*बीजेपी गवाएगी राजपूत व रावणा राजपूतो के वोट*
*वजह रहेगी हनुमान बेनीवाल की बीजेपी में एंट्री*
*हनुमान बेनीवाल के भाजपा में आने से कांग्रेस को राहत*
*अशौक गहलोत ने बेनीवाल की शर्तें नही मानी, भाजपा ने मांन ली*
विधान सभा चुनाव में जिस बोतल में भाजपा की गोद मे बैठकर भाजपा को ही नाच नचाया आज उसी बोतल में कमल खिलाने के असफल प्रयास भाजपा कर रही है। विधानसभा चुनाव में आर एल पी ने किसान और दलित के नाम पर जाटों और मेघवालों की एकजुटता को तार तार कर भाजपा को किनारे लगा दिया जबकि टास्क कांग्रेस को ठिकाने लगाने की थी।मगर वसुंधरा राजे ,कर्नल सोनाराम चौधरी और हनुमान बेनीवाल की तिकड़ी ने भाजपा की लुटिया डुबो दी। विधानसभा चुनाव के बाद इसे कर्नल सोनाराम ने खुद स्वीकार किया।।हनुमान बेनीवाल की कट्टरता का शिकार खुद कर्नल सोनाराम और बायतु से कैलाश चौधरी हुए दोनो हारे।।उन्हें न तो जाट और नही अन्य जातियों के पर्याप्त वोट मिले मसलन चुनाव बुरी तरह हारे।।अब दोनो लोकसभा में दावेदारी कर रहे।।भाजपा की मजबूरी है उनके पास तीन उम्मीदवार थे।जिसमें सबसे सशक्त पूर्व आईपीएस महेंद्र चौधरी थे मगर कर्नल और कैलाश की राजनीति का शिकार भाजपा में आने से पहले हो गए।।कैलाश संघ के माध्यम से और कर्नल वसुंधरा राजे के माध्यम से टिकट की दावेदारी जता रहे।।इधर दोनो उसी हनुमान बेनीवाल का दामन थाम हुए है।इन्हें अब भी लगता है कि हनुमान बेनीवाल ही इनकी डूबती नैया बचा सकता है जबकि आनंदपाल प्रकरण के बाद राजपूत और राणा राजपूतों की आंखों की किरकीरो बने हनुमान बेनीवाल के प्रति आज भी वही आक्रोश है कल तक के धड़ा राजपूत रावणा राजपूत भाजपा के साथ था।हनुमान बेनीवाल के भाजपा में आने से आनंदपाल प्रकरण की याद ताजा हो गई।सोया स्वाभिमान जागा। सबसे पहले नागौर में ही जागा।।सोसल मीडिया पर विपरीत टिपणियां अभी भी जारी है।।हनुमान बेनीवाल के भाजपा के साथ आने पर भाजपा समर्थक ही सवाल उठा रहे।।भाजपा का केंद्रीय नेतृत्व बेनीवाल नामक तीर से अशौक गहलोत और वसुंधरा राजे का शिकार करना चाहते।हनुमान की सहायता से जोधपुर में वैभव गहलोत को हराना और राजस्थान की राजनीति से वसुंधरा को पूरी तरह आउट करने।।वसुंधरा राजे कभी नही चाहती कि हनुमान बेनीवाल भाजपा के साथ आये क्योंकि वो जानती है कि हनुमान को साथ लेना मतलब गले मे घण्टी बांधना।अब विधानसभा चुनाव के बाद जाट मेघवाल हनुमान से सावधान हो गए।।नागौर और बाडमेर में हनुमान के नाम नाम का कितना जादू चलता यह समय के गर्भ में है मगर पिछले लोकसभा चुनाव में हनुमान बेनीवाल को सिर्फ एक लाख चालीस हजार वोट ही मील जमानत गंवा बैठे थे। यह सब जानते है बेनीवाल लोकसभा चुनाव में सफल नही होगा।।राजपूत राणा राजपूतों को ज्योति मिर्धा से कोई बैर नही ।बाडमेर में स्थानीय जाट नेता प्रभावी रहेंगे।।ऐसे में हनुमान बेनीवाल के भाजपा के साथ आने की सार्थकता पर भाजपा के लोग ही सवाल उठा रहे।।ईधर अशौक गहलोत के साथ हनुमान बेनीवाल ने मीटिंगे की।बेनीवाल की प्राथमिकता कांग्रेस थी मगर अशौक गहलोत बेनीवाल को शर्तो के साथ कांग्रेस के साथ लाना नही चाहते मसलन मामला नही बैठा तब भाजपा को और रुख किया।।
*वजह रहेगी हनुमान बेनीवाल की बीजेपी में एंट्री*
*हनुमान बेनीवाल के भाजपा में आने से कांग्रेस को राहत*
*अशौक गहलोत ने बेनीवाल की शर्तें नही मानी, भाजपा ने मांन ली*
विधान सभा चुनाव में जिस बोतल में भाजपा की गोद मे बैठकर भाजपा को ही नाच नचाया आज उसी बोतल में कमल खिलाने के असफल प्रयास भाजपा कर रही है। विधानसभा चुनाव में आर एल पी ने किसान और दलित के नाम पर जाटों और मेघवालों की एकजुटता को तार तार कर भाजपा को किनारे लगा दिया जबकि टास्क कांग्रेस को ठिकाने लगाने की थी।मगर वसुंधरा राजे ,कर्नल सोनाराम चौधरी और हनुमान बेनीवाल की तिकड़ी ने भाजपा की लुटिया डुबो दी। विधानसभा चुनाव के बाद इसे कर्नल सोनाराम ने खुद स्वीकार किया।।हनुमान बेनीवाल की कट्टरता का शिकार खुद कर्नल सोनाराम और बायतु से कैलाश चौधरी हुए दोनो हारे।।उन्हें न तो जाट और नही अन्य जातियों के पर्याप्त वोट मिले मसलन चुनाव बुरी तरह हारे।।अब दोनो लोकसभा में दावेदारी कर रहे।।भाजपा की मजबूरी है उनके पास तीन उम्मीदवार थे।जिसमें सबसे सशक्त पूर्व आईपीएस महेंद्र चौधरी थे मगर कर्नल और कैलाश की राजनीति का शिकार भाजपा में आने से पहले हो गए।।कैलाश संघ के माध्यम से और कर्नल वसुंधरा राजे के माध्यम से टिकट की दावेदारी जता रहे।।इधर दोनो उसी हनुमान बेनीवाल का दामन थाम हुए है।इन्हें अब भी लगता है कि हनुमान बेनीवाल ही इनकी डूबती नैया बचा सकता है जबकि आनंदपाल प्रकरण के बाद राजपूत और राणा राजपूतों की आंखों की किरकीरो बने हनुमान बेनीवाल के प्रति आज भी वही आक्रोश है कल तक के धड़ा राजपूत रावणा राजपूत भाजपा के साथ था।हनुमान बेनीवाल के भाजपा में आने से आनंदपाल प्रकरण की याद ताजा हो गई।सोया स्वाभिमान जागा। सबसे पहले नागौर में ही जागा।।सोसल मीडिया पर विपरीत टिपणियां अभी भी जारी है।।हनुमान बेनीवाल के भाजपा के साथ आने पर भाजपा समर्थक ही सवाल उठा रहे।।भाजपा का केंद्रीय नेतृत्व बेनीवाल नामक तीर से अशौक गहलोत और वसुंधरा राजे का शिकार करना चाहते।हनुमान की सहायता से जोधपुर में वैभव गहलोत को हराना और राजस्थान की राजनीति से वसुंधरा को पूरी तरह आउट करने।।वसुंधरा राजे कभी नही चाहती कि हनुमान बेनीवाल भाजपा के साथ आये क्योंकि वो जानती है कि हनुमान को साथ लेना मतलब गले मे घण्टी बांधना।अब विधानसभा चुनाव के बाद जाट मेघवाल हनुमान से सावधान हो गए।।नागौर और बाडमेर में हनुमान के नाम नाम का कितना जादू चलता यह समय के गर्भ में है मगर पिछले लोकसभा चुनाव में हनुमान बेनीवाल को सिर्फ एक लाख चालीस हजार वोट ही मील जमानत गंवा बैठे थे। यह सब जानते है बेनीवाल लोकसभा चुनाव में सफल नही होगा।।राजपूत राणा राजपूतों को ज्योति मिर्धा से कोई बैर नही ।बाडमेर में स्थानीय जाट नेता प्रभावी रहेंगे।।ऐसे में हनुमान बेनीवाल के भाजपा के साथ आने की सार्थकता पर भाजपा के लोग ही सवाल उठा रहे।।ईधर अशौक गहलोत के साथ हनुमान बेनीवाल ने मीटिंगे की।बेनीवाल की प्राथमिकता कांग्रेस थी मगर अशौक गहलोत बेनीवाल को शर्तो के साथ कांग्रेस के साथ लाना नही चाहते मसलन मामला नही बैठा तब भाजपा को और रुख किया।।