बुधवार, 29 अगस्त 2012

मैगजीन के कवर पर टॉपलेस मिसेल ओबामा

मैगजीन के कवर पर टॉपलेस मिसेल ओबामा
वॉशिगंटन। एक स्पेनिश मैगजीन के कवर परअमरीका की फर्स्ट लेडी मिसेल ओबामा के टॉपलेस फोटो ने स्पेन से लेकर अमरीका तक सनसनी फैला दी है। "मैगजीन" में कवर पर मिसेल ओबामा को एक दासी के रूप में दिखाया गया है,जिसका गाउन निचे खिसका हुआ है और एक स्तन साफ दिख रहा है। यह फोटो 1800 शताब्दी की एक पोट्रेट के साथ ट्रिक फोटोग्राफी से जोड़कर बनाया गया है,जबकि मैगजिन के अंदर आर्टिकल में ओबामा को फर्स्ट लेडी के रूप में बराक ओबामा के साथ खड़ा दिखाया है।

जानकारी के अनुसार "मैगजीन" के कवर पर ट्रिक फोटोग्राफी से एक अश्वेत दासी की पोट्रेट पर मिसेल ओबामा का सिर जोड़ा गया है। इस स्पेनिश मैगजिन के कवर पर मिसेल का यह फोटो अमरीका सहित दुनियाभर में चर्चा का विष्ाय बना हुआ है।

उल्लेखनीय है कि जिस पोट्रेट पर मिसेल का सिर जोड़ा गया है वह फ्रेच आर्टिस्ट मैरी बेनिस्ट की बनाई गई है जिसे सन् 1800 में एक सालाना प्रदर्शनी में लगाया गया है। यह पोट्रेट को बड़े महत्व के साथ देखा जाता रहा है,क्योंकि इसके कुछ समय बाद ही स्पेन में "दास" प्रथा को समाप्त कर दिया गया था।

मोदी को झटका,दंगों में पूर्व मंत्री दोषी

मोदी को झटका,दंगों में पूर्व मंत्री दोषी
अहमदाबाद। अहमदाबाद में 28 फरवरी 2002 को भड़के दंगों के आरोपियों पर कोर्ट के फैसले ने नरेन्द्र मोदी सरकार को झटका दिया है। फैसला सुनाते हुए अहमदाबाद की विशेष्ा निचली अदालत ने 32 लोगों को दोषी करार दिया है,इनमें मोदी सरकार में मंत्री रह चुकी माया कोडनानी का नाम भी शामिल है। साथ ही बीएसपी के पूर्व नेता बाबू बजरंगी को दोषी करार दिया है। कोर्ट ने इस मामले में 29 आरोपियों को बरी भी कर दिया है।

उल्लेखनीय है कि जिस समय दंगे हुए माया कोडनानी सिर्फ विधायक थी, लेकिन बाद में मोदी सरकार में उन्हें मंत्री बनाया दिया गया था। आई विटनेस के बयान और अन्य सबूतों के आधार पर माया कोडनानी और बाबू बजरंगी पर लोगों को इकट्ठा करना का आरोप है।


ज्ञात हो कि गोधरा कांड के बाद अहमदाबाद शहर के नरोडा पाटिया में भड़के दंगों में इससे पूर्व जून में विशेष न्यायाधीश डॉ. ज्योत्सना बेन याçज्ञक ने सुनवाई की थी और फैसले की तारीख 29 अगस्त निर्धारित की थी।


97 लोग मारे गए थे

गोधरा कांड के बाद 28 फरवरी 2002 को अहमदाबाद शहर के नरोडा पाटिया इलाके में भड़के दंगे में 97 लोग मारे गए थे। इस मामले में नरोडा से भाजपा विधायक व नरेन्द्र मोदी मंत्रिमंडल की पूर्व मंत्री माया बेन कोडनानी सहित तीन महिलाएं, पूर्व विहिप नेता बाबू बजरंगी, पूर्व पार्षद विपिन पंचाल, वकील राजकुमार चौमल सहित 61 आरोपी शामिल थे।

2008 में एसआईटी ने शुरू की थी जांच

इस मामले की जांच पहले गुजरात पुलिस ने की थी, लेकिन वर्ष 2008 में सुप्रीम कोर्ट के आदेश के बाद इस मामले की जांच एसआईटी को सौंपी गई। आरोपियों के खिलाफ हत्या, हत्या का षड्यंत्र, हत्या का प्रयास, हथियारों के साथ एकत्रित होने, दंगा भड़काने, लूट-पाट, डकैती सहित भारतीय दंड संहिता की कई धाराओं के तहत आरोप तय किए गए।

कसाब की सभी दलीलें खारिज, मौत की सजा बरकरार

नई दिल्ली. सुप्रीम कोर्ट ने मुंबई हमले के दोषी पाकिस्तानी आतंकी मोहम्मद अजमल कसाब की अपील पर फैसला सुना दिया है। कोर्ट ने कसाब की अर्जी में उसकी तरफ से रखी गई सभी दलीलें खारिज कर दी हैं। कोर्ट ने कहा है कि यदि देश की संप्रभुता पर हमला होता है तो इसे बर्दाश्‍त नहीं किया जाएगा। इस अपराध की बड़ी सजा मिलनी चाहिए।

कसाब की सभी दलीलें खारिज, मौत की सजा बरकरार

26 नवंबर 2008 को मुंबई में हुए इस हमले में 166 लोग मारे गए थे। इस हमले में मुंबई पुलिस के तीन अफसर हेमंत करकरे, अशोक काम्‍टे और विजय सालस्‍कर भी शहीद हो गए थे।

बाड़मेर में रिफायनरी की कोई संभावना नहीं दो साल तक


बाड़मेर  में रिफायनरी की  कोई संभावना नहीं दो साल तक 

बाड़मेर। राज्‍य के मुख्‍यमंत्री अशोक गहलोत बाड़मेर में प्रस्‍तावित रिफायनरी को लेकर कितनी ही बयान बाजियां करते रहे, लेकिन हकीकत में राजस्‍थान सरकार की ढिलाई के कारण ही रिफायनरी अटकी हुई है।रिफायनरी अगले दो साल तक लगने की कोई संभावना नहीं हें .

यह खुलासा बाड़मेर सांसद हरीश चौधरी द्वारा लोकसभा में पुछे गए एक प्रश्‍न के जवाब में हुआ, जिसमें केन्‍द्रीय पेट्रोलियम मंत्री जयपाल रेडडी ने रिफायनरी में देरी के राजस्‍थान सरकार को जिम्‍मेदार ठहराया। केन्‍द्रीय पेट्रोलियम मंत्रालय के मुताबिक बाड़मेर में प्रस्‍तावित रिफायनरी के मामलें में ओएनजीसी को राजस्‍थान सरकार के सकारात्‍मक जवाब का इंतजार है।

बाड़मेर सांसद को लिखे पत्र में केन्‍द्रीय पेट्रोलियम मंत्री जयपाल रेडडी ने बताया कि राजस्‍थान सरकार ने रिफायनरी के संबध में राजस्‍थान सरकार की 26 फीसदी भागीदारी, 15 वर्ष के लिए बिना ब्‍याज के ग्‍यारह सौ करोड़ रूपए के ऋण और कुछ अन्‍य शर्तो के संबध में अब तक सिद्वातंत: मंजूरी दी है, जबकि ओएनजीसी इस मामलें में किसी भी प्रकार के निवेश से पूर्व सिद्वातंत: मंजूरी के बजाय केबिनेट मंजूरी का इंतजार कर रही है।


उल्‍लेखनीय है कि बाड़मेर में प्रस्‍तावित रिफायनरी के लिए साल 2010 में गठित त्रिपाठी कमेटी ने बाड़मेर में बड़ी रिफायनरी के बजाय 4.5 से 6 मिलीयन टन की रिफायनरी लगाने की बात कही थी। त्रिपाठी कमेटी की रिपोर्ट के बाद रिफायनरी की सबसे बड़ी भागीदार मानी जा रही ओएनजीसी ने बाड़मेर में 4.5 मिलीयन टन रिफायनरी के लिए इंजीनीयर्स इण्डिया लिमिटेड की टीम से तकनीकी रिर्पोट और भारतीय स्‍टेट बैंक से वित्‍तीय रिर्पोट मंगवायी। इस रिर्पोट के बाद ओएनजीसी को बाड़मेर में रिफायनरी लगाना घाटे का सौदा लगा, जिसके बाद कंपनी ने राजस्‍थान सरकार से रिफायनरी में राजस्‍थान सरकार की 26 फीसदी भागीदारी, 15 वर्ष के लिए बिना ब्‍याज के ग्‍यारह सौ करोड़ रूपए के ऋण और कुछ अन्‍य जरूरतों के संबध में शर्त रखी।



ओएनजीसी का कहना है कि राजस्‍थान सरकार उसकी शर्तो पर सिद्वातंत: सहमत है, लेकिन इस मामलें में किसी भी प्रकार के निवेश से पूर्व केबिनेट मंजूरी जरूरी है।

तीन नवजात बालिकाओं की संदिग्ध मौत


तीन नवजात बालिकाओं की संदिग्ध मौत

जैसलमेर जिले में एक बार फिर नवजात बालिकाओं की संदिग्ध मौत का सिलसिला सामने आ रहा है। सोमवार को सीतोड़ाई में दो दिन पूर्व जन्मी एक बालिका की मौत के बाद मंगलवार को नरसिंगों की ढाणी में दो बालिकाओं की संदिग्ध मौत का मामला सामने आया है। दो तीन दिन पूर्व जन्मी बालिकाओं की संदिग्ध मौत को कन्या हत्या से जोड़कर देखा जा रहा है। जिसके चलते चिकित्सा महकमा सजग हो गया और मामले की जांच शुरू कर दी है। जानकारी के अनुसार नरसिंगों की ढाणी में एक बच्ची जो 25 अगस्त को जन्मी थी उसकी मौत हो गई। वहीं एक बच्ची जिसका जन्म 25 को हुआ था और 26 अगस्त को ही उसकी मौत हो गई। मुख्य चिकित्सा एवं स्वास्थ्य अधिकारी डॉ. आनंद गोपाल पुरोहित ने बताया कि मंगलवार को सामने आए दो बालिकाओं की संदिग्ध मौत के मामले की जांच के आदेश दे दिए हैं वहीं एक दिन पूर्व सीतोड़ाई में हुई संदिग्ध मौत के मामलों की जांच मेडिकल टीम द्वारा की जा रही है। अभी तक इन मामलों में मौत के कारणों का पता नहीं चल पाया है। सूत्रों के अनुसार इन मामलों में कन्या हत्या की आशंका भी जताई जा रही है।

कहीं हल्की, कहीं मूसलाधार थार में मेघ मल्हार


कहीं हल्की, कहीं मूसलाधार थार में मेघ मल्हार


किसानों के चेहरे खिले गांवों में भी बरसे बदरा


बाड़मेर. जिले में मंगलवार को मानसून एक बार फिर सक्रिय हुआ। कहीं झमाझम तो कहीं हल्की फुहारों से मौसम खुशगवार बन गया। देर रात तक हल्की बूंदाबांदी का दौर जारी रहा। शहर में करीब पंद्रह मिनट तक हुई हल्की बारिश से सड़कें पानी से तरबतर हो गई। इससे पहले दिनभर बादल छाए रहे।



जिले के बालोतरा, रामसर, शिव व चौहटन क्षेत्र में भी मंगलवार शाम को तेज बारिश हुई। इस बारिश से मौसम सुहाना बन गया। रात में मंद शीतल बयार चलने लगी। बालोतरा में दिन भर सावन की झड़ी लगी रही। शाम में एक इंच बरसात दर्ज की गई। रामसर पंचायत के कई गांवों में मूसलाधार बारिश हुई। गलियों में कीचड़ फैल जाने से ग्रामीणों को आने-जाने में परेशानियों का सामना करना पड़ा। शिव कस्बे के मुख्य बाजार, हाइवे, जोरानाडा रोड, गडरा चौराहे आदि जगहों पर पानी भर जाने से राहगीरों को भारी परेशानी का सामना करना पड़ा। चोचरा, भियाड़, समदड़ी व कल्याणपुरा में भी तेज बरसात हुई। बायतु पंचायत समिति के माधासर, बायतु चिमनजी, पनावड़ा, कानोड़ सहित अकदड़ा में भी बरसात हुई।

पिछले कई दिनों से मानसून के रूठने से किसान मायूस हो गए थे, क्योंकि पिछले दिनों की बरसात में बोई फसलें मुरझाने लगी थी। इस बरसात से फिर फसलों को जान मिलने की उम्मीद है। जिले में काफी जगहों पर कम बरसात से अकाल से हालात बने हुए हैं।

जोधपुर रेलवे स्टेशन को बम से उड़ाने की धमकी


 
जोधपुर.पुलिस कंट्रोल रूम में सोमवार देर रात दो बजे एक अंतरराष्ट्रीय नंबर से आए कॉल से जोधपुर रेलवे स्टेशन को बम से उड़ाने की धमकी मिली। आधी रात बाद मिली इस धमकी के बाद पुलिस ने पूरे रेलवे स्टेशन को खाली करवाया और चप्पे-चप्पे की तलाशी ली, लेकिन वहां कुछ भी संदिग्ध वस्तु नहीं मिली।

पुलिस की छानबीन अभी चल ही रही थी कि एक स्थानीय मोबाइल नंबर से कंट्रोल रूम में इसी संदर्भ में फोन आया। पुलिस की ओर से उदयमंदिर थाने में अज्ञात शख्स के खिलाफ प्रकरण दर्ज किया गया है।

उदयमंदिर पुलिस ने बताया कि सोमवार रात पुलिस कंट्रोल रूम में हैड कांस्टेबल उमेश व अन्य ड्यूटी पर थे। रात ठीक दो बजे 0034441211463 नंबर से कंट्रोल रूम के फोन पर एक कॉल आया। फोन करने वाले ने पहले तो गाली-गलौच की, फिर जोधपुर रेलवे स्टेशन को बम से उड़ाने की धमकी दी।

पुलिस की प्रारंभिक पड़ताल के अनुसार यह इंटरनेट के जरिए किया गया कॉल हो सकता है। वहीं, सुबह 6:50 बजे मोबाइल नंबर 9001879322 से रेलवे स्टेशन को उड़ाने की धमकी दी गई थी। पुलिस के अनुसार यह स्थानीय मोबाइल नंबर है। इन दोनों नंबरों के बारे में पड़ताल की जा रही है।

2:00 सोमवार देर रात अंतरराष्ट्रीय मोबाइल नंबर से मिली धमकी

3:00 AM एक घंटे में पुलिस ने पूरा स्टेशन खाली करवाया

6:50 AM मंगलवार सुबह स्थानीय मोबाइल नंबर से आया कॉल

पुलिस कंट्रोल रूम में सोमवार देर रात दो बजे एक अंतरराष्ट्रीय नंबर से आए कॉल से जोधपुर रेलवे स्टेशन को बम से उड़ाने की धमकी मिली। कंट्रोल रूम स्टाफ ने इसकी सूचना तत्काल उच्च अधिकारियों के साथ जीआरपी व आरपीएफ को दी। आधी रात बाद मिली इस धमकी के बाद पुलिस ने पूरे रेलवे स्टेशन को खाली करवाया और चप्पे-चप्पे की तलाशी ली, लेकिन वहां कुछ भी संदिग्ध वस्तु नहीं मिली।

पुलिस की छानबीन अभी चल ही रही थी कि एक स्थानीय मोबाइल नंबर से कंट्रोल रूम में इसी संदर्भ में फोन आया। पुलिस की ओर से उदयमंदिर थाने में अज्ञात शख्स के खिलाफ प्रकरण दर्ज किया गया है। उदयमंदिर पुलिस ने बताया कि सोमवार रात पुलिस कंट्रोल रूम में हैड कांस्टेबल उमेश व अन्य ड्यूटी पर थे।

रात ठीक दो बजे 0034441211463 नंबर से कंट्रोल रूम के फोन पर एक कॉल आया। फोन करने वाले ने पहले तो गाली-गलौच की, फिर जोधपुर रेलवे स्टेशन को बम से उड़ाने की धमकी दी। उसका कहना था कि स्टेशन के प्लेटफॉर्म, प्रतीक्षालय में सो रहे अनगिनत लोगों की जान बचा सको तो बचा लो। कंट्रोल रूम ने तत्काल इसकी सूचना रात्रि गश्त कर रहे एडीसीपी (मुख्यालय) गजानंद वर्मा व अन्य अधिकारियों को दी। वर्मा तत्काल रेलवे स्टेशन पहुंचे।

कुछ देर बाद जीआरपी एसपी प्रेमप्रकाश टाक, उप अधीक्षक मंसूर अली, जीआरपी थानाधिकारी अनिल पुरोहित के साथ सभी सुरक्षा एजेंसियों व रेलवे के अधिकारी, सीआईडी, बम निरोधक दस्ता आदि भी रेलवे स्टेशन पहुंचा। पुलिस की टीमों ने रेलवे स्टेशन का हर कोना छान मारा, लेकिन काफी तलाश के बाद भी उन्हें कोई संदिग्ध वस्तु नहीं मिली।

पुलिस की प्रारंभिक पड़ताल के अनुसार यह इंटरनेट के जरिए किया गया कॉल हो सकता है। वहीं, सुबह 6:50 बजे मोबाइल नंबर 9001879322 से रेलवे स्टेशन को उड़ाने की धमकी दी गई थी। पुलिस के अनुसार यह स्थानीय मोबाइल नंबर है। इन दोनों नंबरों के बारे में पड़ताल की जा रही है।

घोषणा के बाद मची भागमभाग

रात करीब ढाई बजे अधिकांश अधिकारी रेलवे स्टेशन पहुंच गए। इस दौरान रेलवे स्टेशन के प्लेटफॉर्म व प्रतीक्षालय में सैकड़ों लोग सो रहे थे। पुलिस ने रेलवे स्टेशन खाली करवाने के लिए माइक पर उद्घोषणा की तो लोगों की नींद उड़ गई और वे बाहर की ओर भागने लगे।

कुछ ही देर में पूरा स्टेशन खाली करा लिया गया। इसके साथ ही डॉग स्क्वाड की टीम व बम निरोधक दस्ते ने स्टेशन का हर कोना खंगाला और स्टेशन पर खड़ी गाड़ियों, ऑफिस, टी- स्टॉल, फुट ओवरब्रिज व रेल पटरियों की तलाशी ली। इसी बीच वहां पहुंची दिल्ली-जोधपुर इंटरसिटी, बाड़मेर लोकल ट्रेन की भी तलाशी ली गई। करीब तीन घंटे की मशक्कत के बाद भी वहां कुछ नहीं मिला, तब कहीं जाकर अधिकारियों ने चैन की सांस ली।

भीड़ नियंत्रित करने में हुई मशक्कत

आधी रात को स्टेशन खाली करवाया गया तो वहां सो रहे जातरुओं के साथ अन्य यात्री, भिखारियों व अन्य लोगों की भीड़ स्टेशन के बाहर एकत्र हो गई। अलसुबह तक चली तलाशी के दौरान लोगों की भीड़ को बाहर ही रोकने के लिए रात्रि गश्त कर रही सभी पुलिस पार्टियों और आरएसी की टुकड़ी को मौके पर बुलाया गया।

मौत या माफी : आज इस फैसले पर होगी पूरे देश की निगाह


मौत या माफी : आज इस फैसले पर होगी पूरे देश की निगाह 
नई दिल्ली। सुप्रीम कोर्ट मुंबई हमले के दोषी पाकिस्तानी आतंकी मोहम्मद अजमल कसाब की अपील पर बुधवार को फैसला सुनाएगा।

कसाब ने इस आतंकी हमले में मिली मौत की सजा के विशेष अदालत के निर्णय को चुनौती दे रखी है। इस हमले में 166 लोग मारे गए थे। न्यायमूर्ति आफताब आलम और न्यायमूर्ति चंद्रमौलि कुमार प्रसाद की खंडपीठ ने कसाब की अपील पर 25 अप्रैल को सुनवाई पूरी की थी।

अदालत ने कसाब की याचिका पर करीब ढाई महीने सुनवाई की। शीर्ष अदालत ने कसाब की मौत की सजा पर पिछले साल 10 अक्टूबर को रोक लगा दी थी।
 मौत का अंतहीन इंतजार कर रहे सैकड़ों कैदियों को नहीं मालूम कि उन्हें जीने का कानूनी अधिकार है या नहीं। कोई स्पष्ट नीति न होने की वजह से न्यायपालिका और कार्यपालिका सजा-ए-मौत पर आखिरी फैसला नहीं कर पा रहीं। जिंदगी भर चलने वाली मौत की सजा पर विवेक शुक्ला की रिपोर्ट मौत से बुरा क्या हो सकता है? शायद मौत का इंतजार। खास तौर पर तब, जब इंतजार कुछ घंटों का नहीं, चंद दिनों या महीनों का नहीं, बल्कि वर्षो का हो। कुछ मामलों में तो इंतजार दशकों का है। भारतीय जेलों में सड़ रहे कैदियों की बड़ी तादाद इसी इंतजार से गुजर रही है, क्योंकि यह तय नहीं हो पा रहा है कि ऐसे खूंखार गुनहगारों के साथ आखिर करना क्या है? उन्हें फांसी के फंदे पर लटका दिया जाए, जैसा कि देश की अदालतें एक-एक मामले में कई-कई बार फैसला कर चुकी हैं या फिर संविधान में दिए गए माफी के प्रावधान के तहत जीवनदान दे दिया जाए। दरअसल, दिक्कत उन्हें फांसी देने या माफी देने से नहीं जुड़ी। दिक्कतहै इन दोनों में से कुछ न करने की, हाथ पर हाथ धरे बैठे रहने की। क्या कुछ चल रहा है, यह न तो न्यायपालिका जानती है, न सरकार और न राष्ट्रपति। गुनहगारों और पीड़ितों से इस बात की उम्मीद करना बेमानी है कि उन्हें इस बारे में कुछ पता होगा। तो आखिर किसकी जिम्मेदारी बनती है? कड़वी सच्चाई यह है कि जिम्मेदारी किसी की नहीं बनती। न कोई यह जिम्मेदारी लेने या तय करने में दिलचस्पी रखता है। देवेंद्र सिंह भुल्लर का मामला ले लीजिए। दिल्ली में 1993 में हुए बम विस्फोट में 13 लोग मारे गए। इस मामले में भुल्लर को दोषी ठहराया गया। अगले 13 साल में सेशनकोर्ट, हाईकोर्ट और सुप्रीमकोर्ट, सभी ने उसे सजा-ए-मौत दी। उसने दया याचिका दाखिल की और मई, 2011 में जाकर राष्ट्रपति ने उसकी याचिका खारिज कर दी। लेकिन इतने लंबे वक्त बाद भी मामले का अंत नहीं हुआ। सितंबर 2011 में सुप्रीम कोर्ट ने भुल्लर की सजा घटाने पर विचार करने संबंधी वह याचिका स्वीकार कर ली, जिसमें उसने अपने जीने के अधिकार का हवाला दिया था। फिलहाल, यह किसी को नहीं पता कि भुल्लर का भविष्य क्या होगा? अपवाद ज्यादा, नियम कम अगर आपका मानना है कि भुल्लर का मामला अपवाद है, तो जरा इस मामले पर निगाह डालिए, जो इससे भी बदतर हालात बयां कर रहा है। 1991 में राजीव गांधी की हत्या हुई थी। सुप्रीम कोर्ट ने मुरुगन, संतन और ए जी पेरारीवालन को जनवरी 1998 में सजा-ए-मौत दी। इन सभी की दया याचिका अगस्त 2011 में खारिज कर दी गई। एक तरफ जहां अब तक इन्हें फांसी पर नहीं लटकाया जा सका, वहीं दूसरी तरफमद्रास हाईकोर्ट ने फांसी देने में हुई देरी का हवाला देते हुए मामले में स्टे भी दे दिया। गुनहगारों की ओर से दलील पेश करने वाले वरिष्ठ एडवोकेट राम जेठमलानी ने कहा, ‘अगर फांसी का इंतजार कर रहे दोषी को लंबे समय तक जेल में रखा जाता है, तो इसका मतलब है दोहरी सजा। यह भारतीय संविधान के अनुच्छेद 21 का उल्लंघन है, जो सभी नागरिकों को सुरक्षा का अधिकार देता है।’ किसी को नहीं पता कि इन तीनों हत्यारों को फांसी के फंदे पर कब लटकाया जाएगा? फिर एक मामला पंजाब का भी है, जहां दोषी को इसलिए फांसी नहीं दी जा सकी, क्योंकि जेलर के पास जल्लाद उपलब्ध नहीं था देश में आखिरी फांसी आठ साल पहले हुई थी, जब धनंजय चटर्जी को 2004 में फंदे पर लटकाया गया। फांसी या माफी का मामला एक बार फिर सुर्खियों में तब आया, जब राष्ट्रपति प्रतिभा पाटिल ने दया याचिका के 40 लंबित मामलों का निपटारा किया। उन्होंने 5 याचिकाएं खारिज कर दीं, जबकि 35 अन्य को राहत देते हुए फांसी की सजा उम्र कैद में बदल दी। 18 और दया याचिकाओं पर फैसला होना अभी बाकी है, लेकिन यह कम बड़ी बात नहीं कि उन्होंने फैसला तो किया। उनसे पहले कई राष्ट्रपतियों ने पूरे कार्यकाल में एक भी दया याचिका पर फैसला नहीं किया। जैसा कि बताया गया, राष्ट्रपति का फैसला भी अंतिम नहीं माना जा सकता। जाने-माने वकील मजीद मेनन ने रसरंग से कहा, ‘मैं मानता हूं कि दया याचिकाओं के मामले में देरी कैबिनेट के लेटलतीफ रवैये की वजह से होती है। अगर वहां से राष्ट्रपति को सिफारिश जल्दी भेजी जाने लगें, तो इस स्तर पर होने वाली देरी दूर की जा सकती है।’ राष्ट्रपति दया यचिकाओं के मामले में अकेले फैसला नहीं कर सकतीं। संविधान के अनुच्छेद 74 के मुताबिक राष्ट्रपति को केंद्रीय मंत्रिमंडल दया याचिकाओं पर मशविरा देता है और महामहिम उसके हिसाब से फैसला करने के लिए बाध्य हैं। हालांकि, अतीत खंगालने पर ऐसे भी कई मामले मिले, जिनमें सरकार की ओर से सलाह मिलने के बावजूद राष्ट्रपतियों ने कई साल तक अंतिम फैसले का एलान नहीं किया। निर्णय में देरी और बैकलॉग के मामले 1990 के दशक की शुरुआत से ज्यादा बढ़े। राष्ट्रपति या सरकार की ओर से दया याचिकाओं पर फैसला करने के लिए कोई समयसीमा तय नहीं है, लेकिन 1980 के दशक के अंतिम वर्षो तक इस तरह के फैसलों में दो-तीन साल से ज्यादा वक्त नहीं लगता था। सीनियर एडवोकेट केटीएस तुलसी के अनुसार, ‘1990 में सुप्रीम कोर्ट के फैसले में कहा गया कि लंबित दया याचिकाओं पर दो साल के भीतर फैसला करने को लेकर राष्ट्रपति को बाध्य नहीं किया जा सकता, क्योंकि हर मामले में सबूत अलग-अलग होते हैं।’ तब से अब तक मौत या माफी के फैसले लगातार अटकते और लटकते रहे हैं।समयसीमा नहीं होगी तय केंद्रीय गृह राज्य मंत्री मुल्लापली रामचंद्रन ने इसी साल 20 मार्च को लोकसभा में बताया कि दया याचिकाओं पर फैसला करने के लिए कोई समयसीमा तय करने की सरकार की मंशा नहीं है। इसके अलावा सियासी और मजहबी वजहें भी देरी के लिए जिम्मेदार हैं, क्योंकि जब ऐसी चीजें शामिल होती हैं, तो पहले से ढीला रुख रखने वाली सरकार और भी हिचकिचाहट दिखाने लगती है। बलवंत सिंह राजोआना का मामला ले लीजिए, जिसे पंजाब के पूर्व सीएम बेअंत सिंह की हत्या का दोषी ठहराया गया। उसे 31 मार्च, 2011 को फांसी होनी थी। पर पटियाला जेल के जेलर ने कहा कि यह फांसी नहीं हो सकती, क्योंकि उनके पास जल्लाद की व्यवस्था नहीं है। यह अलग बात है कि गृह मंत्रालय ने राजोआना की फांसी पंजाब सरकार के आग्रह पर टाली। बताया जाता है कि इस मामले में राज्य सरकार शिरोमणि गुरुद्वारा प्रबंधक कमेटी (एसजीपीसी) के दबाव में आई। दिसंबर 2001 में संसद पर हमले के गुनहगार मोहम्मद अफजल गुरु को सुप्रीमकोर्ट ने 2004 में सजा-ए-मौत दी। अफजल की दया याचिका लंबे वक्त से राष्ट्रपति के पास फैसले का इंतजार कर रही है। 2008 में मुंबई में हुए आतंकी हमले की साजिश रचने और उसे अंजाम देने के दोषी मोहम्मद अजमल कसाब को चार आरोपों के लिए सजा-ए-मौत और पांच आरोपों के लिए उम्र कैद की सजा सुनाई गई। लेकिन कुछ कानूनी जानकारों को आशंका है कि उसे निकट भविष्य में शायद ही फांसी हो पाएगी। फांसी जीरो, फैसले सैकड़ों भारत में पिछले आठ साल में किसी को फांसी नहीं दी गई, लेकिन देश की अलग-अलग अदालतें सजा-ए-मौत देना जारी रखे हुए हैं। प्राप्त जानकारी के मुताबिक 2010 से इस साल जून तक 221 लोगों को फांसी की सजा सुनाई गई। नेशनल क्राइम रिकॉर्डस ब्यूरो के मुतबिक 31 दिसंबर, 2010 को 402 लोग फांसी का इंतजार कर रहे थे। जिन राज्यों में सबसे ज्यादा गुनाहगार फांसी का इंतजार कर रहे हैं, उनमें उत्तर प्रदेश (131), कर्नाटक (60) और महाराष्ट्र (49) प्रमुख हैं। ऐसा कोई कानूनी प्रावधान नहीं, जो दया याचिकाओं पर फैसले के लिए कोई वक्त निर्धारित करे, लेकिन फिर ऐसा क्यों होता है कि कुछ याचिकाएं लंबे वक्त तक लटकी रहती हैं, जबकि अन्य पर फैसले को लेकर तेजी दिखाई जाती है? सुप्रीम कोर्ट ने इस साल सरकार से यह सवाल किया। लेकिन कोई ठोस जवाब नहीं मिला। 3.85 करोड़ रुपए हर दिन का खर्च वॉल स्ट्रीट जर्नल के माइकल एडिसन हेडन ने अपने ब्लॉग में लिखा है, ‘अंतिम फैसले में कई दशक लग जाते हैं। इसलिए भारत में सैकड़ों कैदी तब तक जेलों में सड़ते रहते हैं, जब तक कि प्राकृतिक कारणों से उनकी मौत नहीं हो जाती।’ हेडन कर्नाटक के बेलगाम सेंट्रल जेल गए। वहां उनकी मुलाकात ऐसे दो कैदियों से हुई, जो मौत मांग रहे हैं, लेकिन उन्हें इंतजार मिल रहा है। सजा-ए-मौत या उसमें होने वाले देरी पर करदाताओं के करोड़ों रुपए खर्च होते हैं। यह पैसा ऐसे सिस्टम पर खर्च हो रहा है, जिसमें कैदियों को दशकों तक फांसी का इंतजार रहता है। और कई तो मौत का इंतजार करते-करते खुद ही मर जाते हैं। दिल्ली की तिहाड़ जेल के पीआरओ सुनील गुप्ता के मुताबिक सरकार हर रोज एक कैदी पर 125 रुपए खर्च करती है। इस हिसाब से देश भर के कैदियों पर एक दिन में 3.85 करोड़ रुपए खर्च होता है। इनमें सजा-ए-मौत और उम्र कैद पाने वाले गुनाहगारों के अलावा विचाराधीन कैदी शामिल हैं। इस देरी के जाने-अनजाने सभी कारणों के बीच देश कम से कम एक मुद्दे पर निश्चित फैसला कर सकता है। हमें इस बात का निर्णय लेना होगा कि क्या सजा-ए-मौत खत्म कर दी जानी चाहिए। एमनेस्टी इंटरनेशनल के मुताबिक 175 मुल्क सजा-ए-मौत खत्म कर चुके हैं, जबकि 18 देशों में अभी भी इसका प्रावधान है। चीन में सबसे ज्यादा लोगों को फांसी दी गई, उसके बाद ईरान का नंबर आता है। अमेरिका ने 2011 में करीब 50 लोगों को फांसी दी। महात्मा गांधी के पुत्र ने नाथू राम गोडसे को जीवनदान देने की अपील की थी और खुद गांधीजी भी सजा-ए-मौत पर विरोध जताया करते थे। जिस हिसाब से सजा-ए-मौत के फैसले लटक रहे हैं, ऐसा मालूम देता है कि देश में फांसी पर व्यावाहारिक रोक लगी हुई है। तो क्यों न फांसी पर आधिकारिक रूप से पूर्णविराम लगा दिया जाए? पिछले महीने ही केरल में मावेलीकारा एडिशनल डिस्ट्रिक्ट और सेशन कोर्ट-2 ने 22 साल के विश्वराजन को फांसी की सजा सुनाई। उसे 34 साल की विधवा और एक बच्ची की मां से बलात्कार और उसकी हत्या करने का दोषी ठहराया गया। विश्वराजन ने जो गुनाह किया, वह भले कितना गंभीर हो, लेकिन उसकी जिंदगी लंबी रहेगी, क्योंकि अब वह मौत का इंतजार करेगा। वह दया के लिए गुहार लगा सकता है। वह इंतजार और भी लंबा होगा। ‘अगर सजा-ए-मौत पाए किसी मुजरिम को लंबे समय तक कालकोठरी में रखा जाता है, तो इसका यह मतलब हुआ कि उसे अतिरिक्त सजा दी जा रही है। एक सजा-ए-मौत, और दूसरे कालकोठरी में बिताए दिन। किसी भी मुजरिम को एक जुर्म के लिए दो सजाएं नहीं दी जा सकतीं’ : राम जेठमलानी, सीनियर एडवोकेट, सुप्रीमकोर्ट ‘1990 में सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि लंबित दया याचिकाओं पर दो साल के भीतर फैसला करने को लेकर राष्ट्रपति को बाध्य नहीं किया जा सकता, क्योंकि हर मामले में सबूत अलग-अलग होते हैं’ : केटीएस तुलसी, सीनियर एडवोकेट, सुप्रीमकोर्ट

पदोन्नति में आरक्षण पर फैसला आज

पदोन्नति में आरक्षण पर फैसला आज

जयपुर । पदोन्नति में आरक्षण मामले में तत्कालीन मुख्य सचिव सलाउद्दीन अहमद व तत्कालीन प्रमुख कार्मिक सचिव खेमराज की अपील पर सुप्रीम कोर्ट बुधवार को फैसला सुनाएगा।

इधर, मंगलवार को समता आंदोलन समिति की ओर से पांच माह से लम्बित इस अपील पर कोर्ट का ध्यान दिलाते हुए प्रार्थना पत्र पेश करने की अनुमति चाही गई थी, इस पर कोर्ट ने कहा था कि जल्द फैसला आने वाला है। बुधवार को न्यायाधीश अल्तमस कबीर व जे. चेलमेश्वर की खण्डपीठ के सामने यह अपील कॉज लिस्ट में सबसे ऊपर है।