शुक्रवार, 6 दिसंबर 2013

मतगणना से पूर्व उम्मीदवारो और समर्थको के दिलो कि धड़कने हुई तेज़

मतगणना से पूर्व उम्मीदवारो और समर्थको के दिलो कि धड़कने हुई तेज़

बाड़मेर एक दिसंबर को सम्पन हुए विधानसभा चुनावो मर आम जनता द्वारा बम्पर वोटिंग कर सभा प्रत्यासियो को सकते में डाल दिया। रविवार को होने वाली मतगणना को लेकर अभी से सभी पार्टी प्रत्यासियो और उनके समर्थको कि धड़कने तेज हो गयी हेह साथ सट्टा बाज़ार के सटोरियो कि भी नज़ारे हें इन चुनावो में प्रत्यासियो कि से लेकर वोट लेने कि क्षमता तक के करोडो रुपयो के सट्टे लगे हें।


बाड़मेर जिले कि सात विधानसभा सीटो कि मतगणना रविवार को राजकीय महाविद्यालय में शुरू होगीए ,मतगणना से पहले शहर से लेकर ग्रामीण चौपालो तक अपने अपने प्रत्यासियो के हर जीत के आंकलन किये जा रहे हें ,मौजूदा समय में भाजपा कांग्रेस और निर्दलीय अपनी अपनी जीत के दावे कर रहे हें यानि मतगणना से पूर्व कोई भी प्रत्यासी अपनी हार नहीं मान रहा। अलबता राजस्थान सरकार के राजस्व मंत्री और कद्दावर जाट नेता हेमाराम चौधरी ने बेबाकी से बयां दिया कि उनकी स्थति कमज़ोर हें। उनके इस बयान के बाद कांग्रेस में हड़कम्प सा मचा हें।


बाड़मेर में सभी अपने अपने गणित लगाकर अपने समर्थक प्रत्यासी को जीता हुआ दिखने का प्रयास किया जा रहा हें ,ऱविवार को सभी प्रत्यासियो का राज्निओटिक भाग्य ई वी एम् से बाहर आ जायेगा। मतगणा से पहले विभिन दलो के प्रत्यासियो के दिलो कि धड़कने तेज हो गयी हें। शनिवार का दिन काटना उनके लिए भारी हो गया हें।

1971 में भारत पाक युद्ध पाकिस्‍तान को झेलना पड़ा बड़ा नुकसान

(रिटायर्ड बिग्रेडियर और लोंगेवाल वॉर के हीरो कुलदीप सिंह चांदपुरी 


चंडीगढ़. 1971 में भारत-पाकिस्तान युद्ध में पाकिस्तानी सेना की हार और भारतीय सेना की यादगार जीत में लोगोंवाल में तैनात 23 पंजाब रेजिमेंट की 120 जवानों की टुकड़ी की बहादुरी को आज भी हम नहीं भूले हैं। मैं इस टुकड़ी से जुड़ा था तो मेरे लिए यह टुकड़ी और इसका हर जवान दिल के बहुत ही करीब है।

लोंगेवाल की यह जंग काग़जों में 'फोर्टिन डेज ऑफ वॉर' के नाम से जानी जाती है। यह वॉर तीन दिसंबर को शुरू होकर 16 दिसंबर को भारतीय सेना की की जीत के साथ अंजाम पर पहुंची। 1971 की यह जीत हिंदुस्तानी फौज के लिए गौरव की बात थी। हमने इस युद्ध में दुश्मनों को करारी हार दी।

आर्मी, नेवी और एयरफोर्स में कमाल का तालमेल था। फौज को पहले ही पता लगा चुका था कि आने वाले दिनों में पाकिस्तान के साथ तनाव बढ़ जाएगा। बांगलादेश में हालात खराब हो रहे थे। पाकिस्तान की फौज ने आम लोगों को लूटना और उन पर अत्याचार करना शुरू कर दिया था। वहां स्थानीय स्तर पर जागृति आ गई थी। खासकर 70 के आखिर में लग रहा था कि कुछ न कुछ होना है। कोई नहीं चाहता है कि जंग हो। हिंदुस्तान शांति चाहता था। बड़े देश भी यही यही कह रहे थे कि पड़़ोसी के साथ युद्ध नहीं होना चाहिए।

पाकिस्‍तान ने शुरू की लड़ाई

तीन दिसंबर को शाम साढ़े सात बजे के करीब कश्मीर से लेकर गुजरात तक सभी एयरपोर्टों पर पाकिस्तान ने बमबारी कर दी। इस बीच रेडियो पर स्पेशल न्यूज बुलेटिन आया। खबर में भारत की ओर से जंग का ऐलान कर दिया गया। वेस्टर्न सेक्टर (पश्चिमी सीमा) में शांति थी। लेकिन ईस्टर्न सेक्टर (पूर्वी सीमा) में हालात खराब हो गए। बॉर्डर पर बीएसएफ तैनात थी, लेकिन धीरे-धीरे फौज ने आगे बढऩा शुरू कर दिया। बीएसएफ अक्तूबर के मध्य में सीमा से हटने लगी और फौज आगे बढऩे लगी। अक्तूबर के आखिरी हफ़्ते में फौज ने अपनी तैयारी कर ली कि क्या-क्या टारगेट होंगे। दुश्मन कहां से आ सकता है। हमें क्या क्या करना है। हम पहले से तैयार थे। 'मुक्तिवाहनी' हमें बताती थी कि कहां क्या-क्या हो रहा है।

बड़ी तैयारी से आए थे पाकिस्‍तानी
लोंगेवाल में उस वक्त बतौर मेजर मेरे पास 120 जवानों की कमान थी। हम तो मिलिट्रीमैन थे, फिर भी देश के इस हिस्से में शांति के बावजूद पूरी तरह आश्वस्त होकर नहीं बैठ सकते थे। हमारा अंदेशा 3 दिसंबर की रात साढ़े सात बजे के आसपास उस वक्त सही साबित हुआ जब पाकिस्तानी एयरफोर्स ने कश्मीर से लेकर गुजरात तक सभी एयरपोर्ट पर हमला बोल दिया। हम लोंगेवाल पोस्ट पर थे लेकिन हमारा काम डिफेंसिव था। यानी हमें हमला नहीं करना था, बल्कि अपनी पोस्ट की हिफाजत करते हुए दुश्मनों को रोकना था। 3 दिसंबर की रात लोंगेवाल पोस्ट पर कुछ नहीं हुआ। वैसे भी हम भारत-पाकिस्तान सीमा से 16 किलोमीटर अंदर थे। तो हमें आगे पाकिस्तानी सेना के किसी मूवमेंट का अंदाजा नही था और अपनी पोस्ट छोडक़र हम आगे बढ़ नहीं सकते थे। लेकिन पाक सेना भारतीय सीमा पार करते हुए 4 दिसंबर की रात हमारे सामने खड़ी थी। पाक सेना बहावलपुर से गब्बर रेती होते हुए भारतीय सीमा में दाखिल होकर लोंगेवाल पहुंच चुकी थी। पाक सेना का हमला इतना सुनियोजित था कि पाकिस्तान सेना के 3 हजार जवान और 45 टैंक हमें घेर चुके थे। यहां पर अब हमें फैसला लेना था कि या तो लड़कर बहादुरी के साथ मरें या फिर हथियार डालकर बुजदिली की मौत। लिहाजा, मेरे जवानों ने किसी भी सूरत में हथियार डालने की बजाय लडऩे का फैसला लिया।

पूरी रात हमने पाकिस्तानी सेना को यहीं रोके रखा। सुबह साढ़े सात बजे भारतीय वायुसेना ने हमारे साथ मोर्चा संभाल लिया। इसके बाद पाकिस्तानी फौज को संभलने का मौका नहीं मिला। दोपहर तक पाकिस्तानी खेमे में भगदड़ मच चुकी थी। पाक फौज पीछे हट रही थी लेकिन हमने एयरफोर्स के साथ मिलकर पाक सेना पर हमला जारी रखा। भारतीय सीमा से खदेडऩे तक पाक सेना के सामने आए 45 टैंकों के अलावा पीछे बैकअप के तौर पर रखे गए 13 टैंक भी निशाने पर आ चुके थे।

पाकिस्‍तान को झेलना पड़ा बड़ा नुकसान
एयरफोर्स के लिए रेगिस्तान में टैंकों को निशाना बनाना आसान नहीं था। लेकिन जैसे ही पाकिस्तानी सेना के टैंक मूवमेंट करते तो एयरफोर्स उन्हें निशाना बनाकर बर्बाद कर रही थी। हमारी टुकड़ी जमीनी हमला करते हुए पाक सेना को पीछे खदेड़ रही थी। आखिर में शाम तक हमने एयरफोर्स के साथ मिलकर लोंगेवाल पोस्ट पर जीत दर्ज की। हमने भी इस युद्ध में 23 पंजाब रेजिमेंट के जवानों को खोया। हमारी पेट्रोलिंग में मदद करने वाले ऊंटों की मौत हुई और जीपें बर्बाद हो गई। लेकिन 1971 में भारत पाक युद्ध में पाक सेना के लिए लोंगेवाल में हुई लड़ाई बहुत बड़ा नुकसान थी। हमने पाकिस्तान के 58 में से 52 टैंक बर्बाद कर दिए। बाकी बचे 6 टैंक कब्जे में ले लिए।

इस युद्ध की यादें मेरे जहन में आज भी ताजा हैं, लेकिन साथ ही याद है इस युद्ध में मेरे 120 जवानों की 3 हजार पाक फौजियों को शिकस्त देने की बहादुरी का हर किस्सा। मेरी इस टुकड़ी ने पाक सेना के लोंगेवाल में ब्रेकफास्ट, जैसलमेर में लंच और जोधपुर में डिनर के प्लान को मिट्टी में मिला दिया। पाक सेना का यह डाइनिंग प्लान पाक सैनिकों से ही हमें पता चला था। 1971 के भारत-पाक युद्ध की जीत की याद में 'विजय दिवस' पर मैं अपने 120 जवानों की बहादुरी को सलाम करता हूं।

अपने बारे में
मैं बचपन से ही फौज में जाना चाहता था। लेकिन मैं अकेला बेटा थो तो मां को मेरी यह ख्वाहिश पंसद नहीं आई। लेकिन पिताजी ने मेरी मां को समझाया और 1962 में मैंने सेना में कमीशन हासिल की।
जिंदगी में अनुशासन को निहायत जरूरी मानता हूं। जिंदगी में कभी भी शराब को मुंह से नहीं लगाया। अरसा पहले नॉन वेज भी छोड़ दिया। जिंदगी में सादगी और अनुशासन बहुत ही जरूरी है। यहीं मैं आने वाली पीढ़ी को बताना चाहता हूं।

जीन्स से हो रहा है ब्रेस्ट कैंसर

एक नए शोध में महिलाओं में ब्रेस्ट कैंसर की चौंकाने वाली वजह पता चली है। शोधकर्ताओं का दावा है कि हाई फैट डाइट महिलाओं में ब्रेस्ट कैंसर के जीन्स को बढ़ाने में मददगार है।
मिशिगन स्टेट यूनिवर्सिटी के शोधकर्ताओं का मानना है कि ब्रेस्ट कैंसर के ट्यूमर के बनने से पहले ब्रेस्ट की कोशिकाओं में बढ़त और प्रतिरोधी कोशिकाओं में कमी होती है, जिसके लिए विशेष प्रकार के जीन जिम्मेदार हैं। बहुत अधिक फैट्स युक्त डाइट इन जीन्स को बढ़ाती है।

शोधकर्ता सैंड्रा हस्लम के अनुसार, शोध में हमने पाया कि कैंसर की वजह भी कोशिकाओं में अचानक बदलाव हो सकती है, जो ब्रेस्ट कैंसर के लिए माहौल बनाती है और फैट्स की अधिकता वाली डाइट इसे बढ़ाती है। शोधकर्ताओं ने शोध के दौरान ब्रेस्ट कैंसर के लक्षण के रूप में वजन बढ़ने को नहीं माना है, क्योंकि उन्होंने शोध ओवरवेट लोगों पर ही किया था, जिनके शरीर में पहले से फैट्स की अधिकता थी

भारत को फीफा विश्वकप-2017 की मेजबानी

नई दिल्ली। भारतीय फुटबॉल के लिए गुरूवार का दिन तब ऎतिहासिक बन गया जब विश्व फुटबॉल की सर्वोच्च संस्था फीफा ब्राजील में अपनी कार्यकारी समिति की बैठक में भारत को 2017 में होने वाले फीफा अंडर-17 विश्व कप फुटबॉल की मेजबानी सौंपने का फैसला किया।
ब्राजील के साल्वाडोर डा बाहिया में फीफा की कार्यकारी समिति की बैठक में इस प्रतिष्ठित टूर्नामेंट की मेजबानी भारत को सौंपने का फैसला किया गया। भारत ने मेजबानी की दौड़ में शामिल दक्षिण अफ्रीका, आयरलैंड और उज्बेकिस्तान को पीछे छोड़ा। मेजबान देश होने के कारण भारत हर दो वर्ष में होने वाले 24 देशों के इस टूर्नामेंट में पहली बार भाग लेगा।

फीफा ने बैठक के बाद ट्वीट में फीफा कार्यकारी समिति ने फीफा अंडर-17 विश्व कप 2017 की मेजबानी भारत को सौंपने की पुष्टि की है।

अखिल भारतीय फुटबॉल महासंघ के महासचिव कुशाल दास ने कहा कि हां, भारत ने 2017 अंडर-17 विश्व कप फुटबॉल की मेजबानी हासिल कर ली है। यह अब आधिकारिक है।

एआईएफएफ अध्यक्ष प्रफुल्ल पटेल ने इस घटना को ऎतिहासिक बताया। उन्होंने कहा कि यह ऎतिहासिक है। हम इसका इंतजार कर रहे थे। मैं फीफा कार्यकारी समिति का आभार व्यक्त करता हूं कि उसने हम पर भरोसा दिखाया और भारत को अंडर-17 विश्व कप 2017 की मेजबानी सौंपी। मैं भारत सरकार का भी आभारी हूं कि उसने जरूरी गारंटी देकर हमें पूरा सहयोग किया।

भारत पहली बार इतने बड़े फुटबॉल टूर्नामेंट का आयोजन करेगा। यह फीफा का पहला टूर्नामेंट है जिसकी मेजबानी भारत को मिली है। भारत ने 2006 में एशियाई फुटबॉल परिसंघ की युवा चैंपियनशिप (अंडर-20) और 2008 में एएफसी चैलेंज कप की मेजबानी की थी लेकिन उसे इससे पहले फीफा टूर्नामेंट के आयोजन का मौका नहीं मिला।

इस टूर्नामेंट की तिथियां बाद में तय की जाएंगी। संयुक्त अरब अमीरात ने इस साल टूर्नामेंट का आयोजन किया था जबकि चिली 2015 में होने वाले टूर्नामेंट की मेजबानी करेगा।

सरकार से विभिन्न विषयों पर गारंटी मिलने में देरी से शुरू में भारत की आखिरी बोली दस्तावेजों के समय पर जमा करने को लेकर आशंका जतायी जा रही थी लेकिन आखिर में वह मेजबानी हासिल करने में सफल रहा।

भारत को इस बड़े टूर्नामेंट की मेजबानी छह से आठ शहरों में करनी होगी। नई दिल्ली, कोलकाता, मुंबई, चेन्नई, गुवाहाटी, मडगांव, कोच्चि और बेंगलूर में इन मैचों का आयोजन किया जा सकता है।

भारत की मेजबानी हासिल करने की संभावना पहले से ही मजबूत थी क्योंकि फीफा ने ही सबसे पहले भारत में इस टूर्नामेंट के आयोजन के लिए कहा था। विश्व संस्था का मानना है कि यदि भारत इस टूर्नामेंट का आयोजन करेगा तो फिर इस खेल को देश में लोकप्रिय बनाने में मदद मिलेगी।

फीफा अध्यक्ष सैप ब्लाटर और बाद में उसके सचिव जेरोम वाल्के ने भारत दौरे में जरूरी आधारभूत ढांचे के निर्माण और सुविधाओं के उपलब्ध होने पर यहां की मेजबानी का पक्ष लिया था। लेकिन भारत के लिए मेजबानी हासिल करने की राह आसान नहीं रही। जनवरी में भारत की शुरूआती बोली नामंजूर कर दी गयी क्योंकि फीफा सरकार से कई विषयों पर स्पष्ट गारंटी चाहता था।

वेश्यावृत्ति में लिप्त 19 लड़कियां गिरफ्तार

मुंबई। महाराष्ट्र के मध्य मुंबई में कथित तौर पर अश्लील गतिविधियों में शामिल होने के मामले में पुलिस ने (समुद्रा) बार एवं रेस्तरां में छापा मारकर 19 बार बालाओं तथा 15 ग्राहकों समेत उनतीस लोगों को गिरफ्तार किया है।
एक गैर सरकारी संगठन (एनजीओ) के शिकायत दर्ज कराने के बाद पुलिस ने पहले मुखबिर के जरिए स्टिंग ऑपरेशन किया और सादे कपडों में पुलिसकर्मी ग्राहक बनकर बुधवार को बार के अंदर गए।

ऑस्केस्ट्रा के बहाने बार में वेश्यावृत्ति की पुष्टि होने के बाद पुलिस ने उन्नीस बार बालाओं और 15 ग्राहकों समेत 29 लोगों को गिरफ्तार किया। इन सभी लोगों के खिलाफ मामला दर्ज कर लिया गया है और उन्हें मेट्रोपोलिटन अदालत में पेश किया जाएंगा।

जैसलमेर एयरफोर्स स्टेशन को मिला ‘प्राइड ऑफ स्वैक’



गुजरात के गांधीनगर में गुरुवार को आयोजित एयरफोर्स की दक्षिण पश्चिम वायु कमान (स्वैक) की कमांडर कॉन्फ्रेंस के दौरान जैसलमेर एयरफोर्स स्टेशन को ‘प्राइड ऑफ स्वैक’ का अवार्ड मिला है। वायुसेना प्रमुख एयर चीफ मार्शल एनएके ब्राउन ने जैसलमेर एयरफोर्स स्टेशन के एओसी एयर कमोडोर चंद्रमौली को यह ट्रॉफी प्रदान की।
जैसलमेर एयरफोर्स स्टेशन को मिला ‘प्राइड ऑफ स्वैक’
दो दिवसीय कॉन्फ्रेंस के उद्घाटन के बाद वायु सेनाध्यक्ष एयर चीफ मार्शल ब्राउन ने कहा कि ऑपरेशन तैयारियों के लिए हमेशा तैयार रहना चाहिए। वायु योद्धाओं को कठिन परिश्रम व लगन से अपने लक्ष्य को अर्जित करना चाहिए। उन्होंने हर योद्धा के लिए बदलते समय में आधुनिक तकनीक का प्रशिक्षण लेने तथा वृहद स्तर पर बदलाव करने के लिए तैयार रहने को कहा।

कॉन्फ्रेंस के दौरान स्टेशन व यूनिट के कमांडरों ने ऑपरेशन, मेंटेनेंस, प्रशासनिक कार्य निपुणता तथा मुख्यालय में लंबित कार्यों को जल्दी करवारने के बारे में अपने अनुभव बताए। इस दौरान अलग अलग क्षेत्रों में श्रेष्ठ कार्यों के लिए विभिन्न स्टेशनों व यूनिटों को अवार्ड प्रदान किए।

अमेरिकी सेना में वेश्‍यावृत्ति का धंधा, टेक्सास बेस पर होती थीं प्राइवेट सेक्स पार्टियां

अमेरिकी सेना में सेक्‍स पार्टियों से जुड़ा सनसनीखेज खुलासा हुआ है। अमेरिकी सेना में तैनात एक महिला सैनिक ने दावा किया है कि उसने टेक्‍सास स्थित फोर्टहुड मिलिट्री पोस्ट में आयोजित सेक्स पार्टी के दौरान 400 डॉलर कमाए हैं। महिला सैनिक के मुताबिक टेक्सास बेस में चलाए जा रहे सेक्‍स रैकेट में सर्विस के लिए उसे चुना गया था। महिला सैनिक द्वारा किए गए खुलासे का ब्यौरा कोर्ट मार्शल के उन दस्‍तावेजों में है, जिसमें एक सार्जन्ट पर भी इस सर्विस का इस्तेमाल करने का आरोप लगा है।
अमेरिकी सेना में वेश्‍यावृत्ति का धंधा, टेक्सास बेस पर होती थीं प्राइवेट सेक्स पार्टियां

वेश्‍यावृत्ति के इस रैकेट में हिस्सा लेने के आरोपी मास्टर सार्जेंट ब्रैड ग्रिम्स इस हफ्ते मिलिट्री कोर्ट में पेश हुए थे। गौरतलब है कि इस रिंग को एक अन्य सार्जेंट ने शुरू किया था, जिसपर अभी तक कोई भी चार्ज नहीं लगाया गया है।

इराक और अफगानिस्तान के युद्ध में अपनी सेवाएं दे चुके शादीशुदा ग्रिम्स पर साजिश रचने और सेक्स के लिए पैसे देने का आरोप है। उसे प्रथम श्रेणी के सार्जेंट जॉर्ज मैकक्वीन द्वारा गुप्त स्थान पर कम उम्र महिला सैनिक उपलब्ध करवाने की पेशकश की गई थी।

बतौर यौन शोषण रोकथाम अधिकारी काम करने वाले जॉर्ज मैकक्वीन फिलहाल जांच के घेरे में हैं। उनपर आरोप है कि उन्होंने बेस में आयोजित सेक्स पार्टियों के दौरान फीमेल सैनिकों का चयन किया था।ग्रिम्स के डिफेंस अटॉर्नी के मुताबिक इस मामले में सेक्स के लिए पैसे का लेन-देन नहीं किया गया था और उनके क्लाइंट ने एक होटल में फिक्स इस मीटिंग को आगे नहीं बढ़ाया था। डिफेंस अटॉर्नी डेनियल कॉन्वे ने बताया, "ग्रिम्स ने कुछ भी गलत नहीं किया। उन्होंने लड़की के साथ सेक्स भी नहीं किया। यह भले ही सेक्स पार्टियों से जुड़ा हुआ मामला हो, लेकिन मास्टर सार्जन्ट ग्रिम्स का इससे कुछ लेना-देना नहीं है।"याईएनएन की रिपोर्ट के मुताबिक ग्रिम्स के साथ सेक्स करने वाली लड़की ने 100 डॉलर लेने की बात कबूल की है। उसने यह भी कहा है कि मैकक्वीन ने ही उसे प्रॉस्टीट्यूट रिंग के लिए चुना था। डिफेंस अटॉर्नी के मुताबिक ग्रिम्स पर यह आरोप ऐसे वक्त में लगाए गए हैं, जब उन्होंने डील को ठुकरा दिया था।ऑस्टिन-अमेरिकन स्टेटमैन के मुताबिक मैकक्वीन के खिलाफ आरोप लगाने वाली महिला ने अधिकारियों को बताया है कि उसे हाई रैंक के सैनिकों के साथ सेक्स के लिए कहा गया था। अज्ञात महिला सैनिक ने यह भी दावा किया कि उसने पोर्ट हुड पार्टियों में 400 से 500 डॉलर की कमाई की। महिला सैनिक ने यह भी दावा किया कि मैकक्वीन उन जवान सैनिकों को निशाना बनाता था, जिनकी आर्थिक स्थिति ठीक नहीं होती थी। वह उन सैनिकों की तस्वीरें अपने मोबाइल में रखता था। हालांकि अभी तक मैकक्वीन के खिलाफ कोई भी चार्ज नहीं लगाया गया है।

पिस्तौल की नोक पर कॉलेज गर्ल किडनेप

सीकर/तारानगर। राजस्थान में कॉलेज से घर लौटते समय एक लड़की को पिस्तौल की नोक पर अगवा करने का सनसनीखेज मामला सामने आया है। हालांकि, किडनेपिंग के दौरान राहगीरों के दखल से आरोपी घबरा गए और लड़की को छोड़ कर भाग निकले।
जानकारी के अनुसार यह घटना सीकर के तारानगर कस्बे की है। लड़की को अगवा करने वाला आरोपी उसकी गांव "ढाणी आशा" का रहने वाला है। पुलिस में दर्ज रिपोर्ट के अनुसार पीडिता बुधवार दोपहर कॉलेज से लौट रही थी तभी रास्ते से आरोपी ने पिस्तौल दिखा कर अगवा करने का प्रयास किया।

पुलिस के अनुसार आरोपी अशोक ने अगवा करने से पहले बस में लड़की से छेड़छाड़ की थी,जिसके विरोध पर उसने बदला लेने की नीयत से यह कदम उठाया। इसी के चलते उसने अपने साथियों के साथ लड़की का पीछा किया। उसने बाइक पर सवार होकर लड़की को पिस्तौल दिखा कर उसे घसीटते हुए ले जाने का प्रयास किया। छात्रा ने शोर मचाया तो आनंदसिंह पुरा गांव की ओर से आ रहे चार पांच लोगों ने आरोपितों को ललकारा तो वे भगा गए। छात्रा की रिपोर्ट पर पुलिस ने अशोक व उसके साथी के खिलाफ मामला दर्ज कर जांच शुरू की है।

नहीं रहे पहले अश्वेत राष्ट्रपति नेल्सन मंडेला

जोहानिसबर्ग। दक्षिण अफ्रीका के पहले अश्वेत राष्ट्रपति नेल्सन मंडेला का गुरूवार देर रात (भारतीय समयानुसार) निधन हो गया। अफ्रीकी राष्ट्रपति जैकब जुमा ने इसकी आधिकारिक घोषणा करते हुए कहा, "हमारे देश ने अपना महानतम बेटा खो दिया।" लंबे समय से बीमार मंडेला ने घर पर अंतिम सांस ली।

गत सितंबर में फेफड़े के संक्रमण के कारण बीमार मंडेला को सैन्य अस्पताल में भर्ती कराया गया था। उसके बाद से लगातार वे सेना के विशेषज्ञ चिक्तिसकों की निगरानी में थे। 95 वर्षीय मंडेला को दक्षिण अफ्रीका में रंगभेदी सरकार के विरूद्ध संघर्ष और लोकतांत्रिक सरकार की स्थापना के लिए जाना जाता था। इस संघर्ष के लिए उन्हें 27 साल जेल में रहना पड़ा। मंडेला ने कई संघर्षो में शांति बहाली में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई। 1993 में उन्हें शांति का नोबेल पुरस्कार दिया गया।


रंगभेद के खिलाफ बुलंद आवाज

नेल्सन मंडेला, ये नाम रंगभेद के खिलाफ आवाज बुलंद करने वाले क्रांतिकारी या दक्षिण अफ्रीका के पहले अश्वेत राष्ट्रपति तक सीमित नहीं है, ये नाम परिचायक है विश्व में शांति, समानता और प्रेम के लिए चल रहे निरंतर प्रयास का। ये नाम है उस अनथक संघर्ष का, जिसने तमाम मुश्किल हालातों का सामना करते हुए दक्षिण अफ्रीका को नई बुलंदियों पर स्थापित करने का काम किया।

नेल्सन मंडेला थेंबू राजवंश से संबंधित थे। उनको उनके पिता ने नाम दिया रोहिल्लाला, जिसका अर्थ होता है पेड़ की डालियों को तोड़ने वाला या फिर प्यारा शैतान बच्चा। उनका परिवार परम्परा से ही गांव का प्रधान परिवार था। नेल्सन अपनी पिता की तीसरी पत्नी की पहली सन्तान थे। उनकी मां एक मेथडिस्ट ईसाई थीं, और उनके प्रभाव में वे मिशनरी स्कूल गए। वहीं उन्हें ईसाई नाम, नेल्सन दिया गया।


स्कूली शिक्षा के दौरान ही उनका सामना पहली बार रंगभेद से हुआ। नौ वर्ष की आयु में पिता को गंवाने वाले नेल्सन पर इस भेदभाव का गहरा असर पड़ा। उन्होंने पिता की विरासत सम्भालने के बजाय खुद को शिक्षित करना जरूरी समझा। 1937 में वे हेल्डटाउन गए और अश्वेतों के लिए बनाए गए विशेष कॉलेज "फोर्ट हेयर" में दाखिला लिया। छात्र जीवन में ही उन्होंने रंगभेदी सरकार की नीतियों की मुखालफत शुरू कर दी, नतीजतन कॉलेज से भी निकाले गए। 1944 में उन्होंने अफ्रीकन नेशनल कांग्रेस की सदस्यता ली और अपना जीवन रंगभेद के विरूद्ध लड़ाई में झोंक दिया। इस लड़ाई में 27 साल जेल में भी बिताने पड़े।


आखिर लाए परिवर्तन

अंतत: 1989 में दक्षिण अफ्रीका में सत्ता परिवर्तन हुआ और उदार एफ .डब्ल्यू. क्लार्क देश के मुखिया बने। सत्ता सम्भालते ही उन्होंने सभी अश्वेत दलों पर लगा हुआ प्रतिबंध हटा लिया। साथ ही सभी राजनीतिक बंदियों को आजाद कर दिया गया, जिन पर किसी तरह का आपराधिक मुकदमा दर्ज नहीं था। वर्ष 1994 में दक्षिण अफ्रीका का आम चुनाव रंगभेद रहित हुआ। अफ्रीकन नेशनल कांग्रेस ने अन्य दलों को पीछे छोड़ते हुए 62 फीसद मतों को हासिल किया। चुनाव जीतने के बाद 10 सितंबर 1994 को नेल्सन मंडेला दक्षिण अफ्रीका के पहले अश्वेत राष्ट्रपति बने जो अपने पद पर 14 जून, 1999 तक रहे। जून 2004 में उन्होंने सक्रिय राजनीति से संन्यास ले लिया।

सशस्त्र सेना का नेतृत्व

सरकार द्वारा रंगभेद के खिलाफ छिडे आंदोलन को रोकने के हर संभव प्रयास किए जा रहे थे। रंगभेद के खिलाफ प्रदर्शन के दौरान पुलिस ने शार्पविले शहर में प्रदर्शनकारियों पर गोलियों की बौछार कर दी। 180 लोग मारे गए और 69 लोग घायल हुए। ऎसी घटनाओं से मंडेला का अहिंसा पर से विश्वास उठने लगा और उन्होंने हिंसा का रास्ता अख्तियार किया। वर्ष 1961 में नेशनल अफ्रीकन कांग्रेस ने एक लड़ाका दल "स्पीयर ऑफ द नेशन" का गठन किया और नेल्सन मंडेला ने इस सशस्त्र टुकड़ी का नेतृत्व किया।

पुरस्कार

मंडेला को 250 से भी ज्यादा पुरस्कार और सम्मान मिले। वैश्विक स्तर पर उनकी उपलब्धियों के लिए उन्हें फ्रेडरिक डी क्लार्क के साथ संयुक्त रूप से 1993 में शांति का नोबेल पुरस्कार दिया गया।

भारत से जुड़ाव

मंडेला का भारत से गहरा जुड़ाव रहा है। वर्ष 1990 में जेल से आजाद होने के बाद मंडेला भारत की यात्रा पर आए थे। इसके बाद दक्षिण अफ्रीका में राष्ट्रपति बनने के तुरंत बाद ही मंडेला भारत की यात्रा पर आए। भारत से उनके गहरे लगाव का ही परिणाम था कि वर्ष 1995 में भी मंडेला भारत की यात्रा पर आए और भारत से पिछले 40 वर्षो से बंद पड़े विदेशी व्यापार के मामले में तत्कालीन प्रधानमंत्री पी.वी. नरसिम्हा राव से बातें कीं।

मंडेला दिवस

संयुक्त राष्ट्र संघ ने मंडेला के जन्मदिन को एक अंतरराष्ट्रीय दिवस के तौर पर स्वीकार किया है। इस दिवस के आयोजन के पीछे संयुक्त राष्ट्र संघ की सोच रही है कि प्रत्येक व्यक्ति और संगठन इस दिवस को अपना 67 मिनट समय दूसरे की सहायता करने में लगाए। 67 मिनट का यह समय नेल्सन मंडेला के सामाजिक न्याय के लिए किए गए 67 वर्षो के लंबे युद्ध को इंगित करता है।

भारत में सम्मान

वर्ष 1990 में मंडेला को भारत के सबसे बड़े सम्मान भारत रत्न से नवाजा गया। उन्हें यह पुरस्कार दक्षिण अफ्रीका में रंगभेद के खिलाफ चलाए गए आंदोलन के लिए दिया गया था। वर्ष 1999 में मंडेला को अहिंसा के वैश्विक आंदोलन के लिये गांधी-किंग एडवर्ड पुरस्कार से नवाजा गया। उन्हें यह पुरस्कार महात्मा गांधी की पौत्री इला गांधी ने दिया।

राजनीति से इतर जीवन

वर्ष 1999 में राष्ट्रपति पद से हटने के बाद मंडेला विभिन्न सामजिक और मानवाधिकार संगठनों के लिए वकालत का काम करने लगे। उन्होंने नेल्सन मंडेला फाउंडेशन, नेल्सन मंडेला चिल्ड्रेन्स फंड और मंडेला रोडेश फाउंडेशन को स्थापित करने में सहयोग दिया। इसके अलावा उनकी प्राथमिकताओं में एड्स जैसी बीमारी से लड़ना भी शामिल था। मंडेला ने अपने जीवन काल में कई पुस्तकों का प्रकाशन किया।

उनमें से "नो इजी वाक टू फ्रीडम", लांग वाक टू फ्रीडम, "नेल्सन मंडेला : द स्ट्रगल इज माइ लाइफ" प्रमुख हैं। वर्ष 1997 में उनके जीवन पर "मंडेला एण्ड डी क्लार्क" नाम से फिल्म भी बन चुकी है। इसके अलावा 1992 की फिल्म "माल्कोम" भी उनके जीवन से प्रभावित रही है।

मंडेला व महात्मा गांधी

मंडेला के व्यक्तित्व पर महात्मा गांधी का गहरा प्रभाव था। द.अफ्रीका में नस्लभेद के खिलाफ किए गए संघर्षो की प्रेरणा भी उन्हें महात्मा गांधी से ही मिली, क्योंकि वो पहले व्यक्ति थे, जिन्होंने दक्षिण अफ्रीका में जाकर नस्लभेद और रंगभेद के खिलाफ बगावत का झंडा बुलंद किया था। वर्ष 2000 में टाइम पत्रिका को दिए गए साक्षात्कार में उन्होंने कहा था कि महात्मा गांधी उपनिवेशवाद को उखाड़ फेंकने वाले क्रांतिकारी थे। दक्षिण अफ्रीका के स्वतंत्रता आंदोलन को मूर्त रूप देने में मैंने उनसे ही प्रेरणा पाई।


नाम
नेल्सन मंडेला
जन्म
18 जुलाई 1918
(दक्षिण अफ्रीका में मबासा नदी के किनारे ट्रांस्की के मवेजो गांव में)
पिता
गाडला हेनरी फाकानिस्वा
मां
नेक्यूफी नोस्केनी
पत्नी
इवलिन मेस
(पहली पत्नी 1944-1957)
नोमजामो विनी मेडीकिजाला
(दूसरी पत्नी (1957-1996)
ग्रेस मेकल
(तीसरी पत्नी 1998 से अब तक)
बच्चे
छह
शिक्षा
हेल्डटाउन कॉलेज से स्नातक।
विशेष
द.अफ्रीका में मंडेला को मदिबा के नाम से भी जाना जाता है।

गुरुवार, 5 दिसंबर 2013

फिर पकड़ा गया रिश्वतखौर पटवारी

जयपुर। राजस्थान भ्रष्टाचार निरोधक ब्यूरो की कार्रवाई में फिर से एक पटवारी रिश्वत लेते पकड़ा गया। ताजा मामला पटवार हल्का फोलाई (बूंदी) का है। यहां के पटवारी को पांच हजार रूपए की रिश्वत लेते गुरूवार को गिरफ्तार किया गया।



उल्लेखनीय है कि ब्यूरो की ओर से रिश्वतखौर कर्मचारियों को रंगे हाथों पकड़ने की कार्रवाई में अब तक सौ से भी अधिक पटवारी गिरफ्त में आ चुके हैं।

ब्यूरो महानिरीक्षक स्मिता श््रीवास्तव ने बताया कि परिवादी शिवराज गुर्जर निवासी गोठडा,तहसील केसोरायपाटन जिला बूंदी ने शिकायत दर्ज कराई कि उसके पिताजी करीब 22 बीघा जमीन पर काफी सालों से खेती करते रहे हैं।

इस भूमि को उसके भाई पुष्पचन्दा व देशराज एवं स्वयं के नाम खाते में दर्ज कराने की एवज में पटवार हल्का फोलाई(अतिरिक्त चार्ज गोठडा) जिला बूंदी के पटवारी चतुरभुज ने पन्द्रह हजार रूपए की रिश्वत की मांग की है। ब्यूरो टीम बूंदी ने पटवारी चतुरभुज को पांच हजार रूपए की रिश्वत राशि लेते हुये रंगे हाथों पटवार हल्का से गिरफ्तार कर लिया।

"बरसी" पर आयोध्या में सुरक्षा चाकचौबंद

अयोध्या। अयोध्या में विवादित ढांचा ध्वस्त होने की बरसी पर उत्तर प्रदेश सरकार किसी भी चूक की गुंजाइश नहीं छोड़ना चाहती है। इसी लिहाज से सरकार ने आयोध्या समेत प्रदेशभर में पुलिस को सतर्कता बरतने के निर्देश जारी कर दिए है।
उल्लेखनीय है कि शुक्रवार यानि 6 दिसम्बर को विवादित ढांचा ध्वस्त होने की बरसी है और दोनों समुदायों की ओर से इस मौके पर शौर्य और काला दिवस मनाने की घोषणा की गई है। बता दें कि हाल ही मुजफ्फरनगर हिंसा में में यूपी सरकार पर समय रहते कार्रवाई नहीं करने के साथ ही प्रशासन की विफलता के आरोप लगे थे।

पुलिस को जारी किए निर्देश

आधिकारिक प्रवक्ता के अनुसार राज्य के अपर पुलिस महानिदेशक(कानून व्यवस्था)मुकुल गोयल द्वारा समस्त वरिष्ठ पुलिस अधीक्षक पुलिस अधीक्षक प्रभारी जिलों को गुरूवार को निर्देश दिये गए हैं कि बाबरी ढांचा ढहाये जाने की घटना के बाद प्रत्येक वष्ाü छह दिसम्बर को मुस्लिम और हिन्दू सम्प्रदाय अलग अलग ढंग से प्रतिक्रियायें व्यकत करते हैं । इस दिन मुस्लिम समुदाय के लोग काली पट्टी बांधकर और ज्ञापनआदि देकर इस घाटना पर विरोध प्रकट करते हैं तथा हिन्दू समुदाय के कु छ संगठन इसे शौर्य दिवस केरू प में मनाते हैं और मंदिरों में पूजा पाठ. शंख घाडियाल और घांटे बजाते हैं।

आयोध्या में धारा 144 लागू

पुलिस को जारी निर्देशों के अनुसार इस दिन कहीं-कहीं शान्तिव्यवस्था की समस्यायें भी उत्पन्न होती हैं। ऎसे में आगामी सात दिसम्बर तक आवश्यक सेवाएं बाधित नहीं होने पाए। पूरे जिले में धारा 144 लागू करा दी जाएं एवं शुक्रवार छह दिसम्बर को कोई भी धार्मिक आयोजन, उत्सव, रैली या सभा किए जाने की अनुमति नहीं दी जाए।

माहौल बिगाड़ने वालों पर नजर

अनुसार साम्प्रदायिक सद्भाव बिगाड़ने वाले तत्वों को चिन्हित कर उन पर सतर्क दृष्टि रखी जाए और आवश्यकता पडने पर उनके खिलाफ निरोधात्मक कार्रüवाई सुनिश्चित की जाए। शांति समितियों की बैठक करके उनका सहयोग प्राप्त किया जाए तथा शहरों में सेक्टर स्कीम लागू की जाए।

पटाखा शॉप पर लगेंगे ताले

दुरूपयोग की आशंका के चलते यूपी सरकार की ओर से शुक्रवार को पटाखों की दुकानों को भी बंद रखने के निर्देश दिए गए है। साथ ही शस्त्र और शराब की दुकानों पर सतर्क दृष्टि रखी जाए। अपर पुलिस महानिदेशक ने कहा कि यदि कोई संगठन इस संबंध में ज्ञापन देना चाहे तो उसे जुलूस बनाकर कचहरी। तहसील आदि स्थानों पर आने की अनुमति न-न दी जाए अपितु जुलूस के उद्गम स्थान पर मजिस्ट्रेट स्वयं जाकर उनका ज्ञापन प्राप्त कर लें।

अतरिक्त पुलिस बल की तैनाती

सरकार की ओर से मिश्रित आबादी वाले क्षेत्रों और साम्प्रदायिक दृष्टि से संवेदनशील स्थानों पर अतिरिक्त पुलिस बल लगाने के निर्देश जारी किए गए है। ड्यूटी पर लगा बल दंगा निरोधक उपकरणों से लैस रहे। पीएसी बल के साथ जिला पुलिस का एक उपनिरीक्षक गाइड के रू प में रहे तथा चौकीदारों और होमगाडाेंü का प्रयोग किया जाएगा। पुलिस लाइनों में कु छ पुलिस बल रिजर्व में रखे जाने के निर्देश भी जारी किए गए है।

foto...अतीत के झरोखे से भारत-पाकिस्तान युद्ध (1971)













अतीत के झरोखे से 

सन् 1971 का युद्ध भारत और पाकिस्तान के बीच एक सैन्य संघर्ष था। हथियारबंद लड़ाई के दो मोर्चों पर 14 दिनों के बाद, युद्ध पाकिस्तान सेना और पूर्वी पाकिस्तान के अलग होने की पूर्वी कमान के समर्पण के साथ खत्म हुआ, बांग्लादेश के स्वतंत्र राज्य पहचानने, 97,368 पश्चिम पाकिस्तानियों जो अपनी स्वतंत्रता के समय पूर्वी पाकिस्तान में थे, कुछ 79,700 पाकिस्तान सेना के सैनिकों और अर्द्धसैनिक बलों के कर्मियों और 12,500 नागरिकों, सहित लगभग भारत द्वारा युद्ध के कैदियों के रूप में ले जाया गया।

राजनीतिक हलचल

लड़ाई शुरू होने से दो महीने पहले अक्तूबर 1971 में नौसेना अध्यक्ष एडमिरल एसएम नंदा भारत की तत्कालीन प्रधानमंत्री इंदिरा गाँधी से मिलने गए। नौसेना की तैयारियों के बारे में बताने के बाद उन्होंने श्रीमती गांधी से पूछा अगर नौसेना कराची पर हमला करें, तो क्या इससे सरकार को राजनीतिक रूप से कोई आपत्ति हो सकती है। इंदिरा गांधी ने हाँ या न कहने के बजाए सवाल पूछा कि आप ऐसा पूछ क्यों रहे हैं। नंदा ने जवाब दिया कि 1965 में नौसेना से ख़ास तौर से कहा गया था कि वह भारतीय समुद्री सीमा से बाहर कोई कार्रवाई न करें, जिससे उसके सामने कई परेशानियाँ उठ खड़ी हुई थीं। इंदिरा गांधी ने कुछ देर सोचा और कहा, 'वेल एडमिरल, इफ़ देयर इज़ अ वार, देअर इज़ अ वार.' यानी अगर लड़ाई है तो लड़ाई है। एडमिरल नंदा ने उन्हें धन्यवाद दिया और कहा, ‘मैडम मुझे मेरा जवाब मिल गया।’
हमले की योजना

सील्ड लिफ़ाफ़े में हमले के आदेश कराची पर हमले की योजना बनाई गई और 1 दिसंबर 1971 को सभी पोतों को कराची पर हमला करने के सील्ड लिफ़ाफे में आदेश दे दिए गए। पूरा वेस्टर्न फ़्लीट 2 दिसंबर को मुंबई से कूच कर गया। उनसे कहा गया कि युद्ध शुरू होने के बाद ही वह उस सील्ड लिफ़ाफ़े को खोलें। योजना थी कि नौसैनिक बेड़ा दिन के दौरान कराची से 250 किलोमीटर के वृत्त पर रहेगा और शाम होते-होते उसके 150 किलोमीटर की दूरी पर पहुँच जाएगा। अंधेरे में हमला करने के बाद पौ फटने से पहले वह अपनी तीव्रतम रफ़्तार से चलते हुए कराची से 150 दूर आ जाएगा, ताकि वह पाकिस्तानी बमवर्षकों की पहुँच से बाहर आ जाए और हमला भी रूस की ओसा क्लास मिसाइल बोट से किया जाएगा। वह वहाँ खुद से चल कर नहीं जाएंगी, बल्कि उन्हें नाइलोन की रस्सियों से खींच कर ले जाया जाएगा। ऑपरेशन ट्राइडेंट के तहत पहला हमला निपट, निर्घट और वीर मिसाइल बोट्स ने किया। प्रत्येक मिसाइल बोट चार-चार मिसाइलों से लैस थीं। स्क्वार्डन कमांडर बबरू यादव निपट पर मौजूद थे। बाण की शक्ल बनाते हुए निपट सबसे आगे था उसके पीछे बाईं तरफ़ निर्घट था और दाहिना छोर वीर ने संभाला हुआ था। उसके ठीक पीछे आईएनएस किल्टन चल रहा था
ख़ैबर डूबा

विजय जेरथ के नेतृत्व में कराची पर हमला हुआ था। कराची से 40 किलोमीटर दूर यादव ने अपने रडार पर हरकत महसूस की। उन्हें एक पाकिस्तानी युद्ध पोत अपनी तरफ़ आता दिखाई दिया। उस समय रात के 10 बज कर 40 मिनट हुए थे। यादव ने निर्घट को आदेश दिया कि वह अपना रास्ता बदले और पाकिस्तानी जहाज़ पर हमला करे। निर्घट ने 20 किलोमीटर की दूरी से पाकिस्तानी विध्वंसक पीएनएस ख़ैबर पर मिसाइल चलाई। ख़ैबर के नाविकों ने समझा कि उनकी तरफ़ आती हुई मिसाइल एक युद्धक विमान है। उन्होंने अपनी विमान भेदी तोपों से मिसाइल को निशाना बनाने की कोशिश की लेकिन वह अपने को मिसाइल का निशाना बनने से न रोक सके। तभी कमांडर यादव ने 17 किलोमीटर की दूरी से ख़ैबर पर एक और मिसाइल चलाने का आदेश दिया और किल्टन से भी कहा कि वह निर्घट के बग़ल में जाए। दूसरी मिसाइल लगते ही ख़ैबर की गति शून्य हो गई। पोत में आग लग गई और उससे गहरा धुँआ निकलने लगा. थोड़ी देर में ख़ैबर पानी में डूब गया. उस समय वह कराची से 35 नॉटिकल मील दूर था और समय था 11 बजकर 20 मिनट। उधर निपट ने पहले वीनस चैलेंजर पर एक मिसाइल दागी और फिर शाहजहाँ पर दूसरी मिसाइल चलाई। वीनस चैलेंजर तुरंत डूब गया जबकि शाहजहाँ को नुक़सान पहुँचा। तीसरी मिसाइल ने कीमारी के तेल टैंकर्स को निशाना बनाया जिससे दो टैंकरों में आग लग गई। इस बीच वीर ने पाकिस्तानी माइन स्वीपर पीएन एस मुहाफ़िज़ पर एक मिसाइल चलाई जिससे उसमें आग लग गई और वह बहुत तेज़ी से डूब गया। इस हमले के बाद से पाकिस्तानी नौसेना सतर्क हो गई और उसने दिन रात कराची के चारों तरफ़ छोटे विमानों से निगरानी रखनी शुरू कर दी। 6 दिसंबर को नौसेना मुख्यालय ने पाकिस्तानी नौसेना का एक संदेश पकड़ा जिससे पता चला कि पाकिस्तानी वायुसेना ने एक अपने ही पोत पीएनएस ज़ुल्फ़िकार को भारतीय युद्धपोत समझते हुए उस पर ही बमबारी कर दी। पश्चिमी बेड़े के फ़्लैग ऑफ़िसर कमांडिंग एडमिरल कुरुविला ने कराची पर दूसरा मिसाइल बोट हमला करने की योजना बनाई और उसे ऑपरेशन पाइथन का नाम दिया गया।[
'विनाश' का हमला

इस बार अकेली मिसाइल बोट विनाश, दो फ़्रिगेट्स त्रिशूल और तलवार के साथ गई। 8 दिसंबर 1971 की रात 8 बजकर 45 मिनट का समय था। आईएनएस विनाश पर कमांडिंग ऑफ़िसर विजय जेरथ के नेतृत्व में 30 नौसैनिक कराची पर दूसरा हमला करने की तैयारी कर रहे थे। तभी बोट की बिजली फ़ेल हो गई और कंट्रोल ऑटोपाइलट पर चला गया। वह अभी भी बैटरी से मिसाइल चला सकते थे लेकिन वह अपने लक्ष्य को रडार से देख नहीं सकते थे। वह अपने आप को इस संभावना के लिए तैयार कर ही रहे थे कि क़रीब 11 बजे बोट की बिजली वापस आ गई। जेरथ ने रडार की तरफ़ देखा। एक पोत धीरे धीरे कराची बंदरगाह से निकल रहा था। जब वह पोत की पोज़ीशन देख ही रहे थे कि उनकी नज़र कीमारी तेल डिपो की तरफ़ गई। मिसाइल को जाँचने-परखने के बाद उन्होंने रेंज को मैनुअल और मैक्सिमम पर सेट किया और मिसाइल फ़ायर कर दी। जैसे ही मिसाइल ने तेल टैंकरों को हिट किया वहाँ जैसे प्रलय ही आ गई। जेरथ ने दूसरी मिसाइल से पोतों के एक समूह को निशाना बनाया। वहाँ खड़े एक ब्रिटिश जहाज़ हरमटौन में आग लग गई और पनामा का पोत गल्फ़ स्टार बरबाद होकर डूब गया। चौथी मिसाइल पीएनएस ढाका पर दागी गई लेकिन उसके कमांडर ने कौशल और बुद्धि का परिचय देते हुए अपने पोत को बचा लिया। लेकिन कीमारी तेल डिपो में लगी आग की लपटों को 60 किलोमीटर की दूरी से भी देखा जा सकता था। ऑपरेशन ख़त्म होते ही जेरथ ने संदेश भेजा, 'फ़ोर पिजंस हैपी इन द नेस्ट. रिज्वाइनिंग.' उनको जवाब मिला, ’एफ़ 15 से विनाश के लिए: इससे अच्छी दिवाली हमने आज तक नहीं देखी.’ कराची के तेल डिपो में लगी आग को सात दिनों और सात रातों तक नहीं बुझाया जा सका। अगले दिन जब भारतीय वायु सेना के विमान चालक कराची पर बमबारी करने गए तो उन्होंने रिपोर्ट दी, ‘यह एशिया का सबसे बड़ा बोनफ़ायर था।’ कराची के ऊपर इतना धुआं था कि तीन दिनों तक वहाँ सूरज की रोशनी नहीं पहुँच सकी
युद्ध परिणाम

3 दिसंबर 1971 को पाकिस्तान की ओर से भारतीय ठिकानों पर हमले के बाद भारतीय सैनिकों ने पूर्वी पाकिस्तान को मुक्त कराने का अभियान शुरू किया। भारतीय सेना के सामने ढाका को मुक्त कराने का लक्ष्य रखा ही नहीं गया। इसको लेकर भारतीय जनरलों में काफ़ी मतभेद भी थे पीछे जाती हुई पाकिस्तानी सेना ने पुलों के तोड़ कर भारतीय सेना की अभियान रोकने की कोशिश की लेकिन 13 दिसंबर आते-आते भारतीय सैनिकों को ढाका की इमारतें नज़र आने लगी थीं। पाकिस्तान के पास ढाका की रक्षा के लिए अब भी 26400 सैनिक थे जबकि भारत के सिर्फ़ 3000 सैनिक ढाका की सीमा के बाहर थे, लेकिन पाकिस्तानियों का मनोबल गिरता चला जा रहा था। 1971 की लड़ाई में सीमा सुरक्षा बल और मुक्ति बाहिनी ने पाकिस्तानी सैनिकों के आत्मसमर्पण में महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाई। फिर भी यह एक तरफ़ा लडा़ई नहीं थी। हिली और जमालपुर सेक्टर में भारतीय सैनिकों को पाकिस्तान के कड़े प्रतिरोध का सामना करना पडा। लड़ाई से पहले भारत के लिए पलायन करते पूर्वी पाकिस्तानी शरणार्थी, एक समय भारत में बांग्लादेश के क़रीब डेढ़ करोड़ शरणार्थी पहुँच गए थे। लाखों बंगालियों ने अपने घरों को छोड़ कर शरणार्थी के रूप में पड़ोसी भारत में शरण लेने का फ़ैसला किया। मुक्ति बाहिनी ने पाकिस्तानी सैनिकों पर कई जगह घात लगा कर हमला किया और पकड़ में आने पर उन्हें भारतीय सैनिकों के हवाले कर दिया। रज़ाकारों और पाकिस्तान समर्थित तत्वों को स्थानीय लोगों और मुक्ति बाहिनी का कोप भाजन बनना पड़ा।

शादी के बहाने दो भाइयों ने विवाहिता से किया दुष्कर्म



जयपुर। राजधानी जयपुर में गुरूवार को बेहद ही शर्मनाक मामला सामने आया। एक युवक ने पहले तो अपने किराएदार की बीवी से दोस्ती गांठकर शारीरिक संबंध बनाए। इसके बाद आरोपी ने खुद की सरकारी नौकरी लगने पर महिला की अपने भाई से दोस्ती करवा दी। महिला को धोखे का सिलसिला यहीं नहीं रूका उसने अपने पति से तलाक ले लिया और आरोपी के भाई के साथ लिव-इन में रहने लगी। लिव-इन में रहने के बाद आरोपी के भाई ने भी शादी से इनकार कर नाता तोड़ लिया। सांगानेर पुलिस ने महिला की शिकायत पर मामला दर्ज कर आरोपी दोनों भाइयों को गिरफ्तार कर लिया। गिरफ्तार युवकों में एक की सालभर पहले सचिवालय के गृह विभाग में नौकरी लगी है।
शादी के बहाने दो भाइयों ने विवाहिता से किया दुष्कर्म


पुलिस ने बताया कि गिरफ्तार उपेन्द्र सिंह जयपुर के निर्माण नगर और उसका फुफेरा भाई त्रिभुवन गांधी नगर में रहता है। दोनों के खिलाफ पीडिता ने 28 नवम्ब्ार को दुष्कर्म की रिपोर्ट दर्ज कराई थी। महिला ने रिपोर्ट में बताया कि उसने 1998 में सिरोही निवासी युवक से लव मैरिज की थी। 2008 में पति-पत्नी जयपुर आ गए और निर्माण नगर में उपेन्द्र के मकान में किराए से रहने लगे। इस दौरान पीडिता की उपेन्द्र से नजदीकी बढ़ गई और वह पति की कमाई से रूपए छिपाकर उपेन्द्र को देने लगी।




आरोपी उपेन्द्र ने शादी का झांसा दे उससे शारीरिक संबंध बना लिए। शक होने पर पति ने सांगानेर के प्रताप नगर में फ्लैट खरीद लिया और वे वहां रहने लगे। लेकिन उपेन्द्र से उसके संबंध जारी रहे। सालभर पहले उपेन्द्र की सरकारी नौकरी लग गई। उपेन्द्र ने उससे दूरी बना ली और खुद के फुफेरे भाई त्रिभुवन से दोस्ती करवा दी। इसके बाद त्रिभुवन ने भी पीडिता को शादी करने का झांसा दिया। इसपर पीडिता ने 2012 में अपने पति से तलाक ले लिया।




इसके बाद वह गांधी नगर स्थित उपेन्द्र के सरकारी क्वार्टर में त्रिभुवन के साथ रहने लगी। लेकिन कुछ दिनों पहले त्रिभुवन ने पीडिता को शादी से इनकार कर दिया और दूसरी लड़की से शादी करने की तैयारी में जुट गया। इस पर पीडिता ने थाने में रिपोर्ट दर्ज करादी। पुलिस ने कार्रवाई करते हुए दोनों आरोपियों को गिरफ्तार कर लिया।

भाई की 'लाश' दिखाकर किया गैंग रेप



नई दिल्ली  बीते भाईदूज के दिन एक युवती को कुछ लोगों ने उसके भाई की फर्जी लाश दिखाकर उसके साथ गैंग रेप किया। पुलिस ने एफआईआर लिखना तो दूर, उलटे विक्टिम को ही थाने से भगा दिया। अब विक्टिम और उसका परिवार इंसाफ पाने के लिए दर-दर भटक रहा है। मामला उत्तर प्रदेश के जिला फिरोजाबाद के गांव जेरा का है। रेप का आरोप ग्राम प्रधान के पति और उसके 6 साथियों पर लगा है।
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विक्टिम के पिता अनुज यादव (बदला हुआ नाम) के मुताबिक घटना 5 नवंबर की है। उनकी 22 साल की बेटी आशा (बदला हुआ नाम) भाई-दूज की पूजा करने के बाद गांव में ही अपनी सहेली के घर गई हुई थी। दोपहर करीब 12 बजे आशा वहां से अपने घर के लिए लौट रही थी कि रास्ते में बाइक से एक लड़का उसके पास आया और उसको बताया कि आशा के भाई का एक्सिडेंट हो गया है। खबर सुनकर बदहवास आशा उस लड़के के संग अपने भाई को देखने चली गई। वह लड़का उसे पास के ही कस्बे एका लेकर पहुंचा जहां लाल रंग की बोलेरो खड़ी थी। लड़के ने आशा को बताया कि इसी में उसका भाई है। आशा ने जब बोलेरो के अंदर देखा तो सफेद कपड़े में लिपटी एक बॉडी दिखी। उसके आस-पास आगे और पीछे की सीट पर कुछ और आदमी बैठे हुए थे जिनमें से एक उसके गांव की प्रधान का पति दलबीर सिंह यादव (पुत्र साधु सिंह यादव) भी था। आशा कपड़ा हटाने के लिए आगे झुकी ही थी कि उन आदमियों ने उसे अंदर खींच लिया। वह कुछ कर पाती इससे पहले ही बोलेरो का दरवाजा बंद हो चुका था।

विक्टिम ने बताया कि आरोपी उसे लेकर गांव के ही बाहर बने एक वीरान पुल पर पहुंचे। पुल के आस-पास जंगल होने की वजह से वहां राहगीरों का आना-जाना लगभग न के बराबर था। दिन भर उसके साथ वहशियों से भी बदतर हरकत करने के बाद वे लोग उसे रात करीब 11:55 बजे अधमरी हालत में उसके घर से 20 मीटर की दूरी पर छोड़कर भाग गए। अनुज यादव ने जब बाहर आकर देखा तो उनकी बेटी नग्नावस्था में बेसुध पड़ी हुई थी। आरोपियों ने उसी की साड़ी से उसके हाथ और पैर बांध दिए थे। उसके मुंह पर भी कपड़ा बांधा हुआ था। उसके प्राइवेट पार्ट्स पर दांतो के निशान थे और पूरे शरीर पर जगह-जगह बेल्ट के निशान थे। अगले दिन सुबह जब आशा को होश आया तो वह इस कदर डरी हुई थी कि किसी का नाम तक बताने को तैयार नहीं थी। वह बस यह कह रही थी कि अगर मैंने किसी का नाम लिया तो वे मुझे मार डालेंगे। पिता के ज्यादा जोर देने पर उसने सबका नाम बताया।




अनुज यादव ने बताया कि वह जब 6 नवंबर को एफआईआर दर्ज कराने एका थाने पहुंचे तो एसओ ने यह कहते हुए उनकी तहरीर फाड़ दी कि ग्राम प्रधान का पति ऐसा कर ही नहीं सकता। इसके बाद अनुज यादव के जान-पहचान वालों में किसी ने आईजी इलाहाबाद से बात की। तब आईजी इलाहाबाद ने एसपी फिरोजाबाद को एफआईआर दर्ज करवाने का निर्देश दिया। आईजी इलाहाबाद से मिले आश्वासन के बाद विक्टिम के घरवाले एसपी फिरोजाबाद के पास पहुंचे। तब एसपी के कहने पर थाना एका के एसओ ने 19 नवंबर को एफआईआर दर्ज कराई और तभी विक्टिम का मेडिकल भी कराया। मेडिकल की रिपोर्ट अब तक उनको नहीं दी गई है। बड़ी मुश्किल से उन्होंने एफआईआर की फोटो कॉपी निकलवाई है जिसमें सातों आरोपियों के नाम हैं। एफआईआर लिखे हुए 15 दिन बीत चुके हैं लेकिन अब तक कोई ऐक्शन नहीं लिया गया है। आरोपी खुले घूम रहे हैं।

एसपी नेता का नाम
विक्टिम के घरवालों का कहना है कि पुलिस इसलिए कोई ऐक्शन नहीं ले रही है क्योंकि दलबीर सिंह एसपी के राष्ट्रीय महासचिव रामगोपाल यादव का करीबी है। रामगोपाल यादव के बेटे अक्षय यादव को पहली बार लोकसभा चुनाव के लिए फिरोजाबाद से टिकट मिला है। दलबीर सिंह के दम पर अक्षय यादव को 21 गांवों से समुदाय विशेष के लोगों का वोट मिलना पक्का है। इस वजह से दलबीर सिंह को पकड़ना तो दूर, पुलिस उससे इस मामले में पूछताछ तक नहीं कर रही है।

पति ने भी दिया था जहर
विक्टिम के पिता अनुज यादव ने बताया, 'मेरी बेटी शादीशुदा है। 2 महीने से मायके में ही रह रही है। बेटी पैदा होने के बाद उसके शराबी पति ने एक बार उसे जहर देकर मारने की कोशिश की थी। तब से वह मायके में ही रहती है। सोचा था कि यहां वह खुश रहेगी लेकिन यहां तो उसके साथ ऐसा घटना हो गई, जिसे वह जिंदगी भर नहीं भुला सकती।'

बिहार में जमीन के विवाद में 5 बहनों की हत्या



गया  बिहार के गया जिले के खिजरसराय थाना क्षेत्र में बुधवार देर रात बदमाशों ने एक ही परिवार की पांच लड़कियों की गोली मारकर हत्या कर दी। हत्या का कारण भूमि विवाद बताया जा रहा है। सभी लड़कियां रिश्ते में बहन लगती थीं।
Five minor girls killed in Gaya
पुलिस के अनुसार, बदमाशों ने सोनाथ गांव निवासी शशि भूषण सिंह के घर पर रात में धावा बोलकर पांच लड़कियों की गोली मारकर हत्या कर दी। लड़कियों की उम्र आठ से 16 साल के बीच बताई गई है। मृतकों की पहचान स्वीटी कुमारी, रेशमा, जूली, मनीता और अनीता के रूप में हुई है। वहीं, इस खूनी वारदात के बाद से गांव में तनाव का माहौल है।

ग्रामीण कुछ भी बोलने से बच रहे हैं। गया के एसएसपी निशांत कुमार तिवारी ने गुरुवार को बताया, 'मृतक लड़कियों के परिवार और उसी गांव के रहने वाले शंभू सिंह के परिवार में जमीन को लेकर विवाद चल रहा था। वारदात के समय लड़कियों के माता-पिता घर पर नहीं थे।'उन्होंने बताया कि इस घटना की प्राथमिकी संबंधित थाने में दर्ज करा दी गई है। पुलिस मामले की छानबीन कर रही है। शव गया स्थित मगध मेडिकल कॉलेज अस्पताल भिजवा दिए गए हैं।