शुक्रवार, 3 जनवरी 2014

विवाहिता ने किया आत्मदाह

विवाहिता ने किया आत्मदाह

बाड़मेरमहिला पुलिस थाने में मामला दर्ज हुआ कि राणीगांव में विवाहिता सोनी देवी भील ने पति, ससुर से परेशान होकर आत्मदाह कर लिया।

विवाहिता को दहेज के लिए परेशान किया जा रहा था, जिसके बाद विवाहिता ने अपने शरीर पर केरोसीन उड़ेलकर आत्मदाह कर लिया।

विवाहिता घायलावस्था में बाड़मेर के राजकीय चिकित्सालय में इलाज के लिए लाया गया, जहां उसे मृत घोषित कर दिया।

अमर प्रेम कहानी का साक्षी मांडू ,ऐतिहा‍सिक इमारतों का स्थान मांडू



मांडू मध्यप्रदेश का एक ऐसा पर्यटनस्थल है, जो रानी रूपमती और बादशाह बाज बहादुर के अमर प्रेम का साक्षी है। यहां के खंडहर व इमारतें हमें इतिहास के उस झरोखे के दर्शन कराते हैं, जिसमें हम मांडू के शासकों की विशाल समृद्ध विरासत व शानो-शौकत से रूबरू होते हैं।


कहने को लोग मांडू को खंडहरों का गांव भी कहते हैं परंतु इन खंडहरों के पत्थर भी बोलते हैं और सुनाते हैं हमें इतिहास की अमर गाथा। हरियाली की खूबसूरत चादर ओढ़ा मांडू विदेशी पर्यटकों के लिए विशेष तौर पर एक सुंदर पर्यटनस्थल रहा है। यहां के शानदार व विशाल दरवाजे मांडू प्रवेश के साथ ही इस तरह हमारा स्वागत करते हैं। मानों हमने किसी समृद्ध शासक के नगर में प्रवेश कर रहे हो।


मांडू में प्रवेश के घुमावदार रास्तों के साथ ही मांडू के बारे में जानने की तथा इसकी खूबसूरत इमारतों को देखने की हमारी जिज्ञासा चरम तक पहुंच जाती है। यहां के विशाल इमली के पेड़ व मीठे सीताफलों से लदे पेड़ों को देखकर हमारे मुंह में पानी आना स्वभाविक है।

यहां की कबीटनुमा स्पेशल इमली के स्वाद के चटखारे लिए बगैर भला कैसे हमारी मांडू यात्रा पूरी हो सकती है। आप भी यदि मांडू दर्शन को जा रहे हैं तो एक बार अवश्य यहां की इमली, सीताफल व कमलगट्टे का स्वाद चखिएगा। आइए चलते हैं मध्यप्रदेश के ऐतिहासिक स्थल मांडू की सैर पर।

मांडू के बारे में कुछ बातें : मांडू का दूसरा नाम 'मांडवगढ़' भी है। यह विन्ध्याचल की पहाड़ियों पर लगभग 2,000 फीट की ऊंचाई पर स्थित है। मांडू को पहले 'शादियाबाद' के नाम से भी जाना जाता था, जिसका अर्थ है 'खुशियों का नगर'।

मांडू पहाड़ों व चट्टानों का इलाका है, जहां पर ऐतिहासिक महत्व की कई पुरानी इमारते हैं। मालवा के राजपूत परमार शासक भी बाहरी आक्रमण से अपनी रक्षा के लिए मांडू को एक महफूज स्थान मानते थे।

मांडू में यहां जरूर जाएं : मांडू में पर्यटकों के लिए देखने लायक बहुत से स्थान हैं, जिनमें रानी रूपमती का महल, हिंडोला महल, जहाज महल, जामा मस्जिद, अशरफी महल आदि स्थान प्रमुख हैं।


इसी के साथ ही मांडू को 'मांडवगढ़ जैन तीर्थ' के नाम से भी जाना जाता है। यहां भगवान सुपार्श्वनाथ की पद्मासन मुद्रा में विराजित श्वेत वर्णी सुंदर प्राचीन प्रतिमा है। इस प्रतिमा की स्थापना सन् 1472 में की गई थी। मांडवगढ़ में कई अन्य पुराने ऐतिहासिक महत्व के जैन मंदिर भी है, जिसके कारण यह जैन धर्मावलंबियों के लिए एक तीर्थ स्थान है।


स्वागत करते प्रवेश द्वार : मांडू में लगभग 12 प्रवेश द्वार है, जो मांडू में 45 किलोमीटर के दायरे में मुंडेर के समान निर्मित है। इन दरवाजों में 'दिल्ली दरवाजा' प्रमुख है। यह मांडू का प्रवेश द्वार है। इसका निर्माण सन् 1405 से 1407 के मध्य में हुआ था। यह खड़ी ढाल के रूप में घुमावदार मार्ग पर बनाया गया है, जहां पहुंचने पर हाथियों की गति धीमी हो जाती थी।

इस दरवाजे में प्रवेश करते ही अन्य दरवाजों की शुरुआत के साथ ही मांडू दर्शन का आरंभ हो जाता है। मांडू के प्रमुख दरवाजों में आलमगीर दरवाजा, भंगी दरवाजा, रामपोल दरवाजा, जहांगीर दरवाजा, तारापुर दरवाजा आदि अनेक दरवाजे हैं।

जामा मस्जिद (जामी मस्जिद) : मांडू का मुख्य आकर्षण जामा मस्जिद है, इस विशाल मस्जिद का निर्माण कार्य होशंगशाह के शासनकाल में आरंभ किया गया था तथा महमूद प्रथम के शासनकाल में यह मस्जिद बनकर तैयार हुई थी। इस मस्जिद की गिनती मांडू की नायाब व शानदार इमारतों में की जाती है। यह भी कहा जाता है कि जामा मस्जिद डेमास्कस (सीरिया देश की राजधानी) की एक प्रसिद्ध मस्जिद का प्रतिरूप है।

अशरफी महल : जामा मस्जिद के सामने ही अशरफी महल है। अशरफी का अर्थ होता है 'सोने के सिक्के'। इस महल का निर्माण होशंगशाह खिलजी के उत्तराधिकारी मोहम्मद खिलजी ने इस्लामिक भाषा के विद्यालय (मदरसा) के लिए किया था। यहां विद्धार्थियों के रहने के लिए कई कमरों का निर्माण भी किया गया था।

जहाज महल : जहाज महल का निर्माण 1469 से 1500 ईस्वी के मध्य कराया था। यह महल जहाज की आकृति में दो कृत्रिम तालाबों कपूर तालाब व मुंज तालाब दो तालाबों के मध्य में बना हुआ है। लगभग 120 मीटर लंबे इस खूबसूरत महल को दूर से देखने पर ऐसा लगता है मानों तालाब के बीच में कोई सुंदर जहाज तैर रहा हो। संभवत: इसका निर्माण श्रृंगारप्रेमी सुल्तान ग्यासुद्दीन खिलजी ने विशेष तौर पर अंत:पुर (महिलाओं के लिए बनाए गए महल) के रूप में किया था।


होशंगशाह की कब्र : होशंगशाह की कब्र, जो कि भारत में मार्बल से बनाई हुई ऐसी पहली कब्र है, जिसमें आपको अफगानी शिल्पकला का बेहतर नमूना देखने को मिलता है। यह यहां का गुंबज, बरामदे तथा मार्बल की जाली आदि की खूबसूरती बेजोड़ है।

हिंडोला महल : हिंडोला महल मांडू के खूबसूरत महलों में से एक है। हिंडोला का अर्थ होता 'झूला'। इस महल की दीवारे कुछ झुकी होने के कारण यह महल हवा में झुलते हिंडोले के समान प्रतीत होता है। अत: इसे हिंडोला महल के नाम से जाना जाता है। हिंडोला महल का निर्माण ग्यासुद्दीन खिलजी ने 1469 से 1500 ईस्वी के मध्य सभा भवन के रूप में निर्मित सुंदर महल है। यहां के सुंदर कॉलम इसे और भी खूबसूरती प्रदान करते हैं। इस महल के पश्चिम में कई छोटे-बड़े सुंदर महल है। इसके समीप ही चंपा बाबड़ी है।

रानी रूपमती का महल : रानी रूपमती के महल को देखे बगैर मांडू दर्शन अधूरा सा है। 365 मीटर ऊंची खड़ी चट्टान पर स्थित इस महल का निर्माण बाजबहादुर ने रानी रूपमती के लिए कराया था। इसी के साथ ही सैनिकों के लिए मांडू की सुरक्षा व्यवस्था पर नजर रखने के बेहतर स्थान के रूप में भी इसका प्रयोग किया जाता था।

कहा जाता है कि रानी रूपमती सुबह ऊठकर मां नर्मदा के दर्शन करने के बाद ही अन्न-जल ग्रहण करती थी। अत: रूपमती के नर्मदा दर्शन को सुलभ बनाने हेतु बाजबहादुर ने ऊंचाई पर स्थित इस महल का निर्माण कराया था।

बाज बहादुर का महल : बाज बहादुर के महल का निर्माण 16वीं शताब्दी में किया गया था। इस महल में विशाल आंगन व हॉल बने हुए हैं। यहां से हमें मांडू का सुंदर नजारा देखने को मिलता है।

हवा में खड़ा अद्भुत मंदिर 'शुआन खोंग'



मंदिर और मठ या तो जमीन पर बनाया जाते हैं या पहाड़ पर, लेकिन चीन में एक ऐसा मंदिर है जो लगभग हवा में खड़ा है। यह मंदिर उत्तरी चीन के शानजी प्रांत में स्थित है। इस अनोखे मंदिर का निर्माण 1500 सौ वर्ष पूर्व हुआ था।


इस मंदिर का नाम है 'शुआन खोंग'। इसका अंग्रेजी में मतलब होता है 'हैंगिंग टैम्पल'। चीन के शहर ताथोंग से यह मंदिर 65 किलोमीटर दूर है। हवा में खड़ा मंदिर ऐतिहासिक स्थलों और मुख्य पर्यटक आकर्षणों में से एक हैं। यह चीन में अब तक सुरक्षित एकमात्र बौध, ताओ और कन्फ्युशियस धर्मों की मिश्रित शैली से बना अदभुत मंदिर है।

एक बार की नजर में हवा में लटके इस मंदिर को देखना काफी भयभीत करने वाला दृश्य लगता है।



यह मंदिर शानसी प्रांत के हुनयान कस्बे में हंग पहाड़ी के एक ऐसे स्पॉट पर बनाया गया है जो बेहद ही संकरा है। लेकिन यह मंदिर लंबाई में बहुत ही लंबा है। एक बार ही इस देखने पर लगता है कि अब गिरा तब गिरा। क्योंकि यह बिल्कुल हवा में लटका है। इसलिए वह हवा में खड़ा मंदिर के नाम से चीन में मशहूर हैं।

यह मंदिर घनी पहाड़ियों की घाटी में फैले एक छोटे से बेसिन में स्थित है। घाटी के दोनों ओर 100 मीटर की ऊंची-ऊंची चट्टानें सीधी खड़ी हैं। यह मंदिर सीधी खड़ी चट्टान पर जमीन से 50 मीटर की ऊंचाई पर बना हुआ है, जो हवा में खड़ा हुआ नजर आता है।

यह बहु-मंजिला मंदिर दस से अधिक पतली-पतली लंबी लकड़ियों पर खड़ा है और मंदिर के ऊपर पहाड़ी चट्टान का एक विशाल टुकड़ा बाहर की ओर आगे बढ़ा हुआ है, ऐसा लगता है कि मानो वह अभी मंदिर पर गिर जाएगा।

इस मंदिर में छोटे-बड़े 40 से अधिक भवन व मंडप हैं, जिन्हें चट्टान पर गाड़कर लकड़ियों के बल पर टिकाया है। इस मंदिर पर जाने वाले और धड़कन तब बढ़ने लगती है जबकि वह बेहद ही संकरी और लकड़ी के बनी पगडंडी से होकर इस मंदिर में पहुंचता है। इस दौरान नीचे खाई को देखना मना है। जरा-सी लापरवाही और सीधे खाई में।

आश्चर्य है कि चट्टान से सटा मंदिर जरा भी हिचकोले नहीं खाता हैं। ऐसे लगता है मानो किसी बने बनाये मंदिर को इस सीधी खड़ी चट्टान पर लटका दिया हो।

पतली-पतली लकड़ियों के सहारे टिका है यह मंदिर। उन लकड़ियों को विशेष तेल से सिंचित किया हुआ हैं, जिससे उनमें दीमक लगने और सड़ने या गलने की कोई संभावना नहीं। मंदिर का तल्ला इसी प्रकार के मजबूत आधार पर रखा गया है।

हवा में खड़े मंदिर की संरचना बहुत सुनियोजित और सूक्ष्म है।


सवाल उठ सकता है कि आखिर इस मंदिर को यहां बनवाने की जरूरत क्यों पड़ी। चीन की सरकारी वेबसाइट अनुसार बताया जाता है कि इस मंदिर को बनाने के पीछे दो कारण थे- पहला यह था कि उस समय वो पहाड़ी घाटी यातायात और आवाजाही का एक प्रमुख मार्ग था। वहां से जब भिक्षु और धार्मिक अनुयायी गुजरते थे, तो मंदिर में आराधना कर सकते थे।

दूसरा कारण यह था कि उस पहाड़ी घाटी में अक्सर बाढ़ आती थी। प्राचीन चीनी लोगों का मानना था कि ड्रैगन ही बाढ़ का प्रकोप मचाता हैं। यदि वहां एक मंदिर बनाया जाता है, तो ड्रैगन को वशीभूत किया जा सकता हैं। इस तरह यह मंदिर अस्तित्व में आया।

कबीर : भारतीय मनीषा के प्रथम विद्रोही सं‍त


कबीर भारतीय मनीषा के प्रथम विद्रोही संत हैं, उनका विद्रोह अंधविश्वास और अंधश्रद्धा के विरोध में सदैव मुखर रहा है। महात्मा कबीर के प्राकट्यकाल में समाज ऐसे चौराहे पर खड़ा था, जहां चारों ओर धार्मिक पाखंड, जात-पात, छुआछूत, अंधश्रद्धा से भरे कर्मकांड, मौलवी, मुल्ला तथा पंडित-पुरोहितों का ढोंग और सांप्रदायिक उन्माद चरम पर था। आम जनता धर्म के नाम पर दिग्भ्रमित थी।


मध्यकाल जो कबीर की चेतना का प्राकट्यकाल है, पूरी तरह सभी प्रकार की संकीर्णताओं से आक्रांत था। धर्म के स्वच्छ और निर्मल आकाश में ढोंग-पाखंड, हिंसा तथा अधर्म व अन्याय के बादल छाए हुए थे। उसी काल में अंधविश्वास तथा अंधश्रद्धा के कुहासों को चीर कर कबीर रूपी दहकते सूर्य का प्राकट्य भारतीय क्षितिज में हुआ।


वैसे संत कबीर के कोई जीवन वृत्तांत का पता नहीं चलता परंतु, विभिन्न साक्ष्यों के आधार पर साहेब का जन्म विक्रम संवत 1455 तथा मृत्यु विक्रम संवत 1575 माना जाता है। जिस तरह माता सीता के जन्म का पता नहीं चलता, उसी तरह कबीर के जन्म का भी रहस्य आज भी भारतीय लोकमानस में जीवंत है।



कबीर बीच बाजार और चौराहे के संत हैं। वे आम जनता से अपनी बात पूरे आवेग और प्रखरता के साथ किया करते हैं, इसलिए कबीर परमात्मा को देखकर बोलते हैं और हम किताबों में पढ़कर बोलते हैं। इसलिए कबीर के मन और संसारी मन में भिन्नता है।

आज समाज के जिस युग में हम जी रहे हैं, वहां जातिवाद की कुत्सित राजनीति, धार्मिक पाखंड का बोलबाला, सांप्रदायिकता की आग में झुलसता जनमानस और आतंकवाद का नग्न तांडव, तंत्र-मंत्र का मिथ्या भ्रम-जाल से समाज और राष्ट्र आज भी उबर नहीं पाया है।

छह सौ वर्षों के सुदीर्घ प्राकट्यकाल के बाद भी कबीर हमारे वैयक्तिक एवं सामाजिक जीवन के लिए बेहद प्रासंगिक एवं समीचीन लगते हैं। वे हमारे लोकजीवन के इर्द-गिर्द घूमते नजर आते हैं। साहेब की बीजक वाणी में हिन्दू और मुस्लिम के साथ-साथ ब्रह्मांड के सभी लोगों को एक ही धरती पर प्रेमपूर्वक आदमी की तरह रहने की हिदायत देते हैं।

वे कहते हैं : 'वो ही मोहम्मद, वो ही महादेव, ब्रह्मा आदम कहिए, को हिन्दू, को तुरूक कहाए, एक जिमि पर रहिए।' कबीर मानवीय समाज के इतने बेबाक, साफ-सुथरे निश्छल मन के भक्त कवि हैं जो समाज को स्वर्ग और नर्क के मिथ्या भ्रम से बाहर निकालते हैं।

वे काजी, मुल्ला और पंडितों को साफ लफ्जों में दुत्कारते हैं- 'काजी तुम कौन कितेब बखानी, झंखत बकत रहहु निशि बासर, मति एकऊ नहीं जानी/दिल में खोजी देखि खोजा दे / बिहिस्त कहां से आया?' कबीर ने घट-घट वासी चेतन तत्व को राम के रूप में स्वीकार किया है। उन्होंने राम को जीवन आश्रय माना है, इसीलिए कबीर के बीजक में चेतन राम की एक सौ सत्तर बार अभिव्यंजना हुई है।

कबीर आज भी दहकते अंगारे हैं। कानन-कुसुम भी हैं कबीर जिनकी भीनी-भीनी गंध और सुवास नैसर्गिक रूप से मानवीय अरण्य को सुवासित कर रही है। हिमालय से उतरी हुई गंगा की पावनता भी है कबीर।

कबीर भारतीय मनीषा के भूगर्भ के फौलाद हैं जिसके चोट से ढोंग, पाखंड और धर्मांधता चूर-चूर हो जाती है। कबीर भारतीय संस्कृति का वह हीरा है जिसकी चमक नित नूतन और शाश्वत है।

राजा पृथ्वीराज ने देखा ख्वाजा का चमत्कार

विश्व प्रसिद्ध चिश्ती सूफी संत ख्वाजा मुईनुद्दीन चिश्ती का 797वाँ उर्स बड़ी धूमधाम से अजमेर में मनाया जा रहा है। इस मौके पर सभी धर्मों के लोग बड़ी मुहब्बत और श्रद्धा के साथ वहाँ हाजिरी देते हैं।

एक दिन का वाक्या है कि ख्वाजा गरीब नवाज खुदा की याद में डूबे थे। आपने आकाश से एक आवाज सुनी। आपने आवाज पर ध्यान दिया। आवाज ये आई - ऐ मुईनुद्दीन! हम तुझ से खुश हैं। तुझे बख्श दिया। चाहे जो कुछ माँग, ताकि अता करें। ख्वाजा गरीब नवाज यह सुन कर बहुत खुश हुए।

शुक्रगुजार बंदों की तरह सरे नियाज जमीन पर रख दिया, और कहा मुझ पर अपनी दया दृष्टि कर और सभी मुरीदों के गुनाहों को बख्श दे। खुदा वंदा!

खुदा की आवाज आई। मुईनद्दीन! जो तेरे मुरीद और तेरे सिलसिले में ता कयामत मुरीद होंगे, मैं इन्हें बख्श दूँगा। कुछ दिनों मक्का में कयाम पजीर रहे। हज का फरीजा अंजाम दिया। फिर मक्का मोअज्जमा से मदीना मुनव्वराह रवाना हो गए। मदीना मुनव्वराह में आप इबादात में मशगूल रहते। मस्जिदे कुबा में आप इबादात करते इशके इलाही में सरशार रहते। इस तरह वक्त गुजरता रहा।




आखिरकार वह खुश साअत आ पहुँची कि जब आप को दरबारे रिसालत से नवाजा गया। आपको वह खुशखबरी मिली कि जिस से आप की खुशी की कोई इंतिहा न रही। आप को दरबारे रिसालत से बशारत हुई। फिर वह मा मदीना गए। वहाँ दिन-रात ईश्वर की इबादात में व्यस्त रहते।

आखिरकार आकाशवाणी हुई, 'ऐ मुईनुद्दीन, तू मेरे दीन का मुईन है। मैंने कुफ्र व जुलमत फैली हुई है, तू अजमेर जा। तेरे वजूद से जुलमते कुफ्र दूर होगी, और इस्लाम रोनक पजीर होगा।' आपकी खुशी की कोई इंतिहा न थी। मगर एक बात आप की समझ में न आई कि अजमेर कहाँ है कि मुलक में है, कैसी जगह है, कौन-सा मकाम है, मदीने से कितनी दूर है। इन्ही ख्यालात में ख्वाजा गरीब नवाज की आँख लग गई सपने में आपको हजरत मुहम्मद अजमैर का तमाम शहर किला व कोहिस्तान दिखाया।

जब हजरत ख्वाजा गरीब नवाज अपने साथियों के साथ अजमेर पहुँचे तो अपने एक मुकाम पर ठहरे। यहाँ दरख्तों का साया था और यह मुकाम शहर से भी बाहर था। लेकिन राजा पृथ्वीराज के मुलाजिम ने आपको वहाँ ठहरने नहीं दिया। इन्होंने हजरत ख्वाजा गरीब नवाज से कहा, 'आप यहाँ नहीं बैठ सकते। यह जगह राजा के ऊँटों के बैठने की है। यहाँ राजा के ऊँट बैठते हैं आप नहीं बैठ सकते।'

ख्वाज गरीब नवाज को यह बात नागवार गुजरी, आपने फरमाया कि- अच्छा ऊँट बैठते हैं तो बैठें यह कलमात फरमाकर आप खड़े हो गए। वहाँ से रवाना होकर आपने अना सागर के किनारे डेरा डाला। ऊँट अपनी जगह पर आए और बैठे, लेकिन अब वो ऐसे बैठे की उठाने से भी न उठे। परेशान हुए। उन्होंने इस पूरे वाक्ये की इत्तिला राजा पृथ्वीराज को कही। राजा पृथ्वीराज को बहुत हैरत हुई।

राजा ने सिपाहियों को हुक्म दिया कि वो उन फकीर यानी ख्वाजा गरीब नवाज से माफी माँगे। सारबान ख्वाजा गरीब नवाज की खिदमत अकदस में हाजिर हुए माफी के खुवास्त गार हुए। ख्वाजा गरीब नवाज ने उनको माफ किया और कहा। अच्छा जाओ ऊँट खड़े हो गए। सिपाही खुशी-खुशी वापस आए। इनकी खुशी और ताज्जुब की कोई इंतहा न थी जब कि इन्होंने देखा कि ऊँट खड़े थे।

फरियादी से मांगी रिश्वत, एसीबी टीम को देख भागा हैड कांस्टेबल


फरियादी से मांगी रिश्वत, एसीबी टीम को देख भागा हैड कांस्टेबल

बाड़मेर  पुलिस थाना चौहटन के हैड कांस्टेबल ने मामला दर्ज करने की एवज में फरियादी से चार हजार रुपए की रिश्वत की मांग रखी। इस संबंध में फरियादी ने एसीबी बाड़मेर में शिकायत दर्ज करवाई। रिश्वत का सत्यापन होने पर एसीबी टीम पुलिस थाना चौहटन पहुंची। टीम की भनक लगते ही हैड कांस्टेबल ने फरियादी को हवालात में डालकर स्वयं भाग छूटा।

एसीबी बाड़मेर के डीएसपी विजयसिंह ने बताया कि फरियादी श्रवण कुमार व कमला देवी पत्नी हनुमानराम निवासी तरड़ो का तला बिसारणिया ने 30 दिसंबर को शिकायत दर्ज करवाई कि पुलिस थाना चौहटन में मामला दर्ज करने के लिए रिपोर्ट पेश करने पर हैड कांस्टेबल खुमाराम रिश्वत की मांग कर रहा है। इस पर पहले रिश्वत की मांग संबंधित शिकायत का सत्यापन करवाया गया। इसके बाद गुरुवार को टीम पुलिस थाना पहुंची। फरियादी श्रवण व कमला देवी ने हैड कांस्टेबल को पैसे देने चाहे लेकिन उसे पहले से एसीबी की भनक लग चुकी थी। इस पर हैड कांस्टेबल ने श्रवण को हवालात में बंद कर दिया। इसके बाद वह स्वयं मौके से भाग छूटा। एसीबी टीम देर रात तक इंतजार करती रही। लेकिन हैड कांस्टेबल नहीं लौटा। रिश्वत मांगने के संबंध में मामला दर्ज कर एसीबी ने जांच शुरू की।


बिसारणिया डीलर पर आरोप आरटीआई कार्यकर्ता है श्रवण
चौहटन पुलिस थाने का मामला, मामला दर्ज करने की एवज में मांगे चार हजार रुपए, हैड कांस्टेबल के खिलाफ दर्ज होगा मामला

आरटीआई कार्यकर्ता श्रवण कुमार के अनुसार उचित मूल्य की दुकान बिसारणिया में राशन वितरण में अनियमितताएं बरतने के संबंध में सूचना के अधिकार से सूचनाएं मांगने के बाद डीलर उदयसिंह ने उसके खिलाफ झूठे मामले दर्ज करवाकर परेशान किया। वे उसके परिवार के सदस्यों को प्रताडि़त कर रहा है। 30 दिसंबर को घर पर मारपीट करने आए लोग भी डीलर के व्यक्ति थे।

तरड़ो का तला निवासी श्रवण कुमार ने बताया कि 30 दिसंबर को रामाराम पुत्र हनुमानराम, जगदीश पुत्र हनुमानराम, नरपत पुत्र पूनमाराम जाट ने उसके घर में प्रवेश कर उसकी भाभी कमला देवी के साथ मारपीट की। साथ ही गाली गलौच करते हुए अभद्र व्यवहार किया। इस संबंध में मामला दर्ज करने के लिए पुलिस थाना चौहटन में रिपोर्ट देने पर हैड कांस्टेबल ने कहा कि चार हजार रुपए देने के बाद ही मामला दर्ज होगा। इस पर उसने एसीबी में शिकायत दर्ज करवाई।

गुरुवार, 2 जनवरी 2014

बीकानेर में मेडिकल प्रोफेसर से दुष्कर्म का प्रयास

बीकानेर। सरदार पटेल मेडिकल कालेज में एक महिला विभागाध्यक्ष ने अपने ही अधीनस्थ डाक्टर विजय पुरोहित पर दुष्कर्म का प्रयास करने व राजकार्य में बाधा डालने के आरोप में गुरूवार को जयनारायण व्यास कालोनी थाने में मामला दर्ज कराया। बीकानेर में मेडिकल प्रोफेसर से दुष्कर्म का प्रयास
सीआई राजेश ढाका ने बताया कि विभागाध्यक्ष ने रिपोर्ट में कहा कि वह गुरूवार सुबह साढे दस बजे काम कर रही थी। तभी विजय पुरोहित गालीगलोच करते हुए आए। इस पर वह उठ कर कमरे में चली गई। डाक्टर पुरोहित पीछे आए और कमरे का गेट बंद कर बदतमीजी की और दुष्कर्म का प्रयास किया। गाली गलोच से शुरू हुए घटनाक्रम का कारण स्पष्ट नहीं है। मामला आईपीसी की धारा 376, 511 व 353 में दर्ज किया गया है। जांच पुलिस उपनिरीक्षक लीलाधर कर रहे हैं।

कॉल गर्ल्स को मारने के बाद शव से करता था "गंदा" काम

बीजिंग। यह खबर रोंगटे खड़े कर देने वाली है। एक 23 साल के छात्र ने डेड बॉडी से सेक्स करने की इच्छा पूरी करने के लिए दो काल गल्र्स को मौत के घाट उतार दिया।कॉल गर्ल्स को मारने के बाद शव से करता था "गंदा" काम
चीन की जिलिन यूनिवर्सिटी का छात्र ली कई विषयों में फेल होने के चलते भारी मानसिक दबाव महसूस कर रहा था। उसने अपना मूड ठीक करने के लिए 6 मार्च 2013 को एक 20 साल की काल गर्ल काई को बुलाया। ली ने पहले इस काल गर्ल को फांसी पर लटकाया। फिर काल गर्ल की डेड बॉडी को घर ले गया और सेक्स किया।

इतना ही नहीं, ली ने इस काल गर्ल के शव को अपने घर के गार्डन में ही गाड़ दिया। 6 मार्च को अपनी फेंटेसी को पूरा करने के बाद भी ली का यह शौक खत्म नहीं हुआ। ली ने 23 मार्च को फिर एक और कार्ल गर्ल के साथ ऎसा ही किया।

ली ने पुलिस पूछताछ में बताया कि वह हमेशा से ही डेड बॉडी के साथ सेक्स करने के सपने देखता था। फिर एक दिन सुबह उसने ठान लिया कि अब वह और सपने नहीं देखेगा, उन्हें पूरा करेगा।

पुलिस जांच में यह पुष्ठि हो गई कि ली ने यह घृणित काम किया है। कोर्ट ने भी उसे दोषी करार देते हुए मौत की सजा सुनाई है।

खाई में गिरी ठाणे-अहमदनगर बस, 37 की मौत



ठाणे। महाराष्ट्र राज्य परिवहन की एक बस के गुरुवार सुबह मालशेज घाट में 400 फुट गहरे खड्ढ में गिरने से कम से कम 37 लोग मारे गए और कई अन्य लोग घायल हो गए। हादसा ड्राइवर का बस से नियंत्रण खत्म होने के चलते हुआ। यह जानकारी पुलिस ने दी है।


हादसा सुबह करीब 10.30 बजे हुआ। बताया गया कि महाराष्ट्र राज्य सड़क परिवहन निगम (एमएसआरटीसी) से संबंधित ठाणे-अहमदनगर बस सड़क से फिसली और गहरे खड्ढ में जा गिरी। ठाणे ग्रामीण पुलिस के एक अधिकारी ने बताया कि शुरुआती जांच के अनुसार, घाट रोड पर पहाड़ी ढलान पर ड्राइवर का बस से नियंत्रण छूट गया। जिसके चलते बस 45 सवारियों सहित गहरे खड्ढ में जा गिरी।



ठाणे और पुणे के स्थानीय ग्रामीणों, पुलिस और अग्निशमन विभाग के कर्मियों ने हादसा पीड़ितों को बचाने का कार्य किया। पहाड़ी ढलानों के चलते बचाव कार्य में दिक्कत पेश आई। पुलिस ने कहा कि कुछ घायलों को मुर्बाद और ठाणे के अस्पतालों में भर्ती कराया गया है। मृतकों की संख्या बढ़ने की आशंका है।