शुक्रवार, 30 मार्च 2012

बाड़मेर की सहकारी सोसायटियो के खिलाफ मुख्यमंत्री ने दिए जांच के आदेश

बाड़मेर की सहकारी  सोसायटियो  के खिलाफ मुख्यमंत्री ने दिए जांच के आदेश 
चिट फंड कंपनियों के खिलाफ कार्यवाही क्यों नहीं 

बाड़मेर सीमावर्ती बाड़मेर जिले में सहकारी समितियों ने आम लोगो को लूटने का धंधा बड़े जोरो से चला रखा हें रिजर्व बेंक के प्रावधानों तथा नियमो को धत्ता बता कर चिट फंड कंपनियों की तर्ज पर करोडो रुपये आम जनता से ऐंठ लिए .इस सम्बन्ध में जिला प्रशासन ,जिला पुलिस प्रशासन ,सहित मुख्यमंत्री तक को आम जनता ने ऐसी कंपनियों के खिलाफ कार्यवाही को लेकर पत्र भी लिखे ,इन पत्रों के आधार पर मुख्यमंत्री कार्यालय द्वारा सहकारिता विभाग के प्रमुख सचिव को जांच सौंपी गयी हे वाही पुलिस अधीक्षक द्वारा पुलिस उप अधीक्षक को जांच दी गयी ,बाड़मेर जिले में इस प्रकार की तीन दर्जन से अधिक सहकारी समितिया अवेध रूप से नॉन बैंकिंग  कार्य कर रही हें ,आम जनता को ज्यादा ब्याज और लोक लुभावनी योजनाये बता कर सरे आम ठगा जा रहा हें बाड़मेर में संचालित कई सहकारी सोसायटिया भारतीय रिज़र्व बैंक के नियमो की पालना नहीं कर रही वन्ही लगभग सभी बनके आर बी आई  से बिना पंजीयन के ही संचालित की जा रही हें ,राज्य सरकार द्वारा प्राथमिकता से आम जनता के साथ ठगी कर पैसा हड़पने वाली निवेशक कम्पनियों के खिलाफ कार्यवाही की जा रही है। इस सन्दर्भ में बाड़मेर जिले में दो दर्जन से अधिक कॉपरेटिव सोसायटी गैर काूननी तरीके से अवैध रूप से आम जनता को गूमराह कर धन संग्रहण कर रही है। इन सोसायटीयों द्वारा भारतीय रिजर्व बैंक द्वारा निर्धारित नियमों की पालना नही की जा रही है। जिसके कारण आम जनता का पैसा डूबने की पूरी संभावना है तथा बाड़मेर जिले में संचालित कॉऑपरेटिव सोसायटियों निम्नलिखित नियम जो आर.बी.आई. द्वारा निर्धारित की पालना की जा रही है यदि नही तो इनके खिलाफ उचित कानूनी कार्यवाही कर जाकर आम जनता को धोखाधड़ी से बचाया जाए। 
.आर बी आई के नियमानुसार सोसायटी खातेदार को हिस्साधारक बनाता है या मात्र नॉमिनल सदस्य बनाया जाता है? 
सोसाइटी द्वारा प्राप्त जमाओं के अनुपात में न्यूनतम 10 प्रतिशत स्वंय का फण्ड डंपदजंपद किया जाता है? संचालित सोसाइटी विगत वर्षो से लाभ में है? सोसाइटी द्वारा अपने सदस्यों को लाभांश दिया जाता है। सोसाइटी आपको आपके निवेश के बदले एफडीआर दी जाती है, या लुभवाने सपने दिखाए जाते है? जैसा की कई संस्थाओं द्वारा जमीन, भेंड, बकरी, गाय, भैस आदि के प्रमाणपत्र दिये जाते है? सोसाइटी का नियंत्रण करने वाले लोग की आर्थिक,इ सामाजिक व भौतिक पृष्ठभूमि क्या है। भारतीय रिजर्व बैंक द्वारा इन्हे अनापति प्रमाणपत्र जारी किए गए है। संचालितसोसायटीयों द्वारा अपनी जमा पूंजी के 10 प्रतिशत से ज्यादा धन प्राप्त किया गया है। संचालित सोसायटियों आरबीआई द्वारा निर्धारित ब्याज दर से अधिक ब्याज के सपने आम जनता को दिखा रही है। संचालित सोसायटियों जमा राशि का निवेश कहां कर रही है। संचालित सोसायटियों आयकर चुकता कर रही है। संचालित सोसायटियों ऋणकर्ताओं से 8 से 10 की मिति से ब्याज दर वसूल रही है। 
उपरोक्त नियमों के ध्यान में रखकर मुख्यमंत्री कार्यालय ने एल एस जी विभाग को जांच के आदेश दिए हें .इन बेंको की संदिघध कार्य प्रणाली को लेकर मुख्यंत्री कार्यालय को शिकायत भेजी गयी थी जिसने मुख्यमंत्री को लिखा गया था की बाड़मेर में संचालित कॉपरेटिव सोसायटियों पर कार्यवाही कर आमजनता को इन से बचाया जाए। 
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जिंदल समूह ने किया 61 हजार करोड़ का कोयला घोटाला


जिंदल समूह ने किया 61 हजार करोड़ का कोयला घोटाला
बाड़मेर से चंदन भाटी की रिपोर्ट



हमारी सरकारों का कंपनियां अपने फायदे के लिए किस तरह इस्तेमाल करती हैं इसका एक उदाहरण राजस्थान में देखते हैं. केन्द्र के कोयला घोटाले की कालिख में किसका चेहरा दागदार होगा यह तो आनेवाला वक्त बताएगा लेकिन इधर राजस्थान में कांग्रेस के करीबी कारोबारी जिंदल समूह ने सरकार के साथ मिलीभगत करके एक लंबी दूरी का ऐसा घोटाला रच दिया है जिसमें सरकार को आनेवाले तीस सालों में 61 हजार करोड़ का घाटा होगा।

जब से बाड़मेर में कोयले के अकूत भंडार का पता चला है काले कारोबारियों की काली नजर बाड़मेर पर पड़ गई है। ताजा मामला जिंदल समूह से जुड़ा हुआ है। राजस्थान इलेक्ट्रीसिटी रेग्युलेटरी कमीशन के अध्यक्ष डीसी सामंत, सदस्य एस धवन, एसके मित्तल ने बाड़मेर लिग्नाईट माइनिंग कम्पनी लि. की याचिका पर सुनवाई की, जिसमें कई चौंकाने वाले तथ्य उजागर हुए हैं। खासकर इसमें एक बड़ा खुलासा हुआ हैं कि जिंदल ग्रुप के राजवेस्ट पवार प्लांट लि. भादरेश बाड़मेर में लिग्नाईट की आपूर्ति के लिए बाड़मेर में माइनिंग का ठेका निविदा के जरिये प्रतिस्पर्धात्मक तरीके से होना था, उसको बिना किसी प्रतिस्पर्धा के जिंदल ग्रुप की एसोसिएट फर्म साउथ वेस्ट माइनिंग लि. को 1230 रुपए प्रति मैट्रिक टन की दर की खरीदारी के अनुबंध के साथ दे दिया गया। टैक्स जोड़ा जाए तो यह दर 1953 रुपए प्रति मीट्रिक टन की दर हो जाती हैं। मजे की बात यह कि जिंदल ग्रुप की एसोसिएट फर्म साउथ वेस्ट माइनिंग लि. यह ठेका लेने की पात्रता भी नहीं रखती। तीस वर्ष के लिए दिए गए इस ठेके से उक्त अवधि में टैक्स समेत करीब इकसठ हजार करोड़ का नुकसान हो सकता हैं।

समझें घाटे का ये गणित : बाड़मेर जिले में जिंदल ग्रुप की फर्म राजवेस्ट पावर प्रोजेक्ट लि. के नाम से भादरेश में 135 मेगावाट की दस इकाइयां बनाई जानी हैं, जिनमे से दो इकाइयां बन कर तैयार हैं और शेष निर्माणाधीन हैं। जब पूर्ण क्षमता के साथ सभी दस इकाइयां काम करेंगी तब प्रतिदिन पचास हजार टन कोयले की जरूरत पड़ेगी। राजवेस्ट की कंसोर्टियम फर्म साउथ माइनिंग लि. इसके लिए प्रतिदिन छह करोड़ पन्द्रह लाख टैक्स समेत नौ करोड़ छियतर लाख पचास हजार रुपये लेगी, जो राजस्थान इलेक्ट्रीसिटी रेग्युलेटरी कमीशन के समक्ष तय हुई दरों (812 रुपए प्रति मीट्रिक टन) से टैक्स सहित 5.70 करोड़ रुपए अधिक हैं। इस तरह सरकार को प्रतिदिन 2.90 करोड़ टैक्स रहित घाटा होगा। एक महीने में 87 करोड़, एक वर्ष में 1044 करोड़, और तीस वर्षों में 31,220 करोड़ का घाटा होगा और टैक्स समेत यह घाटा इकसठ हजार करोड़ रुपए को पार कर जाएगा।

इक्यावन फीसदी है सरकार की हिस्सेदारी : बाड़मेर के कपूरडी और जालिपा के किसानों की करीब पचास हजार बीघा जमीन अवाप्त हुई हैं, इसका मकसद यहाँ पर कोयला खनन कर कम्पनी को आपूर्ति करनी था। भूमि अवाप्ति के लिए बाड़मेर लिग्नाईट माइनिंग कम्पनी लिमिटेड का गठन किया गया, जिसमे 51 प्रतिशत हिस्सेदारी राज्य सरकार की है। शेष 49 फीसदी भागीदारी राजवेस्ट की है। यहाँ कहने का मतलब यह हैं कि ऊंची दरों पर राजवेस्ट की एसोसिएट फर्म को ठेका देने से होने वाले कुल घाटे में सरकार को इक्यावन फीसदी चूना लगेगा। वही राजवेस्ट को एसोसिएट फर्म से सीधा फायदा ही फायदा होगा।

ठेका निरस्त करने की सिफारिश हुई : राजस्थान इलेक्ट्रीसिटी रेग्युलेटरी कमीशन ने याचिका पर सुनवाई के बाद पिछले वर्ष अगस्त माह में दिए गए निर्णय अनुसार साउथ वेस्ट माइनिंग लि. को दिए गए खनन ठेके को निरस्त करने और नए सिरे से निविदा आमंत्रित कर प्रतिस्पर्धी दरों के आधार पर ठेका देने के निर्देश दिए। हैरत की बात यह हैं कि साउथ वेस्ट माइनिंग लि. कमीशन को न्यायिक क्षेत्र मानने से इनकार करते हुए अभी तक बिना रोक टोक खनन कर रहे हैं। वही सरकार भी इस मामले में चुप्पी साधे हुए हैं, जो काफी संशय पैदा कर रहा है।

कम कीमत पर कोयला उपलब्ध : राजस्थान सरकार के उपक्रम राजस्थान स्टेट माइंस मिनरल्स लि. द्वारा गिरल लिग्नाईट विद्युत तापीय संयत्र में 650 रुपये प्रति मीट्रिक टन की दर से कोयला उपलब्ध करवाया जा रहा हैं, जबकि साउथ वेस्ट माइनिंग लि. टैक्स समेत 1953 रुपए की दर से कोयला उपलब्ध करवा रहा है। इस मामले में जिला कलेक्टर डॉ. वीणा प्रधान कुछ भी बयान देने से इनकार कर रही हैं।

तेज़ाब हमले की शिकार पाकिस्तानी महिला ने 12 सालों बाद की आत्महत्या



एक पूर्व पाकिस्तानी नर्तकी जिसे एक भीषण एसिड हमले के बाद जीवन से संघर्ष करने के लिए छोड़ दिया गया था,ने एक दशक बाद आत्महत्या कर ली।

 

इस एसिड हमले में उसका चेहरा बुरी तरह विकृत हो गया था।

 



33 साल की फखरा यूनुस ने इटली की राजधानी रोम में एक छट्ठे माले की बिल्डिंग से कूद कर अपनी जान दे दी। 12 साल पहले उसपर हुए एसिड हमले में उसका चेहरा इस कदर विकृत हो गया था कि खुद यूनुस का कहना था कि वह देखने में इंसान नहीं लगती है।

 

मई 2000 में उस पर हुए हमले में उसका पूर्व पति बिलाल खार मुख्य अभियुक्त था। खार ने अपनी सास के घर घुसकर सोती हुई यूनुस के चेहरे पर तेज़ाब उढेल दिया था।



खार ने यह हमला यूनुस के उस वक़्त पांच साल के बेटे के सामने किया था। तेज़ाब हमले ने यूनुस को सांस लेने और जीवन से संघर्ष करने में असमर्थ बना दिया था।
 


यूनुस की नाक पूरी तरह से पिघल गई थी और पिछले एक दशक में अपने विकृत चेहरे के इलाज के लिए उसे 39 अगल-अलग शल्यचिकित्सा की प्रक्रियाओं से गुजरना पड़ा था ।



इस भयानक हमले में यूनुस के बाल भी जल गए थे,उसके होंठ पिघलकर एक दूसरे से जुड़ गए थे,उसकी एक आंख की रौशनी जाती रही,बायां कान नष्ट हो गया और उसके स्तन पिघल गए।



जब यूनुस को अस्पताल ले जाया गया था तो उस वक़्त उसने कहा था 'मेरा चेहरा मेरे लिए एक जेल है' जबकि हमले से बुरी तरह से डरे उसके बेटे ने कहा था,'यह मेरी मां नहीं है।'



घटना के बाद अपने इलाज को जारी रखने के लिए और रहने के लिए वह रोम चली गई थी।



लेकिन 17 मार्च को उसने अपनी जिन्दगी खत्म कर ली। अपने छोड़े गए सन्देश में यूनुस ने लिखा कि वह आत्महत्या,अत्याचार पर कानून की चुप्पी और पाकिस्तानी शासकों की असंवेदनशीलता पर कर रही हैं।



बिलाल खार को 2002 मे गिरफ्तार किया गया था और उसपर हत्या के प्रयास का आरोप लगा था। लेकिन पांच महीने बाद ही उसे जमानत पर रिहा कर दिया गया।



खार एक पूर्व सांसद है और एक अमीर पाकिस्तानी राज्यपाल का बेटा है। बाद में उसपर लगाए गए आरोप से वह मुक्त हो गया। हालांकि उसका मामले से बेदाग़ बाहर निकल जाने पर कई लोगों का मानना है कि अपने परिवार का रसूख इस्तेमाल कर वह सजा से बच निकलने में कामयाब रहा ।



यूनुस के दुखद आत्महत्या की खबर आने के बाद भी खार अब भी हमले में किसी तरह से शामिल होने से इनकार कर रहा है। एक टेलीविजन इंटरव्यू में उसने कहा कि उसके नाम के किसी और व्यक्ति ने इस अपराध को अंजाम दिया है। खार ने दावा किया कि उसकी पूर्व पत्नी ने अपने आप को खत्म इसलिए किया क्योंकि उसके पास पर्याप्त रकम नहीं थी,ना कि उसके भयानक चोटों की वजह से।



एक महिला अधिकार संगठन,द औरत फाउंडेशन के मुताबिक पिछले साल पाकिस्तान में 8500 मामले एसिड हमले,जबरन शादी और महिलाओं के खिलाफ दूसरे प्रकार की हिंसा के मामले सामने आए।





पिछले साल पाकिस्तान सरकार ने नए कानून पेश किए जिसके तहत तेजाब हमलों को अपराध माना गया और हमला करने वाला अगर दोषी सिद्ध होता है तो उसे 14 साल की सजा होगी।



बिलाल खार के पिता की पूर्व पत्नी तहमीना दुर्रानी हमले के बाद यूनुस की वकील बन गई थी। उन्होंने कहा कि यूनुस ने इलाज से उबरने के बाद उनसे आग्रह किया था कि उसके हमलावर को सजा दिलाएं।



दुर्रानी ने कहा:'यूनुस ने कहा,'जब मैं वापस आउंगी,मैं केस को दोबारा खोलूंगी,और मैं खुद लड़ूंगी,'वह एक फाइटर थी।'



दुर्रानी ने कहा कि यूनुस का मामला पाकिस्तानी सरकार के लिए एक सबक होना चाहिए कि तेजाब के हमलों को रोकने और महिलाओं के प्रति अन्य प्रकार की हिंसा को रोकने और पीड़ितों की मदद करने के लिए बहुत कुछ किया जाना है।



दुर्रानी ने कहा 'मुझे लगता है कि पूरे देश को अत्यंत शर्मिंदा होना चाहिए कि एक विदेशी देश एक पाकिस्तानी नागरिक की 13 सालों तक जिम्मेदारी ली क्योंकि हम उसे कुछ नहीं दे सकें,न न्याय,न सुरक्षा।'

स्वांगिया माता के मंदिरमे उमड़ता है भक्तों का हुजूम


स्वांगिया माता के मंदिरमे उमड़ता है भक्तों का हुजूम


जैसलमेर। शहर से करीब छह किलोमीटर दूर स्थित गजरूप सागर क्षेत्र में नवरात्रि पर्व के दौरान श्रद्धालुओं की चहल-पहल देखने को मिल रही है। शहर के शोर-शराबे से दूर देवी मां के आश्रय में जो आत्मिक संतोष मिलता है, वह अन्यत्र दुर्लभ है। यही सोचकर इस धार्मिक स्थल पर नौ दिन मां स्वांगिया देवी के मंदिर में श्रद्धालुओं का तांता दिन भर लगा रहता है।

यूं तो गजरूप सागर स्थित स्वांगिया माता के मंदिर को लेकर लोगों में प्रगाढ़ आस्था है और विशेष अवसरों पर लोग यहां सपरिवार दर्शनार्थ पहुंचते हैं, लेकिन नवरात्रि के दिनों में यहां का माहौल अलग ही देखने को मिलता है। यहां हर दिन आयोजित होने वाले धार्मिक कार्यक्रमों में श्रद्धा व आस्था का ऎसा वातावरण तैयार होता है कि लोग भक्ति के रस से सराबोर होने से खुद को नहीं रोक पाते। सुबह व शाम की आरती में देवी के दर्शन करने शहर से बड़ी संख्या में लोग यहां पहुंचते हैं।

पहाड़ी क्षेत्र पर स्थित मंदिर में देवी मां के चमत्कारों पर लोगों का इतना विश्वास है कि वे परेशानियां या विपत्ति आने पर यहां धोक देने पहुंचते हंै और मन मांगी मुराद पूरी होने पर दर्शन करना नहीं भूलते। कई लोग आरती से पहले शहर से पैदल चलकर यहां आते हैं। कालेडूंगराय मंदिर के दर्शन करने के बाद गजरूप सागर माता के दर्शन करने भक्त अवश्य आते हैं। यह मान्यता है कि स्वांगिया माता के आश्रय मे जैसलमेर शहर पूरी तरह से सुरक्षित हैं।

बाड़मेर में 499328 बच्चे

बाड़मेर में 499328 बच्चे

बाड़मेर। जनगणना 2011 के आंकड़ों ने बाड़मेर जिले में बेलगाम बढ़ती आबादी को लेकर चिंतित कर दिया है। जनगणना कहती है कि प्रदेश में छह वर्ष तक के बच्चों की वृद्धिदर में में भी जैसलमेर के बाद बाड़मेर का नंबर आ रहा है। दोनों जिलों में कोई खास फर्क नहीं है। बाड़मेर में वृद्धिदर 19.17 प्रतिशत रही है और जैसलमेर में 19.40 फीसदी। बाड़मेर में 499328 बच्चे छह वर्ष तक की उम्र के है।

सख्त भी हुए
2001 से 2011 तक जनसंख्या वृद्धि पर लगाम के लिए कई नियम सामने आए। दो से ज्यादा बच्चों पर कर्मचारियों की पदोन्नति रोकने, दो से ज्यादा बच्चों पर सरकारी नौकरी की पाबंदी, जनप्रतिनिधियों के लिए दो से ज्यादा बच्चे होने पर चुनाव नहीं लड़ने की पाबंदी लगाई गई है।

सरकारी खर्च दुगुना
परिवार नियोजन के साथ ही जननी सुरक्षा योजना में भी करोड़ों रूपए आबादी को कम करने के ध्येय से खर्च हो रहे है। गांवों में आशा सहयोगिनियों, आंगनबाड़ी कार्यकत्ताüओं की नियुक्ति कर इस कार्यक्रम को गति दी गई है। इसके अलावा नसबंदी का जिले का लक्ष्य ढाई हजार से ग्यारह हजार तक पहुंच गया है। इस सबके बावजूद वृद्धि दर पर नियंत्रण नहीं हो रहा है।

निरक्षता मुख्य कारण
बच्चों की संख्या में इजाफा का मुख्य कारण अशिक्षा है। जिले में अभी तक साक्षरता दर साठ प्रतिशत के करीब है। इसमें भी पढ़े लिखे बीस प्रतिशत ही है,शेष मात्र साक्षर। ऎसे में अस्सी फीसदी लोगों को आबादी नियंत्रण को लेकर समझाना मुश्किल हो रहा है।

हर साल समीक्षा हो
छह वर्ष तक के बच्चों की हर वर्ष समीक्षा हों। आंगनबाड़ी और विद्यालय उचित माध्यम है। वृद्धिदर घटे इसके लिए गांव ढाणी में लगातार जागरूकता रखी जाए। तभी वृद्धिदर का ग्राफ रूकेगा।
- जैसलसिंह खारवाल,सेवानिवृत्त शिक्षक

नई सोच होगी
ज्यादा वृद्धि दर ने जिले में इस बार नई सोच के साथ कार्यक्रम को आगे बढ़ाना होगा। इसके लिए सामाजिक स्थिति व मान्यताओं के साथ चलते हुए कई भ्रम तोड़ने होंगे साथ ही नसबंदी के अलावा अन्य संसाधनों की ओर ध्यान दिया जाएगा। आबादी नियंत्रण पर पूरे प्रयास किए जाएंगे।- डा. अजमल हुसैन,मुख्य चिकित्सा एवं स्वास्थ्य अधिकारी

अब सोच जगी है
वास्तव में लोगोे में छोटे परिवार की सोच अब जगी है। गांव गांव में बच्चों को शिक्षा से जोड़ने की जो रफ्तार सामने आ रही है वह साबित करती है कि आगामी समय में कम बच्चों को लेकर ग्रामीण लोगों की सोच बदलेगी। पिछले दशक में जागरूकता का यह दौर नहीं था।
- डा. गणपतसिंह राठौड़,सेवानिवृत्त चिकित्साधिकारी

28 नर्सिग कॉलेजों पर एसीबी ने मारा छापा

28 नर्सिग कॉलेजों पर एसीबी ने मारा छापा

जयपुर /जोधपुर ।भ्रष्टाचार निरोधक ब्यूरो (एसीबी) ने नर्सिग कॉलेजों के खिलाफ एक माह में दूसरी बड़ी कार्रवाई करते हुए गुरूवार को राज्य के सात जिलों में 28 नर्सिग कॉलेजों में छापे मार कर आकस्मिक जांच की। इनमे जयपुर के सबसे अधिक 10 कॉलेजों समेत जोधपुर के नौ, कोटा के दो, उदयपुर व अलवर के तीन-तीन, भरतपुर के एक कॉलेज की आकस्मिक जांच की।

एसीबी के डीआईजी गोविन्द नारायण पुरोहित ने बताया कि सभी नर्सिग कॉलेजों के मान्यता संबंधित दस्तावेज जब्त किए हैं और मौजूद स्टॉफ, भवन व सुविधाओं का जायजा लिया गया है। कई कॉलेजों में अनियमितताएं मिली हैं। इनको मापदंडों की अनदेखी कर मान्यता दी गई। उल्लेखनीय है कि एसीबी ने करीब दो सप्ताह पहले राज्य के 24 जिलों में 52 नर्सिग कॉलेजों की जांच की थी।

राजधानी में इनकी जांच
मानसरोवर के श्रीविनायक इंस्टीट्यूट एंड मेडिकल टेक्नोलॉजी कॉलेज, विद्याधर नगर के सोनी कॉलेज ऑफ नर्सिग, कालवाड़ रोड पर बियानी कॉलेज ऑफ नर्सिग व कृष्णा स्कूल ऑफ नर्सिग, सांगानेर के राजस्थान कॉलेज ऑफ नर्सिग, कैलाशपुरी के दुर्गा कॉलेज ऑफ नर्सिग व इस कॉलेज की जगतपुरा व जयपुर के पास मनोहरपुर कस्बे में संचालित शाखाओं पर, पालड़ी मीणा के तिलक इंस्टीट्यूट ऑफ नर्सिग मेडिकल साइंसेज, आगरा रोड पर बगराना बस्ती के पास एम.एस. कॉलेज ऑफ नर्सिग व चौमूं के राघव मेडिकल कॉलेज व फुलेरा के कृष्णा स्कूल ऑफ नर्सिग की जांच की गई।

4 वर्ष की डिम्पल को पोलियो!

4 वर्ष की डिम्पल को पोलियो!

ब्यावर (अजमेर)।भले ही डब्ल्यूएचओ ने भारत का नाम पोलियोग्रस्त देशों की सूची से हटा दिया हो, लेकिन इससे इतर अजमेर जिले के ब्यावर में अमृतकौर चिकित्सालय में डिम्पल (4) के कथित रूप से पोलियो के लक्षण मिले हैं।

चिकित्सालय के पल्स पोलियो प्रभारी डॉ. मनोहर गुरनानी ने बताया कि बालिका के रक्त व मल के नमूने अहमदाबाद प्रयोगशाला जांच के लिए भिजवा दिए हैं। रिपोर्ट आने के बाद ही स्थिति साफ हो सकेगी। डिम्पल बलाड़ रोड स्थित शिव कॉलोनी में रहती है।

लड़खड़ाते हुए गिर पड़ी
डिम्पल गत 21 मार्च को घर में खेलते वक्त गिर गई। इस पर मां राधा ने उसके पैरों की मालिश की। अगले ही दिन डिम्पल बाथरूम में गिर गई और बुखार भी चढ़ा। जांच में चिकित्सक को डिम्पल के पैरों व हाथों की पकड़ कुछ कम होने के लक्षण दिखे और उसे अमृतकौर रेफर कर दिया।

टूट गया तंत्र-मंत्र का तिलिस्म, पाखंड का पर्दाफाश



गुड़गांव.सीआईए सेक्टर- 46 द्वारा गिरफ्तार किए गए बाबा खान बंगाली ने घरेलू कलह से निजात दिलाने के नाम पर 11 तोले सोने के जेवरात हड़पे थे। पुलिस की पूछताछ में गुरुवार को यह खुलासा हुआ। इतना देने के बाद भी घर में कलह नहीं हुई तो पीड़ित को अहसास हुआ कि उसे ठगा गया है।
 


बंगाली बाबा को गिरफ्तार करने वाले राजबीर सिंह के मुताबिक सेक्टर-चार निवासी सुरेंद्र यादव लोकल टीवी चैनल पर कार्यक्रम में विज्ञापन देखकर बाबा के पास पहुंचे थे। सारी बात सुनने के बाद बाबा ने सुरेंद्र को विश्वास दिलाया कि उसके घर में रखा 11 तोले सोना ही सारे विवाद की जड़ है। उसने कहा कि सोने को उसके पास ले आओ और शुद्ध करने के बाद ले जाना। बाबा की भक्ति में लीन सुरेंद्र ने सोना सौंप दिया।



उसके बाद भी जब घर में कलह खत्म नहीं हुई तो उसने सोना वापस मांगा। बाबा उसे दिलासा देता रहा कि सोना शुद्ध करने के लिए बाहर भेजा गया है। बाद में वह सोना लेने की बात से ही मुकर गया और जान से मारने की धमकी देने लगा। सुरेंद्र को महसूस हुआ कि उसके साथ ठगी हुई। फिर उसने पुलिस को शिकायत दी। फिलहाल पुलिस बाबा की निशानदेही पर उत्तर प्रदेश में कई स्थानों पर छापेमारी कर रही है।

नैनी बाई रो मायरो कथा एक से


नैनी बाई रो मायरो कथा एक से

बाड़मेर गौ माता की रक्षार्थ बाड़मेर में 'नानी बाई रो मायरो' का आयोजन गौ सेवा के लिए साधन नहीं बल्कि साध्य है।' यह बात कथा आयोजन समिति के आलोक सिंहल ने गुरूवार को पत्रकार वार्ता में कही। श्री गोधाम महातीर्थ पथमेड़ा की ओर से निराश्रित व पीडि़त गोवंश की सेवार्थ एक से तीन अप्रैल तक होने वाली कथा के आयोजन के बारे में जानकारी देते हुए सिंहल ने बताया कि गाय हमारी संस्कृति की प्रतीक है, इसके संरक्षण एवं संवद्र्धन के लिए समाज को आगे आने की आवश्यकता है। इसी को लेकर बाड़मेर शहर में पहली बार गोसेवार्थ कार्यक्रम का आयोजन करवाया जा रहा है। इसके लिए शहर समेत ग्रामीण इलाकों में अब तक पंद्रह हजार निमंत्रण-पत्र भेजे जा चुके हैं। कार्यक्रमों की कड़ी में प्रतिदिन शहर के प्रमुख मार्गों से प्रभात फेरी निकाली जाएगी। दोपहर 2:30 से शाम 6 बजे तक गोवत्स बालव्यास राधाकृष्ण महाराज मधुर वाणी से मायरे की कथा का वाचन करेंगे। सिंहल ने बताया कि कथा का संस्कार चैनल पर सीधा प्रसारण किया जाएगा। कथा के आयोजन को लेकर सभी तैयारियों को अंतिम रूप दिया जा रहा है। स्वामी रामकिशोराचार्य महाराज ने कहा कि गोमाता की सेवार्थ बाड़मेर में होने वाला कार्यक्रम हजारों निराश्रित गायों को जीवन प्रदान करेगा। इस दौरान अमरचंद सिंहल, रणवीर भादू, हनुमानाराम डऊकिया, दिलीप तिवाड़ी, मोहनलाल गोयल समेत आयोजन समिति से जुड़े कई पदाधिकारी भी मौजूद थे। इसी प्रकार गोधाम महातीर्थ पथमेड़ा शाखा की ओर से निराश्रित एवं पीडि़त गोवंश सेवार्थ तीन दिवसीय नैनी बाई रो मायरो कथा का आयोजन एक से तीन अप्रेल तक वृंदावन धाम में होगा। कथा का वाचन राधा कृष्ण महाराज करेंगे। कथा के सफल आयोजन को लेकर गुरुवार को समिति के संयोजक स्वामी राम किशोराचार्य गुड़ामालानी, सह संयोजक ब्रज भारती मठ सिणधरी के स्वामी रुघनाथ भारती महाराज के सान्निध्य में बैठक आयोजित हुई। बैठक में सफल आयोजन को लेकर स्वागत समिति, व्यवस्था समिति मंच सजावट सहित कई समितियों का गठन कर जिम्मेवारी सौंपी गईं।

निर्मल बाबा की लोकप्रियता

निर्मल बाबा की लोकप्रियता में अचानक आयी वृद्धि आश्‍चर्यजनक है। आज की तारीख में सिर्फ बाबा रामदेव ही लोकप्रियता में उनसे मुकाबला कर सकते हैं। उनकी लोकप्रियता के पीछे कोई ‘दिव्‍य शक्ति’ है, जो कथित तौर पर उनमें पायी जाती है। उनका कहना है कि उनकी छठी इंद्रियां सक्रिय हैं। साथ ही उनका यह भी दावा है कि बिना किसी व्‍यक्तिगत संपर्क के वे हर मर्ज की दवा कर सकते हैं। चाहे वह कैंसर हो या एड्स। वह अपने वशीकरण मंत्र के असर को लेकर इतने आश्‍वस्‍त हैं कि कहते हैं कि ब्रह्मांड के किसी भी हिस्‍से में रह रहे आदमी की सोच पर वह अधिकार जमा सकते हैं। और सबसे जरूरी और चौंकाने वाली बात कि कई लोगों को यह कहते पाएंगे कि निर्मल बाबा के आशीर्वाद ने उनकी जिंदगी को चमत्‍कारों से भर दिया।

फर्जी दत्तक पुत्र बन दो लोगों ने हड़प ली जमीन!

दत्तक पुत्र बन दो लोगों ने हड़प ली जमीन!फर्जी 
बालोतरा. कुंवारे व नि:संतान व्यक्ति की मौत के बाद उसके नाम की जमीन हड़पने के लिए दस्तावेज तैयार कर फर्जी दत्तक पुत्र बनने का मामला प्रकाश में आया है। जसोल नायब तहसीलदार की ओर से उपखंड अधिकारी बालोतरा को सौंपी गई जांच रिपोर्ट में यह खुलासा हुआ है।

रिपोर्ट में बताया गया कि जमीन हड़पने की नीयत से दो व्यक्तियों ने फर्जी तरीके से दत्तक पुत्र बनकर 36 बीघा 3 बिस्वा जमीन का नामांतरण अपने नाम करवा दिया। इतना ही नहीं इसमें से कुछ सिंचित जमीन को उन्होंने आगे बेच भी दिया। यह मामला कलेक्टर के पास सतर्कता समिति में भी चल रहा है।

क्या है मामला: सराणा के खसरा नं. 408, 414, 415, 813,796 कुल रकबा 72 बीघा 6 बिस्वा में खतौनी बंदोबस्त के अनुसार शंकर पुत्र चतरिंग के नाम 1/2 की खातेदारी दर्ज है। शंकर पुत्र चतरिंग पुरोहित की बेऔलाद मौत हो गई। वह सराणा की जगह किलूलिया तहसील सांचौर जिला जालोर में रहता था।



शंकर की अंधी माता इमरती बाई सराणा में अपने भाईयों के घर रहती थी, उसकी भी मृत्यु हो गई। उसके बाद गांव के जबरा उर्फ जबरसिंह पुत्र कोजाजी व माला उर्फ मालाराम पुत्र मिसराजी ने भूमि हड़पने की नीयत से राजस्व विभाग के कर्मचारियों से मिलीभगत कर मृतक शंकर के फर्जी गोदपुत्र बनकर जमीन का नामांतरण अपने नाम करवा दिया। उल्लेखनीय है कि इसी खसरे में 1/4 के हिस्सेदार पेमा पुत्र फूला के बेऔलाद होने पर उसके नाम की जमीन खारिज हो चुकी है, जो सरकार के नाम दर्ज हो चुकी है।

गुरुवार, 29 मार्च 2012

राजस्थान में संस्कृति अकैडमी पुरस्कारों की घोषणा

जयपुर।। राजस्थान भाषा साहित्य और संस्कृति अकैडमीने वर्ष 2011 - 12 के पुरस्कारों की घोषणा की है।अकैडमीके प्रेजिडेंट श्याम महर्षि ने बताया कि 2011 - 12 के लिए31 हजार का प्रतिष्ठित ' सूर्यमल्ल मिसण शिखर पुरस्कार 'बीकानेर के साहित्यकार शिवराज छंगाणी को उनकी पुस्तक' इक्कड़ वक्कड़ ' के लिए दिया गया। पद्य के लिए 15 हजाररुपये का ' गणेशलाल व्यास उस्ताद पुरस्कार ' प्रवासी राजस्थानी साहित्यकार मधुकर गौड (मुंबई) को उनकीपुस्तक ' गीतां री पांण ' के लिए दिया जाएगा।  
उन्होंने बताया कि निबंध , एकांकी, नाटक , यात्रा संस्मरणव्यंग्य और रेखाचित्र विषय से जुड़ा 15 हजार रुपये का 'शिवचंद भरतिया गद्य पुरस्कार ' उदयपुर के हरमन चौहानको उनकी पुस्तक ' लखणा रा लाडा ' के लिए दिया गया।15 हजार रुपये का ' मुरलीधर व्यास राजस्थानी कथासाहित्यकार पुरस्कार ' के लिए डूंगरगढ़ के श्रीभगवान सैनी की पुस्तक ' भेख ' को दिया गया। महर्षि के अनुसारअनुवाद के क्षेत्र में दिए जाने वाला 7500 रुपए का ' बाववजी चतुरसिंह जी अनुवाद पुरस्कार ' कोटा के ओमनागर को उनकी अनुवाद पुस्तक ' जनता बावली होगी ' के लिए प्रदान दिया जाएगा।

महर्षि ने बताया कि लेखक की प्रथम कृति के लिए 7500 रुपये के ' सांवर दइया पैली पोथी पुरस्कार ' से जयपुरके कवि दुष्यंत को उनकी कृति ' उठै है रेत राग ' के लिए पुरस्कृत किया गया। ' राजस्थान बाल साहित्यकारपुरस्कार ' अकोला (चित्तौड़गढ़) के राजकुमार जैन ' राजन ' को उनकी बाल साहित्य की पुस्तक ' लाडेसर बणज्यावां ' के लिए दिया जाएगा।

विकलांग लड़की की पत्थर से शादी!

फतेहपुर इस वैज्ञानिक युग में भी समाज को अंधविश्वास की जकड़न से छुटकारा नहीं मिल पाया है। समाज को झकझोर देने वाला अंधविश्वास का नया मामला उत्तर प्रदेश में फतेहपुर जनपद के एक गांव का है, जहां एक पिता अपनी विकलांग बेटी की शादी पत्थर से तय कर निमंत्रण पत्र भी बांट चुका है। शादी की सभी तैयारियां पूरी कर ली गई हैं और गांव के देवी मंदिर में इसके लिए अनुष्ठान भी शुरू हो चुका है। marraige-new.jpg 
फतेहपुर जिले के जाफरगंज थाने के परसादपुर गांव की गौरा देवी मंदिर में यज्ञ और कर्मयोगी श्रीकृष्ण की रासलीला का मंचन किया जा रहा है। इसी यज्ञ के पंडाल में एक अप्रैल को गांव के बालगोविंद त्रिपाठी मानसिक एवं शारीरिक रूप से कमजोर अपनी बेटी की शादी मंदिर के एक पत्थर के साथ हिंदू रीति-रिवाज से रचाएंगे। इसके लिए उन्होंने बाकायदा निमंत्रण पत्र छपवा कर इलाके के गणमान्य व अपने रिश्तेदारों में बांटा भी गया है। हैरानी की बात यह है कि निमंत्रण पत्रों में सभी वैवाहिक कार्यक्रम उत्तर प्रदेश के लखनऊ सचिवालय में तैनात एक कर्मचारी राजेश शुक्ल द्वारा सम्पन्न कराए जाने का जिक्र है।

त्रिपाठी का कहना है कि वह अपनी बेटी की शादी मंदिर के पत्थर के साथ इसलिए करने जा रहे हैं, ताकि वह अगले जन्म में विकलांग पैदा न हो। ग्रामीण जगन्नाथ का कहना है कि पत्थर के साथ शादी रचाने की यह पहली घटना है। कुछ दिन पूर्व भी त्रिपाठी ने ऐसी कोशिश की थी लेकिन गांव वालों के दबाव में वह सफल नहीं हो पाए थे। मकसद में कामयाब होने के लिए ही अबकी बार उन्होंने सचिवालय के कर्मचारी को आगे किया है, ताकि पुलिस कार्रवाई न हो सके।

बिंदकी के उप-प्रभागीय मजिस्ट्रेट (एसडीएम) डॉ. विपिन कुमार मिश्र ने बताया, 'मुझे इसके बारे में जानकारी मिली है और मैंने जाफरगंज थानाध्यक्ष को कार्रवाई के निर्देश दिए हैं।'

जाफरगंज के पुलिस क्षेत्राधिकारी (सीओ) सूर्यकांत त्रिपाठी ने बताया, 'यह समाज का फैसला है, इसके लिए क्या कहा जाए। पत्थर से शादी हो सकती है या नहीं, यह जिले के अधिकारी बताएंगे।' थानाध्यक्ष जाफरगंज मनोज पाठक ने कहा, 'एसडीएम का निर्देश मिल चुका है, गांव जाकर जांच पड़ताल की जाएगी। बेजान या पशुओं से किसी की शादी रचाना कानूनन अपराध है।'

इस घटना से एक बात स्पष्ट है कि आधुनिक कहे जाने वाले समाज में ऐसे चेहरे भी मौजूद हैं, जो अंधविश्वास में भरोसा करने की बड़ी भूल कर रहे हैं। यदि निमंत्रण पत्रों में सचिवालय कर्मी का नाम उसकी इजाजत पर छपा है तो मामला और संगीन बन जाता है।

नशे में फोन पर दिया तलाक भी जायज

नशे में फोन पर दिया तलाक भी जायज

नई दिल्ली। दारूल उलूम देवबंद ने फतवा जारी किया है कि नशे की हालत में फोन पर दिया गया तलाक वैध होगा। यह फतवा 13 मार्च को जारी किया गया। एक शख्स ने पूछा था कि क्या नशे की हालत में फोन पर दिया जाने वाला तलाक वैध है। अगर वैध है तो ऎसी परिस्थिति में क्या करना चाहिए? इस शख्स के मुताबिक हाल ही में उसके जीजा ने नशे की हालत में फोन पर उसकी बहन को तलाक दे दिया था। लेकिन जब मेरे जीजा का नशा उतरा तो उसे अपनी गलती का अहसास हुआ।

अब वह मेरी बहन से रिश्ता रखना चाहता है। दारूल इफ्ता ने अपने जवाब में कहा कि अगर किसी ने महिला को तीन बार तलाक-तलाक कह दिया तो वह महिला पति के लिए हराम हो जाती है। अब आपकी बहन की फिर से उसी शख्स से शादी वैध हल्लाह के तहत ही हो सकती है। हल्लाह के तहत उस औरत को किसी और से शादी करनी होगी। इसके बाद उसका पति उसे तलाक देगा या फिर उसकी मृत्यु हो जाती है तो फिर वह पुराने पति से निकाह कर सकती है।

ISI की भारत में विस्फोटकों का जखीरा भेजने की साजिश!

जैसलमेर। पाकिस्तान की खुफिया एजेंसी इन्टर सर्विसेज इन्टेलीजेंस (आईएसआई) के राजस्थान के रेतीले टीलों से लगती अन्तरराष्ट्रीय सीमा से हथियार और विस्फोटकों का जखीरा भारत भेजने की साजिश का खुलासा हुआ है।


विश्वसनीय सूत्रों ने बताया कि मुंबई एटीएस के सीमा पार से भेजे गए एक संदेश से पता चला है कि आईएसआई के भारत में मौजूद अपने एक एजेंट को इस बारे में जानकारी दी है कि विस्फोटकों और हथियारों का जखीरा राजस्थान सीमा से भिजवाया जा रहा है।

सूत्रों ने बताया कि इस संदेश के बाद सीमा सुरक्षा बल को सतर्क कर दिया गया है और सीमावर्ती पुलिस थानों को भी सजग रहने के निर्देश दिए गए हैं। इस बारे में संपर्क किये जाने पर जोधपुर रेंज के पुलिस महानिरीक्षक उमेश मिश्रा ने बताया कि सीमा पार से हथियार भेजने की बातचीत को मुंबई एटीएस ने इंटरसेप कर पुलिस महानिदेशक राजस्थान को इस बारे में सूचना भेजी है।

उन्होंने बताया कि जैसलमेर और बाडमेर पुलिस को सतर्कता बढाने को कहा गया है और सीमावर्ती थानों को चौकसी बढाने के साथ ही संदिग्धों पर निगरानी रखने के निर्देश दिए गए हैं।

बीएसएफ के सूत्रों ने बताया कि सीमा पर तैनात प्रहरियों को अलर्ट कर दिया गया है औऱ सीमा पर पैनी निगाह रखने के साथ रात्रिकालीन गश्त बढा दी गई है।

राजस्थान दिवस बाड़मेर से एक साथ उठेगी राजस्थानी को मान्यता की आवाज


अखिल भारतीय राजस्थानी भाषा मान्यता संघर्ष समिति बाड़मेर

 राजस्थान दिवस बाड़मेर से एक साथ उठेगी राजस्थानी को मान्यता की आवाज

‘राजस्थानी रै बिना गूंगो राजस्थान’ का लगेगा नारा, कार्यकर्त्ता देंगे तहसील व जिला मुख्यालयों पर बारह बजे ज्ञापन

राजस्थान दिवस के अवसर पर 30 मार्च को राजस्थानी भाषा को मान्यता की आवाज

प्रदेशभर से एक साथ उठेगी।



बाड़मेर अखिल भारतीय राजस्थानी भाषा मान्यता संघर्षसमिति की ओर सेराजस्थान दिवस पर बाड़मेर जिला मुख्यालय सहित सभी उपखंड मुख्यालयों पर राजस्थानी भाषा को मान्यता देने की मांग को लेकर ज्ञापन

दिए जाएंगे। इसके लिए संघर्ष समिति के बी डी चारण ,अनिल वैष्णव को बालोतरा ,महावीर जीनगर को बायतु ,के एस दाखा को सिवाना बाबूलाल मंजू को गुडा मालानी रहमान जायादू को चौहटन नेपाल सिंह कोटडा को शिव का प्रभार सोंपा गया हें जिला मुख्यालय पर जिला संयोजक चन्दन सिंह भाटी,मोटियार परिषद् के पाटवी रघुवीर सिंह तामलोर ,डॉ लक्ष्मी नारायण जोशी अनिल सुखानी श्रीमती देवी चौधरी श्रीमती उर्मिला जैन रमेशा सिंह इन्दा ,एडवोकेट विजय कुमार ,रमेश गौड़ को जिम्मेदारिया दे गयी हें ,

समिति के समिति के संयोजक चन्दन सिंह भाटी के अनुसार इसदिन ‘राजस्थानी रै बिना गूंगो राजस्थान’ संघर्ष का मुख्य नारा रहेगा तथासभी कार्यकर्त्ता ज्ञापन सौंपते वक्त यह नारा लिखी मुखपत्ती अपने मुख परलगाए रखेंगे। संघर्ष समिति के सभी घटक राजस्थानी मोट्यार परिषद,राजस्थानी महिला परिषद, राजस्थानी चिंतन परिषद, राजस्थानी फिल्म परिषद,राजस्थानी खेल परिषद, राजस्थानी लोक कलाकार परिषद तथा मातृभाषा राजस्थानीछात्र मोर्चा के कार्यकर्ता इसमें सक्रिय भूमिका निभाएंगे औरप्रधानमंत्री व केन्द्रीय गृहमंत्री के नाम राजस्थानी भाषा को संवैधानिकमान्यता की मांग के ज्ञापन दोपहर बारह बजे जिला कलेक्टर को देंगे। साथ ही केन्द्रीय सूचना एवं प्रसारणमंत्री अंबिका सोनी के नाम राजस्थान दूरदर्शन का नाम डीडी राजस्थान सेडीडी राजस्थानी करने तथा मुख्यमंत्री अशोक गहलोत के नाम राजस्थानी भाषा,साहित्य, संस्कृति व शिक्षा को बढ़ावा दिए जाने संबंधी 17 सूत्री ज्ञापनभी दिए जाएंगे।

बाघा भारमली की अमर प्रेम कहानी की



राजस्‍थान लोक साहित्‍य में विशिष्‍ट स्‍थान है

 बाघा भारमली की अमर प्रेम कहानी की

बाड़मेर: प्रेम की कथा अकथ है, अनिवर्चनीय है। फिर भी प्रेम कथा विविध प्रकार से कही जाती है, कही जाती थी और कही जाएगी। थार के इस रेगिस्‍तान में कई प्रेम गाथाओं ने जन्म लिया होगा, मगर बाघा-भारमली की प्रेम कथा राजस्थान के लोक साहित्य में अपना विशिष्ट स्थान रखती है।

समाज और परम्पराओं के विपरित बाघा भारमली की प्रेम कथा बाड़मेर के कण-कण में समाई है। इस प्रेम कथा को रुठी रानी में अवश्य विस्तार मिला है। मगर, स्थानीय तौर पर यह प्रेम कथा साहित्यकारों द्वारा अपेक्षित हुई है। हालांकि, चारण कवियों ने अपने ग्रन्थों में इस प्रेम कथा का उल्लेख अवश्य किया है। कोटड़ा के किले से जो प्रेम कहानी निकली, वह बाघा-भारमली के नाम से अमर हुई।

मारवाड़ के पश्चिमी अंचल बाड़मेर-जैसलमेर से सम्बन्धित यह प्रणय वृतान्त आज भी यहां की सांस्कृतिक परम्परा एवं लोक-मानस में जीवन्त है। इस प्रेमगाथा का नायक बाघजी राठौड़ बाड़मेर जिले के कोटड़ा ग्राम का था। उसका व्यक्तिव शूरवीरता तथा दानशीलता से विशेष रूप से सम्पन्न था। जैसलमेर के भाटियों के साथ उसके कुल का वैवाहिक संबंध होने के कारण वह उनका समधी (गनायत) लगता था।

कथा की नायिका भारमली जैसलमेर के रावल लूणकरण की पुत्री उमादे की दासी थी। 1536 ई में उमा दे का जोधपुर के राव मालदेव (1531-62ई) से विवाह होने पर भारमली उमा दे के साथ ही जोधपुर आ गई। वह रुप-लावण्य तथा शारीरिक-सौष्ठव में अप्सराओं जैसी अद्वितीय थी।

विवाहोपरान्त मधु-यामिनी के अवसर पर राव मालदेव को उमा दे रंगमहल में पधारने का अर्ज करने हेतु गई दासी भारमली के अप्रतिम सौंदर्य पर मुग्ध होकर मदमस्त राव जी रंगमहल में जाना बिसरा भारमली के यौवन में ही रम गये। इससे राव मालदेव और रानी उमा दे में ‘रार’ ठन गई, रानी रावजी से रुठ गई। यह रुठन-रार जीवनपर्यन्त रही, जिससे उमा दे ‘रुठी रानी’ के नाम से प्रसिद्व हुईं।

राव मालदेव के भारमली में रत होकर रानी उमा दे के साथ हुए विश्वासघात से रुष्ट उसके पीहर वालों ने अपनी राजकुमारी का वैवाहिक जीवन निर्द्वन्द्व बनाने हेतु अपने योद्वा ‘गनायत’ बाघजी को भारमली का अपहरण करने के लिए उकसाया। भारमली के अनुपम रुप-यौवन से मोहित हो बाघजी उसका अपहरण कर कोटड़ा ले आया एवं उसके प्रति स्वंय को हार बैठा। भारमली भी उसके बल पौरुष हार्द्विक अनुसार के प्रति समर्पित हो गई, जिससे दोनों की प्रणय-वल्लरी प्रीति-रस से नित्‍य प्रति सिंचित होकर प्रफुल्ल और कुसुमित-सुरभित होने लगी।

इस घटना से क्षुब्ध राव मालदेव द्वारा कविराज आसानन्द को बाघाजी को समझा-बुझा कर भारमली को लौटा लाने हेतु भेजा गया। आसानन्द के कोटड़ा पहुंचने पर बाघ जी तथा भारमली ने उनका इतना आदर-सत्कार किया कि वे अपने आगमन का उद्देश्य भूल वहीं रहने लगे। उसकी सेवा-सुश्रूषा एवं हार्दिक विनय-भाव से अभिभूत आसाजी का मन लौटने की बात सोचता ही नहीं था। उनके भाव विभोर चित्त से प्रेमी-युगल की हृदयकांक्षा कुछ इस प्रकार मुखरित हो उठी-

‘जहं तरवर मोरिया, जहं सरवर तहं हंस।
जहं बाघो तहं भारमली, जहं दारु तहं मंस।।’

उसके बाद आसानन्‍द, बाघजी के पास ही रहे। इस प्रकार बाघ-भारमली का प्रेम वृतान्त प्रणय प्रवाह से आप्‍लायित होता रहा। बाघजी के निधन पर कवि ने अपना प्रेम तथा शोक ऐसे अभिव्यक्त किया-

‘ठौड़ ठौड़ पग दौड़, करसां पेट ज कारणै।
रात-दिवस राठौड़, बिसरसी नही बाघनै।।’

जब एक वेश्या टीलों ने बनवाया ऐतिहासिक तालाब का प्रवेश द्वार


जब एक वेश्या टीलों ने बनवाया ऐतिहासिक तालाब का प्रवेश द्वार

जैसलमेर’देश के सबसे अंतिम छोर पर बसी ऐतिहासिक स्वर्ण नगरी ‘जैसलमेर’ सारे विश्व में अपनी स्थापत्य कला के लिए प्रसिद्ध है। रेत के समंदर में बसे जैसल में तब दूर-दूर तक पानी का नामोनिशान तक न था। राजा और प्रजा बेसब्री से वर्षाकाल का इंतज़ार करते थे। वर्षा के पानी को एकत्र करने के लिए वि. सं. 1391 में जैसलमेर के महारावल राजा जैसल ने किले के निर्माण के दौरान एक विशाल झील का निर्माण करवाया, जिसे बाद में महारावल गढ़सी ने अपने शासनकाल में पूरा करवाकर इसमें पानी की व्यवस्था की। जिस समय महारावल गढ़सी ने इसका पुनर्निर्माण करवाया था उन्हीं दिनों एक दिन धोखे से कुछ राजपूतों ने ही उनकी हत्या झील के किनारे ही कर दी थी। तब तक यह विशाल तालाब ‘गढ़सीर’ के नाम से विख्यात था जो बाद में ‘गढ़ीसर’ के नाम से प्रसिद्ध हो गया।
जैसलमेर शहर के दक्षिण पूर्व में स्थित यह विशाल तालाब अत्यंत ही कलात्मक व पीले पत्थरों से निर्मित है। लबालब भरे तालाब के मध्य पीले पत्थरों से बनी राव जैसल की छतरी पानी में तैरती-सी प्रतीत होती है। गढ़ीसर तालाब 120 वर्ग मील क्षेत्रफल की परिधि में बना हुआ है जिसमें वर्षा के दिनों में चारों तरफ से पानी की आवक होती है। रजवाड़ों के शासनकाल में इसके मीठे पानी का उपयोग आम प्रजा व राजपरिवार किया करते थे। यहां के जल को स्त्रियां बड़े सवेरे सज-धज कर समूहों में लोकगीत गाती हुई अपने सिरों पर देगड़े व चरियां भर कर दुर्ग व तलहटी तक लाती थीं।
एक बार वर्षाकाल में मूसलाधार बारिश होने से गढ़सी तालाब लबालब भर गया और चारों तरफ रेगिस्तान में हरियाली छा गई। इससे राजा व प्रजा इतने रोमांचित हो उठे कि कई दिन तक जैसलमेर में उत्सव-सा माहौल रहा, लेकिन इसी बीच एक दु:खद घटना यह घटी कि अचानक तालाब के एक ओर की पाल ढह गई व पूरे शहर में पानी भर जाने के खतरे से राजा व प्रजा में भय व्याप्त हो गया। सारी उमंग खुशियां काफूर हो गयीं। उन दिनों जैसलमेर के शासक केसरी सिंह थे।
महारावल केसरी सिंह ने यह दु:खद घटना सुनते ही पूरे नगर में ढिंढोरा पिटवाकर पूरी प्रजा को गढ़सी तालाब पर पहुंचने का हुक्म दिया व स्वयं भी हाथी पर सवार हो तालाब पर पहुंच गए। लेकिन इस बीच उन्होंने अपने नगर के समस्त व्यापारियों से अपने-अपने गोदामों से रूई के भरे बोरों को लेकर आने को कहा। रूई से भरी अनेक गाडिय़ां जब वहां पहुंचीं तो राव केसरी ने अपनी सूझ-बूझ से सबसे पहले बढ़ते पानी को रोकने के लिए हाथियों को कतारबद्ध खड़ा कर दिया और प्रजा से धड़ाधड़ रूई से भरी बोरियां डलवाकर उसके ऊपर रेत की तंगारियां डलवाते गए। देखते ही देखते कुछ ही घंटों में तालाब की पाल को फिर से बांध दिया गया तथा नगर को एक बड़े हादसे से बचा लिया गया।
ऐतिहासिक गढ़ीसर तालाब को बड़े हादसे से भले ही बचा लिया गया लेकिन इसे एक बदनामी के सबब से कोई नहीं बचा सका, क्योंकि यह आज भी एक ‘बदनाम झील’ के नाम से जानी जाती है। गढ़ीसर तालाब दिखने में अत्यंत ही कलात्मक है क्योंकि इस तालाब पर स्थापत्य कला के दर्शन होते हैं। तालाब के पत्थरों पर की गई नक्काशी, बेल-बूटों के अलावा उन्नत कारीगरी, बारीक जालीदार झरोखे व तक्षण कला के नमूने हैं।
गढ़ीसर तालाब को और भी भव्यता प्रदान करने के लिए इसके ‘प्रवेश द्वार’ को यहीं की एक रूपगर्विता टीलों नामक वेश्या ने बनवाया था जिससे यह ‘वेश्या का द्वार’ के नाम से पुकारा जाता है। यह द्वार टीलों ने संवत 1909 में निर्मित करवाया था। लावण्य व सौंदर्य की मलिका टीलों वेश्या के पास बेशुमार दौलत थी जिसका उपयोग उसने अपने जीवनकाल में सामाजिक व धार्मिक कार्यों में किया। टीलों की सामाजिक व धार्मिक सहिष्णुता से बड़े-बड़े व्यापारी, सोनार व धनाढ्य वर्ग के लोग भी प्रभावित थे।
वेश्या टीलों द्वारा बनाये जा रहे द्वार को देखकर जब स्थानीय लोगों में यह कानाफूसी होने लगी कि महारावल के होते हुए भला एक वेश्या तालाब का मुख्य द्वार क्यों बनवाये। बड़ी संख्या में नगर के बाशिंदे अपनी फरियाद लेकर उस समय की सत्ता पर काबिज महारावल सैलन सिंह के पास गये। वहां पहुंच कर उन्होंने महारावल के समक्ष रोष प्रकट करते हुए कहा कि महारावल, टीलों गढ़ीसर तालाब का द्वार बनवा रही है और वह पेशे से वेश्या है। आम जनता को उस बदनाम औरत के बनवाये द्वार से गुजर कर ही पानी भरना पड़ेगा, इससे बढ़कर शर्म की बात और क्या होगी? कहा जाता है कि महारावल सैलन सिंह ने प्रजा की बात को गंभीरता से सुनने के बाद अपने मंत्रियों से सलाह-मशविरा कर तुरंत प्रभाव से ‘द्वार’ को गिराने के आदेश जारी कर दिये।
लेकिन उस समय तक ‘मुख्य द्वार’ का निर्माण कार्य अपने अंतिम चरण में पहुंच चुका था। जैसे ही टीलों को महारावल सैलन सिंह के आदेश की भनक लगी तो उसने भी अपनी सूझबूझ व बड़ी चालाकी से अपने समर्थकों की सहायता से ‘मुख्य द्वार’ के ऊपर भगवान विष्णु का मंदिर हाथों-हाथ बनवा दिया। मंदिर चूंकि हिन्दुओं की भावना व श्रद्धा का प्रतीक साबित हो गया, अत: किसी ने भी मुख्य द्वार को तोडऩे की हिम्मत न जुटायी। अंतत: वेश्या टीलों द्वारा बनाया गया भव्य कलात्मक द्वार बच गया, लेकिन हमेशा-हमेशा के लिए ऐतिहासिक स्वर्ण नगरी जैसलमेर में गढ़ीसर तालाब के मुख्यद्वार के साथ वेश्या ‘टीलों ’ का नाम भी जुड़ गया।
गढ़ीसर तालाब का मुख्य द्वार गढ़ाईदार पीले पत्थरों से निर्मित है लेकिन इसके ऊपर की गई बारीक कारीगरी जहां कला का बेजोड़ नमूना है वहीं कलात्मक अलंकरण व पत्थरों पर की गई खुदाई विशेष रूप से चिताकर्षक है। जैसलमेर आने वाले हज़ारों देशी-विदेशी सैलानी ऐतिहासिक नगरी व रेत के समंदर में पानी से भरी सागर सदृश्य झील को देखकर रोमांचित हो उठते हैं।

सिन्धु नदी तंत्र ... थार के प्यासे मरुस्थल तक हिमालय का पानी ले आये


सिन्धु नदी तंत्र और राजस्थान




जिस गति से देश में पानी का संकट गहराता जा रहा है, वह निश्चय ही राष्ट्रीय विकास नीति निर्धारकों के समक्ष एक अहम मुद्दा बनता जा रहा है और समय रहते हुए जल नियोजन के लिए सटीक प्रयास नहीं किए गये तो राष्ट्रीय विकास गति मन्थर पड़ जाएगी, यद्यपि यह निश्चित है कि बदली हुई पर्यावरणीय दशाओं के कारण समाप्त हुए भू-जल स्रोतों का पुनर्भरण तो नहीं हो सकता किन्तु जल की खपत को नियंत्रित कर उसके विकल्प तलाशे जा सकते हैं, जैसे कठोर जनसंख्या नियंत्रण, शुष्क-कृषि पद्धतियां एवम् जल उपयोग के लिए राष्ट्रीय राशनिंग नीति इत्यादि। साथ ही के. एल. राव (1957)द्वारा सुझाए गए नवीन नदी प्रवाह ग्रिड सिस्टम का अनुकरण एवम् अनुसंधान कर हिमालियन एवम् अन्य नदियों को मोड़ कर देश के आन्तरिक जल न्यून वाले सम्भागों की ओर उनके जल को ले जाया जा सकता है। सम्प्रति देश की समस्त नदियों के जल का 25 प्रतिशत भाग ही काम में आता है। शेष 75 प्रतिशत जल समुद्र में गिर कर सारा खारा हो जाता है।

नदियों के मार्ग बदलना आधुनिक तकनीकी कौशल में कोई असम्भव कार्य नहीं है। केवल उत्तम राष्ट्रीय चरित्र के साथ दृढ़ संकल्प की आवश्यकता है। उदाहरणार्थ ब्रह्मपुत्र नदी में ही इतना पानी व्यर्थ बहता है कि उसके 10 प्रतिशत पानी को भारत भूमि के मध्य से गुजरने के लिए बाध्य कर दिया जाए तो देश के समस्त जल संकट दूर हो जाएंगे।

भारतवर्ष जैसे देश में नदियों के भागों को मनोवांच्छित दिशा में प्रवाहित करवाने की परम्परा कोई नयी अवधारणा भी तो नहीं हैं। ऐतिहासिक सत्य के अनुसार महाराजा भागीरथ ने गंगा के मार्ग को स्वयं निर्धारित किया था तो 19वीं शदी के अन्तर्गत महाराजा भागीरथ ने गंगा के मार्ग को स्वयं निर्धारित किया था तो 19वीं शदी के अन्तर्गत महाराजा गंगासिंह जी का उदाहरण भी हमारे समक्ष है जिन्होंने सिन्धु नदी प्रवाह से एक नयी नदी (राजस्थान नहर) का निर्माण कर थार के प्यासे मरुस्थल तक हिमालय का पानी ले आये जो निश्चय ही अनुकरणीय है।

महाराजा गंगा सिंह के द्वारा थार मरुस्थल हेतु खोजे गये पानी (इन्दिरा गाँधी नहर) का इतिहास प्रस्तुत लेख में दिया गया है जो आधुनिक जल-चेताओं के लिए सुन्दर मार्गदर्शक के रूप में उत्साहप्रद है।

यद्यपि थार मरुस्थल में पानी लाने की खोज अर्थात प्यासे थार मरुस्थल में हिमालियन नदियों से नहर के द्वारा पानी लाने का सर्वप्रथम विचार बीकानेर के स्वर्गीय महाराजा डूंगरसिंह जी का था। (पानगड़िया 1985) उन्हें यह निश्चय था कि अगर सिन्धु नदी प्रवाह तन्त्र से पानी मिल जाए तो इस थार मरुस्थल की कायापलट होकर यह एक सरसब्ज प्रदेश में बदल जाये।

सन् 1884 में पड़ौसी रियासत पंजाब में अबोहर नहर का निर्माणकर बीकानेर रियासत के बहुत पास तक पानी पहुंचा दिया जिससे महाराजा का उत्साह और बढ़ गया तथा वे इस दिशा की ओर आगे बढ़ा दिया जाये तो निश्चित रूप से इस मरुस्थल को सहज ही पानी मिल जाये इस प्रस्ताव के लिए महाराज डूंगरसिंह जी ने पंजाब रियासत से अनुरोध किया किन्तु पंजाब रियासत ने उपर्युक्त प्रस्ताव को यह कह कर ठुकरा दिया कि पंजाब के “नदी प्रवाह” पर बीकानेर रियासत का कोई अधिकार नहीं है। किसी प्रकार के अंतिम निर्णय पर पहुँचने से पूर्व ही सन् 1887 में महाराज डूंगरसिंरह जी का देहान्त हो गया और तब सात वर्षीय उनके छोटे भाई गंगासिंह जी उत्तराधिकारी बने।

जैसे ही परिपक्व अवस्था में गंगासिंह जी ने प्रवेश किया और राज्य को संभाला तो उनका ध्यान इस प्यासे मरुस्थल में सिन्धु नदी तंत्र से पानी लाने पर निरन्तर बना रहा और 1899 में भीषण अकाल ने उन्हें बुरी तरह झकझोर डाला। उनकी रियासत का सम्पूर्ण जल जीवन या तो मृतप्राय हो गया या अस्त-व्यस्त हो गया। अकाल की इस भयंकर मार से क्रुद्ध होकर उन्होंने ब्रिटिश सरकार को लिखा कि आपके राज्य से हमें क्या लाभ, जहां प्यास के कारण जनता मर जाये। इस “छप्पने अकाल” की विभीषिका ने अवश्य ही ब्रिटिश सरकार को चौंका कर इस क्षेत्र को सिन्धु नदी तंत्र से पानी प्रदान करवाने के लिए सोचने हेतु बाध्य कर दिया। पंजाब के समकालीन ब्रिटिश प्रशासनिक अधिकारी सर डेनजिल इब्बरटशन (Ibertusun) ने पंजाब के इस मन्तव्य को कि, “बीकानेर रियासत का सिंध नदी प्रवाह तंत्र पर कोई अधिकार नहीं है।” गलत बताया और यह पेशकश की कि पंजाब रियासत अपने आप में सम्प्रभु नहीं है। इसलिए सिन्धु नदी प्रवाह के पानी का उपभोग करने का अंतिम अधिकार ब्रिटिश सरकार के पास है न कि पंजाब रियासत के पास। भारत सरकार (ब्रिटिश) इस प्रवाह तंत्र के पानी का सदुपयोग अपनी किसी भी रियासत में जन कल्याण हेतु कर सकती है। इस मन्तव्य का समर्थन पंजाब के वित्त-आयुक्त सर लिविस टूपर (Liwis Tuper) ने भी किया।

किन्तु थार में पानी लाने की समस्या का हल सहज में ही सम्भव नहीं था। जैसे ही भारत सरकार (ब्रिटिश) ने बीकानेर को सतलज नदी से पानी देने का प्रस्ताव मंजूर किया तो भावलपुर रियासत (वर्तमान में पाकिस्तान में है) ने रियासत पंजाब की भाँति ही विरोध किया कि बीकानेर रियासत का सिन्धु नदी प्रवाह पर कोई अधिकार नहीं है। और इस विरोध में पंजाब ने भी भावलपुर का समर्थन किया। पंजाब एवं भावलपुर के निरंतर विरोध के बाद भी बीकानेर रियासत को सफलता मिली और 1918 में सतलज नदी से पानी की स्वीकृति मिल गई।

भारत सरकार (ब्रिटिश) का आदेश था कि “जनहित में सिन्धु नदी प्रवाह के पानी को अन्य क्षेत्रों में प्रयुक्त किया जाये और केवल इस आधार पर इसे न रोका जाये कि बीकानेर रियासत का नदी प्रवाह पर अधिकार नहीं है इसलिए उसे पानी नहीं मिलना चाहिए। पानी के सदुपयोग में भारत सरकार एवं देशी रियासतों की सीमा बीच में नहीं आनी चहिए।“ इस आदेश ने सदियों से प्यासे थार मरूस्थल में पानी के आगमन हेतु रास्ता खोल दिया और 1927 में सतलज का पानी 130 किलोमीटर लम्बी गंगानहर द्वारा बीकानेर रियासत की 3.5 लाख एकड़ भूमि में सिंचाई प्रदान करने हेतु लाया गया। किन्तु बीकानेर के महाराजा गंगासिंह जी उपर्युक्त पानी-प्राप्ति से ही संतुष्ट नहीं हुए। गंगा नहर के आगमन से उनका हौसला विशेष रूप से बढ़ गया और वे निरन्तर थार मरुस्थल में सिन्धु नदी जल प्रवाह से अधिक से अधिक पानी लाने के लिए प्रयत्नशील रहे।

1938 में प्रस्तावित भाखड़ा-नांगल-योजना के पानी में भी वे अपने राज्य का हिस्सा निर्धारण कराने में सफल हुए। उन्होंने पंजाब सरकार से लिखित में यह आश्वासन प्राप्त कर लिया था कि भाखड़ा-नांगल जल परियोजना में उनके राज्य का भी हिस्सा होगा। इस समझौते के माध्यम से बीकानेर रियासत ने “सिन्धु नदी जल-प्रवाह” पर अपना पूर्ण अधिकार स्थापित कर लिया जो भावी जल समझौतों का आधार बन गया।


सिन्धु नदी जल विवाद
सन् 1947 की स्वतंत्रता प्राप्ति के साथ ही भारत-पाक विभाजन हुआ जिसके कारण सिन्धु नदी जल प्रयोग में फिर से समस्या का उत्पन्न होना स्वाभाविक था। क्योंकि स्वतंत्रता से पूर्व तो इस नदी तंत्र के पानी पर पूर्ण अधिकार भारत सरकार (ब्रिटिश) का था, जिसने विभिन्न रियासतों में उत्पन्न होने वाले जल विवादों को अपने सर्वोच्च अधिकार के माध्यम से हल कर दिया था किन्तु अब भारत समान रूप से दो सम्प्रभु राज्यों में बंट गया था जिसकी मध्यस्थता करने वाला कोई उच्चाधिकारी नहीं रह गया था।

सिन्धु-नदी-तंत्र विश्व का सबसे बड़ा जल प्रवाह माना जाता है। जिसमें पांच नदियों झेलम, चिनाब, रावी, व्यास एव सतलज सम्मिलित हैं। इस नदी तंत्र का औसत वार्षिक-जल-प्रवाह 170 मिलियन एकड़ फीट है। विभाजन के समय इस सम्पूर्ण जल में से 83 मिलियन एकड़ फीट भारत की नहरों में तथा 64.4 मिलियन एकड़ फीट पाकिस्तान की नहरों में प्रयुक्त होता था, जिससे भारत में केवल 5 मिलियन एकड़ भूमि पर एवं पाकिस्तान में 21 मिलियन एकड़ भूमि पर सिंचाई की जाती थी। जबकि विरोधाभास यह था कि इन नदियों के सभी नियंत्रण हैडवर्क्स भारत में स्थित थे जिससे पाकिस्तान को हमेशा यह भय था कि भारत कभी भी सिन्धु-नदी-प्रवाह से पाकिस्तान को पानी देने से मना कर सकता है। इस संदर्भ में पश्चिमी पंजाब एवं पूर्वी पंजाब में कई बार समस्या आ चुकी थी। एक अप्रैल, 1948 को यह जल विवाद उस समय भयंकर रूप से उठ खड़ा हुआ जब पूर्वी पंजाब ने “बड़ी-अपर-नहर-प्रणाली” (Bold canal system) को पानी देने से मना कर दिया। इस विवाद को हल करने के लिए भारत-पाक के विभिन्न समझौते भी नाकामयाब रहे और पाकिस्तान ने भविष्य में भारत द्वारा पानी रोके जाने के भय से सशंकित होकर सतलज नदी के दाहिनी ओर नई नहर खोदनेका कार्य शुरू कर दिया जिससे कि भारत के फीरोजपुर हैडवर्क्स को नजर अन्दाज करके सतलज नदी से धौलपुर नहर के लिए सीधे ही पानी प्राप्त किया जा सके। किन्तु इन नहर का कार्य शुरू करते ही पूर्वी पंजाब द्वारा विरोध किया जाना स्वाभाविक था क्योंकि इस नहर से फिरोजपुर हैडवर्क्स की सुरक्षा को खतरा उत्पन्न हो गया था। इसके विरोध में भारत ने सतलज नदी को उत्तर की ओर से ही प्रतिबंधित करने की योजना बनाई जिससे कि सतलज नदी का पाकिस्तान से प्रवेश समाप्त हो जाय। यह समस्या कश्मीर के मुद्दे के साथ भयंकर होती जा रही थी अतः युद्ध की संभावनाएं बनती रहीं।

- बुल्ले शाह....रांझा-रांझा' करदी हुण मैं आपे रांझा होई।



रांझा-रांझा' करदी हुण मैं आपे रांझा होई।
सद्दो मैनूं धीदो रांझा हीर न आखो कोई

रांझा मैं विच, मैं रांझे विच ग़ैर खि़लाल न कोई,
मैं नाहीं ओह आप है अपणी आप करें दिलजोई।

जो कुछ साडे अंदर वस्‍से ज़ात असाडी सोई,
जिस दे नाल मैं न्‍योंह लगाया ओही जैसी होई।

चि‍ट्टी चादर लाह सुट कुडि़ये, पहन फ़कीरां दी लोई,
चि‍ट्टी चादर दाग़ लगेसी, लोई दाग़ न कोई।

तख्‍़त हज़ारे लै चल बुल्ल्हिला, स्‍याली मिले न कोई,
रांझा रांझा करदी हुण मैं आपे रांझा होई।

- बुल्ले शाह