कृष्ण के बाल सखा सुदामा जी का मंदिर
पोरबंदर शहर में एमजी रोड पर स्थित है कृष्ण के बाल सखा सुदामा जी का मंदिर। द्वारका में कृष्ण विराजते हैं तो उनके मित्र सुदामा विराजते हैं पोरबंदर में, इसलिए पोरबंदर को सुदामापुरी भी कहा जाता है। किसी जमाने में यहां जंगल हुआ करता था। यहीं पर संदीपनी ऋषि का आश्रम भी था। सुदामा मंदिर, बापू के घर कीर्ति मंदिर से कुछ दूरी पर ही है। सुदामा यानी महाभारत काल के एक प्रेरक व्यक्तित्व, जो अपनी गरीबी में जीते हैं, लेकिन अपने बाल सखा राजा कृष्ण से कोई मदद नहीं लेना चाहते। बाद में पत्नी की सलाह पर वे कृष्ण की मदद लेने जाते हैं। कृष्ण और सुदामा की दोस्ती की कहानी पूरे देश में सुनाई जाती है। हैरानी की बात है कि कृष्ण के मंदिर तो देश भर में बने हैं, लेकिन सुदामा जी का एकमात्र मंदिर पोरबंदर में ही है।
सुदामा मंदिर में सुदामा जी की प्रतिमा के अलावा उनकी पत्नी सुशीला की प्रतिमा भी लगी है। मंदिर बहुत भव्य नहीं है, लेकिन इसका अपना महत्व है। सुदामा में खास तौर पर निम्न मध्यमवर्गीय और गरीब लोगों की काफी आस्था है। सुदामा समाज के अंतिम लोगों के बीच प्रिय हैं, जैसे कि बापू। मंदिर परिसर में एक सुदामा कुंड भी है, जो किसी पुरानी बावड़ी जैसा है। मंदिर के बगल में 84 का चक्कर है। यह 84 लाख योनियों के बीच आत्मा के भटकाव का प्रतीक है। इसमें घुसने के बाद आप निकलने की कोशिश करेंगे, लेकिन निकल नहीं पाएंगे। वैसे कोई-कोई निकल भी जाता है। सुदामा मंदिर परिसर में बच्चों के लिए झूले, पार्क आदि बनाए गए हैं।
सुदामा मंदिर में महिलाओं की मंडलियां रोज कीर्तन करने आती हैं। ये अलग—अलग कई मंडलियां हैं। ये महिलाएं मंदिर में आने के बाद देवी-देवताओं की तस्वीरें सजाती हैं। उसके बाद बैठक लगा कर पूरी आस्था से देर तक ईश्वर की वंदना में लीन हो जाती हैं।
पोरबंदर शहर में एमजी रोड पर स्थित है कृष्ण के बाल सखा सुदामा जी का मंदिर। द्वारका में कृष्ण विराजते हैं तो उनके मित्र सुदामा विराजते हैं पोरबंदर में, इसलिए पोरबंदर को सुदामापुरी भी कहा जाता है। किसी जमाने में यहां जंगल हुआ करता था। यहीं पर संदीपनी ऋषि का आश्रम भी था। सुदामा मंदिर, बापू के घर कीर्ति मंदिर से कुछ दूरी पर ही है। सुदामा यानी महाभारत काल के एक प्रेरक व्यक्तित्व, जो अपनी गरीबी में जीते हैं, लेकिन अपने बाल सखा राजा कृष्ण से कोई मदद नहीं लेना चाहते। बाद में पत्नी की सलाह पर वे कृष्ण की मदद लेने जाते हैं। कृष्ण और सुदामा की दोस्ती की कहानी पूरे देश में सुनाई जाती है। हैरानी की बात है कि कृष्ण के मंदिर तो देश भर में बने हैं, लेकिन सुदामा जी का एकमात्र मंदिर पोरबंदर में ही है।
सुदामा मंदिर में सुदामा जी की प्रतिमा के अलावा उनकी पत्नी सुशीला की प्रतिमा भी लगी है। मंदिर बहुत भव्य नहीं है, लेकिन इसका अपना महत्व है। सुदामा में खास तौर पर निम्न मध्यमवर्गीय और गरीब लोगों की काफी आस्था है। सुदामा समाज के अंतिम लोगों के बीच प्रिय हैं, जैसे कि बापू। मंदिर परिसर में एक सुदामा कुंड भी है, जो किसी पुरानी बावड़ी जैसा है। मंदिर के बगल में 84 का चक्कर है। यह 84 लाख योनियों के बीच आत्मा के भटकाव का प्रतीक है। इसमें घुसने के बाद आप निकलने की कोशिश करेंगे, लेकिन निकल नहीं पाएंगे। वैसे कोई-कोई निकल भी जाता है। सुदामा मंदिर परिसर में बच्चों के लिए झूले, पार्क आदि बनाए गए हैं।
सुदामा मंदिर में महिलाओं की मंडलियां रोज कीर्तन करने आती हैं। ये अलग—अलग कई मंडलियां हैं। ये महिलाएं मंदिर में आने के बाद देवी-देवताओं की तस्वीरें सजाती हैं। उसके बाद बैठक लगा कर पूरी आस्था से देर तक ईश्वर की वंदना में लीन हो जाती हैं।