कोटा। पढ़ाई का तनाव उम्मीदों का बोझ-कोटा में चार दिनों में 4 कोचिंग छात्रों ने लगाया मौत को गले
कोटा। राजस्थान का कोटा शहर सपने बेचता है सपना आईआईटी का और दुसरे इंजनियरगि काॅलेजों का ,एक ग्लेमरस लाइफ और सुनहरें केरियर का जो लाखो की पंसद है करोडों की दिवानगी, कोटा में करीब एक लाख बच्चें देशभर से मां बाप की उम्मीद का बोझ लिए इस शहर में आते है , लेकिन कभी कभी उम्मीदों का बोझ इतना होता है कि कुछ बच्चे टूट भी जाते है ।
प्रतिवर्ष 3 लाख आते है पढ़ने, उनमें से एक दर्जन कर लेते हैं खुदकुशी
कोटा में इंजनियरिंग और मेडिकल की प्रतियोगी परिक्षाओं की तैयारी के लिए आने वाले एक दर्जन से ज्यादा छात्र छात्राएं हर साल पढ़ाई के तनाव के चलते खुदकुशी कर रहे है।
आईआईटी में करीब देशभर से साढ़े तीन लाख बच्चे अपनी किस्मत अजमाते है उसमें से कामयाब होते है सिर्फ दस हजार , और कोटा में कोचिंग में लिए करीब पच्चीस हजार बच्चें इस परिक्षा में अपनी दावेदारी पेश करते है लेकिन कामयाबी सिर्फ तीन हजार को मिलती है बाकि उन 22 हजार का क्या जिनके हाथ सफलता नहीं लगती है । दिमाग को प्रेशर कूकर बना देने वाला दबाव के नतीजें भी खतरनाक साबित होते है खुदखुशी,इसमें हैरानी नहीं होगी , बच्चे कोचिंग में जरा पिछड़े कि उम्मीदों के बोझ से टूट जाते है और मौत को गले लगा लेते है । शिक्षानगरी में बीते चार दिनों में चार आत्महत्याओं ने एक बार फिर शिक्षानगरी में छात्र छात्राओ के तनाव को साबित कर दिया है।
कोचिंग लेने वाले 70 फीसदी छात्र डिप्रेशन का शिकार
कोटा में कोचिंग करने वाले बच्चों में से 70 फीसदी डिपेंशन का शिकार है ऐसा मनौचिकित्सको का मानना है , एक चुहा दौड में बच्चें दौड रहे है एक मायावी दुश्मन के पीछे तलवार भांजे, जिन्दगी के सबसे नाजूक दौर में जिनकी उम्र 14 से 21 साल के बीच होती है, घर परिवार से दुर अकेले , जो हालात के साथ बदले वो चल गए बाकि टूट के बिखर गए । मनौचिकित्सक इसके लिए कोटा के कोचिंग संस्थाओ के माहौल को भी जिम्मेदार ठहरा रहे है साथ ही उन माॅ बाप जो अपनी उम्मीदो को बच्चों पर थोप रहे है।
जिला प्रशासन भी हैरान
कोटा में हो रही लगातार आत्महत्याओ की घटनाओ ने अब कोटा जिला प्रशासन और पुलिस को भी हैरान कर दिया है लेकिन बीते चार दिनों में जिन परिवारो के सपने चकनाचूर हुए और जिन्हौने अपनो को खोया उनके लिए शिक्षानगरी के शिक्षा के माहौल की क्या तस्वीर जिंदगी भर के लिए खींच गई है। सवाल यह भी अब खडे होने लगे है कि क्या शिक्षानगरी का शिक्षा का माहौल कही बेअसर तो नही होने लगा है।
कोटा को आर्थिक रूप से खड़ा करने वाली कोचिंग इंडस्ट्री में खुद को अव्वल रखने की होड़ और जिला प्रशासन का इन बच्चों के प्रति रूखा रवैया कहीं न कहीं तनाव से ग्रसित हुए इन बच्चों के लिए खतरनाक साबित हो रहा है। उम्मीद की जानी चाहिए कि कोचिंग संस्थान और जिला प्रशासन ऐसी पहल करे कि जो बच्चें परीक्षा की दौड़ में पिछड़ रहे है उनको मौत के मूंह में जाने से रोकने के लिए सार्थक प्रयास हो ताकि किसी के घर चिराग न बुझे।
कोटा। राजस्थान का कोटा शहर सपने बेचता है सपना आईआईटी का और दुसरे इंजनियरगि काॅलेजों का ,एक ग्लेमरस लाइफ और सुनहरें केरियर का जो लाखो की पंसद है करोडों की दिवानगी, कोटा में करीब एक लाख बच्चें देशभर से मां बाप की उम्मीद का बोझ लिए इस शहर में आते है , लेकिन कभी कभी उम्मीदों का बोझ इतना होता है कि कुछ बच्चे टूट भी जाते है ।
प्रतिवर्ष 3 लाख आते है पढ़ने, उनमें से एक दर्जन कर लेते हैं खुदकुशी
कोटा में इंजनियरिंग और मेडिकल की प्रतियोगी परिक्षाओं की तैयारी के लिए आने वाले एक दर्जन से ज्यादा छात्र छात्राएं हर साल पढ़ाई के तनाव के चलते खुदकुशी कर रहे है।
आईआईटी में करीब देशभर से साढ़े तीन लाख बच्चे अपनी किस्मत अजमाते है उसमें से कामयाब होते है सिर्फ दस हजार , और कोटा में कोचिंग में लिए करीब पच्चीस हजार बच्चें इस परिक्षा में अपनी दावेदारी पेश करते है लेकिन कामयाबी सिर्फ तीन हजार को मिलती है बाकि उन 22 हजार का क्या जिनके हाथ सफलता नहीं लगती है । दिमाग को प्रेशर कूकर बना देने वाला दबाव के नतीजें भी खतरनाक साबित होते है खुदखुशी,इसमें हैरानी नहीं होगी , बच्चे कोचिंग में जरा पिछड़े कि उम्मीदों के बोझ से टूट जाते है और मौत को गले लगा लेते है । शिक्षानगरी में बीते चार दिनों में चार आत्महत्याओं ने एक बार फिर शिक्षानगरी में छात्र छात्राओ के तनाव को साबित कर दिया है।
कोचिंग लेने वाले 70 फीसदी छात्र डिप्रेशन का शिकार
कोटा में कोचिंग करने वाले बच्चों में से 70 फीसदी डिपेंशन का शिकार है ऐसा मनौचिकित्सको का मानना है , एक चुहा दौड में बच्चें दौड रहे है एक मायावी दुश्मन के पीछे तलवार भांजे, जिन्दगी के सबसे नाजूक दौर में जिनकी उम्र 14 से 21 साल के बीच होती है, घर परिवार से दुर अकेले , जो हालात के साथ बदले वो चल गए बाकि टूट के बिखर गए । मनौचिकित्सक इसके लिए कोटा के कोचिंग संस्थाओ के माहौल को भी जिम्मेदार ठहरा रहे है साथ ही उन माॅ बाप जो अपनी उम्मीदो को बच्चों पर थोप रहे है।
जिला प्रशासन भी हैरान
कोटा में हो रही लगातार आत्महत्याओ की घटनाओ ने अब कोटा जिला प्रशासन और पुलिस को भी हैरान कर दिया है लेकिन बीते चार दिनों में जिन परिवारो के सपने चकनाचूर हुए और जिन्हौने अपनो को खोया उनके लिए शिक्षानगरी के शिक्षा के माहौल की क्या तस्वीर जिंदगी भर के लिए खींच गई है। सवाल यह भी अब खडे होने लगे है कि क्या शिक्षानगरी का शिक्षा का माहौल कही बेअसर तो नही होने लगा है।
कोटा को आर्थिक रूप से खड़ा करने वाली कोचिंग इंडस्ट्री में खुद को अव्वल रखने की होड़ और जिला प्रशासन का इन बच्चों के प्रति रूखा रवैया कहीं न कहीं तनाव से ग्रसित हुए इन बच्चों के लिए खतरनाक साबित हो रहा है। उम्मीद की जानी चाहिए कि कोचिंग संस्थान और जिला प्रशासन ऐसी पहल करे कि जो बच्चें परीक्षा की दौड़ में पिछड़ रहे है उनको मौत के मूंह में जाने से रोकने के लिए सार्थक प्रयास हो ताकि किसी के घर चिराग न बुझे।