व्यक्ति समय का करें अंकन: आचार्य
जसोल(बालोतरा) तेरापंथ धर्मसंघ के आचार्य महाश्रमण ने जीवन की नश्वरता के बारे में कहा कि वृक्ष का पका हुआ पत्ता टूटकर गिरता है। वैसे ही मनुष्य का जीवन भी समाप्त हो जाता है। व्यक्ति अध्यात्म के प्रति जागरूक रहे। समय कभी ठहरता नहीं है। समय निरंतर गतिमान रहता है। समय का लाभ जल्दी उठाने वाले को निष्पति भी जल्दी मिल सकती है। आचार्य बुधवार को जसोल चातुर्मास धर्मसभा को संबोधित कर रहे थे। उन्होंने कहा कि कल का अपना क्रम होता है। समय स्वयं धन होता है। समय को भी व्यक्ति सोचकर व महत्वपूर्ण कार्य में ही लगाए। कल पर कार्य को छोडऩे का अधिकार उसी को है, जिसकी मौत के साथ दोस्ती है या जो मौत से भी तेज दौड़ता है, या फिर जो जानता है कि मैं अमर हूं। लेकिन यह सब असंभव है, अत: कल पर बात को छोडऩा नहीं चाहिए। हर व्यक्ति की मौत निश्चित है। व्यक्ति समय का अंकन करें। समय व्यक्ति की प्रतीक्षा नहीं करता। उन्होंने कहा कि एक वर्ष का मूल्य उस विद्यार्थी के लिए कितना है जो परीक्षा में उत्तीर्ण नहीं होने से अपने साथियों से एक क्लास पीछे रह जाता है। एक महीने का महत्व उस बच्चे के लिए कितना है जो एक मास पूर्व अविकसित पैदा होता है। एक सप्ताह का मूल्य एक साप्ताहिक पत्रिका के लिए कितना है जिसको सप्ताह भर की तैयारी करनी पड़ती है। एक दिन का महत्व उसके लिए कितना है जो अपने किसी प्रिय का इंतजार कर रहा हो। एक घंटे का मूल्य उस घर के लिए कितना है, जिसमें आग लगी हो। एक मिनट का मूल्य उस यात्री से पूछो, जिसकी एक मिनट की देरी की वजह से गाड़ी छूट गई। एक सैकेंड का मूल्य उस व्यक्ति के लिए कितना है जो दुर्घटनाग्रस्त होने से बाल-बाल बचा है। इसलिए व्यक्ति समय को बर्बाद नहीं कर उसे उपयोग करने का प्रयास करें।
मंत्री मुनि सुमेरमल ने कहा कि जो व्यक्ति धर्म को समझ लेता है उसके बाद वह धर्म करने में प्रमाद नहीं करता। अगर धर्म को समझने के बाद लक्ष्य को निर्धारित करने पर भी प्रमाद करता है तो वह व्यवहार में ही उलझा रहता है। परम व्यक्ति के भीतर होता है। व्यक्ति पदार्थ के प्रति उन्माद व पागलपन न दर्शाए। व्यक्ति अपने भाव परिग्रह को क्रम करने का प्रयास करे।
मंत्री मुनि सुमेरमल ने कहा कि जो व्यक्ति धर्म को समझ लेता है उसके बाद वह धर्म करने में प्रमाद नहीं करता। अगर धर्म को समझने के बाद लक्ष्य को निर्धारित करने पर भी प्रमाद करता है तो वह व्यवहार में ही उलझा रहता है। परम व्यक्ति के भीतर होता है। व्यक्ति पदार्थ के प्रति उन्माद व पागलपन न दर्शाए। व्यक्ति अपने भाव परिग्रह को क्रम करने का प्रयास करे।