शुक्रवार, 7 दिसंबर 2012

अन्ना हजारे की तबीयत बिगड़ी, हॉस्पिटल में भर्ती

नई दिल्ली।। सामाजिक कार्यकर्ता अन्ना हजारे की तबीयत बिगड़ गई हैं। उन्हें गुड़गांव के मेदांता हॉस्पिटल में ऐडमिट कराया गया है। टीम अन्ना की मेंबर किरन बेदी के मुताबिक, वह इंटेंसिव केयर यूनिट में हैं।Anna Hazare
किरन बेदी ने ट्वीट करके बताया, 'अन्ना मेदांता में भर्ती किए गए हैं। क्या समस्या है, पता नहीं। डॉक्टर्स ही इस बारे में कुछ भी बता सकते हैं।'

अन्ना के पूर्व सहयोगी और आम आदमी पार्टी के राष्ट्रीय संयोजक अरविंद केजरीवाल ने भी इसकी पुष्टि करते हुए उनके जल्दी ठीक होने की दुआ की है। केजरीवाल ने ट्वीट किया है, 'अन्ना हॉस्पिटल में हैं। मेरी इच्छा है कि मैं जाकर उन्हें देखूं। मैं उनके जल्दी ठीक होने की कामना करता हूं।'

भूकंप से दहला जापान,सुनामी की चेतावनी

भूकंप से दहला जापान,सुनामी की चेतावनी
टोक्यो। जापान के पूर्वोत्तर में शुक्रवार को 7.3 की तीव्रता का जबरदस्त भूकंप आया। जापान ने सुनामी की चेतावनी जारी कर दी है।


एक मौसम विज्ञान एजेंसी ने कहा कि भूकंप स्थानीय समयानुसारशाम 5.18 बजे प्रशांत क्षेत्र में मियागी प्रांत के तट पर आया। भूकंप का केंद्र समुद्र तल से 10 किमी नीचे था। सुनामी की चेतावनी में कहा गया है कि दो मीटर तक की लहरें उठ सकती हैं। भूकंप से टोक्यो में भी इमारतें कई मिनटों तक कापीं।

बॉक्सिंग,तीरंदाजी संघ की मान्यताएं निलंबित

बॉक्सिंग,तीरंदाजी संघ की मान्यताएं निलंबित

नई दिल्ली। भारतीय खेलों के लिए एक और बुरी खबर है। सरकार ने भारतीय बॉक्सिंग संघ और तीरंदाजी संघ की मान्यताएं रद्द कर दी है। खेल मंत्रालय का कहना है कि अब पैसा सीधा खिलाडियों के पास भेजा जाएगा। खेल मंत्री जीतेन्द्र सिंह ने कहा कि ट्रेनिंग का काम भी मंत्रालय सीधे तौर पर करेगा।

उन्होंने कहा कि दोनों संघों को नए चुनाव के लिए 15 दिन का समय दिया गया था। उन्होंने कहा कि सरकार का खेल कोड और आईओसी का चार्टर समान है,इसलिए खेल कोड को बहाने के तौर पर इस्तेमाल नहीं करना चाहिए। स्पोट्र्स अथॉरिटी ऑफ इंडिया की सुविधा बॉक्सरों और तीरंदाजों को मिलती रहेगी। एसोसिएशनों को निलंबित करने का असर खिलाडियों पर नहीं पडेगा।

एआईबीए ने किया था निलंबित

इससे पहले इंटरनेशनल एमैच्योर बॉक्सिंग एसोसिएशन (एआईबीए)ने अस्थायी रूप से इंडियन एमैच्योर बॉक्सिंग फेडरेशन को निलंबित कर दिया था। सस्पेंशन का फैसला स्विट्जरलैंड में गुरूवार को हुई एक बैठक में लिया। एआईबीए ने यह फैसला इसलिए लिया है क्योंकि उनको भी अंतराष्ट्रीय ओलिंपिक संघ की तरह लगता है कि हाल ही में हुए भारतीय एमैच्योर बॉक्सिंग फेडरेशन के चुनाव में धांधली हुई है। एआईबीए के इस फैसले के बाद भारतीय मुक्केबाज भारत के झंडे के तले अंतरराष्ट्रीय मुकाबलों में हिस्सा नहीं ले पाएंगे। गौरतलब है कि हाल ही में आईओसी ने आईओए को निलंबित कर चुका है।

खिलाडियों को मनोबल गिरेगा

मुक्केबाज अखिल ने इस पर प्रतिक्रिया व्यक्त करते हुए कहा कि हम लोगों को भविष्य में क्या करना है इसके बारे में सोचना होगा। गलतियों पर ध्यान देकर उनको सुधारने की जरूरत है। मुक्केबाज विजेंदर सिंह ने कहा कि ये निराशाजनक है। इससे खिलाडियों का मनोबल गिरता है।

जीजा साले के खेल से कटी देश की नाक!

भारतीय मुक्केबाजी संघ के चुनाव इसी साल 23 सितंबर को हुए थे। अभिषेक मातोरिया इंडियन एमैच्योर बॉक्सिंग फेडरेशन के मौजूदा अध्यक्ष हैं और वह राजस्थान से भाजपा विधायक हैं। इससे पहले अभय चौटाला अध्यक्ष थे। मातोरिया चौटाले के साले हैं। चौटाला तीन बार भारतीय मुक्केबाजी संघ के अध्यक्ष रह चुके हैं। चौटाला चौथी बार अध्यक्ष नहीं बन सकते थे इसलिए उन्होंने अपने साले को अध्यक्ष बनवा लिया।

अभय चौटाला ने खेल करते हुए अपने लिए नया पद बनवा लिया और वह भारतीय मुक्केबाजी संघ के नामांकित चेयरमैन बन गए। चौटाला ने यह खेल इसलिए किया कि क्योंकि आईओए का चुनाव लड़ने के लिए किसी खेल संघ का पदाधिकारी होना जरूरी था। भारतीय मुक्केबाजी संघ के सस्पेंड होने के बाद चौटाला के आईओए के अध्यक्ष बनने पर फिर सवाल खड़ा हो गया है।

भूत-प्रेत उतारने के नाम पर दुष्कर्म

भूत-प्रेत उतारने के नाम पर दुष्कर्म

उदयपुरवाटी। क्षेत्र के छावसरी गांव में कक्षा 11 में पढ़ने वाली एक बालिका से भूत-प्रेत की छाया निकालने के नाम पर दुष्कर्म करने का मामला सामने आया है। इस संबंध में बालिका ने इस्तगासे से छांवसरी गांव के दो युवकों के खिलाफ गुढ़ागौड़जी थाने में मामला दर्ज कराया है।

हालांकि मामला चार माह पुराना बताया जा रहा है। बालिका ने आरोप लगाया है कि अगस्त में वह अपने माता-पिता के साथ ननिहाल से गांव आई थी। उस समय उसके पेट में दर्द होने लगा।

गांव के मोहनलाल ने उसके पिता से कहा कि इसपर भूत-प्रेत की छाया है, जो झाड़-फूंक से ठीक हो जाएगी। दो दिन तक झाड़ा देने के बाद मोहनलाल बालिका को मुस्ताक पुत्र जमाल के पास लेकर गया। वहां भी झाड़-फूंक करता रहा। दूसरे दिन जमाल फिर आया और बालिका को एक कमरे में ले गया। आरोप है कि यहां जमाल ने उसे पानी में कुछ मिलाकर पिलाया, जिससे बालिका बेहोश हो गई। इसके बाद उसने बालिका के साथ ज्यादती की।

जयपुर धमाकों के आरोपी पर 4 लाख का इनाम



जयपुर धमाकों के आरोपी पर 4 लाख का इनाम


जयपुर। करीब चार साल पहले जयपुर में हुए सिलसिलेवार धमाकों का मास्टर माइंड और आईएम का कुख्यात आतंकी अब्दुल सुभान कुरैशी उर्फ तौकीर पूरे देश के लिए नासूर बन गया है। इंडियन मुजाहिदीन (आईएम) के इस खूंखार आतंकी को केंद्रीय जांच एजेंसी और राजस्थान सहित कई सूबों की पुलिस तलाश कर धक चुकी है।




यही वजह है कि इस खूंखार आतंकी तौकीर की गिरफ्तारी पर अब नेशनल इंवेस्टिगेशन एजेंसी (एनआईए) ने मंगलवार को चार लाख रूपए का इनाम भी घोçष्ात किया है। सूत्रों ने बताया कि आईएम प्रमुख तौकीर बम बनाने और रैकी करने के मामले में मास्टर माइंड है। इंजनियरिंग का कोर्स कर चुके तौकीर ने ही करीब चार साल पहले जयपुर में हुए सीरियल बम ब्लास्ट का खाका तैयार किया था।




जयपुर बम ब्लास्ट के मामले में राजस्थान की एटीएस पांच आरोपियों को गिरफ्तार कर चुकी है, जबकि इस मामले में नामजद चार आतंकी आज भी फरार चल रहे हैं। सूत्रों का कहना है कि जयपुर बम ब्लास्ट के मामले में चारों फरार आतंकी सहित कुख्यात आतंकी तौकीर ने भी इन दिनों खाड़ी देश में पनाह ले रखी है।




चार लाख का इनाम रखा

आतंकी तौकीर की गिरफ्तारी पर केंद्रीय जांच एजेंसी एनआईए ने भी मंगलवार को चार लाख रूपए इनाम घोçष्ात किया है। केंद्र और राज्य की खुफिया एजेंसियां तौकीर को जयपुर बम ब्लास्ट सहित गुजरात, दिल्ली, हैदराबाद सहित आईएम की ओर से गत दिनों अन्य स्थानों पर हुए बम धमाकों के मामले में तलाश रही है।




चार आतंकी आज भी फरार

राजस्थान की एटीएस जयपुर बम धमाकों के मामले में अभी तक पांच आतंकियों को ही गिरफ्तार कर पाई है। इस मामले में नामजद हुए आतंकी साजिद बड़ा, मोहम्मद खालिद, आरिज और शादाब आज भी फरार हैं।




तौकीर ने ही बनाए थे बम

सूत्रों ने बताया कि शहर में 13 मई 08 में हुए सीरियल बम धमाकों से पहले रैकी करने के लिए आईएम आतंकी तौकीर जयपुर भी आया था। सूत्रों के मुताबिक बम धमाकों से करीब दो माह पहले तौकीर आईएम के राजस्थान प्रभारी साजिद मंसूरी के साथ यहां सिंधीकैंप और एमडी रोड इलाके में देखा गया था। सूत्रों का दावा है कि जयपुर बम धमाकों के लिए शहर की चारदीवारी की तौकीर ने ही रैकी की थी। इसके अलावा जयपुर धमाकों के लिए तौकीर ने ही बम एसेंबल किए थे।

आसाराम बापू के प्रसाद से फूटी भक्त की आंख, मुकदमा दर्ज

पाली. कथावाचक आसाराम बापू के खिलाफ उनके ही एक श्रद्धालु ने कथा के दौरान लापरवाही बरतने का मुकदमा दर्ज करवाया है। श्रद्धालु का आरोप है कि प्रसाद के रूप में इलेक्ट्रॉनिक मशीन से टॉफी बांटने के दौरान उसकी आंख चोटिल हो गई। कोर्ट के आदेश पर दर्ज मुकदमे में सोजत में कथा का आयोजन करने वाली समिति प्रबंधन को भी आरोपी बनाया गया है। पुलिस के अनुसार सोजत के मगरिया बेरा निवासी हरिराम माली (25) पुत्र मांगीलाल ने कोर्ट के जरिए इस्तगासा रिपोर्ट दर्ज कराई कि गत 21 नवंबर को संत आसाराम बापू ने सोजत स्थित राजकीय कॉलेज में कथा वाचन किया।
आसाराम बापू के प्रसाद से फूटी भक्त की आंख, मुकदमा दर्ज

कथा सुनने के लिए हरिराम भी वहां गया था। रिपोर्ट में बताया गया है कि कथा समाप्त होने पर बापू ने एक ट्रॉली पर सवार होकर इलेक्ट्रॉनिक मशीन से प्रसाद के रूप में श्रद्धालुओं में टॉफियां बांटीं। इस दौरान कई लोगों के सिर व मुहं पर टॉफियां गिरीं तथा उसकी आंख से भी टकराई। इस बीच तेज गति से एक टॉफी लगने से हरिराम की आंख चोटिल हो गई, जिसके कारण स्थानीय डॉक्टर ने उसे किसी बड़े अस्पताल में आंख का उपचार कराने की सलाह दी। रिपोर्ट में आयोजन समिति के प्रबंधन को भी आरोपी बनाया गया है। सोजत पुलिस ने मामले की जांच शुरू कर दी है।

राजस्थानी लोकगीतों में राजस्थानी विवाह संस्कृति


राजस्थानी लोकगीतों में राजस्थानी विवाह संस्कृति 

 राजस्थानी लोकगीतों का राजस्थान में महत्त्वपूर्ण स्थान है तथा राजस्थान लोकगीतों के विविध विषयों पर एक विहंगम दृष्टि डालने पर ज्ञात होता है कि उन गीतों का प्रमुख विषय है, परिवार। सारे लोगगीत-साहित्य में जितनी विविध, सूक्ष्म, अभिव्यक्ति परिवार और समाज की हुई है, उतनी अन्य किसी पक्ष की नहीं। इन गीतों में जन-जीवन की पारिवारिक, नैतिक व धार्मिक मान्यताओं का रागात्मक उल्लेख होने के साथ-साथ सुरों का माधुर्य पारिवारिक चेतना का स्पन्दन है। लोकगीतों का महत्त्व केवल रागात्मक एवं हृदयग्रहिता के लिए ही नहीं है, बल्कि इसके महत्त्व का एक और तथ्य है, परिवार एवं उसके प्रत्येक चेतना स्पन्दन को उभारना व उजागर करना। ये गीत सभी जातियाँ, सभी वर्ग व सभी मनुष्य हिल-मिलकर गाते हैं। ये किसी विशेष वर्ग समूह में ही निहित नहीं है। इन गीतों में उनकी स्वंय की चेतना व स्पन्दन है। उनके परिवार का सुख-दुख, द्वेष, कलह, प्रेम व शान्ति है, व अकेलापन महसूस न कर इनसे अपनापन स्थापित करने के लिए उत्सुक हो उठता है। वह लोकगीतों के साथ हंसता है, रोता है, उठता-बैठता है तथा प्रसन्न मन से अपनी छिपी हुई पीड़ाओं को सहलाता है।

परिवार सामाजिक जीवन की सबसे बड़ी इकाई है। आदिम काल में मनुष्य एक पशु था। जिस दिन से उसने पशु युग से सामाजिक युग में प्रवेश किया, तभी से परिवार का जन्म हुआ, व उसका महत्त्व आज तक है। मनुष्य का अस्तित्व परिवार के बिना कुछ नहीं है। परिवार एक विशाल सागर है, और सागर की जो विशाल तरंग है वह है पति-पत्नी का कोमलतम व स्नेहपूर्ण सम्बन्ध। सारी प्रकृति सारी व्यवस्था व समाज का मूलाधार इसी परिवार पर केन्द्रिय है। बिना परिवार व गृहस्थ के मनुष्य का अस्तित्व कुछ भी नहीं है, मनुष्य जाति का अस्तित्व परिवार के बिना अकल्पनीय है।

वैदिक युग से आज तक परिवार का अस्तित्व रहा है। वैदिक मंत्र स्वयं में लोक गीत है, जिनमें शत: शत: कण्ठों द्वारा परिवार के अस्तित्व व आवश्यकता को जरुरी माना गया है, और सब आश्रमों में गृहस्थ को सर्वोच्च पद देकर इसको श्रेष्ठता दी गई है। समाज, राज्य और विश्व का अस्तित्व इनके द्वारा है।

इन राजस्थानी लोकगीतों में दम्पाती के पावन मधुर व सुखद सम्बन्धों को लेकर आलौकिक साहित्य रचा गया है। सूक्ष्म से सूक्ष्म कार्य कलाप की अभिव्यक्ति सबल और सशक्त ढंग से प्रतिफलित हुई है। परिवार में विवाह से पहले अनिष्ट निवारणार्थ कुलदेव - पूजन "अगन कगार' की पावन प्रतिज्ञा से लेकर विवाह, विवाह के बाद करुणा प्लावित विदाई, बालिका का पूर्व मोह एवं भविष्य के सुखद सपनों के हिंडोंले पर झूलने वाला हृदय, ससुराल प्रवेश, उसका प्रथम दिन, सहेलियों की चुहल, देवर और नन्द की मजाक, हँसी-ठट्ठा, पति से मान, पुत्रोत्पति हेतु इष्ट से कामना एवम् कालिदास की यक्षिणी की तरह पति की विरह में तिल-तिल जलकर घुलते हुए कृशकाय होना आदि सक्ष्म पक्ष इतने सफल ढंग से इन गीतों में अभिव्यक्त हुए है कि इनकी तुलना कठिन है।

राजस्थानी लोकगीतों के सन्दर्भ में पाश्चात्य विद्वान "टेसीटोरी' ने भावविभोर होकर कहा था। ""इन गीतों में एक-एक भाव पर सारे संसार का साहित्य तुच्छ है। पारिवारिक सुख-दुख, हर्ष, शोक एवं मिलन विरह के बीच सदैव प्रेम की सूक्ष्म पर प्रबल लौ जलती रही है जो सदियों तक विदेसी अन्धड़ों के बीच भी निष्कम्प पथ पर अग्रसर रही है और यही इन गीतों की सार्थकता है, सफलता है।''

ये गीत हमारे वेद है, शास्र है, धर्म ग्रन्थ हैं। जीवन है व प्रत्येक अणु, अणु की धड़कन है। मनुष्य का जीवन हमेशा प्रकृति व समाज से सम्बद्ध उसने हमेसा प्रकृति को अपनी चेतना का एक अखण्डित तत्व माना है। जहाँ वह प्रकृति पर विजय प्राप्त करना चाहता है वहीं उसका शकालु ऱ्हदय इस बात को स्वीकार करता है कि उसके अनुनय-विनय से प्रकृति संतुष्ट हो उसका कहा मानेगी, उसे संकट से उबारने में सहायक होगी। फलस्वरुप मानव आदिम अवस्था से ही जादू-टोने, टोटके, धार्मिक अनुष्ठान, भूत-प्रेत, पिशाच आदि को संतुष्ट करता आ रहा है। जहाँ से मानव की शारीरिक शक्ति चुक जाती है, वहीं से वह इन जादू टोनों के घेरे में फंस जाता है। आदिम मानव की धार्मिक भावना का यही मूलाधार है। प्रकृति की अपनी चेतना का अंश समझने के कारण ही वह अपने हर आवश्यक कार्य से पहले देवी-देवताओं को मानता है, उनके प्रति गाता है, नाचता है, उत्सव मनाता है। इन सब कार्यों के पीछे उसकी स्वंय की, परिवार की और समाज की स्वार्थपरक भावना बोल रही होती है।

विवाह सामाजिक व्यवस्था की सर्वाधिक आवश्यक कड़ी है। समाज एवं परिवार का मूलाधार ही विवाह है। वह गृहस्थी का मेरुदण्ड है, जिस पर सारे वि का कार्यकलाप व्यवस्थित है। तो फिर इस शुभ कर्म को निर्विध एवं सकुशल सम्पन्न करने के लिए क्यों ने वह प्रकृति की अराधना करे और ईष्ट देव को संतुष्ट करे। भारतीय सदा से धर्मपरक रहा है। देवी-देवता उसके अवलम्ब हैं और उन्हें संतुष्ट करना उसका कर्तव्य है। विवाह से पहले अपने कुलदेव "मायाजी' को संतुष्ट करने के लिए अपने परिवार को साथ ले सामूहिक रुप से स्तुति करता है। इन गीतों को गाते समय प्रकृति का अणु-अणु स्पन्दित होने लगता है।


म्हें तो सगलाई देवता भेट्यां रे भंवरा।
म्हारे मायाजी रे तोले कोई नहीं भंवरा।
म्हे तो सगलाई कुलदेव भेंट्या रे भंवरा।
म्हारे भोपाजी रै तैल सिंदूर चढ़े रे भंवरा।
म्हें तो सगलाई देवां ने भेंट्या रे भंवरा।
म्हारे मायाजी रे तोले कोई नहीं रे भंवरा।

मायाजी के इसी रुप में इस देवता की जो कि उसकी मानसिक परितुष्टि का एक सबल व सशक्त प्रतीक है, प्रार्थना करते हुए वह हृदय में उसे सर्वोच्च स्थान प्रदान करते हुए अपने हृदयोदगारों को मुखरित करता है। अपनी व अपने परिवार की कुशलता चाहते हैं। यहीं नहीं वह आदिदेव विघ्ननिवारक गजानन की भी ध्यावना देना नहीं भूलता, उसकी प्रार्थना करता है।


हालो विनायक आपां जोशीड़ा रे हांला
चौखा सा लगन लिखासां है। म्हारो बिड़द विनायक।
चालो विनायक आपां बजांजा रे हालां
चौका सा सालूडां मोलवसां हे। म्हारो विड़द विनायक।

विवाह उनका परित्र कार्य है, जहाँ उससे पूर्व वह अनिष्ट के निर्वाणार्थ "मायाजी' तथा "गणेश' की पूजा करना नहीं भूलता। वहां सलल्ज नाजुक सकुमारियाँ दूल्हे की बारात में जाते सूर्य की प्रचण्ड किरणों से प्रभावित होकर उससे शिकायत करना भी नहीं भूलती और साथ ही साथ चेतावनी भी देती जाती है, कि हम तो खैर यह परेशानी सह भी लेंगे पर तुम्हारे साथ मोतियों से महगें तुम्हारे बाबासा भी है औऱ लालों से तोलने योग्य माताजी किस प्रकार यह गर्मी सहन करती होगी। जरा अपने मामा, मामी और अन्य सम्बन्धियों के कष्ट का भी तो ख्याल करो -


घाम पड़े, धरती तपै रे, पड़े नगांरा री रोल
भंवर थारी जांत मांयने।
बापाजी बिना कड़ू चालणू रे
बापा मोत्यां सूं मूंगा साथा।
भंवर थारी जांन मांयने।
माताजी बिना केडूं चालणू रे
माताजी हरका दे साथ।
भंवर थारी जान मांयने।
घाम पड़े, धरती रपै रे, पड़े नागरां री रौल
भवंर थारी जांन मांयने।

मगर इस गर्मी और परेशानी में भी उसकी भौजाइयां एवं नवयुवतियां उससे चुहल करने का मौका नहीं चूकती। चाहे गर्मी पड़े, चाहे सर्दी, तकलीफ हो या कष्ट इन ठिठोलियों के प्रकाश में कपूर सी उड़ जाती है। शायद उसे चेतावनी देने पर बुरा लगा हो, शायद वह इसे दूर करने की उधेड़बुन में कुछ परेशानी-सा महसूस कर रहा है, क्यों जरा से कष्ट के लिए उसकी आत्मा को तकलीफ दी जाए। लो उधर दूल्हे का ससुराल भी तो न आने लगा। बस बहाना मिल गया और एक स्वर से मधुर धवनि वातावरण में तैरने लगी। देख, देख ! वह रही तेरी ससुराल, जिसकी प्रशंसा करते तू थकता नहीं था। अब देख तो सही कैसा न आ रहा है, मानों जोगियों का अस्त-व्यस्त सा डेरा उतरा हो। यह कोई ससुराल होने लायक है? और तेरे ससुर को तो देख, यह आदमी है या पड़गों का बौराद मोटा-सा, भद्दा थुलथुल-सा और तेरी सास तो भैंस-सी है। मैं तो उनकी प्रशंसा बहुत किया करता था। बस ऐसे ही तेरे सास-ससुर, और तेरा साला तो "मडके' का भील सा न आ रहा है, और साली बराबर जोगियों की बदरुप फूहड़ लकड़ी-सी। देख तो सही आंखे तो खोल -


चढ़ लाडा, चढ़ रे ऊँचे रो, देखाधूं थारो सासरो रे,
जांणे जाणें जोगीड़ो रा डेरा, ऐंडू के शार्रूं सासरो रे।
चढ़ लाड़ा चढ़ रे ऊँचो रो, देखांधू थारा सुसरा रे,
जाणें जाणें पड़गो रा वौरा, ऐड़ा रे थारा सुसरा रे।
चढ़ लाड़ा चढ़ रे ऊँचे रे देखांधू थारो सासरो रे,
जाणें जाणें पड़गा री "बोंरी' ऐड़ी तो थारी सासूजी रे।
चढ़ लाड़ा चढ़ रे ऊँचे रो, देखांधू थारो सासरो रे,
जाणें जाणें जोगीड़ा री छोरी, ऐड़ी तो थारी साली रे।

कितनी गहरी व प्रबल अभिव्यंजना है। हास्य का कैसा सुन्दर वातावरण-सा बना देने की क्षमता है। न शब्दों में और यह सारे गीत विषाद के घटाटोप को उजागर करने के लिए अकेला ही काफी है।

उनका दूल्हा कोई "एरा-गैरा' नहीं, मोतियों से भी महंगा है। वह यों ही भिखारी नहीं, कि ससुराल तक पैदल चला जाए। वह फूलों से भी कोमल और कमल से भी निर्मल है। ससुराल के पास ही बाराती ने गांव के बाहर तालाब के किनारे अच्छी-सी ठोड़ पर उतरकर विश्राम कर रहे हैं, और वधू-गृह को कहला भेजती है -


ऐली पैली सखरिया री पाल
पालां रे तंबू तांणिया रे।
जाये वनी रे बापाजी ने कैजो, के हस्ती तो सामां मेल जो जी।
नहीं म्हारां देसलड़ा में रीत, भंवर पाला आवणों जी।
जाय बनी रा काकाजी ने कैजो
घुड़ला तो सांमां भेजजो जी
नहीं म्हारे देशां में रीत, भेवर पाला चालणों जी
जाय बनीरा माता जी ने कैजो
सांमेला सामां मेल जो जी
नहीं म्हारे देशलड़ां में रीत
भंवर पाला आवणों री।

और दूल्हे के सास-ससुर हर्षित हो मोतियों से जड़कर, सोने के होदे से सुसज्जित हाथी और घोड़े अगवानी के लिए भेजते हैं।

राजस्थानी रमणियों की धारण शक्ति प्रबल रही है। उन्होंने जीवन के प्रत्येक छोटे से छोटे कार्य को गीतों में बांधकर सदैव के लिए चिरस्थायी बना दिया है। उनकी पैनी न से जीवन का कोई भी अंग अछूता नहीं बचा है और इन गीतों की इतनी व्यापकता होने पर भी कहीं शिथिलता, फूहड़पन और कृत्रिमता का लेश भी दृष्टिगोचर नहीं होता, बल्कि इसके विपरीत हमें इन गीतों में आशा का सुखद संदेश एवं प्रबल भावाभिव्यक्ति के साथ-साथ राजस्थान के चेतन हृदय की धड़कन स्पष्ट सुनाई पड़ती है। यही इन गीतों की सफलता होने के साथ-साथ सार्थकता भी है।

विवाह की तैयारियां हो गई। वर-वधू दोनों मण्डप में आ गए। पुरोहित के मुँह से आशीर्वचन निकलते जा रहे थे। इधर वर पक्ष की नाजुक बहुएं नयी नवेली दुल्हन को सम्बोधन कर सान्तवना देती हुई कहती है - बहूं ! तू घबराना मत। यह मत जानना कि दूल्हा अकेला है। इसके पीछे सारा भरा-पूरा परिवार है, सभी एक से एक बढ़कर हैं। जहाँ इसका काका हवलदार है, तो चूड़ीदार पजामा पहिने वे सज्जन चोपदार हैं। कोई हकिम है तो कोई किल्लेदार है। इसके साथ के बाराती जहाँ मजेदार हैं तो उनकी औरतें भी एक से बढ़कर एक हैं। बहू ! इसके साथ देख तो सही, कितने साथी आए हैं? ये सभी तो बिखरे हुए फूलों की तरह न आ रहे हैं। समष्टि रुप में एक गजरे के गूंथें हुए कुसुम हैं, जो एक होकर भी अनेक हैं और अनेक न आने पर भी एक हैं।


बनी ! थूंई मत जाणे बना सा ऐकला रै।
झमकू ! थूंई मत जाणे ""राइवर'' ऐकला रै!
साथे चूड़ीदार, चौपदार, हाकिम ने हवालदार,
कागदियों से कांमदार, काका ऊभा किल्लेदार।
भौमा ऊबा मज्जादार, सखाया सब लारोलार
फूल बिखौरे गजरों गंधियों रै
बनी थूंई मत जाणे बनासा एकला रै।

गजरे और फूलों की उपमा तो शायद विश्व-साहित्य में भू ढूंढ़ने पर न मिलेगी।

विवाह समाप्त होता है। सारे रीति-रस्म एक-एककर समाप्त होते हैं और वह घड़ी आ पहुँचती है, जिसकी बहुत दिनों से धड़कते हृदय से प्रतीक्षा हो रही थी। बेटी की विदाई की बेला यह गीत इतना मार्मिक व करुण है कि मानव तो क्या सारी प्रकृति की आँखों में आंसू छलछला आते हैं। और जब ""कोयल बाई सिध चाल्या'' गीत गाया जाता है तो, सारा वातावरण एक बारगी ही करुणा और शौक से आप्लावित-सा हो जाता है। तो इस गीत में जो माधूर्य, मानव की सहज प्रेम भावना, स्नेह और सहानुभूति और जो मार्मिक अभिव्यक्ति हुई है वह भारत तो क्या सारे वि के श्रेष्ठ काव्य में मिलना मुश्किल है। विदाई देते समय उसकी सहेलियां हिचकोले भरती हुआ गाती हैं -


म्हें थांने पूछां म्हारी धीयड़ी
म्हें थांने पूछां म्हारी बालकी
इतरो बाबा जी रो लाड़, छोड़ र बाई सिध चाल्या।
मैं रमती बाबो सो री पोल
मैं रमतो बाबो सारी पोल
आयो सगे जी रो सूबटो, गायड़मल ले चाल्यो।
म्हें थाने पूंछा म्हारी बालकी
म्हें थाने पूंछा म्हारी छीयड़ी
इतरों माऊजी रो लाड़, छोड़ र बाई सिध चाल्या।
आयो सगे जी रो सूबटो
हे, आयो सगे जी रो सूबटो
म्हे रमती सहेल्यां रे साथ, जोड़ी रो जालम ले चाल्यो।
हे खाता खारक ने खोपरा
रमता सहेलियां रे साथ
मेले से हंसियों लेइ चाल्यों
हे पाक्या आवां ने आबंला
हे पाक्यां दाड़म ने दाख
म्लेइ ने फूटर मल वो चाल्यो
म्हें थाने पूंछा म्हारी धीयड़ी
इतरों बापा जी रो लाड़, छोड़ने बाई सिध चाल्या।

हर्ष व विषाद के झूले में झूलती हुई बहू सास की तरफ रवाना हो जाती हैं। बांगा मांयली कोयल नया नीड़ बसाने की पंख फड़फड़ाकर उड़ जाती है, और पीछे छोड़ जाती है बचपन की यादें, मीठे बोल, और एक मधुर सुखद करुणा मिश्रित याद। ससुरार पहुंचकर उसे पिछले सारे समारोह तोड़कर नये सम्बन्धों से अपना तारतम्य जोड़ना पड़ता है, और इस पुरानी याद को जबरदस्ती तोड़कर नये नीड़ के सम्बन्धों की तरफ देखना इनती छोटी-सी घटना को भी लोक कवियों ने नहीं छोड़ा है। ससुराल की बहुँए, उसकी जेठानियां, ननदें और नयी सहेलियां बहूं को समझाती हुई कहती हैं - बहूं ! पीहर का मोह छोड़, अब ससुराल से स्नेह जोड़। तुम्हारे पिता तो वहीं विवश से रह गए, अपने अपने ससुर के हृदय में ही पिता की प्रतिच्छाया निहार ! अपनी माँ का मोह छोड़ने में ही कुशल है। इधर देख, ये तेरी सास है, माँ से बढ़कर हैं। इनमें माँ का रुप देख और देख तो सही तेरी सहेलियां हैं, ये देवर नहीं ! भाई हैं, ये नन्द नहीं, बहिनें हैं। पूरा परिवार यहां है, यहां पर भी देख तो सही -


झालो अलगियों तो ऐयूं जालो मांए
के धिया बाई सा रो पीवरियो तो एयूं मीडक मांए
सासूरियूं तो लीन्यूं नजरा मांए
बाइसा रो बापा जी तो रेग्या मीडंक भांए
ससुरा जी तो लीन्या नजरां मांए
सासू जी ने लीवों नजरां मांए।
बाई री साथणियां तो रैगी माड़क मांय
नणदल बाई सा ने लेवो नजरां मांए।

हर्ष व बधाई के साथ दूल्हा अपनी नयी दुल्हन के साथ घर पहुंचता है, सभी हर्षमग्न हैं। आज परिवार में एक नया प्राणी बढ़ा है। देवर को भौजाई मिली है, और जेठानियों को नई देवरानी। माँ-बाप का तो कहना ही क्या। उनका बेटा आज वास्तविक रुप में गृहस्थ में प्रवेश करता है, और बहू क्या लाया है, चांद का टुकड़ा समझ लो। साथी ही साथ कितना सारा दहेज ले आया है बेटा। मना करते-करते भी तो समझी ने कितना सारा भेज दिया है, साथ में। दुलहन तो लाया ही है साथ में "अणुअर' भी लाना नहीं भूला है। साथ में दुलहन तो लाया ही है, सबसे ज्यादा उत्कण्ठा है छोटी ननद की। उसकी भौजाई अपने बाप के घर से क्या-क्या ले आई है।


म्हारों बालूड़ों ग्यो तो सासरे, जरमरियो
काईं काईं लायो रे वीरा डायजिये ... जरमरियो ढ़ोलो
लाड़ी आयो ने अनुअर डायजिये ... जरमरियो ढ़ोलो
बेड़ो लायो ने थाली डायजिये ... जरमरियो ढ़ोलो
लोटो लायो ने लोटी डायजिये ... जरमरियो ढ़ोलो
सीरस लायो ने ढ़ाल्यो डायजिये ... जरमरियो ढ़ोलो
म्हारो बालूड़ो ग्यो तो सासरे ... जरमरियो ढ़ोलो
काईं काईं लायो रे वीरा डायजिये ... जरमरियो ढ़ोलो।

ससुर-गृह पहुँचने के बाद वधू का कर्तव्य हो जाता है अपने वंश को बढ़ाना, परिवार के सुख-दुख में हिस्सा लेते हुए सबको सुखो और सन्तुष्ट रखना। कितनी मुश्किल से उसने पीहर छोड़ा। कैसे भूलें वे गलियां वह धूल, और वह सहेलियां, जिनके साथ वह खेलकर बड़ी हुई, वह कसक मिटें तो किस तरह।

रात हुई। चिरप्रतीक्षित रात, कितनी उमंगों से उसके पति ने इस रात के स्वप्न अपनी आंखों में सजोंए थे और उस स्वंय ने भी तो धड़कते हृदय से क्या-क्या नहीं सोच डाला था, और अब जब वह रात आई तो उसकी जिठानियों ने जबरदस्ती उसे कमरे में धकेल दिया। वह बाहर कैसे जाए? क्या बहाना बनाए? अचानक उसे एक उपाय सूझता है, वह पति से अनुनय करती है कि जरा-सी देर के लिए उसे बाहर खेलने जाने दो, वह उनकी जन्म-जन्म की गुलाम बन जाएगी, यदि कुछ समय के लिए उसे छोड़ दिया जाए। तब तक वह सम्भल तो जाए। धड़कते हृदय को सान्तवना तो दे ले। अपने आपको परिस्थिति के अनुकूल ढ़ालने का अवसर तो मिलें, यह सब सोच वह अनुनय करती है -


रमणा जावा दो, बना सा खेलवा जावा दो
म्हारी नणदल जोवे बाट, राजा रमवा जावा दो
फूल गजरो ................... ढ़ोला लाल गजरो
म्हारे लावे सैर री मांलण-बाल गजरो
रकवा जावा दो ...... भंवर सा खेलवा जावो दो..

पर पति भी तो चतुर था, उसने उसकी सलज्जता देख ली थी। वह इस लाज के बन्धन को समाप्त करना चाहता था, जससे दो चिर प्यासे हृदय परस्पर मिलें और अपनी प्यास बुझाएँ। वह वैसा ही चातुर्यपूर्ण उत्तर देता है ""हाँ हाँ खेलों, जरुर खेलो, आओ इधर खेलें। सारी रात भी खेलें तो भी कौन मना करता है।''


रमजो सारी रात लाडी सा खेलजो सार रात
इस ढ़ोलियां सामी खेल, बनीसा समसां सारी रात।

हक्की-बक्की हो गई वह, उसे स्वप्न में भी आशा नहीं थी कि उसके ही शस्र से उसका वार काट दिया जाएगा। वह अपने चतुर पति का संकेत समझ गई, परन्तु #ेक बार फिर कोई नया बहाना सोच रही थी कि चतुर पुरुष ने स्पष्ट करते हुए अनुनयपूर्वक समझा दिया -


रात हुई अधरात बनीसा, रात हुई अधरात
म्हारे साथे खेलो आज, लाडी सा ... सात हुई अधरात।

वह बड़े पेशोपेश में पड़ गई। उसके तो सारे वार खाली जा रहै हैं। हीठला माने भी तो तब न? उसने स्रियोचित अन्तिम शस्र सम्भाला, जो कि अमोध था, अचूक था। सलज्ज मानवती-सी एक ओर मानकर बैठ गई चुपचाप .. निस्पन्द...।

चतुर पुरुष समझ गया, एक क्षण बीता, दो क्षण बीते, आखिर वह उटा व बोला -


राजी राजी बोल बनी तो चुड़लो पेरादूं
बेराजी बोले तो म्हारी लाल चिटियो, म्हारी फूल चिटियो
नवी नारंगी रो खेल बतादूं रसिया .... मीठी खरबूजो
राजी राजी बोल बनी तो तीमणियौ पैराधूं
बैराजी बोले तो म्हारी लाल चिटियों ... म्हारी फूल चिटियों
नई नारंगी रो खेल बता दू रसिया .. मीमो खरबूजों।

इस प्रतीक प्रधान लोकगीत में शत-शत भाव गुम्फित है, जिसका विश्लेषण करने पर ही अर्थानन्द आ सकता है, और जब हम उन भोलेभाले जन कवियों के ऐसे प्रतीक प्रधान गीत देखते हैं तो, एक बारगी ही हम उनकी कल्पना और सूझ पर बिजड़ित से हो आते हैं। उनकी कला से आगे हमारा मस्तिष्क झुक जाता है। नि:संदेह यह एक ही गीत किसी भी श्रेष्ठ साहित्य के सम्मुख बेहिचक रखा जा सकता है, यही इस गीत की विशालता व महानता है।

मगर वह नाराज थी कब? यह मान-मनौबल तो जिन्दगी की प्यास थी, यही तो क्षण सदा के लिए उनके हृदय-पटल पर अंकित हो जाएगें। वह उठी उसने समझ लिया, उसका पति सुन्दर व स्वस्थ्य ही नहीं है, वाक् चतुर भी है, परिस्थिति को भांपने की क्षमता रखता है। उसने नया पासा फेंका -


शहर बाजार में जाइजो हो बना जी हो राज
पान मंगाय वो रंगतदार बनजी बांगा माहे
पांन खाय बनी सांभी सभी, बना हजी हो राजे
बनो खीचे बनी से हाथ .. हो बांगा माहे
हाव्यलड़ों मत खीचों बना जी हो राजे
रुपया लेस्सूँ सात हजार .... हो बांगा माहे
ऊधार फुझाब मैं नहीं करां हो राज
रुपया गिगलां सात हजार ... हो बांगा माहे
शहर बाजरां मती जाइजो हो राज
म्हांने परदेसी रो कांई रे विसवास .. हो बांगा माहे....

इन गीतों की व्यजंना पर जब हम ध्यान देते हैं तो ज्ञात होता है कि राजस्थानी जननायकों एवं गायिकाओं ने परिवार व रीति-रिवाजों के छोटे से छोटे क्षण व छोटी से छोटी चेष्टा को भी अपनी आंखों से ओझल नही होने दिया है। इन गीतों में एक ऐसी चेतना और तादात्मय है, जो प्रत्येक के हृदय को झकझोरकर उसे एक सूत्र में बांधने का सफल व सहज प्रयास करता है। इन गीतों में हमारी आत्मा है, हमारा संगीत है। जनमानस की चेतना है और उसके हृदय का प्रत्येक सूक्ष्मातिसूक्ष्म रुपन्दन है। प्रत्येक छोटी से छोटी घटना प्रत्यक्षीकरण है। ये गीत हमारी सांस्कृतिक धरोहर हैं और इन गीतों के माध्यम से हमारी सभ्यता, संस्कृति व भोले-भाले निश्छल, निष्कुपट ग्रामीण हृदयों के सूक्ष्मातिसूक्ष्म स्पन्दन अक्षुण्ण है, और रहेंगे।





जैसलमेर के शासक तथा इनका संक्षिप्त इतिहास





जैसलमेर के शासक तथा इनका संक्षिप्त इतिहास


जैसलमेर राज्य की स्थापना भारतीय इतिहास के मध्यकाल के आरंभ में ११७८ई. के लगभग यदुवंशी भाटी के वंशज रावल-जैसल के द्वारा किया गया। भाटी मूलत: इस प्रदेश के निवासी नहीं थे। यह अपनी जाति की उत्पत्ति मथुरा व द्वारिका के यदुवंशी इतिहास पुरुष कृष्ण से मानती है। कृष्ण के उपरांत द्वारिका के जलमग्न होने के कारण कुछ बचे हुए यदु लोग जाबुलिस्तान, गजनी, काबुल व लाहौर के आस-पास के क्षेत्रों में फैल गए थे। कहाँ इन लोगों ने बाहुबल से अच्छी ख्याति अर्जित की थी, परंतु मद्य एशिया से आने वाले तुर्क आक्रमणकारियों के सामने ये ज्यादा नहीं ठहर सके व लाहौर होते हुए पंजाब की ओर अग्रसर होते हुए भटनेर नामक स्थान पर अपना राज्य स्थापित किया। उस समय इस भू-भाग पर स्थानीय जातियों का प्रभाव था। अत: ये भटनेर से पुन: अग्रसर होकर सिंध मुल्तान की ओर बढ़े। अन्तोगत्वा मुमणवाह, मारोठ, तपोट, देरावर आदि स्थानों पर अपने मुकाम करते हुए थार के रेगिस्तान स्थित परमारों के क्षेत्र में लोद्रवा नामक शहर के शासक को पराजित यहाँ अपनी राजधानी स्थापित की थी। इस भू-भाग में स्थित स्थानीय जातियों जिनमें परमार, बराह, लंगा, भूटा, तथा सोलंकी आदि प्रमुख थे। इनसे सतत संघर्ष के उपरांत भाटी लोग इस भू-भाग को अपने आधीन कर सके थे। वस्तुत: भाटियों के इतिहास का यह संपूर्ण काल सत्ता के लिए संघर्ष का काल नहीं था वरन अस्तित्व को बनाए रखने के लिए संघर्ष था, जिसमें ये लोग सफल हो गए।

सन ११७५ ई. के लगभग मोहम्मद गौरी के निचले सिंध व उससे लगे हुए लोद्रवा पर आक्रमण के कारण इसका पतन हो गया व राजसत्ता रावल जैसल के हाथ में आ गई जिसने शीघ्र उचित स्थान देकर सन् ११७८ ई. के लगभग त्रिकूट नाम के पहाड़ी पर अपनी नई राजधानी स्थापित की जो उसके नाम से जैसल-मेरु - जैसलमेर कहलाई।

जैसलमेर राज्य की स्थापना भारत में सल्तनत काल के प्रारंभिक वर्षों में हुई थी। मध्य एशिया के बर्बर लुटेरे इस्लाम का परचम लिए भारत के उत्तरी पश्चिम सीमाओं से लगातार प्रवेश कर भारत में छा जाने के लिए सदैव प्रयत्नशील थे। इस विषय परिस्थितियों में इस राज्य ने अपना शैशव देखा व अपने पूर्ण यौवन के प्राप्त करने के पूर्व ही दो बार प्रथम अलउद्दीन खिलजी व द्वितीय मुहम्मद बिन तुगलक की शाही सेना का
कोप भाजन बनना पड़ा। सन् १३०८ के लगभग दिल्ली सुल्तान अलाउद्दीन खिलजी की शाही सेना द्वारा यहाँ आक्रमण किया गया व राज्य की सीमाओं में प्रवेशकर दुर्ग के चारों ओर घेरा डाल दिया। यहाँ के राजपूतों ने पारंपरिक ढंग से युद्ध लड़ा। जिसके फलस्वरुप दुर्ग में एकत्र सामग्री के आधार पर यह घेरा लगभग ६ वर्षों तक रहा। इसी घेरे की अवधि में रावल जैतसिंह का देहांत हो गया तथा उसका ज्येष्ठ पुत्र मूलराज जैसलमेर के सिंहासन पर बैठा। मूलराज के छोटे भाई रत्नसिंह ने युद्ध की बागडोर अपने हाथ में लेकर अन्तत: खाद्य सामग्री को समाप्त होते देख युद्ध करने का निर्णय लिया। दुर्ग में स्थित समस्त स्रियों द्वारा रात्रि को अग्नि प्रज्वलित कर अपने सतीत्व की रक्षा हेतु जौहर कर लिया। प्रात: काल में समस्त पुरुष दुर्ग के द्वार खोलकर शत्रु सेना पर टूट पड़े। जैसा कि स्पष्ट था कि दीर्घ कालीन घेरे के कारण रसद न युद्ध सामग्री विहीन दुर्बल थोड़े से योद्धा, शाही फौज जिसकी संख्या काफी अधिक थी तथा खुले में दोनों ने कारण ताजा दम तथा हर प्रकार के रसद तथा सामग्री से युक्त थी, के सामने अधिक समय तक नहीं टिक सके शीघ्र ही सभी वीरगति को प्राप्त हो गए।

तत्कालीन योद्धाओं द्वारा न तो कोई युद्ध नीति बनाई जाती थी, न नवीनतम युद्ध तरीकों व हथियारों को अपनाया जाता था, सबसे बड़ी कमी यह थी कि राजा के पास कोई नियमित एवं प्रशिक्षित सेना भी नहीं होती थी। जब शत्रु बिल्कुल सिर पर आ जाता था तो ये राजपूत राजा अपनी प्रजा को युद्ध का आह्मवाहन कर युद्ध में झोंक देते थे व स्वयं वीरगति को प्राप्त कर आम लोगों को गाजर-मूली की तरह काटने के लिए बर्बर व युद्ध प्रिया तुर्कों के सामने जिन्हें अनगिनत युद्धों का अनुभव होता था, निरीह छोड़े देते थे। इस तरह के युद्धों का परिणाम तो युद्ध प्रारंभ होने के पूर्व ही घोषित होता था।

सल्तनत काल में द्वितीय आक्रमण मुहम्मद बिन तुगलक (१३२५-१३५१ ई.) के शासन काल में हुआ था, इस समय यहाँ का शासक रावल दूदा (१३१९-१३३१ ई.) था, जो स्वयं विकट योद्धा था तथा जिसके मन में पूर्व युद्ध में जैसलमेर से दूर होने के कारण वीरगति न पाने का दु:ख था, वह भी मूलराज तथा रत्नसिंह की तरह अपनी कीर्ति को अमर बनाना चाहता था। फलस्वरुप उसकी सैनिक टुकड़ियों ने शाही सैनिक ठिकानों पर छुटपुट लूट मार करना प्रारंभ कर दिया। इन सभी कारणों से दण्ड देने के लिए एक बार पुन: शाही सेना जैसलमेर की ओर अग्रसर हुई। भाटियों द्वारा पुन: उसी युद्ध नीति का पालन करते हुए अपनी प्रजा को शत्रुओं के सामने निरीह छोड़कर, रसद सामग्री एकत्र करके दुर्ग के द्वार बंद करके अंदर बैठ गए। शाही सैनिक टुकड़ी द्वारा राज्य की सीमा में प्रवेशकर समस्त गाँवों में लूटपाट करते हुए पुन: दुर्ग के चारों ओर डेरा डाल दिया। यह घेरा भी एक लंबी अवधि तक चला। अंतत: स्रियों ने एक बार पुन: जौहर किया एवं रावल दूदा अपने साथियों सहित युद्ध में वीरगति को प्राप्त हुआ। जैसलमेर दुर्ग और उसकी प्रजा सहित संपूर्ण-क्षेत्र वीरान हो गया।

परंतु भाटियों की जीवनता एवं अपनी भूमि से अगाध स्नेह ने जैसलमेर को वीरान तथा पराधीन नहीं रहने दिया। मात्र १२ वर्ष की अवधि के उपरांत रावल घड़सी ने पुन: अपनी राजधानी बनाकर नए सिरे से दुर्ग, तड़ाग आदि निर्माण कर श्रीसंपन्न किया। जो सल्तनत काल के अंत तक निर्बाध रुपेण वंश दर वंश उन्नति करता रहा। जैसलमेर राज्य ने दो बार सल्तनत के निरंतर हमलों से ध्वस्त अपने वर्च को बनाए रखा।

मुगल काल के आरंभ में जैसलमेर एक स्वतंत्र राज्य था। जैसलमेर मुगलकालीन प्रारंभिक शासकों बाबर तथा हुँमायू के शासन तक एक स्वतंत्र राज्य के रुप में रहा। जब हुँमायू शेरशाह सूरी से हारकर निर्वासित अवस्था में जैसलमेर के मार्ग से रावमाल देव से सहायता की याचना हेतु जोधपुर गया तो जैसलमेर
के भट्टी शासकों ने उसे शरणागत समझकर अपने राज्य से शांति पूर्ण गु जाने दिया। अकबर के बादशाह बनने के उपरांत उसकी राजपूत नीति में व्यापक परिवर्तन आया जिसकी परणिति मुगल-राजपूत विवाह में हुई। सन् १५७० ई. में जब अकबर ने नागौर में मुकाम किया तो वहाँ पर जयपुर के राजा भगवानदास के माध्यम से बीकानेर और जैसलमेर दोनों को संधि के प्रस्ताव भेजे गए। जैसलमेर शासक रावल हरिराज ने संधि प्रस्ताव स्वीकार कर अपनी पुत्री नाथीबाई के साथ अकबर के विवाह की स्वीकृति प्रदान कर राजनैतिक दूरदर्शिता का परिचय दिया। रावल हरिराज का छोटा पुत्र बादशाह दिल्ली दरबार में राज्य के प्रतिनिधि के रुप में रहने लगा। अकबर द्वारा उस फैलादी का परगना जागीर के रुप में प्रदान की गई। भाटी-मुगल संबंध समय के साथ-साथ और मजबूत होते चले गए। शहजादा सलीम को हरिराज के पुत्र भीम की पुत्री ब्याही गई जिसे 'मल्लिका-ए-जहांन' का खिताब दिया गया था। स्वयं जहाँगीर ने अपनी जीवनी में लिखा है - 'रावल भीम एक पद और प्रभावी व्यक्ति था, जब उसकी मृत्यु हुई थी तो उसका दो माह का पुत्र था, जो अधिक जीवित नहीं रहा। जब मैं राजकुमार था तब भीम की कन्या का विवाह मेरे साथ हुआ और मैने उसे 'मल्लिका-ए-जहांन' का खिताब दिया था। यह घराना सदैव से हमारा वफादार रहा है इसलिए उनसे संधि की गई।'

मुगलों से संधि एवं दरबार में अपने प्रभाव का पूरा-पूरा लाभ यहाँ के शासकों ने अपने राज्य की भलाई के लिए उठाया तथा अपनी राज्य की सीमाओं को विस्तृत एवं सुदृढ़ किया। राज्य की सीमाएँ पश्चिम में सिंध नदी व उत्तर-पश्चिम में मुल्तान की सीमाओं तक विस्तृत हो गई। मुल्तान इस भाग के उपजाऊ क्षेत्र होने के कारण राज्य की समृद्धि में शनै:शनै: वृद्धि होने लगी। शासकों की व्यक्तिगत रुची एवं राज्य में शांति स्थापित होने के कारण तथा जैन आचार्यों के प्रति भाटी शासकों का सदैव आदर भाव के फलस्वरुप यहाँ कई बार जैन संघ का आर्याजन हुआ। राज्य की स्थिति ने कई जातियों को यहाँ आकर बसने को प्रोत्साहित किया फलस्वरुप ओसवाल, पालीवाल तथा महेश्वरी लोग राज्य में आकर बसे व राज्य की वाणिज्यिक समृद्धि में अपना योगदान दिया।

भाटी मुगल मैत्री संबंध मुगल बादशाह अकबर द्वितीय तक यथावत बने रहे व भाटी इस क्षेत्र में एक स्वतंत्र शासक के रुप में सत्ता का भोग करते रहे। मुगलों से मैत्री संबंध स्थापित कर राज्य ने प्रथम बार बाहर की दुनिया में कदम रखा। राज्य के शासक, राजकुमार अन्य सामन्तगण, साहित्यकार, कवि आदि समय-समय पर दिल्ली दरबार में आते-जाते रहते थे। मुगल दरबार इस समय संस्कृति, सभ्यता तथा अपने वैभव के लिए संपूर्ण विश्व में विख्यात हो चुका था। इस दरबार में पूरे भारत के गुणीजन एकत्र होकर बादशाह के समक्ष अपनी-अपनी योग्यता का प्रदर्शन किया करते थे। इन समस्त क्रियाकलापों का जैसलमेर की सभ्यता, संस्कृति, प्राशासनिक सुधार, सामाजिक व्यवस्था, निर्माणकला, चित्रकला एवं सैन्य संगठन पर व्यापक प्रभाव पड़ा।

मुगल सत्ता के क्षीण होते-होते कई स्थानीय शासक शक्तिशाली होते चले गए। जिनमें कई मुगलों के गवर्नर थे, जिन्होंने केन्द्र के कमजोर होने के स्थिति में स्वतंत्र शासक के रुप में कार्य करना प्रारंभ कर दिया था। जैसलमेर से लगे हुए सिंध व मुल्तान प्रांत में मुगल सत्ता के कमजोर हो जाने से कई राज्यों का जन्म हुआ, सिंध में मीरपुर तथा बहावलपुर प्रमुख थे। इन राज्यों ने जैसलमेर राज्य के सिंध से लगे हुए विशाल भू-भाग को अपने राज्य में शामिल कर लिया था।
अन्य पड़ोसी राज्य जोधपुर, बीकानेर ने भी जैसलमेर राज्य के कमजोर शासकों के काल में समीपवर्ती प्रदेशों में हमला संकोच नहीं करते थे। इस प्रकार जैसलमेर राज्य की सीमाएँ निरंतर कम होती चली गई थी। ईस्ट इंडिया कंपनी के भारत आगमन के समय जैसलमेर का क्षेत्रफल मात्र १६ हजार वर्गमील भर रह
गया था। यहाँ यह भी वर्णन योग्य है कि मुगलों के लगभग ३०० वर्षों के लंबे शासन में जैसलमेर पर एक ही राजवंश के शासकों ने शासन किया तथा एक ही वंश के दीवानों ने प्रशासन भार संभालते हुए उस संझावत के काल में राज्य को सुरक्षित बनाए रखा।

जैसलमेर राज्य में दो पदों का उल्लेख प्रारंभ से प्राप्त होता है, जिसमें प्रथम पद दीवान तथा द्वितीय पद प्रधान का था। जैसलमेर के दीवान पद पर पिछले लगभग एक हजार वर्षों से एक ही वंश मेहता (महेश्वरी) के व्यक्तियों को नियुक्त किया जाता रहा है। प्रधान के पद पर प्रभावशाली गुट के नेता को राजा के द्वारा नियुक्त किया जाता था। प्रधान का पद राजा के राजनैतिक वा सामरिक सलाहकार के रुप में होता था, युद्ध स्थिति होने पर प्रधान, सेनापति का कार्य संचालन भी करते थे। प्रधान के पदों पर पाहू और सोढ़ा वंश के लोगों का वर्च सदैव बना रहा था।

मुगल काल में जैसलमेर के शासकों का संबंध मुगल बादशाहों से काफी अच्छा रहा तथा यहाँ के शासकों द्वारा भी मनसबदारी प्रथा का अनुसरण कर यहाँ के सामंतों का वर्गीकरण करना प्रारंभ किया। प्रथा वर्ग में 'जीवणी' व 'डावी' मिसल की स्थापना की गई व दूसरे वर्ग में 'चार सिरै उमराव' अथवा 'जैसाणे रा थंब' नामक पदवी से शोभित सामंत रखे गए। मुगल दरबार की भांति यहाँ के दरबार में सामन्तों के पद एवं महत्व के अनुसार बैठने व खड़े रहने की परंपरा का प्रारंभ किया। राज्य की भूमि वर्गीकरण भी जागीर, माफी तथा खालसा आदि में किया गया। माफी की भूमि को छोड़कर अन्य श्रेणियां राजा की इच्छानुसार नर्धारित की जाती थी। सामंतों को निर्धारित सैनिक रखने की अनुमति प्रदान की गई। संकट के समय में ये सामन्त अपने सैन्य बल सहित राजा की सहायता करते थे। ये सामंत अपने-अपने क्षेत्र की सुरक्षा करने तथा निर्धारित राज राज्य को देने हेतु वचनबद्ध भी होते थे।

ब्रिटिश शासन से पूर्व तक शासक ही राज्य का सर्वोच्च न्यायाधिस होता था। अधिकांश विवादों का जाति समूहों की पंचायते ही निबटा देती थी। बहुत कम विवाद पंचायतों के ऊपर राजकीय अधिकारी, हाकिम, किलेदार या दीवान तक पहुँचते थे। मृत्युदंड देने का अधिकार मात्र राजा को ही था। राज्य में कोई लिखित कानून का उल्लेख नही है। परंपराएँ एवं स्वविवेक ही कानून एवं निर्णयों का प्रमुख आधार होती थी।

भू-राज के रुप में किसान की अपनी उपज का पाँचवाँ भाग से लेकर सातवें भाग तक लिए जाने की प्रथा राज्य में थी। लगान के रुप में जो अनाज प्राप्त होता था उसे उसी समय वणिकों को बेचकर नकद प्राप्त धनराशि राजकोष में जमा होती थी। राज्य का लगभग पूरा भू-भाग रेतीला या पथरीला है एवं यहाँ वर्षा भी बहुत कम होती है। अत: राज्य को भू-राज से बहुत कम आय होती थी तथा यहाँ के शासकों तथा जनसाधारण का जीवन बहुत ही सादगी पूर्ण था।

विशाला में राजस्थानी रो हेल्लो जनजागरण और पोस्टकार्ड अभियान आयोजित




विशाला में राजस्थानी रो हेल्लो जनजागरण और पोस्टकार्ड अभियान आयोजित

राजस्थानी में हो शुरुआती प्राथमिक शिक्षा
 

मार्च से महंगा हो सकता है रेल सफर


मार्च से महंगा हो सकता है रेल सफर


नई दिल्ली। विदेशी किराना में जीत से यूपीए सरकार के हौसले बुलंद हो गए हैं। सपा और बसपा से मिली ताकत के बाद सरकार अब आर्थिक सुधारों की रफ्तार को तेज करने जा रही है। इसके तहत रेलवे में पिछले 9 साल से लंबित सुधारों को लागू किया जाएगा।


इन सुधारों के तहत सरकार जल्द ही स्वतंत्र टैरिफ रेगुलेटर स्थापित करेगी। इसकी स्थापना से मार्च से रेल सफर महंगा हो जाएगा। पिछले 9 साल से यात्री किराए में बढ़ोतरी नहीं हुई है। प्रधानमंत्री कार्यालय ने टैरिफ रेगुलेटर की स्थापना के लिए रेलवे के वरिष्ठ अधिकारियों को डेडलाइन तय करने का निर्देश दिया है।


साथ ही निश्चित समय सीमा के भीतर लंबित पड़े प्रोजेक्ट्स को पूरा करने को कहा है। प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह ने अंतर मंत्रालयी समूह को रेल टैरिफ अथॉरिटी के गठन के लिए 31 दिसंबर तक का वक्त दिया है। अंतर मंत्रालयी समूह की अध्यक्षता रेलवे बोर्ड के चेयरमैन हैं। यह अथॉरिटी यात्री किराए को तार्किक करने पर अपनी सिफारिशें देगा। पीएमओ ने ट्रांसपोर्टर को 15 जनवरी 2013 तक कैबिनेट नोट को आगे बढ़ाने का निर्देश दिया है।

गौरतलब है कि रेल मंत्री बनने के तुरंत बाद पवन कुमार बंसल ने यात्री किराए में बढ़ोतरी के संकेत दिए थे। बंसल का कहना था कि यात्री किराए में दी जा रही सब्सिडी के कारण घाटा बढ़ता जा रहा है। अब रेगुलेटर ट्रेनों को चलाने के लिए डीजल और बिजली पर आने वाले खर्च की समीक्षा करेगा। साथ ही घाटा पूरा करने के लिए यात्री किराए में बढ़ोतरी की सिफारिश कर सकता है।

अश्लील फोन कॉल से परेशान हैं स्वामी

अश्लील फोन कॉल से परेशान हैं स्वामी 

नई दिल्ली। जनता पार्टी के अध्यक्ष सुब्रमण्यम स्वामी इन दिनों अज्ञात फोन कॉल से परेशान हैं। स्वामी ने पुलिस में शिकायत भी दर्ज कराई है। दरअसल किसी ने स्वामी के नंबर फ्रेंडशिप क्लब के विज्ञापन में डाल दिए थे। इसके बाद उन्हें फोन आने लगे। फोन उठाते ही सामने वाला उनसे अश्लील बातें शुरू करने लगता है।

सूत्रों के मुताबिक विज्ञापन में स्वामी की पत्नी के फोन नंबर भी शामिल हैं। उनकी पत्नी ये नंबर चेन्नई में यूज करती है। इसके अलावा उनके निजामुद्दीन स्थित आवास के चार लैंड लाइन नंबर भी शामिल हैं।

बुधवार को स्वामी ने पुलिस में शिकायत की। इसमें स्वामी ने कहा कि 27 नवंबर से उनको अश्लील फोन कॉल आ रहे हैं। एक पुलिस अधिकारी ने बताया कि ऎसा स्वामी के निजामुद्दीन इलाके में स्थित आवास और दिल्ली रेलवे स्टेशन पर पोस्टर चिपकाने के कारण हो रहा है।

फाइलो मे "गुल" हो गया "गूगल"

फाइलो मे "गुल" हो गया "गूगल"

जैसलमेर। अस्तित्व के लिए जूझ रहे गूगल के पौधे को फिर से पहचान दिलाने के उद्देश्य से शुरू की गई प्रशासनिक कवायद पौधो व तकनीकी सुविधाओ के अभाव मे अटक गई है। इस यूनानी पौधे को जिले की शान बनाने का सपना अब टूटता दिखाई दे रहा है। मरूप्रदेश मे पांच हजार पौधो को लगाने की योजना थी, लेकिन दुर्लभ माने जाने वाले यूनानी गूगल के पौधो को विकसित करने की योजना फाइलो मे ही खो गई है। करीब पांच वर्ष पहले गूगल प्रोजेक्ट का आगाज तो कर दिया गया था, लेकिन पौधो की अनुपलब्धता और तकनीकी खामियो के कारण यह प्रोजेक्ट फ्लॉप हो गया। हालत यह है कि अब जनप्रतिनिधि भी इस प्रोजेक्ट से हाथ खींच रहे हंै।

अकाल का दंश, रासायनिक पदार्थो का उपयोग व लगातार हो रहे दोहन से गूगल के अस्तित्व को संकट मे पाकर इन्हे फिर से विकसित करने के लिए यह योजना तैयार की गई थी। यदि जिस सक्रियता से योजना का कार्य शुरू किया गया ,उसी सक्रियता से इसको सतत रूप से जारी रखा जाता तो गजरूपसागर क्षेत्र का नजारा ही बदल जाता। यही नहीं गूगल प्रोजक्ट के कारण यह क्षेत्र पर्यटन स्थल के रूप मे भी विकसित हो सकता था।

अधर मे अटका सपना
योजना के तहत गजरूप सागर क्षेत्र मे गड्ढ़े करवाकर मेड़बंदी करवाई जानी थी। गूगल व्यवसाय को जिले मे फिर से उन्नत करने के लिए रोजगार गारंटी योजना के तहत अमरसागर ग्राम पंचायत की ओर से यह कार्य करवाया जाना था। इसके लिए शहर से दूर गजरूप सागर क्षेत्र मे इसकी उन्नत किस्म के पांच हजार पौधे लगाने थे। यहां एक लाख लीटर पानी की क्षमता वाला टांका भी तैयार कराने की योजना थी। ग्राम पंचायत प्रशासन गजरूप सागर क्षेत्र को गूगल के साथ-साथ पर्यटन की दृष्टि से लोकप्रिय बनाना चाहता था।

दिल्ली में विदेशी युवती तो हरियाणा में 75 साल की बुजुर्ग से रेप

नई दिल्ली. दिल्ली के तिमारपुर थाना इलाके में एक विदेशी युवती से गैंगरेप की वारदात सामने आई है। पुलिस ने चार आरोपियों को गिरफ्तार भी किया है। पीड़ित युवती अफ्रीकी देश रवांडा की बताई जा रही है। गैंगरेप के आरोपी उत्तर प्रदेश और बिहार के हैं। पीड़ित युवती ने 5 दिसंबर को थाने में एफआईआर दर्ज करवाई थी। युवती ने अपनी शिकायत में प्रवीन, आलोक, विकास और दीपक नाम के युवकों पर गैंगरेप का आरोप लगाया था। चारों आरोपी दिल्ली के नेहरू विहार इलाके में रहकर प्रतियोगी परीक्षाओं की तैयारी कर रहे हैं। 

युवती के मुताबिक आरोपियों ने पहले उससे दोस्ती की और फिर उसका गैंगरेप किया। युवक उसे पार्टी करने के बहाने घर पर ले गए थे जहां नशा देकर उसके साथ गैंगरेप किया गया। शिकायत के बाद पुलिस ने युवती का मेडिकल टेस्ट करवाया जिसमें बलात्कार की पुष्टि हुई। पुलिस ने तेजी से कार्रवाई करते हुए चारों आरोपियों को गिरफ्तार कर लिया।

देश की राजधानी दिल्‍ली में महिलाओं की आबरू महफूज नहीं है। दिल्‍ली में बीते साल रेप के सबसे अधिक मामले दर्ज किए गए। इसके बाद देश की आर्थिक राजधानी के तौर पर मशहूर मुंबई का नंबर आता है। एनसीआरबी के आंकड़ों के मुताबिक 2011 में दिल्‍ली में रेप के 568 मामले दर्ज किए गए। रेप के मामलों की जांच में जुटे पुलिस अधिकारियों का मानना है कि ऐसे अधिकतर मामलों में आरोपी को पीडिता के बारे में जानकारी होती है। यह एक सामाजिक समस्‍या है और ऐसे अपराधों पर नकेल कसने के लिए रणनीति बनाना असंभव है।

शादी का झांसा दे शादीशुदा शिक्षक ने किया सात माह तक रेप

पंचकूला के पास मनीमाजरा के मौलीजागरां स्थित विकास नगर में एक टीचर पर उसकी एक स्टूडेंट ने दुष्कर्म करने का आरोप लगाया है। विकास नगर की रहने वाली और बारहवीं क्लास में पढऩे वाली लड़की ने मनीमाजरा पुलिस को दी शिकायत दी है। उसने बताया कि मोहाली के मुंडी खरड़ का रहने वाला इन्द्रजीत विकास नगर में एक कोचिंग इंस्टीट्यूट में पढ़ाता और कम्प्यूटर कोर्स करवाता था। पीडि़त लड़की ने बताया कि वह उसने कम्प्यूटर कोर्स के लिए दाखिला लिया था। इन्द्रजीत ने शादी करने का झांसा देकर सात महीने तक उसके साथ दुष्कर्म किया। इन्द्रजीत ने यह कभी नहीं बताया कि वह शादीशुदा है और उसकी एक पांच साल की बेटी भी है। पुलिस ने लड़की की शिकायत पर मामला दर्ज कर आरोपी इन्द्रजीत को गिरफ्तार कर लिया और जांच शुरू कर दी। वहीं, इन्द्रजीत अपने पर लगे आरोपों को गलत बता रहा है।


75 वर्षीय महिला से रेप का आरोपी गिरफ्तार

जींद जिले के सफीदों कस्बे में एक वृद्धा के साथ बलात्कार करने के आरोप में पुलिस ने गांव बुढ़ाखेड़ा के रहने वाले राजा नाम के व्यक्ति को गिरफ्तार कर लिया है। आरोपी को स्थानीय सिविल जज सीनियर डिविजन विवेक गोयल की अदालत में पेश किया। जहां अदालत ने आरोपी को 14 दिन की न्यायिक हिरासत में जींद जेल भेज दिया। गौरतलब है कि गांव बुढ़ाखेड़ा की 75 वर्षीय वृद्धा कलासो देवी ने पुलिस को अपनी शिकायत में कहा था कि वह अकेली गली में धूप में बैठी थी, दोपहर बाद उसके देवर का लड़का राजा पुत्र सुरता 35 वर्षीय आया और जबरदस्ती उसे उसके कमरे में ले गया और उसका मुंह बंद कर उसके साथ बलात्कार कर मौके से फरार हो गया। इस संदर्भ में थाना प्रभारी गुरदयाल सिंह ने बताया कि महिला की शिकायत पर गांव बुढ़ाखेड़ा के आरोपी राजा पुत्र सुरता के खिलाफ मामला दर्ज कर, अदालत के आदेशों पर जेल भेज दिया है।

जैसलमेर में महिला पुलिस थाना शुरू


जैसलमेर में महिला पुलिस थाना शुरू

जैसलमेर। जैसलमेर में महिलाओं से संबंधित मामलों को लेकर पुलिस थाना शुरू किया गया है। फिलहाल इस थाने का संचालन शहर कोतवाली परिसर में ही किया जा रहा है। पुलिस के अनुसार जैसलमेर में महिलाओं से संबंधित अपराध के मामलों की सुनवाई अब महिला पुलिस थाना में होगी। इसके लिए पुलिस उप निरीक्षक जेठाराम को थानेदार नियुक्त किया गया है। पुलिस थाने में स्टॉफ भी लगाया गया है। उम्मीद जताई जा रही है कि महिला थाना शुरू होने से महिलाओं से संबंधित मामलों में त्वरित व प्रभावी कार्रवाई हो सकेगी।

यादें 16 दिसंबर 1971 जब पाकिस्तान भारत से युद्ध हारा


यादें 16 दिसंबर 1971 जब पाकिस्तान भारत से युद्ध हारा



16 दिसंबर यानी आज के ही दिन1971 में पाक सेना ने अपने93000 सैनिकों के साथआत्मसमर्पण किया था। महज 13दिन में घुटने टेकने वाली पाक सेनाके सामने हमारी सेना काफी कमथीं, बावजूद इसके भारतीयसेनाओं ने दबाव का ऐसा माहौलबनाया कि पाक को झुकना पड़ाऔर बांग्लादेश का उदय हुआ। उस वीर विजय की आज 40वीं वर्षगांठ है।

16 दिसंबर 1971 सुबह 10:40 बजे अल्टीमेटम समाप्त होने से पहले ही पैरा बटालियन, जो ढाका केबाहरी क्षेत्र में पहुंच गई थी, ने मेजर जनरल मोहम्मद जमशेद और उनकी 26 इन्फैंट्री डिवीजन केसमक्ष आत्मसमर्पण कर दिया। दोपहर 2।30 बजे जनरल नियाजी ने आत्मसमर्पण की प्रक्रिया शुरूकर दी तथा शाम 4:31 बजे तक उन्होंने ऐतिहासिक ढाका रेसकोर्स में पूर्वी कमांड के जीओसी इनचीफ लेफ्टिनेंट जनरल जगजीत अरोड़ा के समक्ष औपचारिक रूप से आत्मसमर्पण कर दिया। इस शानदार जीत के कुछ अनदेखी तस्वीरें आपके लिए मैं यहाँ पर पोस्ट कर रहा हूँ उम्मीद है आपकोपसंद आएगी.

1971 के युद्ध की कुछ अनदेखी तस्वीरेंजनरल सैम मानेकशॉ 8वीं गोरखा राइफ़ल्स के वीरता पदक विजेता सैनिकों के साथ
एक भारतीय गोरखा जवान की बातों पर मुस्कुराते हुए जनरल सैम मानेकशॉ और लेफ़्टिनेंट जनरलसरताज सिंह.
1971 की लड़ाई में गोरखा सैनिक की मदद से अस्थायी मोर्चे पर चढ़ते भारत के पहले फील्डमार्शल मानेकशा
भारतीय सैनिकों के सामने हथियार डालने के बाद युद्धबंदी कैंप में पाकिस्तानी सैनिक.
युद्ध के दौरान मंत्रणा करते हुए तत्कालीन रक्षा मंत्री जगजीवन राम और थलसेनाध्यक्ष जनरल सैममानेकशॉ.
पश्चिमी कमान के प्रमुख जनरल कैंडिथ वरिष्ठ सैनिक कमांडरों से मंत्रणा करते हुए.
ढाका की ओर बढ़ता हुआ रूस में बना भारतीय टैंक टी-55
भारतीय सैनिकों को ढाका की तरफ़ बढ़ने से रोकने के लिए पाकिस्तानी सैनिकों ने हार्डिंज पुल परअपना ही टैंक ख़राब करके छोड़ दिया

पश्चिमी पाकिस्तान में इस्लामकोट पर सफल हमले के बाद 10पैरा कमांडो के भारतीय सैनिक लौटतेहुए। (साभार- भारतीय तटरक्षक )