बाड़मेर में 499328 बच्चे
बाड़मेर। जनगणना 2011 के आंकड़ों ने बाड़मेर जिले में बेलगाम बढ़ती आबादी को लेकर चिंतित कर दिया है। जनगणना कहती है कि प्रदेश में छह वर्ष तक के बच्चों की वृद्धिदर में में भी जैसलमेर के बाद बाड़मेर का नंबर आ रहा है। दोनों जिलों में कोई खास फर्क नहीं है। बाड़मेर में वृद्धिदर 19.17 प्रतिशत रही है और जैसलमेर में 19.40 फीसदी। बाड़मेर में 499328 बच्चे छह वर्ष तक की उम्र के है।
सख्त भी हुए
2001 से 2011 तक जनसंख्या वृद्धि पर लगाम के लिए कई नियम सामने आए। दो से ज्यादा बच्चों पर कर्मचारियों की पदोन्नति रोकने, दो से ज्यादा बच्चों पर सरकारी नौकरी की पाबंदी, जनप्रतिनिधियों के लिए दो से ज्यादा बच्चे होने पर चुनाव नहीं लड़ने की पाबंदी लगाई गई है।
सरकारी खर्च दुगुना
परिवार नियोजन के साथ ही जननी सुरक्षा योजना में भी करोड़ों रूपए आबादी को कम करने के ध्येय से खर्च हो रहे है। गांवों में आशा सहयोगिनियों, आंगनबाड़ी कार्यकत्ताüओं की नियुक्ति कर इस कार्यक्रम को गति दी गई है। इसके अलावा नसबंदी का जिले का लक्ष्य ढाई हजार से ग्यारह हजार तक पहुंच गया है। इस सबके बावजूद वृद्धि दर पर नियंत्रण नहीं हो रहा है।
निरक्षता मुख्य कारण
बच्चों की संख्या में इजाफा का मुख्य कारण अशिक्षा है। जिले में अभी तक साक्षरता दर साठ प्रतिशत के करीब है। इसमें भी पढ़े लिखे बीस प्रतिशत ही है,शेष मात्र साक्षर। ऎसे में अस्सी फीसदी लोगों को आबादी नियंत्रण को लेकर समझाना मुश्किल हो रहा है।
हर साल समीक्षा हो
छह वर्ष तक के बच्चों की हर वर्ष समीक्षा हों। आंगनबाड़ी और विद्यालय उचित माध्यम है। वृद्धिदर घटे इसके लिए गांव ढाणी में लगातार जागरूकता रखी जाए। तभी वृद्धिदर का ग्राफ रूकेगा।
- जैसलसिंह खारवाल,सेवानिवृत्त शिक्षक
नई सोच होगी
ज्यादा वृद्धि दर ने जिले में इस बार नई सोच के साथ कार्यक्रम को आगे बढ़ाना होगा। इसके लिए सामाजिक स्थिति व मान्यताओं के साथ चलते हुए कई भ्रम तोड़ने होंगे साथ ही नसबंदी के अलावा अन्य संसाधनों की ओर ध्यान दिया जाएगा। आबादी नियंत्रण पर पूरे प्रयास किए जाएंगे।- डा. अजमल हुसैन,मुख्य चिकित्सा एवं स्वास्थ्य अधिकारी
अब सोच जगी है
वास्तव में लोगोे में छोटे परिवार की सोच अब जगी है। गांव गांव में बच्चों को शिक्षा से जोड़ने की जो रफ्तार सामने आ रही है वह साबित करती है कि आगामी समय में कम बच्चों को लेकर ग्रामीण लोगों की सोच बदलेगी। पिछले दशक में जागरूकता का यह दौर नहीं था।
- डा. गणपतसिंह राठौड़,सेवानिवृत्त चिकित्साधिकारी
बाड़मेर। जनगणना 2011 के आंकड़ों ने बाड़मेर जिले में बेलगाम बढ़ती आबादी को लेकर चिंतित कर दिया है। जनगणना कहती है कि प्रदेश में छह वर्ष तक के बच्चों की वृद्धिदर में में भी जैसलमेर के बाद बाड़मेर का नंबर आ रहा है। दोनों जिलों में कोई खास फर्क नहीं है। बाड़मेर में वृद्धिदर 19.17 प्रतिशत रही है और जैसलमेर में 19.40 फीसदी। बाड़मेर में 499328 बच्चे छह वर्ष तक की उम्र के है।
सख्त भी हुए
2001 से 2011 तक जनसंख्या वृद्धि पर लगाम के लिए कई नियम सामने आए। दो से ज्यादा बच्चों पर कर्मचारियों की पदोन्नति रोकने, दो से ज्यादा बच्चों पर सरकारी नौकरी की पाबंदी, जनप्रतिनिधियों के लिए दो से ज्यादा बच्चे होने पर चुनाव नहीं लड़ने की पाबंदी लगाई गई है।
सरकारी खर्च दुगुना
परिवार नियोजन के साथ ही जननी सुरक्षा योजना में भी करोड़ों रूपए आबादी को कम करने के ध्येय से खर्च हो रहे है। गांवों में आशा सहयोगिनियों, आंगनबाड़ी कार्यकत्ताüओं की नियुक्ति कर इस कार्यक्रम को गति दी गई है। इसके अलावा नसबंदी का जिले का लक्ष्य ढाई हजार से ग्यारह हजार तक पहुंच गया है। इस सबके बावजूद वृद्धि दर पर नियंत्रण नहीं हो रहा है।
निरक्षता मुख्य कारण
बच्चों की संख्या में इजाफा का मुख्य कारण अशिक्षा है। जिले में अभी तक साक्षरता दर साठ प्रतिशत के करीब है। इसमें भी पढ़े लिखे बीस प्रतिशत ही है,शेष मात्र साक्षर। ऎसे में अस्सी फीसदी लोगों को आबादी नियंत्रण को लेकर समझाना मुश्किल हो रहा है।
हर साल समीक्षा हो
छह वर्ष तक के बच्चों की हर वर्ष समीक्षा हों। आंगनबाड़ी और विद्यालय उचित माध्यम है। वृद्धिदर घटे इसके लिए गांव ढाणी में लगातार जागरूकता रखी जाए। तभी वृद्धिदर का ग्राफ रूकेगा।
- जैसलसिंह खारवाल,सेवानिवृत्त शिक्षक
नई सोच होगी
ज्यादा वृद्धि दर ने जिले में इस बार नई सोच के साथ कार्यक्रम को आगे बढ़ाना होगा। इसके लिए सामाजिक स्थिति व मान्यताओं के साथ चलते हुए कई भ्रम तोड़ने होंगे साथ ही नसबंदी के अलावा अन्य संसाधनों की ओर ध्यान दिया जाएगा। आबादी नियंत्रण पर पूरे प्रयास किए जाएंगे।- डा. अजमल हुसैन,मुख्य चिकित्सा एवं स्वास्थ्य अधिकारी
अब सोच जगी है
वास्तव में लोगोे में छोटे परिवार की सोच अब जगी है। गांव गांव में बच्चों को शिक्षा से जोड़ने की जो रफ्तार सामने आ रही है वह साबित करती है कि आगामी समय में कम बच्चों को लेकर ग्रामीण लोगों की सोच बदलेगी। पिछले दशक में जागरूकता का यह दौर नहीं था।
- डा. गणपतसिंह राठौड़,सेवानिवृत्त चिकित्साधिकारी
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