गुरुवार, 31 मार्च 2011

राजस्थान दिवस पर जैसलमेर में साँस्कृतिक संध्या खूब जमी


राजस्थान दिवस पर जैसलमेर में साँस्कृतिक संध्या खूब जमी
        जैसलमेर, 31 मार्च/राजस्थान दिवस के उपलक्ष्य में जैसलमेर के सोनार दुर्ग स्थित अखेप्रोल प्रांगण में बुधवार रात आयोजित साँस्कृतिक संध्या खूब जमी और इसने राजस्थानी लोक रंगों और रसों की सरिताएं बहाते हुए रसिकों को खूब आनंदित किया।
        सांस्कृतिक संध्या की अध्यक्षता जिला कलक्टर गिरिराजसिंह कुशवाहा ने की जबकि विधायक छोटूसिंह भाटी मुख्य अतिथि तथा जैसलमेर नगरपालिकाध्यक्ष अशोक तँवर विशिष्ट अतिथि थे। सांस्कृतिक संध्या का संचालन ओजस्वी संचालक, व्याख्याता मनोहर महेचा ने किया।
        आरंभ में अतिथियों ने सरस्वती की तस्वीर पर पुष्पहार अर्पित कर एवं दीप प्रज्वलित कर सांस्कृतिक संध्या का शुभारंभ किया। सांस्कृतिक संध्या में जिला शिक्षा अधिकारी श्रीमती गिरिजा शर्मा, जैसलमेर नगरपालिका आयुक्त मूलाराम लोहिया सहित अनेक अधिकारी, प्रबुद्धजन, स्कूली बच्चे और देशी-विदेशी पर्यटकों ने गीत-संगीत-नृत्यों आदि का आनंद लिया।
        संध्या की शुरूआत इमाम खां के सुरणाई वादन से हुई। ढोलक पर गुले खां, हारमोनियम पर करीम खां ने संगत की। नाद स्वरम संस्था के कलाकारों ने मशहूर राजस्थानी गीतकार कन्हैयालाल सेठिया के प्रसिद्ध गीत ‘धरती धोरां री....’’ की सुमधुर प्रस्तुति पर सोनार किले की घाटी गूंजा दी। इनमें मुख्य गायक शोभा हर्ष एवं रवि शर्मा के साथ तबले पर जयप्रकाश हर्ष, हारमोनियम पर अनिल पुरोहित ने साथ दिया।
        लिटिल हार्ट स्कूल के नन्हें कलाकारों ने ‘केसरिया बालम आवो नी पधारों म्हारे देस...’ की माण्ड गायकी के साथ ही सर पर मंगल कलश लिए फूलों की वृष्टि करते हुए भावपूर्ण नृत्य पेश कर खूब वाहवाही लूटी।
        लोकगायक लुकमान खां एवं साथियों द्वारा ‘हिण्डो सावण रो..’ लोक गीत की मधुर प्रस्तुति दी। चरवाहों के परम्परागत लोकवाद्य ‘अलगोजा’ पर मोहनराम लोहार ने माधुर्य भरी लोक धुनों पर रसिकों को खूब रिझाया।
        प्रतापसिंह भाटी एवं शिवा द्वारा कच्छी घोड़ी नृत्य की सुन्दर प्रस्तुति करते हुए पूरे माहौल को तरंगायित कर दिया। लोक नृत्यांगना दुर्गा और रानी ने चरी नृत्य की धूम मचाते हुए सभी को मंत्रमुग्ध कर दिया। खेते खां, रईस खां ने मोरचंग वादन की स्वर लहरियों पर मस्त कर दिया। ढोलक पर संगत बीरबल खां ने की।
        लोकगायक थाने खां द्वारा वर्तमान दौर के प्रसिद्ध लोक गीत ‘‘जद देखूं बना री लाल लाल अंखियाँ, मैं नहीं डरूं सा...’’ ने प्रेम और श्रृंगार रस की बारिश करा दी।
        घासीराम और उनकी जोड़ायत ने ‘चम चम चमके चुनरी’’ के बोल पर भोपा-भोपी नृत्य पर लोक नृत्य और गायन की विशिष्ट विधाओं से समा बाँध दिया।



        ढोलक और खड़ताल की जुगलबंदी पर खेते खां, देव खां, लतीफ खां ,गुलाम खां, पेपे खां ने दोनों लोक वाद्यों के समवेत स्वरों पर श्रोताओं को खूब आनंदित किया। अनु और शिवा एवं पार्टी द्वारा घुटना चकरी नृत्य और चक्का नृत्य पेश कर अनूठी भाव-भंगिमाओं और मुद्राओं से भरपूर मनोरंजन किया।

Rajasthani song Thane Kajaliyo banalyu thane Nina me ramalyu raj palka m...

hane Kajaliyo banalyu Thane Nina me ramalyu raj palka me band kar rakhuli

घुड़लो घूमे ला जी, घुमेला


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घुड़लो घूमे ला जी, घुमेला 


बाडमेर माट में माटोळी घूमे, कोठी में ज्वारा रे.... गणणौर के ये गीत अब बाडमेर जैसलमेर की गलियों में सुनाई दे रहे हैं। लड़कियों और महिलाओं का इस त्योहार के प्रति आकर्षण देखते ही बन रहा है। घुड़ले के तहत शाम के समय लड़कियां एकत्रित होकर सिर पर छिद्र किया हुआ घड़ा लेकर, जिसमें दीपक जला सिर पर धारण कर समूह में घूमती है और गवर के गीत गाती है। इस त्योहार के प्रति बालिकाओं में ज्यादा उत्साह रहता है। बालिकाएं १५-२० की संख्या में झुंड में गली-गली में घुड़ले के गीत गाती है। 
गली गली घुम रहा है घुड़ला
शहर के कई गली मोहल्लें में घुड़ला लिए बालिकाएं एवं महिलाएं देखी जा सकती है। घुड़ले को मोहल्लें में घुमाने के बाद बालिकाएं एवं महिलाएं अपने परिचितों एवं रिश्तेदारों के यहां घुड़ला लेकर जाती है। घुड़ला लिए बालिकाएं मंगलगीत गाती हुई सुख व समृद्धि की कामना करती है।
रखा जाता है उपवास
इन दिनों कई लड़कियों द्वारा गणगौर माता का उपवास भी रखा जाता है। जो महिलाएं और लड़कियां परंपरागत ढंग से उपवास रखती आ रही हैं। उन्होंने तो इस बाद उपवास रखा ही साथ ही कई नई लड़कियों ने भी इस पूजा में अपना सहयोग दिया। हाल ही में जिनकी शादी हुई उन महिलाओं ने अपनी पहली गणगौर अपने मायके में मनाई। साथ ही गली-गली में गूंजने वाले लोक गीतों में अपनी सहभागिता निभाई। शहर के साथ ग्रामीण क्षेत्रों में भी गणगौर की धूम देखी जा सकती है

मल्लीनाथ पशु मेला तिलवाडा




मल्लीनाथ पशु मेला तिलवाडा
मेलों से बढ़ती हैअपणायत’
बाडमेर जिला कलेक्टर गौरव गोयल ने कहा कि ये मेला प्रदेश में ही नहीं बल्कि पूरे देश में विख्यात है।प्रशासनिक स्तर पर इस मेले का वेबसाइट बनाकर प्रचार-प्रसार किया जाएगा ताकि विदेशी पर्यटक भी ज्यादा संख्या में यहां आकर मेले का लुत्फ उठा सकें।पशुपालकों की सुविधा के लिए मेला अवधि के दौरान तिलवाड़ा स्टेशन पर रेलों के ठहराव के संबंध में डीआरएम से बात की है।
मेले हमारी संस्कृति के प्रतीक है,मेलों के आयोजन से आपसी अपणायत बढ़ती है।
ये बात बाड़मेर-जैसलमेर क्षेत्र के सांसद हरीश चौधरी ने निकटवर्तीतिलवाड़ा में मल्लीनाथ पशु मेले के झंडारोहण के अवसर पर मेले में उपस्थित पशुपालकों को संबोधित करते हुए कही। उन्होंने कहा कि आमजन का जुड़ाव मेलों से रहता है।लगभग ७५० साल पुराने इस मेले की परंपरा को आज भी क्षेत्र के ग्रामीण बचाये रखे हुए हैं।ये एक गौरव का विषय है।मालाणी की परंपरा रही हैकि यहां मेहमान का सत्कार तन-मन-धन से किया जाता है।मेले में आने वाले पड़ोसी राज्यों के पशुपालकों को पूरी अपणायत दें जिससे कि वो प्रभावित होकर बार-बार इस मेले में आएं।उन्होंने मेले में दिनोंदिन घटने वाले पशुओं की संख्या पर चिंता जताते हुए ग्रामीणों को पशुपालन की ओर रूझान रखने की बात कही।विधायक मदन प्रजापत ने कहा कि सरकार ऐसे मेलों को प्रोत्साहन देने में कोईकसर नहीं रख रही है।उन्होंने कहा कि आगामी वर्षतक नदी के बीच बने मार्ग पर सीसी रोड का निर्माण करवा दिया जाएगा।उन्होंने कहा कि मेले मे आने वाले पशुपालकों को पेयजल समस्या का सामना करना पड़ रहा है।आगामी वर्ष तक इस समस्या के समाधान के लिए भी पुख्ता प्रबंध कर दिए जाएंगे।

मंगलवार, 29 मार्च 2011

foto...राजस्थान दिवस बाड़मेर: ऐतिहासिक पृष्ठभूमि...राजस्थान के पश्चिमी सीमान्त का ंिसंहद्वार बाड़मेर











पधारो म्हारे देश.









राजस्थान दिवस पर सभी को हार्दिक बधाई ओर शुभ कामनाऐं.......

आपणों राजस्थान आपण्ी राजस्थानी


बाड़मेर: ऐतिहासिक पृष्ठभूमि



राजस्थान के पश्चिमी सीमान्त का ंिसंहद्वार बाड़मेर बहु-आयामी ऐतिहासिक पृष्ठभूमि से सम्पन्न रहा है। पारम्परिक काव्य-साहित्य, समकालीन अभिलेख तथा विविध साक्ष्य इसके प्रमाण है। थार के इस मरु प्रान्त के परिपेक्ष्य में रामायण एवं महाभारत के अन्तर्गत निर्देश समुपलब्ध होते है। रामायण के युद्व काण्ड में सेतु-बन्ध प्रसंग के अन्तर्गत सागर-शोषण हेतु चढ़े अमोध राम बाण के उत्तरवर्त्ति द्रुमकुल्य प्रदेश के आभीरो पर सन्धन से मरुभूमि की उत्पत्ति का वर्णन है।


महाभारत के अश्वमेधिक पर्वान्तर्गत भारत युद्वोपरान्त श्री कृष्ण के द्वारिका प्रत्यागमन प्रसंग की उनकी इसी मरुभमि में उत्तक ऋषि से भेंट और यहां जल की दुर्लभता विषयक उल्लेख मिलते है। मौर्यकाल में सौराष्ट्र से संयुक्त क्षेत्र के रुप यह प्रान्त चन्द्रगुप्त मौर्य के साम्राज्य के अन्तर्गत था। तत्पश्चात इस पर इण्डोग्रिक शासको, मिलिन्द तथा महाक्षत्रप रुद्रदमन का शासन रहा। कतिपय इतिहासज्ञो के अनुसार यूनानियों द्वारा उल्लेख श्ग्व्।छ।श् दुर्ग सम्भवतः सिवाना क्षेत्रान्तर्गत था।


परवर्ती काल में इस क्षेत्र का गुप्त साम्राज्य के अन्तर्गत होना मीरपुर खास में गुप्तकालीन बौद्व स्मारक प्राप्त होने से प्रमाणित होता है।


पूर्व मध्यकालिन इतिहास के परिप्रेक्ष्य में डॉ. गोपीनाथ शर्मा के अनुसार यह प्रदेश गुर्जरत्रा कहलाता था। चीनी यात्री हेंनसांग ने इसी गुर्जर राज्य की राजधानी का नाम पीलो मोलो भीनमाल अथवा बाड़मेर बताया है। डॉ. जे एन आसोपा क ेमत में गुर्जर शब्द अरब यात्रियों द्वारा गुर्जर प्रतिहारो हेतु प्रयुक्त सम्बोधन जुर्ज का समानार्थक है। जिसकी व्युत्पति मरुभूमि में प्रवाही जोजरी नदी से बताई गई है। इस प्रकार प्रतिहारो से सम्बन्ध गुर्जर विशेषण भौगोलिक महत्व का सूचक है। जो यहां गुर्जर प्रतिहार अधिराज्य को निर्दिष्ट करता है। इस तथ्य की पुष्टि 936 ई. के चेराई अभिलेख से होती है। गुर्जर प्रतिहारो के उपरान्त यहां परमारो का अधिपत्य रहा।


मरुमण्डल के ये परमार आबू के परमारो से पृथक माने जाते है। 1161 ई. के किराडू अभिलेख औरा 1183 ई. के मांगता ताम्रपत्र के अन्तर्गत सिन्धुराज (956ई.) को ‘सम्भून मरुमण्डले‘ कहकर यहां के परमारो का आदिपुरुष निर्दिष्ट किया गया है। इनकी राजधानी किरात कूप (किराडू) थी। फिर यहां गुजरात के चालुक्यों का अधिकार ज्ञात होता है।


1152 ई. के कुछ पूुर्व किराडूु पर कुमारपाल चाणक्य के सामंत अल्हण चाहमान का अधिकार था। किन्तु 1161 ई. के किराडू अभिलेख के अनुसार सिंधुराज के वंशज (9वीं पीढ़ी) सोमेश्वर परमार द्वारा अधीनता मानने से संतुष्ट कुमारपाल द्वारा उसे किराडू पुनः प्रदान कर दिया गया। 1171 ई से 1183 ई. तक क्रमशः कीर्त्तिपाल चौहान, मुहम्मद गौरी (1178ई) भीमदेव सोलकी द्वितीय तथा जैसलमेर के भाटियो के किराडू पर अनवरत आक्रमणो एवं तत्कालीन शासको आसलराज और बन्धुराज के अक्षम प्रतिरोध से यहां का परमार राज्य शनै‘ शनै निःशेष होता चला गया।


किराडू राज्य के अवसान का समानान्तर सुन्धामाता मंदिर में चौहान चाचिगदेव के शिलालेख में विर्णत वाग्भट्ट मेरु अथवा बाहड़मेर का उत्थान प्रायः बारहवी शती ई. के उत्तरार्द्व में होना विदित होता है। इसकी संस्थापना का श्रेय क्षमाकल्याण रचित खरतरगच्छ पट्टावली के अनुसार सिद्वराज जयसिंह (1094-1142ई) के मन्त्री उदयन के पुत्र वाग्भट्ट अथवा बाहड़देव परमार को प्रदान किया गया है।


स्थापना के पश्चात यहां जैन श्रावको द्वारा मन्दिर एवं वाटिकाओं के निर्माण तथा 1252 में आचार्य जिनेश्वर सूरि के आगमन की जानकारी मेरुतुग कृत प्रबन्ध चिन्तामणि से मिलती है। बाहड़मेर के आदिनाथ मन्दिर अभिलेख (1295 ई) से हयां परमारो के उपरान्त चौहानो के शासन के संकेत प्राप्त होते है।


कान्हड़ दे प्रबन्ध (पद्मनाम रचित) के अन्तर्गत 1308-09 में अलाउदीन खिलजी की सेनाओं द्वारा जालौर सिवाना अभियान के क्रम में बाहड़मेर पर भी आक्रमण किये जाने सम्बन्धी उल्लेख है।


इस अराजकता का लाभ उठाकर राव धूहड़ राठौड़ के पुत्र राव राजपाल ने लगभग 1309-10ई में यहां के परमारो के प्रायः 560 ग्रामो पर अधिकार कर लिया। इसी के पराक्रमी वंशज रावल मल्लीनाथ के नाम पर इस क्षेत्र को मालानी की संज्ञा से अभिहित किया जाने लगा।


15 वीं शती ई के पूर्वाद्व में मल्लीनाथ के पौत्र मण्डलीक द्वारा बाहड़मेर और चौहटन के शासको क्रमश मुग्धपाल (माम्पा) तथा सूंजा को परास्त करा अपने अनुज लूणकर्ण राठौड़ा (लूंका) को वहां का राज्य सौप दिया गया। इस प्रकार जसोल बाड़मेर एवं सिणदरी जहां मल्लीनाथ के वंशाजो द्वारा शासित हुए वही नगर और गुढ़ा उनके सबसे छोटे भाई जैतमाल की सन्तति के अधिकार मेें रहे। जबकि मंझले भाई वरीमदेव के पुत्र चूण्डा ने परिहारो से मण्डोर छीना। बाहड़मेर में लुंका जी की चौथी पीढी के शासक राव भीमाजी रत्नावत को जोधपुर नरेश राव मालदेव के सामान्तो जैसा भैैर व दासोत और पृथ्वीराज जैैतावत द्वारा लगभग 1551-52 ई. में पराजित किया गया। जैसलमेर के रावल हरराय की सहायता के पश्चात भी पुनः हार जाने एवं बाहड़मेर के राठौड़ो की रतनसी तथा खेतसी के धड़ो में बट जाने पर भीमाजी ने बाहड़मेर छोड़कर बापड़ाऊ क्षेत्रान्तर्गत नवीन बाहड़मेर अथवा जूना और नवीन बाहड़मेर बसाया तभी से पुराना बाड़मेर जुना बाड़मेर कहा जाने लगा। परवर्ती काल में जैसलमेर के सहयोग से भीमाजी ने जुना बाहड़मेर तथा शिव आदि अपने खोए प्रदेश पुनः प्राप्त कर लिए। उपयुक्त तथ्यों की जानकारी विविध ख्यातो विशेषतः नेनसी की और राठौड़ वंश के इतिहास ग्रन्थ से समुचित रुप से हो जाती है। बाड़मेर की वणिका पहाड़ी की तलहटी के जैन मन्दिर के शिलालेख के अन्तर्गत 1622 ई यहां उदयसिंह का शासन निर्दिष्ट है। परवर्ती शासको रावत मेघराज, रामचन्द्र और साहबाजी, भाराजी आदि के सघर्ष प्रायः 19 वी शती ई. के आरम्भ तक यहां की राजनीति तथा समाज को प्रभावित करते रहें। तब मालानी परगने में प्रायः 460 ग्राम 14918 वर्ग किमी क्षेत्रान्तर्गत थे। मारवाड़ नरेश मानसिंह (1804-43 ई) के काल में यहां के सरदारो एवं भोमियों द्वारा गुजरात कच्छ तथा सिंध में उत्पाद मचाने एवं ब्रिटिश कम्पनी सरकार के आदेश के बाबजूद मानसिंह के उन्हे नियत्रित करने में विफल रहने पर रावत भभूतसिंह के समय 1836 ई. में चौहटन मालानी को बम्बई सरकार के अन्तर्गत ब्रिटिश अधिकार में ले लिया गया। सभी उत्पादी सरदारो को कैद कर राजकोट एवं कच्छ भुज भेज दिया गया। क्षेत्र में शान्ति और व्यवस्था स्थापित होने पर मालानी को प्रशासन 700/- मासिक वेतन प्राप्त एक अधीक्षक को सौंपा गया, जिसकी सहायतार्थ मुम्बई रेग्यूलर केवेलरी का दस्ता तथा गायकवाड़ इन्फेन्ट्री के 100 घोड़े बाड़मेर मुख्यालय में रहते थे। (कच्छ भुज के रावल देसुल जी की जमानत से मुक्त हुए रावत भभूतसिंह भी अंग्रेजो से हुए समझौते के अनुसार बाड़मेर आ गए।) 1839 ई में मालानी परगना मुम्बई सरकार से ए.जी.जी. राजस्थान को स्थानान्तरित कर दिया गया। 1844 ई में गायकवाड़ केवेलरी का स्थान 150 मारवाड़ के घुड़सवारो ने ले लिया। अन्तिम स्थानीय अधीक्षक कैप्टन जैकसन के यहां से लौटने पर मारवाड़ के पोलिटीकल एजेन्ट की सता आरम्भ हुई। इस अतिरिक्त प्रभार हेतु उसके लिए 100/- मासिक भत्ता नियत था। 1865 ई में नियुक्त पोलिटिकल एजेन्ट कैप्टन इम्पे के तत्वावधान में मालानी के विस्तृत सामाजिक आर्थिक सर्वेक्षण के प्रभाव स्वरुप जसोल तथा बाड़मेर में 1867 ई में वर्नाक्यूलर स्कलो के माध्यम से आधुनिक शिक्षा का समारम्भ हुआ। सर्वे रिपोर्ट 4 मई 1868 को प्रकाशित हुई। परवर्त्ती काल में इस क्षेत्र के ठाकुरो द्वारा प्रत्यक्षतः मारवाड़-प्रशासन के अधीन होने की इच्छा पर। 1 अगस्त 1891 को मालानी परगना मारवाड़ राज्य के अन्तर्गत आ गया। आगामी छः वर्षो में मालानी प्रशासन सुचारु एवं सुव्यवस्थित रहने, अपराधो में कमी होने और किसी भी प्रकार की शिकायत न आने पर जोधपुर में महाराजा सरदार सिंह को 1898 ई में यहां के सम्पूर्ण अधिकार प्रदान कर दिये गये। 22 दिसम्बर 1900 ई को मालानी के हृदयस्थल से गुजरने वाली बालोतरा सादीपाली रेल्वे लाइन का शुभारम्भ हुआ।


स्वतन्त्रता प्राप्ति तक जोधपुर प्रशासन के अधीनस्थ रहते हुए देशी रियासतो के भारतीय सघ में विलीनीकरण के उपरान्त मालानी परगना 1949 ई में बाड़मेर जिले के रुप में अस्तित्व मान हुआ। जो आधुनिक बाड़मेर कहलाया।

सोमवार, 28 मार्च 2011

. नाग ने लिया बदला ...


सांप को दिन में मारा था पत्थर, रात में आकर डस लिया

बाड़मेर शिव कस्बे में खेल-खेल में 3 बच्चों का सांप को पत्थर मारकर भगाना भारी पड़ गया। बच्चों से परेशान होकर उस वक्त भागे सांप ने देर रात आकर उन्हें डस लिया इससे एक बच्ची की मौत हो गई वहीं दो पर विष का असर बढ़ने से उनका का इलाज बाड़मेर अस्पताल में चल रहा है।

 ग्रामीणों के अनुसार सुगलाराम मेघवाल के घर शनिवार को दिन के समय इन बच्चों ने सांप को देखने के बाद पत्थर मार उसे भगाने की कोशिश की, इस पर सांप वहां से निकल गया। इसके बाद देर रात वह फिर लौटा और आंगन में सो रहे इन तीनों बच्चों को डस लिया, जिससे एक बालिका की मौत हो गई और दो अन्य पर विष का असर रहा । 

जानकारी मिलने पर परिजन बच्चों को सामुदायिक स्वास्थ्य केंद्र ले गए। जहां एक बालिका को मृत घोषित कर दिया। जबकि एक बालक व बालिका को उपचार के लिए बाड़मेर रेफर किया गया।

OM MANGALAM OMKAR MANGALAM BY JATIN