गुरुवार, 2 जनवरी 2014

यमदूत बनकर आए ट्रोले ने ले ली 4 जानें

पाली। राजस्थान के पाली जिले में ट्रोले ने कार और बाइक को टक्कर मार दी, इससे चार लोगों की मौत हो गई। हादसा सांडेराव कस्बे के पास सिंदरू गांव में हुआ। मृतकों की अभी तक शिनाख्त नहीं हो पाए। पुलिस ने शव सांडेराव के सिटी अस्पताल में शिनाख्त के लिए रखवाए हैं। यमदूत बनकर आए ट्रोले ने ले ली 4 जानें
जानकारी के अनुसार पाली जिले में एनएच-14 पर सुमेरपुर के सिंदरू गांव में ट्रोले ने आगे चल रही कार और बाइक को टक्कर मार दी। इससे कार एवं बाइक सवार चार लोगों की मौके पर ही मौत हो गई। सूचना पर सांडेराव थाना पुलिस मौके पर पहुंची। थाना प्रभारी राजेन्द्र सिंह चारण ने शवों को सांडेराव के अस्पताल में रखवाया है। मृतकों की शिनाख्त के प्रयास किए जा रहे हैं।

वैश्या की बेटी पर आया बादशाह का दिल, पाने के लिए खेला खूनी खेल

कोटा. राजस्थान में अनेकों प्रेम कथाएं प्रचलित हैं, लेकिन उनमे से कुछ ही ऐसी है जो इतिहास के पन्नों पर अपना नाम लिखवाने में सफल हो पाई। ऐसी ही एक कहानी है मारवाड़ के एक वैश्या की बेटी की जिसने राजा के आदेश की अवहेलना की। उसे अपने प्रेम में इतना विश्वास था कि उसने सजा की परवाह किए बिना राजा के प्रेम का प्रस्ताव ठुकरा दिया था।




ये प्रेम कहानी पूरे राजस्थान में बहुत मशहूर है। गुजरात के बादशाह महमूद शाह का दिल मारवाड़ से आई जवाहर पातुर की बेटी कंवल पर आ गया। उसने कवंल को समझाने की कोशिश की और कहा, " मेरी बात मान ले, मेरी रखैल बन जा। मैं तुझे दो लाख रूपये सालाना की जागीर दे दूंगा और तेरे सामने पड़े ये हीरे-जवाहरात भी तेरे। जिद मत कर मेरा कहना मान और मेरी रखैल बनना स्वीकार करले। इतना कहकर राजा ने हीरों का हार कंवल के गले में पहनाने की कोशिश की।



राजा के इस बर्ताव से खुश होने के बजाए कवंल ने नाराजगी दर्ज की और राजा की बात ठुकराते हुए कंवल ने हीरों का हार तोड़कर फैंक दिया। उसकी मां एक वैश्या थी जिसका नाम जवाहर पातुर था। उसने बेटी की हरकत पर बादशाह से मांफी मांगी। मां ने कंवल को बहुत समझाया कि बादशाह की बात मान ले और उसकी रखैल बन जा तू पुरे गुजरात पर राज करेगी। पर कंवल ने मां से साफ मना कर दिया। उसने मां से कहा कि वह "केहर" को प्यार करती है। दुनिया का कोई भी राजा उसके किस काम का नहीं।

कंवर केहर सिंह चौहान महमूद शाह के अधीन एक छोटी सी जागीर "बारिया" का जागीरदार था और कंवल उसे प्यार करती थी। उसकी मां ने खूब समझाया कि तू एक वेश्या की बेटी है, तु किसी एक की घरवाली नहीं बन सकती। लेकिन कंवल ने साफ कह दिया कि "केहर जैसे शेर के गले में बांह डालने वाली उस गीदड़ महमूद के गले कैसे लग सकती है |" यह बात जब बादशाह को पता चला
तो वह आग बबूला हो गया। उसने कंवल को कैद करने के आदेश दे दिए और कहा कि अब तू देखना तेरे शेर को तेरे आगे ही पिंजरे में मैं कैसे कैद करके रखूंगा।

बादशाह ने एलान किया कि केहर को कैद करने वाले को उसकी जागीर जब्त कर दे दी जाएगी पर केहर जैसे राजपूत योद्धा से कौन टक्कर ले। दरबार में उपस्थित उसके सामन्तो में से एक जलाल आगे आया उसके पास छोटी सी जागीर थी सो लालच में उसने यह बीड़ा उठा ही लिया। योजना अनुसार साबरमती नदी के तट पर मेले के दिन महमूद शाह ने जाल बिछाया। जलाल एक तैराक योद्धा आरबखां को जल क्रीड़ा के समय केहर को मारने हेतु ले आया।




केहर भी तैराकी व जल युद्ध में कम न था सो उसने आरबखां को इस युद्ध में मार डाला। केहर द्वारा आरबखां को मारने के बाद राजा ने केहर को शाबासी के साथ मोतियों की माला पहना शिवगढ़ की जागीर भी दी। लोगों को ये बात गले नहीं उतरी। वो समझ गए कि बादशाह कोई षड्यंत्र रच रहा है उन्होंने केहर को आगाह भी कर दिया, लेकिन केहर को बादशाह ने यह कह कर रोक लिया कि दस दिन बाद होली खेलेंगे। इसी बहाने उसने केहर को महल में बुलाकर षड्यंत्र पूर्वक उसे कैद कर कंवल के महल के पास रखवा दिया ताकि वह अपने प्रेमी की दयनीय हालत देख दुखी होती रहे।कंवल रोज पिंजरे में कैद केहर को खाना खिलाने आती। एक दिन कंवल ने एक कटारी व एक छोटी आरी केहर को लाकर दी व उसी समय केहर की दासी टुन्ना ने वहां सुरक्षा के लिए तैनात फालूदा खां को जहर मिली भांग पिला बेहोश कर दिया इस बीच मौका पाकर केहर पिंजरे के दरवाजे को काट आजाद हो गया और किसी तरह महल से बाहर निकल अपने साथियों सांगजी व खेतजी के साथ अहमदाबाद से बाहर निकल आया।

उसकी जागीर बारिया तो बादशाह ने जब्त कर जलाल को दे दी थी सो केहर मेवाड़ के एक सीमावर्ती गांव बठूण में आ गया और गांव के मुखिया गंगो भील से मिलकर आपबीती सुनाई। गंगो भील ने अपने अधीन साठ गांवों के भीलों का पूरा समर्थन केहर को देने का वायदा किया। अब केहर बठूण के भीलों की सहायता से गुजरात के शाही थानों को लुटने लगा, सारा इलाका केहर के नाम से कांपने लगा।

बादशाह ने कई योद्धा भेजे केहर को मारने के लिए पर हर मुटभेड में बादशाह के योद्धा ही मारे जाते, राजा रोज जलाल को खत लिखता कि केहर को ख़त्म करे पर एक दिन बादशाह को समाचार मिला कि केहर की तलवार के एक बार से जलाल के टुकड़े टुकड़े हो गए। कंवल केहर की जितनी किस्से सुनती, उतनी ही खुश होती और उसे खुश देख बादशाह को उतना ही गुस्सा आता पर वह क्या करे बेचारा बेबस था। केहर को पकड़ने या मारने की हिम्मत उसके किसी सामंत व योद्धा में नहीं थी।कंवल महमूद शाह के किले में तो रहती पर उसका मन हमेशा केहर के साथ होता वह महमूद शाह से बात तो करती पर उपरी मन से। छगना नाई की बहन कंवल की नौकरानी थी एक दिन कंवल ने एक पत्र लिख छगना नाई के हाथ केहर को भिजवाया। केहर ने कंवल का सन्देश पढ़ा- " मारवाड़ के व्यापारी मुंधड़ा की बारात अजमेर से अहमदाबाद आ रही है रास्ते में आप उसे लूटना मत और उसी बारात के साथ वेष बदलकर अहमदाबाद आ जाना। पहुंचने पर मैं दूसरा सन्देश आपको भेजूंगी।"

अजमेर अहमदाबाद मार्ग पर बारात में केहर व उसके चार साथी बारात के साथ हो लिए केहर जोगी के वेष में था उसके चारों राजपूत साथी हथियारों से लैस थे। केहर को चिट्ठी लिखने के बाद कंवल ने बादशाह के प्रति अपना रवैया बदल लिया वह उससे कभी मजाक करती कभी कभार तो केहर की बुराई भी कर देती पर महमूद शाह को अपना शरीर छूने ना देती। कंवल ने अपनी दासी को बारात देखने के बहाने भेज केहर को सारी योजना समझा दी।बारात पहुंचने से पहले ही कंवल ने राजा से कहा - "हजरत केहर का तो कोई अता-पता नहीं आखिर आपसे कहां बच पाया होगा, उसका इंतजार करते करते मैं भी थक गई हूं अब तो मेरी जगह आपके चरणों में ही है। लेकिन हुजुर मैं आपकी रखैल, आपकी बांदी बनकर नहीं रहूंगी अगर आप मुझे वाकई चाहते है तो आपको मेरे साथ विवाह करना होगा और विवाह के बारे में मेरी कुछ शर्तें है वह आपको माननी होगी।"
1- शादी मुंधड़ा जी की बारात के दिन ही हों।
2- विवाह हिन्दू रितिरिवाजानुसार हो। विनायक बैठे, मंगल गीत गाये जाए, सारी रात नौबत बाजे।
3- शादी के दिन मेरा डेरा बुलंद गुम्बज में हों।
4- आप बुलंद गुम्बज पधारें तो आतिशबाजी चले, तोपें छूटें, ढोल बजें।
5- मेरी शादी देखने वालों के लिए किसी तरह की रोक टोक ना हो और मेरी मां जवाहर पातुर पालकी में बैठकर बुलन्द गुम्बज के अन्दर आ सके।





उसकी खुबसूरती में पागल राजा ने उसकी सारी शर्तें मान ली। शादी के दिन सांझ ढले कंवल की दासी टुन्ना पालकी ले जवाहर पातुर को लेने उसके डेरे पर पहुंची वहां योजनानुसार केहर शस्त्रों से सुसज्जित हो पहले ही तैयार बैठा था टुन्ना ने पालकी के कहारों को किसी बहाने इधर उधर कर दिया और उसमे चुपके से केहर को बिठा पालकी के परदे लगा दिए। पालकी के बुलन्द गुम्बज पहुंचने पर सारे मर्दों को वहां से हटवाकर कंवल ने केहर को वहां छिपा दिया।



थोड़ी ही देर में राजा हाथी पर बैठ सजधज कर बुलंद गुम्बज पहुंचा। महमूद शाह के बुलंद गुम्बज में प्रवेश करते ही बाहर आतिशबाजी होने लगी और ढोल पर जोरदार थाप की गडगडाहट से बुलंद गुम्बज थरथराने लगी। तभी केहर बाहर निकल आया और उसने बादशाह को ललकारा -" आज देखतें है शेर कौन है और गीदड़ कौन ? तुने मेरे साथ बहुत छल कपट किया सो आज तुझे मारकर मैं अपना वचन पूरा करूंगा।"दोनों योद्धा भीड़ गए, दोनों में भयंकर युद्ध हुआ। दोनों में मल्ल-युद्ध होने लगा। उनके पैरों के धमाकों से बुलंद गुम्बज थरथराने लगा पर बाहर हो रही आतिशबाजी के चलते अन्दर क्या हो रहा है किसी को पता न चल सका। चूंकि केहर मल्ल युद्ध में भी प्रवीण था इसलिए महमूद शाह को उसने थोड़ी देर में अपने मजबूत घुटनों से कुचल दिया बादशाह के मुंह से खून का फव्वारा छुट पड़ा और कुछ ही देर में उसकी जीवन लीला समाप्त हो गयी।


दासी टुन्ना ने केहर व कंवल को पालकी में बैठा पर्दा लगाया और कहारों और सैनिकों को हुक्म दिया कि - जवाहरबाई की पालकी तैयार है उसे उनके डेरे पर पहुंचा दो और बादशाह आज रात यही बुलंद गुम्बज में कंवल के साथ विराजेंगे। कहार और सैनिक पालकी ले जवाहरबाई के डेरे पहुंचे वहां केहर का साथी सांगजी घोड़ों पर जीन कस कर तैयार था। केहर ने कंवल को व सांगजी ने टुन्ना को अपने साथ घोड़ों पर बैठाया और चल पड़े। जवाहरबाई को छोड़ने आये कहार और शाही सिपाही एक दुसरे का मुंह ताकते रह गए।

20 साल पहले सगाई,अब शादी की चाह

लॉस एंजेलिस। चैट शो के लिए लोकप्रिय ओपरा विंफ्रे के मंगेतर स्टेडमैन ग्राहम ने कहा है कि वह उनके साथ आजीवन शादीशुदा जीवन जीने के इच्छुक हैं। इन दोनों की सगाई हुए 20 साल से ज्यादा समय हो चुका है।
एक वेबसाइट के मुताबिक टॉक शो शख्सित ने छह साल तक डेटिंग करने के बाद ही वर्ष 1992 में ग्राहम के प्रणय निवेदन को स्वीकार किया। ग्राहम अब उनसे शादी के बारे में पूछने की योजना बना रहे हैं। उनका यह कदम 15 दिसंबर को मंडेला के अंतिम संस्कार के लिए हुई दक्षिण अफ्रीका की भावुक यात्रा से प्रभावित है।

एक सूत्र ने बताया कि मंडेला और उनके सभी कार्यो से अत्यधिक प्रेम करने वालीं ओपरा के लिए यह बेहद भावुक यात्रा थी। दुख की इस घड़ी के दौरान दुनिया में सिर्फ एक ही शख्स था, जिसकी ओर विंफ्रे मुड़ीं। वह इंसान उनके मंगेतर स्टेडमैन हैं।

गूगल पहुंचाएगा मतदान केंद्र तक

नई दिल्ली। लोकसभा चुनाव के मद्देनजर राजनीतिक दलों के बीच गठबंधन को लेकर भले ही अभी एक राय न बन पाई हो, लेकिन लोकतंत्र के महाकुंभ को सफल बनाने के लिए चुनाव आयोग ने सर्च इंजन गूगल से गठबंधन किया है।
आयोग गूगल की मदद से ऑनलाइन रजिस्ट्रेशन से लेकर मतदाताओं को मतदान केंद्र तक पहुंचाने का काम करेगा। दोनों पक्षों के बीच करार हो चुका है और अगले हफ्ते से काम भी शुरू हो जाएगा।

परिणाम भी हाईटेक

लोकसभा चुनाव के परिणामों के लिए आयोग ने एक अन्य अमेरिकी फर्म अकामाई से संपर्क साधा है। इससे पहले हाल में सम्पन्न हुए पांच विधानसभा चुनावों में इसी फर्म ने तेजी से परिणाम जारी किए थे। अकामाई के 272 सर्वरों की मदद से इस काम को अंजाम दिया गया था। वहीं 2009 के लोकसभा चुनावों में आयोग ने अपने महज दो सर्वरों की मदद से परिणाम जारी किए थे।

सुविधाएं

सर्च इंजन की मदद से लोग ऑनलाइन रजिस्ट्रेशन कर पाएंगे।
सर्च इंजन में नाम, पता और रजिस्ट्रेशन संख्या दर्ज करते ही लोकसभा क्षेत्र की पूरी जानकारी सामने आ जाएगी।
गूगल मैप्स की मदद से वोटर पोलिंग बूथ तक पहुंच सकेगा।

करार

गूगल वल्र्डवाइड नेटवर्क और तमाम संसाधन आयोग को देगा।
आयोग की वेबसाइट पर मतदाताओं के सवालों के जवाब भी गूगल के माध्यम से दिए जाएंगे।
पूरी प्रक्रिया में गूगल के 30 लाख रूपए खर्च होंगे, जो वह स्वयं वहन करेगा।

बाप-बेटे ने लूटी नाबालिग छात्रा की अस्मत

फिरोजाबाद। उत्तर प्रदेश के फिरोजाबाद जिले के जसराना क्षेत्र में बुधवार को एक छात्रा ने गांव के ही एक युवक और उसके पिता पर दुष्कर्म करने का आरोप लगाया है।
पुलिस के अनुसार जसराना इलाके में जाजूमई गांव की 16 साल की लड़की ने थाने में तहरीर दी है कि जब वह शौच के लिए खेत की ओर जा रही थी तभी अनूप और उसके पिता राजपाल ने उसे दबोच लिया और अश्लील हरकतें करनी शुरू कर दी।

उसने विरोध किया तो पिता-पुत्र ने उस पर तमंचा तान दिया और दोनों ने उसके साथ दुष्कर्म किया। इस सिलसिले में मामला दर्ज करा दिया गया है। लड़की को मेडिकल जांच के लिए अस्पताल भेज दिया गया है। पुलिस के अनुसार हालत बिगड़ने पर पीडिता को अस्पताल में भर्ती कराया गया है। पुलिस ने मामले की छानबीन शुरू कर दी है।

कार में लिफ्ट देकर विवाहिता से गैंगरेप

हिसार। हरियाणा के हिसार जिले में बीते वर्ष दुष्कर्म की अनेक घटनाओं के लिए चर्चा में रहा हिसार जिला में साल के आखरी दिन भी विवाहिता हवस के भूखे भेडियों के शिकार हो गई। इस वारदात में चार युवकों ने इस विवाहिता के साथ बंधक बनाकर गैंगरेप किया।
पुलिस के पास पहुंचे इस मामले के अनुसार घर से बाजार के लिए निकली 32 वर्षीय विवाहिता को कार में लिफ्ट देने के बहाने अपहरण कर सामूहिक दुष्कर्म किया। पीडिता के अनुसार उसे नागोरी गेट के समीप कार में सवार चार युवकों ने आजाद नगर छोड़ने का झांसा दिया और सिवानी के एक होटल में ले गए। वहां चारों युवकों ने उसके साथ सामूहिक दुष्कर्म किया तथा वहा से उसे एक गाड़ी में बैठा दिया।

पीडिता का कहना है कि आरोपियों के खिलाफ शिकायत करने के लिए पीडिता आजाद नगर पुलिस चौकी पहुंची तो उसे मामला सिवानी का बताया गया। थाना में वारदात की जानकारी देने पर सुनवाई नहीं हुई। पुलिस से संपर्क करने पर उसे हिसार एसपी के पास भेजा गया तथा पीडिता ने एसपी बी सतीश बालन से मिलकर घटना की जानकारी दी। एसपी ने शहर थाना पुलिस को मामला दर्ज करने के आदेश दिए।

किराडू इस मंदिर में पत्थर का बन जाता है इंसान







राजस्थान में कई ऐसे मंदिर हैं जिनकी खूबसूरती और रहस्य आज भी लोगों को अपनी ओर आकर्षित करते हैं। वहां के सौंदर्य को तो हम अपनी आंखों से देख लेते हैं, लेकिन इन मंदिरों में छिपे उन रहस्यों को नहीं जान पाते जो हमेशा से ही एक राज बना हुआ है।

आज हम बात कर रहे हैं ऐसे ही एक मंदिर की जो बाड़मेर जिले के किराडू में है। कहा जाता है कि यहां पर रात में सोने वाला इंसान या तो हमेशा के लिए सो जाता है या फिर वह पत्थर की शक्ल ले लेता है।

बाड़मेर के किराडू मंदिर की हकीकत इसके इतिहास में छिपी है। कोई कहता है कि मुगलों के कई आक्रमण झेलने की वजह से आज यह जगह बदहाल है। लेकिन यहां के स्थानीय लोगों की माने तो एक साधू के शाप ने इस मंदिर को पत्थरों की नगरी में बदल दिया।

ऐसी मान्यता है कि काफी वर्षों पहले यहां एक तापसी साधु अपने शिष्य के साथ रहता था। एकबार वह देशाटन के लिए गया, लेकिन अपने प्रिय शिष्य को गांववालों के भरोसे आश्रम में ही छोड़ गए। उन्हें भरोसा था कि जिस तरह से गांव के लोग उनकी सेवा करते हैं ठीक उसी तरह से उसके शिष्य की भी देखरेख करेंगे। लेकिन सिवाए एक कुम्हारन किसी ने भी उस अकेले शिष्य की सुध नहीं ली। साधु जब वापस लौटा तो शिष्य को बीमार देखकर वह क्रोधित हो गया। उसने शाप दिया कि जहां के लोगों में दया की भावना न हो वहां जीवन का क्या मतलब, इसलिए यहां के सभी लोग पत्थर के हो जाएं और पूरा शहर बर्बाद हो जाए।

फिर क्या था देखते ही देखते सभी पत्थर के हो गए। सिवाए उस कुम्हारन के, जिसने शिष्य की सेवा की थी। साधु ने उस कुम्हारन से कहा कि तेरे ह्रदय में दूसरों के लिए ममता है इसलिए तू यहां से चली जा। साथ में चेतावनी भी दी कि जाते समय पीछे मुड़कर नहीं देखना वरना तू भी पत्थर की हो जाएगी। कुम्हारन वहां से तुरंत भाग खड़ी हुई,

लेकिन जाते वक्त उसके मन में अचानक एक बात आई कि क्या सच में किराडू के लोग पत्थर के हो गए हैं। यह देखने के लिए वह जैसे ही पीछे मुड़ी वह खुद भी पत्थर की मूर्ति में बदल गई। सिहाणी गांव के नजदीक कुम्हारन की वह पत्थर मूर्ति आज भी अपने उस भयावह अतीत को बयां करती दिखाई देती है।

इस कहानी में कितनी सच्चाई है कोई नहीं जानता, लेकिन इतिहासकारों की माने तो 14वीं शताब्दी तक किराडू मुगलों के आक्रमण से तो बचा हुआ था। ऐसे में शायद यह साधु का शाप ही था जिसने इस देवालय भूमि को पत्थरों के वीराने में बदल दिया।

कभी बाड़मेर का यह इलाका किराडू शिव, विष्णु और ब्रह्मा के मंदिरों से समृद्ध था। आज भी है, लेकिन बदहाल अवस्था में। देवालयों की इस भूमि में अब शेष है तो केवल पांच मंदिरों के अवशेष। इनमें एक भगवान विष्णु और अन्य चार भगवान शिव के हैं। कहा जाता है कि बचे हुए विष्णु मंदिर से ही यहां के स्थापत्य कला की शुरुआत हुई थी। जबकि इन पांच देवालयों में सबसे बड़े सोमेश्वर के खंडहर को इस कला के उत्कर्ष का अंत माना जाता है।

मंदिर का अलौकिक और अद्भुत सौंदर्य: स्थापत्य कला के लिए मशहूर इन प्राचीन मंदिरों को देखकर ऐसा लगता है मानो शिल्प और सौंदर्य के किसी अचरज लोक में पहुंच गए हों। पत्थरों पर बनी कलाकृतियां अपनी अद्भुत और बेमिसाल अतीत की कहानियां कहती नजर आती हैं। खंडहरों में चारो ओर बने वास्तुशिल्प उस दौर के कारीगरों की कुशलता को पेश करती हैं।

नींव के पत्थर से लेकर छत के पत्थरों में कला का सौंदर्य पिरोया हुआ है। मंदिर के आलंबन में बने गजधर, अश्वधर और नरधर, नागपाश से समुद्र मंथन और स्वर्ण मृग का पीछा करते भगवान राम की बनी पत्थर की मूर्तियां ऐसे लगती हैं कि जैसे अभी बोल पड़ेगी। ऐसा लगता है मानो ये प्रतिमाएं शांत होकर भी आपको खुद के होने का एहसास करा रही है।

मंदिर के अंदर की खूबसूरती तो और भी बेमिसाल है। छतविहीन मंदिर के आसपास स्थित 44 स्तंभ यहां के इतिहास को पलभर के लिए जिंदा कर देती है। पत्थरों की ऐसी कारीगरी आपको शायद ही कहीं देखने को मिलेगी।

वानर सेना, राम-रावण युद्ध, संजीवनी बूटी लाते हनुमान जैसे दृश्य आपको रामायण के युग में पहुंचा देते हैं तो अगले ही पल आप खुद को महाभारत के समय में पाएंगे। मंदिर के खंभों पर बने भयावह जीवों के चित्र जंगल के होने का आभास दिलाते हैं।

 

यह ऐतिहासिक गुजरात आज से नहीं, सदियों से है


यह ऐतिहासिक गुजरात आज से नहीं, सदियों से है

गुजरात की समृद्धता आधुनिक नहीं, ऐतिहासिक है। इस इलाके ने बहुत उतार-चढ़ाव देखे हैं। सैन्य, राजनीतिक, युद्ध, भूकंप, समुद्र का अंगड़ाई लेना और गुस्सा दिखाना, रेगिस्तान से लेकर अब हो रही जबरदस्त खुदाई (खनन) तक सब कुछ।

मुझे नहीं लगता कि हमारे सामान्य समाज की इस तरह के उतार-चढ़ाव को जानने और समझने में बहुत रुचि रही है। मुझे समझ नहीं आता कि हमारा अध्यात्म रहस्यवाद के खिलाफ क्यों होता है। एक समय पर एक शहर में से एक बड़ी नदी बहती थी जिसने अपना रास्ता बदल लिया। नदी के रास्ते में इस बदलाव ने एक अर्थव्यवस्था को खत्म कर दिया।

कच्छ के उत्तर-पूर्व में लखपत का किला है। यह केवल एक किला नहीं है, बल्कि एक पूरा वाकया है। आज जब आप इस किले की तरफ जाने के लिए निकलते हैं तो कई किलोमीटर तक आपको कोई घनी बस्ती या बाजार या सेवा नजर नहीं आती।

बहरहाल, आपको लिग्नाइट की खदानें होने के बहुत से बोर्ड दिखाई देते हैं जिनसे यह पता चलता है कि गुजरात खनिज विकास निगम इस इलाके का मौजूदा सत्तादार है। इस किले के ठीक बाहर एक चाय की दुकान है। किले के भीतर हर रोज अपनी जिंदगी के लिए जूझते अब 51 परिवार रहते हैं, पर इतिहास तो कुछ और ही कहानी कहता है।

जानते हैं इसे लखपत क्यों कहते हैं? यह देश का सबसे समृद्ध बंदरगाह हुआ करता था। व्यापार का आलम यह था कि हर रोज इस स्थान पर 1 लाख कोड़ियों (तब की मुद्रा) का व्यापार होता था। इसी 1 लाख के कारण इसका नाम लखपत पड़ गया। लखपत मतलब लखपति परिवारों का गांव!

12 साल की उम्र में फकीर बने गौस मुहम्मद की समाधि यहां है। माना जाता है कि मक्का जाते समय और वापस लौटते समय गुरुनानक ने लखपत में रात्रि विश्राम किया था इसलिए यहां गुरुद्वारा भी है। यहां के ग्रंथी के मुताबिक लखपत का गुरुद्वारा पहला गुरुद्वारा है।

1805 में कच्छ के राजा के लोकप्रिय सेनापति जामदार फतेह मुहम्मद ने इसकी सिंध के आक्रमण से रक्षा करने के लिए लखपत का किला बनवाया जिसका परकोटा 7 किलोमीटर का है।

यहां कच्छ के विशाल रण से कोरी खाड़ी का मिलन होता है, तब सिंधु नदी यहां से बहा करती थी। यहां की जनसंख्या 5,000 हुआ करती थी जिनमें ज्यादातर सौदागर और हिन्दू होते थे। सिंधु नदी के किनारे पर कोटरी नामक स्थान था, जहां बड़ी नावें और जहाज आकर खड़े होते थे। यहां से ऊंटों पर अन्य साधनों से माल ढो-ढोकर थार तक पहुंचाया जाता था।

सोचिए आज जो रेगिस्तानी क्षेत्र है, वहां सबसे ज्यादा खेती धान की होती थी। वर्ष 1819 में कच्छ में आए जबरदस्त भूकंप ने सब कुछ बदल दिया। यहां जून 1819 के 7 दिनों में 36 भू-गर्भीय कंपन हुए। यहां से बहने वाले सिंधु नदी ने अपना रास्ता बदला दिया, एक प्राकृतिक बांध अल्लाहबंद का निर्माण हो गया और नदी सीधे समुद्र में जाकर मिलने लगी। सब कुछ तहस-नहस हो गया।

बताया जाता है कि ऐतिहासिक महत्त्व के मद्देनजर सरकार द्वारा इस क्षेत्र और लोगों के विकास के लिए राशि जारी की जाती रही, पर भ्रष्टाचार लखपत के वजूद को मिटाने की मुहिम में सफल साबित हुआ। अब यहां कोई नहीं आता है।

8 पीढ़ियों से रह रहे लोग अपनी इन जड़ों को छोड़ना नहीं चाहते हैं। वे मानते हैं कि समृद्धता और संपन्नता हमेशा नहीं रहती। हम यदि लखपत को छोड़ भी देंगे तो हमारी जिंदगी नहीं बदलेगी। अब हमें अपना नया भविष्य गढ़ना है।

कच्छ में ही 17वीं शताब्दी में निर्मित हुआ मुंद्रा बंदरगाह भी है। निजीकरण के जरिए आर्थिक विकास की नीतियों के तहत यह बंदरगाह 10 साल पहले एक निजी कंपनी समूह अडानी को दे दिया गया। उसने यहां पर्यावरण को खूब नुकसान पहुंचाया जिसके लिए उस पर 200 करोड़ रुपए का जुर्माना भी हुआ। बहरहाल, यह बंदरगाह एक समय में नमक और मसालों के व्यापार के लिए बेहद प्रसिद्ध था।

यहां रहने वाले खारवा जाति के लोग कुशल जहाज चालक होते थे इसलिए यह बंदरगाह भी बहुत सफल रहा। इन तीनों उदाहरणों को देखा जाए तो आर्थिक संपन्नता के साथ यहां धार्मिक और आध्यात्मिक सौहार्द भी फैला हुआ नजर आता है। मुंद्रा में भी शाह बुखारी पीर की दरगाह है। संत दरिया पीर के बारे में कहा जाता है कि वे मछुआरों की रक्षा करते थे और 17वीं सदी में यहां आए थे।

गुजरात में कच्छ के दूसरे कोने में है मांडवी, एक समुद्र तट और एक शहर! थोड़ा विस्तार से बताता हूं। आज जिस गुजरात राज्य को हम बहुत समृद्ध मानते हैं और सोचते हैं कि ये पिछले कुछ वर्षों में विकसित हुआ है, पर सच यह है कि समृद्धता तो यहां 400 साल पहले से आना शुरू हो गई थी।

वहां मांडवी में कच्छ के रजा खेंगारजी ने वर्ष 1574 में विशालकाय बंदरगाह बनवाया था। 1581 में नगर की स्थापना हुई। इस बंदरगाह की क्षमता 400 जहाजों की थी। मुंबई से पहले यह बंदरगाह बन गया था। आजकल भारत का भुगतान संतुलन बिगड़ा हुआ है यानी निर्यात कम होता है और आयात ज्यादा, पर 100 सालों तक मांडवी से होने वाले व्यापार में आयात से 4 गुना ज्यादा निर्यात होता था।

यहां से पूरी अफ्रीका, फारस की खाड़ी, मालाबार, पूर्वी एशिया से व्यापार के लिए जहाज अरब सागर के इस बंदरगाह पर आते थे। यहां के समुद्र को काला समुद्र या ब्लैक-सी भी कहा जाता है, क्योंकि यहां मिलने वाली बारीक मिट्टीनुमा रेत का रंग काला होता है। पहले-पहल तो आपको लगेगा कि- हें! यहां तो कीचड़ है, पर जब हम इसे स्पर्श करते हैं तब हमें यहां की संस्कृति, संपन्नता और वैभवशाली अतीत का अहसास होने लगता है।

इस यात्रा से मेरा यह विश्वास तो मजबूत हुआ कि इतिहास और अतीत को पलटकर जरूर देखना चाहिए। एक नए समाज को गढ़ने के लिए यह बहुत जरूरी है।

बुधवार, 1 जनवरी 2014

बाड़मेर नगर परिषद् घोटाला ..जनगणना से अधिक आवारा पशु पकड़ना बता डकारे सत्रह लाख रुपये



बाड़मेर नगर परिषद् घोटाला जनगणना से अधिक आवारा पशु पकड़ना बता डकारे सत्रह लाख रुपये




बाड़मेर बाड़मेर जिला मुख्यालय पर स्थित नगर परिषद् में कांग्रेस बोर्ड में विधायक और सभापति के ख़ास आदमियो का तोटक राशा राज्य सरकार को लाखो रुपयो का चुना लगा रहा हें। परिषद् में सरकारी जनगणना से कही अधिक आवारा पशु पकड़ना बता एक फार्म ने सत्तरह लाख रुपये डकार लिए ,नगर परिषद् का कोई जिम्मेदार अधिकारी इस पर बोलने से कतरा रहा हें। सूत्रानुसार नगर परिषद् बाड़मेर में गत साल शहरी क्षेत्र में आवारा पशुओ को पकड़ कांजी हाउस या गौशाला में भेजने के लिए निविदा आमंत्रित कि गयी थी , इस निविदा को एक पार्षद किसी फार्म के जरिये हथियाने में कामयाब हो गया। इस फर्म ने शहरी क्षेत्र में एक लाख से अधिक आवारा पशु पकड़ना बता कर बिल सभापति से प्रमाणित करा कर सत्तरह लाख का भुगतान उठा लिया। सूत्रो कि माने को जो संख्या इस फर्म ने आवारा पशुओ कि बताई हें उतने कुल पशु बाड़मेर शहरी क्षेत्र में ही नहीं हें। जबकि पकडे गय़े आवारा पशुओ को किन स्थानिओ पर छोड़ा गया यह बताने में भी विफल रहे। इसके बावजूद इस फर्म को राजनितिक दबाव के चलते सत्तरह लाख रुपये का फर्जी भुगतान कर दिया। सामाजिक संघठन ने जिला कलेक्टर को ज्ञापन देकर मामले के जांच कि मांग कि हें। इधर बाड़मेर शहर ने आवारा पशुओ को वास्तविक संख्या तीन अंको तक भी नहीं हें। मगर परिषद् के भरष्ट अधिकारियो ने एक पार्षद को आर्थिक फायदा पहुंचते हुए सत्तरह लाख का भुगतान कर सरकार को चुना लगा दिया।