जोहानिसबर्ग। दक्षिण अफ्रीका के पहले अश्वेत राष्ट्रपति नेल्सन मंडेला का गुरूवार देर रात (भारतीय समयानुसार) निधन हो गया। अफ्रीकी राष्ट्रपति जैकब जुमा ने इसकी आधिकारिक घोषणा करते हुए कहा, "हमारे देश ने अपना महानतम बेटा खो दिया।" लंबे समय से बीमार मंडेला ने घर पर अंतिम सांस ली।
गत सितंबर में फेफड़े के संक्रमण के कारण बीमार मंडेला को सैन्य अस्पताल में भर्ती कराया गया था। उसके बाद से लगातार वे सेना के विशेषज्ञ चिक्तिसकों की निगरानी में थे। 95 वर्षीय मंडेला को दक्षिण अफ्रीका में रंगभेदी सरकार के विरूद्ध संघर्ष और लोकतांत्रिक सरकार की स्थापना के लिए जाना जाता था। इस संघर्ष के लिए उन्हें 27 साल जेल में रहना पड़ा। मंडेला ने कई संघर्षो में शांति बहाली में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई। 1993 में उन्हें शांति का नोबेल पुरस्कार दिया गया।
रंगभेद के खिलाफ बुलंद आवाज
नेल्सन मंडेला, ये नाम रंगभेद के खिलाफ आवाज बुलंद करने वाले क्रांतिकारी या दक्षिण अफ्रीका के पहले अश्वेत राष्ट्रपति तक सीमित नहीं है, ये नाम परिचायक है विश्व में शांति, समानता और प्रेम के लिए चल रहे निरंतर प्रयास का। ये नाम है उस अनथक संघर्ष का, जिसने तमाम मुश्किल हालातों का सामना करते हुए दक्षिण अफ्रीका को नई बुलंदियों पर स्थापित करने का काम किया।
नेल्सन मंडेला थेंबू राजवंश से संबंधित थे। उनको उनके पिता ने नाम दिया रोहिल्लाला, जिसका अर्थ होता है पेड़ की डालियों को तोड़ने वाला या फिर प्यारा शैतान बच्चा। उनका परिवार परम्परा से ही गांव का प्रधान परिवार था। नेल्सन अपनी पिता की तीसरी पत्नी की पहली सन्तान थे। उनकी मां एक मेथडिस्ट ईसाई थीं, और उनके प्रभाव में वे मिशनरी स्कूल गए। वहीं उन्हें ईसाई नाम, नेल्सन दिया गया।
स्कूली शिक्षा के दौरान ही उनका सामना पहली बार रंगभेद से हुआ। नौ वर्ष की आयु में पिता को गंवाने वाले नेल्सन पर इस भेदभाव का गहरा असर पड़ा। उन्होंने पिता की विरासत सम्भालने के बजाय खुद को शिक्षित करना जरूरी समझा। 1937 में वे हेल्डटाउन गए और अश्वेतों के लिए बनाए गए विशेष कॉलेज "फोर्ट हेयर" में दाखिला लिया। छात्र जीवन में ही उन्होंने रंगभेदी सरकार की नीतियों की मुखालफत शुरू कर दी, नतीजतन कॉलेज से भी निकाले गए। 1944 में उन्होंने अफ्रीकन नेशनल कांग्रेस की सदस्यता ली और अपना जीवन रंगभेद के विरूद्ध लड़ाई में झोंक दिया। इस लड़ाई में 27 साल जेल में भी बिताने पड़े।
आखिर लाए परिवर्तन
अंतत: 1989 में दक्षिण अफ्रीका में सत्ता परिवर्तन हुआ और उदार एफ .डब्ल्यू. क्लार्क देश के मुखिया बने। सत्ता सम्भालते ही उन्होंने सभी अश्वेत दलों पर लगा हुआ प्रतिबंध हटा लिया। साथ ही सभी राजनीतिक बंदियों को आजाद कर दिया गया, जिन पर किसी तरह का आपराधिक मुकदमा दर्ज नहीं था। वर्ष 1994 में दक्षिण अफ्रीका का आम चुनाव रंगभेद रहित हुआ। अफ्रीकन नेशनल कांग्रेस ने अन्य दलों को पीछे छोड़ते हुए 62 फीसद मतों को हासिल किया। चुनाव जीतने के बाद 10 सितंबर 1994 को नेल्सन मंडेला दक्षिण अफ्रीका के पहले अश्वेत राष्ट्रपति बने जो अपने पद पर 14 जून, 1999 तक रहे। जून 2004 में उन्होंने सक्रिय राजनीति से संन्यास ले लिया।
सशस्त्र सेना का नेतृत्व
सरकार द्वारा रंगभेद के खिलाफ छिडे आंदोलन को रोकने के हर संभव प्रयास किए जा रहे थे। रंगभेद के खिलाफ प्रदर्शन के दौरान पुलिस ने शार्पविले शहर में प्रदर्शनकारियों पर गोलियों की बौछार कर दी। 180 लोग मारे गए और 69 लोग घायल हुए। ऎसी घटनाओं से मंडेला का अहिंसा पर से विश्वास उठने लगा और उन्होंने हिंसा का रास्ता अख्तियार किया। वर्ष 1961 में नेशनल अफ्रीकन कांग्रेस ने एक लड़ाका दल "स्पीयर ऑफ द नेशन" का गठन किया और नेल्सन मंडेला ने इस सशस्त्र टुकड़ी का नेतृत्व किया।
पुरस्कार
मंडेला को 250 से भी ज्यादा पुरस्कार और सम्मान मिले। वैश्विक स्तर पर उनकी उपलब्धियों के लिए उन्हें फ्रेडरिक डी क्लार्क के साथ संयुक्त रूप से 1993 में शांति का नोबेल पुरस्कार दिया गया।
भारत से जुड़ाव
मंडेला का भारत से गहरा जुड़ाव रहा है। वर्ष 1990 में जेल से आजाद होने के बाद मंडेला भारत की यात्रा पर आए थे। इसके बाद दक्षिण अफ्रीका में राष्ट्रपति बनने के तुरंत बाद ही मंडेला भारत की यात्रा पर आए। भारत से उनके गहरे लगाव का ही परिणाम था कि वर्ष 1995 में भी मंडेला भारत की यात्रा पर आए और भारत से पिछले 40 वर्षो से बंद पड़े विदेशी व्यापार के मामले में तत्कालीन प्रधानमंत्री पी.वी. नरसिम्हा राव से बातें कीं।
मंडेला दिवस
संयुक्त राष्ट्र संघ ने मंडेला के जन्मदिन को एक अंतरराष्ट्रीय दिवस के तौर पर स्वीकार किया है। इस दिवस के आयोजन के पीछे संयुक्त राष्ट्र संघ की सोच रही है कि प्रत्येक व्यक्ति और संगठन इस दिवस को अपना 67 मिनट समय दूसरे की सहायता करने में लगाए। 67 मिनट का यह समय नेल्सन मंडेला के सामाजिक न्याय के लिए किए गए 67 वर्षो के लंबे युद्ध को इंगित करता है।
भारत में सम्मान
वर्ष 1990 में मंडेला को भारत के सबसे बड़े सम्मान भारत रत्न से नवाजा गया। उन्हें यह पुरस्कार दक्षिण अफ्रीका में रंगभेद के खिलाफ चलाए गए आंदोलन के लिए दिया गया था। वर्ष 1999 में मंडेला को अहिंसा के वैश्विक आंदोलन के लिये गांधी-किंग एडवर्ड पुरस्कार से नवाजा गया। उन्हें यह पुरस्कार महात्मा गांधी की पौत्री इला गांधी ने दिया।
राजनीति से इतर जीवन
वर्ष 1999 में राष्ट्रपति पद से हटने के बाद मंडेला विभिन्न सामजिक और मानवाधिकार संगठनों के लिए वकालत का काम करने लगे। उन्होंने नेल्सन मंडेला फाउंडेशन, नेल्सन मंडेला चिल्ड्रेन्स फंड और मंडेला रोडेश फाउंडेशन को स्थापित करने में सहयोग दिया। इसके अलावा उनकी प्राथमिकताओं में एड्स जैसी बीमारी से लड़ना भी शामिल था। मंडेला ने अपने जीवन काल में कई पुस्तकों का प्रकाशन किया।
उनमें से "नो इजी वाक टू फ्रीडम", लांग वाक टू फ्रीडम, "नेल्सन मंडेला : द स्ट्रगल इज माइ लाइफ" प्रमुख हैं। वर्ष 1997 में उनके जीवन पर "मंडेला एण्ड डी क्लार्क" नाम से फिल्म भी बन चुकी है। इसके अलावा 1992 की फिल्म "माल्कोम" भी उनके जीवन से प्रभावित रही है।
मंडेला व महात्मा गांधी
मंडेला के व्यक्तित्व पर महात्मा गांधी का गहरा प्रभाव था। द.अफ्रीका में नस्लभेद के खिलाफ किए गए संघर्षो की प्रेरणा भी उन्हें महात्मा गांधी से ही मिली, क्योंकि वो पहले व्यक्ति थे, जिन्होंने दक्षिण अफ्रीका में जाकर नस्लभेद और रंगभेद के खिलाफ बगावत का झंडा बुलंद किया था। वर्ष 2000 में टाइम पत्रिका को दिए गए साक्षात्कार में उन्होंने कहा था कि महात्मा गांधी उपनिवेशवाद को उखाड़ फेंकने वाले क्रांतिकारी थे। दक्षिण अफ्रीका के स्वतंत्रता आंदोलन को मूर्त रूप देने में मैंने उनसे ही प्रेरणा पाई।
नाम
नेल्सन मंडेला
जन्म
18 जुलाई 1918
(दक्षिण अफ्रीका में मबासा नदी के किनारे ट्रांस्की के मवेजो गांव में)
पिता
गाडला हेनरी फाकानिस्वा
मां
नेक्यूफी नोस्केनी
पत्नी
इवलिन मेस
(पहली पत्नी 1944-1957)
नोमजामो विनी मेडीकिजाला
(दूसरी पत्नी (1957-1996)
ग्रेस मेकल
(तीसरी पत्नी 1998 से अब तक)
बच्चे
छह
शिक्षा
हेल्डटाउन कॉलेज से स्नातक।
विशेष
द.अफ्रीका में मंडेला को मदिबा के नाम से भी जाना जाता है।
गत सितंबर में फेफड़े के संक्रमण के कारण बीमार मंडेला को सैन्य अस्पताल में भर्ती कराया गया था। उसके बाद से लगातार वे सेना के विशेषज्ञ चिक्तिसकों की निगरानी में थे। 95 वर्षीय मंडेला को दक्षिण अफ्रीका में रंगभेदी सरकार के विरूद्ध संघर्ष और लोकतांत्रिक सरकार की स्थापना के लिए जाना जाता था। इस संघर्ष के लिए उन्हें 27 साल जेल में रहना पड़ा। मंडेला ने कई संघर्षो में शांति बहाली में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई। 1993 में उन्हें शांति का नोबेल पुरस्कार दिया गया।
रंगभेद के खिलाफ बुलंद आवाज
नेल्सन मंडेला, ये नाम रंगभेद के खिलाफ आवाज बुलंद करने वाले क्रांतिकारी या दक्षिण अफ्रीका के पहले अश्वेत राष्ट्रपति तक सीमित नहीं है, ये नाम परिचायक है विश्व में शांति, समानता और प्रेम के लिए चल रहे निरंतर प्रयास का। ये नाम है उस अनथक संघर्ष का, जिसने तमाम मुश्किल हालातों का सामना करते हुए दक्षिण अफ्रीका को नई बुलंदियों पर स्थापित करने का काम किया।
नेल्सन मंडेला थेंबू राजवंश से संबंधित थे। उनको उनके पिता ने नाम दिया रोहिल्लाला, जिसका अर्थ होता है पेड़ की डालियों को तोड़ने वाला या फिर प्यारा शैतान बच्चा। उनका परिवार परम्परा से ही गांव का प्रधान परिवार था। नेल्सन अपनी पिता की तीसरी पत्नी की पहली सन्तान थे। उनकी मां एक मेथडिस्ट ईसाई थीं, और उनके प्रभाव में वे मिशनरी स्कूल गए। वहीं उन्हें ईसाई नाम, नेल्सन दिया गया।
स्कूली शिक्षा के दौरान ही उनका सामना पहली बार रंगभेद से हुआ। नौ वर्ष की आयु में पिता को गंवाने वाले नेल्सन पर इस भेदभाव का गहरा असर पड़ा। उन्होंने पिता की विरासत सम्भालने के बजाय खुद को शिक्षित करना जरूरी समझा। 1937 में वे हेल्डटाउन गए और अश्वेतों के लिए बनाए गए विशेष कॉलेज "फोर्ट हेयर" में दाखिला लिया। छात्र जीवन में ही उन्होंने रंगभेदी सरकार की नीतियों की मुखालफत शुरू कर दी, नतीजतन कॉलेज से भी निकाले गए। 1944 में उन्होंने अफ्रीकन नेशनल कांग्रेस की सदस्यता ली और अपना जीवन रंगभेद के विरूद्ध लड़ाई में झोंक दिया। इस लड़ाई में 27 साल जेल में भी बिताने पड़े।
आखिर लाए परिवर्तन
अंतत: 1989 में दक्षिण अफ्रीका में सत्ता परिवर्तन हुआ और उदार एफ .डब्ल्यू. क्लार्क देश के मुखिया बने। सत्ता सम्भालते ही उन्होंने सभी अश्वेत दलों पर लगा हुआ प्रतिबंध हटा लिया। साथ ही सभी राजनीतिक बंदियों को आजाद कर दिया गया, जिन पर किसी तरह का आपराधिक मुकदमा दर्ज नहीं था। वर्ष 1994 में दक्षिण अफ्रीका का आम चुनाव रंगभेद रहित हुआ। अफ्रीकन नेशनल कांग्रेस ने अन्य दलों को पीछे छोड़ते हुए 62 फीसद मतों को हासिल किया। चुनाव जीतने के बाद 10 सितंबर 1994 को नेल्सन मंडेला दक्षिण अफ्रीका के पहले अश्वेत राष्ट्रपति बने जो अपने पद पर 14 जून, 1999 तक रहे। जून 2004 में उन्होंने सक्रिय राजनीति से संन्यास ले लिया।
सशस्त्र सेना का नेतृत्व
सरकार द्वारा रंगभेद के खिलाफ छिडे आंदोलन को रोकने के हर संभव प्रयास किए जा रहे थे। रंगभेद के खिलाफ प्रदर्शन के दौरान पुलिस ने शार्पविले शहर में प्रदर्शनकारियों पर गोलियों की बौछार कर दी। 180 लोग मारे गए और 69 लोग घायल हुए। ऎसी घटनाओं से मंडेला का अहिंसा पर से विश्वास उठने लगा और उन्होंने हिंसा का रास्ता अख्तियार किया। वर्ष 1961 में नेशनल अफ्रीकन कांग्रेस ने एक लड़ाका दल "स्पीयर ऑफ द नेशन" का गठन किया और नेल्सन मंडेला ने इस सशस्त्र टुकड़ी का नेतृत्व किया।
पुरस्कार
मंडेला को 250 से भी ज्यादा पुरस्कार और सम्मान मिले। वैश्विक स्तर पर उनकी उपलब्धियों के लिए उन्हें फ्रेडरिक डी क्लार्क के साथ संयुक्त रूप से 1993 में शांति का नोबेल पुरस्कार दिया गया।
भारत से जुड़ाव
मंडेला का भारत से गहरा जुड़ाव रहा है। वर्ष 1990 में जेल से आजाद होने के बाद मंडेला भारत की यात्रा पर आए थे। इसके बाद दक्षिण अफ्रीका में राष्ट्रपति बनने के तुरंत बाद ही मंडेला भारत की यात्रा पर आए। भारत से उनके गहरे लगाव का ही परिणाम था कि वर्ष 1995 में भी मंडेला भारत की यात्रा पर आए और भारत से पिछले 40 वर्षो से बंद पड़े विदेशी व्यापार के मामले में तत्कालीन प्रधानमंत्री पी.वी. नरसिम्हा राव से बातें कीं।
मंडेला दिवस
संयुक्त राष्ट्र संघ ने मंडेला के जन्मदिन को एक अंतरराष्ट्रीय दिवस के तौर पर स्वीकार किया है। इस दिवस के आयोजन के पीछे संयुक्त राष्ट्र संघ की सोच रही है कि प्रत्येक व्यक्ति और संगठन इस दिवस को अपना 67 मिनट समय दूसरे की सहायता करने में लगाए। 67 मिनट का यह समय नेल्सन मंडेला के सामाजिक न्याय के लिए किए गए 67 वर्षो के लंबे युद्ध को इंगित करता है।
भारत में सम्मान
वर्ष 1990 में मंडेला को भारत के सबसे बड़े सम्मान भारत रत्न से नवाजा गया। उन्हें यह पुरस्कार दक्षिण अफ्रीका में रंगभेद के खिलाफ चलाए गए आंदोलन के लिए दिया गया था। वर्ष 1999 में मंडेला को अहिंसा के वैश्विक आंदोलन के लिये गांधी-किंग एडवर्ड पुरस्कार से नवाजा गया। उन्हें यह पुरस्कार महात्मा गांधी की पौत्री इला गांधी ने दिया।
राजनीति से इतर जीवन
वर्ष 1999 में राष्ट्रपति पद से हटने के बाद मंडेला विभिन्न सामजिक और मानवाधिकार संगठनों के लिए वकालत का काम करने लगे। उन्होंने नेल्सन मंडेला फाउंडेशन, नेल्सन मंडेला चिल्ड्रेन्स फंड और मंडेला रोडेश फाउंडेशन को स्थापित करने में सहयोग दिया। इसके अलावा उनकी प्राथमिकताओं में एड्स जैसी बीमारी से लड़ना भी शामिल था। मंडेला ने अपने जीवन काल में कई पुस्तकों का प्रकाशन किया।
उनमें से "नो इजी वाक टू फ्रीडम", लांग वाक टू फ्रीडम, "नेल्सन मंडेला : द स्ट्रगल इज माइ लाइफ" प्रमुख हैं। वर्ष 1997 में उनके जीवन पर "मंडेला एण्ड डी क्लार्क" नाम से फिल्म भी बन चुकी है। इसके अलावा 1992 की फिल्म "माल्कोम" भी उनके जीवन से प्रभावित रही है।
मंडेला व महात्मा गांधी
मंडेला के व्यक्तित्व पर महात्मा गांधी का गहरा प्रभाव था। द.अफ्रीका में नस्लभेद के खिलाफ किए गए संघर्षो की प्रेरणा भी उन्हें महात्मा गांधी से ही मिली, क्योंकि वो पहले व्यक्ति थे, जिन्होंने दक्षिण अफ्रीका में जाकर नस्लभेद और रंगभेद के खिलाफ बगावत का झंडा बुलंद किया था। वर्ष 2000 में टाइम पत्रिका को दिए गए साक्षात्कार में उन्होंने कहा था कि महात्मा गांधी उपनिवेशवाद को उखाड़ फेंकने वाले क्रांतिकारी थे। दक्षिण अफ्रीका के स्वतंत्रता आंदोलन को मूर्त रूप देने में मैंने उनसे ही प्रेरणा पाई।
नाम
नेल्सन मंडेला
जन्म
18 जुलाई 1918
(दक्षिण अफ्रीका में मबासा नदी के किनारे ट्रांस्की के मवेजो गांव में)
पिता
गाडला हेनरी फाकानिस्वा
मां
नेक्यूफी नोस्केनी
पत्नी
इवलिन मेस
(पहली पत्नी 1944-1957)
नोमजामो विनी मेडीकिजाला
(दूसरी पत्नी (1957-1996)
ग्रेस मेकल
(तीसरी पत्नी 1998 से अब तक)
बच्चे
छह
शिक्षा
हेल्डटाउन कॉलेज से स्नातक।
विशेष
द.अफ्रीका में मंडेला को मदिबा के नाम से भी जाना जाता है।
डेला गोरों के बंधा, बड़ा मरकहा जीव ।
जवाब देंहटाएंकालों को मारा किया, दुःख दुर्दशा अतीव ।
दुःख दुर्दशा अतीव, नींव के अनगढ़ पत्थर ।
चोट खाय वे मनुज, बैठ जाते थे थककर ।
दिला दिया सम्मान, हिलाया देश अकेला ।
आया गाँधी एक, जियो नेल्सन मंडेला ॥