गया। किंतु बिना विवाह के संतान पैदा होने पर समाज से प्रताडि़त होकर हेमवती ने जंगल में शरण ली। जहां उसने पुत्र चन्दवर्मन के लिए माता और गुरु दोनों ही भूमिका का निर्वहन किया। चन्द्रवर्मन ने युवा होने पर चंदेल वंश की स्थापना की। चन्द्रवर्मन ने राजा बनने पर अपनी माता के उस सपने का पूरा किया, जिसके अनुसार ऐसे मंदिरों का निर्माण करना था जो मानव की सभी भावनाओं, छुपी इच्छाओं, वासनाओं और कामनाओं को उजागर करे। तब चंद्रवर्मन ने खजुराहों के पहले मंदिर का निर्माण किया और बाद में उनके उत्तराधिकारियों ने शेष मंदिरों का निर्माण किया।

एक अवधारणा यह भी है कि खजुराहो के मंदिरों में काम कला को प्रदर्शित करती मूर्तियां और मंदिरों के पीछे की विशेष उद्देश्य था। उस काल में हिन्दू मान्यताओं के अनुरुप बालक ब्रह्मचारी बनकर ब्रह्मचर्य आश्रम का पालन करता था। तब इस अवस्था में उस बालक के लिए वयस्क होने पर गृहस्थाश्रम के कर्तव्यों और लौकिक जीवन में अपनी भूमिका को जानने के लिए यह मूर्तियां और भित्तिचित्र ही श्रेष्ठ माध्यम थे।

खजुराहों में स्थित मंदिर में का निर्माण ऊंचे चबूतरे पर किया गया है। मंदिरों का निर्माण इस तरह से किया गया है, सभी सूर्य के प्रकाश से प्रकाशित रहें। हर मंदिर में अद्र्धमंडप, मंडप और गर्भगृह बना है। सभी मंदिर तीन दिशाओं पूर्व, पश्चिम और दक्षिण दिशा में समूहों में स्थित है। अनेक मंदिरों में गर्भगृह के बाहर तथा दीवारों पर मूर्तियों की पक्तियां हैं। जिनमें देवी-देवताओं की मूर्तियां, आलिंगन करते नर-नारी, नाग, शार्दूल और शाल-भंजिका पशु-पक्षियों की सुंदरतम पाषाण प्रतिमाएं उकेरी गई है। यह प्रतिमाएं मानव जीवन से जुडें सभी भावों आनंद, उमंग, वासना, दु:ख, नृत्य, संगीत और उनकी मुद्राओं को दर्शाती है। यह शिल्पकला का जीवंत उदाहरण है। कुशल शिल्पियों द्वारा पाषाण में उकेरी गई प्रतिमाओं में अप्सराओं, सुंदरियों को खजुराहों में निर्मित मंदिरों के प्राण माना जाता है। क्योंकि शिल्पियों ने कठोर पत्थरों में भी ऐसी मांसलता और सौंदर्य उभारा है कि देखने वालों की नजरें उन प्रतिमाओं पर टिक जाती हैं। जिनको देखने पर मन में कहीं भी अश्लील भाव पैदा नहीं होता, बल्कि यह तो कला, सौंदर्य और वासना के सुंदर और कोमल पक्ष को दर्शाती है। शिल्पक ारों ने पाषाण प्रतिमाओं के चेहरे पर शिल्प कला से ऐसे भाव पैदा किए कि यह पाषाण प्रतिमाएं होते हुए भी जीवंत प्रतीत होती हैं।

खजुराहो में मंदिर अद़भुत और मोहित करने वाली पाषाण प्रतिमाओं के केन्द्र होने के साथ ही देव स्थान भी है। इनमें कंडारिया मंदिर, विश्वनाथ मंदिर, लक्ष्मण मंदिर, चौंसठ योगिनी, चित्रगुप्त मंदिर, मतंगेश्वर मंदिर, चतुर्भूज मंदिर, पाश्र्वनाथ मंदिर और आदिनाथ मंदिर प्रमुख है। इस प्रकार यह मंदिर अध्यात्म अनुभव के साथ-साथ लौकिक जीवन से जुड़ा ज्ञान पाने का भी संगम स्थल है।

भारत के सबसे प्रसिद्ध मंदिरों में एक - श्री सिद्धिविनायक मंदिर

  भारत के सबसे प्रसिद्ध मंदिरों में एक - श्री सिद्धिविनायक  मंदिर

भारत के महाराष्ट्र प्रदेश की राजधानी मुंबई न केवल देश की व्यावसायिक राजधानी मानी जाती है, बल्कि यह धर्म और परंपराओं की दृष्टि से भी प्रसिद्ध स्थान है। इसी कड़ी में यहां स्थित है हिन्दू धर्म के प्रथम पूज्य देवता भगवान गणेश के भारत के सबसे प्रसिद्ध मंदिरों में एक - श्री सिद्धिविनायक मंदिर। इस मंदिर से देशभर के धर्मावलंबियों की आस्था और श्रद्धा जुड़ी है। भगवान गणेश महाराष्ट्र के सबसे लोकप्रिय और पूजनीय देवताओं में एक हैं।




भगवान श्री सिद्धिविनायक का मंदिर महाराष्ट्र के मुंबई शहर में दादर प्रभादेवी में स्थित है। यह मंदिर लगभग दो शताब्दी पुराना है। मराठी भाषियों में श्री सिद्धि विनायक नवासाचा गनपति के नाम से प्रसिद्ध है। जिसका अर्थ होता है प्रार्थना करने पर कामनापूर्ति करने वाले देवता। पुराण अनुसार भगवान श्री गणेश की दो पत्नियां है - सिद्धि और बुद्धि। भगवान गणेश की बाएं भाग में सिद्धि और दाएं भाग में बुद्धि का वास माना जाता है। यही कारण है कि श्री सिद्धिविनायक की आराधना और दर्शन से मन और बुद्धि का जागरण होता है। इस संदेश के साथ कि बुद्धि के सही उपयोग से ही किसी भी कार्य में सफ लता और सिद्धि मिलती है। अन्यथा सफ लता पाना कठिन हो जाता है।




आदौ पूज्यो विनायक:जिसका अर्थ है हर मंगल कार्य की शुरुआत श्री सिद्धिविनायक की आराधना से करना चाहिए। भगवान श्री गणेश को विघ्रहर्ता माना जाता है। श्री गणेश के आशीर्वाद और प्रसन्नता से हर शुभ कार्य की विघ्र और बाधा का नाश होता है। कार्य और मनोकामना सिद्ध करने वाले देवता होने के कारण ही वह सिद्धिविनायक कहलाते हैं। पुराणों में वर्णन है कि स्वयं त्रिदेव यानि ब्रह्मा, विष्णु और महेश ने जगत की रचना, पालन और संहार की व्यवस्था बिना बाधा के पूरी करने के लिए श्री गणेश की आराधना की। तुलसी रामायण में भी श्रीराम-सीता के विवाह प्रसंग में उनके अयोध्या प्रवेश के समय श्री सिद्धिविनायक के ध्यान का वर्णन किया गया है।




शास्त्रों के अनुसार ब्रह्मा, विष्णु और महेश ने ही भगवान श्री गणेश को विघ्रकर्ता और विघ्रहर्ता दोनों का ही अधिष्ठाता देव बनाया है। जिसके अनुसार भगवान श्री गणेश की अप्रसन्नता से कार्य बाधित होते हैं किंतु उनकी पूजा और आराधना से श्री गणेश सभी विघ्र बाधाओं का नाश कर देते हैं। इसलिए धार्मिक और मंगल कार्यों में सफलता पाने के लिए श्री गणेश को सबसे पहले पूजा जाता है।

महान भारतीय अमर शहीद स्वतंत्रता सेनानी भगत सिंह

महान भारतीय अमर शहीद स्वतंत्रता सेनानी भगत सिंह

भगत सिंह का जन्म 27 सितंबर, 1907 को लायलपुर ज़िले के बंगा में (अब पाकिस्तान में) हुआ था, जो अब पाकिस्तान में है। उनका पैतृक गांव खट्कड़ कलाँ है जो पंजाब, भारत में है। उनके पिता का नाम किशन सिंह और माता का नाम विद्यावती था। भगत सिंह का परिवार एक आर्य-समाजी सिख परिवार था। भगत सिंह करतार सिंह सराभा और लाला लाजपत राय से अत्याधिक प्रभावित रहे।




13 अप्रैल 1919 को जलियांवाला बाग हत्याकांड ने भगत सिंह के बाल मन पर बड़ा गहरा प्रभाव डाला। उनका मन इस अमानवीय कृत्य को देख देश को स्वतंत्र करवाने की सोचने लगा। भगत सिंह ने चंद्रशेखर आज़ाद के साथ मिलकर क्रांतिकारी संगठन तैयार किया।




लाहौर षड़यंत्र मामले में भगत सिंह, सुखदेव और राजगुरू को फाँसी की सज़ा सुनाई गई व बटुकेश्वर दत्त को आजीवन कारावास दिया गया।




भगत सिंह को 23 मार्च, 1931 की शाम सात बजे सुखदेव और राजगुरू के साथ फाँसी पर लटका दिया गया। तीनों ने हँसते-हँसते देश के लिए अपना जीवन बलिदान कर दिया



भगत सिंह एक अच्छे वक्ता, पाठक व लेखक भी थे। उन्होंने कई पत्र-पत्रिकाओं के लिए लिखा व संपादन भी किया।




उनकी मुख्य कृतियां हैं, 'एक शहीद की जेल नोटबुक (संपादन: भूपेंद्र हूजा), सरदार भगत सिंह : पत्र और दस्तावेज (संकलन : वीरेंद्र संधू), भगत सिंह के संपूर्ण दस्तावेज (




मैं नास्तिक क्यों हूँ




यह आलेख भगत सिंह ने जेल में रहते हुए लिखा था जो लाहौर से प्रकाशित समाचारपत्र "द पीपल" में 27 सितम्बर 1931 के अंक में प्रकाशित हुआ था। भगतसिंह ने अपने इस आलेख में ईश्वर के बारे में अनेक तर्क किए हैं। इसमें सामाजिक परिस्थितियों का भी विश्लेषण किया गया है।

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शनिवार, 26 सितंबर 2015

उदयपुर. रेलवे स्टेशन पर जल्द दिखेगा राणा का 'प्रताप'

रेलवे स्टेशन पर जल्द दिखेगा राणा का 'प्रताप'

उदयपुर. राणा प्रताप नगर स्टेशन का स्वरूप जैसा शहरवासियों की सोच में है और रेलवे की योजना में। वैसा जल्द ही होता दिखेगा। इसके लिए शासन व रेलवे महकमा दोनों की सोच सकारात्मक है। इसकी शुरुआत भी शनिवार को हो गई। महाराणा प्रताप की प्रतिमा के अनावरण होते ही लोगों ने महसूस किया। हा, अब राणाप्रताप नगर स्टेशन का नाम सही मायने में साकार हुआ है। वह भी प्रदेश के गृहमंत्री गुलाबचंद कटारिया और डीआरएम नरेश सालेचा की मौजूदगी में। उन्होंने संयुक्त रूप से राणा प्रताप नगर स्टेशन को और बेहतर तरीके से संवारने की पहल की। अनावरण समारोह में प्रदेश के गृहमंत्री गुलाबचंद कटारिया ने कहा कि नगर निगम की ओर से रेलवे की सेकंड इंट्री के लिए 1 करोड़ रुपए प्रदान किए गए। उन्होंने कहा कि नगर निगम को राणा प्रतापनगर रेलवे परिसर की सड़कों और पार्र्किंग को व्यवस्थित करने की पहल भी करनी चाहिए। इससे यात्रियों को धूल-मिट्टी से छुटकारा मिलेगा और पार्र्किंग में व्यवस्थित वाहन खड़े रखने की सहूलियत भी रहेगी। उन्होंने कहा कि अहमदाबाद और उदयपुर ब्रॉडगेज लाइन के बीच में कुछ स्थानों पर जमीन अधिग्रहण में परेशानी आ रही है। इसके लिए स्थानीय प्रशासन पूरा सहयोग करेगा। यहां समस्या का हल नहीं निकलने पर जयपुर भी बात की जाएगी। उन्होंने कहा कि जल्द ही उदयपुर से कुछ नई गाडि़यों का संचालन भी होगा। इसमें हरिद्वार, जम्मू सहित दक्षिण भारत तक रेल सुविधा शुरू करने का प्रस्ताव विचाराधीन है। जब तक अहमदाबाद ब्रॉडगेज शुरू नहीं होगी, तब तक रतलाम होकर चेन्नई तक गाड़ी का प्रस्ताव भी है। प्रतिमा का अनावरण गुलाबचंद कटारिया ने किया।

श्राद्ध पक्ष आज से, पितरों का किया जाएगा तर्पण

श्राद्ध पक्ष आज से, पितरों का किया जाएगा तर्पण

पितरों के तर्पण के निमित किए जाने वाला श्राद्ध पक्ष 27 सितम्बर से शुरू होगा। इसे कनागत भी कहा जाता है। श्राद्ध पक्ष में पितरों का स्मरण किया जाता है। सागर आदि जलाशयों में पितरों का तर्पण किया जाता है।

मनुमार्ग निवासी पंडित राजेन्द्र शर्मा ने बताया कि रविवार को अनंत चर्तुदशी पर पूर्णिमा का श्राद्ध किया जाएगा। इस दिन दोपहर 12.16 बजे से पूर्णिमा तिथि प्रारंभ होगी।

उन्होंने बताया कि इस बार श्राद्ध पक्ष की एक तिथि कम हो गई है। श्राद्ध पक्ष का समापन 12 अक्टूबर को होगा। उस दिन सोमवती अमावस्या भी है।

इसलिए एस दिन पितरों के तर्पण, ब्राह्मण व गौ को भोजन, दान आदि को पुण्यकारी माना गया है। 13 अक्टूबर से नवरात्र शुरू होंगे।

इस बार शारदीय नवरात्र की तिथि में बढोतरी हुई है। श्राद्ध पक्ष का घटना व नवरात्र का बढऩा दोनों ही शुभ माने जाते हैं।

इस्लामाबाद।पाकिस्तान में 15 साल की उम्र में हत्या के दोषी को होगी फांसी



इस्लामाबाद।पाकिस्तान में 15 साल की उम्र में हत्या के दोषी को होगी फांसी


पाकिस्तान में अगले सप्ताह एक ऐसे व्यक्ति को फांसी दी जानी है जिसके वकील ने दावा किया है कि हत्या के अपराध में जब उनके मुवक्किल अंसार इकबाल को गिरफ्तार किया गया तब वह नाबालिग था और उस समय उसकी उम्र मात्र 15 साल थी।

इकबाल ने बताया कि पड़ोसी की हत्या के आरोप में जब उसे और उसके दोस्त को 16 साल पहले गिरफ्तार किया गया था तब वह 15 साल का था। पीडि़त के परिजनों के अनुसार क्रिकेट के एक मैच के दौरान हुए विवाद के कारण इकबाल और उसके दोस्त ने इस हत्या को अंजाम दिया। तो वहीं, दूसरी ओर इकबाल का कहना है कि पुलिस ने दो गन उसके घर मे छिपाकर उसे जबरन इस हत्या मामले में फंसाया था।

पाकिस्तान में गरीबों को न्यायिक मदद मुहैया कराने वाले ब्रिटिश समूह रिप्राइव ने बताया कि पाकिस्तानी कानून में नाबालिगों को फांसी नहीं दिए जाने का प्रावधान है, लेकिन इकबाल के मुकदमे की सुनवायी कर रही अदालत ने अपराध के समय इकबाल के नाबालिग होने संबंधी दस्तावेजों को यह कहते हुए संज्ञान में लेने से इंकार कर दिया कि ये दस्तावेज देरी से पेश किए गए हैं। समूह ने जारी बयान में कहा कि इकबाल के पुराने स्कूल रिकॉर्ड और इसी साल जारी किए गए उसके नए जन्मप्रमाण पत्र में अपराध के समय उसकी उम्र कमश: 14 और 15 साल बतायी गई हैं। पाकिस्तान में रिकॉर्ड रखने का काम बेहद खराब तरीके से किया जाता है और नकली रिकॉर्ड भी बड़ी संख्या में बनाए जाते हैं। अदालत ने इस मामले में अपना फैसला सुनाते हुए इकबाल को 20 साल का माना है जैसा कि पुलिस ने उसकी गिरफ्तारी के समय दर्ज किया था। बासित ने बताया कि अदालत ने उनके मुवक्किल को वयस्क मानकर यह फैसला दिया है। इकबाल को सरगोधा जेल में अगले सप्ताह फांसी दी जानी है।पाकिस्तान की आपराधिक न्यायिक प्रणाली को काफी भ्रष्ट माना जाता है। पुलिस पर अधिकतर मामलों में रिश्वत लेने और कुछ पुलिसकर्मियों के झूठा क्राइम सीन तैयार और सबूत एकत्र करने में माहिर होने के आरोप लगते रहे हैं। जिन गरीब लोगों को सरकारी वकील मुहैया कराए जाते हैं वह उतने सक्षम नहीं होते हैं और अदालती कार्रवाई में वह अपने मुवक्किल का पक्ष ठीक तरह से नहीं रख पाते हैं। पाकिस्तान में अकसर जजों के रिश्वत लेकर फैसला देने की खबरें भी आतीं रहतीं हैं।