सोमवार, 15 अगस्त 2011

माउंट में बरसा साढ़े चार इंच पानी

माउंट में बरसा साढ़े चार इंच पानी
सिरोही। पिछले चौबीस घंटे के दौरान माउंट आबू में साढ़े चार इंच से भी ज्यादा पानी बरसा। वहां शनिवार को शुरू हुआ बारिश का दौर रविवार अलसुबह तक जारी रहा। रविवार को दिनभर गहरी धुंध छाई रही। जिले के अन्य हिस्सों में कहीं-कहीं हल्की फुहारें पड़ी। उधर, माउंट में अच्छी बारिश के बाद आबूरोड तहसील का बगेरी बांध ओवरफ्लो हो गया। रेवदर तहसील का टोकरा व करोड़ीध्वज बांध लबालब होने के कगार पर पहुंच गए हैं। ये कभी भी ओवरफ्लो हो सकते हैं।

माउंट आबू में रविवार सुबह आठ बजे समाप्त चौबीस घंटे के दौरान सर्वाधिक 116 (इस मौसम की अब तक कुल 1125), आबूरोड में 15 (595), पिण्डवाड़ा में 26 (632), रेवदर में 9 (333) व सिरोही में 34 (285.6) मिमी वर्षा रिकार्ड की गई।
सिरोही के प्रमुख पेयजल स्त्रोत अणगोर बांध का जलस्तर रविवार सुबह आठ बजे अणगोर बांध का जलस्तर 11.50 फीट, धान्ता का 13.20 फीट, वेस्ट बनास का 9.80 फीट, टोकरा का 30.50 फीट व करोड़ीध्वज का 6.30 मीटर मापा गया।

जर्जर भवन का छज्जा ध्वस्त
बारिश के दौरान जर्जर भवनों के नीचे से गुजरना एवं मकान में रहना खतरे से खाली नही है। शहर के वहित्रावास में शनिवार को बारिश के दौरान एक मकान ढह गया था। रविवार तड़के कृष्णापुरी मोहल्लें में स्थित कबूतर चौक के पीछे चम्पत पटेल के मकान का छज्जा गिर गया। हालांकि इस घटना से कोई नुकसान नहीं हुआ है।

बारिश से गिरी भवन की दीवार
माउंट आबू. बारिश से जगह-जगह मकानों के ढहने का सिलसिला बना हुआ है। स्काउट गाइड प्रशिक्षण केंद्र केम्प स्थल नम्बर दो के भंडारण भवन की दीवार अचानक गिर गई। इसमें शिविर प्रशिक्षण से सम्बंधित सामान रखा था। हादसे में किसी तरह के जानमाल का नुकसान नहीं हुआ। यह जानकारी स्काउट सीओ जितेंद्र भाटी ने दी।

आबूरोड. शहर में पिछले चौबीस घंटे में 18 मिमि बारिश दर्ज की गई। रविवार सुबह हल्की बारिश हुई। शनिवार देर रात से रूक-रूक कर हुई रिमझिम बारिश का दौर रविवार सुबह तक चला। दोपहर में धूप निकल आई। बाद में शाम होने तक बादलों और सूर्य देवता के बीच लुकाछिपी का खेल चलता रहा। पिछले वर्ष 14 अगस्त तक क्षेत्र में कुल 516 मिमि बारिश दर्ज की गई थी, जबकि इस वर्ष अब तक 580 मिमि बारिश दर्ज की गई है।

मंडार. क्षेत्र में शनिवार रात रूक-रूककर हल्की बूंदाबांदी का दौर जारी रहा। रविवार सुबह ग्यारह बजे से आधे घंटे तक हुई बारिश ने तरबतर कर दिया। सुबह धूप खिली। खेतों में भी पानी भर गया। बड़ेची एनीकट में पानी की अच्छी आवक होने से इससे सटे रेबारीवास में पानी भरने लगा है। वागाराम रेबारी ने बताया कि पाल के समीप ही बस्ती में दर्जनभर घरों को खतरा बना हुआ है। गवाडी व बाडों में पानी भरने से परेशानी झेलनी पड़ रही है। पानी में लगातार खड़े रहने से भेड़ों में भी रोग फैलने की आशंका है। सुबह पांच बजे से तीन बजे तक बिजली गुल रही। जेईएन कुलदीपकुमार ने बताया कि करेली बुढेश्वर मंदिर के समीप ट्रांसफार्मर पर फॉल्ट आने से समस्या हुइ। दोपहर को फॉल्ट दुरूस्त किया गया।

माउंट आबू. आबू की वादियों में बदली मौसम की फिजां से सैलानी खासे आनंदित हुए। रविवार को सवेरे धंुध छंटने के बाद निकली धूप व पहाडियों में छाई हरीतिमा व बहते झरने सैलानियों के आकर्षण का केंद्र बने रहे। सवेरे आठ बजे तक 24 घंटों में 116 मिमी बारिश होने से अब तक 1125 मिमी बारिश दर्ज की चुकी है। अपर कोदरा बांध को छोड़ लोअर कोदरा व नक्की झील समेत सभी जलाशयों में चादर चलने का क्रम जारी रहा। रविवार को हल्की बंूदाबांदी के साथ धंुध रही। अधिकतम व न्यूनतम तापमान क्रमश: 22 व 18 डिग्री सेल्सियस रहा।

पोसालिया. क्षेत्र में रविवार को दिनभर बादल छाए रहे। उमस और गर्मी से लोग त्रस्त रहे। खेतों में किसान अरण्डी की बुवाई करने में लगे हुए हैं।

रोहिड़ा. क्षेत्र में रविवार सुबह रिमझिम बारिश से दिनभर मौसम खुशगवार रहा। बादल छाए रहे। नदी-नालों में अभी पानी बह रहा है। इससे किसान खुश हैं। सनवाड़ा आर. में नाथूसिंह पुत्र सरदारसिंह के मकान की दीवार ढहने से भैंस घायल हो गई।
सरूपगंज. कस्बे में रविवार को रूक-रूककर तेज वर्षा होने से सड़क पर पानी जमा हो गया। जिले के सबसे बड़े वेस्ट बनास बांध में शाम साढ़े पांच बजे तक 9.90 फीट पानी की आवक हुई।

बागोड़ा में 90 एमएम बारिश



बागोड़ा में 90 एमएम बारिश
जालोर । जिला मुख्यालय समेत जिलेभर मे बारिश का दौर रविवार को भी जारी रहा। शहर मे जहां सुबह से ही बादलो का जमावड़ा आसमान पर रहा। वहीं एक-बार हल्की फुहारो ने ठंडक बनाए रखी। शहर मे कुल 4.6 मिमी बारिश रिकॉर्ड की गई। इसके अलावा सर्वाधिक बारिश बागोड़ा मे 90 मिमी दर्ज हुई। वहीं जसवंतपुरा मे 29, भीनमाल मे 21, रानीवाड़ा में 23, आहोर में 4.5 और सांचोर में एक मिमी बारिश रिकॉर्ड हुई। वहीं बारिश के इस अच्छे दौर ने किसानो के माथे से चिंता की लकीरें मिटा दी है।


भीनमाल. शहर सहित ग्रामीण क्षेत्र में तीन दिन बाद रविवार सुबह लोगों को सूरज के दर्शन हुए। दोपहर में रिमझिम फुहारें भी बरसी। दिनभर कभी धूप तो कभी छांव की स्थिति बनी रही। तीन दिन बारिश होने से मौसम सुहावना बन गया। क्षेत्र में बारिश के बाद किसान खेत-खलिहानों पर खेती कार्य में जुट गए।


सायला. क्षेत्र समेत आसपास के गांवों में रविवार को सुबह बारिश होने से सड़कों पर गलियों में पानी का बहाव हुआ। बारिश से मेघवालों का धोरा, चौधरियों का गोलिया, रेबारियों का वास, सांथुओं का वास, मुख्य बाजार, पंचायत समिति परिसर समेत कई स्थानों पर पानी का भराव होने से लोगों को परेशानी का सामना करना पड़ा। बारिश होने से किसानों के चेहरों पर रौनक नजर आई।



गुड़ाबालोतान. कस्बे समेत क्षेत्र भर में शनिवार की रात रिमझिम बारिश का दौर शुरू हुआ जो रविवार सवेरे तक जारी रहा। बारिश से सड़कों पर पानी का बहाव हुआ। कस्बे के थांवला मार्ग पर बारिश की वजह से कीचड़ फैल गया। जिससे राहगीरों को परेशानी का सामना करना पड़ा।

उम्मेदाबाद. कस्बे मे गत दो दिनों से हो रही बारिश से लोगों को राहत मिली है। शनिवार शाम हुई अच्छी बारिश के बाद रविवार दोपहर में हल्की बूंदाबांदी से मौसम खुशगवार हो गया।


बागरा. कस्बे सहित आसपास के गांवों में रविवार को शाम चार बजे आसमान मे छाए काले बादलों ने बरसना शुरू कर दिया। झमाझम हुई इस बारिश से ग्रामीणों को उमस भरी गर्मी से राहत मिली। बारिश में लोगों ने नहाने का आनंद उठाया।

बाकरारोड. कस्बे समेत आस पास के क्षेत्र मे इन दिनों मेघ मेहरबान है। कस्बे में रविवार शाम हुई बारिश से मौसम खुशगवार हो गया।

पानी ही पानी, परेशान जिंदगानी

पानी ही पानी, परेशान जिंदगानी

जैसलमेर। जिले में चहुंओर बारिश होने से कई गांवों में बारिश का पानी का जमा हो गया है। लंबे इंतजार के बाद हुई बारिश से जैसाणे में पानी ही पानी हो गया। जैसलमेर शहर में जोरदार बारिश के बाद कई स्थानों पर पानी भर गया, वहीं सिंहड़ार गांव में बारिश से घरों में पानी घुस आया, वहीं बईया, झिनझिनयाली, गुहड़ा, बोगनियाई, तेजपाला व मोढ़ा में पानी से रास्ते जाम हो गए। कुण्डा में तीन फीट तक पानी पहुंच गया। फतेहगढ़ तहसील अंतर्गत कुण्डा गांव के पूर्वसरपंच गोरधनसिंह के अनुसार क्षेत्र में लगातार बारिश हो रही है। बारिश के कारण पंचायत की भीलों की ढाणी में पानी जमा होने से यहां के करीब बीस परिवारों को ऊंचाईवाले स्थान पर शिफ्ट किया गया है।


इधर स्वर्णनगरी में लगातार तीसरे दिन भी बादल जमकर बरसे। सुबह जब लोगों ने आंख खोली, तो बूंदाबांदी का दौर जारी था। दोपहर तक कभी तेज तो कभी धीमी गति से बारिश होती रही। दोपहर करीब डेढ़ बजे बारिश का दौर थमा और सर्द हवा चलनी शुरू हो गई। करीब सवा दो बजे कुछ देर के लिए धूप खिली, लेकिन उसके बाद फिर आसमान को घटाओं ने घेर लिया। बारिश के कारण रेलवे स्टेशन मार्ग, बाड़मेर मार्ग, ग्रेफ कॉलोनी व कई निचले इलाकों में पानी जमा हो गया। यहां से आवाजाही के दौरान राहगीरों व वाहनचालकों को परेशानी झेलनी पड़ी। लगातार तीसरे दिन हुई बारिश के दौरान लोगों ने नहाने का लुत्फ उठाया।

बारिश ने किया नुकसान


स्वर्णनगरी में बारिश का लुत्फ उठा रहे लोगों के माथे पर उस समय चिंता की लकीरें छा गई जब बारिश के बाद हवा व धूप ने अपना असर दिखाना शुरू किया। ऎतिहासिक सोनार किले के कोटड़ी पाड़े में स्थित बुर्ज की दीवार सुबह भरभराकर गिर पड़ी और उसके पत्थर मोरी में बिखर गए। इसी तरह दुर्ग स्थित कुंड पाड़ा मोहल्ले में एक मकान भी भरभराकर ढह गया।


इससे कुंड पाड़ा व व्यासा पाड़ा का रास्ता जाम हो गया। मकान गिरने की आवाज सुनकर आसपास के लोग बाहर आ गए और वहां भीड़ जमा हो गई। हालांकि दोनों ही हादसों में कोई जनहानि नहीं होने से लोगों ने राहत की सांस ली। सूचना मिलने पर नगरपालिका आयुक्त मूलाराम लोहिया, तहसीलदार नाथूसिंह और नगरपालिका व तहसील कार्यालय के कर्मचारी व पार्षद भी मौके पर पहुंचे और घटना की जानकारी ली।

यहां भी बरसे मेघ


जैसलमेर में रविवार को शहरी व ग्रामीण क्षेत्रों में इन्द्रदेव मेहरबान रहे। जिले के मोकला, लाणेला, भादासर, सोनू, हाबूर, सूरों का गांव, खुईयाला, बांधा, नोख, नाचना, भदडिया, पांचे का तला, सत्याया, अवाय में भी जमकर बादल बरसे।
खुईयाला, निसं. क्षेत्र में दोपहर डेढ़ बजे छाई घटाओं ने सोनू, हाबूर, सूरों का गांव में जमकर बारिश की। मोकला, लाणेला, भादासर में भी अच्छी बारिश हुई। सुबह 11 बजे के दौर में सम में बादल करीब आधा घंटे जमकर बरसे। बरसाती नदी में पानी की तेज धार चलने लगी।
मोहनगढ़, निसं. तेज बारिश से कस्बे के गली-मोहल्लों में जगह-जगह पानी भर गया। रविवार को दिनभर रूक-रूककर बारिश होती रही। शनिवार से कस्बे के कई मोहल्लों में बिजली गुल रही, तो कहीं पर एक फेज में बिजली का वोल्टेज बिल्कुल ही कम रहा।
रामगढ़, निसं. कस्बे व आसपास के क्षेत्र में रविवार को पूरे दिन बारिश का दौर चलता रहा। दोपहर में हुई तेज बारिश से घरों की परनाले बहने लगी।
चांधन, निसं. कस्बे में शनिवार रात शुरू हुआ झमाझम बारिश का दौर अगले दिन रविवार को दोपहर तीन बजे तक चलता रहा। इससे खेतों व खड़ीनों में पानी भर गया।

बारिश से पांच गांवों में स्थितियां गंभीर







बारिश से पांच गांवों में स्थितियां गंभीर

शिव व कवास फिर आशंकित 
 
बाड़मेर। शिव क्षेत्र में रविवार अलसुबह हुई बारिश से पांच गांवों में स्थितियां गंभीर हो गई है। कई घरों में पानी घुस गया है। बाड़मेर-जैसलमेर सड़क मार्ग अवरूद्ध हो गया। शिव क्षेत्र में हुई तेज बारिश के चलते प्रशासन ने कवास को खाली करने की मुनादी करवा दी है। एहतियात के तौर पर रोहिली नदी के बहाव क्षेत्र के गांवों में पटवारी, ग्राम सेवक व अन्य सरकारी कर्मचारियों को हर पल की जानकारी के लिए मुस्तैद कर दिया है। रविवार शाम तक जिले के शिव में 25, हरसाणी 72,गडरारोड 25 एवं चौहटन में 15 एम एम बारिश हुई। 2006 की बाढ़ से तबाह हुए कवास गांव के लोग वापिस वहीं आकर बस गए है। इन लोगों के पुनर्वास के लिए बनाए न्यू कवास खाली पड़ा है।

शिव क्षेत्र में 36 घंटे हुई तेज बारिश ने प्रशासन के कान खड़े कर दिए है। रविवार को जिला प्रशासन ने पुराने कवास में बसे लोगों को चेतावनी देते हुए मुनादी करवाई है। कवास को खाली कर न्यू कवास में बसने और किसी भी सूरत में आगामी दस दिन तक पुराने कवास में रात नहीं बिताने की चेतावनी दी है।
शिव. शिव क्षेत्र में पिछले चालीस घण्टो से हो रही मूसलाधार बारिश से कई गांवों में पानी के भराव के कारण हालात विकट हो गए है। इन गांवों के अधिकतर तालाब, एनीकट, मैदान व खेतों में पानी ही पानी जमा हो गया है। यहां लगातार चल रही बारिश से ग्रामीणों में दहशत का माहौल हो गया है। राष्ट्रीय मरू उद्यान क्षेत्र के खबड़ाला, पुंजराज का पार, गिराब, द्राभा, साखली, रतरेडी, बिजावल, बन्धड़ा, हरसाणी, असाड़ी, तुड़बी, जुडिया, झणकली, चेतरोड़ी, मोसेरी, रोहिड़ी मे मूसलाधार बारिश हुई। ताणुमानजी, तुड़बी, असाड़ी, गिराब, उनरोड व मोसेरी गांवों में स्थित घरों में तीन तीन फीट पानी भरने से ग्रामीणों में अफरा तफरी मच गई। ग्रामीणों ने अपने स्तर पर बचाव करते हुए ऊंचाई वाले स्थानों की शरण ली। कई कच्चे मकान ढह गए एवं सैकड़ों मकानों में दरारे आने से खतरा पैदा हो गया है।
ताणुमानजी गांव में चार चार फीट पानी आने से हालात विकट हो गए है। गांव के पास स्थित एनीकट लबालब हो गया है। यदि यह एनीकट टूटता है तो बड़ा खतरा हो सकता है। यह पानी फोगेरा से मलबा गांव तक पहुंच सकता है। रविवार को शिव, गूंगा, नागड़दा, मौखाब, काश्मीर, पोषाल, भीयाड़, आरंग, चोचरा, कानासर, धारवी, पूषड़, हाथीसिंह का गांव, राजडाल, देवका, गूंगा, बरियाड़ा, बीसू, बलाई सहित कई गांवों में मूसलाधार बारिश हुई है। भीयाड़ गांव के कई घरो में पानी घुस गया।
अधिकारियों के वाहन फंसे- मूसलाधार बारिश के चलते मौका स्थिति का जायजा लेने पहुंचे अधिकारियों के वाहनों के मार्ग में फंसने से उन्हें प्रभावित ग्रामीणों तक पहुंचने में काफी कठिनाइयों का सामना करना पड़ा। विकास अधिकारी टीकमाराम चौधरी हरसाणी में एवं तहसीलदार का वाहन तुड़बी गांव में पानी में फंस गया। हरसाणी से बाड़मेर, ताणुमानजी, फोगेरा, गिराब, झिनझिणयाली, जुडिया एवं शिव मार्ग क्षतिग्रस्त होने से हरसाणी गांव का सम्पर्क टूट गया है। डीएनपी क्षेत्र मे सड़के क्षतिग्रस्त होने से ग्रामीणों के लिए आवागमन की समस्या खड़ी हो गई है। रविवार को बरियाड़ा गांव में मूसलाधार बारिश के बाद एनीकट टूटने से बाड़मेर-जैसलमेर सड़क मार्ग पर तीन तीन फीट पानी बहने से करीब तीन घण्टे आवागमन बाधित हुआ जिससे दोनो तरफ वाहनों की कतार लग गई।

स्वतंत्रता दिवस के पावन पर्व की हार्दिक बधाई ..शुभकामनाए...जय हिंद







स्वतंत्रता दिवस के पावन पर्व की हार्दिक बधाई ..शुभकामनाए...जय हिंद 

भारतीय वीरांगनाओं की ये शौर्य-गाथाएं !


भारतीय वीरांगनाओं की ये शौर्य-गाथाएं !


Hindi News PortalHindi News SiteHindi News WebsiteIndia Newsअरूणा आसफ अलीदुर्गा भाभीMastani BaiRani Laxmi Bai


क्रांति की शक्ति सिर्फ पुरुषों को ही आकृष्ट नहीं करती है बल्कि महिलाओं को भी वैसे ही आकृष्ट करती आ रही है, इसीलिए हर युग के इतिहास में महिलाओं की शौर्य-गाथाओं का प्रमुखता से वर्णन मिलता है। भारत में सदैव नारी को श्रद्धा की देवी माना गया है, जब अवसर आया तो इसी नारी ने चंडी का भी रूप धरा और अपनी अदम्य शक्ति का लोहा मनवाया। यूं तो स्त्रियों की दुनिया घर के भीतर मानी जाती है, शासन-सूत्र का सहज स्वामी भी पुरूष ही है। शासन और समर से स्त्रियों का सरोकार नहीं‘ जैसी तमाम पुरूषवादी धारणाओं और स्थापनाओं को ध्वस्त करती उन भारतीय वीरांगनाओं का जिक्र किए बिना 1857 से 1947 तक की स्वाधीनता की दास्तान अधूरी है, जिन्होंने अंग्रेजों को लोहे के चने चबवा दिए। इन वीरांगनाओं में से अधिकतर की सबसे बड़ी विशेषता यह थी कि वे किसी रजवाड़े में पैदा नहीं हुईं बल्कि आम आदमी के घर जन्म लेकर, अपनी योग्यता की बदौलत उच्चतर मुकाम तक पहुंचीं।
भारत में 1857 की क्रांति की अनुगूंज में दो वीरांगनाओं का नाम प्रमुखता से लिया जाता है-लखनऊ और झांसी में क्रांति का नेतृत्व करने वाली बेगम हजरत महल और रानी लक्ष्मीबाई। ऐसा नहीं है कि 1857 से पूर्व भारतीय वीरांगनाओं ने स्वतंत्रता आंदोलन में अपना जौहर नहीं दिखाया। सन् 1824 में कित्तूर (कर्नाटक) की रानी चेनम्मा ने अंग्रेजों को मार भगाने के लिए ’फिरंगियों भारत छोड़ो’ बिगुल बजाया था। उसने रणचण्डी का रूप धर कर अपने अदम्य साहस व फौलादी संकल्प की बदौलत अंग्रेजों के छक्के छुड़ा दिये थे। कहते हैं कि मृत्यु से पूर्व रानी चेनम्मा काशीवास करना चाहती थीं पर उनकी यह चाह पूरी न हो सकी। क्या संयोग था कि रानी चेनम्मा की मौत के 6 साल बाद काशी में ही लक्ष्मीबाई का जन्म हुआ। हां! इतिहास के पन्नों में अंग्रेजों से लोहा लेने वाली प्रथम वीरांगना रानी चेनम्मा ही मानी जाती है।
यह भी कम ही लोगों को पता होगा कि बैरकपुर में मंगल पाण्डे को चर्बी वाले कारतूसों के बारे में सर्वप्रथम मातादीन ने बताया और मातादीन को इसकी जानकारी उसकी पत्नी लज्जो ने दी। लज्जो अंग्रेज अफसरों के यहां काम करती थी, जहां उसे यह सुराग मिला कि अंग्रेज गाय की चर्बी वाले कारतूस इस्तेमाल करने जा रहे हैं। इसी प्रकार 9 मई 1857 को मेरठ में विद्रोह करने पर 85 भारतीय सिपाहियों को हथकड़ी-बेड़ियां पहनाकर जेल भेज दिया गया और अन्य सिपाही उस शाम को घूमने निकले तो मेरठ शहर की स्त्रियों ने उन पर ताने कसे। मुरादाबाद के तत्कालीन जिला जज जेसी विल्सन ने इस घटना का वर्णन करते हुये लिखा है कि-'महिलाओं ने कहा कि-छिः! तुम्हारे भाई जेल खाने में और तुम यहां बाजार में मक्खियां मार रहे हो? तुम्हारे ऐसे जीने पर धिक्कार है।' इतना सुनते ही सिपाही जोश में आ गये और अगले ही दिन 10 मई को जेलखाना तोड़कर उनहोंने सभी कैदी सिपाहियों को छुड़ा लिया और उसी रात्रि क्रांति का बिगुल बजाते हुए दिल्ली की ओर प्रस्थान कर गये, जहां से 1857 की क्रांति की ज्वाला चारों दिशाओं में फैल गई।
लखनऊ में 1857 की क्रांति का नेतृत्व बेगम हजरत महल ने किया। अपने नाबालिग पुत्र बिरजिस कादर को गद्दी पर बिठाकर उन्होंने अंग्रेजी सेना का स्वयं मुकाबला किया। उनमें संगठन की अभूतपूर्व क्षमता थी और इसी कारण अवध के जमींदार, किसान और सैनिक उनके नेतृत्व में आगे बढ़ते रहे। आलमबाग की लड़ाई के दौरान अपने जांबाज सिपाहियों की उन्होंने भरपूर हौसला आफजाई की और हाथी पर सवार होकर अपने सैनिकों के साथ दिन-रात युद्ध करती रहीं। लखनऊ में पराजय के बाद वह अवध के देहातों मे चली गईं और वहां भी क्रांति की चिंगारी सुलगाई। घुड़सवारी और तलवार चलाने में माहिर झांसी की रानी लक्ष्मीबाई की वीरता और शौर्य के किस्से तो जन-जन में सुने जा सकते हैं। नवम्बर 1835 को बनारस में मोरोपंत तांबे के घर जन्मी लक्ष्मीबाई का बचपन नाना साहब के साथ कानपुर के बिठूर में बीता। सन् 1855 में पति राजा गंगाधर राव की मौत के पश्चात् उन्होंने झांसी का शासन संभाला पर अंग्रेजों ने उन्हें और उनके दत्तक पुत्र को शासक मानने से इन्कार कर दिया। लक्ष्मीबाई ने झांसी में ब्रिटिश सेना को कड़ी टक्कर दी और बाद में तात्या टोपे की मदद से ग्वालियर पर भी कब्जा किया। उनकी मौत पर जनरल ह्यूगरोज ने कहा था कि- 'यहां वह औरत सोयी हुयी है, जो व्रिदोहियों में एकमात्र मर्द थी।'
मुगल सम्राट बहादुर शाह जफर की बेगम जीनत महल ने दिल्ली और आसपास के क्षेत्रों में स्वातंत्र्य योद्धाओं को संगठित किया और देश प्रेम का परिचय दिया। सन् 1857 की क्रांति में बहादुरशाह जफर को प्रोत्साहित करने वाली बेगम जीनत महल ने ललकारते हुए कहा था कि- 'यह समय गजलें कह कर दिल बहलाने का नहीं है, बिठूर से नाना साहब का पैगाम लेकर देशभक्त सैनिक आए हैं, आज सारे हिन्दुस्तान की आँखें दिल्ली की ओर व आप पर लगी हैं, खानदान-ए-मुगलिया का खून हिन्द को गुलाम होने देगा तो इतिहास उसे कभी क्षमा नहीं करेगा।' बाद में बेगम जीनत महल भी बहादुरशाह जफर के साथ ही बर्मा चली गयीं। इसी प्रकार दिल्ली के शहजादे फिरोजशाह की बेगम तुकलाई सुलतान जमानी बेगम को जब दिल्ली में क्रांति की सूचना मिली तो उन्होंने ऐशोआराम का जीवन जीने की बजाय युद्ध शिविरों में रहना पसंद किया और वहीं से सैनिकों को रसद पहुंचाने और घायल सैनिकों की सेवा का प्रबन्ध अपने हाथो में ले लिया। अंग्रेजी हुकूमत इनसे इतनी भयभीत हो गयी थी कि कालान्तर में उन्हें घर में नजरबन्द कर उन पर बम्बई न छोड़ने और दिल्ली प्रवेश करने पर प्रतिबन्ध लगा दिया गया।
बेगम हजरत महल और रानी लक्ष्मीबाई के सैनिक दल में तमाम महिलायें शामिल थीं। लखनऊ में बेगम हजरत महल की महिला सैनिक दल का नेतृत्व रहीमी के हाथों में था, जिसने फौजी भेष अपनाकर तमाम महिलाओं को तोप और बन्दूक चलाना सिखाया। रहीमी की अगुवाई में इन महिलाओं ने अंग्रेजों से जमकर लोहा लिया। लखनऊ की तवायफ हैदरीबाई के यहां तमाम अंग्रेज अफसर आते थे और कई बार क्रांतिकारियों के खिलाफ योजनाओं पर बात किया करते थे। हैदरीबाई ने पेशे से परे अपनी देशभक्ति का परिचय देते हुये इन महत्वपूर्ण सूचनाओं को क्रांतिकारियों तक पहुंचाया और बाद में वह भी रहीमी के सैनिक दल में शामिल हो गयी।
ऐसी ही एक वीरांगना ऊदा देवी थीं, जिनके पति चिनहट की लड़ाई में वीरगति को प्राप्त हुए। ऐसा माना जाता है कि डब्ल्यू गार्डन अलक्जेंडर एवं तत्पश्चात क्रिस्टोफर हिबर्ट ने अपनी पुस्तक ‘द ग्रेट म्यूटिनी’ में लखनऊ में सिकन्दरबाग किले पर हमले के दौरान जिस वीरांगना के अदम्य साहस का वर्णन किया है, वह ऊदा देवी ही थीं। ऊदा देवी ने पीपल के घने पेड़ पर छिपकर लगभग 32 अंग्रेज सैनिकों को मार गिराया। अंग्रेज असमंजस में पड़ गये और जब हलचल होने पर कैप्टन वेल्स ने पेड़ पर गोली चलायी तो ऊपर से एक मानवाकृति गिरी। नीचे गिरने से उसकी लाल जैकेट का ऊपरी हिस्सा खुल गया, जिससे पता चला कि वह महिला है। उस महिला का साहस देख कैप्टन वेल्स की आंखे नम हो गयीं, तब उसने कहा कि यदि मुझे पता होता कि यह महिला है तो मैं कभी गोली नहीं चलाता। ऊदा देवी का जिक्र अमृतलाल नागर ने अपनी कृति ‘गदर के फूल’ में बकायदा किया है। इसी तरह की एक वीरांगना आशा देवी थीं, जिन्होंने 8 मई 1857 को अंग्रेजी सेना का सामना करते हुये शहादत पायी। आशा देवी का साथ देने वाली वीरांगनाओं में रनवीरी वाल्मीकि, शोभा देवी, वाल्मीकि महावीरी देवी, सहेजा वाल्मीकि, नामकौर, राजकौर, हबीबा गुर्जरी देवी, भगवानी देवी, भगवती देवी, इंदर कौर, कुशल देवी और रहीमी गुर्जरी इत्यादि शामिल थीं। ये वीरांगनाएं अंग्रेजी सेना के साथ लड़ते हुये शहीद हो गयीं।
बेगम हजरत महल के बाद अवध के मुक्ति संग्राम में जिस दूसरी वीरांगना ने प्रमुखता से भाग लिया, वे थीं गोण्डा से 40 किलोमीटर दूर तुलसीपुर रियासत की रानी राजेश्वरी देवी। राजेश्वरी देवी ने होपग्राण्ट के सैनिक दस्तों से जमकर मुकाबला लिया। अवध की बेगम आलिया ने भी अपने अद्भुत कारनामों से अंग्रेजी हुकूमत को चुनौती दी। बेगम आलिया 1857 के एक वर्ष पूर्व से ही अपनी सेना में शामिल महिलाओं को शस्त्रकला में प्रशिक्षण देकर सम्भावित क्रांति की योजनाओं को मूर्त रूप देने में संलग्न हो गयी थीं। अपने महिला गुप्तचर के गुप्त भेदों के माध्यम से बेगम आलिया ने समय-समय पर ब्रिटिश सैनिकों से युद्ध किया और कई बार अवध से उन्हें भगाया। इसी प्रकार अवध के सलोन जिले में सिमरपहा के तालुकदार वसंत सिंह बैस की पत्नी और बाराबंकी के मिर्जापुर रियासत की रानी तलमुंद कोइर भी इस संग्राम में सक्रिय रहीं। अवध के सलोन जिले में भदरी की तालुकदार ठकुराइन सन्नाथ कोइर ने विद्रोही नाजिम फजल अजीम को अपने कुछ सैनिक और तोपें, तो मनियारपुर की सोगरा बीबी ने अपने 400 सैनिक और दो तोपें सुल्तानपुर के नाजिम और प्रमुख विद्रोही नेता मेंहदी हसन को दी। इन सभी ने बिना इस बात की परवाह किये हुये कि उनके इस सहयोग का अंजाम क्या होगा, क्रांतिकारियों को पूरी सहायता दी।
झांसी की रानी लक्ष्मीबाई ने महिलाओं की एक अलग टुकड़ी ‘दुर्गा दल’ बनायी हुई थी। इसका नेतृत्व कुश्ती, घुड़सवारी और धनुर्विद्या में माहिर झलकारीबाई के हाथों में था। झलकारीबाई ने कसम उठायी थी कि जब तक झांसी स्वतंत्र नहीं होगी, न ही मैं श्रृंगार करूंगी और न ही सिन्दूर लगाऊंगी। अंग्रेजों ने जब झांसी का किला घेरा तो झलकारीबाई जोशो-खरोश के साथ लड़ी। चूंकि उसका चेहरा और कद-काठी रानी लक्ष्मीबाई से काफी मिलता-जुलता था, सो जब उसने रानी लक्ष्मीबाई को घिरते देखा तो उन्हें महल से बाहर निकल जाने को कहा और स्वयं घायल सिहंनी की तरह अंग्रेजों पर टूट पड़ी और शहीद हो गयीं। झलकारीबाई का जिक्र मराठी पुरोहित विष्णुराव गोडसे की कृति ‘माझा प्रवास’ में भी मिलता है। रानी लक्ष्मीबाई की सेना में जनाना फौजी इंचार्ज मोतीबाई और रानी के साथ चौबीस घंटे छाया की तरह रहने वाली सुन्दर-मुन्दर और काशीबाई सहित जूही और दुर्गाबाई भी दुर्गा दल की ही सैनिक थीं। इन सभी ने अपने जान की बाजी लगाकर रानी लक्ष्मीबाई पर आंच नहीं आने दी और अन्तोगत्वा वीरगति को प्राप्त हुयीं।
कानपुर 1857 की क्रांति का प्रमुख गवाह रहा है। पेशे से तवायफ अजीजनबाई ने यहां क्रांतिकारियों की संगत में 1857 की क्रांति में लौ जलायी। एक जून 1857 को जब कानपुर में नाना साहब के नेतृत्व में तात्याटोपे, अजीमुल्ला खान, बालासाहब, सूबेदार टीका सिंह और शमसुद्दीन खान क्रांति की योजना बना रहे थे तो उनके साथ उस बैठक में अजीजनबाई भी थीं। इन क्रांतिकारियों की प्रेरणा से अजीजन ने मस्तानी टोली के नाम से 400 महिलाओं की एक टोली बनायी जो मर्दाना भेष में रहती थीं। एक तरफ ये अंग्रेजों से अपने हुस्न के दम पर राज उगलवातीं, वहीं नौजवानों को क्रांति में भाग लेने के लिये प्रेरित करतीं। सतीचौरा घाट से बचकर बीबीघर में रखी गईं 125 अंग्रेज महिलाओं और बच्चों की रखवाली का कार्य अजीजनबाई की टोली के ही जिम्मे था। बिठूर के युद्ध में पराजित होने पर नाना साहब और तात्याटोपे तो पलायन कर गये लेकिन अजीजन पकड़ी गयी। युद्धबंदी के रूप में उसे जनरल हैवलॉक के समक्ष पेश किया गया। जनरल हैवलॉक उसके सौन्दर्य पर रीझे हुए बिना न रह सका और प्रस्ताव रखा कि यदि वह अपनी गलतियों को स्वीकार कर क्षमा मांग ले तो उसे माफ कर दिया जायेगा। किंतु अजीजन ने एक वीरांगना की भांति उसका प्रस्ताव ठुकरा दिया और पलट कर कहा कि माफी तो अंग्रेजों को मांगनी चाहिए, जिन्होंने इतने जुल्म ढाये। इतने पर आग बबूला हो हैवलॉक ने अजीजन को गोली मारने के आदेश दे दिये। क्षण भर में ही अजीजन का अंग-प्रत्यंग धरती माँ की गोद में सो गया। इतिहास में दर्ज है कि-'बगावत की सजा हंस कर सह ली अजीजन ने, लहू देकर वतन को।'
कानपुर के स्वाधीनता संग्राम में मस्तानीबाई की भूमिका भी कम नहीं है। बाजीराव पेशवा के लश्कर के साथ ही मस्तानीबाई बिठूर आई थी। अप्रतिम सौन्दर्य की मलिका मस्तानीबाई अंग्रेजों का मनोरंजन करने के बहाने उनसे खुफिया जानकारी हासिल कर पेशवा को देती थी। नाना साहब की मुंहबोली बेटी मैनावती भी देशभक्ति से भरपूर थी। नाना साहब बिठूर से पलायन कर गये तो मैनावती यहीं रह गयी। जब अंग्रेज नाना साहब का पता पूछने पहुंचे तो मौके पर 17 वर्षीया मैनावती ही मिली। नाना साहब का पता न बताने पर अंग्रेजों ने मैनावती को जिन्दा ही आग में झोंक दिया।
ऐसी ही न जाने कितनी दास्तान हैं, जहां वीरांगनाओं ने अपने साहस और जीवटता के दम पर अंग्रेजों के छक्के छुड़ा दिये। मध्यप्रदेश में रामगढ़ की रानी अवन्तीबाई ने 1857 के संग्राम के दौरान अंग्रेजों का प्रतिकार किया और घिर जाने पर आत्मसमर्पण करने की बजाय स्वयं को खत्म कर लिया। मध्य प्रदेश में ही जैतपुर की रानी ने अपनी रियासत की स्वतंत्रता की घोषणा कर दतिया के क्रांतिकारियों को लेकर अंग्रेजी सेना से मोर्चा लिया। तेजपुर की रानी भी इस संग्राम में जैतपुर की रानी की सहयोगी बनकर लड़ीं। मुजफ्फरनगर के मुंडभर की महावीरी देवी ने 1857 के संग्राम में 22 महिलाओं के साथ मिलकर अंग्रेजों पर हमला किया। अनूप शहर की चौहान रानी ने घोड़े पर सवार होकर हाथों में तलवार लिये अंग्रेजों से युद्ध किया और अनूप शहर के थाने पर लगे यूनियन जैक को उतार कर हरा राष्ट्रीय झंडा फहरा दिया। इतिहास गवाह है कि 1857 की क्रांति के दौरान दिल्ली के आस-पास के गावों की लगभग 255 महिलाओं को मुजफ्फरनगर में गोली से उड़ा दिया गया था।
इतिहास गवाह है कि 1905 के बंग-भंग आन्दोलन में पहली बार महिलाओं ने खुलकर सार्वजनिक रूप से भाग लिया था। स्वामी श्रद्धानन्द की पुत्री वेद कुमारी और आज्ञावती ने इस आन्दोलन के दौरान महिलाओं को संगठित किया और विदेशी कपड़ो की होली जलाई। कालान्तर में 1930 में सविनय अवज्ञा आन्दोलन के दौरान वेद कुमारी की पुत्री सत्यवती ने भी सक्रिय भूमिका निभायी। सत्यवती ने 1928 में साइमन कमीशन के दिल्ली आगमन पर काले झण्डों से उसका विरोध किया था। सन् 1930 के सविनय अवज्ञा आन्दोलन के दौरान ही अरूणा आसफ अली तेजी से उभरीं और इस दौरान अकेले दिल्ली से 1600 महिलाओं ने गिरफ्तारी दी।
गांधी इरविन समझौते के बाद जहां अन्य आन्दोलनकारी नेता जेल से रिहा कर दिये गये थे वहीं अरूणा आसफ अली को बहुत दबाव पर और बाद में छोड़ा गया था। सविनय अवज्ञा आन्दोलन के दौरान जब सभी बड़े नेता गिरफ्तार कर लिये गये, तो कलकत्ता के कांग्रेस अधिवेशन की अध्यक्षता एक महिला नेली सेनगुप्त ने की। क्रांतिकारी आन्दोलन में भी महिलाओं ने भागीदारी की। सन् 1912-14 में बिहार में जतरा भगत ने जनजातियों को लेकर टाना आन्दोलन चलाया। उनकी गिरफ्तारी के बाद उसी गांव की महिला देवमनियां उरांइन ने इस आन्दोलन की बागडोर संभाली। सन् 1931-32 के कोल आन्दोलन में भी आदिवासी महिलाओं ने सक्रिय भूमिका निभायी थी। स्वाधीनता की लड़ाई में बिरसा मुण्डा के सेनापति- गया मुण्डा की पत्नी ‘माकी’ बच्चे को गोद में लेकर फरसा-बलुआ से अंग्रेजों से अन्त तक लड़ती रहीं। सन् 1930-32 में मणिपुर में अंग्रेजों के विरुद्ध सशस्त्र संघर्ष का नेतृत्व नागा रानी गुइंदाल्यू ने किया। इनसे भयभीत अंग्रेजों ने इनकी गिरफ्तारी पर पुरस्कार की घोषणा की और कर माफ करने के आश्वासन भी दिये। सन् 1930 में बंगाल में सूर्यसेन के नेतृत्व में हुये चटगांव विद्रोह में युवा महिलाओं ने पहली बार क्रांतिकारी आन्दोलनों में स्वयं भाग लिया। ये क्रांतिकारी महिलाएं क्रांतिकारियों को शरण देने, संदेश पहुंचाने और हथियारों की रक्षा करने से लेकर बन्दूक चलाने तक में माहिर थीं।
इन्हीं में से एक प्रीतीलता वाडेयर ने एक यूरोपीय क्लब पर हमला किया और कैद से बचने के लिए आत्महत्या कर ली। कल्पनादत्त को सूर्यसेन के साथ ही गिरफ्तार कर 1933 में आजीवन कारावास की सजा सुनायी गयी और 5 साल के लिये अण्डमान की काल कोठरी में कैद कर दिया गया। दिसम्बर 1931 में कोमिल्ला की दो स्कूली छात्राओं-शान्ति घोष और सुनीति चौधरी ने जिला कलेक्टर को दिनदहाड़े गोली मार दी और काला पानी की सजा हुई तो 6 फरवरी 1932 को बीना दास ने कलकत्ता विश्वविद्यालय के दीक्षान्त समारोह में उपाधि ग्रहण करने के समय गवर्नर पर बहुत नजदीक से गोली चलाकर अंग्रेजी हुकूमत को चुनौती दी। सुहासिनी अली तथा रेणुसेन ने भी अपनी क्रांतिकारी गतिविधियों से 1930-34 के मध्य बंगाल में धूम मचा दी थी।
चन्द्रशेखर आजाद के अनुरोध पर ‘दि फिलॉसफी ऑफ बम’ दस्तावेज तैयार करने वाले क्रांतिकारी भगवतीचरण वोहरा की पत्नी ‘दुर्गा भाभी’ नाम से मशहूर दुर्गा देवी बोहरा ने भगत सिंह को लाहौर जिले से छुड़ाने का प्रयास किया। सन् 1928 में जब अंग्रेज अफसर साण्डर्स को मारने के बाद भगत सिंह और राजगुरु लाहौर से कलकत्ता के लिए निकले, तो कोई उन्हें पहचान न सके इसलिए दुर्गा भाभी की सलाह पर एक सुनियोजित रणनीति के तहत भगत सिंह उनके पति, दुर्गा भाभी उनकी पत्नी और राजगुरु नौकर बनकर वहां से निकल लिये। सन् 1927 में लाला लाजपतराय की मौत का बदला लेने के लिये लाहौर में बुलायी गई बैठक की अध्यक्षता दुर्गा भाभी ने की। बैठक में अंग्रेज पुलिस अधीक्षक जेए स्कॉट को मारने का जिम्मा वे खुद लेना चाहती थीं, पर संगठन ने उन्हें यह जिम्मेदारी नहीं दी। तत्कालीन बम्बई के गर्वनर हेली को मारने की योजना में टेलर नामक एक अंग्रेज अफसर घायल हो गया, जिस पर गोली दुर्गा भाभी ने ही चलायी थी। इस केस में उनके विरुद्ध वारण्ट भी जारी हुआ और दो वर्ष से ज्यादा समय तक फरार रहने के बाद 12 सितम्बर 1931 को दुर्गा भाभी लाहौर में गिरफ्तार कर ली गयीं।
यह संयोग ही कहा जाएगा कि भगत सिंह और दुर्गा भाभी, दोनों की जन्म शताब्दी वर्ष 2007 में ही पड़ रही है। क्रांतिकारी आन्दोलन के दौरान सुशीला दीदी ने भी प्रमुख भूमिका निभायी और काकोरी काण्ड के कैदियों के मुकदमे की पैरवी के लिए अपनी स्वर्गीय माँ द्वारा शादी की खातिर रखा 10 तोला सोना उठाकर दान में दिया। यही नहीं उन्होंने क्रांतिकारियों का केस लड़ने के लिए ‘मेवाड़पति’ नामक नाटक खेलकर चन्दा भी इकट्ठा किया। सन् 1930 के सविनय अविज्ञा आन्दोलन में ‘इन्दुमति‘ के छद्म नाम से सुशीला दीदी ने भाग लिया और गिरफ्तार हुयीं। इसी प्रकार हसरत मोहानी को जब जेल की सजा मिली तो उनके कुछ दोस्तों ने जेल की चक्की पीसने के बजाय उनसे माफी मांगकर छूटने की सलाह दी। इसकी जानकारी जब बेगम हसरत मोहानी को हुई तो उन्होंने पति की जमकर हौसला अफ्ज़ाई की और दोस्तों को नसीहत भी दी। मर्दाना वेष धारण कर उन्होंने स्वतंत्रता आन्दोलन में खुलकर भाग लिया और बाल गंगाधर तिलक के गरम दल में शामिल होने पर गिरफ्तार कर जेल भेज दी गयी, जहां उन्होंने चक्की भी पीसा। यही नहीं महिला मताधिकार को लेकर 1917 में सरोजिनी नायडू के नेतृत्व में वायसराय से मिलने गये प्रतिनिधिमण्डल में वह भी शामिल थीं।
सन् 1925 में कानपुर में हुये कांग्रेस अधिवेशन की अध्यक्षता कर ‘भारत कोकिला’ के नाम से मशहूर सरोजिनी नायडू को कांग्रेस की प्रथम भारतीय महिला अध्यक्ष बनने का गौरव प्राप्त हुआ। सरोजिनी नायडू ने भारतीय स्वाधीनता आन्दोलन के इतिहास में कई पृष्ठ जोड़े। कमला देवी चट्टोपाध्याय ने 1921 में असहयोग आन्दोलन में बढ़-चढ़ कर भाग लिया। इन्होंने बर्लिंन में अन्तर्राष्ट्रीय महिला सम्मेलन में भारत का प्रतिनिधित्व कर तिरंगा झंडा फहराया। सन् 1921 के दौर में अली बन्धुओं की माँ बाई अमन ने भी लाहौर से निकल तमाम महत्वपूर्ण नगरों का दौरा किया और जगह-जगह हिन्दू-मुस्लिम एकता का संदेश फैलाया। सितम्बर 1922 में बाई अमन ने शिमला दौरे के समय वहां की फैशनपरस्त महिलाओं को खादी पहनने की प्रेरणा दी। सन् 1942 के भारत छोड़ो आन्दोलन में भी महिलाओं ने प्रमुख भूमिका निभायी। अरुणा आसफ अली और सुचेता कृपलानी ने अन्य आन्दोलनकारियों के साथ भूमिगत होकर आन्दोलन को आगे बढ़ाया तो ऊषा मेहता ने इस दौर में भूमिगत रहकर कांग्रेस-रेडियो से प्रसारण किया। अरुणा आसफ अली को तो 1942 में उनकी सक्रिय भूमिका के कारण ‘दैनिक ट्रिब्यून’ ने ‘1942 की रानी झांसी’ नाम दिया। अरुणा आसफ अली ‘नमक कानून तोड़ो आन्दोलन’ के दौरान भी जेल गयीं। सन् 1942 के अन्दोलन के दौरान ही दिल्ली में ‘गर्ल गाइड‘ की 24 लड़कियां अपनी पोशाक पर विदेशी चिन्ह धारण करने और यूनियन जैक फहराने से इनकार करने के कारण अंग्रेजी हुकूमत द्वारा गिरफ्तार हुईं और उनकी बेदर्दी से पिटाई की गयी। इसी आन्दोलन के दौरान तमलुक की 73 वर्षीया किसान विधवा मातंगिनी हाजरा ने गोली लग जाने के बावजूद राष्ट्रीय ध्वज को अन्त तक ऊंचा उठाए रखा।
महिलाओं ने परोक्ष रूप से भी स्वतंत्रता संघर्ष में प्रभावी भूमिका निभा रहे लोगों को काफी सराहा। सरदार वल्लभ भाई पटेल को ‘सरदार’ की उपाधि बारदोली सत्याग्रह के दौरान वहां की महिलाओं ने ही दी। महात्मा गांधी को स्वतंत्रता संघर्ष के दौरान उनकी पत्नी कस्तूरबा गांधी ने पूरा समर्थन दिया। उनकी नियमित सेवा और अनुशासन के कारण ही महात्मा गांधी आजीवन अपने लम्बे उपवासों और विदेशी चिकित्सा के पूर्ण निषेध के बावजूद स्वस्थ रहे। अपने व्यक्तिगत हितों को उन्होंने राष्ट्र की खातिर तिलांजलि दे दी। भारत छोड़ो आन्दोलन प्रस्ताव पारित होने के बाद महात्मा गांधी को आगा खां पैलेस (पूना) में कैद कर लिया गया। कस्तूरबा गांधी भी उनके साथ जेल गयीं। डॉ सुशीला नैयर, जो कि गांधीजी की निजी डाक्टर भी थीं और भारत छोड़ो आन्दोलन के दौरान 1942-44 तक महात्मा गांधी के साथ जेल में रहीं।
इन्दिरा गांधी ने 6 अप्रैल 1930 को बच्चों को लेकर ‘वानर सेना’ का गठन किया, जिसने स्वतंत्रता संग्राम के दौरान अपना अद्भुत योगदान दिया। यह सेना स्वतंत्रता सेनानियों को सूचना देने और सूचना लेने का कार्य करती और हर प्रकार से उनकी मदद करती थी। विजयलक्ष्मी पण्डित भी गांधीजी से प्रभावित होकर जंग-ए-आजादी में कूद पड़ीं। वह हर आन्दोलन में आगे रहतीं, जेल जातीं, रिहा होतीं, और फिर आन्दोलन में जुट जातीं। सन् 1945 में संयुक्त राष्ट्र संघ के सैन फ्रांसिस्को सम्मेलन में विजयलक्ष्मी पण्डित ने भारत का प्रतिनिधित्व भी किया। सुभाषचन्द्र बोस की 'आरजी हुकूमते आजाद हिन्द सरकार' में महिला विभाग की मंत्री और आजाद हिन्द फौज की रानी झांसी रेजीमेण्ट की कमाण्डिंग ऑफिसर रहीं कैप्टन लक्ष्मी सहगल ने आजादी में प्रमुख भूमिका निभायी। सुभाष चन्द्र बोस के आह्वान पर उन्होंने सरकारी डॉक्टर की नौकरी छोड़ दी। कैप्टन सहगल के साथ आजाद हिन्द फौज की रानी झांसी रेजीमेण्ट में लेफ्टिनेण्ट रहीं लेफ्टिनेंट मानवती आर्या ने भी सक्रिय भूमिका निभायी। अभी भी ये दोनों सेनानी कानपुर में तमाम रचनात्मक गतिविधियों में सक्रिय हैं।
भारतीय स्वतंत्रता आन्दोलन की गूंज भारत के बाहर भी सुनायी दी। विदेशों में रह रही तमाम महिलाओं ने भारतीय संस्कृति से प्रभावित होकर भारत और अन्य देशों में स्वतंत्रता आन्दोलन की अलख जगायी। लन्दन में जन्मीं एनीबेसेन्ट ने ‘न्यू इण्डिया’ और ‘कामन वील’ पत्रों का सम्पादन करते हुये आयरलैण्ड के ‘स्वराज्य लीग’ की तर्ज पर सितम्बर 1916 में ‘भारतीय स्वराज्य लीग’ (होमरूल लीग) की स्थापना की, जिसका उद्देश्य स्वशासन स्थापित करना था। एनीबेसेन्ट को कांग्रेस की प्रथम महिला अध्यक्ष होने का गौरव भी प्राप्त है। एनीबेसेन्ट ने ही 1898 में बनारस में सेन्ट्रल हिन्दू कॉलेज की नींव रखी, जिसे 1916 में महामना मदनमोहन मालवीय ने बनारस हिन्दू विश्वविद्यालय के रूप में विकसित किया। भारतीय मूल की फ्रांसीसी नागरिक मैडम भीकाजी कामा ने लन्दन, जर्मनी और अमेरिका का भ्रमण कर भारत की स्वतंत्रता के पक्ष में माहौल बनाया। उनका पेरिस से प्रकाशित ‘वन्देमातरम्’ पत्र प्रवासी भारतीयों में काफी लोकप्रिय हुआ।
सन् 1909 में जर्मनी के स्टटगार्ट में हुयी अन्तर्राष्ट्रीय सोशलिस्ट कांग्रेस में मैडम भीकाजी कामा ने प्रस्ताव रखा कि- 'भारत में ब्रिटिश शासन जारी रहना मानवता के नाम पर कलंक है। एक महान देश भारत के हितों को इससे भारी क्षति पहुंच रही है।' उन्होंने लोगों से भारत को दासता से मुक्ति दिलाने में सहयोग की अपील की और भारतवासियों का आह्वान किया कि- 'आगे बढ़ो, हम हिन्दुस्तानी हैं और हिन्दुस्तान हिन्दुस्तानियों का है।' यही नहीं मैडम भीकाजी कामा ने इस कांफ्रेंस में ‘वन्देमातरम्’ अंकित भारतीय ध्वज फहरा कर अंग्रेजों को कड़ी चुनौती दी। मैडम भीकाजी कामा लन्दन में दादाभाई नौरोजी की प्राइवेट सेक्रेटरी भी रहीं। आयरलैंड की मूल निवासी और स्वामी विवेकानन्द की शिष्या मारग्रेट नोबुल (भगिनी निवेदिता) ने भी भारतीय स्वतंत्रता संग्राम में तमाम मौकों पर अपनी सक्रियता दिखायी।

कलकत्ता विश्वविद्यालय में 11 फरवरी 1905 को आयोजित दीक्षान्त समारोह में वायसराय लार्ड कर्जन के भारतीय युवकों के प्रति अपमानजनक शब्दों का उपयोग करने पर भगिनी निवेदिता ने खड़े होकर निर्भीकता के साथ प्रतिकार किया। इंग्लैण्ड के ब्रिटिश नौसेना के एडमिरल की पुत्री मैडेलिन ने भी गांधीजी से प्रभावित होकर भारत को अपनी कर्मभूमि बनाया। ‘मीरा बहन’ के नाम से मशहूर मैडेलिन भारत छोड़ो आन्दोलन के दौरान महात्मा गांधी के साथ आगा खां महल में कैद रहीं। मीरा बहन ने अमेरिका और ब्रिटेन में भारत की स्वतंत्रता के पक्ष में माहौल बनाया। मीरा बहन के साथ-साथ ब्रिटिश महिला म्यूरियल लिस्टर भी गांधीजी से प्रभावित होकर भारत आयीं और अपने देश इंग्लैण्ड में भारत की स्वतंत्रता के पक्ष में माहौल बनाने का प्रयास किया। द्वितीय गोलमेज कांफ्रेन्स के दौरान गांधीजी इंग्लैण्ड में म्यूरियल लिस्टर के ‘किंग्सवे हॉल’ में ही ठहरे थे। इस दौरान म्यूरियल लिस्टर ने गांधीजी के सम्मान में एक भव्य समारोह भी आयोजित किया था। इन वीरांगनाओं के अनन्य राष्ट्रप्रेम, अदम्य साहस, अटूट प्रतिबद्धता और उनमें से कईयों का गौरवमयी बलिदान भारतीय इतिहास की एक जीवन्त दास्तां है। यह पक्का हो सकता है उनमें से कईयों को इतिहास ने विस्मृत कर दिया हो, पर लोक चेतना में वे अभी भी मौजूद हैं। जय हिंद!

रविवार, 14 अगस्त 2011

जालौर राजस्थान राज्य का एक एतिहसिक शहर है

जालौर  राजस्थान राज्य का एक एतिहसिक शहर है। यह शहर प्राचीनकाल मे 'जाबालिपुर' के नाम से जाना जाता था। जालौर जिला मुख्यालय यहा स्थित है। लूनी नदी की उपनदी सुकरी के दक्षिण में स्थित जालौर राजस्थान का ऐतिहासिक जिला है।प्राचीनकाल में इसे जबलीपुर और सुवर्णगिरी के नाम से भी जाना जाता था। 12वीं शताब्दी में यह चौहान राजपूतों की राजधानी था। वर्तमान में यह जिला बाड़मेर, सिरोही, पाली और गुजरात के बनासकांथा जिले से घिरा हुआ है। परिहार, दहिया, मारवाड़ समेत कई शासकों के हाथ से गुजरने के कारण यहां के स्मारकों पर उनका प्रभाव देखा जा सकता है। जालौर का प्रमुख आकर्षण जालौर किला है लेकिन इसके अलावा भी यहां अनेक दर्शनीय स्थल हैं।

जालौर किला

भारत के सबसे प्रसिद्ध किलों में से एक जालौर किले का निर्माण 10वीं शताब्दी में परमारों द्वारा कराया गया था। यह अद्भुत किला खड़ी पहाड़ी पर स्थित है। यहां के महल बहुत साधरण हैं जिनमें बहुत अधिक सजावट देखने को नहीं मिलती। मंदिर में प्रवेश के चार भव्य द्वार हैं जहां तक पहुंचने का एक ही रास्ता है। किले का निर्माण पारंपरिक हिंदू वास्तुशिल्प के &x905
जहाज मंदिर

जहाज मंदिर एक जैन मंदिर है जो बिशनगढ़ से 5 किमी. दूर है। श्री शांतिनाथ प्रभु की प्रतिमा और परमात्मा का मार्ग पंचधातु से बनाया गया है। मुख्य प्रतिमा के दायीं ओर आदिनाथ और बायीं ओर भगवान वसुपूज्य विराजमान हैं। मंदिर के अन्य कोनों पर भी मूर्तियां रखी गई हैं। अराधना भवन और भोजशाला के साथ ही एक विशाल धर्मशाला भी जुड़ी हुई है।
श्री स्वर्णगिरी तीर्थ

श्री स्वर्णगिरी तीर्थ जालौर शहर के पास स्वर्णगिरी पहाड़ी पर स्थित है। पद्मासन मुद्रा में बैठे भगवान महावीर यहां के मुख्य अराध्य देव हैं। मंदिर का निर्माण राजा कमरपाल ने करवाया था और इसकी देखरख श्री स्वर्णगिरी जैन श्‍वेतांबर तीर्थ पेढ़ी नामक ट्रस्ट करता है। भगवान महावीर की श्‍वेत प्रतिमा की स्थापना 1221 विक्रम संवत में की गई थी।
श्री उमेदपुर तीर्थ

श्री उमेदपुर तीर्थ जालौर जिले के उमेदपुर में स्थित है। यह मंदिर श्री भीदभंजन पार्श्‍वनाथ भगवान को समर्पित है। मंदिर की नींव योगराज श्री विजय शांतिगुरु ने 1995 विक्रम संवत में रखी थी। यहां पर भोजनशाला और धर्मशाला में है।

तीर्थेद्रनगर

तीर्थेद्रनगर एक धार्मिक स्थल है जो जालौर से 48 किमी. दूर है। श्री चमत्कारी पार्श्‍वनाथ जैन तीर्थ यहां के मुख्य आकर्षण हैं। जालौर से यहां के लिए नियमित बस सेवा उपलब्ध है।

====श्री धबाआवालि माताजि खासरवी तेसिल साचोर इन जिला जालोर ======= श्री धबाआवलि माताजि का मनदीर साचओर से ३० कीलो मी दूर हे माना जाता हे की धबाआवालि माताजि का परचा बोहत हे पास मे भादरुन गाव मे जूजार जी का मनदीर हे जो करीब ५५० साल पुराना मनदीर हे सपादक सावलाराम वीराराजी देवासी गाव भादरुन

थार में जाता सावन बारिश की सौगात दे गया।

बाड़मेर
थार में जाता सावन बारिश की सौगात दे गया। पूर्णिमा को अलसुबह ही बारिश का दौर शुरू हुआ जो रुक रुककर दिन भी जारी रहा। लेकिन इस सौगात ने कई जगह हालात बदल दिए। बीसूकला गांव में तालाब टूटने से कलाकारों के घरों में पानी घुस गया। शिव से गडरा जाने वाली सड़क तिबनियार गांव के पास टूटने से संपर्क कट गया। कई जगह नदी, नाले उफान पर आ गए। कवास में पानी घरों में घुस गया। सड़कों पर चादर चलने लगी। समूचे जिले में बारिश से खरीफ फसलों को जीवनदान मिला है।
गांव- ढाणियों का संपर्क टूटा
शिव तहसील के बीसूकला गांव में स्थित खीमासर तालाब की मेड़ बंदी टूटने से पानी कलाकारों के घरों में घुस गया। करीब आधा दर्जन गांवों में चार फीट तक पानी का भराव हो गया। लोग घर छोड़कर बाहर निकल आए। तेज बारिश से आस पास के खेतों में बने छोटे एनीकट टूटने से बहाव ने नदी का रूप ले लिया। खेतों में चादर चलने लगी। गांवों व ढाणियों का संपर्क टूट गया।






आकाशीय बिजली गिरने से 25 बकरियां मरीं


जिला मुख्यालय से बीस किलोमीटर दूर स्थित रोहिली गांव में शनिवार को आकाशीय बिजली गिरने से 25 बकरियां मर गईं। ग्रामीण ईशा पुत्र गाजी खां निवासी रोहिली ने बताया कि उसके खेत में स्थित पेड़ के
नीचे बकरियां बैठी थी। इस दौरान बिजली गिरी और बकरियां उसकी चपेट में आ गईं।

सुहाने मौसम का लुत्फ उठाया : शहरवासियों ने शनिवार के दिन सुहाने मौसम का जमकर लुत्फ उठाया। सुबह से बूंदाबांदी का दौर शुरू हुआ जो दिन भर जारी रहा।
काली घटाओं के बीच बारिश ने मौसम का मिजाज ही बदल दिया। दोपहर बाद तक बादलों की आवाजाही बनी रही। शहरवासियों ने छुट्टी के चलते पिकनिक व गोठ के आयोजन किए।
बॉर्डर के गांवों में भी मूसलाधार : गडरारोड़. जिले के सरहदी गांवों में शुक्रवार को दिनभर बारिश का दौर जारी रहने गडरा, हरसाणी, गिराब, बंधड़ा, कुबडिय़ा, बीकूसी, सरगुवाला, पूंजराज का पार, ढूठोड़ा समेत दर्जनों गांवों में अच्छी बारिश के बाद किसान खरीफ की बुवाई में जुट गए। यहां कुछ क्षेत्रों में शनिवार अलसुबह तक बारिश का दौर चला। क्षेत्र में लंबे इंतजार के बाद हुई बारिश से तालाब, टांके व एनीकट पानी से लबालब भर जाने से पेयजल समस्या से निजात मिला है।


सिवाना, पाटोदी व गुड़ामालानी में भी बरसे




. बालोतरा में शनिवार को मौसम खुशगवार रहा। अलसुबह व दिन में सावन की बौछारों से सड़कें तर हो गईं। भगतसिंह सभा स्थल में पानी भर जाने से अब स्वतंत्रता दिवस मुख्य समारोह खेड़ रोड स्थित राजकीय माध्यमिक विद्यालय में आयोजित होगा। वहीं न्यू डागा अस्पताल के पास एक कच्चे मकान की दीवार ढह गई। पाटोदी में दो जगह बिजली गिरी। हालांकि कोई नुकसान नहीं हुआ।
गुड़ामालानी. क्षेत्र में शनिवार को पांचवें दिन भी इन्द्रदेव मेहरबान रहे। उपखंड मुख्यालय के मुख्य मार्गों पर जलभराव हो गया। जिससे राहगीरों व वाहन चालकों को भारी परेशानियों का सामना करना पड़ रहा है।
सिवाना. सिवाना सहित आस-पास गांवों में सावन मास के अंतिम दिन अच्छी बरसात हुई। बारिश का दौर देर रात्रि से शुरू हुआ जो रुक रुककर शाम तक जारी रहा।


पचपदरा. क्षेत्र में शुक्रवार रात्रि व शनिवार को बादल जमकर बरसे। दिनभर रही उमस से लोगों को बारिश से निजात मिली। दिनभर रिम-झिम व तेज बारिश के चलते तालाबों में भी पानी की आवक हुई।
जसोल. जसोल सहित आस-पास के ग्रामीण क्षेत्रों में शुक्रवार रात्रि में हुई बारिश के बाद एक ओर मौसम सुहाना हो गया। किसानों के चेहरों पर खुशी नजर आई। बारिश के कारण कस्बे की सड़कों पर पानी भर गया।अच्छी बारिश होने से नाकोड़ा रोड स्थित भूर की नाडी, नयापुरा स्थित गांवाई तालाब व भीमजी का नाडा में पानी लबालब भर गया है।

शनिवार, 13 अगस्त 2011

हथियार बनाने की फैक्ट्री पकड़ी, करते थे शूटरों को सप्लाई

बहादुरगढ़. पुलिस ने मांडौठी गांव में हथियार बनाने की फैक्टरी पकड़ी है। यहां से करतार गैंग के शूटरों को हथियार सप्लाई किए जाते थे। यह गांव खूनी गैंगवार के लिए कुख्यात है। अभी 3 अगस्त को कोर्ट से लौट रहे इस गांव के चार युवकों को करतार गैंग के लोगों ने कार पर गोलियां बरसा कर मार डाला था। यह वारदात दुल्हेड़ा गांव में हुई थी।

पुलिस ने छापे के दौरान दुल्हेड़ा हत्याकांड के मुख्य हमलावर और इसी गांव के निवासी चंद्रपाल उर्फ सोनू को भी गिरफ्तार कर लिया है। पुलिस अधीक्षक पीआर सिंह ने बताया कि हथियार बनाने की फैक्टरी मांडौठी निवासी हेमचंद्र उर्फ हेम्मे के मकान में चल रही थी। छापामारी के दौरान हेमचंद्र तो पुलिस के हाथ नहीं लगा, लेकिन उसका पिता पकड़ा गया।

बड़ी संख्या में हथियार मिले

फैक्टरी से 12 बोर के दो पिस्टल, 315 बोर के तीन देसी पिस्टल, प्वाइंट 32 बोर की एक माउजर, 12 बोर के दो अधबने पिस्टल तथा एक छह राउंड का देसी रिवाल्वर बरामद किया है। इसके अलावा किस्म के डेढ़ सौ से अधिक कारतूस भी मिले हैं।

इनमें 12 बोर के 50 कारतूस, 9 एमएम के 35, 32 बोर रिवाल्वर के 5 व 32 बोर पिस्टल के 30, थ्री नाट थ्री का 1 कारतूस, 315 बोर के 13 तथा 22 कारतूस अन्य किस्म के हथियारों के बरामद किए गए हैं। कारतूसों की कुल संख्या 156 है। इसके अलावा हथियार बनाने में काम आने वाली डाई, ग्राइंडर मशीन, ड्रिल मशीन, कटर ब्लेड, हथौड़ा, की- टूल्स, एक अधबनी मैगजीन समेत मिले है।

चीन में बने दो वाकी-टाकी भी मिले

फैक्टरी से पुलिस को दो चाइना मेड वाकी-टाकी भी मिले हैं। दोनों वाकी-टाकी फिलहाल चालू हालत में हैं। इनकी रेंज के बारे में तकनीकी विशेषज्ञों की राय ली जा रही है ताकि यह मालूम किया जा सके कि इन वाकी-टाकी से कितने किलोमीटर दूरी पर आपस में बातचीत की जा सकती है।

अब तक जा चुकी है 30 की जान

मांडौठी में गैंगवार में मारे गए पूर्व सरपंच हंसराज उर्फ सुंडा और फरार चल रहे करतार पक्ष के बीच पिछले बीस साल से रंजिश चल रही है। इसमें दोनों पक्षों की ओर से 30 से ज्यादा हत्याएं हो चुकी हैं। 3 अगस्त को हंसराज पक्ष के चार लोगों को दुल्हेड़ा गांव में उस समय गोलियां बरसाकर मार डाला गया था जब वे कार से झज्जर कोर्ट से वापस आ रहे थे। इसमें हंसराज के बेटे सुनील उसका साथी संदीप,सतपाल उर्फ सत्ते तथा पेलपा निवासी सोनू शामिल थे। हमले का मास्टर माइंड करतार अपने साथियों समेत फरार है।