*झालरापाटन से आएगी 11 दिसम्बर को सबसे बड़ी ख़बर*
*कारण समझ लीजिए,पूरी खबर पढ़े,धरातल रिपोर्ट के साथ*
*KUMARPREMJEE* साभार
रायबरेली में इंदिरा गांधी और दिल्ली में शीला दीक्षित की हार के बाद क्या एक और नया इतिहास रचने वाला है? क्या झालरापाटन में राजस्थान की मुख्यमंत्री वसुंधरा की हार बड़ी चुनावी हार की फेहरिश्त में शामिल होने वाली है? अगर हां, तो यह 11 दिसम्बर की सबसे बड़ी ख़बर होगी- बीजेपी की सम्भावित हार से भी बड़ी ख़बर।
झालरापाटन में वसुंधरा हार सकती हैं चुनावा ! अगर ऐसा हुआ तो यह 11 दिसम्बर की सबसे बड़ी ख़बर होगी। तस्वीर इंडियाटुडे।
झालरापाटन उस संसदीय सीट का हिस्सा है जहां से वसुंधरा राजे 5 बार सांसद रही हैं। लगातार 2003 से वह यहां से विधायक चुनी जाती रही हैं। अभी भी यहां से सांसद उनके बेटे दुष्यंत सिंह हैं। ग्वालियर से सटे इस इलाके में सिंधिया घराने की पैठ रही है। इस सीट से वसंधुरा की हार के बारे में कोई सपने में भी नहीं सोच सकता था। मगर, इस बार वसुंधरा की हार की जो आशंका दिख रही है, उसके पीछे कई ऐसे कारण हैं जिसकी कोई अनदेखी नहीं कर सकता।
बीजेपी छोड़कर कांग्रेस में आए मानवेन्द्र सिंह ने वसुंधरा से नाराज़ वोटरों को एकजुट करने की रणनीति में कामयाब होते दिखे। तस्वीर कारवांडेली।
राजपूत मानवेंद्र सिंह के पीछे लामबंद
कांग्रेस ने जब मानवेंद्र सिंह को वसुंधरा राजे के ख़िलाफ़ उम्मीदवार बनाया तो रणनीति यही थी कि राजपूतों के गुस्से को समेट लिया जाए। मानवेंद्र न सिर्फ राजस्थान में प्रतिष्ठित राजपूत परिवार से हैं, बल्कि बीजेपी उन्होंने हाल में ही छोड़ी थी। उनके पिता जसवंत सिंह देश के बड़े नेता थे और राजपूतों में उनकी बड़ी पैठ रही है। संकेत यही हैं कि राजपूतों ने वसुंधरा के ख़िलाफ़ और मानवेंद्र सिंह के साथ अपनी एकता दिखलायी है। झालरापाटन सीट पर 2 लाख 73 हज़ार मतदाताओँ में राजपूत मतदाताओं की संख्या 17 हज़ार है।
मुसलमान वोटर भी मानवेंद्र के साथ दिखे
वैसे मुसलमान वोटरों ने कभी भी वसुंधरा राजे के लिए वोट किया हो, इसके प्रमाण नहीं मिलते। मगर, ये वोट कहीं न बंटकर एकमुश्त कांग्रेस उम्मीदवार मानवेंद्र के लिए पड़े हैं ऐसा बताया जा रहा है। इलाके में 45 हज़ार मुसलमान वोटर हैं।
घनश्याम तिवाड़ी ने बीजेपी छोड़कर नयी पार्टी बना ली। उनके सहयोगी प्रमोद शर्मा झालरापाटन में कांग्रेस में शामिल हो गये। सबने ब्राह्मण वोटों को वसुंधरा से दूर कर दिया। तस्वीर फर्स्टपोस्ट।
वसुंधरा से छिटके ब्राह्मण वोटर, घनश्याम तिवाड़ी का साथ छोड़ना महंगा पड़ा
वसुंधरा राजे की हर जाति में पकड़ रही है। उसी हिसाब से ब्राह्मण वोटों पर भी रही थी। मगर, इस बार बीजेपी में ब्राह्मण चेहरा रहे घनश्याम तिवाड़ी के पार्टी छोड़ने और भारत वाहिनी पार्टी बना लेने का खामियाज़ा सीधे वसुंधरा राजे को ही भुगतना पड़ रहा है। तिवाड़ी के ख़ास रहे प्रमोद शर्मा के कांग्रेस में आने के बाद ब्राह्मण वोटों में भी सेंध लग गयी। झालरापाटन में ब्राह्मण वोटों की संख्या 28 हज़ार है।
डांगी समुदाय का आधार भी कमज़ोर हुआ
डांगी समुदाय का समर्थन हर बार वसुंधरा राजे को मिलता रहा है। मगर इस बार बीजेपी में अपनी अहमियत घटता देखकर सबक सिखाने की ठानी। डांगी समुदाय ने वसुंधरा राजे के ख़िलाफ़ निर्दलीय उम्मीदवार दे डाला। गोवर्धन डांगी के मैदान में आने से भी वसुंधरा को मिलने वाले डांगी वोटों में कमी आयी है। अनुसूचित जाति की तादाद यहां 35 हज़ार हैं जिनमें डांगियों की बहुलता है।
सचिन पायलट ने गुर्जर वोटों को कांग्रेस के साथ जोड़ा, वहीं बीजेपी से गुर्जर वोट दूर हुए। झालरापाटन में भी इसका असर दिखा।
गुर्जर वोटरों पर सचिन पायलट ने लगायी सेंध
झालरापाटन में 22 हज़ार गुर्जर वोट हैं। उन्हें वसुंधरा राजे से विमुख करने के लिए सचिन पायलट ने पूरी ताकत झोंक दी। लिहाजा पहले वाली तस्वीर भी बदल गयी। जहां वसुंधरा को गुर्जर वोट एकमुश्त मिला करता था, इस बार उन्हें पसीने बहाने पड़े।
एससी-एसटी में नाराज़गी की वजह आरक्षण मुद्दे पर इनकी बीजेपी की केन्द्र सरकार से नाराज़गी रही थी, लेकिन ख़ामियाज़ा वसुंधरा सरकार को भुगतना पड़ा है।
पटेल वोटों को कांग्रेस की ओर मोड़ने के लिए खुद हार्दिक पटेल ने आकर राजस्थान में कमान सम्भाल ली। वसुंधरा को इसका ख़ामियाज़ा भी भुगतना पड़ा है।
पाटीदारों को साधने हार्दिक पटेल आ उतरे
30 हज़ार पाटीदार वोटों को साधन के लिए हार्दिक पटेल राजस्थान आ धमके। जिस तरह से उन्होंने कांग्रेस के लिए खुलकर वोट मांगा, उसके बाद पाटीदारों का झुकाव भी बीजेपी से छिटककर कांग्रेस की ओर हो गया।
वसुंधरा परिवार को घूम-घूमकर पहली बार मांगने पड़े वोट
वसुंधरा राजे ही नहीं पूरे परिवार को इस बार घूम-घूम कर अपने लिए वोट मांग
*कारण समझ लीजिए,पूरी खबर पढ़े,धरातल रिपोर्ट के साथ*
*KUMARPREMJEE* साभार
रायबरेली में इंदिरा गांधी और दिल्ली में शीला दीक्षित की हार के बाद क्या एक और नया इतिहास रचने वाला है? क्या झालरापाटन में राजस्थान की मुख्यमंत्री वसुंधरा की हार बड़ी चुनावी हार की फेहरिश्त में शामिल होने वाली है? अगर हां, तो यह 11 दिसम्बर की सबसे बड़ी ख़बर होगी- बीजेपी की सम्भावित हार से भी बड़ी ख़बर।
झालरापाटन में वसुंधरा हार सकती हैं चुनावा ! अगर ऐसा हुआ तो यह 11 दिसम्बर की सबसे बड़ी ख़बर होगी। तस्वीर इंडियाटुडे।
झालरापाटन उस संसदीय सीट का हिस्सा है जहां से वसुंधरा राजे 5 बार सांसद रही हैं। लगातार 2003 से वह यहां से विधायक चुनी जाती रही हैं। अभी भी यहां से सांसद उनके बेटे दुष्यंत सिंह हैं। ग्वालियर से सटे इस इलाके में सिंधिया घराने की पैठ रही है। इस सीट से वसंधुरा की हार के बारे में कोई सपने में भी नहीं सोच सकता था। मगर, इस बार वसुंधरा की हार की जो आशंका दिख रही है, उसके पीछे कई ऐसे कारण हैं जिसकी कोई अनदेखी नहीं कर सकता।
बीजेपी छोड़कर कांग्रेस में आए मानवेन्द्र सिंह ने वसुंधरा से नाराज़ वोटरों को एकजुट करने की रणनीति में कामयाब होते दिखे। तस्वीर कारवांडेली।
राजपूत मानवेंद्र सिंह के पीछे लामबंद
कांग्रेस ने जब मानवेंद्र सिंह को वसुंधरा राजे के ख़िलाफ़ उम्मीदवार बनाया तो रणनीति यही थी कि राजपूतों के गुस्से को समेट लिया जाए। मानवेंद्र न सिर्फ राजस्थान में प्रतिष्ठित राजपूत परिवार से हैं, बल्कि बीजेपी उन्होंने हाल में ही छोड़ी थी। उनके पिता जसवंत सिंह देश के बड़े नेता थे और राजपूतों में उनकी बड़ी पैठ रही है। संकेत यही हैं कि राजपूतों ने वसुंधरा के ख़िलाफ़ और मानवेंद्र सिंह के साथ अपनी एकता दिखलायी है। झालरापाटन सीट पर 2 लाख 73 हज़ार मतदाताओँ में राजपूत मतदाताओं की संख्या 17 हज़ार है।
मुसलमान वोटर भी मानवेंद्र के साथ दिखे
वैसे मुसलमान वोटरों ने कभी भी वसुंधरा राजे के लिए वोट किया हो, इसके प्रमाण नहीं मिलते। मगर, ये वोट कहीं न बंटकर एकमुश्त कांग्रेस उम्मीदवार मानवेंद्र के लिए पड़े हैं ऐसा बताया जा रहा है। इलाके में 45 हज़ार मुसलमान वोटर हैं।
घनश्याम तिवाड़ी ने बीजेपी छोड़कर नयी पार्टी बना ली। उनके सहयोगी प्रमोद शर्मा झालरापाटन में कांग्रेस में शामिल हो गये। सबने ब्राह्मण वोटों को वसुंधरा से दूर कर दिया। तस्वीर फर्स्टपोस्ट।
वसुंधरा से छिटके ब्राह्मण वोटर, घनश्याम तिवाड़ी का साथ छोड़ना महंगा पड़ा
वसुंधरा राजे की हर जाति में पकड़ रही है। उसी हिसाब से ब्राह्मण वोटों पर भी रही थी। मगर, इस बार बीजेपी में ब्राह्मण चेहरा रहे घनश्याम तिवाड़ी के पार्टी छोड़ने और भारत वाहिनी पार्टी बना लेने का खामियाज़ा सीधे वसुंधरा राजे को ही भुगतना पड़ रहा है। तिवाड़ी के ख़ास रहे प्रमोद शर्मा के कांग्रेस में आने के बाद ब्राह्मण वोटों में भी सेंध लग गयी। झालरापाटन में ब्राह्मण वोटों की संख्या 28 हज़ार है।
डांगी समुदाय का आधार भी कमज़ोर हुआ
डांगी समुदाय का समर्थन हर बार वसुंधरा राजे को मिलता रहा है। मगर इस बार बीजेपी में अपनी अहमियत घटता देखकर सबक सिखाने की ठानी। डांगी समुदाय ने वसुंधरा राजे के ख़िलाफ़ निर्दलीय उम्मीदवार दे डाला। गोवर्धन डांगी के मैदान में आने से भी वसुंधरा को मिलने वाले डांगी वोटों में कमी आयी है। अनुसूचित जाति की तादाद यहां 35 हज़ार हैं जिनमें डांगियों की बहुलता है।
सचिन पायलट ने गुर्जर वोटों को कांग्रेस के साथ जोड़ा, वहीं बीजेपी से गुर्जर वोट दूर हुए। झालरापाटन में भी इसका असर दिखा।
गुर्जर वोटरों पर सचिन पायलट ने लगायी सेंध
झालरापाटन में 22 हज़ार गुर्जर वोट हैं। उन्हें वसुंधरा राजे से विमुख करने के लिए सचिन पायलट ने पूरी ताकत झोंक दी। लिहाजा पहले वाली तस्वीर भी बदल गयी। जहां वसुंधरा को गुर्जर वोट एकमुश्त मिला करता था, इस बार उन्हें पसीने बहाने पड़े।
एससी-एसटी में नाराज़गी की वजह आरक्षण मुद्दे पर इनकी बीजेपी की केन्द्र सरकार से नाराज़गी रही थी, लेकिन ख़ामियाज़ा वसुंधरा सरकार को भुगतना पड़ा है।
पटेल वोटों को कांग्रेस की ओर मोड़ने के लिए खुद हार्दिक पटेल ने आकर राजस्थान में कमान सम्भाल ली। वसुंधरा को इसका ख़ामियाज़ा भी भुगतना पड़ा है।
पाटीदारों को साधने हार्दिक पटेल आ उतरे
30 हज़ार पाटीदार वोटों को साधन के लिए हार्दिक पटेल राजस्थान आ धमके। जिस तरह से उन्होंने कांग्रेस के लिए खुलकर वोट मांगा, उसके बाद पाटीदारों का झुकाव भी बीजेपी से छिटककर कांग्रेस की ओर हो गया।
वसुंधरा परिवार को घूम-घूमकर पहली बार मांगने पड़े वोट
वसुंधरा राजे ही नहीं पूरे परिवार को इस बार घूम-घूम कर अपने लिए वोट मांग