मंगलवार, 6 मार्च 2012

मूक प्राणियों को अभयदान देती है होली ... जहाँ अबोले जीव भी मनाते हैं होली का जश्न




मूक प्राणियों को अभयदान देती है होली

... जहाँ अबोले जीव भी मनाते हैं होली का जश्न

- डॉ. दीपक आचार्य

वागड़ अंचल में होली के कई-कई रंग देखे जा सकते हैं। एक ओर जहां होली आम आदमी के लिए रंगों और मौज-मस्ती का दरिया उमड़ाने वाला पर्व है वहीं एक स्थान ऐसा भी है जहाँ होली मूक प्राणियों के लिए अभयदान का पैगाम लेकर आती है।

डूंगरपुर से 60 किलोमीटर दूर माही के किनारे कड़ाणा बैक वाटर क्षेत्र में अवस्थित और किसी समय वागड़ की राजधानी के रूप में मशहूर गलियाकोट कस्बा बोहराओं की आस्था स्थली पीर फखरुद्दीन की विश्वविख्यात दरगाह और शक्ति साधना के प्राचीन तीर्थ शीतला माता मन्दिर के लिए जग विख्यात है।

गलियाकोट के शीतला माता मन्दिर पर यों तो साल भर श्रद्धालुओं का जमघट लगा रहता है और मेले-पर्वों पर जन ज्वार उमड़ता है जो शक्ति पूजा की सनातन परम्पराओं का उद्घोष करता है। लेकिन यहां हर साल होली का पर्व मूक प्राणियों के लिए त्योहार का दिन होता है। इस दिन यहां होने वाला परम्परागत जीव रक्षा अनुष्ठान अपने आप में अनूठा है।

शीतला मैया के प्रति लोगों में अपार श्रद्धा है और मान्यता है कि इस तीर्थ पर आकर दर्शन एवं पूजा-अर्चना करने से शारीरिक व्याधियों से मुक्ति प्राप्त होती है। कई बार मरणासन्न व्यक्तियों को भला-चंगा करने की प्रार्थना के साथ देवी के चरणों में किसी न किसी प्रकार के जानवर हो समर्पित किया जाता है।

किसी जमाने में इन जानवरों की बलि चढ़ाने की प्रथा थी। इस आदिवासी अंचल में पुराने जमाने से यह मान्यता रही है कि जीव के बदले किसी जीव को चढ़ा देने से व्याधिग्रस्त प्राणी के रोग समाप्त हो जाते हैं व वह फिर से सामान्य जीवन जीने लगता है। लेकिन कुछ दशक से बलि प्रथा पर रोक लगी और अब देवी मैया को बिना बलि दिए जानवर समर्पित कर दिए जाते हैंे।

प्रायःतर गूंगापन दूर करने, मनुष्य की शारीरिक व्याधियों के शमन के लिए यहां देवी के चरणों में जीव चढ़ाने की प्रथा सदियों से चली आ रही है। महीने में कम से कम से दस-पन्द्रह जानवर ऐसे होते हैं जो यहां शीतला मैया के चरणों में भेंट किये जाते हैं। इससे साल भर में जानवरों की काफी संख्या इकट्ठा हो जाती है। श्रद्धालुओं के चढ़ावे और खाद्यान्न आदि की निरन्तर आवक के चलते इन जानवरों को यहां किसी प्रकार की दिक्कत महसूस नहीं होती बल्कि ये हृष्ट-पुष्ट होते रहते हैं।

हर साल आने वाली होली इन जानवरों के लिए उत्सव से कम नहीं होती। इस दिन मन्दिर परिसर में साल भर से जमा होते रहने वाले जानवरों को ‘अमरिया’ (स्वतन्त्र जीवनयापन के लिए मुक्त) कर दिया जाता है। इसके अन्तर्गत मन्दिर परिसर में इन जानवरों की पूजा के बाद इनके कान आंशिक रूप से काट कर तथा मूर्गे की अंगुली काट कर अमरिया कर देने का रिवाज चला आ रहा है।

साल भर में जितनी भेड़ें, बकरे, मूर्गे चढ़ते हैं पुजारी उनके कान काट कर अमरिया कर देते हैं। ताकि न इसे कोई बेच सके, न काट सके। अमरियों को किसी तरह का कोई नुकसान नहीं पहुंच सकता। क्योंकि इन पशुओं को भगवान का माना जाता है।

ये जानवर पूरी तरह देवी मैया के जानवर माने जाते हैं व इन्हें तंग करना वर्जित माना गया है। अमरिया किए गए जानवरों को न कोई मार सकता है, न ही इन्हें बेचा जा सकता है। ये जानवर ताज़िन्दगी पूरी तरह स्वच्छन्द विचरण करते रहते हैं।

कुछ दशक पहले तक इस मन्दिर पर मनोकामनाएं पूरी होने की मन्नत को लेकर जानवरों की बलि चढ़ती थी पर पचास साल पूर्व इसे बन्द कर दिया गया। अब इन जानवरों को अमरिये करने का रिवाज है।

इन जानवरों को पवित्र माना जाता है। अमरिया किया गया कोई जानवर मर जाए तो विधि-विधान के साथ उसे जमीन में गड़ढ़ा खोद कर वस्त्रा में लपेट कर दफनाया जाता है और उसकी आत्मा की शांति के लिए अन्य पशुओं को दाना-पानी भेंट किया जाता है।

शीतला माता मन्दिर के प्रति लोगों में अपार जनास्था है। लोग मनौतियां मानते हैं और ठीक हो जाने पर चान्दी का वही अंग बनवाकर देवी को भेंट चढ़ाते हैं जिसे ठीक होने के लिए मन्नतें मानी होती हैं। जैसे आंख के रोगी ठीक हो जाने पर चान्दी की आंख, कान ठीक हो जाने पर चान्दी का कर्ण, बच्चा होने पर चान्दी/काष्ठ का पालना, हाथ-पांव ठीक हो जाने पर चान्दी या लकड़ी का हाथ-पांव चढ़ाते हैं।

शीतला सप्तमी को मन्दिर में विशेष आयोजन होते हैं और मेला भरता है जबकि साल भर यहां दूर-दूर से श्रद्धालु आते रहते हैं। हर साल होली पर यहां कई बकरे, मूर्गे और भेड़ें आदि जानवर अमरिया कर मुक्त कर दिए जाते हैं। हर साल अमरिये होने वाले जानवरों की वजह से तीर्थ परिसर में इनका जमघट लगा रहता है।

---000---(डॉ. दीपक आचार्य)

महालक्ष्मी चौक, बांसवाड़ा (राजस्थान)

327001


Mobile : 9413306077

   

जैसलमेर के लोक कलाकार उस्ताद कमरूद्दीन खां को राष्ट्रीय गौरव पुरस्कार , अहमदाबाद में बुधवार को नवाजा जाएगा


जैसलमेर के लोक कलाकार उस्ताद कमरूद्दीन खां को राष्ट्रीय गौरव पुरस्कार ,
अहमदाबाद में बुधवार को नवाजा जाएगा
जैसलमेर, 6 मार्चलम्बे समय से राजस्थानी लोकसंगीत क्षेत्र में समर्पित सेवाओं के लिए जाने-माने लोक कलाकारउस्ताद कमरुद्दीन खां को गुजरात लोक कला फाउण्डेशन ने सन् 2012 के गुजरात लोककला राष्ट्रीय गौरव पुरस्कार प्रदानकरने का निर्णय लिया है।
फाउण्डेशन के मैनेजिंग ट्रस्टी जोरावरंिसंह यादव ने बताया कि बुधवार, 7 मार्च को अहमदाबाद के टेगोर हॉल मेंआयोजित अवार्ड वितरण समारोह में उन्हें 11 हजार रुपए नकद पुरस्कारस्मृति चिह्न,सम्मान-पत्र शॉल आदि सेसम्मानित किया जाएगा। इसी समारोह में उस्ताद कमरुदीनखां राजस्थानी लोकसंगीत पर  एक घण्टे की प्रस्तुति देंगे।इस पुरस्कार को पाने के लिए उस्ताद कमरुद्दीन खां एवं दल जैसलमेर से अहमदाबाद पहुंच चुका है। राष्ट्रीय गौरवपुरस्कार से सम्मानित होने पर जैसलमेर की विभिन्न संस्थाओंकलाकारों एवं बुद्धिजीवियों तथा कलाप्रेमियों नेउस्ताद कमरुद्दीन खां को बधाई दी हैं।

एक ऐसा गॉव........जहॉ दूसरी बेगम से होती संतान


एक ऐसा गॉव........जहॉ दूसरी बेगम से होती संतान 

चन्दनसिंह भाटी की खास रिपोर्ट 

बाडमेर भारत पाकिस्तान सरहद पर बसे बाडमेर जिले के एक गाूव के साि अजीब संयोग जुडा हैं।इस गॉव में प्रत्येक परिवार में दूसरी बेगम से ही संतान होने का अजीब संयोग जुडा हेै।बाडमेर गडरा रोड सडक मार्ग पर जिला मुख्यालय से अठाइस किलोमीटर दूर स्थित देरासर ग्राम पंचायत के अल्प संख्यक बाहुल्य राजस्व गांव रामदियों की बस्ती के सतर परिवारों कें साथ यह संयोग जुडा हैं। 
बाडमेर जिला मुख्यालय से अठाइस किलोमीटर गउरा रोड सउक मार्ग पर स्थित देरासर ग्राम पंचायत के अल्पसंख्यक बाहुल्य रामदियों की बस्ती में सतर परिवार आबाद हैं।सभी परिवार रामदिया मुसलमान समुदाय से हैं।इस गावॅ के हर परिवार में हर व्यक्ति क दो दो निकाह किऐं हैं।मुसलिम परिवारों में दो निकाह कोइ्र आश्चर्य का कारण नही हैं।मगर इस गांव के लोगों द्घारा दूसरा निकाह करने के पीछे जो कारण हेंवो आचर्यजनक हैं।इस गॉव में किसी भी परिवार में पहली भादी कें बाद किसी के भी संतान नहीं हैं।मगर दूसरी भादी के बाद सभी के दूसरी बीबी से संतान हैं। 
एक दो परिवारों में ऐसा हो तो उसे संयोग मात्र कह सकते हैं।मगर हर व्यक्ति कें दूसरी भादी के बाद ही संतान होना किसी आचर्य से कम नही हैं।गांव कें बुजुर्ग पैंसठ वशीर्य आरब खान बताते हैं कि गांव कें साथ यह संयोग कई दाकों से जूडा हैं।गांव कें लाला मीठा के भादी के बाद कई सालों तक संतान नहीं हुई।परिजनों नें कई र्मतबा उस पर दूसरी निकाह के लिऐं दबाव डाला मगर मीठा नें साफ इन्कार कर दिया।लगभग पचपन साल की उम्र में उसकी पत्नी का निधन हो गया।उसके बाद परिजनों कें दबाव कें कारण मीठा नें दूसरी भादी के लिऐं अपनी रजामंदी दी।निकाह के एक साल बाद ही उसकें घर लडकी पैदा हुई।फिर तीन लडकें भी हुऐं।इसकें बाद सें तो हर परिवार में पहली भादी के बाद पहली बीबी से किसी को भी संतान नही हुइ्रं। 
दूसरी भादी करनें कें बाद दूसरी बेंगम से हर परिवार में संतानें हुई।यह परिपाटी आज भी बदस्तुर जारी हैं।इसका कारण पूदने पर आरब नें इसे खुदा की मेहर बताया।गांव में कइ्र लोगों नें आधी उम्र बीत जानें कें बाद संतान की चाह में भादीया की तों उन्हें निराा हाथ नही लगी।जिसने भी दूसरी ादी की उसकें संतानें जरूर हुई।गत माह भी तीन तनों नें दूसरी भादीया की हैं।गांव में लगभग सभी लोग आिक्षित हैं।इस गांव कें जादम खान के अनुसार उसकी पहला निकाह सत्रह साल की उम्र में हो गई थी।चार साल तक घर में बच्चा नही होनें कें कारण मेरा दूसरा निकाी सफियत कें साथ हुआ।जिससें मेरे को तीन लडकें और चार लडकिया हुर्ह। 


बहाहाल रामदियो की बस्ती नामक इस गाँव कें साथ रोचक तथ्य जुडा हें।आखिर कोइ्र वैज्ञानिक कारण हें या महज संयोग सोचने वाली बात हैं। े 





पति का था बेटी से अवैध संबंध, पत्नी की हत्या कर आंगन में दफनाई लाश!

बटाला. सागरपुरा में एक व्यक्ति द्वारा अपनी पत्नी की हत्या करने के बाद घर में ही दबाए उसके शव को पुलिस ने सोमवार को ड्यूटी मजिस्ट्रेट तहसीलदार जशनप्रीत सिंह की मौजूदगी में जमीन से खोद निकाला है।  

मौके पर सिविल अस्पताल के डा. ललित मोहन, डा. राजीव अरोड़ा, डा. परमजीत कौर मौजूद थीं। उधर, हत्यारोपी अनवर मसीह उर्फ गोल्डी मृतक महिला शीरो की नाबालिग बेटी को साथ लेकर फरार है।

एसपी डी परमजीत सिंह ग्रेवाल और डीएसपी सिटी बलजीत सिंह ने बताया कि मृतका के बेटे अजय के बयान पर अनवर मसीह उर्फ गोल्डी पर हत्या का मामला दर्ज किया गया है।

मृतका की माता खुरशैदां और बहन मनजीत ने बताया कि पिछले कई दिनों से शीरो से उनका संपर्क नहीं हो रहा था। जब वे उसके सागरपुरा स्थित घर आए तो घर खाली था और कोई नहीं था। बरामदे में खोदे गए गड्ढे में उसका शव दबा प्रतीत हो रहा था। कुछ दिन पहले शीरो ने फोन पर बताया था कि अनवर घर में शौचालय के लिए रात में गड्ढा खोद रहा है। संदेह होने पर उन्होंने पुलिस को सूचना दी।


समाज के लिए खतरे की घंटी है यह हत्याकांड

इस हत्याकांड में सामाजिक रिश्तों के घिनौने जख्मों से ऐसा मवाद रिसा है, जिसकी बदबू से ही घृणा होती है। मृतका व फरार पति और बेटी के आपसी संबंध सभ्य समाज के लिए खतरे की घंटी है। मृतका शीरो का पति बताया जाने वाला अनवर मसीह उर्फ गोल्डी दरअसल उसकी बुआ का बेटा है। बताया गया है कि मृतका शीरो का अपने पति से तलाक हो चुका था और उसकी पहले पति से एक बेटी व बेटा है।


तलाक के बाद शीरो के अपनी बुआ के बेटे अनवर मसीह उर्फ गोल्डी से संबंध बना लिए और वह उसके पति की हैसियत से उसके साथ रहने लगा। इसी दौरान गोल्डी के संबंध शीरो की बेटी प्रीति जो रिश्ते में उसकी भांजी लगती थी, के साथ भी बन गए और यही वजह बनीं शीरो की मौत की। हत्या के बाद से ही गोल्डी और प्रीति फरार हैं।

रुझानों में सपा नंबर 1 और भाजपा दूसरी सबसे बड़ी पार्टी

 

नई दिल्ली. उत्तर प्रदेश, पंजाब, उत्तराखंड, मणिपुर और गोवा विधानसभा चुनाव के वोटों की गिनती जारी है। उत्‍तर प्रदेश में 216 सीटों के रुझान में से सपा 95 पर आगे है, जबकि बसपा 35, कांग्रेस 25 और भाजपा 55 सीटों पर बढ़त बनाए हुए है।
पंजाब में अभी तक 67 सीटों के रूझान आए हैं। कांग्रेस 25 और भाजपा 38 सीटों पर बढ़त बनाए हुए हैं। चार सीटों पर अन्य ने बढ़त बनाई है।


उत्तराखंड की 51 सीटों के लिए रूझान आए हैं। कांग्रेस ने 23, भाजपा ने 25 और अन्य ने तीन सीटों पर बढ़त बनाई है।


गोवा में अभी दो ही सीटों के रूझान आए हैं। भाजपा और कांग्रेस एक-एक सीट पर बढ़त बनाए हुए है।

उत्तर प्रदेश से सबसे ज्यादा चौंकाने वाले रूझान रायबरेली से आ रहे हैं। यहां सभी पांच सीटों पर कांग्रेस पीछे चल रही है।


पांचों राज्‍यों में काउंटिंग जारी है। पहला परिणाम एक से दो घंटे में आने का अनुमान है। दोपहर तक सभी राज्यों में स्थिति साफ हो जाएगी। नतीजों का राजनीतिक दल नब्ज थाम कर इंतजार कर रहे हैं।
नतीजे ही तय करेंगे किसकी होली रंगीन होगी। दोनों राष्ट्रीय दल कांग्रेस और भाजपा ने अपने संभावित बेहतर पक्ष और कमजोर कड़ी को ध्यान में रखकर आगे की तैयारियों पर होमवर्क किया है। दोनों पांच राज्यों के चुनाव परिणामों को लेकर सतर्क हैं। पंजाब, उत्तराखंड दोनों दलों की उम्मीदों के लिहाज से अहम राज्य है। जहां तक बात यूपी की है, दोनों दलों को तीसरे नंबर पर रहने में अपनी जीत नजर आ रही है।

राजस्थान के लोकनाट्य - जैसलमेर व बीकानेर की रम्मते

राजस्थान के लोकनाट्य -   जैसलमेर व बीकानेर की रम्मते

रामत खेत सिंह जंगा,मुकन लाल जगाणी

लोक संगीत की दृष्टि से जैसलमेर क्षेत्र का एक विशिष्ट स्थान रहा है। यहाँ पर प्राचीन समय से मा राग गाया जाता रहा है, जो इस क्षेत्र का पर्यायवाची भी कहा जा सकता है। यहाँ के जनमानस ने इस शुष्क भू-ध्रा पर मन को बहलाने हेतु अत्यंत ही सरस व भावप्रद गीतों की रचना की। इन गीतों में लोक गाथाओं, कथाओं, पहेली, सुभाषित काव्य के साथ-साथ वर्षा, सावन तथा अन्य मौसम, पशु-पक्षी व सामाजिक संबंधों की भावनाओं से ओतप्रोत हैं। लोकगीत के जानकारों व विशेषज्ञों के मतों के अनुसार जैसलमेर के लोकगीत बहुत प्राचीन, परंपरागत और विशुद्ध है, जो बंधे-बंधाये रुप में अद्यपर्यन्त गाए जाते हैं।


जन्म के अवसर पर हालरिया नामक गीत श्रंखला गाई जाती है, इसमें दाई, हारलोगोरो, धतूरों, खाँवलों व खरोडली आदि प्रमुख है। विवाह के समय गणेश स्थापना से वधु के घर आने तक विभिन्न  अवसरों पर विनायक, सोमरों, घोङ्ी, कोयल, रालोटोबनङा, रेजो, कलंगी, पैरो, बालेसर आदि प्रमुख हैं। इसके अलावा मेले के गीत, सावण के गीत, घूमर आदि प्रमुख हैं। यहाँ के लोक संगीत की प्रमुखता मृत्यु पर भी भावप्रद गीत गाए जाने की है, जिनमें मरने वाले के गुणों का वर्णन करते हुए मृतक के परिवारजनों के प्रति हमदर्दी व्यक्त की जाती है। यह गीत महिलाओं द्वारा ही गाए जाते हैं। इनमें पार, छजिया, ओझिन्गार राग से गाये जाने वाले गीत प्रमुख हैं।


लोकगीतों के अतिरिक्त यहाँ के लोकनाटय जिसे रम्मते कहते हैं, का बबुत प्रचलन रहा है। इसमें किसी व्यक्ति की चरित्र गाथा गा कर जन-साधारण में सुनाई जाती है। इसी प्रकार यहाँ ख्याल की भी रचना की गई थी। इसमें लोक चरित्र नायक के जीवन के किसी अंश को गाकर सुनाया जाता है। रम्मत में रामभरतरी रम्मत प्रमुख है तथा ख्याल में मूमलमेंद्र से ख्याल प्रमुख है। लोकदेवी-देवताओं से संबंधित गीत भी यहाँ पर स्थानीय वाद्य यंत्र सारंगी, रावण हत्था तथा अन्य स्थानीय वाद्ययंत्र प्रमुख है, के साथ गाये जाने की परंपरा भी है।


यहाँ पर झीङ्े नामक एक विशिष्ट काव्य पद्धदि भी रही है। ढोलामारु रा दूहा इसके अंतर्गत गाया जाने वाला सबसे पुराना काव्य है। इसके आलावा रामदेव जी, गोगा जी, संबंधी झीङ्े भी गाये जाने की प्राचीन प्रथा है। लोक संगीत एवं साहित्य गीत के लिए यह प्रदेश बङा ही समृद्ध रहा है।


' रम्मत ' खेल को ही कहते हैं। ऐतिहासिक एवं पौराणिक आख्यानों पर रचित काव्य रचनाओं का मंचीय अभिनय की बीकानेर - जैसलमेर शैली को रम्मत के नाम से अभिहित किया गया है। बीकानेर की रम्मतों का अपना अलग ही रंग है। बीकानेर के अलावा रम्मतें पोकरण, फलौदी, जैसलमेर और आस-पड़ोस के क्षेत्र में खेली जाती हैं। ये कुचामन, चिड़ावा और शेखावटी के ख्यालों से भिन्न होती है। 100 वर्ष पूर्व बीकानेर क्षेत्र में होली एवं सावन आदि के अवसर पर होने वाली लोक काव्य प्रतियोगिताओं से ही इनका उद्भव हुआ है। कुछ लोक कवियों ने राजस्थान के सुविख्यात ऐतिहासिक एवं धार्मिक लोक - नायकों एवं महापुरुषों पर काव्य रचनाएँ की। इन्हीं रचनाओं को रंगमंच पर मंचित कर दिया गया। इन रम्मतों के रचयिताओं के नाम इस प्रकार हैं -
(i) मनीराम व्यास
(ii) सूआ महाराज
(iii) फागू महाराज
(iv) तुलसीराम
(v) तेज कवि (जैसलमेरी)

यहाँ यह उल्लेख कर देना आवश्यक है कि तेज कवि जैसलमेरी रंगमंच के क्रांतिकारी कार्यकर्ता थे। उन्होंने रंगमंच को क्रांतिकारी नेतृत्व प्रदान किया। उन्होंने अपनी रम्मत का अखाड़ा 'श्रीकृष्ण कम्पनी' के नाम से प्रारंभ किया। सन् 1943 में उन्होंने "स्वतंत्र बावनी" की रचना कर उसे महात्मा गाँधी को भेंट किया। उनकी क्रांतिकारी गतिविधि को देखते हुए ब्रिटिश सरकार ने तेज कवि पर निगरानी रखी और इन्हें गिरफ्तार करने का वारण्ट जारी कर दिया। जब उन्हें वारण्ट की सूचना मिली, वह पुलिस कमिश्नर के घर गये एवं अपनी ओजस्वी वाणी मे कहा -
" कमिश्नर खोल दरवाजा,
हमें भी जेल जाना है।
हिन्द तेरा है न तेरे बाप का,
हमारी मातृभूमि पर लगाया बन्दीखाना है॥ "

इससे प्रकार रम्मत और ख्याल के खिलाड़ी सिर्फ मनोरंजनकर्ता ही नहीं थे, अपितु वे समाज में हो रही क्रांति के प्रति पूरी तरह से जागरूक भी थे।
आरंभ में रम्मत को पाठशालाओं में खेलाया जाता था। इसे खेलने वाले 'खेलार' कहलाते थे। बीकानेर में रम्मत होलाष्टक के प्रारंभ अर्थात फाल्गुन शुक्ल अष्टमी से चतुर्दशी या पूर्णिमा तक खेली जाती है। बीकानेर के लगभग प्रत्येक चौक में रम्मत घाली जाती है।

रम्मत की उल्लेखनीय विशेषताएँ निम्नांकित हैं -

(i) रम्मत प्रारंभ होने से पूर्व मुख्य कलाकार मंच पर आकर बैठ जाते हैं, ताकि हरेक दर्शक उन्हें अपनी वेशभूषा एवं मेक-अप में देख सके।

(ii) संवाद विशेष गायकों द्वारा गाए जाते हैं। ये मंच पर ही बैठे रहते हैं और मुख्य चरित्र उन गायकों द्वारा गाये जाने वाले संवादों को नृत्य व अभिनय करते हुए स्वयं भी बोलते जाते हैं।

(iii) रम्मत में मुख्य वाद्य नगाड़ा तथा ढोलक होते हैं।

(iv) कोई रंगमंचीय साज-सज्जा नहीं होती। मंच का धरातल थोड़ा-सा ऊँचा बनाया जाता है।

(v) रम्मत में निम्नलिखित मुख्य गीत गाये जाते हैं -

# रामदेवजी का भजन :- रम्मत शुरु होने से पहले यह भजन गाया जाता है।

# चौमासा :- यह वर्षा ॠतु के वर्णन का गीत है।

# लावणी :- देवी-देवताओं की पूजा से संबंधित गीत है।

# गणेश वंदना :- इसमें गणेशजी की वन्दना की जाती है।


(vi) रम्मत की सबसे उल्लेखनीय विशेषता उसकी साहित्यिकता है। वाद्यवादक व संगत करने वाले कलाकार रम्मत में स्वयं मनोरंजन का विशेष साधन बन जाते हैं और लोक समाज में इन वाजिन्दों साजिन्दों की बहुत इज्जत होती है।

(vii) रम्मत के शेष तत्व शेखावटी ख्याल से मेल खाते हैं। फर्क इतना ही रहता है कि जहाँ शेखावटी ख्याल पेशेवर ख्याल की गिनती में आ गए हैं, रम्मत आज भी गैर पेशेवर सामुदायिक जनरंजन के लोकनाट्य का ही रूप बनाए हुए है।

(viii) इसमें किसी भी जाति का व्यक्ति भाग ले सकता है।

रम्मत के कुछ विख्यात खिलाड़ियों के नाम इस प्रकार है -
स्वर्गीय श्री रामगोपाल मेहता
साईं सेवग
गंगादास सेवग
सूरज काना सेनग
जीतमल
और गीड़ोजी।
ये सभी बीकानेर के हैं। गीडोजी अपने समय के विख्यात नगाड़ावादक रहे हैं। इन रम्मतों में अत्यधिक लोक ख्याति अर्जित करने वाली रम्मते हैं -
हेड़ाऊ री रम्मत,
अमरसिंह री रम्मत,
पूरन भक्त री रम्मत,
मोरध्वज री रम्मत,
डूंगजी जवाहर जी री रम्मत,
राजा हरिशचन्द्र री रम्मत
और गोपीचन्द भरथरी री रम्मत।

जैसलमेर ....पुलिस न्यूज़ इनबॉक्स .. मंगलवार, ६ मार्च, 201२


करंट की चपेट में आने से युवक की मौत

जैसलमेर देवीकोट के पास भेड़ बकरियां चरा रहे एक युवक को जमीन पर गिरे बिजली तार से करंट लगने पर उसकी घटनास्थल पर ही मौत हो गई। मृतक के भाई समू खां ने बताया कि रविवार सुबह 11 बजे हसन खां पुत्र गामू खां निवासी जिंदे की ढाणी देवीकोट के पास भेड़ बकरियां चरा रहा था। वहां 11 केवी की बिजली की तार जमीन पर गिरी हुई थी जिसकी चपेट में आने से हसन की मौके पर ही मौत हो गई। उसने बताया कि इस संबंध में पुलिस में मुकदमा भी दर्ज करवा दिया गया है।

होली पर धारा 144 लागू

कलेक्टर एवं जिला मजिस्ट्रेट ने लागूृ किए प्रतिबंध



जैसलमेर कलेक्टर एवं जिला मजिस्टे्रट एम.पी.स्वामी ने होली व घुलंडी के त्योहार पर जैसलमेर जिले के शहरी एवं ग्रामीण क्षेत्रों में साम्प्रदायिक सद्भावना तथा कानून व्यवस्था बनाए रखने के लिए दण्ड प्रक्रिया संहिता की धारा 144 के अंतर्गत प्रावधानों एवं प्रतिबंधों को लागू किया है।

जिला मजिस्ट्रेट स्वामी द्वारा जारी किए गए आदेश के अनुसार किसी भी सम्प्रदाय का कोई भी व्यक्ति ऐसे ऑडियो कैसेट्स आदि नहीं चलाएगा और न ही ऐसे नारे लगाएगा जिससे अन्य सम्प्रदाय या व्यक्ति की भावनाओं को ठेस पहुंचती हो। कोई भी व्यक्ति रंग इस तरह से नहीं खेलेंगे जिससे किसी दूसरे सम्प्रदाय की धार्मिक भावना को ठेस पहुंचती हो एवं किसी धार्मिक स्थान, दुकान पर रंग, गुलाल, गुब्बारे आदि नहीं फेकेंगे और न ही किसी अन्य को ऐसा करने के लिए प्रेरित करेंगे। रंग भरे गुब्बारे, घातक रसायन, धूल, कीचड़, ऑयल पेंट आदि का उपयोग नहीं करेंंगे एवं रंग खेलने के लिए अनिच्छुक व्यक्ति को न तो रंग लगाएंगे एवं न ही उन पर रंग फेकेंगे।

आदेश के अनुसार कोई भी व्यक्ति जैसलमेर की सीमा के भीतर अपने पास विस्फोटक पदार्थ , किसी प्रकार के आग्नेय शस्त्र जैसे रिवाल्वर, पिस्टल, राइफल, बन्दूक एवं एम.एन. गन आदि अन्य हथियार जैसे गन्डासा, फरसा, तलवार, भाला, कृपाल, चाकू -छूरी, बरछी, गुप्ती, खाखरी, अलम कटार, धारिया ,बगनक जो किसी धातु से शस्त्र के रुप में बना हो एवं तेज धारदार हथियार, लाठी, स्टीक इत्यादि साथ लेकर सार्वजनिक स्थानों पर नहीं घूमेगा एवं न ही सार्वजनिक स्थानों पर प्रदर्शन करेंगे। इसी तरह कोई भी व्यक्ति किसी भी सार्वजनिक स्थान पर मदिरा का सेवन नहीं करेगा न ही किसी को सेवन करवाएगा तथा अधिकृत विक्रेताओं को छोड़कर कोई भी व्यक्ति निजी उपयोग के कारण अथवा किसी अन्य उपयोग के लिए सार्वजनिक स्थलों से मदिरा आवागमन नहीं करेगा।


फतेहगढ़ में सीएलजी की बैठक


फतेहगढ़उपखण्ड मुख्यालय स्थित अस्थाई पुलिस चौकी में सोमवार को सीएलजी बैठक का आयोजन किया गया। बैठक में अतिरिक्त पुलिस उप अधीक्षक प्रशिक्षु सुनिल के पंवार तथा सांगड़ थानाधिकारी ओमप्रकाश गोदारा सहित ग्रामीणों ने भाग लिया।

बैठक में पंवार ने ग्रामीणों एवं सीएलजी सदस्यों से कहा कि होली का त्यौहार सभी जातियों के लोग शांति पूर्वक भाईचारे के साथ मनाए। ग्रामीणों ने क्षेत्र में बढ़ती चोरियों के कारण बाजार तथा राजीव गांधी सेवा केन्द्र में पहरेदार नियुक्त करने, रात्रि गश्त में कानिस्टेबल की नियुक्ति करने, टैक्सी स्टैंड का स्थान निर्धारित कर वाहनों को व्यवस्थित खड़ा करने की मांग रखी। पंवार ने संदिग्ध व्यक्तियों पर निगरानी रखने तथा क्षेत्र में कानून व्यवस्था बनाए रखने की ग्रामीणों से अपील की। मिटिंग में सदस्यों ने भी सुझाव प्रस्तुत किए। बैठक में पूर्व सरपंच चंगेज खान, वैद गजेन्द्र प्रसाद, चौकी प्रभारी नीम्बसिंह, अमोलखदास ओझा, नागोदर खान, बालाराम, किशनाराम, माणकाराम, चंदनाराम, अब्दुलखान सहित ग्रामीण उपस्थित थे।

चोरी हुई बोलेरो बरामद

जैसलमेर नाचना क्षेत्र से रविवार की रात्रि में चोरी हुई बोलेरो को पुलिस ने तत्परता दिखाते हुए सोमवार दोपहर में बरामद कर लिया। पुलिस के अनुसार रविवार को भगवानसिंह पुत्र कानसिंह राजपुरोहित ने रिपोर्ट दर्ज करवाई कि उसकी सफेद रंग की बोलेरो एसएलएक्स आरजे- 5 यूए 986 रात्रि में घर से आगे से गायब हो गई। रिपोर्ट के आधार पर मुकदमा दर्ज कर थानाधिकारी गौतम डोटासरा ने मय जाब्ता गाड़ी तलाश शुरू कर दी। इस दौरान उन्हें सत्याया सरहद पर लावारिश हालत में बोलेरो मिल गई जिसे कब्जे में लेकर चोरों की तलाश शुरू कर दी गई है।
सीमा से सटे गांवों में रात्रि प्रवेश पर प्रतिबंध

जैसलमेर त्न जिले से लगने वाली भारत-पाक सीमा पर तस्करी ,घुसपैठियों तथा असामाजिक तत्वों के अवैध प्रवेश एवं अन्य अवांछनीय गतिविधियों की आशंका को दृष्टिगत रखते हुए कलेक्टर एवं जिला मजिस्टे्रेट एम.पी.स्वामी ने सीमा के पास लगती हुई पांच किलोमीटर क्षेत्र में रहने वाले निवासियों एवं उस क्षेत्र में प्रवेश तथा विचरण करने वाले व्यक्तियों के लिए पाबंदी लगाई है।

जिला मजिस्ट्रेट द्वारा जारी आदेश के अनुसार यह पाबंदी तत्काल प्रभाव से लागू हो गई है तथा 3 मई , 2012 तक रहेगी। इसके अंतर्गत इन निर्धारित क्षेत्रों में प्रवेश व विचरण 6 बजे से सुबह 7 बजे तक सक्षम अधिकारी की अनुमति के बिना प्रतिबंध रहेगा।आदेश के अनुसार जैसलमेर एवं पोकरण तहसील के ग्राम किशनगढ़, तनोट , साधेवाला , घोटारू , लौंगेवाला , गणेशिया , लंगतला , रतड़ाऊ ,लीलोई , कारटा , खारीया , शेखर , कोठ , जामराऊ ,खुईयाला उर्फ खुडजनवाली ,जाजीया , खारा , मंूंगर , सोम, रोहिड़ेावाला, लौहार , आसूदा , धौरोई , बिछड़ा , मीठड़ाऊ , किरड़वाली , जीयाऊ , केरला , बगनाऊ , बसना, बिरयारी, मीठीखुई, भुग, मूरार, धनाना, लूणार, पोछीना, करड़ा, गोधूवाला, भूटोवाला, अकनवाली, दातावानी , झालरिया, नीचूवाली, बुईली(सरकारी), बाहला, भारेवाला, दादुड़ावाला, मोहरोवाला, मालासर, याजलार , रायचन्दवाली तथा कुरीया बैरी सम्मिलित है।





बाड़मेर पुलिस...आज की ताजा खबर.

झुलसी अवस्था में मिला विवाहिता का शव

पीहर पक्ष ने लगाया दहेज हत्या का आरोप

बालोतरा  स्टेट हाइवे बाइपास मार्ग के पास स्थित नई भील बस्ती में सोमवार शाम एक विवाहिता की झुलसने से मौत हो गई। विवाहिता के पीहर पक्ष ने दहेज के लिए हत्या करने का आरोप लगाया। मौके पर पहुंची पुलिस ने विवाहिता के पति बालकराम व ससुर भगाराम को हिरासत में ले लिया है।

पुलिस के अनुसार रुकमणी (30) पत्नी बालकराम का शव उसके नई भील बस्ती स्थित घर के एक कमरे में झुलसी अवस्था में मिला। ससुराल पक्ष ने बताया कि करीब साढ़े तीन बजे उसने केरोसीन उलेड़कर आग लगा ली। रुकमणी आठ माह से गर्भवती थी, उसकी शादी करीब 15 वर्ष पूर्व बालकराम के साथ हुई थी व इनके छह बच्चे हैं। मृतका के भाई अर्जुनराम पुत्र भगाराम भील निवासी हाउसिंग बोर्ड माजीवाला ने आरोप लगाया कि रुकमणी के साथ उसका पति वगेरह आए दिन मारपीट करते रहते थे। उसने रिपोर्ट देकर बताया कि उसकी बहन को दहेज के लिए केरोसीन उलेड़कर उसकी हत्या कर दी। पीहर पक्ष को शाम करीब सात बजे इस घटना की जानकारी मिलने पर वे मृतका के घर पहुंचे। पुलिस ने शव पोस्टमार्टम के लिए मोर्चरी में रखवाया है।

पांच कराइयों में लगी आग, लाखों का चारा खाक

बालोतरा सोमवार अलसवेरे करीब 4 बजे अराबा दूदावता गांव के पास स्थित खलिहान में चारे की कराइयों में आग लग गई। तेज हवा के चलते आग तेजी से फैली और पांच कराइयों को चपेट में लिया। सूचना के बाद भी दमकल दो घंटे बाद मौके पर पहुंची। तब तक ग्रामीणों ने ट्रैक्टर टंकियों व बाल्टियों से आग बुझाने में जुटे रहे। करीब तीन घंटे की मशक्कत के बाद आग पर काबू पाया गया, तब तक पांचों कराइयोंं में भरा चारा पूरी तरह खाक हो गया। आग लगने के कारणों का पता नहीं चल पाया।

इनका हुआ नुकसान

अराबा दूदावता गांव के पास ही बने खलिहानों में प्रेमसिंह पुत्र सुल्तानसिंह राजपुरोहित, पुखराजसिंह पुत्र प्रेमसिंह, लालसिंह पुत्र सुल्तानसिंह, तुलसाराम पुत्र सांवलराम मेघवाल व तेजाराम पुत्र अमराराम के खलिहान आस-पास आए हुए हैं। इन्हीं की कराइयों में आग लगी। ग्रामीणों का अनुमान है कि आग से लाखों रुपए का चारा खाक हो गया। उल्लेखनीय है कि ग्रामीण खलिहानों में कराइयां बनाकर उसमें सूखा चारा भरकर रखते हैं ताकि अकाल के समय उनके पशुओं के लिए चारे की कमी नहीं आए। वर्षों की मेहनत से एकत्रित किया चारा तीन घंटे में जलकर खाक हो गया।


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दोहरे हत्याकांड के आरोपी पांच दिन के रिमांड पर
बाड़मेरदोहरे हत्याकांड के तीन आरोपियों को सोमवार को पुलिस ने एसीजेएम कोर्ट में पेश किया। न्यायालय ने तीनों को पांच दिन के पुलिस रिमांड पर सौंपने के आदेश दिए। सदर थानाधिकारी कैलाशचन्द्र मीणा ने बताया कि ओमप्रकाश व भजनलाल हत्याकांड के आरोपी गोपसिंह, चुन्नीलाल व जेठाराम को न्यायालय में पेश किया गया। न्यायालय ने तीनों को रिमांड पर सौंपा है। तीनों से पूछताछ की जा रही है।

जुआ खेलते तीन गिरफ्तार
बाड़मेरकोतवाली थानातंर्गत सोमवार को चौहटन रोड स्थित सार्वजनिक स्थान पर जुआ खेलते तीन लोगों को गिरफ्तार किया। उनके कब्जे से तीन सौ रुपए बरामद किए गए। पुलिस ने बताया कि टीवीएस शो रूम के पास चौहटन रोड पर जुआ खेलते मिश्रा खां पुत्र बरकत खां निवासी शास्त्री नगर, राजू पुत्र लूणाराम भार्गव बाड़मेर व ओमप्रकाश पुत्र घीसाराम जटियों का नया वास बाड़मेर को जुआ खेलते गिरफ्तार किया । इनके कब्जे से तीन सौ रुपए बरामद किए गए। पुलिस ने मामला दर्ज कर अनुसंधान शुरु कर दिया।

17 जातीय पंचों के खिलाफ मामला दर्ज

बाड़मेरत्नचौहटन थानातंर्गत समाज से बहिष्कृत करने व प्रताडि़त करने के मामले में सत्रह जातीय पंचों के खिलाफ मामला दर्ज किया गया है। पुलिस ने बताया कि वीराराम पुत्र देवाराम निवासी कोठे का तला धारासर ने मामला दर्ज करवाया कि हरचंद पुत्र तेजा, गोरखा पुत्र हरजी, हरजी पुत्र वखता, तुलछा पुत्र रुगा, सुरता पुत्र रुगा, सता पुत्र मूला, मोडा पुत्र मूला, खेराज पुत्र चिमना, रेखा पुत्र भीखा, बाबू पुत्र भीखा, मेहर पुत्र विरधा, वीरा पुत्र विरधा, मोडा पुत्र चैना, वीरमा पुत्र चैना, हिम्मता पुत्र चैना, गुमना पुत्र मोडा व मेगराज पुत्र हरजी ने उसे पहले प्रताडि़त किया, फिर पूरे परिवार को समाज से बहिष्कृत कर हुक्का पानी बंद कर दिया। पुलिस ने जातीय पंचों के खिलाफ मामला दर्ज कर अनुसंधान शुरू कर दिया है।

आनंद, प्रेम व उल्लास का पर्व है होली


 
चैत्र माह कृष्ण पक्ष की प्रतिपदा को धुरेड़ी का त्योहार मनाया जाता है। होली का त्योहार देश के कई क्षेत्रों में पांच दिनों तक मनाया जाता है। इसी क्रम में चैत्र माह की कृष्ण पक्ष की पंचमी को रंगपंचमी का त्यौहार भी मनाया जाता है। जहां फाल्गुन पूर्णिमा को होली का धार्मिक महत्व अधिक दिखाई देता है, वहीं धुरेड़ी और रंगपंचमी के दिन सामाजिक और व्यावहारिक रूप से अधिक महत्व रखते हैं।

धुरेड़ी पर मुख्यत: अबीर गुलाल का उपयोग अधिक होता हैं, वही रंगपंचमी का दिन गीली होली के नाम से भी प्रसिद्ध है। इस दिन सारे लोग पुराने कपड़े पहनते हैं और गीला रंग और रंगीन पानी पिचकारियों में भरकर एक-दूसरे पर उड़ाते हैं। अनेक लोग समूह बनाकर ढोल, मंजिरे, तालियों, नृत्य करते हुए एक दूसरे से मिलते हैं। देश के अलग-अलग क्षेत्रों में यह पर्व अलग-अलग लोक पंरपराओं के साथ मनाया जाता है। किंतु भाव एक ही होते हैं - आनंद, प्रेम, उल्लास और उमंग।

इस प्रकार रंगों के यह त्यौहार न केवल पारिवारिक, सामाजिक बंधनों को मजबूत करते हैं बल्कि जातिवाद, सांप्रदायिकता की घृणित मानसिकता से दूर कर अनेकता में एकता की भारतीय संस्कृति और धर्म की नई परिभाषा भी गढ़ते हैं।

सोमवार, 5 मार्च 2012

थार महोत्सव ...तीस साल बाद भी पहचान नहीं मिली ...

थार महोत्सव ...तीस साल बाद भी पहचान नहीं मिली ...

प्रशासनिक लापरवाही बनी बाधा 

बाड़मेर पश्चिमी राजस्थान की लोक कला ,संस्कृति ,परम्परा लोक गीत संगीत लोक जीवन ,थार की जीवन शैली ,इतिहास से दुनिया को रूबरू करने के उद्देश्य से तीस साल पहले जिला प्रशासन ने थार महोत्सव नामक लोक मेले की शुरुआत इस उद्देश्य से की थी की विदेशी पर्यटक थार की संस्कृति से जुड़े ,मगर अफ़सोस तीस साल बाद भी बाड़मेर का थार महोत्सव विदेशो की बात छोड़े आसपास के जिलो में भी अपनी पहचान नहीं बना पाया ,थार महोत्सव से देशी विदेशी पर्यटकों को जोड़ने की बजाय स्थानीय प्रशासनिक अधिकारियों के मनोरंजन का साधन बन गया सबसे बड़ी बात की थार महोत्सव की कलेंडर तारीख आज भी तय नहीं हें जो नया कलेक्टर आया अपनी मर्जी व् सुविधा के अनुसार तारीखे तय करते हें ,थार महोत्सव के आयोजन की कमेटी में आज भी नब्बे फ़ीसदी लोग बाहरी प्रान्तों के हे जो थार की लोक कला और संस्कृति के बारे में कुछ नहीं जानते इन सदस्यों की सलाह पर थर महोत्सब्व में थार की लोक कला संस्कृति लोक गीत संगीत को बढ़ावा देने वाले कार्यक्रमों को स्थान देने की बजाय उलुल जुलूल कार्यक्रमों को इसमे शामिल कर महोत्सव के उद्देश्य को ही ख़तम कर दिया प्रशासनिक अधिकारी अपना अपना टाइम पास करने के उद्देश्य से कभी राजा हसन तो कभी कैलाश खेर को मोटी रकम देकर कार्यक्रम आयोजित करने के लिए बुलाते हे जिनका थार की संस्कृति से कोई लेना देना नहीं बाड़मेर जैसलमेर लोक गीत संगीत का खजाना हें यंहा लोक गायकी और संगीत से जुड़े नायब हीरे जड़े हें जिन्होंने राजस्थान की लोक कला और संस्कृति को सातवे आसमान तक और सात समुन्दर पार तक पंहुचाया यंहा के लोक कलाकारों को अपने ही महोतासवो में मौका नहीं मिलता उन्हें हमेशा ऐसे  कार्यक्रमों में नज़र अंदाज़ किया जाता रहा हें ,थार महोत्सव का आयोजन का जिम्मा उन लोगो के पास हें जिनका थार से कोई जुड़ाव नहीं एक तरफ जैसलमेर का मरू महोत्सव हें जिसने कम समय में पुरे विश्व में अपनी अलग पहचान बनाई जिसका मूल कारण स्थानीय लोक कलाकार हें जिन्होंने अपने कला से मरू महोत्सव को नई ऊँचाइया प्रदान की वन्ही दूसरी तरफ थार महोत्सव हे जो तीस साल में अपनी कोई पहचान नहीं बना पाया जिसके जिम्मेदार प्रशासन की नासमझी हें .आखिर थार महोत्सव का  आयोजन क्यों और किसके  लिए किया जा रहा हें यह समझ से परे हें  

दुनिया की सबसे खूबसूरत महिला? वर्षों बाद चेहरे से हटा नकाब

बला की खूबसूरत यह कोई आम महिला नहीं बल्कि एक रानी है। फातिमा कुलसुम जौहर,विश्व के सबसे समृद्ध देशों में से एक सउदी अरब राजघराने की रानी हैं।


पारवारिक रीति-रिवाजों के कारण फातिमा का चेहरा आजतक शायद ही किसी बाहरी व्यक्ति ने देखा हो,लेकिन पिछले महीने ही उनकी कुछ तस्वीरें जारी की गई है।

थार महोत्सव का आयोजन 12 से कैलाश खैर कार्यक्रम प्रस्तुत करेगें।


थार महोत्सव का आयोजन 12 से 

कैलाश खैर कार्यक्रम प्रस्तुत करेगें। 


बाडमेर, 5 मार्च। जिले की कला तथा संस्कृति को बावा देने वाले तीन दिवसीय थार महोत्सव का आयोजन होली के पचात शीतला सप्तमी के मौके पर 12,13 तथा 14 मार्च को होगा। थार महोत्सव आयोजन के संबंध में आयोजित बैठक में जिला कलेक्टर डॉ. वीणा प्रधान ने महोत्सव में रोचक एवं मनोरंजक कार्यक्रम शामिल करने के निर्देश दिए है ताकि अधिकाधिक लोग कार्यक्रमों में शामिल हो सकें। 
इस अवसर पर जिला कलेक्टर डॉ. प्रधान ने कहा कि बाडमेर जिले की कला, संस्कृति, हस्तिशल्प को जग जाहिर करने तथा पर्यटन विकास के मकसद से आयोजित किये जाने वाले थार महोत्सव में सभी की भागीदारी जरूरी है। उन्होने कहा कि थार महोत्सव के कार्यक्रमों में इस बार ख्यातिनाम कलाकारों को आमन्ति्रत किया गया है। इनमें विख्यात गायक कैला खैर भामिल है। उन्होने महोत्सव के व्यापक प्रचार प्रसार के निर्दो दिए। उन्होने कहा कि कार्यक्रमों को रोचक एवं मनोरंजक रूप प्रदान किया जाए तथा अधिकाधिक दोी विदोी पर्यटकों को महोत्सव में आमन्ति्रत करने के पुरजोर प्रयास किए जाए। 

उन्होने बताया कि तीन दिवसीय थार महोत्सव का आगाज 12 मार्च को प्रातः 8.30 बजे निकाली जाने वाली भव्य शोभा यात्रा के साथ होगा। जिला कलेक्टर ने बताया कि महोत्सव का आगाज भाोभायात्रा से होगा, जो गांधी चौक से रवाना होकर भाहर के मुख्य मार्गो से होती हुई आदशर स्टेडियम पहुंचेगी। जहां विविध आकशर्क प्रतियोगिताएं यथा थार श्री, थार सुन्दरी, पगडी बांध, मूंछ ,रस्सा कसी, मटका दौड, दादापोता दौड आदि आयोजित की जाएगी। इसके पचात महाबार में केमल टेटू भाौ होगा तथा सायं कालीन कार्यक्रम आयोजित किए जाएगे। इसमें कैलाश खैर कार्यक्रम प्रस्तुत करेगें। महोत्सव के दूसरे दिन चौहटन में आकशर्क कार्यक्रम होंगे जिसमें मालानी फूड फेस्टीवल तथा डेजर्ट सिम्फनी आकशर्ण का केन्द्र होगा। महोत्सव के अन्तिम दिन के कार्यक्रमो का केन्द्र बालोतरा होगा जहां दिन में कनाना में आकशर्क गैर नृत्य आयोजित होगें तथा सायं कालीन कार्यक्रम बालोतरा के भाहीद भगतसिंह स्टेडियम में आयोजित किए जाएगे। 
उन्होने सभी कार्यक्रमों के लिए आयोजन समितियों का गठन करने के भी निर्दो दिए है तथा समितियों को सौपे गयें कार्यक्रमों की व्यापक तैयारी के निर्दो दिए तथा मौके पर जाकर निरीक्षण करने तथा सभी कार्यक्रम भव्य रूप से आयोजित कराने को कहा। बैठक में अतिरिक्त जिला कलेक्टर अरूण पुरोहित ने थार महोत्सव की तैयारियों की जानकारी दी। इससे पूर्व जिला कलेक्टर ने थार महोत्सव के पोस्टर का विमोचन किया। 

देह व्यापार रोकने के लिए सामूहिक विवाह

अहमदाबाद वाडिया बनासकांठा जिले के थारड ब्लाक का एक छोटा सा गांव है जहां गैर अधिसूचित जनजाति में आने वाले सरानिया समुदाय के लोग रहते हैं | इस गांव की महिलाएं पीढ़ियों से परिवार की आजीविका के लिए देह व्यापार करती रही हैं | अक्सर इस गांव को ‘देह व्यापार करने वाली महिलाओं का गांव’ भी कहा जाता है |

इस समुदाय की महिलाएं विभिन्न कारणों जैसे सामाजिक दबाव, गरीबी के चलते या फ़िर जबरदस्ती देह व्यापार करती हैं | परिवार के पुरूष अक्सर महिलाओं की आमदनी पर गुजारा करते हैं और उनके लिए ग्राहक भी लाते हैं. पटेल ने कहा, सामूहिक विवाह से इस समुदाय की महिलाओं के लिए सामाजिक क्रांति आ सकती है, साथ ही पीढ़ियों से चली आ रही एक नकारात्मक परंपरा का अंत भी हो जाएगा |

यहां की महिलाओं के जीवन में सामाजिक क्रांति लाने के उद्देश्य से इस गाँव में सरानिया समुदाय की लड़कियों का सामूहिक विवाह कराया जाएगा | इस योजना और देहव्यापार को बंद करने की पहल के पीछे गैर सरकारी संगठन ‘विचारत समुदाय समर्थन मंच’ वीएसएसएम का हाथ है | जिसने पिछले पांच सालो से अथक प्रयास किया है | सामूहिक विवाह 11 मार्च को होगा |

वीएसएसएम की समन्वयक मित्तल पटेल ने प्रेस ट्रस्ट को बताया, विवाह का मतलब है कि युवतियों को देह व्यापार के परंपरागत धंधे से बचाया जाएगा | यहां चलन है कि एक बार अगर लड़की की सगाई हो जाए या विवाह हो जाए तो उसे देह व्यापार के लिए बाध्य नहीं किया जा सकता |

देह व्यापर को रोकने की कोशिश के चलते पटेल ने कहा, सामूहिक विवाह के लिए भेजे गए शुरूआती आमंत्रणों में हमने लिखा है कि सात युवतियों का विवाह किया जाएगा जबकि आठ अन्य लड़कियों का भी विवाह किया जाएगा | आज तक तो यह तय है कि आठ लड़कियों का विवाह होगा और उसी दिन 24 लड़कियां सगाई के लिए तैयार हो गई हैं |

वीएसएसएम के सदस्यों ने सरानिया समुदाय के युवकों को भी समझाया है कि वे विश्वास जगा कर युवतियों से विवाह करें | समझा जाता है कि गांव में करीब 100 महिलाएं देह व्यापार में लिप्त हैं |

पटेल ने कहा, हमने देह व्यापार में लिप्त महिलाओं को यह नहीं कहा है कि वह गलत कर रही हैं | वह बहुत मुश्किल से दो वक्त की रोटी जुटा पाती हैं | हमने तो उन्हें आजीविका के अन्य विकल्प बताए हैं | वर्ष 2006 में हमने गांव में काम शुरू किया और तब से हालात में सुधार हुआ है | सरकार ने भी सरानिया समुदाय की महिलाओं के लिए पुनर्वास कार्यक्रमों का वादा किया है |

मरुस्थल में गूंजने लगी चंग की थाप

 
मरुस्थल में गूंजने लगी चंग की थाप

बाड़मेर। राजस्थान के बाड़मेर जिले में मदनोत्सव एवं रंगोत्सव की मस्ती छाई हुई है। आधुनिकता की दौड के बावजूद थार मरुस्थल में लोक कला और संस्कृति से जुड़ी परम्पराओं का निर्वहन किया जा रहा है। ग्रामीण अंचलों में होली की धूम मची हैं। ग्रामीण अंचलों में रंगोत्सव की मदमस्ती बरकरार है। गांव की चौपालों पर सूरज ढलते ही ग्रामीण चंग की थाप पर फाग गाते नजर आते है वहीं फागुनी गीत गाती महिलाओं के दल फागोत्सव के प्रति दीवनगी का एहसास कराती है।

सीमावर्ती बाड़मेर जिले के ग्रामीण क्षेत्रों में आज भी लोक परम्पराओं का निर्वहन हो रहा है। रंग और मद के इस त्यौहार के प्रति ग्रामीण अंचलों में दीवानगी बरकरार है। ग्रामीण चौपालों पर ग्रामीणों के दल सामूहिक रुप से चंग की थाप पर फाग गीत गाते नजर आते हैं। जिले में लगातार पड़ रहे अकाल का प्रभाव भी इस उत्सव पर नजर नहीं आ रहा है। होली के धमाल के लिए प्रसिद्ध नावड़ा गांव के बुजुर्ग रुपाराम ने बताया कि अकाल के कारण गांव के युवा रोजगार के लिए गुजरात गये हुये है। अकाल के कारण हमारे गांव में होली का रंग फीका नहीं पड़ता। रोजगार के लिए बाहर गये युवा होली से तीन चार दिन पूर्व पर्व मनाने यहां पहुंच जाते है। हमारे गांव की यहीं परम्परा है जो हम अपने बुजुर्गो के समय से देखते आ रहे और इसकी पालना करते आ रहे है।

होली से एक पखवाड़ा पूर्व गांव में होली का आलम शुरु हो जाता है। चौपाल पर शाम होते होते गांव के बुजुर्ग, जवान और बच्चे एकत्रित हो जाते है, चंग बजाने वालों की थाप पर ग्रामीण सामूहिक रुप से फाग गाते हैं वहीं गांव की महिलायें रात्रि में एक जगह एकत्रित होकर बारी-बारी से घरों के आगे फाग गाती है, जो महिलायें इस दल में नहीं आती उस महिला के घर के आगे जाकर महिला दल अश्लील फाग गाती है जिसे सुनकर अंदर बैठी महिला शरमा कर इसमे शामिल हो जाती है। महिलाओं द्वारा दो दल बनाकर लूर फाग गाया जाता है। लूर में महिलाओं के दोनों दल गीतों के माध्यम से आपस में सवाल जवाब करते है। लूर थार की प्राचीन परंपरा हैं। लुप्त हो रही लूर परम्परा अब सनावड़ा तथा सिवाना क्षेत्र के ग्रामीण अंचलों तक ही सिमट कर रह गई है।
फाग गीतों के साथ साथ डांडिया गेर नृत्य का भी आयोजन होता है। भारी भरकम घुंघुरु पांव में बांध कर हाथों में आठ दस मीटर लंबे डांडियल करोल की थाप और थाली की टंकार पर जब गेरियें नृत्य करते है तो लोक संगीत की छटा माटी की सौंधी में घुल जाती है। सनावड़ा में होली के दूसरे दिन बड़े स्तर पर गेर नृत्यों का आयोजन होता है जिसमें आसवास के गांवों के कई दल हिस्सा लेते है। ग्रामीण क्षेत्रों में होली का रंग जमने लगा है। शहरी क्षेत्र में भी इस बार गेरियों के दल नजर आ रहे है। जो शहर की गलियों में चंग की थाप पर फाग गाते नजर आते है।