शुक्रवार, 7 दिसंबर 2012

जैसलमेर के शासक तथा इनका संक्षिप्त इतिहास





जैसलमेर के शासक तथा इनका संक्षिप्त इतिहास


जैसलमेर राज्य की स्थापना भारतीय इतिहास के मध्यकाल के आरंभ में ११७८ई. के लगभग यदुवंशी भाटी के वंशज रावल-जैसल के द्वारा किया गया। भाटी मूलत: इस प्रदेश के निवासी नहीं थे। यह अपनी जाति की उत्पत्ति मथुरा व द्वारिका के यदुवंशी इतिहास पुरुष कृष्ण से मानती है। कृष्ण के उपरांत द्वारिका के जलमग्न होने के कारण कुछ बचे हुए यदु लोग जाबुलिस्तान, गजनी, काबुल व लाहौर के आस-पास के क्षेत्रों में फैल गए थे। कहाँ इन लोगों ने बाहुबल से अच्छी ख्याति अर्जित की थी, परंतु मद्य एशिया से आने वाले तुर्क आक्रमणकारियों के सामने ये ज्यादा नहीं ठहर सके व लाहौर होते हुए पंजाब की ओर अग्रसर होते हुए भटनेर नामक स्थान पर अपना राज्य स्थापित किया। उस समय इस भू-भाग पर स्थानीय जातियों का प्रभाव था। अत: ये भटनेर से पुन: अग्रसर होकर सिंध मुल्तान की ओर बढ़े। अन्तोगत्वा मुमणवाह, मारोठ, तपोट, देरावर आदि स्थानों पर अपने मुकाम करते हुए थार के रेगिस्तान स्थित परमारों के क्षेत्र में लोद्रवा नामक शहर के शासक को पराजित यहाँ अपनी राजधानी स्थापित की थी। इस भू-भाग में स्थित स्थानीय जातियों जिनमें परमार, बराह, लंगा, भूटा, तथा सोलंकी आदि प्रमुख थे। इनसे सतत संघर्ष के उपरांत भाटी लोग इस भू-भाग को अपने आधीन कर सके थे। वस्तुत: भाटियों के इतिहास का यह संपूर्ण काल सत्ता के लिए संघर्ष का काल नहीं था वरन अस्तित्व को बनाए रखने के लिए संघर्ष था, जिसमें ये लोग सफल हो गए।

सन ११७५ ई. के लगभग मोहम्मद गौरी के निचले सिंध व उससे लगे हुए लोद्रवा पर आक्रमण के कारण इसका पतन हो गया व राजसत्ता रावल जैसल के हाथ में आ गई जिसने शीघ्र उचित स्थान देकर सन् ११७८ ई. के लगभग त्रिकूट नाम के पहाड़ी पर अपनी नई राजधानी स्थापित की जो उसके नाम से जैसल-मेरु - जैसलमेर कहलाई।

जैसलमेर राज्य की स्थापना भारत में सल्तनत काल के प्रारंभिक वर्षों में हुई थी। मध्य एशिया के बर्बर लुटेरे इस्लाम का परचम लिए भारत के उत्तरी पश्चिम सीमाओं से लगातार प्रवेश कर भारत में छा जाने के लिए सदैव प्रयत्नशील थे। इस विषय परिस्थितियों में इस राज्य ने अपना शैशव देखा व अपने पूर्ण यौवन के प्राप्त करने के पूर्व ही दो बार प्रथम अलउद्दीन खिलजी व द्वितीय मुहम्मद बिन तुगलक की शाही सेना का
कोप भाजन बनना पड़ा। सन् १३०८ के लगभग दिल्ली सुल्तान अलाउद्दीन खिलजी की शाही सेना द्वारा यहाँ आक्रमण किया गया व राज्य की सीमाओं में प्रवेशकर दुर्ग के चारों ओर घेरा डाल दिया। यहाँ के राजपूतों ने पारंपरिक ढंग से युद्ध लड़ा। जिसके फलस्वरुप दुर्ग में एकत्र सामग्री के आधार पर यह घेरा लगभग ६ वर्षों तक रहा। इसी घेरे की अवधि में रावल जैतसिंह का देहांत हो गया तथा उसका ज्येष्ठ पुत्र मूलराज जैसलमेर के सिंहासन पर बैठा। मूलराज के छोटे भाई रत्नसिंह ने युद्ध की बागडोर अपने हाथ में लेकर अन्तत: खाद्य सामग्री को समाप्त होते देख युद्ध करने का निर्णय लिया। दुर्ग में स्थित समस्त स्रियों द्वारा रात्रि को अग्नि प्रज्वलित कर अपने सतीत्व की रक्षा हेतु जौहर कर लिया। प्रात: काल में समस्त पुरुष दुर्ग के द्वार खोलकर शत्रु सेना पर टूट पड़े। जैसा कि स्पष्ट था कि दीर्घ कालीन घेरे के कारण रसद न युद्ध सामग्री विहीन दुर्बल थोड़े से योद्धा, शाही फौज जिसकी संख्या काफी अधिक थी तथा खुले में दोनों ने कारण ताजा दम तथा हर प्रकार के रसद तथा सामग्री से युक्त थी, के सामने अधिक समय तक नहीं टिक सके शीघ्र ही सभी वीरगति को प्राप्त हो गए।

तत्कालीन योद्धाओं द्वारा न तो कोई युद्ध नीति बनाई जाती थी, न नवीनतम युद्ध तरीकों व हथियारों को अपनाया जाता था, सबसे बड़ी कमी यह थी कि राजा के पास कोई नियमित एवं प्रशिक्षित सेना भी नहीं होती थी। जब शत्रु बिल्कुल सिर पर आ जाता था तो ये राजपूत राजा अपनी प्रजा को युद्ध का आह्मवाहन कर युद्ध में झोंक देते थे व स्वयं वीरगति को प्राप्त कर आम लोगों को गाजर-मूली की तरह काटने के लिए बर्बर व युद्ध प्रिया तुर्कों के सामने जिन्हें अनगिनत युद्धों का अनुभव होता था, निरीह छोड़े देते थे। इस तरह के युद्धों का परिणाम तो युद्ध प्रारंभ होने के पूर्व ही घोषित होता था।

सल्तनत काल में द्वितीय आक्रमण मुहम्मद बिन तुगलक (१३२५-१३५१ ई.) के शासन काल में हुआ था, इस समय यहाँ का शासक रावल दूदा (१३१९-१३३१ ई.) था, जो स्वयं विकट योद्धा था तथा जिसके मन में पूर्व युद्ध में जैसलमेर से दूर होने के कारण वीरगति न पाने का दु:ख था, वह भी मूलराज तथा रत्नसिंह की तरह अपनी कीर्ति को अमर बनाना चाहता था। फलस्वरुप उसकी सैनिक टुकड़ियों ने शाही सैनिक ठिकानों पर छुटपुट लूट मार करना प्रारंभ कर दिया। इन सभी कारणों से दण्ड देने के लिए एक बार पुन: शाही सेना जैसलमेर की ओर अग्रसर हुई। भाटियों द्वारा पुन: उसी युद्ध नीति का पालन करते हुए अपनी प्रजा को शत्रुओं के सामने निरीह छोड़कर, रसद सामग्री एकत्र करके दुर्ग के द्वार बंद करके अंदर बैठ गए। शाही सैनिक टुकड़ी द्वारा राज्य की सीमा में प्रवेशकर समस्त गाँवों में लूटपाट करते हुए पुन: दुर्ग के चारों ओर डेरा डाल दिया। यह घेरा भी एक लंबी अवधि तक चला। अंतत: स्रियों ने एक बार पुन: जौहर किया एवं रावल दूदा अपने साथियों सहित युद्ध में वीरगति को प्राप्त हुआ। जैसलमेर दुर्ग और उसकी प्रजा सहित संपूर्ण-क्षेत्र वीरान हो गया।

परंतु भाटियों की जीवनता एवं अपनी भूमि से अगाध स्नेह ने जैसलमेर को वीरान तथा पराधीन नहीं रहने दिया। मात्र १२ वर्ष की अवधि के उपरांत रावल घड़सी ने पुन: अपनी राजधानी बनाकर नए सिरे से दुर्ग, तड़ाग आदि निर्माण कर श्रीसंपन्न किया। जो सल्तनत काल के अंत तक निर्बाध रुपेण वंश दर वंश उन्नति करता रहा। जैसलमेर राज्य ने दो बार सल्तनत के निरंतर हमलों से ध्वस्त अपने वर्च को बनाए रखा।

मुगल काल के आरंभ में जैसलमेर एक स्वतंत्र राज्य था। जैसलमेर मुगलकालीन प्रारंभिक शासकों बाबर तथा हुँमायू के शासन तक एक स्वतंत्र राज्य के रुप में रहा। जब हुँमायू शेरशाह सूरी से हारकर निर्वासित अवस्था में जैसलमेर के मार्ग से रावमाल देव से सहायता की याचना हेतु जोधपुर गया तो जैसलमेर
के भट्टी शासकों ने उसे शरणागत समझकर अपने राज्य से शांति पूर्ण गु जाने दिया। अकबर के बादशाह बनने के उपरांत उसकी राजपूत नीति में व्यापक परिवर्तन आया जिसकी परणिति मुगल-राजपूत विवाह में हुई। सन् १५७० ई. में जब अकबर ने नागौर में मुकाम किया तो वहाँ पर जयपुर के राजा भगवानदास के माध्यम से बीकानेर और जैसलमेर दोनों को संधि के प्रस्ताव भेजे गए। जैसलमेर शासक रावल हरिराज ने संधि प्रस्ताव स्वीकार कर अपनी पुत्री नाथीबाई के साथ अकबर के विवाह की स्वीकृति प्रदान कर राजनैतिक दूरदर्शिता का परिचय दिया। रावल हरिराज का छोटा पुत्र बादशाह दिल्ली दरबार में राज्य के प्रतिनिधि के रुप में रहने लगा। अकबर द्वारा उस फैलादी का परगना जागीर के रुप में प्रदान की गई। भाटी-मुगल संबंध समय के साथ-साथ और मजबूत होते चले गए। शहजादा सलीम को हरिराज के पुत्र भीम की पुत्री ब्याही गई जिसे 'मल्लिका-ए-जहांन' का खिताब दिया गया था। स्वयं जहाँगीर ने अपनी जीवनी में लिखा है - 'रावल भीम एक पद और प्रभावी व्यक्ति था, जब उसकी मृत्यु हुई थी तो उसका दो माह का पुत्र था, जो अधिक जीवित नहीं रहा। जब मैं राजकुमार था तब भीम की कन्या का विवाह मेरे साथ हुआ और मैने उसे 'मल्लिका-ए-जहांन' का खिताब दिया था। यह घराना सदैव से हमारा वफादार रहा है इसलिए उनसे संधि की गई।'

मुगलों से संधि एवं दरबार में अपने प्रभाव का पूरा-पूरा लाभ यहाँ के शासकों ने अपने राज्य की भलाई के लिए उठाया तथा अपनी राज्य की सीमाओं को विस्तृत एवं सुदृढ़ किया। राज्य की सीमाएँ पश्चिम में सिंध नदी व उत्तर-पश्चिम में मुल्तान की सीमाओं तक विस्तृत हो गई। मुल्तान इस भाग के उपजाऊ क्षेत्र होने के कारण राज्य की समृद्धि में शनै:शनै: वृद्धि होने लगी। शासकों की व्यक्तिगत रुची एवं राज्य में शांति स्थापित होने के कारण तथा जैन आचार्यों के प्रति भाटी शासकों का सदैव आदर भाव के फलस्वरुप यहाँ कई बार जैन संघ का आर्याजन हुआ। राज्य की स्थिति ने कई जातियों को यहाँ आकर बसने को प्रोत्साहित किया फलस्वरुप ओसवाल, पालीवाल तथा महेश्वरी लोग राज्य में आकर बसे व राज्य की वाणिज्यिक समृद्धि में अपना योगदान दिया।

भाटी मुगल मैत्री संबंध मुगल बादशाह अकबर द्वितीय तक यथावत बने रहे व भाटी इस क्षेत्र में एक स्वतंत्र शासक के रुप में सत्ता का भोग करते रहे। मुगलों से मैत्री संबंध स्थापित कर राज्य ने प्रथम बार बाहर की दुनिया में कदम रखा। राज्य के शासक, राजकुमार अन्य सामन्तगण, साहित्यकार, कवि आदि समय-समय पर दिल्ली दरबार में आते-जाते रहते थे। मुगल दरबार इस समय संस्कृति, सभ्यता तथा अपने वैभव के लिए संपूर्ण विश्व में विख्यात हो चुका था। इस दरबार में पूरे भारत के गुणीजन एकत्र होकर बादशाह के समक्ष अपनी-अपनी योग्यता का प्रदर्शन किया करते थे। इन समस्त क्रियाकलापों का जैसलमेर की सभ्यता, संस्कृति, प्राशासनिक सुधार, सामाजिक व्यवस्था, निर्माणकला, चित्रकला एवं सैन्य संगठन पर व्यापक प्रभाव पड़ा।

मुगल सत्ता के क्षीण होते-होते कई स्थानीय शासक शक्तिशाली होते चले गए। जिनमें कई मुगलों के गवर्नर थे, जिन्होंने केन्द्र के कमजोर होने के स्थिति में स्वतंत्र शासक के रुप में कार्य करना प्रारंभ कर दिया था। जैसलमेर से लगे हुए सिंध व मुल्तान प्रांत में मुगल सत्ता के कमजोर हो जाने से कई राज्यों का जन्म हुआ, सिंध में मीरपुर तथा बहावलपुर प्रमुख थे। इन राज्यों ने जैसलमेर राज्य के सिंध से लगे हुए विशाल भू-भाग को अपने राज्य में शामिल कर लिया था।
अन्य पड़ोसी राज्य जोधपुर, बीकानेर ने भी जैसलमेर राज्य के कमजोर शासकों के काल में समीपवर्ती प्रदेशों में हमला संकोच नहीं करते थे। इस प्रकार जैसलमेर राज्य की सीमाएँ निरंतर कम होती चली गई थी। ईस्ट इंडिया कंपनी के भारत आगमन के समय जैसलमेर का क्षेत्रफल मात्र १६ हजार वर्गमील भर रह
गया था। यहाँ यह भी वर्णन योग्य है कि मुगलों के लगभग ३०० वर्षों के लंबे शासन में जैसलमेर पर एक ही राजवंश के शासकों ने शासन किया तथा एक ही वंश के दीवानों ने प्रशासन भार संभालते हुए उस संझावत के काल में राज्य को सुरक्षित बनाए रखा।

जैसलमेर राज्य में दो पदों का उल्लेख प्रारंभ से प्राप्त होता है, जिसमें प्रथम पद दीवान तथा द्वितीय पद प्रधान का था। जैसलमेर के दीवान पद पर पिछले लगभग एक हजार वर्षों से एक ही वंश मेहता (महेश्वरी) के व्यक्तियों को नियुक्त किया जाता रहा है। प्रधान के पद पर प्रभावशाली गुट के नेता को राजा के द्वारा नियुक्त किया जाता था। प्रधान का पद राजा के राजनैतिक वा सामरिक सलाहकार के रुप में होता था, युद्ध स्थिति होने पर प्रधान, सेनापति का कार्य संचालन भी करते थे। प्रधान के पदों पर पाहू और सोढ़ा वंश के लोगों का वर्च सदैव बना रहा था।

मुगल काल में जैसलमेर के शासकों का संबंध मुगल बादशाहों से काफी अच्छा रहा तथा यहाँ के शासकों द्वारा भी मनसबदारी प्रथा का अनुसरण कर यहाँ के सामंतों का वर्गीकरण करना प्रारंभ किया। प्रथा वर्ग में 'जीवणी' व 'डावी' मिसल की स्थापना की गई व दूसरे वर्ग में 'चार सिरै उमराव' अथवा 'जैसाणे रा थंब' नामक पदवी से शोभित सामंत रखे गए। मुगल दरबार की भांति यहाँ के दरबार में सामन्तों के पद एवं महत्व के अनुसार बैठने व खड़े रहने की परंपरा का प्रारंभ किया। राज्य की भूमि वर्गीकरण भी जागीर, माफी तथा खालसा आदि में किया गया। माफी की भूमि को छोड़कर अन्य श्रेणियां राजा की इच्छानुसार नर्धारित की जाती थी। सामंतों को निर्धारित सैनिक रखने की अनुमति प्रदान की गई। संकट के समय में ये सामन्त अपने सैन्य बल सहित राजा की सहायता करते थे। ये सामंत अपने-अपने क्षेत्र की सुरक्षा करने तथा निर्धारित राज राज्य को देने हेतु वचनबद्ध भी होते थे।

ब्रिटिश शासन से पूर्व तक शासक ही राज्य का सर्वोच्च न्यायाधिस होता था। अधिकांश विवादों का जाति समूहों की पंचायते ही निबटा देती थी। बहुत कम विवाद पंचायतों के ऊपर राजकीय अधिकारी, हाकिम, किलेदार या दीवान तक पहुँचते थे। मृत्युदंड देने का अधिकार मात्र राजा को ही था। राज्य में कोई लिखित कानून का उल्लेख नही है। परंपराएँ एवं स्वविवेक ही कानून एवं निर्णयों का प्रमुख आधार होती थी।

भू-राज के रुप में किसान की अपनी उपज का पाँचवाँ भाग से लेकर सातवें भाग तक लिए जाने की प्रथा राज्य में थी। लगान के रुप में जो अनाज प्राप्त होता था उसे उसी समय वणिकों को बेचकर नकद प्राप्त धनराशि राजकोष में जमा होती थी। राज्य का लगभग पूरा भू-भाग रेतीला या पथरीला है एवं यहाँ वर्षा भी बहुत कम होती है। अत: राज्य को भू-राज से बहुत कम आय होती थी तथा यहाँ के शासकों तथा जनसाधारण का जीवन बहुत ही सादगी पूर्ण था।

विशाला में राजस्थानी रो हेल्लो जनजागरण और पोस्टकार्ड अभियान आयोजित




विशाला में राजस्थानी रो हेल्लो जनजागरण और पोस्टकार्ड अभियान आयोजित

राजस्थानी में हो शुरुआती प्राथमिक शिक्षा
 

मार्च से महंगा हो सकता है रेल सफर


मार्च से महंगा हो सकता है रेल सफर


नई दिल्ली। विदेशी किराना में जीत से यूपीए सरकार के हौसले बुलंद हो गए हैं। सपा और बसपा से मिली ताकत के बाद सरकार अब आर्थिक सुधारों की रफ्तार को तेज करने जा रही है। इसके तहत रेलवे में पिछले 9 साल से लंबित सुधारों को लागू किया जाएगा।


इन सुधारों के तहत सरकार जल्द ही स्वतंत्र टैरिफ रेगुलेटर स्थापित करेगी। इसकी स्थापना से मार्च से रेल सफर महंगा हो जाएगा। पिछले 9 साल से यात्री किराए में बढ़ोतरी नहीं हुई है। प्रधानमंत्री कार्यालय ने टैरिफ रेगुलेटर की स्थापना के लिए रेलवे के वरिष्ठ अधिकारियों को डेडलाइन तय करने का निर्देश दिया है।


साथ ही निश्चित समय सीमा के भीतर लंबित पड़े प्रोजेक्ट्स को पूरा करने को कहा है। प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह ने अंतर मंत्रालयी समूह को रेल टैरिफ अथॉरिटी के गठन के लिए 31 दिसंबर तक का वक्त दिया है। अंतर मंत्रालयी समूह की अध्यक्षता रेलवे बोर्ड के चेयरमैन हैं। यह अथॉरिटी यात्री किराए को तार्किक करने पर अपनी सिफारिशें देगा। पीएमओ ने ट्रांसपोर्टर को 15 जनवरी 2013 तक कैबिनेट नोट को आगे बढ़ाने का निर्देश दिया है।

गौरतलब है कि रेल मंत्री बनने के तुरंत बाद पवन कुमार बंसल ने यात्री किराए में बढ़ोतरी के संकेत दिए थे। बंसल का कहना था कि यात्री किराए में दी जा रही सब्सिडी के कारण घाटा बढ़ता जा रहा है। अब रेगुलेटर ट्रेनों को चलाने के लिए डीजल और बिजली पर आने वाले खर्च की समीक्षा करेगा। साथ ही घाटा पूरा करने के लिए यात्री किराए में बढ़ोतरी की सिफारिश कर सकता है।

अश्लील फोन कॉल से परेशान हैं स्वामी

अश्लील फोन कॉल से परेशान हैं स्वामी 

नई दिल्ली। जनता पार्टी के अध्यक्ष सुब्रमण्यम स्वामी इन दिनों अज्ञात फोन कॉल से परेशान हैं। स्वामी ने पुलिस में शिकायत भी दर्ज कराई है। दरअसल किसी ने स्वामी के नंबर फ्रेंडशिप क्लब के विज्ञापन में डाल दिए थे। इसके बाद उन्हें फोन आने लगे। फोन उठाते ही सामने वाला उनसे अश्लील बातें शुरू करने लगता है।

सूत्रों के मुताबिक विज्ञापन में स्वामी की पत्नी के फोन नंबर भी शामिल हैं। उनकी पत्नी ये नंबर चेन्नई में यूज करती है। इसके अलावा उनके निजामुद्दीन स्थित आवास के चार लैंड लाइन नंबर भी शामिल हैं।

बुधवार को स्वामी ने पुलिस में शिकायत की। इसमें स्वामी ने कहा कि 27 नवंबर से उनको अश्लील फोन कॉल आ रहे हैं। एक पुलिस अधिकारी ने बताया कि ऎसा स्वामी के निजामुद्दीन इलाके में स्थित आवास और दिल्ली रेलवे स्टेशन पर पोस्टर चिपकाने के कारण हो रहा है।

फाइलो मे "गुल" हो गया "गूगल"

फाइलो मे "गुल" हो गया "गूगल"

जैसलमेर। अस्तित्व के लिए जूझ रहे गूगल के पौधे को फिर से पहचान दिलाने के उद्देश्य से शुरू की गई प्रशासनिक कवायद पौधो व तकनीकी सुविधाओ के अभाव मे अटक गई है। इस यूनानी पौधे को जिले की शान बनाने का सपना अब टूटता दिखाई दे रहा है। मरूप्रदेश मे पांच हजार पौधो को लगाने की योजना थी, लेकिन दुर्लभ माने जाने वाले यूनानी गूगल के पौधो को विकसित करने की योजना फाइलो मे ही खो गई है। करीब पांच वर्ष पहले गूगल प्रोजेक्ट का आगाज तो कर दिया गया था, लेकिन पौधो की अनुपलब्धता और तकनीकी खामियो के कारण यह प्रोजेक्ट फ्लॉप हो गया। हालत यह है कि अब जनप्रतिनिधि भी इस प्रोजेक्ट से हाथ खींच रहे हंै।

अकाल का दंश, रासायनिक पदार्थो का उपयोग व लगातार हो रहे दोहन से गूगल के अस्तित्व को संकट मे पाकर इन्हे फिर से विकसित करने के लिए यह योजना तैयार की गई थी। यदि जिस सक्रियता से योजना का कार्य शुरू किया गया ,उसी सक्रियता से इसको सतत रूप से जारी रखा जाता तो गजरूपसागर क्षेत्र का नजारा ही बदल जाता। यही नहीं गूगल प्रोजक्ट के कारण यह क्षेत्र पर्यटन स्थल के रूप मे भी विकसित हो सकता था।

अधर मे अटका सपना
योजना के तहत गजरूप सागर क्षेत्र मे गड्ढ़े करवाकर मेड़बंदी करवाई जानी थी। गूगल व्यवसाय को जिले मे फिर से उन्नत करने के लिए रोजगार गारंटी योजना के तहत अमरसागर ग्राम पंचायत की ओर से यह कार्य करवाया जाना था। इसके लिए शहर से दूर गजरूप सागर क्षेत्र मे इसकी उन्नत किस्म के पांच हजार पौधे लगाने थे। यहां एक लाख लीटर पानी की क्षमता वाला टांका भी तैयार कराने की योजना थी। ग्राम पंचायत प्रशासन गजरूप सागर क्षेत्र को गूगल के साथ-साथ पर्यटन की दृष्टि से लोकप्रिय बनाना चाहता था।

दिल्ली में विदेशी युवती तो हरियाणा में 75 साल की बुजुर्ग से रेप

नई दिल्ली. दिल्ली के तिमारपुर थाना इलाके में एक विदेशी युवती से गैंगरेप की वारदात सामने आई है। पुलिस ने चार आरोपियों को गिरफ्तार भी किया है। पीड़ित युवती अफ्रीकी देश रवांडा की बताई जा रही है। गैंगरेप के आरोपी उत्तर प्रदेश और बिहार के हैं। पीड़ित युवती ने 5 दिसंबर को थाने में एफआईआर दर्ज करवाई थी। युवती ने अपनी शिकायत में प्रवीन, आलोक, विकास और दीपक नाम के युवकों पर गैंगरेप का आरोप लगाया था। चारों आरोपी दिल्ली के नेहरू विहार इलाके में रहकर प्रतियोगी परीक्षाओं की तैयारी कर रहे हैं। 

युवती के मुताबिक आरोपियों ने पहले उससे दोस्ती की और फिर उसका गैंगरेप किया। युवक उसे पार्टी करने के बहाने घर पर ले गए थे जहां नशा देकर उसके साथ गैंगरेप किया गया। शिकायत के बाद पुलिस ने युवती का मेडिकल टेस्ट करवाया जिसमें बलात्कार की पुष्टि हुई। पुलिस ने तेजी से कार्रवाई करते हुए चारों आरोपियों को गिरफ्तार कर लिया।

देश की राजधानी दिल्‍ली में महिलाओं की आबरू महफूज नहीं है। दिल्‍ली में बीते साल रेप के सबसे अधिक मामले दर्ज किए गए। इसके बाद देश की आर्थिक राजधानी के तौर पर मशहूर मुंबई का नंबर आता है। एनसीआरबी के आंकड़ों के मुताबिक 2011 में दिल्‍ली में रेप के 568 मामले दर्ज किए गए। रेप के मामलों की जांच में जुटे पुलिस अधिकारियों का मानना है कि ऐसे अधिकतर मामलों में आरोपी को पीडिता के बारे में जानकारी होती है। यह एक सामाजिक समस्‍या है और ऐसे अपराधों पर नकेल कसने के लिए रणनीति बनाना असंभव है।

शादी का झांसा दे शादीशुदा शिक्षक ने किया सात माह तक रेप

पंचकूला के पास मनीमाजरा के मौलीजागरां स्थित विकास नगर में एक टीचर पर उसकी एक स्टूडेंट ने दुष्कर्म करने का आरोप लगाया है। विकास नगर की रहने वाली और बारहवीं क्लास में पढऩे वाली लड़की ने मनीमाजरा पुलिस को दी शिकायत दी है। उसने बताया कि मोहाली के मुंडी खरड़ का रहने वाला इन्द्रजीत विकास नगर में एक कोचिंग इंस्टीट्यूट में पढ़ाता और कम्प्यूटर कोर्स करवाता था। पीडि़त लड़की ने बताया कि वह उसने कम्प्यूटर कोर्स के लिए दाखिला लिया था। इन्द्रजीत ने शादी करने का झांसा देकर सात महीने तक उसके साथ दुष्कर्म किया। इन्द्रजीत ने यह कभी नहीं बताया कि वह शादीशुदा है और उसकी एक पांच साल की बेटी भी है। पुलिस ने लड़की की शिकायत पर मामला दर्ज कर आरोपी इन्द्रजीत को गिरफ्तार कर लिया और जांच शुरू कर दी। वहीं, इन्द्रजीत अपने पर लगे आरोपों को गलत बता रहा है।


75 वर्षीय महिला से रेप का आरोपी गिरफ्तार

जींद जिले के सफीदों कस्बे में एक वृद्धा के साथ बलात्कार करने के आरोप में पुलिस ने गांव बुढ़ाखेड़ा के रहने वाले राजा नाम के व्यक्ति को गिरफ्तार कर लिया है। आरोपी को स्थानीय सिविल जज सीनियर डिविजन विवेक गोयल की अदालत में पेश किया। जहां अदालत ने आरोपी को 14 दिन की न्यायिक हिरासत में जींद जेल भेज दिया। गौरतलब है कि गांव बुढ़ाखेड़ा की 75 वर्षीय वृद्धा कलासो देवी ने पुलिस को अपनी शिकायत में कहा था कि वह अकेली गली में धूप में बैठी थी, दोपहर बाद उसके देवर का लड़का राजा पुत्र सुरता 35 वर्षीय आया और जबरदस्ती उसे उसके कमरे में ले गया और उसका मुंह बंद कर उसके साथ बलात्कार कर मौके से फरार हो गया। इस संदर्भ में थाना प्रभारी गुरदयाल सिंह ने बताया कि महिला की शिकायत पर गांव बुढ़ाखेड़ा के आरोपी राजा पुत्र सुरता के खिलाफ मामला दर्ज कर, अदालत के आदेशों पर जेल भेज दिया है।

जैसलमेर में महिला पुलिस थाना शुरू


जैसलमेर में महिला पुलिस थाना शुरू

जैसलमेर। जैसलमेर में महिलाओं से संबंधित मामलों को लेकर पुलिस थाना शुरू किया गया है। फिलहाल इस थाने का संचालन शहर कोतवाली परिसर में ही किया जा रहा है। पुलिस के अनुसार जैसलमेर में महिलाओं से संबंधित अपराध के मामलों की सुनवाई अब महिला पुलिस थाना में होगी। इसके लिए पुलिस उप निरीक्षक जेठाराम को थानेदार नियुक्त किया गया है। पुलिस थाने में स्टॉफ भी लगाया गया है। उम्मीद जताई जा रही है कि महिला थाना शुरू होने से महिलाओं से संबंधित मामलों में त्वरित व प्रभावी कार्रवाई हो सकेगी।

यादें 16 दिसंबर 1971 जब पाकिस्तान भारत से युद्ध हारा


यादें 16 दिसंबर 1971 जब पाकिस्तान भारत से युद्ध हारा



16 दिसंबर यानी आज के ही दिन1971 में पाक सेना ने अपने93000 सैनिकों के साथआत्मसमर्पण किया था। महज 13दिन में घुटने टेकने वाली पाक सेनाके सामने हमारी सेना काफी कमथीं, बावजूद इसके भारतीयसेनाओं ने दबाव का ऐसा माहौलबनाया कि पाक को झुकना पड़ाऔर बांग्लादेश का उदय हुआ। उस वीर विजय की आज 40वीं वर्षगांठ है।

16 दिसंबर 1971 सुबह 10:40 बजे अल्टीमेटम समाप्त होने से पहले ही पैरा बटालियन, जो ढाका केबाहरी क्षेत्र में पहुंच गई थी, ने मेजर जनरल मोहम्मद जमशेद और उनकी 26 इन्फैंट्री डिवीजन केसमक्ष आत्मसमर्पण कर दिया। दोपहर 2।30 बजे जनरल नियाजी ने आत्मसमर्पण की प्रक्रिया शुरूकर दी तथा शाम 4:31 बजे तक उन्होंने ऐतिहासिक ढाका रेसकोर्स में पूर्वी कमांड के जीओसी इनचीफ लेफ्टिनेंट जनरल जगजीत अरोड़ा के समक्ष औपचारिक रूप से आत्मसमर्पण कर दिया। इस शानदार जीत के कुछ अनदेखी तस्वीरें आपके लिए मैं यहाँ पर पोस्ट कर रहा हूँ उम्मीद है आपकोपसंद आएगी.

1971 के युद्ध की कुछ अनदेखी तस्वीरेंजनरल सैम मानेकशॉ 8वीं गोरखा राइफ़ल्स के वीरता पदक विजेता सैनिकों के साथ
एक भारतीय गोरखा जवान की बातों पर मुस्कुराते हुए जनरल सैम मानेकशॉ और लेफ़्टिनेंट जनरलसरताज सिंह.
1971 की लड़ाई में गोरखा सैनिक की मदद से अस्थायी मोर्चे पर चढ़ते भारत के पहले फील्डमार्शल मानेकशा
भारतीय सैनिकों के सामने हथियार डालने के बाद युद्धबंदी कैंप में पाकिस्तानी सैनिक.
युद्ध के दौरान मंत्रणा करते हुए तत्कालीन रक्षा मंत्री जगजीवन राम और थलसेनाध्यक्ष जनरल सैममानेकशॉ.
पश्चिमी कमान के प्रमुख जनरल कैंडिथ वरिष्ठ सैनिक कमांडरों से मंत्रणा करते हुए.
ढाका की ओर बढ़ता हुआ रूस में बना भारतीय टैंक टी-55
भारतीय सैनिकों को ढाका की तरफ़ बढ़ने से रोकने के लिए पाकिस्तानी सैनिकों ने हार्डिंज पुल परअपना ही टैंक ख़राब करके छोड़ दिया

पश्चिमी पाकिस्तान में इस्लामकोट पर सफल हमले के बाद 10पैरा कमांडो के भारतीय सैनिक लौटतेहुए। (साभार- भारतीय तटरक्षक )

बीस लाख का डोडा-पोस्त बरामद

बीस लाख का डोडा-पोस्त बरामद

मंडार (सिरोही)। मंडार थाने के समीप से जा रहे ट्रक को पकड़ कर पुलिस ने भारी मात्रा में डोडा-पास्त बरामद किया है। इसकी अनुमानित कीमत करीब बीस लाख रूपए आंकी गई है। पुलिस ने ट्रक चालक व खलासी को गिरफ्तार किया है। माल की खेप राजसमंद से सांचौर जा रही थी।

डीएसपी भंवरसिंह भाटी के अनुसार थानाधिकारी बहादुरसिंह के नेतृत्व में नाकाबंदी के दौरान तिरपाल से ढंके ट्रक को रूकवाया गया, लेकिन चालक वाहन को भगा ले गया। इस पर एसआई केवलचंद, हैडकांस्टेबल ताराराम, किशनाराम, कांतिलाल, हीराराम, रमेशचन्द्र, झालाराम ने पीछा कर उसे पकड़ लिया। तलाशी लेने पर ट्रक में चालीस क्विंटल डोडा-पोस्त भरा मिला। माल के साथ राजसंमद जिलान्तर्गत कोठारिया निवासी चालक किशनलाल पुत्र जगरूपराम साल्वी व खमनौर उनवास निवासी खलासी गणपत उर्फ श्यामसुन्दर पुत्र मांगीलाल साल्वी को गिरफ्तार कर लिया। प्रारंभिक पूछताछ में आरोपियों ने बताया कि सांचौर क्षेत्र में डिलीवरी देनी थी।

स्कूल की हौद में मिला किशोरी का शव

स्कूल की हौद में मिला किशोरी का शव

लाडनूं (नागौर)। जिले के गांव निम्बी जोधा में कोयल चौराहे के पास स्थित एक निजी स्कूल में गुरूवार को पानी के हौद में एक 14 वर्षीय किशोरी का शव तैरता मिला। पुलिस के अनुसार सालासर थाना इलाके के गांव मलसीसर निवासी 14 वर्षीय सबूरी पिछले दो साल से बुआ संतोष के पास निम्बी जोधा में रह रही थी।

वह मकान के पास ही स्थित एक निजी स्कूल में सफाई एवं छोटा-मोटा काम करती थी। पुलिस एवं परिजनों के अनुसार सबूरी बुधवार अपराह्न तीन बजे स्कूल गई थी। काफी देर तक घर नहीं लौटने पर परिजनों ने उसकी तलाश शुरू की तो स्कूल में हौद के बाहर सबूरी की चप्पल नजर आई। किशोरी के होद में डूबने की सूचना पर गुरूवार सुबह पुलिस मौके पर पहुंची। शव को हौद से बाहर निकलवाया। मृतका के दादा दुलाराम ने सबूरी की हत्या कर आत्महत्या का रूप देने का संदेह व्यक्त किया। पुलिस ने मेडिकल बोर्ड से शव का पोस्टमार्टम करवाया है। मृतका के पिता मुंशीराम की रिपोर्ट पर पुलिस ने मामला दर्ज कर जांच शुरू कर दी है।

उस्ताद सुल्तान खां को जोधपुर रत्न

उस्ताद सुल्तान खां को जोधपुर रत्न

जोधपुर। सभी आंखें सजल थीं और पूरा पंडाल उस्ताद सुल्तान खां के सम्मान मेंं अपनी-अपनी सीटों से उठ खड़ा हुआ, जब सप्तसुर संस्थान व व्यास इंस्टीट्यूट की साझा मेजबानी में कुड़ी स्थित व्यास कैम्पस में आयोजित पद्म भूष्ाण उस्ताद सुल्तान खां संगीत महोत्सव के दौरान मुख्य अतिथि महापौर रामेश्वर दाधीच ने उस्ताद सुल्तान खां की सांगीतिक सेवाओं के लिए उन्हें मरणोपरांत जोधपुर रत्न प्रदान किया। महापौर ने सारंगीवादक उस्ताद सुल्तान खां की पत्नी बानो सुल्तान खां को शॉल ओढ़ाई। इस दौरान उस्ताद के परिवार को मंच पर बुलाया गया और सभी ने उन्हें नमन किया।

निगम ने एक प्रस्ताव पारित कर उनका अभिनदंन करने की घोष्ाणा की थी, लेकिन उनके निधन के कारण यह कार्यक्रम नहीं हो सका। सप्तसुर संस्थान के अध्यक्ष ओम छंगाणी ने उन्हें संस्था की ओर से एक लाख की राशि प्रदान की। विशिष्ट अतिथि उप महापौर न्याज मोहम्मद ने नगर निगम की ओर से उस्ताद सुल्तान खां के घर के मार्ग का उन पर नामकरण करने की घोष्ाणा की। इससे पूर्व महापौर ने उन्हें एक महान फनकार बताते हुए गर्व किया कि इतने बड़े कलाकार का जोधपुर से संबंध रहा। कार्यक्रम की अध्यक्षता इंस्टीट्यूट के चेयरमैन मनीष्ा व्यास ने की। विशिष्ट अतिथि मेहरानगढ़ म्यूजियम ट्रस्ट के महानिदेशक डॉ.महेंद्रसिंह नगर ने उनकी सेवाओं को याद किया।

इश्का-इश्का अल्लाहू...
इश्का-इश्का अल्लाहू-अल्लाहू...,सास गारी देवे ...ससुराल गेंदा फूल,.. साजण ये मत जाणियो तुम बिछड़े मोहे चैन जैसे बन की लाकड़ी सुलगत हो दिन रैन...सूफी व फिल्मी नगमे अलग-अलग अंदाज में पेश कर मशहूर पाश्र्व गायिका रेखा भारद्वाज ने झूमतेे हुए गाया तो श्रोता भी झूम उठे। प्रसिद्ध संगीत निर्देशक -गायक विशाल भारद्वाज को.. पानी-पानी रे...गीत प्रस्तुत कि या तो रसिक श्रोताओं की खूब दाद मिली। वहीं उस्ताद फजल कुरैशी ने साबिर खां व दिलशाद खां के गायन के संग शानदार तबलावादन पेश किया।

इस मौके साबिर ने अपनी कम्पोजिशन..किस पल को मैं जी रहा हूं..पेश कर धूम मचाई। फजल कुरैशी, दिलशाद खां व साबिर खां ने राग मारवा से कार्यक्रम की शुरूआत की। कार्यक्रम में ड्रम पर दर्शन दोशी, गिटार पर मयूख सरकार-विनी, जेम्बो पर भीमराव, बेस पर रूशाद मिस्त्री व की-बोर्ड पर अतुल निंगा ने संगत की। सात दिवसीय उस्ताद सुल्तान खां संगीत महोत्सव का समापन हो गया।

बिना वीजा सैकड़ों पाक विस्थापित जोधपुर में

बिना वीजा सैकड़ों पाक विस्थापित जोधपुर में
जोधपुर। एक तरफ जहां सरकार के साथ-साथ पुलिस व अन्य सुरक्षा एजेंसियां आंतरिक सुरक्षा व्यवस्था को और अधिक पुख्ता करने में लगी हैं, वहीं दूसरी तरफ पड़ोसी मुल्क पाकिस्तान से सैकड़ों की तादाद में विस्थापित अवैध रूप से जोधपुर व अन्य स्थानों पर प्रवेश कर रहे हैं। इस बार हरियाणा के ऎलानाबाद से आए इन विस्थापितों के पास न तो जोधपुर का वीजा है और न ही इन्होंने एफआरओ में आमद करवाई है। यह विस्थापित वर्तमान में बनाड़ रोड, चौहाबो व डाली बाई मंदिर के पास अवैध घुसपैठ कर रह रहे हैं।

सीआईडी सूत्रों के अनुसार ऎलनाबाद में ईट भट्टों पर कार्य करने के लिए श्रमिकों की आवश्यकता रहती है। वहां कार्य के लिए कुछ वर्ष पूर्व पाक से सैकड़ों विस्थापित ऎलनाबाद आए और भट्टों पर कार्य करने लगे।

वहां से पाक विस्थापितों को एक एनजीओ ने नागरिकता दिलाने के बहाने जोधपुर बुला लिया। एक-दो दिन पूर्व ट्रकों में भरकर साढ़े चार सौ विस्थापित पहुंच भी गए, लेकिन इनके पास न तो वीजा है और न ही इन्होंने फॉरेनर रजिस्ट्रेशन ऑफिस (एफआरओ) जाकर आमद करवाने की आवश्यकता समझी।


वर्तमान में करीब चालीस-पचास परिवार बनाड़ रोड पर निजी अस्पताल के पास पहले से रह रहे विस्थापितों के यहां रह रहे हैं। जबकि कई परिवार डाली मंदिर के पास कुछ महीने पूर्व आए विस्थापित व कुछ परिवार चौहाबो चले गए।

नागरिकता दिलाने का आश्वासन
सीआईडी सूत्रों के मुताबिक ऎलानाबाद से इन पाक विस्थापितों को नागरिकता दिलाने का आश्वासन देकर यहां बुलाया गया है। साथ ही अन्य प्रलोभन भी दिए गए।

इनका कहना है
ये लोग हरियाणा से आए हैं, न कि पाकिस्तान से।
- हिंदूसिंह सोढ़ा
सीमांत लोक संगठन

बाल विवाह रूकवाने कलक्ट्रेट पहुंची मां-बेटी

बाल विवाह रूकवाने कलक्ट्रेट पहुंची मां-बेटी

जोधपुर। "मेरे पैदा होते ही पिता ने मुझे और मां को घर से निकाल दिया। अब इतने सालों बाद वे मुझे लेने आए हैं और किसी नि:शक्त और उम्र में कई साल बड़े व्यक्ति से जबरन शादी कराना चाहते हैं। अब मैं अपनी मां की मर्जी के बिना कहीं शादी नहीं करूंगी।" यह कहकर 12 वर्ष की समा अपनी मां सीता देवी से लिपट कर सुबक पड़ी। मां सीता देवी अपनी फरियाद लेकर यहां कलक्टे्रट आई थी। एडीएम ब्रजेश चंदेलिया ने इस मामले में लूणी थाने को आवश्यक कार्रवाई के निर्देश दिए हैं।

गुढ़ा विश्नोई निवासी सीता देवी बताती हैं कि उसके पति लूणी निवासी पपाराम ने बेटी जन्म के बाद ही उसे और बेटी को लेकर पीहर भेज दिया। तब से आज तक उसने ही मेहनत मजदूरी कर बच्चों का भरण पोषण किया है। जब बेटी 12 साल की हुई तो अब उसका पति और भाई दोनों मिलकर बेटी की शादी जबरदस्ती कहीं और कर देना चाहते हैं। मैंने इसका विरोध किया तो मुझे धमका रहे हैं।

मां और बेटी दोनों को ही आंखों से कम दिखता है। दोनों को विश्नोई टाइगर फोर्स के महासचिव रामनिवास बुधनगर गुरूवार को कलक्ट्रेट लेकर आए। वहां उन्होंने अतिरिक्त जिला कलक्टर ब्रजेश चंदेलिया को अपनी पीड़ा सुनाई। पूरी बात सुनने के बाद एडीएम ने दोनों को सुरक्षा मुहैया करवाने के लिए लूणी एसएचओ को पाबंद किया।

देंगे सुरक्षा
मुझे दोपहर को इस मामले के बारे में जानकारी मिली। अब इस मामले में हम लड़की के पिता को सख्त हिदायत देंगे कि लड़की का बालविवाह नहीं कराया जाए और लड़की व उसकी मां को सुरक्षा भी दी जाएगी।
नितिन दवे, थानाधिकारी, लूणी

गुरुवार, 6 दिसंबर 2012

बीकानेर केन्द्रीय विद्यालय में वार्षिक खेलकूद



बीकानेर केन्द्रीय विद्यालय में वार्षिक खेलकूद 

बीकानेर/ 6 दिसम्बर/ स्थानीय केंद्रीय विद्यालय, क्रमांक-1, सागर रोड़ के वार्षिक खेल-कूद दिवस के अवसर पर मुख्य अतिथि के रूप में बोलते हुए सेंट विवेकानंद सीनियर सैकेंडरी स्कूल की प्राचार्य श्रीमती विधि गुप्ता ने कहा कि विद्यार्थियों के लिए अच्छी शिक्षा के साथ-साथ पाठ्यसहगामी गतिविधियों के अंतर्गत खेल-कूद का महत्त्व निर्विवादित रूप से स्वीकार्य है क्योंकि यह व्यक्ति के संपूर्ण विकास हेत यह अनिवार्य है। उन्होंने केंद्रीय विद्यालय संगठन की गतिविधियों के अंतर्गत प्रतिवर्ष खेल-कूद दिवस मनाये जाने एवं संगठन द्वारा आयोजित संभागीय व राष्ट्रीय खेल-कूद आयोजनों की भी मुक्त कंठ से सराहना करते हुए कहा कि इन में अधिकाधिक विद्यार्थियों को भाग लेना चाहिए।

कार्यक्रम में वार्षिक प्रतिवेदन विद्यालय के खेल शिक्षक ए. आर. तंवर ने रखी तथा ध्वजारोहन के साथ विभिन्न प्रतियोगिताएं सम्पन्न हूई। कार्यक्रम में विधि गुप्ता, मुख्य अतिथि सेवानिवृत उपप्राचार्य सी. एल. दर्जी, विशेष सान्निध्य पूर्व संगीत शिक्षक एल. एन. सोनी एवं विद्यालय के कार्यवाहक प्राचार्य आलोक चतुर्वेदी ने राष्ट्रीय खेल कूद प्रतियोगिताओं के विजेताओं के स्मृति चिह्न तथा खेलकूद दिवस के अवसर पर आयोजित विभिन्न प्रतियोगिताएं के विजेताओं को मेडल एवं प्रमाण-पत्र प्रदान किए। वर्ष भर के खेलकूद आयोजनों में शिवाजी सदन की महत्त्वपूर्ण भूमिका के लिए प्रथम स्थान शिवाजी सदन को शील्ड प्रदान की गई। कार्यक्रम का संचान डॉ. एन. के. दइया ने किया।

गैर से सेक्स,पति ने किया मर्डर



उदयपुर/भिवंडी। प्रेमिका से पत्नी बनी 22 साल की स्वाती को किसी ओर के साथ सेक्स करते देख आग बबुला हुआ राजस्थान का एक युवक राजू श्रीमाली से हत्यारा राजू बन गया। घटना महाराष्ट्र के भिवंडी इलाके की है। किराए के मकान में दो दिन पहले पत्नी की हत्या कर राजू अपने पैतृक गांव उदयपुर के खेताखेड़ा कानोड़ भाग आया लेकिन,यहां पहुंच राजू पश्चाताप के आंसू रोक नहीं पाया और हाथीपोल थाने में आत्मसमर्पण कर दिया। राजस्थान पुलिस की सूचना पर महाराष्ट्र पुलिस ने वारदात की पुष्टि की और एक टीम आरोपी की गिरफ्तारी के लिए उदयपुर रवाना कर दी। जानकारी के अनुसार उदयपुर के कानोड़ के मूल निवासी राजू(30) ने कुछ समय पहले ही स्वाति गोस्वामी(20) से शादी की थी। राजू महाराष्ट्र में करीब 7 साल से रहा रहा था और वहीं पर उसकी पहचान स्वाती से हुई। तलाकशुदा स्वाति से पहचान जल्द ही प्रेम और फिर विवाह में बदल गई। लेकिन प्रेम विवाह के कुछ दिन बाद ही "पति,पत्नी और वो" के चलते दोनों के बीच शक पनपने लगा। और इसका अन्त स्वाति की मौत के साथ हुआ।