जिन्ना हाउस
विभाजन का षड़यंत्र स्थल अब लिखेगा नया इतिहास
-मंगल प्रभात लोढ़ा
भारतीय संस्कृति और परंपरा में स्थान हमेशा से विशेष महत्वपूर्ण रहे है। जिस जगह भगवान राम का जन्म हुआ, जहां भगवान कृष्ण जन्मे और आधुनिक युग में जहां से महात्मा गांधी ने आंदोलन शुरू किए या जहां सरदार पटेल की राष्ट्र एकीकरण के लिए बैठकें हुई, वे सारी जगहें हमारे लिए स्मरणीय, पूजनीय और वंदनीय मानी जाती हैं। तो, अमृतसर के जलियांवाला बाग और मुंबई के जिन्ना हाउस जैसी जगहें देखकर हमारा खून खौल उठता है। दरअसल, जिन्ना हाउस वह स्थान है, जिसमें बैठकर मोहम्मद अली जिन्ना ने भारत के तीन चुकड़े करने का षड़यंत्र रचा एवं ब्रिटिश राज की शह पर विभाजन का प्रस्ताव तैयार किया एवं भारत को तोड़ने की अपनी योजना को कार्यरूप दिया। लेकिन अब जिन्ना हाउस का उपयोग नई दिल्ली के हैदराबाद हाउस की तर्ज पर अंतर्राष्ट्रीय प्रतिनिधि मंडलों के साथ वार्ता हेतु होगा। मेरे लिए व्यक्तिगत रूप से यह विशेष खुशी का विषय है, क्योंकि जिन्ना हाउस के जनहित में उपयोग के लिए पिछले एक दशक में विधानसभा में भी कई बार मांग की एवं प्रधानमंत्री श्री नरेंद्र मोदी व संबंधित मंत्रालयों से भी संपर्क साधता रहा। अंततः सरकार ने अब इस मामले में विशेष कदम उठाए हैं।
जिन्ना हाउस का इतिहास
जिन्ना हाउस अब, एक ‘इवेक्यूई प्रॉपर्टी’ है जो इवेक्यूई प्रॉपर्टी एक्ट-1950 के तहत भारत सरकार की संपत्ति है। हालांकि जो लोग 1947 में बंटवारे या 1965 और 1971 की लड़ाई के बाद पाकिस्तान चले गए और वहां की नागरिकता ले ली थी, उनकी सारी अचल संपत्ति 'शत्रु संपत्ति' के तहत कस्टोडियन के नियंत्रण में आ गई थीं। लेकिन जिन्ना के लिखित निवेदन पर तत्कालीन प्रधानमंत्री जवाहरलाल नेहरू ने इस बंगले को शत्रु संपत्ति घोषित नहीं किया।सन 1947 में पाकिस्तान का निर्माण होते ही जिन्ना वहां के गवर्नर जनरल बने और आजादी से एक सप्ताह पहले पहले 7 अगस्त 1947 को जिन्ना ने मुंबई स्थित अपना यह घर छोड़ दिया। पर, सन 1939 में उन्होंने यह बंगला अपनी बहन फातिमा जिन्ना के नाम किया था। बंटवारे के समय 1947 में फातिमा भी पाकिस्तान चली गई थीं। इसलिए जिन्ना हाउस भी शत्रु संपत्ति के कस्टोडियन के तहत आ गया। प्रधानमंत्री के नाते नेहरू ने 7 मार्च 1955 कोकैबिनेट बैठक में सुझाव दिया था कि जिन्ना हाउस को पाकिस्तान सरकार को दे दिया जाना चाहिए। लेकिन इस मुद्दे पर नेहरू को अपने मंत्रिमंडल की मंजूरी नहीं मिल पाई। सन 1956 में फिर एक कोशिश हुई और तत्कालीन विदेश मंत्री और भारतीय उच्चायोग ने जिन्ना हाउस को पाकिस्तान को सौंपने का सुझाव दिया, लेकिन वह भी आगे नहीं बढ़ पाया। सन 1982 तक ब्रिटिश उच्चायोग द्वारा जिन्ना हाऊस का उपयोग किया जाता रहा। फिर केन्द्रीय सार्वजनिक कार्य विभाग (सीपीडब्ल्युडी) जिन्ना हाउस की देखभाल करता रहा। सन 1996 में जिन्ना हाऊस में सांस्कृतिक केन्द्र की स्थापना का निर्णय लिया गया। सो, 4 फरवरी 1997 को जिन्ना हाऊस इंडियन कौन्सिल फॉर कल्चरल रिलेशन्स को हस्तान्तरित किया गया एवं सार्क के उप प्रादेशिक केन्द्र के रूप में उसे रुपान्तरित करने का निर्णय लिया गया। अब जिन्ना हाउस में नई दिल्ली के हैदराबाद हाउस की तर्ज पर इंटरनेशनल सेंटर की शुरूआत के लिए प्रधानमंत्री कार्यालय ने विदेश मंत्रालय को इसका हस्तांतरण करने के लिए मंजूरी दी है।
जिन्ना की बेटी का दावा भी खारिज
आश्चर्य की बात है कि जिन्ना हाउस पर पाकिस्तान हमेशा से बेहद बेशर्मी के साथ अपना दावा जताता रहा है। हाल ही में विदेश मंत्री सुषमा स्वराज ने जब मुझे पत्र लिखकर जिन्ना हाउस के हैदराबाद हाउस की तर्ज पर इंटरनेशनल सेंटर की शुरूआत की जानकारी दी, तो पाकिस्तान ने फिर इस पर अपना हक जताया। यही नहीं, जिन्ना की बेटी दीना वाडिया ने भी सन 2007 में बॉम्बे हाईकोर्ट में इस पर दावा जताया था। लेकिन विदेश मंत्रालय ने हाईकोर्ट में उनके दावे को खारिज कर दिया। इस बीच फैसला आने से पहले ही 98 वर्ष की उम्र में 2 नवंबर 2017 को दीना वाडिया की न्यूयॉर्क में मृत्यु हो गई। एक राष्ट्रप्रेमी परिवार में जन्म लेने के साथ बचपन से ही भारत विभाजन की टीस हमेशा से अपने भीतर महसूस करता रहा हूं। इसीलिए प्रधानमंत्री कार्यालय से लेकर केंद्र सरकार के विभिन्न मंत्रालयों और विधानसभा तक हर स्तर पर जिन्ना हाउस को भारत की जनता के लिए उपयोग में लाने के लिए प्रयास करता रहा।
साउथ कोर्ट से जिन्ना हाउस का सफर
दक्षिण मुंबई के मलबार हिल इलाके में भाऊसाहेब हीरे मार्ग पर स्थित जिन्ना हाउस का वास्तविक नाम साउथ कोर्ट हैं। इस सड़क का नाम तब माउंट प्लीजेंट रोड़ था। इंग्लैंड से लौटने के बाद सन 1936 में मोहम्मद अली जिन्ना ने अपने रहने के लिए घर हेतु यूरोपीय शैली का चयन किया और ब्रिटेन के आर्किटेक्ट क्लाउड बेटली से इसका डिजाइन तैयार करवाया। करीब 2.5 एकड़ जमीन पर बने जिन्ना हाउस के निर्माण पर उस जमाने में कुल 2 लाख रुपए की विशाल लागत आई थी। इसके निर्माण में इटेलियन मारबल और दरवाजों के लिए अखरोट की लकड़ी का उपयोग किया गया। साउथ कोर्ट की नींव से लेकर फिनिशिंग तक का सारा काम जिन्ना ने अपनी देखरेख में करवाया। इसी दौरान मुस्लिम लीग का नियंत्रण अपने हाथ में आने के बाद जिन्ना ने ताकत का प्रयोग करके इसी जिन्ना हाउस में भारत का तीन टुकड़ों में बंटवारा करने का षड़यंत्र रचा। साउथ कोर्ट का ऐतिहासिक महत्व यह भी है कि सितंबर 1944 में भारत विभाजन के लिए महात्मा गांधी के साथ जिन्ना की वाटरशेड वार्ता और आजादी के ठीक एक साल पहले 15 अगस्त 1946 को जवाहरलाल नेहरू के साथ बंटवारे के एक और दौर की वार्ता सहित स्वाधीनता संग्राम के हमारे अन्य नेताओं के साथ जिन्ना की बैठकों का भी यह बंगला गवाह रहा है। मोहम्मद अली जिन्ना की बेटी दीना वाड़िया के मुताबिक उनके परिवार को इसका नाम साउथ कोर्ट ही पसंद था, लेकिन जिन्ना का घर होने के कारण ब्रिटिश लोग इसे जिन्ना हाउस कहते थे, सो यही नाम पड़ गया।
अब नई गाथा का गवाह बनेगा
भारत सरकार के ताजा फैसले से, देश के बंटवारे का दुर्भाग्यपूर्ण स्थल होने का दंश झेलता जिन्ना हाउस आनेवाले कुछ समय में भारत के अंतर्राष्ट्रीय संबंधों की नई गाथा का गवाह बनेगा। प्रधानमंत्री श्री नरेंद्र मोदी की स्वीकृति के बाद अब यहां उच्चस्तरीय विदेशी प्रतिनिधिमंडलों और विशिष्ट मेहमानों के साथ द्विपक्षीय अंतर्राष्ट्रीय वार्ताएं होंगी। जिन्ना हाउस के बारे में निश्चित रूप से सरकार का यह फैसला भारत विभाजन के षडयंत्र स्थल का कलंक को धोने में कामयाब होगा।
(लेखक महाराष्ट्र में बीजेपी के वरिष्ठ विधायक हैं)