बुधवार, 29 मई 2013

राजस्‍थान: सरहद पर दो बूंद पानी के लिए तरसते दलित



राजस्‍थान: सरहद पर दो बूंद पानी के लिए तरसते दलित

चन्दन सिंह भाटी



बाडमेर: भारत-पाकिस्तान सरहद पर बसे परंपरागत रूप से अभावग्रस्त राजस्‍थान के बाड़मेर जिले में भीषण गर्मी के साथ-साथ पेयजल संकट से आम आदमी का जीना मुहाल हो गया है। अभावों के आदी होने के बावजूद थारवासी इस बार के पेयजलसंकट और भीषण गर्मी को सहन नहीं कर पा रहे हैं। सरहदी क्षेत्रों में पेयजल संकट किसी सजा से कम नहीं है। विशेषकर, दलित वर्ग के लोगों के लिए।

बाड़मेर जिले के समस्त , गांव अभावग्रस्त घोषित हैं, मगर राज्य सरकार ने अभावग्रस्त जनता को राहत देने के लिए किसी प्रकार के ठोस कदम नहीं उठाए हैं, जिसके चलते दलित परिवारों के सामने जीवन का संकट पैदा हो गया है। दलितों की जिंदगी दो बूंद पानी की तलाश तक सिमट कर रह गई है। पूरा दिन एक घड़ा पानी की तलाश में निकल जाता है। ग्रामीण क्षेत्रों में दलित परिवारों के लिए पेयजल की अलग से व्यवस्था परंपरागत रूप से है। आज भी सवर्ण जातियां दलित वर्ग के लोगों को अपने साव, तालाबों और टांकों से पानी भरने नहीं देती। अभिशप्त दलित वर्ग दो बूंद पानी के लिये संर्घष कर रहा है। गाँवो में आज भी दलित वर्ग के पेयजल स्रोत गाँव के छोर पर बने हें .दलित वर्ग के लिए गाँवो में टाँके ,बेरिया और कुँए अलग से बने हुए हें .तालाबो पर दलितों को आज भी पानी भरने नहीं दिया जाता

जाति के आधार पर बंटे इन पेयजल स्रोतों का निर्माण सरकार ने भले ही सार्वजनिक तौर पर कराया हो, मगर जमीनी हकीकत यही है कि दलित को सार्वजनिक कुओं से पानी भरने की इजाजत तथाकथित सभ्य समाज नहीं देता। कहने को जिला प्रशासन द्वारा सभी आठों तहसीलों में पानी के टैंकरों की व्यवस्था कर रखी है, मगर ये पानी के टैंकर जरूरतमंद लोगों तक पहुंचने से पहले गांवों के प्रभावशाली लोगों के हत्थे चढ जाते हैं। सार्वजनिक टांकों में पानी भरे जाने के बजाय प्रभावशाली सवर्ण जाति के निजी टांकों में भरे जाने के कारण दलितों के पेयजल स्रोत खाली ही रहते हैं। ऐसे में दलित परिवार की महिलाओं को आसपास के गांवों में पानी की तलाश में निकलना पडता है।

गांव के सार्वजनिक टांकों पर दलितों को पानी भरने की इजाजत नहीं

गांव-गांव में यही कहानी दोहराई जाने के कारण आज दलितों के पानी के टांके खाली पड़े हैं। जाति के आधार पर बंटे पानी के कारण दलित वर्ग के लोग पलायन को मजबूर हैं। गांवों में बाकायदा सवर्ण जातियों के लिए अलग से टांके बने हैं, तो दलित वर्ग के लिए ‘मेधवालों की बेरी’, ‘भीलों की बेरी’, ‘सांसियों का तला’, ‘मिरासीयों का पार’ नाम से पानी के स्रोत अलग से गांव की सरहदों पर बने हुए हैं। जिले में लगभग 70-80 सरपंच, जिला परिषद सदस्य तथा पंचायत समिति सदस्य और एक विधायक दलित समाज से होने के बावजूद ग्रामीण अंचलों में दलितों का सरेआम शोषण हो रहा है। दो बूंद पानी के लिए दलित वर्ग को बार-बार अपमानित होना पड रहा है।

जाति आधारित बंटवारा महज पानी में ही हो, ऐसा नहीं हैं। हर योजना का बंटवारा जाति आधारित हो रहा है। जिला प्रशासन द्वारा संचालित पेयजल राहत टैंकर चलाने वाले किशनाराम ने बताया, ‘‘हम गरीबों तक पानी पहुंचाना चाहते हैं, मगर गांव के प्रभावशाली लोग हमें गांव में घुसने पर ‘देख लेने’ की धमकिया देते हैं, जोर-जबरदस्ती कर पानी के टैंकर अपने घरों के टांकों में खाली कराते हैं। हमें गांवों में बार-बार जाना होता है। किस-किस से दुश्‍मनी मोल लें।’’

रूघाराम मेघवाल कहते हैं, ‘राहत के पेयजल टैंकर गरीब और दलितों तक पहुंचने ही नहीं दिए जाते। गांवों में दलितों के टांकों में पानी रीत (रिक्‍त) चुका हैं। पानी खरीदने की हमारी हैसियत नही है। बीस-बीस किलोमीटर परिवार की महिलाएं और बच्चे पैदल चल कर पानी की तलाश में भटकते रहते हैं। दिन भर की तलाश के बाद एक घड़ा ला पाते हैं। ऐसी स्थिति कब तक चलेगी? जिला प्रशासन को बार-बार सूचित किया, मगर कोई कार्यवाही नहीं हो रही है।


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मधुमेह रोगियों के लिए चने का सत्तू"रामबाण"


चिकित्सा विज्ञान की कई खोज से यह साबित हो गया है कि पेट की बीमारियों तथा मधुमेह के रोगियों के लिए चने का सत्तू रामबाण है। बहुब्रांड शीतल पेय पीने से शरीर में वसा की मात्रा बढ़ जाती है जिसके कारण कई बीमारियां हो सकती हैं लेकिन चने के सत्तू का सेवन खासकर गर्मी के मौसम में पेट की बीमारियों तथा शरीर के तापमान को नियंत्रित करने में मदद करता है। खासकर यह मधुमेह रोगियों के लिए रामबाण है।
मधुमेह रोगियों के लिए चने का सत्तू"रामबाण"


चने के सत्तू का सेवन हर आयु वर्ग के लोग कर सकते हैं लेकिन जोड़ों के दर्द के रोगी को इसके सेवन से बचना चाहिए। जहां एक तरफ बहुब्राण्ड शीतल पेय कम्पनियां भीषण गर्मी में अपने ग्राहकों को रिझाने तथा अपनी ब्राण्ड का प्रचार करने के लिए समाचार पत्रों, टीवी के माध्यम से प्रचार करके लोगों को आकर्षित करने का प्रयास कर रही हैं उसी के बीच अपनी गुणवत्ता तथा स्वास्थ्यवर्धक होने के कारण सत्तू बिना किसी प्रचार के पूर्वी उत्तर प्रदेश के देवरिया, गोरखपुर, बस्ती, कुशीनगर, बलिया, गाजीपुर और बनारस सहित पूरे बिहार में लोगों की खास पसन्द बन गया है।

आयुर्वेद के जानकारों के अनुसार चने का सत्तू गर्मी के मौसम में तापमान को नियंत्रित करने के साथ साथ स्वास्थ्यवर्धक भी है। जानकारों का कहना है कि सत्तू के सेवन से खासकर गर्मी के मौसम में पेट की समस्याओं से निजात पाया जा सकता है। चने से बनने वाले सत्तू के गुणकारी परिणाम से आज यह आम वर्ग के साथ साथ सुविधा सम्पन्न लोगों की पहली पसन्द बनता जा रहा है।

बाजार में बिकने वाले शीतल पेय पदार्थ लोगों को आकर्षित तो कर सकते हैं लेकिन गर्मी के मौसम में संतुष्ट नहीं कर सकते जबकि चने से बना सत्तू गर्मी से निजात दिलाने के साथ साथ शरीर के लिए काफी लाभदायक है और इसी का परिणाम है कि आज सत्तू पीने वालों में सभी वर्गो के लोग आते हैं और सत्तू का सेवन करते हैं। चने के सत्तू का बाजार कितना बड़ा है इसका कोई अधिकृत आंकड़ा नहीं है लेकिन इसकी खपत से माना जा रहा है कि यह रोजाना करोड़ों रूपए में है।

मेवाड़ के हॉट बैचलर को इस राजकुमारी से दिल्ली में हुआ प्यार,



उदयपुर। मेवाड़ राजघराने के बैचलर लक्ष्यराज सिंह इसी साल नवंबर या दिसंबर में परिणय सूत्र में बंधने वाले हैं। उनकी शादी उड़ीसा की पूर्व रियासत बालांगीर के कनकवर्धन सिंह की बेटी निवृत्ति कुमारी सिंह देव के साथ होगी।

दिल्ली में हुए एक समारोह में परिवार वालों की मौजूदगी में जब दोनों ने एक-दूसरे से पहली बार मुलाकात की, तो दिल दे बैठे। इसके बाद हैदराबाद में भी होटल मैनेजमेंट संबंधी समारोह में मिले।

मेवाड़ के हॉट बैचलर को इस राजकुमारी से दिल्ली में हुआ प्यार, देखें खास तस्वीरें
गत 13 मई को अक्षय तृतीया (उदयपुर स्थापना दिवस) के दिन मुंबई में हुए एक दस्तूर में रिश्ते के साथ शादी की तारीख भी तय कर ली गई। तारीख का खुलासा नहीं किया गया है, लेकिन नवंबर या दिसंबर में महलों में शहनाई बजने वाली है। यहां सिटी पैलेस में जल्दी ही रिंग सेरेमनी होगी। दोनों घरानों में शादी की तैयारियां शुरू हो गई हैं। 

उदयपुर से उड़ीसा तक तैयारियां 

इस शाही शादी की उदयपुर से उड़ीसा तक तैयारियां चल रही हैं। बारात को ठहराने के लिए अलग से रिसोर्ट्स का निर्माण कराया जा रहा है। इसमें सितारा झोपड़ियां बनाई जा रही हैं। इनकी दीवारों पर मेवाड़ व उड़ीसा की चित्रकारी होगी। इसके लिए उदयपुर से चित्रकार भेजे गए हैं। बारातियों को राजस्थानी भोजन उपलब्ध करवाने के लिए मेवाड़ से शेफ भेजे जाएंगे। बारात के चार्टर प्लेन भी बुक करा दिए गए हैं। 

निवृत्ति कुमारी सिंह 
उड़ीसा के बालांगीर घराने के कनकवर्धन सिंह देव व संगीता सिंह की इकलौती बेटी हैं। दिल्ली में कान्वेंट स्कूल में पढ़ने के बाद स्विट्जरलैंड में हॉस्पिटेलिटी, फाइनेंस व रेवन्यू मैनेजमेंट में उच्च शिक्षा हासिल की। इसके बाद उन्होंने स्विट्जरलैंड में उस टीम का हिस्सा रही जो अपने जूनियर को प्रशिक्षण देते थे। लंदन के होटल ताज में उन्होंने इंटर्नशिप की। वर्ष 2010 में स्वदेश लौटकर होटल ताज में बतौर सलाहकार काम किया। उनके पिता कनकवर्धन सिंह उड़ीसा भाजपा के प्रदेशाध्यक्ष हैं और तीन से अधिक बार मंत्री रह चुके हैं। उनकी माता संगीता सिंह भी दो बार सांसद रही हैं। 


लक्ष्यराज सिंह मेवाड़ 
मेवाड़ राजघराने के सदस्य और एचआरएच ग्रुप ऑफ होटल्स के संस्थापक अरविंदसिंह मेवाड़ के पुत्र हैं। महाराणा मेवाड़ पब्लिक स्कूल से शुरुआती शिक्षा पूरी करने के बाद मेयो कॉलेज से शिक्षा की। इसके बाद ऑस्ट्रेलिया से बिजनेस और होटल मैनेजमेंट में उच्च शिक्षा हासिल की। वर्तमान में वे एचआरएच ग्रुप ऑफ होटल्स के कार्यकारी निदेशक, विद्यादान व महाराणा मेवाड़ चेरिटेबल फाउंडेशन के ट्रस्टी, महाराणा प्रताप (मोती मगरी) स्मारक समिति व उदयपुर क्रिकेट एसोसिएशन के अध्यक्ष हैं।

बड़ा खुलासा: अमेरिका ने नहीं मारा था, खुद मरा था लादेन

वॉशिंगठन। दुनिया का नंबर वन आतंकवादी ओसामा बिन लादेन को मार गिराने का दावा भले ही अमेरिका करे, लेकिन नई जानकारी के अनुसार, इस आतं‍की को अमेरिकी सैनिकों ने नहीं बल्कि वह खुद अपनी मौत मरा था। ओसामा के पूर्व बॉडीगार्ड ने दावा किया है कि लादेन अमेरिकी नौसेना की विशेष इकाई सील की गोली से नहीं मरे थे। बल्कि उन्‍होंने खुद को बम से उड़ा लिया था। ओसामा के इस पूर्व बॉडीगार्ड के दावे पर कितनी सच्‍चाई है, यह बात या तो वह ही जानते हैं या फिर अमेरिका।
बड़ा खुलासा: अमेरिका ने नहीं मारा था, खुद मरा था लादेन
पाकिस्तान के ऐबटाबाद में अमेरिकी सुरक्षा बलों की कार्रवाई में ओसामा बिन लादेन के मारे जाने की घटना के बारे में अक्‍सर नई खबरें आती रहती हैं। कुछ महीनों पहले खबर आई थी कि ओसामा को उसके कमरे में नहीं, बल्कि उस वक्त गोली मारी गई थी, जब अपने शयनकक्ष से बाहर की ओर झांक रहा था तथा उसके बचाव के लिए कोई विशेष व्यवस्था नहीं थी।


लादेन के पूर्व बॉडीगार्ड नबील नईम अब्‍दुल फतेह ने बताया कि जिस वक्‍त ओसामा की मौत हुई, उस वक्‍त वह व‍हां मौजूद नहीं था। लेकिन ओसामा के एक करीबी रिश्‍तेदार ने यह बात बताई। ओसामा के विरोधियों का मनाना है कि उसके समर्थक जानबूझ कर ऐसे प्रोपागंडा फैलाता है। पूर्व बॉडीगार्ड के दावे में कोई भी सच्‍चाई नहीं है। ओसामा बिन लादेन की हत्‍या पाकिस्‍तान में 2 मई 2011 को हुई थी।

कुछ दिनों पहले अमेरिकी रक्षामंत्री लियोन पनेटा भी कह चुके कि ओसामा बिन लादेन को मार गिराने का अभियान ‘किल ओसामा’ बहुत ही जोखिम भरा था। पाकिस्तान के एबटाबाद में अलकायदा आतंकी लादेन मिल ही जाएगा, यह पक्का नहीं था। सीआईए के निदेशक के तौर पर पनेटा ने ओसामा का पता लगाने और उसे मार गिराने के अभियान में अहम भूमिका निभाई थी। इसके बाद राष्ट्रपति बराक ओबामा ने उन्हें रक्षामंत्री बना दिया था। पनेटा ने रक्षामंत्री के तौर पर अपने अंतिम संवाददाता सम्मेलन में कहा था, ‘मैंने जो देखा.. वह बहुत पेशेवर खुफिया अभियान था। उसमें एबटाबाद में ओसामा के ठिकाने का पता लगाया जा सका।’ पनेटा ने कहा कि ‘ओसामा एबटाबाद में है यह सौ फीसदी निश्चित नहीं था इसलिए बीच में कई बार हम नर्वस हुए। अंत में विश्वास की जीत हुई।’

शाही हमाम में मुमताज संग नहाते थे शाहजहां, आज भी भटकती है बेगम की आत्मा



इंदौर। प्रेम के सबसे बड़े प्रतीक ताजमहल को बनवाने वाले शाहजहां और बेगम मुमताज महल की बेहद रोमांटिक यादें मध्यप्रदेश के बुरहानपुर से भी जुड़ी हैं। शाहजहां ने आगरा का ताजमहल तो अपनी प्रिय बेगम की मौत के बाद उनकी याद में बनवाया था, लेकिन शाहजहां और मुमताज बेगम का प्यार तो बुरहानपुर में बने फारुखी काल के शाही किले में ही परवान चढ़ा था। इस किले की दरों-दीवारें ही नहीं कमरों से लेकर दालान और हमाम तक आज भी शाहजहां और मुमताज के हसीन प्यार के गवाह हैं। बतौर बुरहानपुर गर्वनर शाहजहां इस किले में लगभग पांच वर्ष तक रहे। यह किला शाहजहां को इतना पसंद था कि अपने कार्यकाल के पहले तीन वर्षों में ही उन्होंने किले की छत पर दीवाने आम और दीवाने खास नाम से दो दरबार बनवा दिए थे। शाहजहां ने किले में इस सबसे अलहदा एक ऐसी चीज बनवाई थी, जहां वे अपनी बेगम के साथ सुकून के पल बिताते थे। मुमताज की मौत भी बुरहानपुर में ही हुई थी। शायद बहुत कम लोग यह जानते होंगे की ताजमहल बनने तक मुमताज का मृत शरीर यहीं दफनाया गया था।

कहते हैं कि आज से 400 वर्ष पूर्व जब मुगलिया सल्तनत की बेगम मुमताज की मौत बुलारा महल में हुई थी, तब शाहजहां बुरहानपुर में ही ताजमहल का निर्माण कराने वाले थे। परंतु किसी कारणवश यह संभव न हो सका और जब आगरा में ताजमहल बनकर तैयार हुआ तो वहां मुमताज की देह को ले जाकर दफनाया गया। यहां के रहवासियों का मानना है कि मुमताज की देह तो यहां से निकाल ली गई पर आत्मा आज भी इसी महल में है। लोगों की मानें तो इन खंडहरों में आज भी मुमताज की आत्मा भटकती है।




रहवासियों के अनुसार उन्हें अक्सर महल से चीखने-चिल्लाने की आवाजें आती हैं। इन आवाजों का आना यहां के लोगों के लिए आम बात है।हालांकि आज तक यहां आने वाले किसी भी शख्स को मुमताज की आत्मा ने परेशान नहीं किया और न ही नुकसान पहुंचाया है। मौजूद तथ्यों के आधार पर सन 1631 में यहां अपनी बेटी को जन्म देने के कुछ दिनों बाद ही मुमताज चल बसी थी। कहते हैं कि यही वजह है कि उनकी आत्मा इस महल में ही बस गई।




शाहजहां ने बेगम मुमताज महल के लिए शाही किले में एक विशेष प्रकार के हमाम का निर्माण करवाया था। इसकी दीवारों से लेकर छत तक महीन कारीगरी की गई थी, जिस पर जयपुर के आमेर महल की तरह रंगीन कांच के टुकड़े जड़े हुए थे। अंधेरे में केवल एक दीया जलाने मात्र से पूरा हमाम रोशनी से जगमगा जाता था। इस रंग-बिरंगी रोशनी का प्रतिबिंब जब बेगम के जिस्म पर पड़ता था, तो सोने की तरह दमकने वाले मुमताज के शरीर से पन्ना, नीलम और अन्य रत्नों सी चमक बिखर जाती थी।