विश्व प्रसिद्ध चिश्ती सूफी संत ख्वाजा मुईनुद्दीन चिश्ती का 797वाँ उर्स बड़ी धूमधाम से अजमेर में मनाया जा रहा है। इस मौके पर सभी धर्मों के लोग बड़ी मुहब्बत और श्रद्धा के साथ वहाँ हाजिरी देते हैं।
एक दिन का वाक्या है कि ख्वाजा गरीब नवाज खुदा की याद में डूबे थे। आपने आकाश से एक आवाज सुनी। आपने आवाज पर ध्यान दिया। आवाज ये आई - ऐ मुईनुद्दीन! हम तुझ से खुश हैं। तुझे बख्श दिया। चाहे जो कुछ माँग, ताकि अता करें। ख्वाजा गरीब नवाज यह सुन कर बहुत खुश हुए।
शुक्रगुजार बंदों की तरह सरे नियाज जमीन पर रख दिया, और कहा मुझ पर अपनी दया दृष्टि कर और सभी मुरीदों के गुनाहों को बख्श दे। खुदा वंदा!
खुदा की आवाज आई। मुईनद्दीन! जो तेरे मुरीद और तेरे सिलसिले में ता कयामत मुरीद होंगे, मैं इन्हें बख्श दूँगा। कुछ दिनों मक्का में कयाम पजीर रहे। हज का फरीजा अंजाम दिया। फिर मक्का मोअज्जमा से मदीना मुनव्वराह रवाना हो गए। मदीना मुनव्वराह में आप इबादात में मशगूल रहते। मस्जिदे कुबा में आप इबादात करते इशके इलाही में सरशार रहते। इस तरह वक्त गुजरता रहा।
आखिरकार वह खुश साअत आ पहुँची कि जब आप को दरबारे रिसालत से नवाजा गया। आपको वह खुशखबरी मिली कि जिस से आप की खुशी की कोई इंतिहा न रही। आप को दरबारे रिसालत से बशारत हुई। फिर वह मा मदीना गए। वहाँ दिन-रात ईश्वर की इबादात में व्यस्त रहते।
आखिरकार आकाशवाणी हुई, 'ऐ मुईनुद्दीन, तू मेरे दीन का मुईन है। मैंने कुफ्र व जुलमत फैली हुई है, तू अजमेर जा। तेरे वजूद से जुलमते कुफ्र दूर होगी, और इस्लाम रोनक पजीर होगा।' आपकी खुशी की कोई इंतिहा न थी। मगर एक बात आप की समझ में न आई कि अजमेर कहाँ है कि मुलक में है, कैसी जगह है, कौन-सा मकाम है, मदीने से कितनी दूर है। इन्ही ख्यालात में ख्वाजा गरीब नवाज की आँख लग गई सपने में आपको हजरत मुहम्मद अजमैर का तमाम शहर किला व कोहिस्तान दिखाया।
जब हजरत ख्वाजा गरीब नवाज अपने साथियों के साथ अजमेर पहुँचे तो अपने एक मुकाम पर ठहरे। यहाँ दरख्तों का साया था और यह मुकाम शहर से भी बाहर था। लेकिन राजा पृथ्वीराज के मुलाजिम ने आपको वहाँ ठहरने नहीं दिया। इन्होंने हजरत ख्वाजा गरीब नवाज से कहा, 'आप यहाँ नहीं बैठ सकते। यह जगह राजा के ऊँटों के बैठने की है। यहाँ राजा के ऊँट बैठते हैं आप नहीं बैठ सकते।'
ख्वाज गरीब नवाज को यह बात नागवार गुजरी, आपने फरमाया कि- अच्छा ऊँट बैठते हैं तो बैठें यह कलमात फरमाकर आप खड़े हो गए। वहाँ से रवाना होकर आपने अना सागर के किनारे डेरा डाला। ऊँट अपनी जगह पर आए और बैठे, लेकिन अब वो ऐसे बैठे की उठाने से भी न उठे। परेशान हुए। उन्होंने इस पूरे वाक्ये की इत्तिला राजा पृथ्वीराज को कही। राजा पृथ्वीराज को बहुत हैरत हुई।
राजा ने सिपाहियों को हुक्म दिया कि वो उन फकीर यानी ख्वाजा गरीब नवाज से माफी माँगे। सारबान ख्वाजा गरीब नवाज की खिदमत अकदस में हाजिर हुए माफी के खुवास्त गार हुए। ख्वाजा गरीब नवाज ने उनको माफ किया और कहा। अच्छा जाओ ऊँट खड़े हो गए। सिपाही खुशी-खुशी वापस आए। इनकी खुशी और ताज्जुब की कोई इंतहा न थी जब कि इन्होंने देखा कि ऊँट खड़े थे।
एक दिन का वाक्या है कि ख्वाजा गरीब नवाज खुदा की याद में डूबे थे। आपने आकाश से एक आवाज सुनी। आपने आवाज पर ध्यान दिया। आवाज ये आई - ऐ मुईनुद्दीन! हम तुझ से खुश हैं। तुझे बख्श दिया। चाहे जो कुछ माँग, ताकि अता करें। ख्वाजा गरीब नवाज यह सुन कर बहुत खुश हुए।
शुक्रगुजार बंदों की तरह सरे नियाज जमीन पर रख दिया, और कहा मुझ पर अपनी दया दृष्टि कर और सभी मुरीदों के गुनाहों को बख्श दे। खुदा वंदा!
खुदा की आवाज आई। मुईनद्दीन! जो तेरे मुरीद और तेरे सिलसिले में ता कयामत मुरीद होंगे, मैं इन्हें बख्श दूँगा। कुछ दिनों मक्का में कयाम पजीर रहे। हज का फरीजा अंजाम दिया। फिर मक्का मोअज्जमा से मदीना मुनव्वराह रवाना हो गए। मदीना मुनव्वराह में आप इबादात में मशगूल रहते। मस्जिदे कुबा में आप इबादात करते इशके इलाही में सरशार रहते। इस तरह वक्त गुजरता रहा।
आखिरकार वह खुश साअत आ पहुँची कि जब आप को दरबारे रिसालत से नवाजा गया। आपको वह खुशखबरी मिली कि जिस से आप की खुशी की कोई इंतिहा न रही। आप को दरबारे रिसालत से बशारत हुई। फिर वह मा मदीना गए। वहाँ दिन-रात ईश्वर की इबादात में व्यस्त रहते।
आखिरकार आकाशवाणी हुई, 'ऐ मुईनुद्दीन, तू मेरे दीन का मुईन है। मैंने कुफ्र व जुलमत फैली हुई है, तू अजमेर जा। तेरे वजूद से जुलमते कुफ्र दूर होगी, और इस्लाम रोनक पजीर होगा।' आपकी खुशी की कोई इंतिहा न थी। मगर एक बात आप की समझ में न आई कि अजमेर कहाँ है कि मुलक में है, कैसी जगह है, कौन-सा मकाम है, मदीने से कितनी दूर है। इन्ही ख्यालात में ख्वाजा गरीब नवाज की आँख लग गई सपने में आपको हजरत मुहम्मद अजमैर का तमाम शहर किला व कोहिस्तान दिखाया।
जब हजरत ख्वाजा गरीब नवाज अपने साथियों के साथ अजमेर पहुँचे तो अपने एक मुकाम पर ठहरे। यहाँ दरख्तों का साया था और यह मुकाम शहर से भी बाहर था। लेकिन राजा पृथ्वीराज के मुलाजिम ने आपको वहाँ ठहरने नहीं दिया। इन्होंने हजरत ख्वाजा गरीब नवाज से कहा, 'आप यहाँ नहीं बैठ सकते। यह जगह राजा के ऊँटों के बैठने की है। यहाँ राजा के ऊँट बैठते हैं आप नहीं बैठ सकते।'
ख्वाज गरीब नवाज को यह बात नागवार गुजरी, आपने फरमाया कि- अच्छा ऊँट बैठते हैं तो बैठें यह कलमात फरमाकर आप खड़े हो गए। वहाँ से रवाना होकर आपने अना सागर के किनारे डेरा डाला। ऊँट अपनी जगह पर आए और बैठे, लेकिन अब वो ऐसे बैठे की उठाने से भी न उठे। परेशान हुए। उन्होंने इस पूरे वाक्ये की इत्तिला राजा पृथ्वीराज को कही। राजा पृथ्वीराज को बहुत हैरत हुई।
राजा ने सिपाहियों को हुक्म दिया कि वो उन फकीर यानी ख्वाजा गरीब नवाज से माफी माँगे। सारबान ख्वाजा गरीब नवाज की खिदमत अकदस में हाजिर हुए माफी के खुवास्त गार हुए। ख्वाजा गरीब नवाज ने उनको माफ किया और कहा। अच्छा जाओ ऊँट खड़े हो गए। सिपाही खुशी-खुशी वापस आए। इनकी खुशी और ताज्जुब की कोई इंतहा न थी जब कि इन्होंने देखा कि ऊँट खड़े थे।
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